अंतर्राष्ट्रीय संबंध
17वाँ ब्रिक्स शिखर सम्मेलन
- 08 Jul 2025
- 16 min read
प्रिलिम्स के लिये:ब्रिक्स, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, उभरते बाज़ार और विकासशील देश (EMDC), WTO, कार्बन मार्केट, टू स्टेट सॉल्यूशन, न्यू डेवलपमेंट बैंक, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, G7, G20, NAM, G77, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी, स्विफ्ट सिस्टम, मुक्त व्यापार समझौता (FTA)। मेन्स के लिये:वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में ब्रिक्स की भूमिका एवं प्रासंगिकता, संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत के प्रधानमंत्री ने ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में आयोजित 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लिया, जिसकी थीम थी - "अधिक समावेशी और सतत् शासन के लिये वैश्विक दक्षिण सहयोग को सुदृढ़ बनाना (Strengthening Global South Cooperation for More Inclusive and Sustainable Governance)"। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर रियो डी जेनेरियो घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किये।
- इंडोनेशिया आधिकारिक रूप से ब्रिक्स में शामिल हो गया है, जबकि बेलारूस, बोलिविया, कज़ाकिस्तान, क्यूबा, नाइजीरिया, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, युगांडा और उज़्बेकिस्तान को ब्रिक्स साझेदार देशों के रूप में स्वीकार किया गया।
- भारत वर्ष 2026 में ब्रिक्स की अध्यक्षता सॅंभालेगा और 18वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करेगा।
17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के मुख्य परिणाम क्या हैं?
- वैश्विक शासन में सुधार (Global Governance Reform): ब्रिक्स ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विस्तार का समर्थन किया, ताकि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे क्षेत्रों से अधिक स्थायी सदस्य शामिल हो सकें तथा वैश्विक दक्षिण का प्रतिनिधित्व बढ़े। IMF एवं विश्व बैंक में सुधार की मांग की गई, जिससे उभरते बाज़ार और विकासशील देश (EMDC) की भूमिका को उचित स्थान मिल सके तथा नियम-आधारित WTO प्रणाली का समर्थन किया गया।
- सतत् विकास: ब्रिक्स ने विकासशील देशों के लिये संसाधन जुटाने हेतु जलवायु वित्त पर अभिकर्त्ताओं के रूपरेखा घोषणापत्र को अपनाया तथा कार्बन मूल्य निर्धारण और उत्सर्जन व्यापार में सहयोग बढ़ाने के लिये ब्रिक्स कार्बन मार्केट साझेदारी पर समझौता ज्ञापन का समर्थन किया।
- शांति और सुरक्षा: ब्रिक्स ने "अफ्रीकी समस्याओं के लिये अफ्रीकी समाधान" की पुष्टि की और गाज़ा संघर्ष में युद्धविराम तथा टू स्टेट सॉल्यूशन का आह्वान किया। ब्रिक्स अभिकर्त्ताओं ने पहलगाम हमले की निंदा की और भारत ने इस पर ज़ोर दिया कि आतंकवाद को सैद्धांतिक रूप से खारिज किया जाना चाहिये, न कि इसे सुविधा के तौर पर देखा जाना चाहिये।
- वित्तीय सहयोग: ब्रिक्स ने अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिये सीमा पार भुगतान पहल पर वार्त्ता को आगे बढ़ाया, न्यू डेवलपमेंट बैंक के विस्तार और निवेशों को जोखिम मुक्त करने के लिये ब्रिक्स बहुपक्षीय गारंटी (BMG) पायलट का समर्थन किया।
- प्रौद्योगिकी और डिजिटल अर्थव्यवस्था: ब्रिक्स ने वैश्विक AI शासन पर अभिकर्त्ताओं के बयान को अपनाया, डेटा अर्थव्यवस्था शासन समझौता को अंतिम रूप दिया और साझा अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये ब्रिक्स स्पेस काउंसिल के गठन पर सहमति व्यक्त की।
- स्वास्थ्य और सामाजिक विकास: ब्रिक्स ने सामाजिक रूप से निर्धारित रोगों (क्षयरोग) के उन्मूलन के लिये साझेदारी की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य स्वास्थ्य संबंधी असमानताओं से निपटना है।
ब्रिक्स क्या है?
