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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-इथियोपिया संबंध

प्रिलिम्स के लिये: G20, हॉर्न ऑफ अफ्रीका, अफ्रीकी संघ, इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस (IBCA), आपदा रोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI)

मेन्स के लिये: भारत-अफ्रीका संबंध और भारत की विदेश नीति में इथियोपिया की भूमिका, भारत की कूटनीति में रणनीतिक साझेदारियों का महत्त्व 

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जॉर्डन, इथियोपिया और ओमान की तीन-राष्ट्रीय यात्रा ने मध्य पूर्व तथा हॉर्न ऑफ अफ्रीका में भारत के रणनीतिक प्रभाव को मज़बूत करने के लिये भारत की कोशिश को रेखांकित किया। यात्रा के इथियोपिया चरण के दौरान, भारत–इथियोपिया संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक उन्नत किया गया, जो द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण उन्नयन का प्रतिनिधित्व करता है।

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इथियोपिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, द ग्रेट ऑनर निशान ऑफ इथियोपिया (The Great Honor Nishan of Ethiopia) प्रदान किया गया।

सारांश

  • भारत–इथियोपिया संबंधों ने रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक संबंधों को उन्नत करने के साथ एक नए रणनीतिक चरण में प्रवेश किया, जिससे व्यापार, निवेश, ऊर्जा और बहुपक्षीय मंचों में सहयोग मज़बूत हुआ।
  • इथियोपिया का रणनीतिक स्थान, अफ्रीकी संघ (AU) और BRICS में सदस्यता, साथ ही इसकी तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था, इसे भारत के अफ्रीका तथा ग्लोबल साउथ के साथ सहभागिता में एक महत्त्वपूर्ण साझेदार बनाती है, हालाँकि लॉजिस्टिक्स व क्षेत्रीय अस्थिरता जैसी चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं।

प्रधानमंत्री की इथियोपिया यात्रा के प्रमुख परिणाम क्या हैं?

  • समझौते और संस्थागत तंत्र: दोनों पक्षों ने आठ समझौते और MoU पर हस्ताक्षर किये, जिनमें इथियोपिया के विदेश मंत्रालय में डेटा सेंटर की स्थापना तथा G20 कॉमन फ्रेमवर्क के तहत इथियोपिया के कर्ज पुनर्गठन के लिये समझौते शामिल हैं।
    • विदेश कार्यालय परामर्श और संयुक्त व्यापार समिति जैसी मौजूदा संस्थागत प्रक्रियाओं को भी सुदृढ़ किया गया।
  • आर्थिक और निवेश संबंधी परिणाम: भारत ने उल्लेख किया कि भारतीय कंपनियों ने इथियोपिया में 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है, विशेष रूप से विनिर्माण और फार्मास्यूटिकल्स में, जिससे 75,000 से अधिक स्थानीय रोज़गार सृजित हुए।
  • वैश्विक मुद्दे: भारत ने पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद इथियोपिया की एकजुटता और वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ इसके समर्थन को भी सराहा।
  • संसदीय और जन-संपर्क सहभागिता: भारत के प्रधानमंत्री ने इथियोपियाई संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया, जिससे लोकतांत्रिक सहभागिता और जन-संपर्क संबंधों को बल मिला।

भारत-इथियोपिया संबंध कैसे हैं?

