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भारतीय राजव्यवस्था

भारत में चुनावी सुधार: लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा

  • 15 Dec 2025
  • 136 min read

यह एडिटोरियल 10/12/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “A deep cleaning of India’s electoral rolls” शीर्षक वाले लेख पर आधारित है। लेख में यह उल्लेख किया गया है कि विशेष गहन संशोधन के माध्यम से चुनावी प्रक्रिया को सुदृढ़ करने के लिये किस प्रकार चुनावी सुधार किये जा रहे हैं।

प्रिलिम्स के लिये: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), भारत निर्वाचन आयोग (ECI), परिसीमन, मानहानि कानून और सांसदों की अयोग्यता, CEC की नियुक्ति 

मेन्स के लिये: भारत की चुनावी प्रक्रिया, विकास, सुधार और उपाय

भारत की चुनावी संरचना विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक इंजीनियरिंग उपलब्धियों में से एक है, जो संवैधानिक आदर्शों को जटिल संस्थागत संरचना के साथ जोड़ती है। सार्वभौमिक मताधिकार से लेकर स्वायत्त निर्वाचन आयोग तक, यह प्रणाली 96 करोड़ से अधिक मतदाताओं की इच्छा को वैध सत्ता में बदलने का प्रयास करती है। फिर भी, इस विशाल तंत्र के भीतर कानून, प्रौद्योगिकी और राजनीतिक व्यवहार का एक गतिशील अंतर्संबंध निहित है, जो लगातार चुनावों की निष्पक्षता की परीक्षा लेता है। दशकों से, मतदाता पहचान पत्र से लेकर VVPAT समर्थित पारदर्शिता तक के सुधारों ने जनता के विश्वास को सुदृढ़ किया है। 

भारत की चुनावी प्रक्रिया के लिये कौन-कौन से सुधार किये गए हैं?

