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भारतीय अर्थव्यवस्था

अमेरिकी टैरिफ को व्यापार अवसर में बदलना

  • 02 Aug 2025
  • 93 min read

यह एडिटोरियल फाइनेंशियल एक्सप्रेस में 31/07/2025 को प्रकाशित "The Opportunity in Tariff War" लेख पर आधारित है। यह लेख इस बात की प्रकाश डालता है कि किस प्रकार भारतीय वस्तुओं पर 25% टैरिफ और अमेरिका द्वारा लगाया गया जुर्माना, जो रूस के साथ भारत के लेन-देन से जुड़ा है, भारत के लिये चुनौतियाँ और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (PIL), मेक इन इंडिया, आसियान, मुक्त व्यापार समझौते (FTA)    

मेन्स के लिये:

भारत पर अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव, रणनीतिक अवसर जो भारत अमेरिकी टैरिफ नीतियों से प्राप्त कर सकता है। 

संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा भारतीय आयातों पर 25% टैरिफ लगाना, साथ ही रूस के साथ भारत के रक्षा और ऊर्जा सौदों से जुड़े जुर्माने,  भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये उपाय न केवल द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को प्रभावित करते हैं, बल्कि बहुध्रुवीय विश्व में भारत की निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता, निवेश वातावरण और व्यापक भू-आर्थिक स्थिति पर भी प्रभाव डालते हैं। ये तात्कालिक चुनौतियाँ तो पेश करते ही हैं, साथ ही भारत को अपने विनिर्माण, व्यापार विविधीकरण और दीर्घकालिक आर्थिक विकास रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन और सुदृढ़ीकरण करने का एक रणनीतिक अवसर भी प्रदान करते हैं।

अमेरिकी टैरिफ भारत की अर्थव्यवस्था और व्यापार गतिशीलता को किस प्रकार प्रभावित करते हैं? 

  • कमज़ोर निर्यात बढ़त और संभावित विकास पर दबाव: अमेरिका को भारतीय निर्यात पर 25% टैरिफ भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये खतरा है, विशेष रूप से कपड़ा, समुद्री भोजन और रत्न जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में। 
    • अमेरिका लगातार चौथे वर्ष 2024-25 में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार रहा, जिसका द्विपक्षीय व्यापार 131.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
    • अनुमान बताते हैं कि यदि अमेरिका की मांग में 50 प्रतिशत की कमी आती है, तो भारत का निर्यात 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक घट सकता है, जिससे वित्त वर्ष 2026 में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 1% कम हो जाएगी।
      • टैरिफ लगाने से भारतीय रुपए का अवमूल्यन भी हो सकता है।
      • इसके अलावा, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे आसियान देशों पर अमेरिका द्वारा कम टैरिफ लगाने से निर्यात ऑर्डर भारत से दूर हो जाएंगे, जिससे उसकी बाज़ार हिस्सेदारी और कम हो जाएगी।
  • लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) के लिये जोखिम: SME, जो अक्सर वस्त्र, चमड़ा और हस्तशिल्प जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में सीमित कार्यशील पूंजी और छोटे मार्जिन के साथ कार्य करते हैं, विशेष रूप से टैरिफ वृद्धि के प्रति संवेदनशील होते हैं।
    • इन व्यवसायों को बढ़ी हुई लागतों के प्रबंधन में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसके परिणामस्वरूप संभावित रूप से नौकरियाँ जा सकती हैं, क्योंकि उनके पास लागत वृद्धि को वहन करने या वैकल्पिक बाज़ारों की शीघ्रता से तलाश करने के लिये वित्तीय और तार्किक क्षमता का अभाव है।
    • इसके साथ ही, अमेरिका में चीनी वस्तुओं पर टैरिफ-आधारित प्रतिबंधों के कारण चीन को भारत जैसे वैकल्पिक बाज़ारों में अधिशेष माल को डंप करने के लिये मज़बूर होना पड़ता है, जिससे कीमतों में कमी आती है तथा घरेलू उद्योगों पर दबाव बढ़ता है।
  • उच्च विकास वाले क्षेत्रों में संभावित भेद्यता: हालाँकि इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मा जैसे उच्च विकास वाले क्षेत्र वर्तमान में पारस्परिक टैरिफ के अधीन नहीं हैं, लेकिन बाद में दोनों क्षेत्रों को बड़े प्रभाव का सामना करना पड़ सकता है, खासकर जब अमेरिका क्षेत्रीय टैरिफ लागू करता है। 
  • मूल्य शृंखला उन्नयन के लिये समझौतापूर्ण गुंज़ाइश: भारत कम मूल्य वाले निर्यातक (जैसे, कच्चा माल, मध्यवर्ती) से उच्च मूल्य वाले विनिर्माण और डिज़ाइन-आधारित निर्यात की ओर स्थानांतरित होने का प्रयास कर रहा है। 
    • यदि अमेरिकी टैरिफ, खासकर अगर उच्च तकनीक या सटीक इंजीनियरिंग वस्तुओं पर लागू किये जाते हैं, तो भारत की मूल्य शृंखला में आगे बढ़ने की गति रुक सकती है। इससे भारत के कम मार्जिन वाले क्षेत्रों में फँसने का खतरा है, जिससे उन्नत विनिर्माण क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा करने की उसकी क्षमता सीमित हो जाएगी।

