प्रारंभिक परीक्षा
फुली एक्सेसिबल रूट (FAR) बॉण्ड
स्रोत: ET
फुली एक्सेसिबल रूट (FAR) के योग्य बॉण्ड के माध्यम से विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) नवंबर में ₹5,760 करोड़ रहा, जिसने भारत के ऋण बाज़ार और FPI भागीदारी को प्रभावित करने वाले कारकों की ओर ध्यान आकर्षित किया।
फुली एक्सेसिबल रूट (FAR) क्या है?
- परिचय: FAR, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा वर्ष 2020 में शुरू किया गया एक ढाँचा है, जो चुने हुए भारत सरकार के प्रतिभूतियों में अनियंत्रित विदेशी निवेश की अनुमति देता है, जिन्हें FAR बॉण्ड कहा जाता है।
- प्रमुख विशेषताऐं:
- कोई निवेश सीमा नहीं: FAR के तहत, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI), अप्रवासी भारतीय (NRI), भारतीय मूल के ओवरसीज़ नागरिक (OCI) और अन्य पात्र संस्थाएँ इन सरकारी प्रतिभूतियों में मात्रात्मक सीमाओं के बिना निवेश कर सकते हैं।
- ओपन एक्सेस: ये बॉण्ड मुफ्त खरीद–बिक्री की सुविधा प्रदान करते हैं, जिससे ये वैश्विक निवेशकों के लिये अधिक आकर्षक बन जाते हैं।”
- महत्त्व: FAR बॉण्ड भारत के ऋण बाज़ार को अधिक प्रतिस्पर्द्धी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दृष्टिगोचर बनाने में महत्त्वपूर्ण हैं।
- वर्ष 2024 में जेपी मॉर्गन ने 29 भारतीय FAR-निर्धारित सरकारी प्रतिभूतियों (G-secs) को अपने इमर्जिंग मार्केट बॉण्ड इंडेक्स (EMBI) में शामिल किया, जो किसी प्रमुख वैश्विक बॉन्ड बेंचमार्क में भारत की पहली प्रविष्टि को चिह्नित करता है।
- शामिल होने से भारतीय सरकारी बॉण्ड में महत्त्वपूर्ण विदेशी निवेश प्रवाह आने की उम्मीद है।
भारतीय ऋण में विदेशी निवेश के अन्य मार्ग
- जनरल रूट (GR): यह वह सामान्य मार्ग है जिसका उपयोग FPI कॉर्पोरेट बॉण्ड में निवेश के लिये करते हैं। FAR के विपरीत यह मात्रात्मक सीमाओं के अधीन होता है।
- वॉलंटरी रिटेंशन रूट (VRR): यह RBI का एक विशेष ढाँचा है जो FPI को कम नियामक प्रतिबंधों के साथ भारत के ऋण में निवेश करने की अनुमति देता है, यदि वे अपनी निवेश राशि का न्यूनतम हिस्सा एक निश्चित अवधि के लिये भारत में बनाए रखने हेतु स्वेच्छा से प्रतिबद्ध होते हैं।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI)
- विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI): यह किसी देश की वित्तीय परिसंपत्तियों जैसे शेयरों और बॉण्ड में किये गए विदेशी निवेश को संदर्भित करता है, जिसमें निवेशक को किसी व्यवसाय पर नियंत्रण नहीं मिलता।
- यह निष्क्रिय, अल्पकालिक प्रकृति का होता है तथा इसका उद्देश्य पूंजी लाभ और विविधीकरण होता है।
- FPI बाज़ार की तरलता (Liquidity) में सुधार करता है और निवेशकों के विश्वास को दर्शाता है।
- भारत में किसी भी कंपनी के शेयरों में 10% तक की हिस्सेदारी रखने पर भी इसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नहीं माना जाता।
- भारत में FPI भागीदारी को प्रभावित करने वाले कारक:
- ब्याज दर अंतर: अन्य उभरते बाज़ारों की तुलना में भारत में उच्च बॉण्ड प्रतिफल विदेशी निवेशकों के लिये भारतीय परिसंपत्तियों को अधिक आकर्षक बनाते हैं।
- विनिमय दर स्थिरता: रुपये की स्थिर या सराहनात्मक विनिमय दर FPI प्रवाह को बढ़ावा देती है, जबकि तीव्र अवमूल्यन से FPI का बहिर्वाह होता है।