  • 1950-1960 का दशक— नींव निर्माण चरण:
    • इस काल का प्रमुख उद्देश्य: मतदाता सूची बनाना, निर्वाचन क्षेत्रों का निर्माण करना और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के लिये मानदंड निर्धारित करना।
    • उठाए गए कदम
      • लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951
      • निर्वाचन आयोग की संरचना को औपचारिक रूप दिया गया: मुख्य चुनाव आयुक्त और फील्ड मशीनरी के पद स्थापित किये गए।
      • परिसीमन आयोग (1952, 1963): इसने निर्वाचन क्षेत्रों के असमान आवंटन को कम किया और निर्वाचन क्षेत्रों के आकार को एकसमान बनाया गया।
    • पहला आम चुनाव (1951-52)
      •  नवगठित ECI द्वारा संचालित; कम साक्षरता और विशाल लॉजिस्टिक्स व्यवस्था के बावजूद विश्वसनीयता स्थापित की।
  • 1970-1980 के दशक— सत्ता के दुरुपयोग को रोकना और शुचिता में सुधार करना:
    • इस काल का प्रमुख उद्देश्य: सत्ता के दुरुपयोग पर अंकुश लगाना, राजनीतिक अस्थिरता को कम करना, मतदाताओं की भागीदारी बढ़ाना और चुनावी निष्पक्षता को सुदृढ़ करना।
    • उठाए गए कदम 
      • चुनाव चिह्न अध्यादेश, 1968: दलों के विभाजन से उत्पन्न होने वाले विवादों को रोका गया। उदाहरण के लिये, काॅन्ग्रेस (O) और काॅन्ग्रेस (R)। 
      • दल-बदल विरोधी कानून (1985): विधायकों/सांसदों को व्यक्तिगत लाभ के लिये दल बदलने (हॉर्स ट्रेडिंग) से रोका; सरकारों को स्थिर किया, विशेषकर गठबंधन सरकारों को।
      • मतदान की आयु कम करना (61वाँ संशोधन, 1988): आयु को 21 से घटाकर 18 करके युवाओं की भागीदारी को बढ़ाया गया।
      • परिसीमन आयोग (1973): वर्ष 1971 की जनगणना के जनसंख्या परिवर्तनों के अनुरूप सीमाओं को समायोजित किया गया।
      • 42वाँ संवैधानिक संशोधन (1976): जनसंख्या नियंत्रण को प्रोत्साहित करने और सफल परिवार नियोजन वाले राज्यों को सीटें खोने से रोकने के लिये वर्ष 2001 की जनगणना के बाद तक निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन को स्थगित कर दिया गया।
  • 1990 का दशक— चुनावी सक्रियता और आधुनिकीकरण का चरण:
    • इस काल का प्रमुख जनादेश: चुनावों में पारदर्शिता लाना, धन/बल के प्रयोग को कम करना, पहचान सत्यापन को आधुनिक बनाना और निर्वाचन आयोग के अधिकार को सुदृढ़ करना।
    • उठाए गए कदम
      • टी.एन. शेषन के नेतृत्व में ECI की सक्रियता (1990-96): मतदाता फोटो पहचान पत्र पेश किये गए, MCC का सख्ती से प्रवर्तन; बूथ कैप्चरिंग और अवैध व्यय पर कार्रवाई।
      • राज्य निधि पर इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998): मान्यता प्राप्त पार्टियों के लिये आंशिक राज्य निधि की अनुशंसा की; पारदर्शिता पर ज़ोर दिया।
      • कॉमन कॉज़ बनाम भारत संघ (1996): सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि राजनीतिक दल विधिक रूप से आयकर रिटर्न दाखिल करने तथा अपने खातों का सटीक और विधिवत् संधारण करने के लिये बाध्य हैं। न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत भारत के निर्वाचन आयोग (ECI) की शक्तियों को स्पष्ट करते हुए यह भी निर्धारित किया कि निर्वाचन आयोग को चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा किये गये व्यय के खातों की जाँच-पड़ताल करने का अधिकार प्राप्त है।
      • दिनेश गोस्वामी की चुनावी सुधार समिति (1990): सरकारी विज्ञापनों पर अंकुश, व्यय नियंत्रण, जनमत सर्वेक्षण विनियमन आदि की अनुशंसाएँ।
  • 2000 का दशक— संरचनात्मक सुधार और तकनीकी विकास का चरण:
