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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारतीय आयात पर अमेरिकी टैरिफ

  • 07 Aug 2025
  • 72 min read

प्रिलिम्स के लिये: भारत-अमेरिका व्यापार संबंध, भारत पर टैरिफ, द्विपक्षीय व्यापार समझौता, भारत-रूस रक्षा संबंध

मेन्स के लिये: भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर अमेरिकी टैरिफ नीति के निहितार्थ।

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों?

अमेरिका ने भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाते हुए कहा है कि “नई दिल्ली के रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखने” के कारण यह कदम उठाया गया है। अब भारत और ब्राज़ील उन देशों में शामिल हो गए हैं, जिन पर अमेरिका द्वारा सबसे अधिक (50%) टैरिफ लगाया गया है।

  • भारत, द्विपक्षीय व्यापार समझौते (Bilateral Trade Agreement) के तहत वार्ता करते हुए, इस निर्णय के प्रभाव का मूल्यांकन कर राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर रहा है। भारत ने अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) की दोहरी नीति की आलोचना की है, जो स्वयं रूसी वस्तुओं का आयात करते हैं लेकिन भारत की तेल खरीद को निशाना बना रहे हैं।
  • इसके अलावा, भारत ने अपनी ऊर्जा नीति को राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय बताते हुए इसका बचाव किया है, और यह स्पष्ट किया है कि तेल आयात बाज़ार आधारित कारकों और 1.4 अरब लोगों की ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकताओं से प्रेरित हैं।

अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ लगाने के पीछे क्या कारण थे?

  • उच्च टैरिफ और अवरोध: अमेरिका ने भारत द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ (High Tariffs) और कुछ गैर-शुल्कीय अवरोधों (Non-Tariff Barriers) को लेकर चिंता व्यक्त की है, विशेष रूप से दवाइयों, इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि क्षेत्र में। अमेरिका का कहना है कि ये बाधाएँ बाज़ार पहुँच (Market Access) में असंतुलन उत्पन्न करती हैं।
  • रूसी तेल और रक्षा उपकरणों की खरीद: अमेरिका ने भारत द्वारा रूसी तेल और सैन्य उपकरणों की लगातार खरीद पर भी चिंता जताई है और संकेत दिया है कि यह प्रतिबंधों के प्रवर्तन (Sanctions Enforcement) को प्रभावित करता है, जिसके चलते संभावित कदम उठाए जा सकते हैं।
  • भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा: अमेरिका ने भारत के साथ अपने निरंतर बने हुए लगभग 45 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को रेखांकित किया है, जो व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिये टैरिफ लगाने की उसकी रणनीति को प्रभावित करता है।
  • रुकी हुई व्यापार वार्ताएँ: कई दौर की बातचीत के बावजूद, भारत और अमेरिका व्यापार समझौते तक नहीं पहुँच पाए हैं। अमेरिका ने इस बात पर चिंता जताई है कि भारत कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को उदार बनाने (Liberalization) में अत्यधिक सतर्कता बरत रहा है।

भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों की मुख्य विशेषताएँ: 

  • वर्ष 2024-25 में, अमेरिका लगातार चौथे वर्ष भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा तथा दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार $131.84 बिलियन तक पहुँच गया।
    • भारत ने वर्ष 2025 की पहली छमाही में अमेरिका से कृषि आयात में 49.1% की वृद्धि दर्ज की, जो $1,693.2 मिलियन तक पहुँच गया है, जबकि अमेरिका को भारतीय कृषि निर्यात 24.1% बढ़कर $3,472.7 मिलियन हो गया है।
  • वित्त वर्ष 2023-24 में अमेरिका से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का प्रवाह $4.99 बिलियन रहा, जिससे अमेरिका भारत का तीसरा सबसे बड़ा FDI स्रोत बन गया है।
  • वर्ष 2024 में दोनों देशों ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs) पर सहयोग बढ़ाने के लिये एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये, जो नवाचार और विकास को प्रोत्साहित करने वाले क्षेत्रों में पारस्परिक रुचि को दर्शाता है।
  • ऊर्जा और स्वच्छ वायु अनुसंधान केंद्र (Centre for Research on Energy and Clean Air) के अनुसार, दिसंबर 2022 से जून 2025 के बीच यूरोपीय संघ (EU) रूस से तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का सबसे बड़ा खरीदार रहा (51%) और पाइपलाइन गैस (37%) भी सबसे ज्यादा EU ने ही खरीदी। वहीं, चीन ने रूस के कच्चे तेल के 47% निर्यात की खरीद की, उसके बाद भारत (38%), यूरोपीय संघ (6%) और तुर्किये (6%) का स्थान रहा।

