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ध्यान दें:

प्रिलिम्स फैक्ट्स

रैपिड फायर

विश्व मृदा दिवस

स्रोत: द हिंदू

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) द्वारा स्थापित विश्व मृदा दिवस (5 दिसंबर को ) जीवन -निर्वाह संसाधन के रूप में मृदा के महत्त्व पर प्रकाश डालता है, जिसका वर्ष 2025 का विषय है स्वस्थ मिट्टी, स्वस्थ शहर

  • स्वस्थ शहरी मृदा का महत्त्व: यह ऊष्मा द्वीपों, प्रदूषण, बाढ़ और खाद्य असुरक्षा से निपटने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये प्राकृतिक निस्यंदक, कार्बन सिंक और जल अवशोषक के रूप में कार्य करती है, जो जलवायु लचीलापन बढ़ाती है तथा जैवविविधता का समर्थन करती है।
  • क्षरण की सीमा: अपने महत्त्व के बावजूद, शहरी मृदा प्रदूषण, संघनन और कंक्रीट के जमाव के कारण अत्यधिक क्षरित हो रही है। FAO का कहना है कि विश्व की लगभग एक तिहाई मृदा क्षरित हो चुकी है ।
  • विश्व मृदा दिवस: मृदा के लिये अंतर्राष्ट्रीय दिवस का विचार पहली बार वर्ष 2002 में अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ द्वारा प्रस्तावित किया गया था। FAO ने इसकी औपचारिक मान्यता को बढ़ावा दिया, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2013 में FAO सम्मेलन ने विश्व मृदा दिवस का समर्थन किया।
    • इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने आधिकारिक तौर पर 5 दिसंबर, 2014 को प्रथम विश्व मृदा दिवस के रूप में नामित किया।
    • वर्ष 2025 के विश्व मृदा दिवस पर कंपोस्ट, हरित अवसंरचना, ज़िम्मेदार मृदा प्रबंधन के माध्यम से मृदा को पुनर्स्थापित करने तथा स्वस्थ, अधिक लचीले शहरों के निर्माण के लिये शहरी कृषि को बढ़ावा देने का आह्वान किया गया है।
  • भारत की मृदा संरक्षण पहल: पोषक तत्त्व आधारित मृदा प्रबंधन के लिये मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
    • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना तथा वाटरशेड कार्यक्रम अपरदन को कम करने और मृदा में नमी-संरक्षण को बढ़ाने में सहायक हैं।
    • मनरेगा के अंतर्गत भूमि संबंधी कार्य मृदा पुनर्स्थापन और जल संरक्षण में सहायक है।
    • स्मार्ट सिटी मिशन हरित अवसंरचना, मुक्त स्थान, सतत भूदृश्य और मृदा-अनुकूल शहरी डिज़ाइन को बढ़ावा देता है।

और पढ़ें: वैश्विक मृदा सम्मेलन 2024 और भारत में मृदा


प्रारंभिक परीक्षा

भारत में थैलेसीमिया

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

झारखंड में थैलेसीमिया से पीड़ित पाँच बच्चों की HIV (ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस) जाँच पॉज़िटिव पाई गई है, क्योंकि उन्हें HIV-संक्रमित रक्त का ट्रांसफ्यूज़न किया गया था।

थैलेसीमिया क्या है?