    • इस काल का प्रमुख जनादेश: निर्वाचन क्षेत्रों को अद्यतन करना, पारदर्शिता बढ़ाना, संस्थागत नियंत्रण को सुदृढ़ करना और प्रौद्योगिकी को एकीकृत करना।
    • उठाए गए कदम 
      • NCRWC (2000) अनुशंसाएँ: गंभीर आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों को प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव; स्थायी ECI सचिवालय का सुझाव दिया।
      • प्रकटीकरण सुधार: भारत संघ बनाम लोकतांत्रिक सुधार संघ (ADR, 2002) मामले में, फैसले में आपराधिक मामलों, शैक्षणिक योग्यता और संपत्ति का अनिवार्य प्रकटीकरण आवश्यक था।
      • परिसीमन आयोग (वर्ष 2002-08): वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर सीमाओं को अद्यतन किया गया; अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित सीटों को समायोजित किया।
      • EVM का अनिवार्य उपयोग (वर्ष 2004): इससे अमान्य मतों की समस्या समाप्त हुई तथा मतगणना की प्रक्रिया अधिक त्वरित हुई।
      • पेड न्यूज़ एवं व्यय निगरानी: धनबल पर अंकुश लगाने के लिये भारत निर्वाचन आयोग ने वास्तविक समय में व्यय निगरानी की व्यवस्था तथा मीडिया प्रमाणन से जुड़े नियम लागू किये।
  • 2010 का दशक— पारदर्शिता, प्रौद्योगिकी और जवाबदेही का चरण:
    • इस काल का प्रमुख उद्देश्य: मतदाताओं का विश्वास बढ़ाना, वित्तपोषण में पारदर्शिता लाना, सत्यापन को सुदृढ़ करना और राजनीतिक प्रक्रियाओं को निष्पक्ष बनाना।
    • उठाए गए कदम:
      • VVPAT की शुरुआत (वर्ष 2013; 2019 में सार्वभौमिक क्रियान्वयन): इसने मतदाताओं को अपने वोट को सत्यापित करने की अनुमति दी, जिससे विश्वास बढ़ा।
      • अयोग्यता: लिली थॉमस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8(4) को अमान्य घोषित कर दिया। इस प्रावधान के तहत दोषी विधायकों को अयोग्यता से पहले अपील करने के लिये तीन महीने की अवधि दी जाती थी, जिसके परिणामस्वरूप दो या अधिक वर्षों के लिये दोषी ठहराए जाने पर विधायकों को तुरंत अयोग्य घोषित कर दिया जाता था।
      • NOTA प्रावधान: मतदाताओं को मैदान में उतरे उम्मीदवारों के प्रति अपनी असहमति व्यक्त करने की अनुमति दी गई।
      • ERONet और NVSP (वर्ष 2015 के बाद से): मतदाता सत्यापन का डिजिटलीकरण, डुप्लिकेशन और फर्ज़ी प्रविष्टियों में कमी।
      • चुनावी बॉण्ड (वर्ष 2017): चंदे को औपचारिक रूप देने का प्रयास; बाद में पारदर्शिता की कमी के कारण वर्ष 2024 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द (ADR और अन्य बनाम भारत संघ का मामला) कर दिया गया।
      • सांसदों/विधायकों के लिये त्वरित न्यायालय: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों की विशेष रूप से सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना का निर्देश दिया।
      • दूरस्थ मतदान प्रस्ताव (वर्ष 2020 के बाद से): प्रवासी श्रमिकों के लिये प्रणालियाँ विकसित करना; अभी भी प्रायोगिक चरण में है।
      • एक राष्ट्र, एक चुनाव पर उच्च स्तरीय समिति (2023-24): संवैधानिक और विधिक संशोधनों के साथ एक साथ चुनावों के चरणबद्ध कार्यान्वयन की अनुशंसा की।
      • ECI आधुनिकीकरण: GPS-सक्षम EVM ट्रैकिंग, डिजिटल नामांकन प्रपत्र, दिव्यांगजनों और वरिष्ठ नागरिकों के लिये समावेशी सेवाएँ।
      • CEC और अन्य EC (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम 2024: चयन समिति के माध्यम से CEC और अन्य EC के चयन एवं नियुक्ति की प्रक्रिया निर्धारित की गई। 

