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डेली न्यूज़

प्रारंभिक परीक्षा

दक्षिणी महासागर कार्बन विसंगति

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक अध्ययन एक उल्लेखनीय दक्षिणी महासागर कार्बन विसंगति को उजागर करता है, जिसमें यह दर्शाया गया है कि 2000 के दशक की शुरुआत से दक्षिणी महासागर निरंतर अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करता आ रहा है, जबकि पहले के जलवायु मॉडलों में इसके कार्बन-सिंक क्षमता के कमज़ोर पड़ने की भविष्यवाणी की गई थी।

सारांश

  • नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक अध्ययन दर्शाता है कि दक्षिणी महासागर CO₂ का अवशोषण निरंतर करता जा रहा है, जो जलवायु मॉडलों की भविष्यवाणियों के विपरीत है। इसका कारण सतही स्तरीकरण है, जिसके परिणामस्वरूप कार्बन-समृद्ध गहरा जल सतह तक नहीं पहुँच पाता और निचले स्तरों में संचित रहता है।
  • एक प्रमुख वैश्विक कार्बन एवं ऊष्मा अवशोषक (सिंक) होने के कारण, स्तरीकरण के कमज़ोर पड़ते ही संचित कार्बन के मुक्त होने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे दक्षिणी महासागर के कार्बन अवशोषक से उत्सर्जक बनने का खतरा उत्पन्न हो सकता है।

Southern_Ocean

दक्षिणी महासागर कार्बन विसंगति क्या है?

  • मॉडल पूर्वानुमानों के विपरीत: जलवायु मॉडलों के अनुसार, बढ़ती ग्रीनहाउस गैस सांद्रता और ओज़ोन परत के पतन के संयुक्त प्रभाव से दक्षिणी महासागर के ऊपर पश्चिमी पवनों की तीव्रता बढ़ने तथा उनके ध्रुवों की दिशा में स्थानांतरित होने की संभावना व्यक्त की गई थी।
    • वायुमंडलीय परिसंचरण में इस परिवर्तन से महासागरीय अपवेलिंग (गहरे, कार्बन-समृद्ध जल को सतह के निकट लाने की प्रक्रिया) के बढ़ने की संभावना थी।
      • इसके परिणामस्वरूप, तीव्र मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन से ये कार्बन-युक्त गहरे जल वायुमंडल के संपर्क में आ जाते, जिससे दक्षिणी महासागर की कार्बन सिंक के रूप में भूमिका कमज़ोर पड़ने की आशंका जताई गई थी।
    • हालाँकि, 2000 के दशक की शुरुआत से किये गए दीर्घकालिक अवलोकनों से पता चलता है कि दक्षिणी महासागर निरंतर अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण करता रहा है, क्योंकि कार्बन-समृद्ध परिक्रमणीय गहरा जल सतह से लगभग 100–200 मीटर नीचे संचित हैं, जिससे उनका वायुमंडल में उत्सर्जन नहीं हो पाता।
  • स्तरीकरण की भूमिका: अधिक वर्षा, अंटार्कटिक हिम के पिघलने तथा समुद्री हिम के स्थानांतरण/आवागमन के परिणामस्वरूप महासागर की सतही परत में स्वच्छ जल की मात्रा बढ़ गई है। स्वच्छ जल, लवणीय जल की तुलना में हल्का होता है, इसलिये यह ऊपर एक स्थिर परत बना लेता है।
    • यह परतदार संरचना, जिसे स्तरीकरण (Stratification) कहा जाता है, एक ढक्कन की तरह कार्य करती है, जो सतही जल और नीचे स्थित कार्बन-समृद्ध गहरे जल के बीच ऊर्ध्वाधर मिश्रण को रोकती है। इसके परिणामस्वरूप कार्बन नीचे ही संग्रहित रहता है, CO₂ वायुमंडल में निकलने से रुक जाती है और दक्षिणी महासागर एक कार्बन अवशोषक (कार्बन सिंक) के रूप में कार्य करता रहता है।
  • महत्त्व: अध्ययन चेतावनी देता है कि यह स्थिति अस्थायी हो सकती है। यदि भविष्य में सतही स्तरीकरण कमज़ोर पड़ता है तो संग्रहित कार्बन तेज़ी से वायुमंडल में उत्सर्जित हो सकता है, जिससे जलवायु परिवर्तन की गति और तीव्र हो जाएगी।
    • 2010 के दशक की शुरुआत से, दक्षिणी महासागर के कुछ हिस्सों में सतही स्तरीकरण के पतला होने और लवणता बढ़ने से पवनों के लिये गहरे, कार्बन-समृद्ध जल को ऊपर मिलाना आसान हो गया है, जिससे इसके कार्बन सिंक से कार्बन स्रोत में बदलने का जोखिम बढ़ गया है।

