प्रारंभिक परीक्षा
थोरियम-आधारित रिएक्टरों के लिये ANEEL ईंधन
- 04 Dec 2025
- 63 min read
चर्चा में क्यों?
अमेरिका-स्थित क्लीन कोर थोरियम एनर्जी (CCTE) का उद्देश्य भारत के रिएक्टर्स के लिये समृद्ध जीवन के लिये उन्नत परमाणु ऊर्जा (ANEEL) नामक नए थोरियम-आधारित परमाणु ईंधन को लाना है, जिसे भारत के दबावयुक्त भारी जल रिएक्टर (PHWR) के लिये अगली पीढ़ी का उपयुक्त ईंधन माना गया है।
समृद्ध जीवन के लिये उन्नत परमाणु ऊर्जा (ANEEL) क्या है?
- परिचय: यह थोरियम और उच्च परख निम्न समृद्ध यूरेनियम (HALEU) का एक अनोखा मिश्रण है। इसे विशेष रूप से भारत के PHWR बेड़े (Fleet) को शक्ति प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है और वर्तमान में यह अमेरिका में उन्नत परीक्षण चरण में है।
- इस ईंधन का नाम भारत के अग्रणी परमाणु वैज्ञानिकों में से एक डॉ. अनिल काकोडकर के सम्मान में रखा गया है।
- लक्ष्य रिएक्टर: इसे PHWR (जैसे भारत के स्वदेशी रिएक्टर) के लिये ड्रोप-इन फ्यूल के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जो मौजूदा प्रणालियों में केवल न्यूनतम समायोजन के साथ संचालित हो सकता है।
- वर्तमान में भारत में 22 सक्रिय रिएक्टर हैं, जिनमें से 18 PHWR और 4 लाइट वाटर रिएक्टर (LWR) हैं। इसके अतिरिक्त भारत 10 नए PHWR का निर्माण कर रहा है, जिनमें प्रत्येक की क्षमता 700 मेगावाट है।
- ANEEL का महत्त्व: भारत के प्राकृतिक यूरेनियम रिएक्टरों से उत्पादित विद्युत की स्तरित लागत (Levelized Cost of Electricity-LCOE) लगभग ₹6 प्रति kWh है और ANEEL ईंधन इसे 20–30% तक कम कर सकता है, जिससे परमाणु ऊर्जा की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।
- यह उच्च दक्षता, बेहतर ईंधन प्रदर्शन, 85% से अधिक कम परमाणु अपशिष्ट प्रदान करता है और थोरियम का उपयोग करता है, जो प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
- ANEEL के पक्ष में अनुकूल परिस्थितियाँ:
- सरकारी समर्थन: वर्ष 2024 के बजट में निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी करके भारत स्मॉल रिएक्टर्स (BSRs) और नई परमाणु तकनीकों के विकास की योजना का उल्लेख किया गया।
- बढ़ती मांग: वर्ष 2032 तक परमाणु क्षमता 8.2 GW से बढ़कर 22 GW होने का अनुमान है, जिससे ANEEL जैसे उन्नत ईंधन की विशाल मांग उत्पन्न होगी।
- औद्योगिक कार्बन न्यूनीकरण: BSR को इस तरह से विकसित किया जा रहा है कि वे स्टील, सीमेंट और उर्वरक जैसे उद्योगों को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान कर सकें।
- नए युग के इंफ्रास्ट्रक्चर को शक्ति प्रदान करना: डेटा सेंटर और AI के तेज़ी से विस्तार के कारण विशाल और भरोसेमंद स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकता है, जिसे छोटे परमाणु रिएक्टर प्रदान कर सकते हैं।
- नई पीढ़ी के बुनियादी ढाँचे को शक्ति प्रदान करना: डेटा केंद्रों और AI में वृद्धि के लिये विशाल, विश्वसनीय स्वच्छ ऊर्जा की आवश्यकता है, जिसे छोटे परमाणु रिएक्टर प्रदान कर सकते हैं।
- नवीनित भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग: भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग में एक प्रमुख बाधा भारत का सिविल लाइबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट (CLND), 2010 था, जो दुर्घटनाओं के लिये उपकरण आपूर्तिकर्त्ताओं को ज़िम्मेदार ठहराता था।
- CCTE का कहना है कि यह कोई समस्या नहीं है क्योंकि यह केवल ईंधन तकनीक प्रदान करता है, रिएक्टर नहीं और ईंधन का प्रबंधन भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा किया जाएगा।
थोरियम-आधारित परमाणु रिएक्टर क्या है?