भारत की चुनावी प्रणाली में अभी भी कौन-कौन सी प्रमुख चुनौतियाँ मौजूद हैं?

  • राजनीति का अपराधीकरण: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों का विधायी क्षेत्र में प्रवेश एक गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है, जो ‘बाहुबल’ के सुदृढ़ होने का संकेत देता है।
    • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के अनुसार, 47% मंत्रियों (केंद्रीय और राज्य मंत्रिमंडलों) ने अपने खिलाफ आपराधिक मामलों की घोषणा की है।
    • इनमें से 27% लोगों पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं, जो कानून बनाने वाली संस्थाओं की शुचिता को क्षीण करते हैं।
  • अनियंत्रित धनशक्ति और वित्तीय अपारदर्शिता: भारत में चुनाव लगातार महंगे होते जा रहे हैं, जिससे एक असमान प्रतिस्पर्द्धा का माहौल बन रहा है।
    • व्यय में भारी वृद्धि: सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज़ (CMS) ने वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के लिये कुल खर्च का अनुमान ₹1,00,000 करोड़ लगाया है, जो वर्ष 2019 की तुलना में लगभग दोगुना है।
    • नियामक खामी: जहाँ एक ओर भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) उम्मीदवारों के खर्च पर सीमा लगाता है, वहीं राजनीतिक दलों द्वारा खर्च पर कोई सीमा नहीं है, जिससे छोटे क्षेत्रीय दलों को असमान रूप से नुकसान होता है।
    • अनुपालन की कमी: कई पार्टियाँ व्यय विवरण प्रस्तुत करने में विलंब (विलंब चुनाव के बाद 1 से 232 दिनों तक रहा) करती हैं और कुछ पार्टियाँ वर्ष 2024 के आम चुनावों के बाद बिल्कुल भी रिपोर्ट करने में विफल रहीं।
  • प्रवासियों का अपवर्जन और मताधिकार से वंचित होना: मौजूदा चुनावी संरचना में लचीलेपन की कमी है, जिसके कारण आंतरिक प्रवासियों का व्यवस्थित अपवर्जन होता है।
    • सख्त पंजीकरण प्रक्रिया: मतदाता पंजीकरण ‘सामान्य निवास’ से जुड़ा हुआ है। प्रवासी श्रमिक प्रायः अपने मूल निर्वाचन क्षेत्रों में पंजीकृत रहते हैं, लेकिन लागत, दूरी और रोज़गार के नुकसान के कारण मतदान करने के लिये घर नहीं जा सकते।
    • दूरस्थ मतदान का अभाव: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (1950 और 1951) में आम तौर पर व्यक्तिगत रूप से मतदान अनिवार्य किया गया है। कोविड-19 के दौरान डाक मतपत्रों के सफल प्रायोगिक प्रयासों के बावजूद, इन प्रणालियों को आम प्रवासी आबादी के लिये बड़े पैमाने पर लागू नहीं किया गया है।
    • मतदाता सूची से नाम हटाना: बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान, लगभग 35 लाख मतदाता (मतदाताओं का 4.4%), जिनमें अधिकतर प्रवासी थे, मतदाता सूची से हटा दिये गए। 
  • तकनीकी व्यवधान और हेर-फेर: अनियंत्रित डिजिटल हस्तक्षेप से मतदाता की स्वतंत्र इच्छा की सत्यनिष्ठा खतरे में है।
    • सूक्ष्म-लक्ष्यीकरण: मतदाता विभाजन के लिये डेटा एनालिटिक्स और AI के उभरते उपयोग से चिंताएँ बढ़ रही हैं, जो कैम्ब्रिज एनालिटिका जैसे वैश्विक मामलों के साथ समानताएँ दर्शाती हैं।
    • गलत सूचना: सोशल मीडिया पर डीपफेक और फर्ज़ी खबरों का प्रसार जनता की धारणा एवं मतदाताओं के व्यवहार को विकृत करता है।
  • संरचनात्मक और संघीय चुनौतियाँ: 
    • परिसीमन पर रोक: परिसीमन पर रोक (वर्ष 2026 तक) ने प्रतिनिधित्व में असंतुलन उत्पन्न कर दिया है। दक्षिणी राज्य, जिन्होंने अपनी जनसंख्या को सफलतापूर्वक नियंत्रित किया है, जनसंख्या के लिहाज से अधिक आबादी वाले उत्तरी राज्यों की तुलना में राजनीतिक शक्ति में घटते हिस्से का सामना कर रहे हैं।
      • जनसंख्या के आधार पर परिसीमन को वर्ष 2026 के बाद आयोजित होने वाली पहली जनगणना तक स्थगित रखा गया है।
      • जनगणना में विलंब होने के कारण, परिसीमन प्रभावी रूप से वर्ष 2026 के बाद के लिये स्थगित हो गया है।
    • कमज़ोर आंतरिक लोकतंत्र: राजनीतिक दलों में प्रायः पारदर्शी आंतरिक चुनावों का अभाव होता है। नेतृत्व का चयन केंद्रीकृत होता है, जिससे दलीय लोकतंत्र केवल प्रतीकात्मक रह जाता है तथा ज़मीनी स्तर पर निराशा का कारण बनता है।
    • तंत्र का दुरुपयोग: सत्ताधारी सरकारें प्रायः मतदाताओं को प्रभावित करने के लिये सार्वजनिक संसाधनों, प्रशासन तंत्र और विज्ञापनों का उपयोग करती हैं तथा प्रायः आदर्श आचार संहिता (MCC) का उल्लंघन करती हैं।
  • भागीदारी में स्थिरता:
    • मतदाता उदासीनता: निर्वाचन आयोग के आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि लगभग 27-33% लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में, राष्ट्रीय स्तर पर कुल मतदान में वृद्धि के बावजूद, वर्ष 2024 में डाले गए वोटों की कुल संख्या वर्ष 2019 की तुलना में कम थी।

भारत की चुनावी प्रणाली में किन सुधारों की आवश्यकता है?