दक्षिणी महासागर के संदर्भ में प्रमुख तथ्य क्या हैं?

  • भौगोलिक विस्तार: दक्षिणी महासागर (या अंटार्कटिक महासागर) को अंटार्कटिका के चारों ओर के जलक्षेत्र के रूप में परिभाषित किया गया है, जो सामान्यतः अंटार्कटिक तट से उत्तर की ओर 60° दक्षिण अक्षांश तक फैला होता है। इस सीमा को इंटरनेशनल हाइड्रोग्राफिक ऑर्गनाइज़ेशन (IHO) ने वर्ष 2000 में स्थापित किया था और इसे अंटार्कटिक सर्कम्पोलर कर्रेंट (ACC) द्वारा चिह्नित किया गया है, जो अटलांटिक, पैसिफिक और हिंद महासागरों के कुछ हिस्सों को जोड़ता है।
    • यह विशेष है क्योंकि इसे भूमि द्वारा नहीं बल्कि एक धारा (कर्रेंट) द्वारा परिभाषित किया गया है और यह वैश्विक जलवायु में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • प्रमुख भौगोलिक विशेषताएँ
    • सबसे संकीर्ण मार्ग (Narrowest chokepoint): दक्षिण अमेरिका और अंटार्कटिक प्रायद्वीप के बीच ड्रेक पैसिज (Drake Passage), जिसकी चौड़ाई लगभग 1,000 किमी है।
    • दक्षिणी महासागर में वेड्डेल सी, रॉस सी, अमुंडसेन सी, बेलिंग्सहाउसन सी और स्कॉटिया सी के कुछ हिस्से शामिल हैं।
    • कोई महाद्वीपीय भूभाग इसके प्रवाह को बाधित नहीं करता।
  • आकार और कवरेज: क्षेत्रफल के हिसाब से यह प्रशांत महासागर, अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर के बाद चौथा सबसे बड़ा महासागर है तथा आर्कटिक महासागर से बड़ा है।
    • यह वैश्विक महासागरों के लगभग 25–30% क्षेत्र को कवर करता है और पृथ्वी के कुल महासागर आयतन का लगभग 5.4% हिस्सा है।
  • कार्बन सिंक की भूमिका: दक्षिणी महासागर विश्व के महासागरों द्वारा अवशोषित सभी मानवजनित CO₂ का लगभग 40% अपने भीतर समाहित करता है। यह ग्लोबल वार्मिंग के विरुद्ध एक महत्त्वपूर्ण संतुलनकारी भूमिका निभाता है।
    • यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से उत्पन्न अतिरिक्त ऊष्मा का लगभग 75% अवशोषित करने के लिये ज़िम्मेदार है।
  • महासागरीय परिसंचरण: दक्षिणी महासागर का परिसंचरण अंटार्कटिक सर्कम्पोलर कर्रेंट द्वारा नियंत्रित होता है, जो विश्व की सबसे तीव्र धारा है। यह अंटार्कटिका के चारों ओर पूर्व की दिशा में बहती है और अटलांटिक, हिंद तथा प्रशांत महासागरों को जोड़ती है।
    • ठंडी और सघन अंटार्कटिक जल धारा महासागर के तल के साथ उत्तर की दिशा में बहती है, जबकि अटलांटिक, हिंद और प्रशांत महासागर की गर्म सतही जल दक्षिण की ओर बहती है ताकि उनका स्थान ले सके तथा ये धारा अंटार्कटिक कन्वर्जेंस पर मिलती हैं।
      • यह क्षेत्र उच्च फाइटोप्लांकटन उत्पादकता का समर्थन करता है, जिसमें मुख्य रूप से डायाटम्स होते हैं। अंटार्कटिक क्रिल (Antarctic krill) इस खाद्य जाल का केंद्र बनाते हैं, जो मछली, समुद्री पक्षियों, सील और व्हेल को पोषण प्रदान करता है।
    • महासागर वैश्विक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (MOC) का केंद्रबिंदु है, जिसे प्राय: महासागरों की ‘कन्वेयर बेल्ट’ के रूप में जाना जाता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. दक्षिणी महासागर कार्बन विसंगति क्या है?
यह 2000 के दशक की शुरुआत से दक्षिणी महासागर द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण में निरंतर वृद्धि को दर्शाता है, जो जलवायु मॉडलों की अवशोषण क्षमता कम होने की भविष्यवाणियों के विपरीत है।