- परिचय: यह एक प्रकार का परमाणु रिएक्टर है जो पारंपरिक यूरेनियम (U-235) या प्लूटोनियम (Pu-239) के बजाय थोरियम (Th-232) को अपने प्रमुख उर्वरक ईंधन के रूप में उपयोग करता है।
- थोरियम स्वयं फिसाइल (Fissile) नहीं होता है, यानी यह अपने आप परमाणु शृंखला प्रतिक्रिया को बनाए नहीं रख सकता। इसलिये इसे परमाणु प्रतिक्रिया शुरू करने और बनाए रखने के लिये किसी फिसाइल ‘ड्राइवर’ पदार्थ (जैसे U-235, U-233 या प्लूटोनियम) के साथ जोड़ा जाना आवश्यक है।
- लाभ:
- प्रचुरता: थोरियम यूरेनियम की तुलना में 3–4 गुना अधिक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है और भारत, ऑस्ट्रेलिया तथा अमेरिका में व्यापक रूप से उपलब्ध है।
- ऊर्जा घनत्व: CERN के अनुसार, एक टन थोरियम से उतनी ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है जितनी 200 टन संवर्द्धित यूरेनियम से मिलती है और यह 100 गुना कम परमाणु अपशिष्ट उत्पन्न करता है।
- आंतरिक सुरक्षा विशेषताएँ: थोरियम डिज़ाइन जैसे कि मौल्टन साल्ट रिएक्टर्स (MSRs) वातावरणीय दबाव पर संचालित होते हैं और पैसिव सुरक्षा प्रणालियों का उपयोग करते हैं—जैसे, अत्यधिक गर्म होने पर जमी हुई लवण प्लग पिघल जाती है, ईंधन को कूलिंग टैंक में निकाल देती है और प्रतिक्रिया को रोक देती है।
- प्रसार प्रतिरोध: थोरियम चक्र कम दीर्घजीवी हथियार-ग्रेड ट्रांसयूरेनिक अपशिष्ट उत्पन्न करता है, U-233 में U-232 का संदूषण होता है, जिसकी तीव्र गामा विकिरण इसे पहचानने योग्य और सॅंभालने में कठिन बना देती है।
- भारत की विशेष रुचि: भारत के पास विश्व के थोरियम भंडार का लगभग 25% हिस्सा है और इसका एक 3-स्तरीय परमाणु कार्यक्रम है, जिसमें थोरियम एक प्रमुख घटक है, जिसका उद्देश्य दीर्घकालिक ऊर्जा स्वतंत्रता प्राप्त करना है।
भारत का 3-चरणीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम
- परिचय: यह भारत के सीमित यूरेनियम और प्रचुर थोरियम का कुशलतापूर्वक उपयोग करके परमाणु ऊर्जा विकसित करने की रणनीति है।
- इसकी रूपरेखा 1950 के दशक में डॉ. होमी भाभा द्वारा तैयार की गई थी, जिसका उद्देश्य भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना और आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करना है।
- 3 -चरण: इस रणनीति में थोरियम आधारित ऊर्जा की ओर संक्रमण के लिये विभिन्न प्रकार के रिएक्टरों का उपयोग किया जाता है।
- चरण I: PHWR (प्रेशराइज़्ड हेवी वाटर रिएक्टर) प्राकृतिक यूरेनियम (U-238) और भारी पानी का उपयोग करते हैं, उपयोग किये गए ईंधन को पुनःप्रसंस्कृत करके प्लूटोनियम प्राप्त किया जाता है।
- चरण II: फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (FBR) चरण I से प्राप्त प्लूटोनियम का उपयोग करते हैं और थोरियम से U-233 उत्पन्न करते हैं।
- चरण III: थोरियम आधारित रिएक्टर U-233 और थोरियम का उपयोग करते हैं, जिसका उद्देश्य U-233 को भारत का मुख्य परमाणु ईंधन बनाना है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. ANEEL ईंधन क्या है?
