इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


जैव विविधता और पर्यावरण

कार्बन संचय और ‘मृदा में ऑर्गेनिक कार्बन’ का महत्त्व

  • 17 Jan 2018
  • 8 min read

संदर्भ:

  • इस तथ्य से हम सब परिचित हैं कि वायुमंडल में ‘कार्बनडाईऑक्साइड’ की मात्रा बढ़ती जा रही है।
  • ऐसे में co2 को वायुमंडल की बजाय अन्यत्र कहीं एकत्रित करने का विचार अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है।
  • गौरतलब है कि हमारी धरती इस विचार को मूर्त रूप देने में अहम् साबित हो सकती है।
  • दरअसल, धरती के अंदर co2 का भंडारण प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही तरीकों से किया जा सकता है।
  • co2 को वायुमंडल में जाने से रोककर धरती के अंदर पहुँचाने की इस विधि को कार्बन सिक्वेस्टरिंग (carbon sequestering) या कार्बन संचय कहते हैं।
  • एक ओर कार्बन सिक्वेस्टरिंग जहाँ ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने में, मृदा में ऑर्गेनिक कार्बन यानी ‘मृदा ऑर्गेनिक कार्बन’ कृषि के लिये महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।

क्या है कार्बन सिक्वेस्टरिंग?

terrestrial-sequestration

  • यह एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा कार्बन डाईऑक्साइड  को पृथ्वी के वायुमंडल से निकालकर ठोस या द्रव रूप में संगृहित कर ज़मीन के अंदर रखा जाता है।
  • पृथ्वी की सतह के अंदर कई ऐसे स्थान पाए जाते हैं जहाँ इनको संगृहित कर रखा जा सकता है, जैसे- खनन-अयोग्य कोयले की खदानें, पूर्ण रूप से दोहित खदानें, लवण-निर्माण के स्थान इत्यादि।
  • इसमें फ्लू गैस द्वारा अवशोषण (कार्बन स्क्रबिंग), मेम्ब्रेन गैस पृथक्करण तथा अन्य अवशोषण प्रौद्योगिकियों की मदद से co2 ज़मीन के नीचे एक निश्चित स्थान पर पहुँचाया जाता है।
  • यह जीवाश्म ईंधन से चलने वाले बिजली संयंत्रों जैसे कार्बन डाईऑक्साइड  के बड़े स्रोतों से कार्बन को कैप्चर कर संचय करने की प्रक्रिया है।

क्यों महत्त्वपूर्ण है कार्बन सिक्वेस्टरिंग?

  • इसका उद्देश्य वायुमंडल में co2 के अत्यधिक उत्सर्जन को रोकना है।
  • कार्बन सिक्वेस्टरिंग जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन तथा ग्लोबल वॉर्मिंग को कम करने का एक संभावित उपाय है।

क्या हैं वर्तमान चिंताएँ?

Present

  • औद्योगिक परिवर्तन:
    ⇒ गौरतलब है कि औद्योगिक परिवर्तनों का कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिला है। क्योंकि इससे जैव विविधता को नुकसान पहुँचा है।
    ⇒ साथ ही लाभकारी सूक्ष्मजीवों के उन्मूलन, उपज में कमी जल स्रोतों और मिट्टी के प्रदूषण में वृद्धि हुई है।
  • ग्लोबल वॉर्मिंग:
    ⇒ ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण वर्तमान में  समूचे विश्व का तापमान पूर्व-औद्योगिक समय से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म होने के रास्ते पर है।
    ⇒ कार्बन डाईऑक्साइड  की वायुमंडलीय सांद्रता सीमाओं को पार कर चुकी है और महासागर अम्लीय हो रहे हैं।
  • विसंगत कृषि व्यवहार:
    ⇒ हरित क्रांति के बाद फसल की पैदावार के साथ-साथ केमिकल्स, कीटनाशकों तथा फर्टिलाइज़र्स का भी प्रयोग कई गुना बढ़ गया है।
    ⇒ फलस्वरूप मृदा से नेचुरल कार्बन गायब हो गया है और मृदा की उर्वरता भी घट गई है।
  • विसंगत नीतियाँ:
    ⇒ गौरतलब है कि ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करने पर केंद्रित नीतियाँ बड़े पैमाने पर विद्युत् और परिवहन क्षेत्रों तक ही सीमित रही हैं।
    ⇒ ग्लोबल वॉर्मिंग, विसंगत कृषि व्यवहार और औद्योगिक परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों से बचाव हेतु हमें अन्य विकल्पों पर भी विचार करना होगा।
    ⇒ ‘मृदा का कार्बन सिंक’ के रूप में उपयोग एक व्यवहार्य एवं उचित विकल्प है और इस संदर्भ में उचित नीतियों का निर्माण आवश्यक है।