2. दक्षिणी महासागर कार्बन सिंक में स्तरीकरण (Stratification) की क्या भूमिका है?
वर्षा और हिम के पिघलने से सतही परत में स्वच्छ जल की मात्रा बढ़ गई, जो हल्का होता है और ऊर्ध्वाधर मिश्रण को रोकता है। इससे कार्बन-समृद्ध जल सतह से लगभग 100–200 मीटर नीचे संचित रहता है।

3. अंटार्कटिक सर्कम्पोलर कर्रेंट क्यों महत्त्वपूर्ण है?
यह विश्व की सबसे तीव्र महासागरीय धारा है, जो अटलांटिक, हिंद और प्रशांत महासागरों को जोड़ती है तथा वैश्विक ऊष्मा, पोषक तत्त्व एवं कार्बन के प्रवाह को नियंत्रित करती है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कारकों पर विचार कीजिये:

  1. पृध्वी का आवर्तन 
  2. वायु दाब और हवा 
  3. महासागरीय जल का घनत्व 
  4. पृथ्वी का परिक्रमण

उपर्युक्त में से कौन-से कारक महासागरीय धाराओं को प्रभावित करते हैं? (2012)

(a) केवल 1 और 2

(b) 1, 2 और 3

(c) 1 और 4

(d) 2, 3 और 4

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. महासागरीय लवणता में विभिन्नताओं के कारण बताइये तथा इसके बहु-आयामी प्रभावों की विवेचना कीजिये। (250 शब्द) (2017)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और न्यूज़ीलैंड मुक्त व्यापार समझौता

प्रिलिम्स के लिये: मुक्त व्यापार समझौता (FTA), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), भौगोलिक संकेत (GI), यूरोपीय संघ, फाइव आइज़, आसियान, MSME, व्यापार घाटा, व्यापार में तकनीकी बाधाएँ (TBT), बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), एंटी-डंपिंग, कार्बन क्रेडिट, फ्रेंड शोरिंग।    

मेन्स के लिये: भारत और न्यूज़ीलैंड (NZ) के मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की प्रमुख विशेषताएँ और इसका महत्त्व, FTA से भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ और भारत द्वारा FTA का पूरी तरह से उपयोग करने का मार्ग।

स्रोत: BS

चर्चा में क्यों?

भारत और न्यूज़ीलैंड (NZ) ने मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर वार्ता के सफल समापन की घोषणा की है। इसके तहत न्यूज़ीलैंड भारत के 100% निर्यात को शून्य शुल्क (ज़ीरो-ड्यूटी) पहुँच प्रदान करेगा और अगले 15 वर्षों में 20 अरब अमेरिकी डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताएगा।

सारांश

  • यह मुक्त व्यापार समझौता भारतीय निर्यात को शून्य शुल्क पर पहुँच प्रदान करता है, न्यूज़ीलैंड की लगभग 70% टैरिफ लाइनों का उदारीकरण करता है तथा डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
  • इसके माध्यम से 118 क्षेत्रों में 20 अरब अमेरिकी डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), कौशल गतिशीलता और सेवा व्यापार को बढ़ावा मिलता है, जिससे आर्थिक विकास और रोज़गार के नए अवसर सृजित होते हैं।
  • रणनीतिक दृष्टि से यह समझौता भारत के वैश्विक व्यापार के विविधीकरण, क्षेत्रीय प्रभाव के विस्तार और विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ दीर्घकालिक आर्थिक सहयोग को सुदृढ़ करता है।

भारत-न्यूज़ीलैंड मुक्त व्यापार समझौते की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • व्यापार उदारीकरण: न्यूज़ीलैंड की प्रतिबद्धताओं में भारतीय निर्यात के 100% पर शून्य शुल्क पहुँच प्रदान करना और वर्तमान औसत टैरिफ 2.2% को पूरी तरह से समाप्त करना शामिल है।
    • भारत की प्रतिबद्धताएँ: 70% टैरिफ लाइनों पर शुल्क उदारीकरण (मूल्य के हिसाब से न्यूज़ीलैंड के 95% निर्यात को कवर करते हुए)। लकड़ी, ऊन और भेड़ के मांस सहित उत्पादों के लिये 30% टैरिफ लाइनों पर तत्काल शुल्क समाप्ति।
      • औसत सीमा शुल्क दर वर्तमान 16.2% से घटकर प्रारंभ में 13.18% हो जाएगी, इसके बाद 5 वर्षों में 10.3% और 10वें वर्ष तक 9.06% तक आ जाएगी।
      • भारत के डेयरी क्षेत्र को संरक्षित करने के लिये लगभग 30% टैरिफ मदों (डेयरी, कुछ पशु उत्पाद, सब्जियाँ, बादाम, चीनी) को बाहर रखा गया है।
    • निवेश प्रतिबद्धता: न्यूज़ीलैंड ने भारत में 15 वर्षों में 20 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश को सुविधाजनक बनाने की प्रतिबद्धता जताई है, जिसके लिये एक पुनर्संतुलन तंत्र का प्रावधान है जो भारत को निर्धारित अवधि के भीतर निवेश न होने की स्थिति में मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के लाभों को निलंबित करने की अनुमति देता है।
  • आवागमन संबंधी प्रावधान: न्यूज़ीलैंड में भारतीय छात्रों की संख्या पर कोई सीमा नहीं है। अध्ययन के दौरान प्रति सप्ताह कम-से-कम 20 घंटे कार्य की गारंटी। अध्ययन के बाद कार्य वीज़ा की अवधि बढ़ाई जाती है (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) स्नातकों के लिये 3 वर्ष तक, पीएचडी धारकों के लिये 4 वर्ष तक)।
    • एक नया अस्थायी रोज़गार प्रवेश वीज़ा मार्ग, जिसके तहत एक समय में अधिकतम 5,000 भारतीय पेशेवरों को (अधिकतम 3 वर्ष की अवधि के लिये) प्रवेश दिया जा सकता है। इसमें आयुष, योग, भारतीय रसोइये, आईटी, इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य सेवा आदि शामिल हैं।
    • युवा भारतीयों के लिये प्रतिवर्ष 1,000 वर्किंग हॉलिडे वीज़ा।
  • महत्त्वाकांक्षी सेवा उदारीकरण: इस समझौते में भारत की अब तक की सबसे महत्त्वाकांक्षी सेवा पेशकश शामिल है, जिसमें 118 सेवा क्षेत्र शामिल हैं, जिससे सेवा व्यापार और पेशेवर गतिशीलता को बढ़ावा मिलेगा।
  • व्यापार विस्तार का लक्ष्य: मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का उद्देश्य 5 वर्षों के भीतर द्विपक्षीय व्यापार को 2.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर लगभग 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर करना है, जिससे आर्थिक एकीकरण मज़बूत होगा।
  • भारत के बौद्धिक संपदा अधिकारों की मान्यता: न्यूज़ीलैंड का वर्तमान भौगोलिक संकेत (GI) कानून केवल भारत की वाइन और स्पिरिट के पंजीकरण की अनुमति प्रदान करता है, लेकिन उसने यूरोपीय संघ को दिये गए लाभों के बराबर भारत की वाइन, स्पिरिट और अन्य वस्तुओं के पंजीकरण को सक्षम करने के लिये अपने कानून में संशोधन करने की प्रतिबद्धता जताई है।
  • भारत के बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) की मान्यता: न्यूज़ीलैंड का वर्तमान भौगोलिक संकेतक (GI) कानून केवल भारत की वाइन और स्पिरिट्स के पंजीकरण की अनुमति प्रदान करता है। अब उसने अपने कानून में संशोधन कर भारत की वाइन, स्पिरिट्स और अन्य उत्पादों के पंजीकरण को संभव बनाने की प्रतिबद्धता जताई है, जिससे भारत को यूरोपीय संघ को दिये गए लाभों के समान अधिकार प्राप्त होंगे।

भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का क्या महत्त्व है?

  • रणनीतिक आर्थिक पुनर्संतुलन: यह समझौता 2021 के बाद से भारत का 7वाँ व्यापार समझौता और फाइव आइज़ एलायंस (ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बाद) के साथ तीसरा समझौता है, जो संरक्षणवादी नीतियों से प्रेरित वैश्विक पुनर्गठन के बीच व्यापार संबंधों में विविधता लाने की दिशा में नई दिल्ली के रणनीतिक बदलाव को दर्शाता है।  
    • द्विपक्षीय लाभों से आगे बढ़कर, यह मुक्त व्यापार समझौता भारतीय कंपनियों को प्रशांत द्वीप समूह की अर्थव्यवस्थाओं में अपनी उपस्थिति स्थापित करने का अवसर प्रदान करता है
  • संवेदनशील क्षेत्रों का संरक्षण: भारत ने अपने राजनीतिक और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण डेयरी क्षेत्र के साथ-साथ अन्य संवेदनशील कृषि उत्पादों (जैसे प्याज, बादाम) को सफलतापूर्वक पूरी तरह से बाहर कर दिया , जिससे कमज़ोर घरेलू उद्योगों की रक्षा के प्रति एक दृढ़ रुख प्रदर्शित हुआ।
  • निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता: वस्त्र, परिधान, चमड़ा, कालीन और ऑटो कंपोनेंट जैसे क्षेत्रों को न्यूज़ीलैंड में तत्काल शुल्क-मुक्त पहुँच प्राप्त होती है, जिन्हें पहले 10% तक के शुल्क का सामना करना पड़ता था। 
    • 118 सेवा क्षेत्रों तक पहुँच भारतीय IIT, इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा कंपनियों को नए अवसर प्रदान करती है।
  • सुरक्षा उपायों के साथ नियंत्रित उदारीकरण: भारत के टैरिफ 10 वर्षों में धीरे-धीरे कम होंगे, जिससे घरेलू उद्योगों को समायोजन के लिये समय मिलेगा। 
    • सेब, कीवी और शराब जैसे संवेदनशील आयातों के मामले में भारत पूर्ण उदारीकरण के स्थान पर टैरिफ-रेट कोटा (TRQ) और मौसमी पहुँच जैसी व्यवस्थाएँ अपनाता है, ताकि बाज़ार तक पहुँच और घरेलू उत्पादकों के संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके।
  • गहन सहयोग के लिये ढाँचा: यह समझौता व्यापारिक क्षेत्र में एक बड़ी सफलता से कहीं अधिक गहन सहयोग के लिये एक ढाँचा है। इसका महत्त्व तत्काल व्यापार की मात्रा बढ़ाने के बजाय एकीकृत आपूर्ति शृंखलाओं के लिये बुनियादी ढाँचा तैयार करने, सेवाओं के व्यापार का विस्तार करने, शिक्षा और कौशल साझेदारी को मज़बूत करने और प्रवासी भारतीयों के संबंधों का लाभ उठाने में निहित है।

मुक्त व्यापार समझौते (FTAs) क्या हैं?

  • परिचय: FTA दो या दो से अधिक देशों के बीच एक समझौता है, जिसके तहत उनके बीच व्यापार किये जाने वाले लगभग सभी सामानों पर लगने वाले टैरिफ और अन्य बाधाओं को हटाया या कम किया जाता है।
    • प्राथमिकता व्यापार समझौतों के विपरीत, जो केवल सीमित उत्पादों पर शुल्क कम करते हैं, मुक्त व्यापार समझौते का उद्देश्य लगभग पूर्ण और व्यापक शुल्क उन्मूलन करना होता है।
  • उद्देश्य:
    • टैरिफ में कमी: अधिकांश (90–95%) वस्तुओं पर सीमा शुल्क को समाप्त या कम करना।
    • सुगम नियमावली (Streamlined Regulations): प्रतिबंधात्मक नियमों को समान या सरल बनाकर गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना।
    • बाज़ार पहुँच: सेवाओं के व्यापार को सुविधाजनक बनाना और द्विपक्षीय निवेश प्रवाह को बढ़ावा देना।
  • व्यापार समझौतों के प्रकार:

Types_of_Trade_Agreements

भारत के FTA से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • घरेलू विनिर्माण के लिये खतरा: एक प्रमुख चिंता यह है कि उन्नत साझेदारों (जैसे ASEAN, ऑस्ट्रेलिया) से सस्ते आयात भारत के MSME और प्रमुख क्षेत्रों जैसे वस्त्र, डेयरी तथा कृषि को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
    • आलोचक बताते हैं कि वर्ष 2017–2022 के बीच भारत का व्यापार घाटा FTA के कारण बढ़ा है तथा FTA साझेदारों से आयात 82% बढ़ा जबकि निर्यात केवल 31% बढ़ा
  • सेवाओं और गतिशीलता में सीमित लाभ: भारत के मज़बूत सेवा क्षेत्र के बावजूद, उसके FTA अक्सर सार्थक बाज़ार पहुँच सुनिश्चित करने में विफल रहते हैं।
    • मुख्य बाधाएँ जैसे कड़े वीज़ा नियम, लाइसेंसिंग अड़चनें और पेशेवरों की आवाजाही में रुकावटें, अवसरों को सीमित करती हैं, क्योंकि साझेदार अपने घरेलू श्रम बाज़ार की रक्षा को प्राथमिकता देते हैं।
  • गैर-टैरिफ बाधाएँ (NTB) और मानक: टैरिफ हटाए जाने के बावजूद, भारतीय निर्यात को प्राय: साझेदार देशों में तकनीकी व्यापार बाधाओं (TBT), कड़े मानक, जटिल प्रमाणन आवश्यकताओं और अस्पष्ट नियमों का सामना करना पड़ता है, जिससे FTA के लाभ समाप्त हो जाते हैं।
  • नीतिगत संप्रभुता पर प्रभाव: नई पीढ़ी के FTA में निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), सरकारी खरीद और पर्यावरण/श्रम मानकों पर अध्याय शामिल होते हैं।
    • चिंता यह है कि ये भारत के नीति क्षेत्र को सार्वजनिक हित के कानून (जैसे किफायती दवाएँ, स्थानीय खरीद प्राथमिकताएँ, पर्यावरणीय नियम) बनाने की क्षमता को सीमित कर सकते हैं।

भारत के FTA की प्रभावशीलता बढ़ाने हेतु प्रमुख रणनीतियाँ क्या हैं?

  • रणनीतिक वार्ता और डिज़ाइन: भारत की सेवा और डिजिटल व्यापार क्षमताओं के लिये पारस्परिक बाज़ार पहुँच को प्राथमिकता देना तथा किसी भी उत्पाद पर दी जाने वाली छूट को इन लाभों के साथ समन्वित करना।
    • डेयरी, कृषि और MSME जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को मज़बूत सुरक्षा उपायों से सुरक्षित रखना, जैसे कि टैरिफ-रेट कोटा, सीजनल टैरिफ तथा कठोर एंटी-डंपिंग उपाय
  • घरेलू प्रतिस्पर्द्धात्मकता को मज़बूत करना: व्यापार लागत को कम करने के लिये लॉजिस्टिक्स, बंदरगाहों और डिजिटल अवसंरचना में निवेश करके प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना। PLI योजनाओं और लक्षित नीतियों के माध्यम से विनिर्माण के पैमाने तथा गुणवत्ता को बढ़ाना, ताकि उद्योग FTA के लाभों का पूरा लाभ उठा सकें।
  • नए युग के व्यापार तत्त्वों का लाभ उठाना: सुरक्षा उपायों के साथ सीमा-पार डेटा प्रवाह सुनिश्चित करके तकनीकी निर्यात को बढ़ावा देना। हरित प्रौद्योगिकी साझेदारियों, सतत स्रोतों और कार्बन क्रेडिट बाज़ार तक पहुँच पर वार्ता करना।
    • भारत-न्यूजीलैंड मॉडल के अनुसार, FTA को विनिर्माण, हरित ऊर्जा तथा अवसंरचना में बाध्यकारी निवेश से जोड़ना, ताकि रोज़गार सृजित हों और घरेलू क्षमता का निर्माण हो सके।
  • रणनीतिक भू-अर्थिक संरेखण: मुख्य उपभोक्ता बाज़ारों (EU, कनाडा) और महत्त्वपूर्ण मूल्य शृंखला साझेदारों (महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये अर्जेंटीना, चिली) के साथ FTA को लक्षित करके व्यापार निर्भरता को विविधतापूर्ण बनाना।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और खनिज जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में भरोसेमंद साझेदारों के साथ एकीकृत होकर अनुकूल फ्रेंड-शोरिंग को बढ़ावा देना।
  • गैर-टैरिफ बाधाओं (NTBs) को संबोधित करना: तकनीकी मानक, सैनिटरी उपाय और पारस्परिक मान्यता समझौतों पर लागू होने वाले अध्याय शामिल करना, ताकि NTB टैरिफ छूट के लाभ को समाप्त न कर सकें।

निष्कर्ष

भारत–न्यूज़ीलैंड FTA द्विपक्षीय व्यापार, निवेश और सेवाओं की गतिशीलता को सुदृढ़ करता है, साथ ही डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा भी करता है। यह विकसित अर्थव्यवस्थाओं की ओर भारत की रणनीतिक ओरिएंटेशन को दर्शाता है, आर्थिक सहयोग, कौशल गतिशीलता और क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ावा देता है। यह समझौता व्यापार उदारीकरण और सुरक्षा उपायों के बीच संतुलन स्थापित करता है, दीर्घकालीन सतत विकास तथा समेकन के लिये एक ढाँचा प्रदान करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. घरेलू कृषि, विशेष रूप से डेयरी क्षेत्र की सुरक्षा, भारत के हालिया FTA का एक मूल स्तंभ रही है। इससे जुड़े आर्थिक और राजनीतिक तर्क पर चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. भारत–न्यूज़ीलैंड FTA की प्रमुख निवेश विशेषता क्या है?
इसमें न्यूज़ीलैंड से 20 बिलियन USD का निवेश प्रतिबद्धता शामिल है, जिसे एक पुनर्संतुलन तंत्र द्वारा समर्थित किया गया है, जो भारत को यह अधिकार देता है कि यदि प्रतिबद्धताओं का पालन नहीं होता है तो वह लाभ निलंबित कर सकता है।

2. किन भारतीय क्षेत्रों को FTA से बाहर रखा गया है?
संवेदनशील क्षेत्रों जैसे डेयरी, प्याज़, बादाम और कुछ पशु उत्पादों को घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिये FTA से बाहर रखा गया है।

3. द्विपक्षीय व्यापार पर अपेक्षित प्रभाव क्या है?
इस FTA का लक्ष्य पाँच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार को 2.4 बिलियन USD से बढ़ाकर 5 बिलियन USD करना है, जिससे आर्थिक समेकन को बढ़ावा मिलेगा।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. ऑस्ट्रेलिया
  2.  कनाडा
  3.  चीन
  4.  भारत
  5.  जापान
  6.  यूएसए

उपर्युक्त में से कौन-से देश आसियान के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में शामिल हैं?

(a) 1, 2, 4 और 5
(b) 3, 4, 5 और 6
(c) 1, 3, 4 और 5
(d) 2, 3, 4 और 6

उत्तर: (c)


प्रश्न. 'रीज़नल काम्प्रिहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (Regional Comprehensive Economic Partnership)' पद प्रायः समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में आता है। देशों के उस समूह को क्या कहा जाता है? (2016)

(a) G- 20    
(b) आसियान
(c) एस.सी.ओ.
(d) सार्क

उत्तर: (b)


मेन्स 

प्रश्न. विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाज़ियों की हाल की परिघटनाएँ भारत की समष्टि-आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार से प्रभावित करेंगी? (2018)

प्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्याकंन कीजिये। (2016)


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