अमेरिकी टैरिफ नीतियों से भारत को क्या रणनीतिक अवसर प्राप्त हो सकते हैं?

  • वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में अपनी स्थिति मज़बूत करना: अमेरिका की "मित्रता" और "चीन+1" रणनीतियों के बीच, भारत के पास वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में एक विश्वसनीय केंद्र बनने का अवसर है। इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर और रक्षा विनिर्माण जैसे क्षेत्र एकीकरण के लिये तैयार हैं।
    • इसके अतिरिक्त, भारत सक्रिय औषधि अवयव (API) और तकनीकी वस्त्र जैसे उभरते क्षेत्रों का लाभ उठा सकता है, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में उसकी भूमिका और बढ़ेगी तथा दीर्घकालिक आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
    • टैरिफ का प्रभाव भारतीय उद्योगों को अपनी गुणवत्ता, प्रौद्योगिकी तत्परता और पैमाने को उन्नत करने के लिये प्रेरित कर सकता है, जिससे वे केवल अस्थायी संरक्षण की मांग करने के बजाय मज़बूत, दीर्घकालिक वैश्विक क्षमताओं का निर्माण करने की ओर अग्रसर होंगे।
  • सेवाओं और डेटा व्यापार कूटनीति के लिये रणनीतिक अवसर: जबकि अमेरिकी टैरिफ मुख्य रूप से वस्तुओं को लक्षित करते हैं, वे भारत को सेवाओं, डिजिटल वाणिज्य और सीमा पार डेटा प्रवाह की ओर व्यापार कूटनीति को पुनः संतुलित करने के लिये एक रणनीतिक अवसर प्रदान करते हैं, ऐसे क्षेत्र जहाँ भारत स्पष्ट प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त रखता है। 
    • भारत डेटा संप्रभुता, फिनटेक इंटरऑपरेबिलिटी और डिजिटल कराधान से जुड़े मानदंडों को आकार देने के लिये iCET (महत्त्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकी पर पहल) जैसे प्लेटफार्मों का लाभ उठा सकता है। इससे भारत को डिजिटल क्षेत्र में टैरिफ-प्रतिक्रियाशील रुख से हटकर नियम-निर्धारक भागीदार बनने का अवसर मिलेगा।
  • घरेलू विनिर्माण और निर्यात विविधीकरण को बढ़ावा: टैरिफ लगाने का अमेरिका का निर्णय भारत को अपने घरेलू विनिर्माण को मज़बूत करने का अवसर प्रदान करता है, विशेष रूप से ऑटो घटकों, इलेक्ट्रॉनिक्स और औद्योगिक मशीनरी जैसे क्षेत्रों में, जहाँ चीन के निर्यात पर टैरिफ ने नए प्रतिस्पर्द्धी अवसर उत्पन्न किये हैं। 
    • भारतीय विनिर्माताओं को चीन द्वारा अमेरिका को किये जाने वाले 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निर्यात से लाभ हो सकता है, जो टैरिफ युद्ध के कारण जोखिम में है।
    • उदाहरण के लिये, भारत का ऑटो कम्पोनेंट क्षेत्र टैरिफ-तटस्थ क्षेत्रों में परिचालन स्थापित करके या प्रत्यक्ष निर्यात बढ़ाकर विकसित हो सकता है।
  • वैकल्पिक साझेदारों के साथ आर्थिक संबंधों को मज़बूत करना: अमेरिकी टैरिफ की अनिश्चितता भारत को वैकल्पिक साझेदारों, जैसे यूरोपीय संघ (EU), आसियान देशों और लैटिन अमेरिकी और कैरिबियन (LC) देशों के साथ व्यापार में तेज़ी लाने के लिये प्रेरित करती है। 
    • इस रणनीति का उद्देश्य भारत के निर्यात बाज़ारों में विविधता लाना, अमेरिका पर निर्भरता कम करना तथा अपनी अर्थव्यवस्था को अमेरिका-केंद्रित जोखिमों से बचाना है। 
    • इन व्यापार संबंधों को मज़बूत करके, भारत अपनी आर्थिक वृद्धि को सुरक्षित रख सकता है तथा निवेश और बाज़ार पहुँच के लिये नए रास्ते खोल सकता है, जिससे वैश्विक व्यापार अनिश्चितताओं के बीच दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित हो सकेगी।