  • ऐतिहासिक आधार: भारत-इथियोपिया संबंध अक्सुमी साम्राज्य (पहली शताब्दी ईस्वी) से चले आ रहे हैं, जब भारतीय व्यापारी प्राचीन अडुलिस बंदरगाह के माध्यम से सोने और हाथी के दांत के बदले रेशम और मसालों का आदान-प्रदान करते थे। 
    • 16वीं शताब्दी में गोवा से आए भारतीयों ने पुर्तगालियों के साथ मिलकर इथियोपिया के राजा का समर्थन किया। बाद में भारतीय सैनिक ब्रिटिश सेनाओं का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बने, जिन्होंने इटली के इथियोपिया पर कब्ज़े (1936–41) का अंत किया।
    • भारत और इथियोपिया ने वर्ष 1950 में राजनयिक संबंधों की स्थापना की, जो समय के साथ विस्तृत और बहुआयामी साझेदारी में परिवर्तित हो गए हैं।
  • आर्थिक और व्यापारिक संबंध: भारत इथियोपिया का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
    • वित्त वर्ष 2024–25 में भारत–इथियोपिया का द्विपक्षीय व्यापार 550.19 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जिसमें भारतीय निर्यात 476.81 मिलियन अमेरिकी डॉलर तथा आयात 73.38 मिलियन अमेरिकी डॉलर का था। इससे स्पष्ट है कि यह व्यापारिक संबंध भारत के पक्ष में निर्यात-केंद्रित है।
    • इथियोपिया को अल्पविकसित देशों के लिये भारत की ड्यूटी-फ्री टैरिफ प्रेफरेंस (DFTP) योजना का भी लाभ मिलता है।
  • शिक्षा और मानव पूंजी के बीच संबंध: भारत ने ऐतिहासिक रूप से इथियोपिया की शिक्षा प्रणाली को आकार दिया है, जिसे अब भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की छात्रवृत्तियों, भारतीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग कार्यक्रम तथा अफ्रीकी विद्यार्थियों के लिये एक प्रमुख गंतव्य के रूप में भारत की भूमिका के माध्यम से और अधिक सशक्त किया गया है। 
    • इथियोपिया ने भारत के पैन-अफ्रीकन ई-नेटवर्क हेतु एक पायलट देश के रूप में कार्य किया, जिससे IIT दिल्ली जैसे संस्थानों के साथ टेली-शिक्षा और टेली-मेडिसिन की सुविधा संभव हो सकी और यह अफ्रीका में भारत की डिजिटल सार्वजनिक कूटनीति का एक प्रारंभिक उदाहरण है।
  • भारतीय समुदाय: इथियोपिया में भारतीय समुदाय की उपस्थिति उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से मानी जाती है, जिसमें गुजरात से आए आरंभिक प्रवासी शामिल हैं। वर्तमान में लगभग 2,500 भारतीय वहाँ निवास करते हैं, जो शिक्षा तथा उद्योग जैसे क्षेत्रों में योगदान दे रहे हैं।

भारत के लिये इथियोपिया का महत्त्व 

  • अफ्रीका में रणनीतिक साझेदार: इथियोपिया भारत के लिये एक प्रमुख राजनीतिक और विकास साझेदार है तथा हॉर्न ऑफ अफ्रीका के केंद्र में अवस्थित होने के कारण अफ्रीका का प्रवेश द्वार है।
  • वैश्विक दक्षिण और बहुपक्षीय प्रभाव: ब्रिक्स के सदस्य एवं अफ्रीकी संघ और अफ्रीका के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग (United Nations Economic Commission for Africa- UNECA) के मेज़बान के रूप में, इथियोपिया संयुक्त राष्ट्र, G20 और ब्रिक्स में ग्लोबल साउथ के मुद्दों पर भारत की भागीदारी में वृद्धि करता है।
  • आर्थिक अवसर: इथियोपिया का विशाल बाज़ार, बढ़ता विनिर्माण आधार और भारतीय निर्यात की मज़बूत मांग इसे एक महत्त्वपूर्ण व्यापार व निवेश गंतव्य के रूप में स्थापित करती है।
  • ऊर्जा और स्थिरता: इथियोपिया की जलविद्युत और नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता भारत के स्वच्छ ऊर्जा तथा जलवायु लक्ष्यों के अनुरूप है।

इथियोपिया

  • अवस्थिति : यह हॉर्न ऑफ अफ्रीका में स्थित एक स्थलरुद्ध देश है, जो मुख्य रूप से पूर्वी अफ्रीका में अवस्थित है, इसकी राजधानी अदीस अबाबा (Addis Ababa) है।
    • इथियोपिया की सीमाएँ उत्तर में इरिट्रिया, उत्तर-पूर्व में जिबूती, पूर्व में सोमालिया, दक्षिण में केन्या, पश्चिम में दक्षिण सूडान तथा उत्तर-पश्चिम में सूडान से लगती हैं।
  • भौगोलिक संरचना: दुर्गम इथियोपियाई उच्चभूमि (जहाँ माउंट रास देजेन देश की सबसे ऊँची चोटी है), ग्रेट रिफ्ट वैली, प्रमुख नदी प्रणालियाँ - जिनमें ब्लू नाइल (अबाय), टेक़ेज़े और बारो नदियाँ शामिल हैं तथा पृथ्वी के सबसे गर्म और निम्नतम क्षेत्रों में से एक दनाकिल गर्त/दनाकिल डिप्रेशन, इसकी प्रमुख भौगोलिक विशेषताएँ हैं।

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भारत-इथियोपिया संबंधों में चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं?