  • परिभाषा और कारण: थैलेसीमिया एक विरासत में मिला आनुवंशिक विकार है, जिसमें शरीर पर्याप्त हीमोग्लोबिन (लाल रक्त कोशिकाओं में ऑक्सीजन ले जाने वाला प्रोटीन) का उत्पादन नहीं करता। इसके परिणामस्वरूप एनीमिया और कमज़ोर कार्य करने वाली लाल रक्त कोशिकाएँ बनती हैं।
  • थैलेसीमिया के प्रकार:
    • हीमोग्लोबिन के प्रभावित हिस्से के आधार पर:
      • अल्फा थैलेसीमिया: यह हीमोग्लोबिन की अल्फा चेन के कम या अनुपस्थित उत्पादन के कारण होता है।
      • बीटा थैलेसीमिया: यह हीमोग्लोबिन की बीटा चेन के कम या अनुपस्थित उत्पादन के कारण होता है।
    • गंभीरता के आधार पर: लक्षण/मामूली (हल्के या कोई लक्षण नही, व्यक्ति वाहक है), मध्यवर्ती (कभी-कभी ट्रांसफ्यूज़न की आवश्यकता हो सकती है), प्रमुख (नियमित रूप से रक्त ट्रांसफ्यूज़न की आवश्यकता होती है, जैसे, कूली एनीमिया)।
    • विशेष नामांकित प्रकार: कॉन्स्टेंट स्प्रिंग (अल्फा थैलेसीमिया का प्रकार), कूली एनीमिया (बीटा थैलेसीमिया मेजर) और हीमोग्लोबिन बार्ट हाइड्रोप्स फेटालिस (सबसे गंभीर अल्फा थैलेसीमिया)।
  • लक्षण और प्रभाव: लक्षण एनीमिया से उत्पन्न होते हैं और इनमें थकान, कमज़ोरी, साॅंस की कमी और  त्वचा का फीका रंग शामिल है।
    • गंभीर मामलों में जटिलताएँ: गंभीर मामलों में हड्डी का बढ़ना, कंकाल में असामान्यताएँ, तिल्ली का बढ़ना और प्रतिरक्षा प्रणाली की कमज़ोरी जैसी जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
  • जोखिम कारक: इसका मुख्य कारक पारिवारिक इतिहास है, क्योंकि यह आनुवंशिक रूप से संचारित होता है। यह मेडिटेरेनियन, एशियाई, अफ्रीकी और मध्य पूर्वी समूहों में अधिक पाया जाता है।
  • भारत में थैलेसीमिया: भारत को अक्सर विश्व की थैलेसीमिया की राजधानी कहा जाता है, जहाँ लगभग 1,50,000 मरीज हैं और प्रतिवर्ष करीब 12,000 नए मामले दर्ज होते हैं। थैलेसीमिया को दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत अक्षम्यता (डिसएबिलिटी) के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो इसके गंभीर और दीर्घकालिक प्रभाव को दर्शाता है।
    • बीटा थैलेसीमिया की वाहक दर 3–4% है, जिसका अर्थ है कि लगभग 35–45 मिलियन लोग इस जीन से ग्रसित हैं, जिनमें 8% आदिवासी समुदाय शामिल हैं।
  • थैलेसीमिया नियंत्रण पहल:
    • हीमोग्लोबिनोपैथीज़ की रोकथाम और नियंत्रण पर व्यापक दिशानिर्देश (2016): थैलेसीमिया प्रमुख/प्रमुख और नॉन-ट्रांसफ्यूज़न डिपेंडेंट थैलेसीमिया (NTDT) के प्रबंधन के लिये विस्तृत नीति ढाँचा प्रदान करता है, जिसमें उपचार प्रोटोकॉल, निगरानी और मानसिक स्वास्थ्य समर्थन शामिल हैं।
    • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): राज्यों को स्वास्थ्य सुविधाओं को मज़बूत करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिसमें ब्लड बैंक, डे केयर सेंटर, दवाएँ, लैब सेवाएँ और स्टाफ प्रशिक्षण शामिल हैं।
    • थैलेसीमिया बाल सेवा योजना (TBSY): यह कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) की कॉर्पोरेट सोशल रिस्पाॅन्सबिलिटी (CSR) पहल है, जो मरीजों को 17 नामांकित अस्पतालों में बोन मैरो ट्रांसप्लांट (BMT) के लिये 10 लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता प्रदान करती है।
      • इस योजना का दूसरा चरण (2021 से) अब एप्लास्टिक एनीमिया (Aplastic Anemia) को भी कवर करता है।
    • ई-रक्तकोष: यह रक्त की उपलब्धता और ब्लड बैंकों के बारे में जानकारी प्रदान करता है, जिससे थैलेसीमिया से पीड़ित रोगियों को नियमित ट्रांसफ्यूज़न की आवश्यकता होती है।

पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. थैलेसीमिया क्या है?
थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है, जिसमें हीमोग्लोबिन की कमी होती है, जिससे एनीमिया और लाल रक्त कोशिकाओं का सही ढंग से कार्य न करना होता है।

