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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

25वाँ शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन

  • 02 Sep 2025
  • 86 min read

प्रिलिम्स के लिये: शंघाई सहयोग संगठन, पहलगाम हमला, कैलाश मानसरोवर यात्रा, ब्रिक्स, वास्तविक नियंत्रण रेखा 

मेन्स के लिये: भारत की विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्तता, भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध और सीमा प्रबंधन

 स्रोत: पी.आई बी.

चर्चा में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री ने चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद की 25वीं बैठक में भाग लिया। 

2025 SCO शिखर सम्मेलन के प्रमुख परिणाम क्या हैं? 

  • आतंकवाद का विरोध: तियानजिन घोषणापत्र में पहलगाम हमले सहित आतंकवाद की कड़ी निंदा की गई तथा आतंकवादियों की सीमा पार आवाजाही को समाप्त करने का आह्वान किया गया और इस बात का विरोध किया गया कि उग्रवादी समूहों का उपयोग भाड़े के उद्देश्यों (Mercenary Purposes) के लिये किया जाए। 
  • सदस्यता और साझेदारियाँ: लाओस को साझेदार देश (Partner Country) के रूप में स्वीकार किया गया, जिससे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की कुल संख्या बढ़कर 27 हो गई है जिसमें 10 सदस्य देश (भारत सहित) और 17 साझेदार देश शामिल हैं। 
  • वैश्विक शासन: वैश्विक शासन पहल (Global Governance Initiative- GGI) का प्रस्ताव संप्रभु समानता, बहुपक्षवाद और एक न्यायसंगत वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये किया गया था। GGI भारत के "एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य" के दृष्टिकोण को दर्शाता है। 
  • सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों का संवर्द्धन: इसने नाजीवाद, नव-नाजीवाद, नस्लवाद और विदेशी-द्वेष के महिमामंडन के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव का स्वागत किया। 
    • सदस्य देशों के बीच लोगों के बीच संपर्क तथा आपसी सम्मान और सहयोग के महत्त्व की पुनः पुष्टि की गई। 
    • शिखर सम्मेलन में गाजा और ईरान में सैन्य कार्रवाई की निंदा की गई तथा अफगानिस्तान में स्थायी शांति के लिये समावेशी शासन पर जोर दिया गया। 
  • आर्थिक एवं विकास सहयोग: शिखर सम्मेलन में वैश्विक व्यापार को स्थिर करने, द्विपक्षीय व्यापार और निवेश का विस्तार करने तथा SCO विकास बैंक की स्थापना पर जोर दिया गया। 

 

वैश्विक बहुपक्षवाद में SCO की भूमिका क्या है? 

  • भू-राजनीतिक पहुँच का विस्तार: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) अब अपने मध्य एशियाई उद्गम से आगे बढ़ चुका है और वर्तमान में यह विश्व की लगभग 23% GDP और 42% जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है। 
    • इसकी बढ़ती सदस्यता और साझेदारियाँ (जैसे, तुर्की, जो उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का सदस्य है, SCO का वार्ता साझेदार है) पारंपरिक पश्चिमी गठबंधनों को चुनौती देने की इसकी क्षमता को प्रदर्शित करती हैं। 
    • यह वैश्विक दक्षिण (Global South) की आवाज़ों को वह मंच प्रदान करता है, जिससे वे पुराने और अप्रासंगिक वैश्विक ढाँचों तक सीमित न रहें। 
  • सुरक्षा और आतंकवाद-रोधी उपाय: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) विशेषकर अफ़ग़ानिस्तान में, नाटो द्वारा छोड़े गए सुरक्षा शून्य को भरने का प्रयास करता है। इसके लिए अफगानिस्तान संपर्क समूह (ACG) जैसी व्यवस्थाएँ बनाई गई हैं। 
    • ताशकंद (उज़्बेकिस्तान) स्थित SCO की क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (RATS), आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद के खिलाफ सहयोग को मज़बूत करती है। 
  • संपर्कता और आर्थिक एकीकरण: SCO मध्य एशिया में संपर्कता का उत्प्रेरक है। यह अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) और चाबहार बंदरगाह जैसी परियोजनाओं को बढ़ावा देता है, जो व्यापार और आपसी विश्वास को मजबूत करती हैं। 
    • SCO बिज़नेस काउंसिल और इंटरबैंक कंसोर्टियम बहुपक्षीय आर्थिक परियोजनाओं को आगे बढ़ाते हैं। 
  • सभ्यतागत और विकासात्मक सहयोग का मंच: SCO में भारत की पहलकदमियाँ, जैसे स्टार्ट-अप्स, पारंपरिक चिकित्सा, बौद्ध धरोहर और डिजिटल समावेशन इसकी क्षमता को दर्शाती हैं कि यह सरकारों से परे जाकर जनता-से-जनता के संबंधों को मज़बूत कर सकता है। 
    • SCO स्वयं को समावेशी विकास के मंच के रूप में स्थापित कर रहा है, जो वैश्विक दक्षिण (Global South) की आकांक्षाओं से मेल खाता है। 
  • वैश्विक संस्थाओं का सुधार: SCO के सदस्य संयुक्त राष्ट्र (UN) सुधार और अधिक समावेशी वैश्विक शासन की मांग करते हैं, ताकि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बने ढाँचों के प्रभुत्व को चुनौती दी जा सके। 
  • सार्वभौमिक समानता (sovereign equality) और बहुध्रुवीयता (multipolarity) का समर्थन करके SCO एक अधिक लोकतांत्रिक और न्यायपूर्ण विश्व व्यवस्था स्थापित करना चाहता है। 