भारत–इथियोपिया संबंधों में चुनौतियाँ

  • लॉजिस्टिक्स बाधाएँ: इथियोपिया की भू-आवेष्टित (लैंडलॉक्ड) भौगोलिक स्थिति परिवहन लागत और पड़ोसी पारगमन मार्गों पर निर्भरता बढ़ाती है।
  • राजनीतिक और सुरक्षा अस्थिरता: आवधिक आंतरिक संघर्ष और हॉर्न ऑफ अफ्रीका की भू-राजनीतिक तनाव (सूडान संकट और लाल सागर असुरक्षा सहित) देश जोखिम धारणाओं को बढ़ाते हैं, जो दीर्घकालिक राजनीतिक स्थिरता और इथियोपिया में भारतीय निवेश एवं संलग्नता के लिये चुनौतियाँ पेश करते हैं।
  • विनियामक अंतराल: इथियोपिया का बाज़ार-उन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण प्रक्रियात्मक देरी, अस्पष्ट निजीकरण नियमों, प्रतिबंधित निजी क्षेत्र पहुँच और नियामक अस्थिरता का सामना करता है, जिससे व्यवसाय करने में आसानी कमज़ोर होती है।

भारत-इथियोपिया संबंधों में अवसर

  • रणनीतिक साझेदारी को गहरा करना: उन्नत साझेदारी व्यापार से परे सहयोग को रक्षा, डिजिटल शासन और विकास वित्तपोषण में विस्तारित करने के लिये एक ढाँचा प्रदान करती है।
  • विनिर्माण और औद्योगिक सहयोग: इथियोपिया का बड़ा घरेलू बाज़ार, युवा कार्यबल और औद्योगिक पार्क भारतीय विनिर्माण, वस्त्र, फार्मास्यूटिकल्स और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) में मज़बूती के साथ अच्छी तरह से संरेखित हैं, जो मूल्य-शृंखला एकीकरण को सक्षम बनाते हैं।
  • नवीकरणीय ऊर्जा सहयोग: इथियोपिया का मज़बूत जलविद्युत आधार और नवीकरणीय क्षमता स्वच्छ ऊर्जा, ग्रिड विकास और जलवायु-प्रतिरोधी अवसंरचना में संयुक्त परियोजनाओं के लिये अवसर प्रदान करती है।
  • बहुपक्षीय समन्वय: अफ्रीकी संघ, संयुक्त राष्ट्र, G20 और ब्रिक्स में संयुक्त संलग्नता वैश्विक दक्षिण की प्राथमिकताओं को बढ़ावा दे सकती है और वैश्विक शासन सुधारों में सामूहिक प्रभाव को मज़बूत कर सकती है।

निष्कर्ष

भारत-इथियोपिया संबंध ऐतिहासिक संबंधों और बढ़ते आर्थिक सहयोग पर आधारित एक नए रणनीतिक चरण में प्रवेश कर चुके हैं। यह रणनीतिक साझेदारी व्यापार, ऊर्जा और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग को सशक्त बनाती है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. हाल ही में उन्नत की गई रणनीतिक साझेदारी के संदर्भ में, भारत की अफ्रीका नीति में इथियोपिया के रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

1. भारत की विदेश नीति के लिये इथियोपिया क्यों महत्त्वपूर्ण है?
इथियोपिया एक प्रमुख अफ्रीकी भागीदार है, अफ्रीकी संघ का मेज़बान है, एक ब्रिक्स सदस्य है और अफ्रीका का प्रवेश द्वार है, जो भारत की वैश्विक दक्षिण पहुँच को मज़बूत करता है।