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अमेरिकी टैरिफ का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

  • तेल आयात: भारत अपने कच्चे तेल का 88% आयात करता है, जिसका एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (35% से अधिक कच्चा तेल) रूस से आता है, जो अमेरिकी टैरिफ निर्णय को प्रभावित करने वाला एक कारक है, क्योंकि भारत अपनी बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये सस्ती ऊर्जा की तलाश कर रहा है, साथ ही अपने ऊर्जा स्रोत में भू-राजनीतिक विचारों को संतुलित कर रहा है।
  • निर्यात और प्रमुख क्षेत्रों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव: अमेरिकी टैरिफ का सीधा असर भारत के अमेरिका को होने वाले कुल निर्यात के लगभग 10% पर पड़ेगा, जिससे प्रतिवर्ष लगभग 87 बिलियन डॉलर मूल्य की वस्तुओं पर असर पड़ेगा। 
    • सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक्स (विशेष रूप से स्मार्टफोन), फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा, परिधान, रत्न और आभूषण तथा ऑटोमोबाइल घटक शामिल हैं। 
    • अतिरिक्त टैरिफ से अमेरिका को भारत के 65% निर्यात पर असर पड़ सकता है, जिसमें कपड़ा, रत्न, जूते, रसायन और मशीनरी जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
  • आर्थिक विकास और नौकरियों पर दबाव: अर्थशास्त्रियों ने भारत की GDP वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव का अनुमान लगाया है, एशियाई विकास बैंक ने अपनी जुलाई 2025 की रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2025-26 के पूर्वानुमान को 6.7% से घटाकर 6.5% कर दिया है।
    • विश्लेषकों ने निर्यात से जुड़े उद्योगों, विशेषकर वस्त्र और आभूषणों में रोज़गार की कमी की चेतावनी दी है, जो श्रम-गहन और बिक्री के लिये अमेरिकी बाज़ार पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
  • लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता में कमी: भारत के उत्पाद अब वियतनाम (केवल 20% अमेरिकी टैरिफ का सामना कर रहे), इंडोनेशिया और जापान जैसे अन्य एशियाई देशों की तुलना में कम प्रतिस्पर्द्धी हैं। 
    • यह तुलनात्मक नुकसान अमेरिकी खरीदारों को भारतीय वस्तुओं के स्थान पर कम टैरिफ वाले देशों से वस्तुएँ खरीदने के लिये प्रेरित कर सकता है, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में अग्रणी "चीन प्लस वन" विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत की स्थिति को खतरा हो सकता है।
  • अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों में व्यवधान: इस कदम से राजनयिक संबंधों में तनाव उत्पन्न होगा और भारत को अमेरिका से प्राथमिक व्यापार सुविधा मिलने की उम्मीदें भी धूमिल होंगी। यह भारत को बातचीत में तेज़ी लाने या और अधिक व्यापार रियायतें देने के लिये मज़बूर कर सकता है। 
    • यह गतिरोध भारत की आर्थिक नीतियों, कृषि बाज़ार तक पहुँच और रूस के साथ संबंधों को लेकर व्यापक असहमति का भी संकेत देता है, जिससे भविष्य के सौदे और अधिक अनिश्चित हो जाते हैं।
  • वित्तीय बाज़ार और व्यवसाय प्रभाव: भारतीय शेयर बाज़ारों ने शुरुआत में इस घोषणा पर नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की तथा 40 से अधिक भारतीय सूचीबद्ध निर्यात-केंद्रित कंपनियों के शेयर मूल्यों में भारी गिरावट आई। 
    • निर्यातकों को टैरिफ का कुछ हिस्सा स्वयं वहन या लागत को आगे बढ़ाना पड़ सकता है, जिससे मांग और लाभ मार्जिन में कमी आ सकती है।

भारत पर अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते है?

  • वार्ता में तेज़ी लाना: भारत सरकार पहले से ही अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता को गहन कर रही है तथा उसने एक "निष्पक्ष, संतुलित और पारस्परिक रूप से लाभकारी" समझौता सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्धता का संकेत दिया है। 
    • दोनों सरकारों ने अगस्त में वार्ता के अतिरिक्त दौर निर्धारित किये हैं।
    • वार्ता में तेज़ी लाने और सामरिक समझौते (कृषि और एमएसएमई जैसे मूल हितों को खतरे में डाले बिना) की संभावना तलाशने से आने वाले महीनों में टैरिफ को वापस लेने या कम करने में मदद मिल सकती है।
  • निर्यात बाज़ारों में विविधता: भारतीय नीति-निर्माता और उद्योग जगत के नेता अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापार संबंधों का विस्तार करने के लिये सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं। यूरोपीय संघ, खाड़ी देशों, EFTA और पूर्वी एशियाई ब्लॉक के साथ मुक्त व्यापार समझौतों में तेज़ी लाने से भारतीय व्यवसायों को अमेरिकी खरीदारों पर अपनी निर्भरता कम करने और खोई हुई माँग की भरपाई करने में मदद मिल सकती है।
  • घरेलू प्रतिस्पर्द्धात्मकता और उत्पाद मूल्य में वृद्धि: उद्योग विशेषज्ञ संरचनात्मक सुधारों, उत्पादकता बढ़ाने और भारतीय उत्पादों को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह देते हैं।
    • इसमें वस्त्र, अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग), इलेक्ट्रॉनिक्स और औषधि (फार्मास्यूटिकल्स) क्षेत्रों में मूल्य शृंखला (वैल्यू चेन) में ऊपर की ओर बढ़ना शामिल है, ताकि शुल्क (टैरिफ) लगे होने के बावजूद भारतीय निर्यात गुणवत्ता, तकनीक या विशिष्ट लाभों के कारण आकर्षक बने रहें।
  • कमजोर क्षेत्रों का समर्थन और संरक्षण: सरकार ने वस्त्र, ऑटो पार्ट्स, रत्न एवं आभूषण और MSME जैसे प्रमुख निर्यात क्षेत्रों के संरक्षण पर ज़ोर दिया है।
    • संभावित उपायों में लक्षित सब्सिडी, निर्यात शुल्क की शीघ्र वापसी, निर्यात ऋण और विपणन सहायता शामिल हैं ताकि तत्काल प्रभाव को कम किया जा सके और व्यवसायों को मांग में आई गिरावट से उबरने में मदद मिल सके।
  • रणनीतिक विविधीकरण: भारत को रूसी कच्चे तेल पर अपनी निर्भरता को कम करते हुए मध्य पूर्व और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों से आयात में विविधता लानी चाहिये और किसी एक आपूर्तिकर्त्ता पर अत्यधिक निर्भरता से बचना चाहिये।
    • यह परिवर्तन घरेलू स्रोतों को समर्थन देगा, जिसका उद्देश्य आपूर्ति शृंखला की स्थिरता को मज़बूत करना और अधिक सतत् ऊर्जा प्रथाओं में निवेश को आकर्षित करना है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. भारत से आयात पर अमेरिका द्वारा शुल्क लगाने के निर्णय के निहितार्थों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। इन शुल्कों के नकारात्मक प्रभाव को कम करने हेतु भारत को किन उपायों को अपनाना चाहिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019)

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