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वैश्विक शक्ति के रूप में भारत की स्थिति

  • 16 Sep 2025
  • 80 min read

प्रिलिम्स के लिये: मानव विकास सूचकांक, क्वाड, शंघाई सहयोग संगठन (SCO), गुटनिरपेक्ष आंदोलन 

मेन्स के लिये: महाशक्ति का दर्जा पाने की भारत की आकांक्षा और इसकी सीमाएँ, भारत का सामरिक स्वायत्तता दृष्टिकोण, भारत की सामरिक स्वायत्तता की खोज से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारत जैसे-जैसे विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में विकसित हो रहा है, उसे अपनी महाशक्ति आकांक्षाओं पर बहस का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें आलोचक कमज़ोर रणनीति और चीन तथा अमेरिका की तुलना में इसके सीमित वैश्विक प्रभाव पर प्रकाश डाल रहे हैं। 

भारत की वैश्विक शक्ति आकांक्षाओं में बाधा डालने वाली प्रमुख बाधाएँ क्या हैं? 

  • महत्त्वाकांक्षा बनाम रणनीतिक क्षमता: जबकि भारत वैश्विक शक्ति बनने की आकांक्षा रखता है, आलोचकों का तर्क है कि इसमें महत्त्वाकांक्षा को प्रभाव में बदलने के लिये आवश्यक रणनीतिक स्पष्टता और संस्थागत क्षमता की कमी है। 
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2024 में भारत का सैन्य व्यय 86 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो चीन के 314 बिलियन अमेरिकी डॉलर की तुलना में काफी पीछे है, जिससे उसकी शक्ति प्रदर्शन क्षमता सीमित रहती है। 
    • भारत वैश्विक हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देशों में से एक बना हुआ है, जो वैश्विक आयात का 9.5% (2016–2020) है, जो इसकी निर्भरता और अपर्याप्त स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को दर्शाता है। 
    • इलेक्ट्रॉनिक्स और ऊर्जा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों के लिये भारत की वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भरता उसे बाह्य आघातों और भू-राजनीतिक तनावों के प्रति संवेदनशील बनाती है। 
  • वैश्विक गठबंधनों में रणनीतिक अस्पष्टता: रूस-यूक्रेन संघर्ष पर सतर्क रुख और क्वाड (QUAD) तथा शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के बीच संतुलन बनाए रखने के माध्यम से भारत द्वारा अपनाई गई रणनीतिक स्वायत्तता ने इसकी स्वतंत्रता बनाए रखने में लाभ पहुँचाया है। 
    • हालाँकि आलोचकों का तर्क है कि यह दृष्टिकोण संकट के समय भारत की विश्वसनीय साझेदार के रूप में छवि को कमज़ोर कर सकता है। 
  • मानव विकास संबंधी बाधाएँ: वर्ष 2023 में, मानव विकास सूचकांक (HDI) में भारत 193 देशों में से 130वें स्थान पर है, जो शिक्षा, स्वास्थ्य और आय वितरण में महत्त्वपूर्ण कमी को दर्शाता है। 
    • इसके असमानता-समायोजित HDI (IHDI) में और गिरावट होती है, जो 0.475 है तथा यह उच्च सामाजिक और क्षेत्रीय असमानता को दर्शाता है, जो समग्र विकास में बाधक है। 
  • आर्थिक शक्ति बनाम प्रति व्यक्ति ताकत: विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, वर्ष 2024 में भारत की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) केवल 2,711 अमेरिकी डॉलर थी, जो इसे निम्न-मध्यम आय वाले देशों में रखती है। 
    • वैश्विक स्तर पर बाज़ार विनिमय दरों पर प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद में भारत 144वें स्थान पर (196 में से) तथा क्रय शक्ति समता के संदर्भ में 127वें स्थान पर है। 
    • इससे आर्थिक कूटनीति और सॉफ्ट पावर प्रभाव में भारत की वैश्विक बढ़त सीमित हो जाती है। 
  • तकनीकी अंतर और नवाचार की चुनौतियाँ: वैश्विक नवाचार सूचकांक 2024 में भारत 39वें स्थान पर है, जबकि चीन 11वें और अमेरिका तीसरे स्थान पर हैं। 
    • हालाँकि भारत ने डिजिटल क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है (जैसे UPI, आधार), लेकिन सेमीकंडक्टर, क्वांटम कंप्यूटिंग और बायोटेक जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों में अभी भी अंतर मौजूद है। 
  • आंतरिक सामाजिक विभाजन: वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2024 में भारत की रैंक 180 देशों में से 159वीं रही, जिससे इसकी वैश्विक लोकतांत्रिक विश्वसनीयता प्रभावित होती है। 
    • भारत में गोवा (HDI ~0.75) और उत्तर प्रदेश (~0.60) जैसे राज्यों में विकास संबंधी भारी अंतर दिखाई देता है।
    • इस प्रकार की असमानताएँ राष्ट्रीय एकता को कमज़ोर करती हैं और भारत की एकीकृत वैश्विक भूमिका निभाने की क्षमता को सीमित करती हैं। 

वैश्विक शक्ति बनने की भारत की आकांक्षा को समर्थन देने वाले प्रमुख आधार क्या हैं? 