- मौद्रिक नीति की अपेक्षाएँ: RBI द्वारा दर कटौती, खुला बाज़ार परिचालन (OMO) या तरलता समर्थन की संभावनाएँ निवेशक भावना को प्रभावित करती हैं।
- सॉवरेन रेटिंग्स और इंडेक्स में शामिल होना: भारत की प्रमुख वैश्विक बॉण्ड सूचियों (जैसे ब्लूमबर्ग ग्लोबल एग्रीगेट इंडेक्स) में संभावित समावेश प्रारंभिक, अग्रिम प्रवाह को प्रोत्साहित करता है।
- नियामक परिवेश: उदार नीतियाँ, जैसे कि FAR निवेश और पुनःप्रवर्तन की प्रक्रिया को सरल बनाती हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. FAR बॉण्ड क्या हैं?
FAR बॉण्ड भारत सरकार की वे प्रतिभूतियाँ हैं जिन्हें फुली एक्सेसिबल रूट (FAR) (RBI, 2020) के तहत अधिसूचित किया गया है। इन बॉण्ड में विदेशी निवेश पर कोई मात्रात्मक सीमा नहीं होती, जिससे निवेशकों को बेहतर बाज़ार पहुँच और पुनःप्रवर्तन की प्रक्रिया को सरल बनाती हैं।
2. FAR बॉण्ड FPI प्रवाह को कैसे प्रभावित करते हैं?
FAR भारतीय सरकारी बॉण्ड (G-secs) को वैश्विक निवेशकों और इंडेक्स फंड्स के लिये अधिक आकर्षक बनाता है, जिससे FPI प्रवाह बढ़ता है और बॉण्ड बाज़ार की तरलता में सुधार होता है।
3. वालंटियर रिटेंशन रूट (VRR) क्या है?
VRR भारतीय रिज़र्व बैंक की एक योजना है, जिसमें FPI को अपनी निवेश राशि का एक निश्चित हिस्सा तय अवधि तक बनाए रखने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। बदले में उन्हें कुछ नियामकीय मानदंडों में छूट मिलती है और इसका उद्देश्य दीर्घकालिक पूंजी प्रवाह को बढ़ाना है।
सारांश
- फुली एक्सेसिबल रूट (FAR), जिसे RBI ने वर्ष 2020 में पेश किया, चुनिंदा भारत सरकार की प्रतिभूतियों में अनियंत्रित विदेशी निवेश की अनुमति देता है।
- FAR बॉण्ड ने भारत की वैश्विक ऋण दृश्यता को बढ़ाया है और जेपी मॉर्गन ने वर्ष 2024 में अपने इमरजिंग मार्केट बॉण्ड इंडेक्स में 29 FAR-निर्धारित सरकारी बॉण्ड शामिल किये हैं।
- FPI पर ब्याज दर अंतर, रुपये की स्थिरता, मौद्रिक नीति की अपेक्षाएँ और वैश्विक इंडेक्स में शामिल होना जैसे कारक प्रभाव डालते हैं।
- FAR, GR और VRR जैसे ढाँचों के संयुक्त प्रभाव से भारत में विदेशी निवेशकों की भागीदारी बढ़ रही है तथा देश का ऋण बाज़ार अधिक सुदृढ़ एवं व्यापक बन रहा है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारत की विदेशी मुद्रा आरक्षित निधि में निम्नलिखित में से कौन-सा एक मदसमूह सम्मिलित है? (2013)
(a) विदेशी मुद्रा परिसम्पत्ति, विशेष आहरण अधिकार (एस० डी० आर०) तथा विदेशों से ऋण
(b) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण तथा विशेष आहरण अधिकार (एस० डी० आर०)
(c) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, विश्व बैंक से ऋण तथा विशेष आहरण अधिकार (एस० डी० आर०)
(d) विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा धारित स्वर्ण तथा विश्व बैंक से ऋण
उत्तर: (b)
प्रश्न. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सी उसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है ? (2020)
(a) यह मूलतः किसी सूचीबद्ध कंपनी में पूंजीगत साधनों द्वारा किया जाने वाला निवेश है।
(b) यह मुख्यतः ऋण सृजित न करने वाला पूंजी प्रवाह है।
(c) यह ऐसा निवेश है जिससे ऋण-समाशोधन अपेक्षित होता है।
(d) यह विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में किया जाने वाला निवेश है।
उत्तर: (b)
प्रारंभिक परीक्षा
थोरियम-आधारित रिएक्टरों के लिये ANEEL ईंधन
चर्चा में क्यों?