ANEEL ईंधन थोरियम-समृद्ध यूरेनियम से बना एक ईंधन है, जिसे भारत के PHWR के लिये विकसित किया गया है। यह दक्षता और सुरक्षा बढ़ाता है तथा परमाणु अपशिष्ट को 85% से अधिक कम करता है।
2. ANEEL ईंधन विद्युत की लागत कैसे कम करता है?
ईंधन दक्षता बढ़ाकर और अपशिष्ट घटाकर, ANEEL विद्युत की औसत लागत (LCOE) को ₹6 प्रति kWh से घटाकर लगभग ₹4.2-4.8 प्रति kWh तक ला सकता है।
3. भारत का 3-चरणीय परमाणु कार्यक्रम क्या है?
यह एक रणनीतिक रोडमैप है जिसमें PHWR, फास्ट ब्रीडर रिएक्टर और थोरियम-आधारित रिएक्टर शामिल हैं, जो यूरेनियम से थोरियम पर संक्रमण कर दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
सारांश
- ANEEL ईंधन, जो थोरियम और संवर्द्धित यूरेनियम का मिश्रण है, भारत के मौजूदा PHWR में विद्युत लागत को 20-30% तक कम कर सकता है और परमाणु अपशिष्ट को 85% से अधिक घटा सकता है।
- यह भारत के तीन-चरणीय परमाणु कार्यक्रम के लिये एक महत्त्वपूर्ण पुल प्रौद्योगिकी के रूप में कार्य करता है, जिससे थोरियम-आधारित स्थायी रिएक्टरों के अंतिम लक्ष्य की दिशा में शीघ्र थोरियम उपयोग संभव हो पाता है।
- यह इंडो-US सहयोग हालिया कूटनीतिक प्रयासों और भारत की उस नीतिगत पहल से भी गति प्राप्त करता है, जो औद्योगिक डिकार्बोनाइजज़ेशन के लिये भारत स्मॉल रिएक्टर्स (BSR) में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देती है।
- भारत के विशाल थोरियम भंडार का उपयोग करते हुए, ANEEL राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा रणनीति और स्वच्छ, निर्बाध (बेसलोड) ऊर्जा उपलब्ध कराने के लक्ष्य के साथ पूरी तरह मेल खाता है, जिससे उद्योगों और डेटा सेंटर जैसी नई अवसंरचना की बढ़ती मांगें पूरी की जा सकें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर ‘आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों’ के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)
(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का
(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का
(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा
(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले
उत्तर: (b)
प्रश्न. भारत के संदर्भ में 'अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आई.ए.ई.ए.)' के 'अतिरिक्त नयाचार (एडीशनल प्रोटोकॉल)' का अनुसमर्थन करने का निहितार्थ क्या है? (2018)
(a) असैनिक परमाणु रिएक्टर आई.ए.ई.ए. के रक्षोपायों के अधीन आ जाते हैं।
(b) सैनिक परमाणु अधिष्ठान आई.ए.ई.ए. के निरीक्षण के अधीन आ जाते हैं।
(c) देश के पास नाभिकीय पूर्तिकर्त्ता समूह (एन.एस.जी.) से यूरेनियम क्रय का विशेषाधिकार हो जाएगा।
(d) देश स्वतः एन.एस.जी. का सदस्य बन जाता है।
उत्तर: (a)
