विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत के परमाणु ऊर्जा में निजी क्षेत्र की भागीदारी
- 29 Nov 2025
- 89 min read
प्रिलिम्स के लिये: परमाणु क्षेत्र, स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर, प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर, हल्के जल रिएक्टर (LWRs), प्रेशराइज्ड हेवी वाटर रिएक्टर (PHWR), परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB), न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL)
मेन्स के लिये: ऊर्जा सुरक्षा: भारत के नेट-ज़ीरो 2070 लक्ष्यों में परमाणु ऊर्जा की भूमिका, सार्वजनिक-निजी भागीदारी
चर्चा में क्यों?
भारत के प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि देश जल्द ही अपने नागरिक परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलेगा। यह कदम संसद के सर्दियों के सत्र से पहले उठाया गया है, जिसमें परमाणु ऊर्जा विधेयक, 2025 प्रस्तुत किया जाएगा, ताकि परमाणु क्षमता का विस्तार हो और निजी निवेश आकर्षित किया जा सके।
निजी क्षेत्र भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को कैसे मज़बूत कर सकता है?
- भारत की महत्त्वाकांक्षी क्षमता विस्तार योजना: भारत वर्ष 2032 तक अपनी परमाणु ऊर्जा क्षमता को 8.8 GW से बढ़ाकर 22 GW और वर्ष 2047 तक 100 GW करने की योजना बना रहा है। लेकिन यह क्षेत्र अभी भी न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) के प्रभुत्व में है, जिसके पास इन बड़े लक्ष्यों को हासिल करने के लिये आवश्यक पूंजी, मानव संसाधन तथा निर्माण क्षमता की कमी है।
- निजी कंपनियाँ पूंजी, कुशल कार्यबल और इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन (EPC) क्षमताओं को बढ़ा सकती है, जिससे बड़े पैमाने पर विस्तार संभव हो सके।
- वित्तीय अंतर को कम करना: वर्ष 2047 तक 100 GW परमाणु क्षमता हासिल करने के लिये लगभग 15 लाख करोड़ रुपये का निवेश आवश्यक है, जबकि वर्ष 2025–26 के बजट में केवल 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
- परमाणु परियोजनाओं की उच्च प्रारंभिक लागत: परमाणु परियोजनाओं के लिये अत्यधिक प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है, जिससे सीमित सार्वजनिक निधियाँ एक बड़ी चुनौती बन जाती हैं। यह दीर्घकालिक पूंजी संग्रहण, वित्तीय बोझ कम करने और निधि के स्रोतों को विविध बनाने के लिये निजी निवेश की आवश्यकता को उजागर करता है।
- परियोजना कार्यान्वयन में तेज़ी लाना: कई NPCIL परियोजनाएँ, जैसे कुडांकुलम यूनिट 3–6, खरीद प्रक्रियाओं, धीमी निर्माण गति और प्रशासनिक अड़चनों के कारण लगातार विलंब का सामना कर रही हैं।
- निजी क्षेत्र बेहतर परियोजना प्रबंधन और मज़बूत आपूर्ति-शृंखला दक्षता के माध्यम से परियोजनाओं की गति तेज़ करने में मदद कर सकता है।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार को बढ़ावा देना: निजी क्षेत्र की भागीदारी उन्नत रिएक्टर डिज़ाइनों, स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) और वैश्विक सहयोगों को अपनाने में मदद कर सकती है। ये सभी परमाणु क्षमता बढ़ाने और सुरक्षा में सुधार के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
- यूरेनियम आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करना: निजी कंपनियों को यूरेनियम के खनन, आयात और प्रसंस्करण की अनुमति देने से भारत की सीमित घरेलू क्षमता में सुधार होगा, सरकार-से-सरकार (G2G) समझौतों पर निर्भरता कम होगी तथा दीर्घकालिक परमाणु ईंधन सुरक्षा के लिये रणनीतिक भंडार तैयार किये जा सकेंगे।
- भारत की ऊर्जा सुरक्षा और नेट-ज़ीरो मार्ग को सशक्त बनाना: निजी क्षेत्र की भागीदारी कम-कार्बन क्षमता के विस्तार को तेज़ करती है, जिससे भारत के नेट-ज़ीरो 2070 लक्ष्यों को हासिल करने में सहायता मिलती है।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी से रिएक्टर घटकों का स्थानीयकरण बढ़ेगा, घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन मिलेगा और भारत वैश्विक परमाणु आपूर्ति शृंखलाओं से बेहतर तरीके से जुड़ सकेगा।
भारत का परमाणु ऊर्जा परिदृश्य
- परमाणु ऊर्जा: यह ऊर्जा का एक रूप है जो परमाणु के नाभिक (कोर) से निकलता है, जो प्रोटॉन और न्यूट्रॉन से मिलकर बना होता है।
- यह ऊर्जा दो तरीकों से उत्पन्न की जा सकती है: विखंडन (Fission) - जब किसी परमाणु का नाभिक कई भागों में विभाजित होता है और संलयन (Fusion) - जब दो नाभिक आपस में मिलकर एक हो जाते हैं।
- यह एक कम-कार्बन, उच्च-घनत्व ऊर्जा स्रोत है, जो बेस-लोड पावर प्रदान करता है और ऊर्जा सुरक्षा तथा सतत् विकास में योगदान देता है।
- भारत में स्थिति: वर्ष 2025 तक भारत की वर्तमान ऊर्जा क्षमता 8.18 GW है और वर्ष 2047 तक 100 GW का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- वर्तमान में भारत 20 से अधिक परमाणु रिएक्टरों का संचालन करता है, जिन्हें भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) द्वारा प्रबंधित किया जाता है और दर्जनों नए परियोजनाओं की योजना बनाई गई है।
- न्यूक्लियर एनर्जी मिशन को संघीय बजट 2025-26 में लॉन्च किया गया, जिसका उद्देश्य स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) के अनुसंधान और विकास (R&D) पर ध्यान केंद्रित करना है।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2033 तक कम से कम पाँच स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किये गए और संचालित SMR विकसित करना है।
- नये तकनीकी विकासों में भारत स्मॉल रिएक्टर (BSR), स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR), मोल्टन सॉल्ट रिएक्टर और उच्च तापमान गैस-कूल्ड रिएक्टर शामिल हैं।
भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी के प्रमुख अवरोध क्या हैं?
