शासन व्यवस्था
जनरेटिव AI और कॉपीराइट से संबंधित मुद्दे
- 17 Jul 2025
- 18 min read
प्रिलिम्स के लिये:कृत्रिम बुद्धिमत्ता, कॉपीराइट का उल्लंघन, ChatGPT, DU फोटोकॉपी केस (ऑक्सफोर्ड बनाम रामेश्वरी फोटोकॉपी सर्विसेज, 2016) मेन्स के लिये:कॉपीराइट का उल्लंघन और AI का उपयोग, AI-जनरेटिव कार्यों के संदर्भ में उचित उपयोग और परिवर्तनकारी उपयोग |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
ChatGPT और Gemini जैसे जनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की तेज़ी से बढ़ती प्रगति ने कॉपीराइटेड सामग्री के उपयोग को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं, जिससे बौद्धिक संपदा अधिकारों, लेखकीयता, डीप फेक और एथिकल AI गवर्नेंस से जुड़े महत्त्वपूर्ण विमर्श सामने आए हैं।
- ये विकास पारंपरिक कानूनी और नैतिक ढाँचों को चुनौती देते हैं तथा इनके लिये त्वरित ध्यान देने की आवश्यकता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) क्या है?
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) शब्द की परिकल्पना सबसे पहले जॉन मैकार्थी ने वर्ष 1956 में की थी। यह व्यापक रूप से उन क्षमताओं को दर्शाता है, जिनके माध्यम से मशीनें ऐसे कार्य कर सकती हैं, जो सामान्यतः मानवीय बुद्धिमत्ता की मांग करते हैं, जैसे कि सीखना, तार्किकता और समस्याओं का समाधान करना आदि।
- जनरेटिव AI कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में एक प्रमुख प्रगति है, जो मशीनों को मूल सामग्री (जैसे कि पाठ, चित्र, संगीत, कोड और वीडियो) बनाने में सक्षम बनाती है। यह बड़े डाटासेट जैसे किताबें, वेबसाइटें और डिजिटल आर्ट से सीखकर कार्य करता है।
- उदाहरण: प्राकृतिक भाषा निर्माण के लिये ChatGPT, Gemini और Claude, चित्र निर्माण के लिये DALL·E और Midjourney तथा संगीत रचना के लिये AIVA और Amper Music।
AI जनित सामग्री से संबंधित प्रमुख कॉपीराइट चुनौतियाँ क्या हैं?
- AI द्वारा कॉपीराइटेड सामग्री की नकल: AI मॉडल को प्रशिक्षित करने और उसके प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिये विशाल डाटासेट की आवश्यकता होती है, जिनमें अक्सर कॉपीराइट के अंतर्गत आने वाले पाठ, चित्र और संगीत शामिल होते हैं। इससे यह चिंता उत्पन्न होती है कि AI जब मूल कृतियों के रचनात्मक तत्त्वों की नकल या पुनरुत्पादन करता है तो वह अनधिकृत उपयोग की श्रेणी में आ सकता है।
- हालाँकि AI सीधे किसी रचना को हूबहू पुनरुत्पादित नहीं करता, फिर भी उसके आउटपुट मूल संरक्षित सामग्री से काफी हद तक मिलते-जुलते हो सकते हैं, जिससे संभावित कॉपीराइट के उल्लंघन की स्थिति उत्पन्न होती है।
- फेयर यूज़ और ट्रांसफॉर्मेटिव यूज़: फेयर यूज़ सिद्धांत कुछ सीमित स्थितियों में कॉपीराइटेड सामग्री के उपयोग की अनुमति देता है, जैसे अनुसंधान, शिक्षा या आलोचनात्मक टिप्पणियों के लिये। अमेरिका में यह चार आधारों पर निर्भर करता है:
- प्रयोजन (Purpose)
- कृति की प्रकृति (Nature)
- उपयोग की गई मात्रा (Amount Used)
- बाज़ार पर प्रभाव (Market Impact)
- टेक कंपनियाँ यह दावा करती हैं कि AI प्रशिक्षण “ट्रांसफॉर्मेटिव यूज़” की श्रेणी में आता है, क्योंकि यह नए प्रकार की अभिव्यक्ति, अर्थ या उपयोगिता जोड़ता है। इसे “नॉन-एक्सप्रेसिव यूज़” भी कहा जाता (यानी कि मूल अभिव्यक्तिपूर्ण तत्त्वों की प्रत्यक्ष नकल नहीं की जाती) है।
- बार्ट्ज बनाम एन्थ्रोपिक (Claude AI) मामले में एक अमेरिकी न्यायालय ने पायरेटेड किताबों पर AI प्रशिक्षण को 'फेयर यूज़' मानते हुए इज़ाजत दी, लेकिन डेटा संग्रहण (स्टोरेज़) के लिये दायित्व को स्वीकार किया।
- सिल्वरमैन बनाम मेटा (LLaMA AI) मामले में बाज़ार क नुकसान नहीं पाया गया, लेकिन न्यायालय ने रचनाकारों के मुआवज़े के लिये ढाँचे बनाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, जो बदलते कानूनी मानकों को रेखांकित करता है।
- AI, रचनात्मकता और कानूनी दायित्व: AI, मशीन द्वारा पूर्णतः निर्मित सामग्री (AI-generated works) और मानव-निर्मित पर AI-सहायित सामग्री (AI-assisted works) के माध्यम से कॉपीराइट मानदंडों को पुनर्परिभाषित कर रहा है।
- AI सहायता प्राप्त सामग्री का स्वामित्व मनुष्यों के पास होता है, लेकिन पूरी तरह AI द्वारा निर्मित कृतियाँ लेखन और स्वामित्व से जुड़े कई अनसुलझे प्रश्न उठाती हैं।
- कॉपीराइट उल्लंघन के मामलों में कानूनी ज़िम्मेदारी डेवलपर, उपयोगकर्त्ता या प्लेटफॉर्म में से किसकी होगी, यह अभी भी स्पष्ट नहीं है।
भारत में AI जनित सामग्री की कानूनी स्थिति क्या है?
- भारत में AI जनित सामग्री की कानूनी स्थिति:
- AI जनित सामग्री के लिये कानूनी बाधाएँ: भारतीय कानून वर्तमान में गैर-मानवीय लेखन को मान्यता नहीं देता है। भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 AI और उसके डेवलपर्स को छोड़कर, केवल प्राकृतिक व्यक्तियों को ही लेखन का अधिकार देता है। परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण मानवीय योगदान के बिना AI जनित कार्य संरक्षित नहीं हैं।
- इसके अतिरिक्त AI प्रशिक्षण हेतु कॉपीराइट सामग्री का उपयोग कानूनी रूप से अस्पष्ट क्षेत्र बना हुआ है तथा इसके लिये कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
- जबकि धारा 52 "अनुसंधान" के लिये कुछ उपयोगों की अनुमति देती है, लेकिन AI प्रशिक्षण हेतु इसकी प्रयोज्यता का परीक्षण भारतीय न्यायालयों में नहीं किया गया है।
- AI सहायता प्राप्त कार्यों के लिये संरक्षण: जब कोई मानव रचनात्मक उपकरण के रूप में AI का उपयोग करता है तो उत्पन्न सामग्री सुरक्षित हो सकती है और ऐसे मामलों में लेखकत्व मानव के पास होता है, ठीक वैसे ही जैसे पारंपरिक कार्य जो डिजिटल उपकरणों का उपयोग करके बनाए जाते हैं।
- AI जनित सामग्री के लिये कानूनी बाधाएँ: भारतीय कानून वर्तमान में गैर-मानवीय लेखन को मान्यता नहीं देता है। भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 AI और उसके डेवलपर्स को छोड़कर, केवल प्राकृतिक व्यक्तियों को ही लेखन का अधिकार देता है। परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण मानवीय योगदान के बिना AI जनित कार्य संरक्षित नहीं हैं।
- भारतीय कॉपीराइट कानून के तहत उचित उपयोग प्रावधान: कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 52 उल्लंघन के अपवादों को रेखांकित करती है, जिनमें शामिल हैं:
- निजी या व्यक्तिगत उपयोग, जिसमें अनुसंधान या शिक्षा शामिल है
- किसी भी कार्य की आलोचना या समीक्षा
- वर्तमान घटनाओं या सार्वजनिक व्याख्यानों की रिपोर्टिंग
- न्यायिक कार्यवाही के लिये पुनरुत्पादन
- डिजिटल प्रसारण या लिंकिंग के दौरान अस्थायी या आकस्मिक संग्रहण।
- ये अपवाद निष्पक्ष व्यवहार के सिद्धांत का निर्माण करते हैं, जो अमेरिका के निष्पक्ष उपयोग सिद्धांत के समान है।
- कॉपीराइट सामग्री के उपयोग के संबंध में न्यायिक व्याख्या:
- सिविक चंद्रन बनाम अम्मिनी अम्मा (1996): केरल उच्च न्यायालय ने यह माना कि पैरोडी उल्लंघन नहीं है तथा इसके लिये 3 कारक परीक्षण स्थापित किया गया, जिसमें प्रयुक्त सामग्री की मात्रा/मूल्य, उपयोग का उद्देश्य और बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा की संभावना शामिल थी।
- ईस्टर्न बुक कंपनी बनाम डी.बी. मोदक (2008): सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि असंशोधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय सार्वजनिक क्षेत्र (पब्लिक डोमेन) में आते हैं और उन पर कॉपीराइट लागू नहीं होता, लेकिन प्रकाशकों द्वारा किये गए संपादकीय संशोधन कॉपीराइट के अंतर्गत आते हैं, यदि वे कौशल और निर्णय के माध्यम से मौलिकता प्रदर्शित करते हैं।
- न्यायालय ने "स्वेट ऑफ द ब्रो" के सिद्धांत को खारिज कर दिया और "कौशल और निर्णय" परीक्षण को अपनाया, जो भारतीय कॉपीराइट कानून के तहत मौलिकता की सीमा पर एक महत्त्वपूर्ण न्यायिक व्याख्या को चिह्नित करता है।
- इंडिया टीवी बनाम यशराज फिल्म्स (2012): दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मामले में विशेष रूप से कॉपीराइट (संशोधन) अधिनियम, 2012 के बाद सिनेमाटोग्राफिक और संगीत कार्यों के लिये निष्पक्ष व्यवहार का विस्तार किया, जिसमें विकलांगों की पहुँच और गैर-वाणिज्यिक सार्वजनिक उपयोग हेतु अपवाद शामिल थे।
- DU फोटोकॉपी केस (ऑक्सफोर्ड बनाम रामेश्वरी फोटोकॉपी सर्विसेज, 2016): दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि शैक्षणिक उपयोग के लिये पुस्तक अंशों की फोटोकॉपी करना उचित व्यवहार है तथा ज्ञान तक पहुँच और सार्वजनिक हित को मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया।
- तुलनात्मक एवं विकासशील रूपरेखाएँ: भारतीय न्यायालय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की धारा 52 के अंतर्गत उचित व्यवहार की व्याख्या करने के लिये अमेरिकी उचित उपयोग कारकों पर तेज़ी से निर्भर हो रहे हैं, जिसमें उपयोग का उद्देश्य और चरित्र, कॉपीराइट किये गए कार्य की प्रकृति, मात्रा तथा सारभूतता, बाज़ार प्रभाव एवं परिवर्तनकारी स्वभाव शामिल हैं।
- हालाँकि, भारत में “महत्त्वपूर्ण अंश” की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है, जिससे न्यायिक विवेकाधिकार के आधार पर प्रत्येक मामले में निष्पक्ष उपयोग का निर्धारण किया जाता है।
- एक TRIPS-अनुपालन राष्ट्र के रूप में, भारत TRIPS समझौते के अनुच्छेद 13 के अनुरूप बनने का प्रयास करता है, जो यह अनिवार्य करता है कि कॉपीराइट से संबंधित अपवाद ऐसे न हों जो किसी कृति के सामान्य व्यावसायिक उपयोग में बाधा डालें या अधिकार धारक के हितों को अनुचित रूप से प्रभावित करें।
- नीतिगत विकास: वाणिज्य मंत्रालय की वर्ष 2025 समिति भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 की समीक्षा कर रही है, ताकि डिजिटल और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से संबंधित खामियों को दूर किया जा सके।
AI-जनित सामग्री के लिये वैश्विक तुलनात्मक दृष्टिकोण:
- संयुक्त राज्य अमेरिका (US): कॉपीराइट केवल तभी दिया जाता है, जब उसमें पर्याप्त मानवीय रचनात्मकता हो (थेलर बनाम पर्लमटर, 2023)। केवल AI द्वारा बनाई गई कृतियाँ कॉपीराइट सुरक्षा के अंतर्गत नहीं आतीं।
- यूरोपीय संघ (European Union): AI अधिनियम 2024 में प्रशिक्षण डेटा की पारदर्शिता को अनिवार्य किया गया है। AI-निर्गत कृतियों के लिये एक विशिष्ट अधिकार (Sui generis right) पर चर्चा जारी है। हालाँकि वर्ष 2019 का कॉपीराइट निदेश इस विषय पर सीधे प्रावधान नहीं करता।