  • आर्थिक वृद्धि और जनसांख्यिकीय लाभ: आगामी वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था में प्रति वर्ष औसतन 6-7% की वृद्धि होने का अनुमान है, जिससे यह वर्ष 2030 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। 
    • 28.2 वर्ष की माध्य आयु के साथ, भारत में युवा और बढ़ता कार्यबल उपलब्ध है, जो नवाचार और औद्योगिक विकास को प्रेरित करेगा तथा इससे भारत का वैश्विक प्रभाव और बढ़ेगा। 
  • भू-राजनीतिक महत्त्व: रणनीतिक रूप से एशिया के संगम स्थल पर स्थित, भारत हिंद महासागर में प्रमुख समुद्री मार्गों पर नियंत्रण रखता है और वैश्विक व्यापार के लिये केंद्रित है। 
    • क्वाड, SCO और BRICS जैसे मंचों में भारत की सक्रिय भूमिका हिंद-प्रशांत सुरक्षा तथा वैश्विक शासन में उसकी भू-राजनीतिक स्थिति को बढ़ाती है। 
    • भारत दक्षिण एशिया का वास्तविक नेता है, जो दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) और नेबरहुड फर्स्ट नीति जैसी पहलों के माध्यम से क्षेत्रीय एकीकरण को आगे बढ़ा रहा है।  
    • आसियान में इसकी भूमिका एशिया में वैश्विक व्यापार और सुरक्षा के भविष्य को आकार देने में मदद करती है तथा बढ़ते वैश्विक प्रभाव के साथ एक क्षेत्रीय महाशक्ति के रूप में इसकी स्थिति को सुरक्षित करती है। 
  • प्रौद्योगिकी और रक्षा क्षेत्र में भारत की ताकत: भारत एक उभरती हुई डिजिटल और तकनीकी महाशक्ति बन रहा है। यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) विश्व की अग्रणी मोबाइल भुगतान प्रणाली बन चुकी है। इसके साथ ही भारत में 100 से अधिक तकनीकी स्टार्टअप यूनिकॉर्न का दर्जा प्राप्त कर चुके हैं, जो देश की नवाचार क्षमता और तकनीकी विकास को दर्शाते हैं। 
    • भारत के अंतरिक्ष मिशन (जैसे, चंद्रयान 3, मंगलयान) और बढ़ती स्वदेशी रक्षा क्षमताएँ (जैसे, तेजस, INS अरिहंत) इसकी तकनीकी तथा सैन्य क्षमता को रेखांकित करती हैं। 
    • इसके अतिरिक्त भारत के पास चीन के बाद विश्व में दूसरा सबसे बड़ा सक्रिय सैन्य कार्मिक है तथा एशिया में सबसे बड़ी स्थायी सेनाओं में से एक है। 
  • सामरिक स्वायत्तता और सॉफ्ट पावर: भारत की सामरिक स्वायत्तता उसे कई शक्तियों के साथ जुड़ने और अमेरिका, रूस और चीन के साथ संबंधों को संतुलित करने की अनुमति देती है। 
    • गुटनिरपेक्ष आंदोलन में इसका नेतृत्व और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों के लिये इसका प्रयास, बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के इसके कूटनीतिक दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करता है। 
    • भारत की वैश्विक पहचान को 3 करोड़ से अधिक प्रवासी भारतीयों, विशेषकर विकसित देशों में रहने वाले लोगों और इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से मज़बूती मिलती है। 
      • भारत अपने फिल्म उद्योग, योग और जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर सक्रिय समर्थन के माध्यम से विश्वभर में प्रभावशाली सॉफ्ट पावर (सांस्कृतिक शक्ति) का प्रदर्शन करता है। 

भारत को विकासशील वैश्विक शक्ति में कैसे आगे बढ़ना चाहिये? 