- परमाणु दायित्व संबंधी चिंताएँ: सिविल लाइबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट (CLND), 2010 की धारा 17(b) ऑपरेटर को परमाणु दुर्घटना के बाद आपूर्तिकर्त्ताओं के खिलाफ ‘राइट ऑफ रिकॉर्स’ देती है, जबकि CSC प्रणाली में दायित्व केवल ऑपरेटर पर होता है।
- यह संभावित आपूर्तिकर्त्ता दायित्व बीमा लागत बढ़ाता है और निजी क्षेत्र की भागीदारी को वित्तीय रूप से जोखिमपूर्ण बनाता है।
- वित्तपोषण और लागत संबंधी चुनौतियाँ: केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के अनुसार, भारत में प्रेशराइज़्ड हेवी वाटर (PHW) परमाणु संयंत्र की पूंजी लागत वर्ष 2026–27 तक लगभग प्रति मेगावाट (MW) ₹14 करोड़ तक बढ़ने की उम्मीद है।
- इसके कम-कार्बन प्रोफाइल के बावजूद, परमाणु ऊर्जा को ‘नवीकरणीय’ के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, जिससे यह कर प्रोत्साहन और ग्रीन फाइनेंसिंग के लिये अयोग्य है, जो इसकी वित्तीय चुनौतियों को और बढ़ा देता है।
- अस्पष्ट स्वामित्व और राजस्व मॉडल: परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 ने ऐतिहासिक रूप से निजी कंपनियों को रिएक्टर का सह-स्वामित्व या संचालन करने या परमाणु-जनित विद्युत बेचने से रोक रखा है, जिससे उनके योगदान को लेकर बड़ी अनिश्चितता उत्पन्न हुई है तथा इस क्षेत्र में निजी भागीदारी को हतोत्साहित किया गया है।
- ईंधन आपूर्ति और प्रसंस्करण प्रतिबंध: घरेलू यूरेनियम भंडार (लगभग 76,000 टन) 30 वर्षों तक लगभग 10,000 MW क्षमता का ईंधन प्रदान कर सकते हैं, लेकिन भविष्य की आवश्यकता का केवल 25% पूरा कर सकते हैं, जिससे आयात अनिवार्य हो जाता है।
- कानूनी प्रतिबंधों के कारण निजी कंपनियाँ यूरेनियम का खनन, आयात या प्रसंस्करण नहीं कर सकतीं, जिससे वे किसी मुख्य परियोजना इनपुट पर नियंत्रण नहीं रख सकतीं।
- चूँकि भारत कज़ाखस्तान, कनाडा और उज़्बेकिस्तान से दीर्घकालिक यूरेनियम अनुबंधों पर काफी निर्भर है, इसलिये यदि निजी कंपनियाँ इस क्षेत्र में प्रवेश करती हैं तो उन्हें दीर्घकालिक ईंधन सुरक्षा में अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है।
- विनियामक और सुरक्षा संबंधी प्रतिबंध: परमाणु प्रतिष्ठानों पर परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) और परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के तहत कठोर सुरक्षा तथा निरीक्षण मानक लागू होते हैं। निजी कंपनियों को विद्युत, कोयला या नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्रों की तुलना में कहीं अधिक अनुपालन बोझ का सामना करना पड़ सकता है।
भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र की क्षमता को अधिकतम करने हेतु कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं?
