राजस्थान Switch to English
राजस्थान में नया जल संचयन मॉडल
चर्चा में क्यों?
राजस्थान के शुष्क भूभाग में जयपुर के कूकस गाँव में 50 जलवायु-अनुकूल कृषि तालाबों का उपयोग करते हुए एक नए जल संरक्षण मॉडल का लक्ष्य 10 करोड़ लीटर वर्षा जल का संरक्षण करके किसानों को लाभान्वित करना है।
नोट: IIT खड़गपुर की पूर्व छात्रा और नीति आयोग की पूर्व अधिकारी इस पहल का नेतृत्व कर रहे हैं तथा उन्होंने स्थानीय सभाओं तथा रैलियों के माध्यम से दौसा में जागरूकता अभियान चलाया है।
मुख्य बिंदु
- वर्षा जल संचयन मॉडल के बारे में:
- जयपुर के आमेर ब्लॉक में कूकस ग्राम पंचायत को इस वर्षा जल संचयन पहल के लिये चुना गया राजस्थान का दूसरा स्थान है।
- यह परियोजना दौसा ज़िले में मिली सफलता के बाद शुरू की गई है, जहाँ 250 कृषि तालाबों के निर्माण से किसानों को वर्षा आधारित भूमि पर बारहमासी फसलें उगाने में मदद मिली।
- इस पहल में प्रत्येक किसान की 5% भूमि पर सुरक्षित बाड़ लगाकर 10 फुट गहरे, प्लास्टिक से बने तालाबों का निर्माण करना शामिल है।
- जयपुर के आमेर ब्लॉक में कूकस ग्राम पंचायत को इस वर्षा जल संचयन पहल के लिये चुना गया राजस्थान का दूसरा स्थान है।
- भविष्य की योजनाएँ और प्रभाव:
- इस पहल में पहले ही 50 तालाब बनाए जा चुके हैं और अब इसमें 25 तथा तालाब बनाने की योजना है।
- इस विस्तार से क्षेत्र के लगभग 50,000 ग्रामीणों को लंबे समय में लाभ मिलने की उम्मीद है।
- महत्त्व:
- स्थिरता और फसल विविधीकरण: यह पहल वर्ष भर जल आपूर्ति उपलब्ध कराने पर केंद्रित है, जिससे किसानों को रबी और खरीफ दोनों फसलों को उगाने में मदद मिलेगी तथा वे मूँगफली तथा चौला जैसी अधिक जल-कुशल और लाभदायक फसलों की खेती में भी विविधता ला सकेंगे।
- भूजल पुनर्भरण: तालाबों को न केवल सिंचाई प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, बल्कि भूजल को पुनर्भरण करने में भी मदद करता है, जो अंबर ब्लॉक जैसे क्षेत्रों में एक आवश्यक संसाधन है जहाँ नदी या नहर नेटवर्क का अभाव है।
- आजीविका संवर्द्धन: निरंतर जल आपूर्ति से टिकाऊ पशुधन पालन और उच्च मूल्य बागवानी की सुविधा मिलती है, जिससे इस क्षेत्र में डेयरी फार्मिंग तथा खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के लिये अवसर सृजित होते हैं।
- जयपुर ज़िले में भूजल संकट:
- जयपुर की 99.4% कृषि योग्य भूमि सिंचाई के लिये भूजल पर निर्भर है। ज़िले में प्राकृतिक पुनर्भरण की दर से 2.22 गुना अधिक पानी निकाला जाता है, जो गंभीर भूजल संकट को दर्शाता है।
- राजस्थान में भूजल का अत्यधिक दोहन:
- केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के अनुसार, वर्ष 2023 में राजस्थान ने अपने वार्षिक भूजल पुनर्भरण का 149% निकाल लिया, जो पंजाब (156%) के बाद भारत में दूसरा सबसे अधिक है।
- वर्षा द्वारा पुनर्भरित प्रत्येक 1 लीटर जल पर 1.49 लीटर जल निकाला गया, जिसके परिणामस्वरूप भूजल में अत्यधिक कमी आई।
- जैसलमेर: सर्वाधिक प्रभावित ज़िला
- जैसलमेर अत्यधिक दोहन के चार्ट में सबसे ऊपर रहा, जहाँ प्रत्येक 1 लीटर पुनर्भरण पर 3.56 लीटर भूजल निकाला गया, जिससे इसके प्राचीन जलभृतों को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।
- जयपुर: एक गंभीर भूजल क्षेत्र
- जयपुर ज़िले के सभी 16 ब्लॉक अत्यधिक दोहन की श्रेणी में हैं; ज़िले ने वर्ष 2023 में प्रति 1 लीटर पुनर्भरण पर 2.22 लीटर जल निकाला गया।
- लगभग औसत वर्षा के बावजूद, वर्ष 2024 में जयपुर में भूजल उपयोग 7–10% तक बढ़ गया, जिससे भूजल क्षय और बढ़ गया।
- भूजल पुनर्भरण और निष्कर्षण:
- राजस्थान का वार्षिक भूजल पुनर्भरण अनुमानतः 12.58 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) है।
- हालाँकि, वर्ष 2023 में कुल निष्कर्षण 17.05 BCM तक पहुँच गया, जो पुनर्भरण क्षमता से कहीं अधिक है।
- निष्कर्षण योग्य भूजल संसाधन का आकलन 11.37 BCM किया गया, जो उपयोग और उपलब्धता के बीच अस्थायी अंतर को उजागर करता है।


छत्तीसगढ़ Switch to English
इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान
चर्चा में क्यों?