अमेरिका-स्थित क्लीन कोर थोरियम एनर्जी (CCTE) का उद्देश्य भारत के रिएक्टर्स के लिये समृद्ध जीवन के लिये उन्नत परमाणु ऊर्जा (ANEEL) नामक नए थोरियम-आधारित परमाणु ईंधन को लाना है, जिसे भारत के दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR) के लिये अगली पीढ़ी का उपयुक्त ईंधन माना गया है।
समृद्ध जीवन के लिये उन्नत परमाणु ऊर्जा (ANEEL) क्या है?
- परिचय: यह थोरियम और उच्च परख निम्न समृद्ध यूरेनियम (HALEU) का एक अनोखा मिश्रण है। इसे विशेष रूप से भारत के PHWR बेड़े (Fleet) को शक्ति प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है और वर्तमान में यह अमेरिका में उन्नत परीक्षण चरण में है।
- इस ईंधन का नाम भारत के अग्रणी परमाणु वैज्ञानिकों में से एक डॉ. अनिल काकोडकर के सम्मान में रखा गया है।
- लक्ष्य रिएक्टर: इसे PHWR (जैसे भारत के स्वदेशी रिएक्टर) के लिये ड्रोप-इन फ्यूल के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जो मौजूदा प्रणालियों में केवल न्यूनतम समायोजन के साथ संचालित हो सकता है।
- वर्तमान में भारत में 22 सक्रिय रिएक्टर हैं, जिनमें से 18 PHWR और 4 लाइट वाटर रिएक्टर (LWR) हैं। इसके अतिरिक्त भारत 10 नए PHWR का निर्माण कर रहा है, जिनमें प्रत्येक की क्षमता 700 मेगावाट है।
- ANEEL का महत्त्व: भारत के प्राकृतिक यूरेनियम रिएक्टरों से उत्पादित विद्युत की स्तरित लागत (Levelized Cost of Electricity-LCOE) लगभग ₹6 प्रति kWh है और ANEEL ईंधन इसे 20–30% तक कम कर सकता है, जिससे परमाणु ऊर्जा की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।
- यह उच्च दक्षता, बेहतर ईंधन प्रदर्शन, 85% से अधिक कम परमाणु अपशिष्ट प्रदान करता है और थोरियम का उपयोग करता है, जो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
- ANEEL के पक्ष में अनुकूल परिस्थितियाँ:
- सरकारी समर्थन: वर्ष 2024 के बजट में निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी करके भारत स्मॉल रिएक्टर्स (BSRs) और नई परमाणु तकनीकों के विकास की योजना का उल्लेख किया गया।
- बढ़ती मांग: वर्ष 2032 तक परमाणु क्षमता 8.2 GW से बढ़कर 22 GW होने का अनुमान है, जिससे ANEEL जैसे उन्नत ईंधन की विशाल मांग उत्पन्न होगी।
- औद्योगिक कार्बन न्यूनीकरण: BSR को इस तरह से विकसित किया जा रहा है कि वे स्टील, सीमेंट और उर्वरक जैसे उद्योगों को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान कर सकें।
- नए युग के इंफ्रास्ट्रक्चर को शक्ति प्रदान करना: डेटा सेंटर और AI के तेज़ी से विस्तार के कारण विशाल और भरोसेमंद स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकता है, जिसे छोटे परमाणु रिएक्टर प्रदान कर सकते हैं।
- नई पीढ़ी के बुनियादी ढाँचे को शक्ति प्रदान करना: डेटा केंद्रों और AI में वृद्धि के लिये विशाल, विश्वसनीय स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकता है, जिसे छोटे परमाणु रिएक्टर प्रदान कर सकते हैं।