  • धन के प्रभाव को कम करना और पारदर्शिता सुनिश्चित करना 
    • राज्य द्वारा वित्त पोषण (इंद्रजीत गुप्ता समिति, 1998): समान अवसर प्रदान करने के लिये मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य दलों के लिये आंशिक राज्य वित्त पोषण शुरू किया जाना चाहिये।
    • लेखापरीक्षा एवं प्रकटीकरण (विधि आयोग, 2015): सभी डोनेशन (आकार की परवाह किये बिना) के प्रकटीकरण को अनिवार्य किया जाना चाहिये और पार्टी खातों की सख्त स्वतंत्र लेखापरीक्षा लागू की जानी चाहिये।
    • चुनावोत्तर बॉण्ड (2024 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद): अब रद्द की गई चुनावी बॉण्ड योजना के स्थान पर एक पूरी तरह से पारदर्शी दान तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
  • राजनीति का अपराधीकरण समाप्त करना
    • बार परीक्षा के उम्मीदवारों (NCRWC, 2002 और विधि आयोग, 2015): उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिये यदि अदालत द्वारा गंभीर अपराधों के लिये आरोप तय किये गए हों, न कि अंतिम दोषसिद्धि की प्रतीक्षा (जिसमें अक्सर दशकों लग जाते हैं) की जाए।
    • त्वरित न्यायालय: मौजूदा सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिये।
    • ECI का प्रस्ताव: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन करके जघन्य अपराधों के लिये आरोप तय होने पर अयोग्यता को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
  • ECI की स्वतंत्रता को सुदृढ़ करना
    • स्वायत्तता (गोस्वामी समिति, 1990 और 255वें विधि आयोग की रिपोर्ट): सरकार पर निर्भरता कम करने के लिये निर्वाचन आयोग का एक स्वतंत्र बजट (भारत की संचित निधि से प्रभारित) और एक स्थायी स्वतंत्र सचिवालय होना चाहिये।
  • राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र
    • संरचनात्मक सुधार (NCRWC): नियमित आंतरिक चुनाव अनिवार्य किया जाना चाहिये और सदस्यता के पारदर्शी रिकॉर्ड बनाए रखना चाहिये। 
    • पंजीकरण रद्द करने की शक्तियाँ (विधि आयोग): लोकतांत्रिक मानदंडों या वित्तीय नियमों का उल्लंघन करने वाली पार्टियों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति ECI को प्रदान की जानी चाहिये।
  • डिजिटल मैनीपुलेशन का मुकाबला करना
    • डिजिटल अभियान संहिता: विनियमन हेतु एक विशिष्ट संहिता तैयार करना:
      • कृत्रिम बुद्धिमत्ता द्वारा निर्मित डीपफेक और कृत्रिम मीडिया।
      • जाति/धर्म के आधार पर मतदाताओं का एल्गोरिदम आधारित सूक्ष्म-लक्ष्यीकरण।
      • भुगतानित राजनीतिक सामग्री और ‘शैडो’ विज्ञापन।
    • सहयोग: ECI को दुष्प्रचार की वास्तविक काल में निगरानी और उसे हटाने के लिये तकनीकी प्लेटफॉर्मों के साथ साझेदारी करनी चाहिये।
  • मतदाताओं की अभिगम्यता और प्रवासियों का समावेश
    • दूरस्थ मतदान: आंतरिक प्रवासियों को उनके कार्य-स्थल से ही अपने गृह निर्वाचन क्षेत्रों के लिये मतदान की सुविधा प्रदान करने हेतु दूरस्थ इलेक्ट्रॉनिक मतदान मशीनों (RVM) का चरणबद्ध क्रियान्वयन करने से पूर्व पायलट परियोजनाओं के माध्यम से उनका परीक्षण और मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
    • स्वच्छ मतदाता सूचियाँ: निर्वाचन नामावलियों के विशेष गहन संशोधन (SIR) की प्रक्रिया को सतर्क और पारदर्शी बनाया जाना चाहिये, ताकि प्रवासी मतदाताओं के नामों की गलत या मनमानी कटौती को रोका जा सके।
  • परिसीमन का युक्तिकरण
    • संघीय संतुलन: वर्ष 2026 के बाद की परिसीमन प्रक्रिया में ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ के सिद्धांत को संतुलित करना चाहिये, साथ ही उन दक्षिणी राज्यों के राजनीतिक महत्त्व की रक्षा करनी चाहिये जिन्होंने जनसंख्या नियंत्रण उपायों को प्रभावी ढंग से लागू किया है।
  • आदर्श आचार संहिता (MCC) को सुदृढ़ करें
    • विधिक समर्थन (गोस्वामी समिति): लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) में संशोधन करके MCC (या इसके कुछ हिस्सों) को कानूनी रूप से लागू करने योग्य बनाया जाना चाहिये।
    • कठोर दंड: चुनावों के दौरान नफरत फैलाने वाले भाषण, सांप्रदायिक अपील और चुनावों के दौरान सरकारी तंत्र के दुरुपयोग के लिये वैधानिक दंड लागू किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष: 