- परिचय: ‘ब्रिक (BRIC)’ शब्द को वर्ष 2001 में ब्रिटिश अर्थशास्त्री जिम ओ’नील (Jim O'Neill) ने ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को दर्शाने के लिये प्रस्तावित किया था।
- ब्रिक ने वर्ष 2006 में G8 आउटरीच शिखर सम्मेलन के दौरान एक औपचारिक समूह के रूप में कार्य करना शुरू किया, वर्ष 2009 में रूस में इसका पहला शिखर सम्मेलन आयोजित किया गया तथा वर्ष 2010 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के साथ यह ब्रिक्स बन गया।
- सदस्य: प्रारंभिक पाँच ब्रिक्स सदस्य देश ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका थे। वर्ष 2024 में ईरान, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), मिस्र और इथियोपिया इस समूह में शामिल हुए, जबकि इंडोनेशिया वर्ष 2025 में ब्रिक्स में शामिल हुआ।
- सऊदी अरब ने अभी तक ब्रिक्स की अपनी सदस्यता को औपचारिक रूप नहीं दिया है, जबकि अर्जेंटीना की वर्ष 2024 में शामिल होने की उम्मीद थी, लेकिन बाद में उसने सदस्यता से पीछे हटने का निर्णय लिया।
- महत्त्व: ब्रिक्स विश्व की 45% जनसंख्या तथा वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 37.3% हिस्सा रखता है, जो यूरोपीय संघ के 14.5% और G7 के 29.3% से अधिक है।
- ब्रिक्स की प्रमुख पहलें: न्यू डेवलपमेंट बैंक (2014), कॉन्टिंजेंट रिज़र्व अरेंजमेंट (CRA), ब्रिक्स ग्रेन एक्सचेंज, ब्रिक्स त्वरित सूचना सुरक्षा चैनल, STI फ्रेमवर्क कार्यक्रम (2015) आदि।
ब्रिक्स वैश्विक शासन में शक्ति संतुलन को कैसे पुनर्परिभाषित कर रहा है?
- ऊर्जा सुरक्षा: ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के ब्रिक्स में शामिल होने के साथ ब्रिक्स अब वैश्विक कच्चे तेल उत्पादन का लगभग 44% हिस्सा रखता है। इससे यह समूह ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और तेल की कीमतों व आपूर्ति शृंखलाओं को प्रभावित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाने की स्थिति में आ गया है।
- सामरिक संवाद हेतु तटस्थ मंच: भारत-चीन डोकलाम गतिरोध जैसी द्विपक्षीय तनाव की स्थितियों में ब्रिक्स एक तटस्थ और गैर-पश्चिमी कूटनीतिक मंच प्रदान करता है, जो रचनात्मक संवाद तथा सहयोग को प्रोत्साहित करता है।
- बहुपक्षीय सुधार के लिये साधन: ब्रिक्स भारत और अन्य देशों को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व व्यापार संगठन, IMF और विश्व बैंक जैसी वैश्विक संस्थाओं में वर्तमान वैश्विक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने हेतु सुधार हेतु एक सामूहिक मंच प्रदान करता है ।
- समावेशिता और वैश्विक सहभागिता: नए देशों को शामिल करना, जिनमें से कई विश्व व्यापार संगठन के सदस्य हैं ( इथियोपिया और ईरान को छोड़कर ), समूह के अपने वैश्विक पदचिह्न का विस्तार करने और गैर-पश्चिमी देशों के व्यापक गठबंधन को शामिल करने के प्रयास को दर्शाता है।
- उभरता हुआ राजनीतिक और आर्थिक गठबंधन: ब्रिक्स को तेज़ी से G7 के प्रति संतुलन और G20 में एक उभरती हुई शक्ति के रूप में देखा जा रहा है, जो घटते पश्चिमी प्रभाव के बीच असमानता और कम प्रतिनिधित्व जैसे आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों को संबोधित कर रहा है।
वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में ब्रिक्स की कार्यप्रणाली में बाधा उत्पन्न करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- स्थायी मुख्यालय और सचिवालय का अभाव: ब्रिक्स (BRICS) के पास कोई स्थायी मुख्यालय या समर्पित सचिवालय नहीं है, जिससे इसका संस्थागत ढाँचा कमज़ोर होता है। स्थायी ढाँचे की कमी के कारण निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी और असंगठित हो जाती है।
- भूराजनीतिक विरोधाभास: ब्रिक्स में निर्णय सर्वसम्मति के आधार पर होते हैं, लेकिन इसका विस्तार इस प्रक्रिया को जटिल बनाता है। यूएई और मिस्र जैसे देशों के अमेरिका से गठबंधन तथा ईरान का टकराववादी रुख इन विरोधाभासों के कारण ब्रिक्स NAM और G77 जैसे अप्रभावी मंच बन जाने का जोखिम उठाता है।