नक्सल विरोधी अभियानों के दौरान छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले स्थित इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान में सुरक्षा बलों की माओवादियों से मुठभेड़ हुई।
मुख्य बिंदु
इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान
- परिचय:
- यह छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले में स्थित है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1981 में हुई थी और इसे भारत के प्रोजेक्ट टाइगर के तहत वर्ष 1983 में बाघ अभयारण्य घोषित किया गया था।
- इसका नाम इंद्रावती नदी के नाम पर रखा गया है, जो पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है और महाराष्ट्र के साथ रिज़र्व की उत्तरी सीमा बनाती है।
- वनस्पति प्रवर्द्धन:
- इसमें मुख्यतः तीन प्रकार के वन शामिल हैं:
- सागौन सहित नम मिश्रित पर्णपाती वन
- सागौन रहित नम मिश्रित पर्णपाती वन
- दक्षिणी शुष्क मिश्रित पर्णपाती वन
- इसमें मुख्यतः तीन प्रकार के वन शामिल हैं:
- वनस्पति:
- सामान्य वृक्ष प्रजातियों में सागौन, अचार, कर्रा, कुल्लू, शीशम, सेमल, हल्दू, अर्जुन, बेल और जामुन शामिल हैं।
- जीव-जंतु:
- यहाँ दुर्लभ जंगली भैंसों की अंतिम आबादियों में से एक मौजूद है।
- अन्य प्रजातियों में नीलगाय, काला हिरण, सांभर, गौर, बाघ, तेंदुआ, चीतल, भालू आदि शामिल हैं।
- नक्सल विरोधी अभियान:
- ऑपरेशन ग्रीन हंट, ऑपरेशन कागर, ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट जैसे वृहद स्तर के अभियानों के तहत अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती कर नक्सली उपस्थिति समाप्त करने का प्रयास किया जाता है।
- कमांडो बटालियन फॉर रेसोल्यूट एक्शन (कोबरा) और ग्रे हाउंड्स (आंध्र प्रदेश) जैसे विशेष बलों के साथ-साथ केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPF) तथा राज्य पुलिस की बढ़ी हुई तैनाती, दीर्घकालिक सुरक्षा के लिये रेड कॉरिडोर में आतंकवाद विरोधी प्रयासों को मज़बूत करती है।
- मारे गए माओवादी:
- वर्ष 2025 में छत्तीसगढ़ में 209 माओवादी मारे गए, जिनमें से अकेले बस्तर क्षेत्र में 192 मौतें हुईं।
- वर्ष 2024 में राज्य में कुल 219 माओवादी मारे गए,जिनमें से 217 बस्तर क्षेत्र में मारे गए थे।


उत्तराखंड Switch to English
उत्तराखंड में हिमालयी चमगादड़ की नई प्रजाति मिली
चर्चा में क्यों?
भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन में विज्ञान के लिये एक नई चमगादड़ प्रजाति, हिमालयन लॉन्ग-टेल्ड मायोटिस (मायोटिस हिमालयकस) का पता चला है, जो उत्तराखंड में पाई गई है।
- इससे पहले इसकी पहचान वर्ष 1998 में पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में हुई थी।
मुख्य बिंदु
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष और निहितार्थ
- अध्ययन के बारे में: भारतीय वैज्ञानिकों ने हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में सर्वेक्षण के दौरान वर्ष 2017 तथा 2021 के बीच 29 चमगादड़ प्रजातियों का दस्तावेज़ीकरण किया।
- नई चमगादड़ प्रजाति: उत्तराखंड के केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य में पाए जाने वाले हिमालयन लॉन्ग-टेल्ड मायोटिस को ज़ूटाक्सा जर्नल में औपचारिक रूप से एक नई प्रजाति के रूप में वर्णित किया गया है।
- इसके साथ ही भारत में चमगादड़ प्रजातियों की कुल संख्या 135 हो गई है।
- ज्ञात प्रजातियों का विस्तार: ईस्ट एशियन फ्री-टेल्ड बैट (Tadarida insignis), जिसे पहले यूरोपीय प्रजाति समझा जाता था, को पहली बार भारत में स्पष्ट रूप से पहचाना गया है।
- यह प्रजाति चीन और ताइवान से लगभग 2,500 किमी दूर भारत के पश्चिमी हिमालय में दर्ज की गई है।
- बाबू पिपिस्टरेल की वैध प्रजाति के रूप में पुष्टि:
- अध्ययन ने बाबू पिपिस्ट्रेल (पिपिस्ट्रेलस बाबू) को जावा पिपिस्ट्रेल (पी. जावानिकस) से अलग एक वैध प्रजाति के रूप में पुनर्स्थापित किया गया है।
- पहले इसे रूपात्मक समानताओं के कारण समानार्थी माना जाता था, लेकिन अब यह पुष्टि हो गई है कि बाबू पिपिस्ट्रेल पाकिस्तान, भारत और नेपाल में पाया जाता है।
- भारत में पहली बार रिकॉर्ड:
- इस अध्ययन में निम्नलिखित प्रजातियों की भारत में पहली बार नमूना आधारित पुष्टि की गई है:
- सावीज़ पिपिस्ट्रेल (Hypsugo savii)
- जापानी ग्रेटर हॉर्सशू बैट (Rhinolophus nippon)
- इस अध्ययन में निम्नलिखित प्रजातियों की भारत में पहली बार नमूना आधारित पुष्टि की गई है:
- प्रमुख प्रजातियाँ एवं संरक्षण:
- प्रमुख प्रजातियों में ब्लैंडफोर्ड का फलाहारी चमगादड़, जापानी और चीनी हॉर्सशू बैट्स, नेपाली व्हिस्कर्ड बैट, मंडेल्ली का माउस-ईयर्ड बैट, कश्मीर गुफा मायोटिस, चॉकलेट पिपिस्ट्रेल एवं ईस्टर्न लॉन्ग-विंग्ड बैट शामिल थे।
- भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) के अनुसार यह शोध भारत में विशेषकर पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में लघु स्तनधारी विविधता के संरक्षण तथा प्रलेखन को मज़बूती प्रदान करेगा।
भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI)
- ZSI पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का एक अधीनस्थ संगठन है और इसकी स्थापना वर्ष 1916 में एक राष्ट्रीय पशु सर्वेक्षण एवं संसाधनों की खोज केंद्र के रूप में की गई थी, जिससे देश की असाधारण रूप से समृद्ध पशु विविधता के बारे में ज्ञान में वृद्धि हुई।
- इसका मुख्यालय कोलकाता में है और देश के विभिन्न भौगोलिक स्थानों पर इसके 16 क्षेत्रीय केंद्र स्थित हैं।


मध्य प्रदेश Switch to English
पन्ना टाइगर रिज़र्व में केन-बेतवा परियोजना पर चिंता
चर्चा में क्यों?