SCO की प्रभावशीलता को कमज़ोर करने वाली चुनौतियाँ क्या हैं? 

  • कमज़ोर सुरक्षा तंत्र: RATS अभ्यासों का आयोजन तो करता है, लेकिन वास्तविक आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध बहुत कम कार्य करता है। पाकिस्तान, ईरान और अफगानिस्तान जैसे देशों को शामिल करना, जिनका स्वयं आतंकवाद से संबंध रहा है, इसकी विश्वसनीयता को कमज़ोर करता है। 
  • असमान शक्ति संतुलन: मध्य एशियाई देश प्रायः स्वयं को चीन और रूस के प्रभुत्व में महसूस करते हैं, न कि समान साझेदार के रूप में। 
    • समानता और पारस्परिक सम्मान की ‘शंघाई स्पिरिट (Shanghai Spirit)’ वास्तविकता से अधिक बयानबाजी बनी हुई है। 
    • समानता और आपसी सम्मान की ‘शंघाई भावना’ व्यवहार की अपेक्षा भाषणों में अधिक दिखाई देती है। 
  • अप्रभावी आर्थिक एकीकरण: SCO के समझौते (जैसे परिवहन समझौता) का क्रियान्वयन बेहद कमज़ोर रहा है। मध्य एशिया के भीतर अंतर-क्षेत्रीय व्यापार अभी भी एकल अंकों में है, जो ASEAN के 25% से काफी पीछे है।
    • मध्य एशिया में व्यापार वृद्धि स्थानीय गतिशीलताओं से प्रेरित है, न कि SCO की पहलों से। 
    • ASEAN के विपरीत, जो संस्थाओं को क्रियाशील रखते हुए विवादों का प्रबंधन करता है, SCO की तुलना SAARC से की जाती है, जो शिखर सम्मेलनों में तो सक्रिय है, लेकिन परिणाम देने में कमज़ोर है। 
  • सहयोग को संस्थागत रूप देने में विफलता: अनेक प्रयासों के बावजूद SCO विकास, ऊर्जा और मुक्त व्यापार के क्षेत्रों में मज़बूत ढाँचे स्थापित करने में असफल रहा है। 
    • औपचारिक संरचनाएँ (बैंकिंग, वित्त, व्यापार परिषदें) निर्णय लेने वाली संस्थाओं के बजाय अधिकतर नेटवर्किंग मंच के रूप में कार्य करती हैं। 

SCO के संबंध में भारत की चिंताएँ क्या हैं? 

  • चीन का प्रभुत्व: चीन SCO को एक चीन-नेतृत्व वाले मंच में बदलने का प्रयास कर रहा है, जो उसके भू-अर्थिक और सामरिक हितों की पूर्ति करे, विशेषकर BRI को बढ़ावा देने के लिये, जिसका भारत विरोध करता है। इससे समूह के भीतर भारत की भूमिका को दरकिनार करने का खतरा है। 
  • कनेक्टिविटी परियोजनाएँ: भारत BRI (विशेषकर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर जाने वाले चीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC)) का विरोध करता है, जबकि SCO के अधिकांश सदस्य इसका प्रबल समर्थन करते हैं।  
    • भारत प्रमुख संपर्क पहलों से बाहर है, जिससे उसका आर्थिक और सामरिक प्रभाव सीमित हो जाता है। 
    • चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति (मालदीव, श्रीलंका और दक्षिण चीन सागर में नौसैनिक ठिकाने) भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न करती है। भारत इसका मुकाबला अपनी ‘नेकलेस ऑफ डायमंड्स’ रणनीति से करता है, लेकिन यह प्रतिद्वंद्विता SCO के भीतर आपसी विश्वास को कमज़ोर करती है। 
  • पश्चिम-विरोधी धारणा: SCO को प्राय: एक पश्चिम-विरोधी गुट के रूप में देखा जाता है, जिस पर चीन, रूस और अब ईरान का प्रभुत्व है। यह भारत की विदेश नीति को जटिल बनाता है, क्योंकि भारत अमेरिका, यूरोपीय संघ और क्वाड साझेदारों के साथ मज़बूत संबंध बनाए हुए है। 
  • आतंकवाद और पाकिस्तान कारक: SCO के RATS तंत्र के बावजूद पाकिस्तान सीमा-पार आतंकवाद को समर्थन देता है। भारत द्वारा पाकिस्तान-स्थित आतंकी संगठनों को नामित करने का प्रयास प्रायः चीन और पाकिस्तान द्वारा अवरुद्ध कर दिया जाता है। 

भारत SCO में मतभेदों को कैसे संतुलित कर सकता है और सहयोग को कैसे बढ़ावा दे सकता है? 

