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जैव विविधता और पर्यावरण

वर्ष 2070 तक ‘कार्बन तटस्थता’ का लक्ष्य: भारत

  • 02 Nov 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान

मेन्स के लिये:

भारत द्वारा निर्धारित ‘कार्बन तटस्थता’ लक्ष्य के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने घोषणा की है कि वह अपने पाँच सूत्री कार्य योजना के हिस्से के रूप में वर्ष 2070 तक ‘कार्बन तटस्थता’ का लक्ष्य प्राप्त कर लेगा, जिसमें वर्ष 2030 तक उत्सर्जन को 50% तक कम करना भी शामिल है।

Five-Pledges

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • ‘नेट ज़ीरो’ अथवा कार्बन तटस्थता का आशय ऐसी स्थिति से है, जिसमें किसी देश का कुल उत्सर्जन, वातावरण से अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड के समान होता है,इसमें पेड़ों अथवा जंगलों द्वारा या अत्याधुनिक तकनीकों के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड को वातावरण से हटाना शामिल है।
    • 70 से अधिक देशों ने सदी के मध्य तक ‘नेट ज़ीरो’ लक्ष्य प्राप्त करने के प्रति प्रतिबद्धता ज़ाहिर है, और इसे पूर्व-औद्योगिक स्तर से वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने के पेरिस समझौते के लक्ष्य को पूरा करने के लिये महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है।
    • भारत का वर्ष 2070 तक ‘नेट ज़ीरो’ प्राप्त करने का लक्ष्य भारत के आलोचकों को चुप कराना है, साथ ही यह अपेक्षा के अनुरूप ही है।
      • यहाँ मुख्य बात स्वयं लक्ष्य नहीं है, बल्कि यह तथ्य है कि भारत आखिरकार झुक गया और उसने लक्ष्य निर्धारण का फैसला किया है, जिसे वह काफी समय से रोक रहा था।
      • पेरिस समझौते के तहत प्रस्तुत अपनी जलवायु कार्य योजना में भारत ने वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक अपनी उत्सर्जन तीव्रता या सकल घरेलू उत्पाद की प्रति इकाई उत्सर्जन को 33% से 35% तक कम करने का वादा किया था।
  • भारत के उत्सर्जन को कम करना:
    • दुनिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में सबसे कम प्रति व्यक्ति उत्सर्जन है - दुनिया की आबादी का 17% हिस्सा होने के बावजूद कुल का 5% उत्सर्जन।
    • विश्व संसाधन संस्थान के अनुसार, वर्ष 2018 में भारत का कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन लगभग 3.3 बिलियन टन था।
      • यह वर्ष 2030 तक प्रतिवर्ष 4 बिलियन टन से अधिक हो सकता है।
    • इसका मतलब यह होगा कि वर्ष 2021 और वर्ष 2030 के बीच भारत 35 से 40 अरब टन के आसपास उत्सर्जन कर सकता है।
    • इस प्रकार 1 बिलियन टन की कटौती अगले नौ वर्षों में पूर्ण उत्सर्जन में 2.5% से 3% की ही कमी करेगी।
  • भारत के नए नवीकरणीय लक्ष्य:
    • वर्ष 2019 में भारत ने घोषणा की कि वह वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा की अपनी स्थापित क्षमता को 450 गीगावाट (GW) तक प्रस्थापित करेगा।
      • इस घोषणा से पहले भारत का सार्वजनिक रूप से घोषित लक्ष्य वर्ष 2022 तक 175 GW था।
    • पिछले कुछ वर्षों में स्थापित अक्षय क्षमता तेज़ी से बढ़ रही है और 450 गीगावाट से 500 गीगावाट तक की अपनी परिबद्धता के अनुसार इसकी वृद्धि अधिक चुनौतीपूर्ण होने की संभावना नहीं है।
    • ऊर्जा मिश्रण में गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा के अनुपात में 50% की वृद्धि इसका एक स्वाभाविक परिणाम है।
    • ऊर्जा क्षेत्र में अधिकांश नई क्षमता वृद्धि नवीकरणीय और गैर-जीवाश्म ईंधन क्षेत्र में की जा रही है। 
      •  हालाँकि भारत पहले यह घोषणा कर चुका है कि उसकी वर्ष 2022 के पश्चात् नए कोयला बिजली संयंत्र शुरू करने की कोई योजना नहीं है।
      • भारत का वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म-ईंधन से कुल विद्युत उत्‍पादन का 40 प्रतिशत उत्‍पादन हासिल करने का लक्ष्‍य है।
  •  जलवायु वित्त:
    • आवश्यक है कि विकसित देशों द्वारा जलवायु वित्त के माध्यम से भारत के प्रयासों का समर्थन किया जाए। विदेशी पूंजी के बिना रियायती शर्तों पर यह स्थानांतरण जटिल साबित होगा।
    • भारत जल्द-से-जल्द 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के जलवायु वित्त की मांग करता है और यह न केवल जलवायु कार्रवाई की निगरानी करेगा, बल्कि जलवायु वित्त भी प्रदान करेगा। 
    • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत ने एक बार फिर जीवनशैली में बदलाव का आह्वान किया है।
  • नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु आवश्यक कदम:
    • काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरनमेंट एंड वाटर्स इंप्लीकेशंस ऑफ ए नेट-ज़ीरो टारगेट फॉर इंडियाज़ सेक्टोरल एनर्जी ट्रांजिशन एंड क्लाइमेट पॉलिसी के अध्ययन के अनुसार, भारत की कुल स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता को वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य प्राप्त करने के लिये 5,600 गीगावाट से अधिक की आवश्यकता होगी।
    • भारत को वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य हासिल करने के लिये विशेष रूप से बिजली उत्पादन हेतु कोयले के उपयोग को वर्ष 2060 तक 99% तक कम करना होगा।
    • सभी क्षेत्रों में कच्चे तेल की खपत को वर्ष 2050 तक चरम स्थिति पर पहुँचाने और वर्ष 2050 तथा वर्ष 2070 के बीच 90% तक कम करने की आवश्यकता होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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