- नवीनित भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग: भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग में एक प्रमुख बाधा भारत का सिविल लाइबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट (CLND), 2010 था, जो दुर्घटनाओं के लिये उपकरण आपूर्तिकर्त्ताओं को ज़िम्मेदार ठहराता था।
- CCTE का कहना है कि यह कोई समस्या नहीं है क्योंकि यह केवल ईंधन तकनीक प्रदान करता है, रिएक्टर नहीं और ईंधन का प्रबंधन भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा किया जाएगा।
थोरियम-आधारित परमाणु रिएक्टर क्या है?
- परिचय: यह एक प्रकार का परमाणु रिएक्टर है जो पारंपरिक यूरेनियम (U-235) या प्लूटोनियम (Pu-239) के बजाय थोरियम (Th-232) को अपने प्रमुख उर्वरक ईंधन के रूप में उपयोग करता है।
- थोरियम स्वयं फिसाइल (Fissile) नहीं होता है, यानी यह अपने आप परमाणु शृंखला प्रतिक्रिया को बनाए नहीं रख सकता। इसलिये इसे परमाणु प्रतिक्रिया शुरू करने और बनाए रखने के लिये किसी फिसाइल ‘ड्राइवर’ पदार्थ (जैसे U-235, U-233 या प्लूटोनियम) के साथ जोड़ा जाना आवश्यक है।
- लाभ:
- प्रचुरता: थोरियम यूरेनियम की तुलना में 3–4 गुना अधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और भारत, ऑस्ट्रेलिया तथा अमेरिका में व्यापक रूप से उपलब्ध है।
- ऊर्जा घनत्व: CERN के अनुसार, एक टन थोरियम से उतनी ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है जितनी 200 टन संवर्द्धित यूरेनियम से मिलती है और यह 100 गुना कम परमाणु अपशिष्ट उत्पन्न करता है।
- आंतरिक सुरक्षा विशेषताएँ: थोरियम डिज़ाइन जैसे कि मौल्टन साल्ट रिएक्टर्स (MSRs) वातावरणीय दबाव पर संचालित होते हैं और पैसिव सुरक्षा प्रणालियों का उपयोग करते हैं—जैसे, अत्यधिक गर्म होने पर जमी हुई लवण प्लग पिघल जाती है, ईंधन को कूलिंग टैंक में निकाल देती है और प्रतिक्रिया को रोक देती है।
- प्रसार प्रतिरोध: थोरियम चक्र कम दीर्घजीवी हथियार-ग्रेड ट्रांसयूरेनिक अपशिष्ट उत्पन्न करता है, U-233 में U-232 का संदूषण होता है, जिसकी तीव्र गामा विकिरण इसे पहचानने योग्य और सॅंभालने में कठिन बना देती है।
- भारत की विशेष रुचि: भारत के पास विश्व के थोरियम भंडार का लगभग 25% हिस्सा है और इसका एक 3-स्तरीय परमाणु कार्यक्रम है, जिसमें थोरियम एक प्रमुख घटक है, जिसका उद्देश्य दीर्घकालिक ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करना है।
भारत का 3-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम
- परिचय: यह भारत के सीमित यूरेनियम और प्रचुर थोरियम का कुशलतापूर्वक उपयोग करके परमाणु ऊर्जा विकसित करने की रणनीति है।
- इसकी रूपरेखा 1950 के दशक में डॉ. होमी भाभा द्वारा तैयार की गई थी, जिसका उद्देश्य भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना है।
- 3 -चरण: इस रणनीति में थोरियम आधारित ऊर्जा की ओर संक्रमण के लिये विभिन्न प्रकार के रिएक्टरों का उपयोग किया जाता है।
- चरण I: PHWR (प्रेशराइज़्ड हेवी वाटर रिएक्टर) प्राकृतिक यूरेनियम (U-238) और भारी पानी का उपयोग करते हैं, उपयोग किये गए ईंधन को पुनःप्रसंस्कृत करके प्लूटोनियम प्राप्त किया जाता है।