वन्यजीव विशेषज्ञों और वन अधिकारियों ने चिंता जताई है कि केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के तहत निर्माण कार्य से मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व (PTR) में वन्यजीवों पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
मुख्य बिंदु
- पन्ना टाइगर रिज़र्व के बारे में:
- पन्ना भारत का 22वाँ और मध्य प्रदेश का 5वाँ बाघ अभयारण्य है।
- यह विंध्य पर्वतमाला में स्थित है तथा उत्तरी मध्य प्रदेश के पन्ना और छतरपुर ज़िलों के कुछ हिस्सों को कवर करता है।
- पन्ना राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1981 में हुई थी तथा इसे वर्ष 1994 में टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया।
- राष्ट्रीय उद्यान में वर्ष 1975 में बनाए गए पूर्व गंगऊ वन्यजीव अभयारण्य का क्षेत्र शामिल है।
- इस अभयारण्य के जंगल कभी पन्ना, छतरपुर और बिजावर की पूर्व रियासतों के शाही परिवारों के लिये शिकारगाह हुआ करते थे।
- वनस्पति:
- शुष्क पर्णपाती वनों तथा घास के मैदानों का प्रभुत्व।
- उत्तर में यह अभयारण्य सागौन के जंगलों से घिरा हुआ है।
- पूर्व में इसकी सीमा सागौन-करधई मिश्रित वनों से लगती है।
- जीव-जंतु:
- यह रिज़र्व बाघों, भालुओं, तेंदुओं और धारीदार लकड़बग्घों की महत्त्वपूर्ण आबादी का घर है।
- अन्य उल्लेखनीय माँसाहारी प्रजातियों में सियार, भेड़िये, जंगली कुत्ते, जंगली बिल्लियाँ और धब्बेदार जंगली बिल्ली शामिल हैं।
- उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तक फैली विंध्य पर्वत शृंखलाएँ वन्य जीवों की पूर्वी और पश्चिमी आबादी को जोड़ने में मदद करती हैं।
- केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना का अवलोकन और उद्देश्य:
- प्रधानमंत्री ने दिसंबर 2024 में केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना का शुभारंभ किया, जिसका उद्देश्य केन नदी के अतिरिक्त पानी को बेतवा नदी तक पहुँचाना है।
- इस परियोजना का उद्देश्य मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में लगभग 6.5 मिलियन लोगों को पेयजल उपलब्ध कराना है।
- निर्माण एवं वन प्रभाव:
- मार्च 2025 में, प्राधिकारियों ने पन्ना टाइगर रिज़र्व के मुख्य चंद्र नगर रेंज में दौधन बाँध स्थल तक सड़क का निर्माण शुरू किया।
- 15 हेक्टेयर वन भूमि पर वृक्ष काट दिये गए, जिससे प्रभावित क्षेत्र से वन्यजीवों का पलायन शुरू हो गया।
- वन्यजीव अशांति और प्रवासन:
- शाकाहारी जानवर उत्तर की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे पारंपरिक प्रादेशिक क्षेत्र बाधित हो रहे हैं।
- परियोजना स्थल पर बढ़ती मानवीय उपस्थिति और मशीनरी के कारण बंदर तथा पक्षी इस क्षेत्र से पलायन कर रहे हैं।
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने पन्ना टाइगर रिज़र्व में वन क्षरण और शिकार की कमी को लेकर चिंता जताई है।
- भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) की अप्रैल 2025 की रिपोर्ट से पता चला है कि शिकार घनत्व घटकर 6 जानवर/वर्ग किमी रह गया है, जो आदर्श स्थिति 30-60 से बहुत कम है।
- सरकारी उपाय:
- विस्थापित वन्यजीवों को नए अधिसूचित क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाएगा, जैसे:
- रानीपुर टाइगर रिज़र्व (उत्तर प्रदेश)
- रानी दुर्गावती टाइगर रिज़र्व (मध्य प्रदेश)
-
डॉ. भीम राव वन्यजीव अभयारण्य (म.प्र.)
- अन्य वनों से शिकार प्रजातियों को पन्ना टाइगर रिज़र्व में स्थानांतरित करने की योजना पर काम चल रहा है।
- पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिये सरकार ने प्रतिपूरक वनरोपण और वन्यजीव पुनर्वास उपायों की योजना बनाई है।
- रिज़र्व का 60 वर्ग किमी तक विस्तार प्रस्तावित है तथा छतरपुर और पन्ना ज़िलों में भूमि अधिग्रहण का कार्य पहले ही चल रहा है।
- विस्थापित वन्यजीवों को नए अधिसूचित क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाएगा, जैसे:
- पर्यावरण मंत्रालय ने तीन शर्तों के साथ परियोजना को मंज़ूरी दी:
- पन्ना टाइगर रिज़र्व की सीमाओं का विस्तार करना।
- प्रतिपूरक वनरोपण के रूप में 2.5 मिलियन पेड़ लगाए जाएंगे।
- रेडियो कॉलर के माध्यम से बाघ और तेंदुए के व्यवहार की निगरानी करना।
- अब तक वन विभाग ने वनरोपण के लिये निर्धारित भूमि का केवल 30% ही अधिगृहीत किया है।