  • वैश्विक पहुँच के लिये घरेलू आधार को मज़बूत करना: जनसांख्यिकीय लाभ को आर्थिक लाभ में बदलने हेतु स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास और बुनियादी ढाँचे पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। 
    • नियम-आधारित विकास के लिये न्यायपालिका, पुलिस और शासन में संस्थागत सुधार महत्त्वपूर्ण हैं। 
    • वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत से प्रेरित होकर, हमारा लक्ष्य अमेरिका या चीन के सभी मानकों की तुरंत बराबरी करना नहीं है, बल्कि रणनीतिक स्वायत्तता का निर्माण करना, घरेलू क्षमता को बढ़ाना और सतत् विकास को सुदृढ़ करना है। 
  • भारत की दृष्टि का रणनीतिक संप्रेषण: भारत के अद्वितीय विकास मॉडल, विविधता से समृद्ध लोकतंत्र और समावेशी विकास की स्पष्ट तथा प्रभावशाली अभिव्यक्ति पश्चिमी देशों की गलत धारणाओं का प्रभावी ढंग से जवाब दे सकती है। 
    • भारत को वैश्विक मंचों पर अपनी “सभ्यतापूर्ण स्थिति”  सक्रिय रूप से प्रस्तुत करनी चाहिये। 
  • प्रतिस्पर्द्धी शक्तियों के साथ संतुलित साझेदारी: भारत अपने विदेशी संबंधों को दृढ़ता (क्षेत्रीय मुद्दों, व्यापार, संप्रभुता पर) के साथ व्यावहारिकता (एकाधिक शक्तियों के साथ काम करना, पूर्ण संरेखण से बचना) के साथ संतुलित करके माप रहा है। 
    • भारत का प्रयास है कि वह अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करना, साथ ही चीन और रूस के साथ बहुपक्षीय मंचों पर रचनात्मक संवाद बनाए रखे। इसका ध्यान गुटबंदी की राजनीति के बजाय मुद्दा-आधारित गठबंधनों पर केंद्रित है। 
    • भारत अभी तक चीन या अमेरिका का समकक्ष प्रतिस्पर्द्धी नहीं है, लेकिन यह तेज़ी से एक महत्त्वपूर्ण महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, विशेष रूप से एशिया और ग्लोबल साउथ में। 
  • सॉफ्ट पावर और तकनीकी नेतृत्व का लाभ उठाना: तकनीकी कूटनीति (जैसे डेटा गवर्नेंस, डिजिटल पब्लिक गुड्स और एआई नैतिकता) में निवेश जारी रखते हुए भारत को अपनी सॉफ्ट पावर और तकनीकी नेतृत्व को और मज़बूत करना चाहिये। 
    • तकनीक, पर्यावरण और वैश्विक स्वास्थ्य पर अंतर्राष्ट्रीय विनियामक तथा नैतिक संवाद में भारतीय विचार नेतृत्व को बढ़ावा देना। 
    • वैश्विक प्रभाव के लिये वास्तविक लड़ाई बंदूकों और टैंकों के बारे में कम, बल्कि प्रौद्योगिकी, डेटा, कूटनीति, सॉफ्ट पावर तथा उन क्षेत्रों के बारे में अधिक हो सकती है, जहाँ भारत विश्वसनीय प्रगति कर रहा है। 

निष्कर्ष 

भारत की यात्रा — अकाल से खाद्य सुरक्षा तक, गैर-संरेखण से महान शक्तियों के संतुलन तक और औद्योगिक पिछड़ेपन से डिजिटल नवाचार तक — निरंतर विकास की एक कहानी है। ऐसे विश्व में जो तकनीक, सभ्यतागत सहनशीलता तथा बहुध्रुवीय सहयोग से आकार ले रहा है, भारत खुद को केवल अनुयायी के रूप में नहीं, बल्कि उभरते बहुध्रुवीय विश्व में नए वैश्विक व्यवस्था के निर्माता के रूप में स्थापित कर रहा है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. क्या भारत की "बड़ी अर्थव्यवस्था - कम प्रति व्यक्ति" विरोधाभास उसकी वैश्विक शक्ति को सीमित कर रहा है? चर्चा कीजिये। 

प्रश्न. क्या भारत की "रणनीतिक स्वायत्तता" वैश्विक भू-राजनीति में एक परिसंपत्ति है या दायित्व? चर्चा कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs) 

मेन्स

प्रश्न. “वैश्वीकरण के क्षीण होने के साथ, शीत युद्ध के बाद की दुनिया संप्रभु राष्ट्रवाद का स्थल बनती जा रही है।” स्पष्ट कीजिये। (2025) 

प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, अधिकांश राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय संबंध, अन्य राष्ट्रों के हितों का सम्मान किये बिना स्वयं के राष्ट्रीय हित की प्रोन्नति करने की नीति के द्वारा नियंत्रित होते हैं। इससे राष्ट्रों के बीच द्वंद्व और तनाव उत्पन्न होते हैं। ऐसे तनावों के समाधान में नैतिक विचार किस प्रकार सहायक हो सकते हैं? विशिष्ट उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये।  (2015) 

प्रश्न. ‘उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में, भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण, उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घ काल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है।' विस्तार से समझाइये। (2019) 

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