- चरण II: फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR) चरण I से प्राप्त प्लूटोनियम का उपयोग करते हैं और थोरियम से U-233 उत्पन्न करते हैं।
- चरण III: थोरियम आधारित रिएक्टर U-233 और थोरियम का उपयोग करते हैं, जिसका उद्देश्य U-233 को भारत का मुख्य परमाणु ईंधन बनाना है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. ANEEL ईंधन क्या है?
ANEEL ईंधन थोरियम-समृद्ध यूरेनियम से बना एक ईंधन है, जिसे भारत के PHWR के लिये विकसित किया गया है। यह दक्षता और सुरक्षा बढ़ाता है तथा परमाणु अपशिष्ट को 85% से अधिक कम करता है।
2. ANEEL ईंधन विद्युत की लागत कैसे कम करता है?
ईंधन दक्षता बढ़ाकर और अपशिष्ट घटाकर, ANEEL विद्युत की औसत लागत (LCOE) को ₹6 प्रति kWh से घटाकर लगभग ₹4.2-4.8 प्रति kWh तक ला सकता है।
3. भारत का 3-चरणीय परमाणु कार्यक्रम क्या है?
यह एक रणनीतिक रोडमैप है जिसमें PHWR, फास्ट ब्रीडर रिएक्टर और थोरियम-आधारित रिएक्टर शामिल हैं, जो यूरेनियम से थोरियम पर संक्रमण कर दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
सारांश
- ANEEL ईंधन, जो थोरियम और संवर्द्धित यूरेनियम का मिश्रण है, भारत के मौजूदा PHWR में विद्युत लागत को 20-30% तक कम कर सकता है और परमाणु अपशिष्ट को 85% से अधिक घटा सकता है।
- यह भारत के तीन-चरणीय परमाणु कार्यक्रम के लिये एक महत्त्वपूर्ण पुल प्रौद्योगिकी के रूप में कार्य करता है, जिससे थोरियम-आधारित स्थायी रिएक्टरों के अंतिम लक्ष्य की दिशा में शीघ्र थोरियम उपयोग संभव हो पाता है।
- यह इंडो-US सहयोग हालिया कूटनीतिक प्रयासों और भारत की उस नीतिगत पहल से भी गति प्राप्त करता है, जो औद्योगिक डिकार्बोनाइजज़ेशन के लिये भारत स्मॉल रिएक्टर्स (BSR) में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देती है।
- भारत के विशाल थोरियम भंडार का उपयोग करते हुए, ANEEL राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा रणनीति और स्वच्छ, निर्बाध (बेसलोड) ऊर्जा उपलब्ध कराने के लक्ष्य के साथ पूरी तरह मेल खाता है, जिससे उद्योगों और डेटा सेंटर जैसी नई अवसंरचना की बढ़ती मांगें पूरी की जा सकें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर ‘आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों’ के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)
(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले
उत्तर: (b)
प्रश्न. भारत के संदर्भ में 'अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आई.ए.ई.ए.)' के 'अतिरिक्त नयाचार (एडीशनल प्रोटोकॉल)' का अनुसमर्थन करने का निहितार्थ क्या है? (2018)
(a) असैनिक परमाणु रिएक्टर आई.ए.ई.ए. के रक्षोपायों के अधीन आ जाते हैं।
(b) सैनिक परमाणु अधिष्ठान आई.ए.ई.ए. के निरीक्षण के अधीन आ जाते हैं।
(c) देश के पास नाभिकीय पूर्तिकर्त्ता समूह (एन.एस.जी.) से यूरेनियम क्रय का विशेषाधिकार हो जाएगा।
(d) देश स्वतः एन.एस.जी. का सदस्य बन जाता है।
उत्तर: (a)
रैपिड फायर
वर्ष 2027 में 8वीं आर्थिक जनगणना (EC)