2. थैलेसीमिया के मुख्य प्रकार कौन से हैं?
अल्फा थैलेसीमिया (अल्फा चेन कम होना) और बीटा थैलेसीमिया (बीटा चेन कम होना), जिनकी गंभीरता को ट्रेट, इंटरमीडिया या मेजर के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

3. भारत को थैलेसीमिया के उच्च बोझ वाला देश क्यों माना जाता है?
भारत में लगभग 1,50,000 मरीज हैं, प्रतिवर्ष 12,000 नए मामले सामने आते हैं और 3–4% लोग बीटा थैलेसीमिया के वाहक हैं। यह अधिकतर जनजातीय और कुछ क्षेत्रीय आबादी में पाया जाता है।

सारांश

  • झारखंड में पाँच थैलेसीमिया मरीजों में रक्त संक्रमण के माध्यम से हाल ही में HIV का पता चलना भारत में रक्त सुरक्षा प्रोटोकॉल की गंभीर असफलता को उजागर करता है।
  • भारत थैलेसीमिया के मामले में ‘विश्व की राजधानी’ के रूप में भारी बोझ सहन करता है, जिसमें 1,50,000 से अधिक मरीज हैं, प्रतिवर्ष 12,000 नए मामले सामने आते हैं और 3–4% लोग वाहक हैं।
  • सरकारी पहल में 2016 के हेमोग्लोबिनोपैथीज़ गाइडलाइन, NHM द्वारा अवसंरचना के लिये वित्त पोषण और ट्रांसप्लांट के लिये ₹10 लाख की TBSY योजना शामिल है।
  • यह घटना नीति और क्रियान्वयन के बीच गंभीर अंतर को उजागर करती है, जिससे निगरानी तथा  सुरक्षित रक्त हस्तांतरण प्रथाओं पर तात्कालिक कार्रवाई की आवश्यकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा रोग टैटू गुदवाने से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है? (2013) 

  1. चिकनगुनिया    
  2.  हेपेटाइटिस बी   
  3.  HIV-एड्स 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही नहीं है? (2019)

(a) यकृतशोध B विषाणु HIV की तरह ही संचरित होता है।
(b) यकृतशोध C का टीका होता है, जबकि यकृतशोध B का कोई टीका नहीं होता।
(c) सार्वभौम रूप से यकृतशोध B और C विषाणुओं से संक्रमित व्यक्तियों की संख्या HIV से संक्रमित लोगों की संख्या से कई गुना अधिक है।
(d) यकृतशोध B और C विषाणुओं से संक्रमित कुछ व्यक्तियों में अनेक वर्षों तक इसके लक्षण दिखाई नहीं देते।

उत्तर: (b)


प्रश्न. मानव प्रतिरक्षा-हीनता विषाणु (ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस) के संचरण के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा एक कथन सही नहीं है? (2010)

(a) स्त्री से पुरुष में संचरण की संभावना पुरुष से स्त्री में संचरण की तुलना में दुगुनी होती है।
(b) यदि व्यक्ति किसी अन्य यौन-संचारित रोग से भी पीड़ित है तो संचरण की संभावना बढ़ जाती है।
(c) संक्रमण-पीड़ित माँ अपने शिशु को गर्भावस्था के दौरान, प्रसूति के समय तथा स्तनपान से संक्रमण संचारित कर सकती है।
(d) दूषित सुई लगने की तुलना में संक्रमित रक्त चढ़ाए जाने पर संक्रमण का जोखिम कहीं अधिक होता है।

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)

  1. हैपेटाइटिस B, एचआईवी/एड्स की तुलना में कई गुना अधिक संक्रामक है।
  2. हैपेटाइटिस B यकृत कैंसर उत्पन्न कर सकता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन सा/से कथन सही है/हैं ?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2   

उत्तर: (c)


प्रारंभिक परीक्षा

अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र का त्वरित संकुचन

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र का वर्ष 2025 में असाधारण रूप से शीघ्र बंद होना इस बात का प्रमाण है कि ओज़ोन परत स्थायी सुधार की दिशा में अग्रसर है।

अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र क्या है?

  • अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र से तात्पर्य ऑस्ट्रेलियाई वसंत (सितंबर–नवंबर) के दौरान अंटार्कटिका के ऊपर समताप मंडलीय ओज़ोन परत के ऋतुजन्य क्षीणन (seasonal thinning) से है।
    • वैज्ञानिक ‘ओज़ोन छिद्र’ शब्द का प्रयोग उन क्षेत्रों के लिये करते हैं, जहाँ ओज़ोन का स्तर 220 डॉबसन यूनिट्स (DU) से कम हो जाता है। इसका अर्थ यह नहीं कि ओज़ोन पूरी तरह अनुपस्थित है, बल्कि यह है कि उसकी सांद्रता सामान्य स्तर की तुलना में अत्यधिक घट जाती है।
    • इस घटना का पहली बार पता 1980 के दशक की शुरुआत में चला, जब भू-आधारित और उपग्रह मापों में दक्षिणी ध्रुव के ऊपर ओज़ोन स्तर में असाधारण गिरावट दर्ज की गई थी।
  • अंटार्कटिक पर ओज़ोन छिद्र के कारण: 
    • ध्रुवीय भंवर (Polar Vortex): अंटार्कटिका में शीत ऋतु के दौरान एक मज़बूत और स्थिर ध्रुवीय भंवर बनता है, जो वायु का आवागमन रोककर समताप मंडल में अत्यंत निम्न तापमान उत्पन्न करता है।
      • यह पृथक वायुराशि गर्म वायु के साथ मिश्रण को रोक देती है, जिसके परिणामस्वरूप ओज़ोन-क्षयकारी रासायनिक अभिक्रियाओं हेतु अनुकूल परिस्थितियाँ निर्मित होती हैं।
    • ध्रुवीय समतापमंडलीय बादल (Polar Stratospheric Clouds- PSCs): अत्यधिक ठंड के कारण PSCs का निर्माण संभव होता है। 
      • ये बादल ऐसी रासायनिक अभिक्रियाएँ उत्पन्न करते हैं जो क्लोरीन व ब्रोमीन को सक्रिय करते हैं, जो मुख्य रूप से CFCs (क्लोरोफ्लोरोकार्बन) से निर्मुक्त होते हैं।
      • अंटार्कटिका के ऊपर समताप मंडलीय क्लोरीन और ब्रोमीन का लगभग 80% हिस्सा मानवजनित स्रोतों से आता है।
    • वसंत ऋतु में सूर्य का प्रकाश: जब वसंत ऋतु में सूर्य का प्रकाश वापस आता है, तो ये प्रतिक्रियाशील रसायन तेज़ी से ओज़ोन अणुओं को नष्ट कर देते हैं, जिसके कारण एक व्यापक क्षेत्र में ओज़ोन की मात्रा में भारी कमी आती है, जिसे ‘ओज़ोन छिद्र’ के रूप में जाना जाता है।
  • ओज़ोन छिद्र का बंद होना: ओज़ोन छिद्र का बंद होना प्रत्येक वर्ष उस बिंदु को संदर्भित करता है जब अंटार्कटिका पर ओज़ोन का स्तर पुनः 220 DU से ऊपर बढ़ जाता है, जो ऋतुजन्य क्षीणन (seasonal thinning) के अंत का संकेत देता है।
    • वसंत के बाद जैसे ही अंटार्कटिक समताप मंडल का तापमान बढ़ता है, ध्रुवीय समताप मंडलीय बादल समाप्त होने लगते हैं। इसके साथ ही ओज़ोन का पुनः निर्माण शुरू हो जाता है और पवनें ओज़ोन-समृद्ध वायु को इस क्षेत्र में ले आती हैं, जिससे ओज़ोन परत पुनः बहाल होती है तथा छिद्र धीरे-धीरे बंद हो जाता है।
    • वर्ष 2025 की शुरुआत में ओज़ोन छिद्र के बंद होने से यह संकेत मिलता है कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (जिसने CFCs तथा अन्य ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों को चरणबद्ध रूप से समाप्त किया), क्लोरीन और ब्रोमीन का निम्न स्तर तथा अनुकूल समताप मंडलीय स्थितियाँ संयुक्त रूप ओज़ोन परत के सुधार में सहायक हैं।
  • वर्ष 2025 में ओज़ोन के शीघ्र संकुचन का महत्त्व: यह मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (जिसने CFCs और अन्य ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों को चरणबद्ध रूप से समाप्त किया) द्वारा संचालित पुनर्प्राप्ति की प्रभावशीलता को दर्शाता है तथा हानिकारक UV विकिरण के जोखिम को कम करता है।
    • इससे यह विश्वास मज़बूत होता है कि ओज़ोन परत वैश्विक स्तर पर लगभग वर्ष 2040 तक 1980 से पूर्व के स्तर पर लौट सकती है, जबकि आर्कटिक में 2045 तक और अंटार्कटिका में 2066 तक। ओज़ोन की पुनः प्राप्ति समताप मंडल को ठंडा करती है, जिससे दक्षिणी गोलार्द्ध की जेट धाराएँ संभावित रूप से मज़बूत हो जाती हैं।