कार्बन सिंक के तौर पर मृदा की प्रभावशीलता का उपयोग

carbon-sink

  • क्या है कार्बन सिंक?
    ⇒ कार्बन सिंक वायुमंडल से एक कार्बन को लेकर कर एकत्रण का एक केंद्र है।
    ⇒ यह सिंक वन, महासागरों, मिट्टी और पौधों और अन्य जीव जो प्रकाश संश्लेषण की मदद से कार्बन को वातावरण से कैप्चर कर लेते हैं, से मिलकर बना है।
    ⇒ पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के लिये वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड लेते हैं, जिससे वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैस कम हो जाती है।
    ⇒ कुछ कार्बन मिट्टी में स्थानांतरित हो जाता है, क्योंकि गिरे हुए पौधे, पत्तियाँ, मरे हुए जीव आदि कार्बनिक पदार्थ के रूप में विघटित होते हैं।
  • 'मृदा ऑर्गेनिक कार्बन’ (एसओसी):
    ⇒ एसओसी गिरे हुए पौधे, पत्तियाँ, मरे हुए जीव आदि से मिलकर बना होता है जो कि मृदा में पहले मुख्यतः पहले 1 मीटर तक पाया जाता है।
    ⇒ गौरतलब है कि मृदा में लगभग 2,300 गीगाटन ऑर्गेनिक कार्बन मौजूद है और यही कारण है कि यह सबसे बड़ा स्थलीय कार्बन पूल बनाता हैं।
  • एसओसी में वृद्धि के उपाय:
    ⇒ दरअसल, ऐसी कई शर्तें और प्रक्रियाएँ हैं जिन पर कि एसओसी की मात्रा में होने वाला बदलाव निर्भर करता है, जैसे- तापमान, वर्षा, वनस्पति, मृदा प्रबंधन और लैंड यूज़ पैटर्न।
    ⇒ अतः एसओसी में वृद्धि इन कारकों में संतुलन बनाए रखने वाली स्थायी कृषि पद्धतियों को अपनाने पर निर्भर करता है। एसओसी में वृद्धि के उपाय हैं:
        ►  मृदा क्षरण को कम करना
        ► सीधे जोत आधारित कृषि पद्धति का कम-से-कम प्रयोग
        ► कवर-क्रॉप्स का उपयोग
        ► पोषक प्रबंधन की व्यवस्था करना
        ► गोबर तथा अपशिष्टों का प्रयोग करना
        ► वाटर हार्वेस्टिंग अपनाना
        ► कृषि वानिकी को बढ़ावा देना

निष्कर्ष

  • गौरतलब है कि भारत में बड़ी संख्या में सतत् कृषि पद्धतियाँ विद्यमान हैं। इन विधियों का सफलतापूर्वक प्रयोग करने वाले किसानों के ज्ञान एवं अनुभव का इस्तेमाल अनुसंधान तथा नीति-निर्माण में करना होगा।
  • राज्य स्तर पर नीति-निर्माताओं छोटी जोत वाले किसानों की आवश्यकताओं तथा उनकी सहायता जैसे मुद्दों को संज्ञान में लेना होगा।
  • साथ ही मौजूदा उर्वरक सब्सिडी नीति को संशोधित करने और जैविक फर्टिलाइज़र्स को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है।
  • यद्यपि सरकार देश के विभिन्न हिस्सों और मृदा का स्वास्थ्य मापने के लिये एक ‘स्वायल हेल्थ कार्ड योजना’ अमल में ला रही है, फिर भी ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिये नीतिगत सुधार आवश्यक हैं।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow