उत्तराखंड
जनगणना-2027 की अधिसूचना जारी
- 17 Jun 2025
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चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने जनगणना अधिनियम, 1948 की धारा 3 के तहत वर्ष 2027 में दशकीय जनगणना के आयोजन को आधिकारिक रूप से अधिसूचित किया है।
- यह अधिसूचना मार्च 2019 के एक पूर्ववर्ती आदेश का स्थान लेती है, जिसमें शुरू में वर्ष 2021 में जनगणना के लिये कार्यक्रम निर्धारित किया गया था, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसमें इसमें विलंब हुआ।
नोट: धारा 3 के अधीन, केंद्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उन संपूर्ण राज्यक्षेत्रों या उनके किसी भाग में, जिन पर यह अधिनियम लागू होता है, जनगणना करने का अपना आशय घोषित कर सकती है, जब कभी वह ऐसा करना आवश्यक या वांछनीय समझे, तत्पश्चात् जनगणना की जाएगी।
मुख्य बिंदु
- अद्यतन जनगणना अनुसूची:
- देश के अधिकांश भागों के लिये जनगणना की संदर्भ तिथि 1 मार्च, 2027 होगी।
- हालाँकि, जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे क्षेत्र, जो बर्फ और दुर्गम भू-भाग के कारण रसद संबंधी चुनौतियों का सामना करते हैं, 1 अक्तूबर, 2026 की पूर्व संदर्भ तिथि का पालन करेंगे।
- यह समायोजन इन क्षेत्रों में अधिक सटीक डाटा संग्रहण की अनुमति देता है।
- जनगणना:
- भारतीय जनगणना देश की जनसंख्या पर जनसांख्यिकीय और सामाजिक-आर्थिक आँकड़ों का सबसे बड़ा स्रोत है।
- भारत की पहली समन्वित जनगणना वर्ष 1881 में भारत के तत्कालीन जनगणना आयुक्त डब्ल्यू.सी. प्लोडेन के अधीन हुई थी।
- इसने लगातार हर 10 वर्ष में विस्तृत सांख्यिकीय जानकारी उपलब्ध कराई है, जिसकी शुरुआत वर्ष 1872 से हुई, जब भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पहली गैर-समकालिक जनगणना आयोजित की गई थी।
- कानूनी ढाँचा और संस्थागत विकास:
- जनगणना अधिनियम, 1948 को जनगणना कार्यों के लिये कानूनी ढाँचा तैयार करने तथा जनगणना अधिकारियों की भूमिकाएँ परिभाषित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- यद्यपि यह अधिनियम कानूनी ढाँचा प्रदान करता है, लेकिन यह किसी विशिष्ट आवृत्ति को अनिवार्य नहीं करता, जिससे दशकीय पैटर्न एक संवैधानिक आवश्यकता न होकर एक परंपरा बन जाता है।
- मई 1949 में भारत सरकार ने जनसंख्या और जनसांख्यिकीय आँकड़ों के संग्रह को व्यवस्थित करने के लिये गृह मंत्रालय के अधीन एक स्थायी जनगणना संगठन की स्थापना की।
- बाद में महापंजीयक कार्यालय को जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969 को क्रियान्वित करने का कार्य सौंपा गया, जिससे महत्त्वपूर्ण आँकड़ों को बनाए रखने में इसकी भूमिका का और विस्तार हुआ।
- जनगणना अधिनियम, 1948 को जनगणना कार्यों के लिये कानूनी ढाँचा तैयार करने तथा जनगणना अधिकारियों की भूमिकाएँ परिभाषित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।