ओज़ोन

  • ओज़ोन (O₃) तीन ऑक्सीजन अणुओं से बनी एक प्रतिक्रियाशील गैस है; यह प्राकृतिक या मानव निर्मित हो सकती है
    • यह दो परतों में मौजूद है:
      • समतापमंडलीय ओज़ोन (गुड ओज़ोन): पृथ्वी से 15-30 किमी ऊपर ऑक्सीजन के साथ पराबैंगनी विकिरण की परस्पर अभिक्रिया द्वारा प्राकृतिक रूप से निर्मित होती है। हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करके पृथ्वी के सनस्क्रीन के रूप में काम करती है।
      • क्षोभमंडलीय ओज़ोन (बैड ओज़ोन): वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों और नाइट्रोजन ऑक्साइड से संबंधित अभिक्रियाओं के कारण भूमि के निकट निर्मित होती है, जो धुंध में योगदान देती है।
    • ओज़ोन को डॉब्सन यूनिट्स (DU) में मापा जाता है; वैश्विक औसत लगभग 300 DU है, ध्रुवों पर इसका मान कम तथा भूमध्य रेखा के पास अधिक होता है।
  • लाभ: ओज़ोन परत पराबैंगनी विकिरण को रोककर मनुष्यों और पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करती है, जो स्किन कैंसर, मोतियाबिंद, प्रतिरक्षा में कमी तथा फसल और समुद्री क्षति का कारण बन सकती है
  • क्षरण: ओज़ोन क्षरण क्लोरीन और ब्रोमीन आधारित रसायनों जैसे CFCs, HFCs, हैलोन के कारण होता है, जिनका उपयोग आमतौर पर प्रशीतन, एयर कंडीशनिंग, एरोसोल, फोम तथा अग्निशामक यंत्रों में किया जाता है।
    • ये रसायन समताप मंडल में पहुँच जाते हैं जहाँ पराबैंगनी प्रकाश उन्हें विघटित कर देता है तथा प्रतिक्रियाशील क्लोरीन एवं ब्रोमीन निर्मुक्त करता है जो ओज़ोन अणुओं को नष्ट कर देते हैं
  • वैश्विक कार्रवाई: मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987) ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों के वैश्विक चरणबद्ध उन्मूलन को नियंत्रित करता है; यह संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में सार्वभौमिक अनुसमर्थन (2009) वाली पहली संधि है।
    • HFCs ओज़ोन के लिये सुरक्षित हैं, लेकिन अत्यधिक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें हैं, और इन्हें किगाली संशोधन (2016) के तहत चरणबद्ध रूप से कम किया जा रहा है।
    • ओज़ोन परत को क्षति पहुँचाने वाले पदार्थों को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने से जलवायु शमन में भी सहायता मिलेगी, जिससे वर्ष 2050 तक अनुमानित 0.5°C से 1°C तक की तापमान वृद्धि को रोका जा सकेगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. ‘ओज़ोन छिद्र’ से क्या तात्पर्य है?
‘ओज़ोन छिद्र’ अंटार्कटिका के ऊपर उन क्षेत्रों को दर्शाता है, जहाँ स्तंभ ओज़ोन 220 डॉबसन यूनिट्स (DU) से कम हो जाती है, जो समताप मंडलीय ओज़ोन के महत्त्वपूर्ण ऋतुजन्य मौसमी क्षीणन को दर्शाता है।

2. अंटार्कटिका का ओज़ोन छिद्र 2025 में ही क्यों बंद हो गया?
2025 में शीघ्र संकुचन, निम्न समतापमंडलीय क्लोरीन और ब्रोमीन, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के प्रभावी कार्यान्वयन और अनुकूल समतापमंडलीय तापमान तथा परिसंचरण के संयोजन के परिणामस्वरूप हुआ।

3. मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ओज़ोन पुनर्बहाली में किस प्रकार योगदान देता है?
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल (1987) ने ओज़ोन-क्षयकारी पदार्थों (CFCs, हैलोन, HFCs) के उत्पादन एवं उपभोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया है, जिससे समताप मंडल में क्लोरीन/ब्रोमीन की मात्रा कम हो गई तथा ओज़ोन परत की क्रमिक बहाली संभव हो पाई है।

सारांश

  • अंटार्कटिक ओज़ोन छिद्र का वर्ष 2025 में असाधारण रूप से शीघ्र बंद होना इस बात का प्रमाण है कि ओज़ोन परत स्थायी सुधार की दिशा में अग्रसर है।
  • ओज़ोन क्षरण तब होता है जब CFCs-व्युत्पन्न क्लोरीन और ब्रोमीन ध्रुवीय समताप मंडल के बादलों पर अभिक्रिया करते हैं तथा ओज़ोन को 220 DU से कम कर देते हैं
  • त्वरित संकुचन का कारण मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की सफलता, ओज़ोन क्षयकारी पदार्थों में कमी तथा अनुकूल समताप मंडलीय परिस्थितियाँ हैं।
  • इससे यह आशा और मज़बूत होती है कि ओज़ोन परत वर्ष 2040 तक 1980 से पूर्व के स्तर पर पुनः लौट सकती है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा एक, ओज़ोन का अवक्षय करने वाले पदार्थों के प्रयोग पर नियंत्रण और उन्हें चरणबद्ध रूप से प्रयोग से बाहर करने के मुद्दे से संबंद्ध है? (2015)

(a) ब्रेटन वुड्स सम्मेलन
(b) मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल
(c) क्योटो प्रोटोकॉल
(d) नागोया प्रोटोकॉल

उत्तर: (b) 


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. क्लोरोफ्लोरोकार्बन, जिसे ओज़ोन-ह्रासक पदार्थों के रूप में जाना जाता है, उनका प्रयोग
  2. सुघट्य फोम के निर्माण में होता है  
  3.  ट्यूबलेस टायरों के निर्माण में होता है  
  4.  कुछ विशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक अवयवों की सफाई में होता है  
  5.  एयरोसोल कैन में दाबकारी एजेंट के रूप में होता है  

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: c


प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)

  1. कार्बन मोनोऑक्साइड
  2.  मीथेन
  3.  ओज़ोन
  4.  सल्फर डाइऑक्साइड

फसल/जैव मात्रा के अवशेषों के दहन के कारण वायुमंडल में उपर्युक्त में से कौन-से निर्मुक्त होते हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)


रैपिड फायर

अंतर्राष्ट्रीय चीता दिवस

स्रोत: DD

भारत के प्रधानमंत्री ने अंतर्राष्ट्रीय चीता दिवस (4 दिसंबर) के अवसर पर प्रोजेक्ट चीता के तहत भारत की प्रगति को रेखांकित किया।