वैश्विक टैरिफ बदलावों के बीच व्यापार लाभ को अधिकतम करने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?

  • घरेलू विनिर्माण और नवाचार को मज़बूत करना: भारत को अपने उद्योगों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों और उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखना चाहिये। 
  • इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, ऑटो कंपोनेंट्स और टेक्सटाइल्स जैसे प्रमुख क्षेत्रों को वैश्विक मानकों को पूरा करने के लिये अनुसंधान एवं विकास, अनुपालन और नवाचार को बढ़ाना होगा।
    • आयात पर अत्यधिक निर्भरता को रोकने के लिये सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक्स, एपीआई और सौर मॉड्यूल में  उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं और मेक इन इंडिया को मज़बूत करना।
  • व्यापार कूटनीति और मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) को बढ़ावा देना: भारत को टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिये यूरोपीय संघ और आसियान देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) पर बातचीत में तेज़ी लानी चाहिये। ये समझौते बाज़ार पहुँच और टैरिफ में कटौती की पेशकश कर सकते हैं जिससे अमेरिकी टैरिफ के बोझ को कम किया जा सकता है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन और उच्च तकनीक विनिर्माण जैसे क्षेत्रों को मज़बूत करना प्राथमिकता होनी चाहिये, क्योंकि ये क्षेत्र वैश्विक स्थिरता प्रवृत्तियों के अनुरूप हैं और दीर्घकालिक विकास क्षमता प्रदान करते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, एक संशोधित भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, जिसका लक्ष्य व्यापक, दीर्घकालिक संरेखण हो, जो अस्थायी टैरिफ वार्ताओं से आगे बढ़कर गैर-टैरिफ बाधाओं, निवेश प्रवाह और नीतिगत लचीलेपन को संबोधित करे।
    • इसके अलावा, कुछ क्षेत्रों में विस्तार करने के बजाय, भारत को क्षैतिज विविधीकरण (नए क्षेत्र) और ऊर्ध्वाधर उन्नयन (उच्च मूल्य वाले चरण) को प्राथमिकता देनी चाहिये। 
      • उदाहरण के लिये, कच्चे वस्त्रों के निर्यात के बजाय भारत को ब्रांडेड परिधानों या स्मार्ट फैब्रिक्स पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • SME को समर्थन देना और कमज़ोर क्षेत्रों को संरक्षण देना: SME, विशेष रूप से वस्त्र और समुद्री खाद्य क्षेत्र में, ब्याज दर में छूट और निर्यात प्रोत्साहन जैसे उपायों के माध्यम से लक्षित वित्तीय सहायता प्राप्त की जानी चाहिये। 
    • क्षेत्र-विशिष्ट प्रतिक्रिया से SME के लिये बोझ कम करने में मदद मिल सकती है, जिसमें समुद्री खाद्य उत्पादों, रत्न और आभूषण जैसे उद्योगों को समर्थन शामिल है, जहाँ भारत की अमेरिका में महत्त्वपूर्ण बाज़ार हिस्सेदारी है।