- कमज़ोर होती ब्रिक्स अर्थव्यवस्थाएँ और अप्रयुक्त क्षमता: चीन की आर्थिक सुस्ती (वर्ष 2023 में 5.2% से घटकर वर्ष 2024 में 4.6% और 2028 तक 3.4% अनुमान) तथा रूस का युद्ध व प्रतिबंधों के कारण पतन ब्रिक्स की वैश्विक आर्थिक परिवर्तन लाने की क्षमता को कमज़ोर करते हैं।
- हालाँकि ब्रिक्स का वैश्विक व्यापार में 18% से अधिक योगदान है, लेकिन आंतरिक ब्रिक्स व्यापार (Intra-BRICS Trade) वर्ष 2022 में सिर्फ 2.2% ही रहा। प्रस्तावित BRICS क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (CrRA) भी सर्वसम्मति की कमी के कारण अस्तित्व में नहीं आ सकी, जिससे संस्थागत निष्क्रियता उजागर होती है।
- वैश्विक संस्थाओं पर सीमित प्रभाव: BRICS+ देशों के पास IBRD (विश्व बैंक) में केवल 19% मतदान शक्ति है, जबकि G7 देशों के पास 40% है। इससे BRICS+ की वैश्विक वित्तीय नीतियों पर पकड़ सीमित हो जाती है।
- न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) के पास विश्व बैंक, IMF या AIIB के मुकाबले पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं हैं।
- धीमी डॉलरीकरण की प्रक्रिया: हालाँकि ईरान, रूस और चीन आपसी व्यापार में अपनी स्थानीय मुद्राओं का प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन डॉलर के विकल्प के प्रयास अब भी असंगत हैं। हालिया विस्तार के बाद साझा BRICS+ मुद्रा की संभावना कमज़ोर हो गई है।
ब्रिक्स अपनी संस्थागत क्षमता और नेतृत्व की भूमिका कैसे बढ़ा सकता है?
- संस्थागत सुधार: एक स्थायी ब्रिक्स सचिवालय की स्थापना करना, राजनीतिक मुद्दों पर आम सहमति बनाए रखते हुए आर्थिक मामलों पर भारित मतदान के साथ निर्णय लेने का विस्तार करना तथा रणनीतिक फोकस और वैश्विक विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये GDP और आर्थिक स्थिरता जैसे स्पष्ट मानदंडों के साथ नए सदस्य एकीकरण को औपचारिक रूप देना।
- वित्तीय एकीकरण: वैकल्पिक स्विफ्ट प्रणालियों को बढ़ावा देना, NDB ऋण का विस्तार करने के लिये ब्रिक्स+ विकास बैंक 2.0 का शुभारंभ करना तथा सदस्यों के बीच व्यापार बाधाओं को कम करने के लिये ब्रिक्स+ मुक्त व्यापार समझौता (FTA) स्थापित करना।
- भू-राजनीतिक सहयोग: वैश्विक शासन पर एकीकृत रुख अपनाना जैसे, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार, विश्व व्यापार संगठन पुनर्गठन, आतंकवाद-विरोध पर ब्रिक्स+ सुरक्षा वार्ता को मज़बूत करना तथा तटस्थ मंच के माध्यम से संघर्ष समाधान को बढ़ावा देना।
- नवाचार साझेदारी: पश्चिमी निर्भरता को कम करने और संसाधनों को एकत्रित करके अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा में सहयोग बढ़ाने के लिये AI, अर्द्धचालक और हरित तकनीक में संयुक्त अनुसंधान एवं विकास हेतु ब्रिक्स+ डिजिटल गठबंधन का गठन करना।
- सॉफ्ट पावर और सांस्कृतिक आदान-प्रदान: छात्र के लिये ब्रिक्स+ विश्वविद्यालय नेटवर्क की स्थापना करना तथा लोगों के बीच संबंधों को मज़बूत करने हेतु वीजा-मुक्त ब्लॉकों के माध्यम से पर्यटन को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष:
संस्थागत सुधारों, वित्तीय एकीकरण और रणनीतिक एकता के साथ ब्रिक्स (BRICS) एक सशक्त गठबंधन बन सकता है, जो वैश्विक दक्षिण (Global South) की प्रभावशाली प्रतिनिधि शक्ति के रूप में उभरे। यदि यह संगठन भीतरी विरोधाभासों को दूर करता है और सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है तो यह पश्चिम-प्रधान वैश्विक व्यवस्था को चुनौती देते हुए समावेशी विकास को प्रोत्साहित कर सकता है। भारत की वर्ष 2026 में अध्यक्षता इस दिशा में इस दृष्टिकोण को आकार देने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: वैश्विक दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देने और वैश्विक शासन संरचनाओं में सुधार लाने में ब्रिक्स की भूमिका की आलोचनात्मक जाँच कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रारंभिक:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (B) प्रश्न. हाल ही में चर्चा में रहा 'फोर्टालेजा डिक्लेरेशन' किससे संबंधित है? (2015) (A) आसियान उत्तर: B |