  • अंतर्राष्ट्रीय चीता दिवस: अमेरिकी जीवविज्ञानी डॉ. लॉरी मार्कर, जो चीता संरक्षण कोष (Cheetah Conservation Fund) की संस्थापक हैं, द्वारा स्थापित यह दिवस उस चीते खयाम की स्मृति में मनाया जाता है, जिसे उन्होंने पाला था। यह दिवस चीता प्रजाति के विलुप्त होने को रोकने और संरक्षण प्रयासों को मज़बूत करने की वैश्विक पहल को उजागर करता है।
  • प्रोजेक्ट चीता: भारत ने 70 वर्षों से अधिक समय से देश में विलुप्त हो चुके चीतों को पुनः स्थापित करने के लिये वर्ष 2022 में प्रोजेक्ट चीता शुरू किया।
    • प्रोजेक्ट टाइगर के तहत संचालित, प्रोजेक्ट चीता विश्व की पहली अंतरमहाद्वीपीय बड़ी जंगली मांसाहारी स्थानांतरण परियोजना है और चीता एक्शन प्लान को क्रियान्वित करती है।
    • इस परियोजना का उद्देश्य सुरक्षित आवासों में प्रजननशील चीता आबादी को शामिल करना, जो ऐतिहासिक क्षेत्र में विस्तारित हैं। खुले वनों और सवाना पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करने के लिये चीतों को एक प्रमुख प्रजाति के रूप में उपयोग करना, स्थानीय आजीविका में सुधार के लिये पारिस्थितिक विकास और पारिस्थितिक पर्यटन को बढ़ावा देना। 
    • इस परियोजना को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण द्वारा मध्य प्रदेश वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान के साझेदारी में कार्यान्वित किया जा रहा है और इसका निरीक्षण वर्ष 2023 में स्थापित चीता प्रोजेक्ट संचालन समिति द्वारा किया जाता है।
  • उपलब्धियाँ: नामीबिया से 8 और दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को कुनो राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित किया गया, जहाँ उन्होंने प्राकृतिक व्यवहार प्रदर्शित किया।
    • दिसंबर 2025 तक भारत में कुल 32 चीते हैं, जिनमें से 21 देश में ही जन्मे हैं।

Cheetah

और पढ़ें: प्रोजेक्ट चीता और गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य


रैपिड फायर

केंद्र ने विमुक्त और घुमंतू समुदायों के पुनर्वर्गीकरण से इनकार किया

स्रोत: द हिंदू

केंद्र सरकार ने मानवविज्ञान सर्वेक्षण के विस्तृत अध्ययन की अनुशंसा के बावजूद 268 विमुक्त, घुमंतु और अर्द्ध-घुमंतु समुदायों को SC/ST/OBC श्रेणियों में पुनर्वर्गीकृत न करने का निर्णय लिया है। इससे चिंता उत्पन्न हुई है क्योंकि उचित वर्गीकरण न होने से ये समुदाय विभिन्न लाभों विशेषकर SEED जैसी योजनाओं तक प्रभावी रूप से पहुँच नहीं पाते।

 विमुक्त, घुमंतू और अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के संदर्भ में

  • विमुक्त जनजातियाँ (Denotified Tribes): विमुक्त जनजातियाँ वे समुदाय हैं जिन्हें ब्रिटिश शासन ने वर्ष 1871 के आपराधिक जनजाति अधिनियम के तहत अनुचित रूप से ‘जन्मजात अपराधी’ घोषित कर दिया था। स्वतंत्र भारत ने वर्ष 1952 में इन्हें ‘विमुक्त’ यानी अपराधमुक्त कर दिया।
  • घुमंतू जनजातियाँ (Nomadic Tribes): ये वे समुदाय हैं जिनका कोई स्थायी निवास नहीं होता और जो अपनी आजीविका के लिये निरंतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं। इनकी पारंपरिक गतिविधियों में नमक व्यापार, भविष्यवाणी, लोक-कलाएँ या पशुपालन शामिल रहे हैं।
  • अर्द्ध-घुमंतू जनजातियाँ (Semi-Nomadic Tribes): ये समुदाय आंशिक रूप से घुमंतू होते हैं। इनके पास प्राय: एक स्थायी निवास या आधार होता है जहाँ वे वर्ष के कुछ महीनों (आमतौर पर वर्षा ऋतु में) रहते हैं, लेकिन बाकी समय कार्य की तलाश में विभिन्न स्थानों पर प्रवास करते हैं।
  • SEED योजना (आर्थिक सशक्तीकरण और विकास योजना): यह DWBDNC द्वारा संचालित है और वित्तीय, शैक्षिक तथा कौशल विकास सहायता प्रदान करती है।
    • यह स्व-रोज़गार, उद्यमिता, शिक्षा और स्वास्थ्य पहल का समर्थन करती है।
    • इसका उद्देश्य विमुक्त और घुमंतु समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार लाना है।
    • अस्पष्ट वर्गीकरण और समुदाय प्रमाणपत्रों की कमी के कारण इसका लाभ उठाने की गति धीमी रही है।

और पढ़ें: विमुक्त, घुमंतु और अर्द्ध-घुमंतु समुदाय


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