    • साथ ही, निजी क्षेत्र को अनुसंधान एवं विकास में निवेश करने, गुणवत्ता मानकों को बेहतर बनाने और भविष्य के लिये तैयार कार्यबल विकसित करने के लिये एक प्रमुख भागीदार के रूप में आगे आना होगा। राज्य और उद्योग के बीच यह तालमेल उत्पादकता बढ़ाने और वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।
  • चीन की डंपिंग के विरुद्ध रणनीतिक समुत्थानशीलता: भारत को इस्पात, रसायन और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में चीन के अतिउत्पादन के जोखिम का मुकाबला करने के लिये विश्व व्यापार संगठन के एंटी-डंपिंग समझौते के अनुरूप कठोर एंटी-डंपिंग नीतियाँ लागू करने की आवश्यकता है।
    • भारत को एक वास्तविक समय टैरिफ निगरानी प्रणाली लागू करनी चाहिये, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि घरेलू उद्योगों को चीनी उत्पादकों की आक्रामक मूल्य निर्धारण रणनीतियों से बचाया जा सके।
      • भारत घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और विदेशी आयात पर निर्भरता कम करने के लिये सौर पैनलों पर आयात शुल्क लगाता है, यह एक उपयोगी मिसाल के रूप में कार्य करता है।
  • नीतिगत सुधार और संरचनात्मक परिवर्तन: भारत को अपने बुनियादी ढाँचे, रसद और ऊर्जा विश्वसनीयता में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये ताकि कारक लागत कम हो और व्यापार करने में आसानी हो। इससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है कि टैरिफ वृद्धि के बावजूद भारतीय सामान प्रतिस्पर्द्धी बने रहें।
    • भूमि अधिग्रहण आधुनिकीकरण, MSME के लिये ऋण पहुँच और विनियामक दक्षता सहित संरचनात्मक सुधार दीर्घकालिक विनिर्माण विकास के लिये अनुकूल व्यापार-अनुकूल वातावरण बनाने के लिये आवश्यक हैं।

निष्कर्ष:

बढ़ते टैरिफ़ के बीच वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच, भारत के पास व्यापार संबंधों को बेहतर बनाने और आर्थिक अनुकूलता बढ़ाने का एक अनूठा अवसर है। क्षेत्रीय विकास, तकनीकी प्रगति और क्षेत्रीय व्यापार साझेदारियों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत बदलते वैश्विक परिदृश्य का लाभ उठा सकता है। सतत् विकास, क्षमता निर्माण और नवाचार-संचालित विकास पर रणनीतिक ज़ोर देकर, भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख नेतृत्वकर्त्ता के रूप में अपनी स्थिति बना सकता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा

प्रश्न: भारत के विनिर्माण क्षेत्र पर अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव का मूल्यांकन कीजिये तथा वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में इसकी स्थिति को मज़बूत करने के उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स  

प्रश्न. 'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण  वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है,  जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019)

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