- विधायी सुधार: परमाणु ऊर्जा उत्पादन में निजी भागीदारी को अनुमति देने के लिये भारत को परमाणु ऊर्जा अधिनियम (1962) में संशोधन करने और स्पष्ट स्वामित्व मॉडल स्थापित करने की आवश्यकता है।
- आपूर्तिकर्त्ता की देयता को सीमित करने और निवेशक के विश्वास को बढ़ाने हेतु परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम (CLNDA), 2010 में संशोधन और इसे पूरक क्षतिपूर्ति अभिसमय (CSC, 1997) के साथ संरेखित करना चाहिये।
- सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में परमाणु ऊर्जा विधेयक, 2025 को पेश करने की तैयारी कर रही है, जो इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- स्पष्ट PPP मॉडल विकसित करना: निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये सह-स्वामित्व, टैरिफ, जोखिम-साझाकरण तथा दीर्घकालिक विद्युत खरीद समझौतों (PPA) के लिये पारदर्शी ढाँचे स्थापित करना।
- ईंधन सुरक्षा: कनाडा, कज़ाखस्तान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से दीर्घकालिक यूरेनियम आपूर्ति सुरक्षित करके ईंधन सुरक्षा को मज़बूत करना, साथ ही भाविनी (BHAVINI) के PFBR (प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर) जैसे थोरियम रिएक्टरों पर अनुसंधान एवं विकास (R&D) में तेज़ी लाना।
- इसके साथ ही महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के स्थानीयकरण के लिये स्वदेशी आपूर्ति शृंखलाएँ बनाना तथा परमाणु औद्योगिक पार्क विकसित करना।
- परियोजना निष्पादन में तेज़ी लाना: कुडनकुलम जैसी परियोजनाओं में देखी गई देरी से बचने के लिये इंजीनियरिंग, प्रोक्योरमेंट और कंस्ट्रक्शन (EPC)-आधारित अनुबंधों को अपनाना, खरीद प्रणालियों में सुधार करना तथा निजी EPC फर्मों को शामिल करना।
निष्कर्ष:
भारत के परमाणु क्षेत्र को निजी अभिकर्त्ताओं के लिये खोलना इसके स्वच्छ ऊर्जा परिदृश्य को बदल सकता है, लेकिन इसकी सफलता देयता संबंधी मुद्दों को हल करने, स्वामित्व संरचनाओं को स्पष्ट करने और नियामक ढाँचे को मज़बूत करने पर निर्भर करेगी। परमाणु ऊर्जा विधेयक, 2025 एक बड़ा कदम है, लेकिन इस क्षेत्र का भविष्य इस बात पर टिका होगा कि नीति सुरक्षा, निवेश और दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के बीच संतुलन किस प्रकार स्थापित करती है।
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दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न. भारत के परमाणु क्षेत्र में निजी भागीदारी को सक्षम करने के लिये, साथ ही सुरक्षा और दायित्व (Safety and Liability) की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, विधायी सुधारों की आवश्यकता का परीक्षण कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. परमाणु ऊर्जा क्या है?
परमाणु ऊर्जा वह ऊर्जा है जो परमाणु के नाभिकीय विखंडन (Fission) या संलयन (Fusion) के माध्यम से उत्सर्जित होती है, वर्तमान में सभी वाणिज्यिक विद्युतविखंडन के माध्यम से उत्पादित होती है।
2. परमाणु रिएक्टरों में मुख्य रूप से किस समस्थानिक (Isotope) का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता है?
अधिकांश रिएक्टर यूरेनियम-235 (Uranium-235) का उपयोग करते हैं, जो एक विखंडनीय समस्थानिक है और प्राकृतिक यूरेनियम के 1% से भी कम का निर्माण करता है।
3. एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र बिजली का उत्पादन कैसे करता है?
विखंडन से निकलने वाली गर्मी पानी को भाप में बदल देती है, जो एक जनरेटर से जुड़ी टर्बाइनों को घुमाती है, जिससे बिजली उत्पन्न होती है—यह तापीय ऊर्जा संयंत्रों के समान है लेकिन संचालन से CO₂ उत्सर्जन नहीं होता है।
4. परमाणु ईंधन चक्र (Nuclear Fuel Cycle) क्या है?
यह औद्योगिक प्रक्रियाओं का क्रम है: यूरेनियम खनन, संवर्द्धन, ईंधन निर्माण, ईंधन का रिएक्टर में उपयोग, खर्च हो चुके ईंधन का भंडारण, पुनर्संसाधन या निपटान।
5. यूरेनियम संवर्द्धन क्यों आवश्यक है?
प्राकृतिक यूरेनियम में केवल 0.7% U-235 होता है, जो निरंतर विखंडन के लिये अपर्याप्त है; संवर्द्धन U-235 की सांद्रता को 3-5% तक बढ़ाता है, जो रिएक्टर ईंधन के लिये आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर ‘आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों’ के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)
(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले
उत्तर: (b)
मेन्स:
प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों और भयों की विवेचना कीजिये। (2018)
प्रश्न. भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिये । भारत में तीव्र प्रजनक रिएक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ है? (2017)