भारत अपनी 8वीं आर्थिक जनगणना (Economic Census- EC) वर्ष 2027 में करेगा, जो दो चरणों वाली जनसंख्या जनगणना (2026–27) के बाद आयोजित की जाएगी।
- आर्थिक जनगणना (EC): यह देश की भौगोलिक सीमाओं के भीतर स्थित सभी प्रतिष्ठानों (अर्थात वे इकाइयाँ जो केवल व्यक्तिगत उपभोग के उद्देश्य से नहीं बल्कि वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन और/या वितरण में लगी हैं) की पूरी गिनती है।
- पहली आर्थिक जनगणना वर्ष 1977 में आयोजित की गई थी। इसे पूरे देश में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI), राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के द्वारा राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के आर्थिक और सांख्यिकी निदेशालयों (DES) के सहयोग से आयोजित किया जाता है।
- 8वीं आर्थिक जनगणना (EC) का डेटा सभी राज्यों में स्थित उद्यमों का मानचित्र तैयार करने वाले सांख्यिकीय व्यवसाय रजिस्टर (SBR) बनाने में उपयोग किया जाएगा।
- SBR यह पता लगाने में मदद करेगा कि कौन से उद्यम सक्रिय हैं और कौन से बंद हो चुके हैं, जिससे राष्ट्रीय आर्थिक ऑंकड़ों की सटीकता में सुधार होगा।
- जनसंख्या जनगणना: जनगणना गाँव, नगर और वार्ड स्तर पर प्राथमिक डेटा का सबसे बड़ा स्रोत है, जो आवास, सुविधाएँ, जनसांख्यिकी, धर्म, अनुसूचित जाति/जनजाति, भाषा, साक्षरता, शिक्षा, आर्थिक गतिविधि, प्रवासन तथा जन्मदर सहित विस्तृत जानकारी प्रदान करती है।
- यह जनगणना, 1948 के जनगणना अधिनियम और 1990 के जनगणना नियमों के कानूनी ढाँचे के अंतर्गत आयोजित की जाती है।
- जनगणना संगठन का नेतृत्व भारत के रजिस्ट्रार जनरल और भारत के जनगणना आयुक्त करते हैं।
- वर्ष 2027 की जनगणना भारत की 16वीं दशकीय जनगणना होगी, जो वर्ष 1872 में पहली राष्ट्रीय जनगणना के बाद आयोजित की जा रही है।
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और पढ़ें: भारत में जनगणना |
रैपिड फायर
समग्र शिक्षा
केंद्र सरकार ने स्पष्ट किया है कि राज्य केवल तभी लंबित समग्र शिक्षा निधि प्राप्त करेंगे जब वे योजना की सभी शर्तें पूरी करेंगे, जिनमें उपयोग प्रमाण पत्र, ऑडिट रिपोर्ट, प्रगति विवरण, राज्य की हिस्सेदारी का योगदान और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 का अनुपालन शामिल है।
- समग्र शिक्षा: इसे वर्ष 2018–19 के केंद्रीय बजट में घोषित किया गया था, यह एक एकीकृत कार्यक्रम है जो प्री-स्कूल से कक्षा 12 तक को कवर करता है।
- इसका उद्देश्य स्कूल की प्रभावशीलता को बढ़ाना है, जिसमें सार्वभौमिक पहुँच, समान अवसर और बेहतर सीखने के परिणाम सुनिश्चित करना शामिल है।
- यह पूर्व की योजनाओं सर्व शिक्षा अभियान (SSA), राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) और शिक्षक शिक्षा (TE) योजना को मिलाकर समग्र स्कूल शिक्षा के लिये एक एकीकृत ढाँचा बनाता है।
- यह स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग (DoSEL) द्वारा एक केंद्रीय प्रायोजित योजना के रूप में लागू किया जाता है।