  • रणनीतिक बहुसंरेखण: भारत कठोर गुट राजनीति से बचता है और पश्चिम-नेतृत्व वाले मंचों (क्वाड, G20) तथा चीन-नेतृत्व वाले मंचों (SCO, BRICS) दोनों में सक्रिय रहता है। यह भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और बहुध्रुवीयता की नीति को दर्शाता है। 
  • चयनात्मक भागीदारी: भारत SCO की पहलों में चयनात्मक रूप से जुड़ता है, जैसे RATS में, लेकिन ऐसी से प्रतिबद्धताओं से बचता है जो उसकी संप्रभुता को खतरे में डाल सकते हैं। भारत विवादास्पद क्षेत्रों (सीमा, सुरक्षा) को सहयोगी क्षेत्रों (व्यापार, प्रौद्योगिकी) से अलग रखता है तथा चीन के साथ सहयोग को गैर-संवेदनशील क्षेत्रों जैसे नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन (EV) और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) तक सीमित रखता है। 
  • रणनीतिक साझेदारियों का लाभ उठाना: रूस के साथ की साझेदारी भारत को समान प्रतिनिधित्व देती है तथा चीनी प्रभाव को नियंत्रित करती है। बहुपक्षीय मंचों पर भारत और चीन को जोड़ने में रूस सेतु की भूमिका निभाता है। 
    • रूस RIC (रूस–भारत–चीन) त्रिपक्षीय संवाद को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहा है, जिसे वर्ष 2020 की गलवान संघर्ष के बाद निलंबित कर दिया गया था; भारत के लिये यह चीन से जुड़ने का एक माध्यम है जिससे द्विपक्षीय अलगाव से बचा जा सके। 
  • संवाद के साथ सीमा प्रबंधन: भारत LAC पर सैनिक तत्परता बनाए रखता है, साथ ही तनाव कम करने के लिये विमुक्ति समझौतों (देपसांग, डेमचोक 2024) और उच्च-स्तरीय संवाद को आगे बढ़ाता है। 
  • क्षेत्रीय और वैश्विक मंच: भारत, यूरेशिया और ग्लोबल साउथ की विमर्शधारा को प्रभावित करने हेतु SCO/BRICS का उपयोग करता है, जबकि चीन की क्षेत्रीय आक्रामकता को संतुलित करने के लिये क्वाड/इंडो-पैसिफिक फ्रेमवर्क का सहारा लेता है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की प्रभावशीलता को कमज़ोर करने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव  का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2016)  

(a) अफ्रीकी संघ 
(b) ब्राज़ील 
(c) यूरोपीय संघ 
(d) चीन 

उत्तर: (d) 

व्याख्या:

  • वर्ष 2013 में प्रस्तावित 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) भूमि और समुद्री नेटवर्क के माध्यम से एशिया को अफ्रीका तथा यूरोप से जोड़ने के लिये चीन का एक महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम है। 
  • BRI को 'सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट’ और 21वीं सदी की सामुद्रिक सिल्क रोड के रूप में भी जाना जाता है। BRI एक अंतर-महाद्वीपीय मार्ग है जो चीन को दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, रूस और यूरोप से भूमि के माध्यम से जोड़ता है, यह चीन के तटीय क्षेत्रों को दक्षिण-पूर्व तथा दक्षिण एशिया, दक्षिण प्रशांत, मध्य-पूर्व और पूर्वी अफ्रीका से जोड़ने वाला एक समुद्री मार्ग है जो पूरे यूरोप तक जाता है। अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

मेन्स

प्रश्न. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) को चीन की बड़ी 'वन बेल्ट वन रोड' पहल के मुख्य उपसमुच्चय के रूप में देखा जाता है। CPEC का संक्षिप्त विवरण दीजिये और उन कारणों का उल्लेख कीजिये जिनकी वज़ह से भारत ने खुद को इससे दूर किया है। (2018) 

प्रश्न. चीन और पाकिस्तान ने आर्थिक गलियारे के विकास हेतु एक समझौता किया है। यह भारत की सुरक्षा के लिये क्या खतरा है? समालोचनात्मक चर्चा कीजिये। (2014) 

प्रश्न. "चीन एशिया में संभावित सैन्य शक्ति की स्थिति विकसित करने के लिये अपने आर्थिक संबंधों और सकारात्मक व्यापार अधिशेष का उपयोग उपकरण के रूप में कर रहा है"। इस कथन के आलोक में भारत पर पड़ोसी देश के रूप में इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (2017)

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