- चीन: बीजिंग इंटरनेट कोर्ट ने मुख्यभूमि चीन में पहली बार ऐसा निर्णय दिया, जिसमें यह स्वीकार किया गया कि AI सॉफ्टवेयर 'स्टेबल डिफ्यूज़न' की सहायता से बनाई गई एक तस्वीर को कॉपीराइट कानून के तहत संरक्षित कलाकृति माना जा सकता है।
- कोर्ट ने इस तर्क पर ज़ोर दिया कि AI उपकरणों के उपयोग के बावजूद उस रचना में मौलिकता और मानव सर्जक का बौद्धिक योगदान मौजूद है।
- यूनाइटेड किंगडम: कॉपीराइट, डिज़ाइन और पेटेंट अधिनियम, 1988 की धारा 9(3) कंप्यूटर-जनित कृतियों (Computer-Generated Works) के लिये मानव लेखक के बिना भी कॉपीराइट की अनुमति देती है तथा ऐसे मामलों में "आवश्यक व्यवस्थाएँ करने वाले व्यक्ति" को लेखक माना जाता है। हालाँकि ऐसी कृतियों को नैतिक अधिकार प्राप्त नहीं होते और यह प्रावधान कानूनी अस्पष्टताओं तथा सीमित न्यायिक व्याख्या के कारण शायद ही कभी लागू किया जाता है।
नोट
- वर्ष 2021 में दक्षिण अफ्रीका पहला देश बना, जिसने एक मशीन-जनित कृति को पेटेंट प्रदान किया और AI प्रणाली DABUS को फ्रैक्टल ज्यामिति पर आधारित एक फूड कंटेनर डिज़ाइन के आविष्कारक के रूप में मान्यता दी।
आगे की राह
- विधिक अद्यतन और न्यायसंगत उपयोग का आकलन: AI से संबंधित चुनौतियों जैसे प्रशिक्षण डेटा के उपयोग और एल्गोरिदमिक पुनरुत्पादन से निपटने के लिये भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 को AI-विशेष प्रावधानों के साथ अपडेट किया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त न्यायालय न्यायसंगत उपयोग के मूल्यांकन के लिये एक संरचित दृष्टिकोण अपना सकते हैं, जैसे कि केरल उच्च न्यायालय द्वारा सिविक चंद्रन बनाम सी. अम्मिनी अम्मा (1996) में उल्लिखित चार-कारक परीक्षण (4-factor test) को लागू करना, जिससे भारत की रूपरेखा अमेरिका के न्यायसंगत उपयोग मानकों के और अधिक निकट आ सके।
- डेटा शासन और अनुपालन: AI प्रशिक्षण के लिये डेटा उपयोग की स्पष्ट नीतियाँ बनाना आवश्यक है, जिनमें निगरानी तंत्र, ऑडिट ट्रेल्स और AI कंपनियों में अनिवार्य अनुपालन अधिकारी शामिल हों, ताकि कॉपीराइट मानकों तथा नैतिक डेटा प्रबंधन का पालन सुनिश्चित किया जा सके।
- संतुलित नवाचार और अधिकार संरक्षण: नवाचार और कॉपीराइट सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने हेतु एक बहु-हितधारक नियामक ढाँचे का विकास किया जाना चाहिये। इसमें सामूहिक लाइसेंसिंग मॉडल को सक्षम बनाना और सामग्री निर्माताओं को उचित पारिश्रमिक सुनिश्चित करना शामिल है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और मानक निर्धारण: भारत को AI के लिये समन्वित कॉपीराइट नियमों को आकार देने और जनरेटिव तकनीकों के लिये वैश्विक नैतिक एवं कानूनी मानकों के निर्माण में योगदान देने हेतु WIPO जैसे वैश्विक मंचों पर सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. कॉपीराइट कानूनों के संबंध में जनरेटिव AI द्वारा उत्पन्न प्रमुख कानूनी और नैतिक चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। उपयुक्त नियामक उपाय सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न. वैश्वीकृत संसार में, बौद्धिक संपदा अधिकारों का महत्त्व हो जाता है और वे मुकद्दमेबाज़ी का एक स्रोत हो जाते हैं। कॉपीराइट, पेटेंट और व्यापार गुप्तियों के बीच मोटे तौर पर विभेदन कीजिये। (2014) |