- पोषण का वितरण पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 पैटर्न, अन्य विधानसभायुक्त राज्यों हेतु 60:40 और बिना विधानसभाओं वाले केंद्रशासित प्रदेशों (UTs) के लिये 100% केंद्रीय वित्तपोषण के अनुसार होता है।
- उद्देश्य: इस योजना का लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और सीखने के परिणामों में सुधार करना, सामाजिक तथा लैंगिक अंतर को कम करना एवं सभी स्तरों पर समानता व समावेशन सुनिश्चित करना है।
- इसका उद्देश्य न्यूनतम मानकों को बनाए रखना, व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देना और राज्यों को निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE) को लागू करने में समर्थन देना है।
- दृष्टि और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के साथ संरेखण:समग्र शिक्षा स्कूल को प्री-स्कूल से लेकर उच्चतर माध्यमिक तक एक निरंतर प्रक्रिया के रूप में मानती है।
- यह सतत विकास लक्ष्य (SDG) 4.1 (निःशुल्क, समान तथा गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा) और SDG 4.5 (लैंगिक असमानताओं को दूर करना एवं कमज़ोर समूहों के लिये शिक्षा तक पहुँच सुनिश्चित करना) के अनुरूप है।
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और पढ़ें: NEP 2020 और समग्र शिक्षा अभियान |
रैपिड फायर
‘सेवा तीर्थ’
केंद्रीय गृहमंत्री ने सेंट्रल विस्टा परिसर में आने वाले नए प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को ‘सेवा तीर्थ’ के रूप में संदर्भित किया और इसे भारत के प्रशासनिक विकास में एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में माना गया।
- यह शब्द सेवा पर आधारित नागरिक-केंद्रित शासन की ओर परिवर्तन को दर्शाता है, जो भारतीय राजनीतिक दर्शन में सेवा की व्यापक भावना के अनुरूप है।
- ‘सेवा तीर्थ’ का प्रतीकात्मक अर्थ:
- आध्यात्मिक-प्रशासनिक संगम: ‘तीर्थ’ शब्द, जो पारंपरिक रूप से तीर्थस्थलों को दर्शाता है, यह गांधीवादी आदर्श को मज़बूत करता है कि सार्वजनिक कार्यालय सेवा का माध्यम होना चाहिये, विशेषाधिकार का नहीं।
- यह प्रशासनिक स्थानों को नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण से देखने की भावना को भी पुष्ट करता है, न कि अलग-थलग नौकरशाही के केंद्र के रूप में।
- प्रतीकात्मक शासन: यह ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ के सिद्धांत की प्रतिध्वनि करता है। PMO को ज़िम्मेदारी, पारदर्शिता और नागरिक-संवेदनशीलता के स्थान के रूप में प्रस्तुत करता है।
- आध्यात्मिक-प्रशासनिक संगम: ‘तीर्थ’ शब्द, जो पारंपरिक रूप से तीर्थस्थलों को दर्शाता है, यह गांधीवादी आदर्श को मज़बूत करता है कि सार्वजनिक कार्यालय सेवा का माध्यम होना चाहिये, विशेषाधिकार का नहीं।
- सेंट्रल विस्टा परियोजना: पुनर्निर्मित PMO व्यापक सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना का हिस्सा है।
- वर्ष 1931 में सेंट्रल विस्टा में राष्ट्रपति भवन, उत्तर एवं दक्षिण ब्लॉक, नया संसद भवन, राष्ट्रीय अभिलेखागार, इंडिया गेट और कर्त्तव्य पथ के साथ नागरिक उद्यान शामिल थे।
- सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास का उद्देश्य नई दिल्ली में प्रशासनिक दक्षता, स्थिरता और सार्वजनिक स्थानों को बढ़ाना है।
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और पढ़ें: कर्त्तव्य पथ |
रैपिड फायर
टैरिफ का प्रभाव आयात के पाँचवें हिस्से तक पहुँचा: WTO
विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने बताया कि मध्य-अक्तूबर 2024 से मध्य-2025 के बीच 2,640 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के आयात (जो वैश्विक आयात का 11.1% है) टैरिफ और अन्य व्यापार-प्रतिबंधात्मक उपायों से प्रभावित हुए।
टैरिफ बढ़ने के मुख्य कारण:
- बढ़ता संरक्षणवाद: बड़ी अर्थव्यवस्थाओं द्वारा संरक्षणवाद अपनाने से टैरिफ कवरेज में तीव्र विस्तार दर्ज किया गया है।
- व्यापार संघर्ष और एकतरफा प्रतिबंध: कुछ देशों ने 50% तक के टैरिफ लगा दिये, जिससे वैश्विक व्यापार प्रभावित हुआ।
- आपूर्ति-शृंखला व्यवधान: आपूर्ति-शृंखलाओं में अवरोध और सुरक्षा-संबंधी आयात प्रतिबंध (जैसे रणनीतिक सामग्रियों पर) के चलते कई देशों, विशेष रूप से बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने टैरिफ बाधाएँ बढ़ा दी हैं, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक प्रभाव पड़ा है।
भारत पर प्रभाव:
- निर्यात: उच्च टैरिफ भारतीय वस्तुओं को महॅंगा बना देते हैं, जिससे वस्त्र, इंजीनियरिंग और रसायन जैसे क्षेत्रों पर असर पड़ता है।
- व्यापार संतुलन: धीमी निर्यात वृद्धि से व्यापार घाटा बढ़ सकता है।
- आपूर्ति शृंखलाएँ: कच्चे माल और तकनीक पर टैरिफ बढ़ने से उत्पादन लागत बढ़ती है, जिसका प्रभाव इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा तथा मशीनरी जैसे क्षेत्रों पर पड़ता है।
- टैरिफ: टैरिफ वह कर है जिसे एक देश दूसरे देश से आयात की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर लगाता है, ताकि उस पर प्रभाव डाला जा सके, राजस्व बढ़ाया जा सके या प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभों की रक्षा की जा सके।
विश्व व्यापार संगठन (WTO)
- WTO एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जिसे देशों के बीच वैश्विक व्यापार के नियमों को विनियमित करने के लिये बनाया गया है।
- इसका गठन मराकेश समझौते के तहत हुआ, जिसे 15 अप्रैल, 1994 को 123 देशों ने हस्ताक्षरित किया था। यह टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते (GATT) के उरुग्वे राउंड वार्तालाप (1986-94) के बाद हुआ, जिस समझौते के तहत WTO की स्थापना की गई।
- WTO ने GATT की जगह ली, जिसने वर्ष 1948 से विश्व व्यापार को विनियमित किया था।
- मुक्त और निष्पक्ष व्यापार को बढ़ावा देता है, शुल्क और गैर-शुल्क बाधाओं को कम करता है और विवादों का समाधान करता है।
- इसके 166 सदस्य हैं, जो वैश्विक व्यापार का 98% प्रतिनिधित्व करते हैं।
- मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।
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और पढ़ें: भारतीय आयात पर अमेरिकी टैरिफ |