भारत की चुनावी संरचना विश्व की सबसे व्यापक एवं विश्वसनीय प्रणालियों में से एक है, फिर भी धन बल, अपराधीकरण, डिजिटल मैनीपुलेशन और कमज़ोर आंतरिक दलीय लोकतंत्र जैसी लगातार चुनौतियाँ लोकतांत्रिक मूल्यों के लिये खतरा बनी हुई हैं। कानूनों का आधुनिकीकरण करने, संस्थानों को सुदृढ़ करने और स्वच्छ एवं पारदर्शी प्रक्रियाओं को लागू करने के लिये एक व्यापक सुधार दृष्टिकोण आवश्यक है। विभिन्न समितियों की सिफारिशों और सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों को लागू करने से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष, सहभागी हों तथा वास्तव में जनता की इच्छा को प्रतिबिंबित करें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न 

 1950 के दशक से भारत के चुनावी सुधारों के विकास का विश्लेषण कीजिये। संस्थागत, विधिक और तकनीकी परिवर्तनों ने चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को किस प्रकार प्रभावित किया है?

 

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न 

प्रश्न 1. भारत में 18 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार कौन सुनिश्चित करता है? 
यह गारंटी अनुच्छेद 326 द्वारा दी जाती है, जो सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार का प्रावधान करता है।

प्रश्न 2. निर्वाचन आयोग चुनावों में निष्पक्षता किस प्रकार सुनिश्चित करता है? 
यह आदर्श आचार संहिता को लागू करता है, चुनावी व्यय की निगरानी करता है और संपूर्ण निर्वाचन प्रक्रिया की स्वतंत्र रूप से देखरेख करता है।

प्रश्न 3. जन प्रतिनिधित्व अधिनियमों का मुख्य उद्देश्य क्या है? 
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 (RPA) चुनाव-पूर्व की आधारभूत व्यवस्थाओं का प्रबंधन करता है, जबकि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, वर्ष 1951 चुनावों के संचालन और विनियमन को नियंत्रित करता है

प्रश्न 4. चुनावी प्रणाली में VVPAT क्यों शामिल किया गया? 
VVPAT को पारदर्शिता बढ़ाने के उद्देश्य से अपनाया गया, ताकि मतदाता अपने दिये गये मत का सत्यापन कर सकें।

प्रश्न 5. भारत को अपनी चुनावी प्रणाली में अभी भी किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है? 
प्रमुख चुनौतियों में धनशक्ति, राजनीति का अपराधीकरण और डिजिटल मैनीपुलेशन शामिल हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1.निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017) 

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच-सदस्यीय निकाय है।
  2. संघ का गृह मंत्रालय, आम चुनाव और उप-चुनावों दोनों के लिए चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
  3. निर्वाचन आयोग मान्यता-प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 2

(e) केवल 2 और 3

(d) केवल 3 

उत्तर: (d)  


मेन्स 

प्रश्न 1. आदर्श आचार-संहिता के उद्भव के आलोक में, भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका का विवेचन कीजिये। (2022)

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