2. भारत के प्रधानमंत्री की इथियोपिया यात्रा का प्रमुख कूटनीतिक परिणाम क्या था?
भारत-इथियोपिया संबंधों को रणनीतिक साझेदारी में उन्नत किया गया और आठ समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये गए, जिनमें एक डेटा केंद्र और G20 ढाँचे के तहत ऋण पुनर्गठन शामिल हैं।

3. भारत-इथियोपिया आर्थिक संबंध कितने मज़बूत हैं?
वित्तीय वर्ष 2024–25 में द्विपक्षीय व्यापार 550.19 मिलियन अमरीकी डॉलर रहा, जिसमें भारत इथियोपिया का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और एक प्रमुख निवेशक है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

मेन्स

प्रश्न.'उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में, भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण, उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घ काल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है।' विस्तार से समझाइये। (2019)


भारतीय राजव्यवस्था

भारत में संसदीय विशेषाधिकार

प्रिलिम्स के लिये: संसदीय विशेषाधिकार, विकसित भारत- रोज़गार और आजीविका के लिये गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025, संसद, अनुच्छेद 105, अनुच्छेद 122, अनुच्छेद 194, अनुच्छेद 212, संसद सदस्य (सांसद), 44वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1978

मेन्स के लिये: संसदीय विशेषाधिकारों से संबंधित प्रमुख प्रावधान, विशेषाधिकार का उल्लंघन। संसदीय विशेषाधिकारों से संबंधित चिंताएँ और उस पर न्यायिक रुख। संसदीय विशेषाधिकारों में सुधार की आगे की राह।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

लोकसभा अध्यक्ष विकसित भारत- रोज़गार और आजीविका के लिये गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 पर बहस के दौरान कथित अव्यवस्थित आचरण पर संसदीय विशेषाधिकार उल्लंघन और सदन की अवमानना के आरोपों पर प्राप्त सूचना की जाँच कर रहे हैं।

  • नोटिस में इन कार्यों को सदन की उपस्थिति में कदाचार, अध्यक्ष के प्राधिकार की अवहेलना और सदन के अधिकारियों के कार्य में बाधा के रूप में उद्धृत किया गया है, जो सांसदों के विशेषाधिकारों का सामूहिक उल्लंघन माना जाता है।

सारांश 

  • संसदीय विशेषाधिकार विधायी स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं, जिसमें वाक-स्वातंत्र्य, गिरफ्तारी से प्रतिरक्षा और कार्यवाही को विनियमित करने का प्राधिकार शामिल है।
  • विशेषाधिकार का उल्लंघन और अवमानना भिन्न है, जिनका नोटिस, जाँच और दंड की प्रक्रियाएँ संसदीय नियमों द्वारा परिभाषित हैं।
  • चुनौतियों में दुरुपयोग, अधिकारों के साथ संघर्ष और पारदर्शिता की कमी शामिल है; सुधार वैधानिक ढाँचे, नैतिकता प्रवर्तन और मौलिक अधिकारों के साथ समन्वय का सुझाव देते हैं।

संसदीय विशेषाधिकार क्या हैं?

  • परिचय: संसदीय विशेषाधिकार वे विशेष अधिकार, प्रतिरक्षा और छूट हैं जो संसद के प्रत्येक सदन, इसकी समितियों और इसके सदस्यों को प्राप्त हैं।
  • उद्देश्य: ये संसदीय कार्यों के प्रभावी निर्वहन के लिये आवश्यक हैं और अन्य निकायों या व्यक्तियों के पास मौजूद अधिकारों से अधिक होते हैं।
  • विशेषाधिकारों के प्रकार:
    • सामूहिक विशेषाधिकार: सदन को सामूहिक रूप से प्राप्त अधिकार (जैसे, कार्यवाही को विनियमित करने का अधिकार, अवमानना के लिये दंडित करने का अधिकार, अजनबियों को बाहर रखने का अधिकार)।
    • व्यक्तिगत विशेषाधिकार: सदस्यों के अधिकार (जैसे, संसद में वाक-स्वातंत्र्य, सिविल मामलों में गिरफ्तारी से छूट)।
  • संसदीय विशेषाधिकारों के स्रोत:
    • संवैधानिक आधार: अनुच्छेद 105, अनुच्छेद 122, अनुच्छेद 194 और अनुच्छेद 212 संसद सदस्यों (सांसदों) और विधान सभा सदस्यों (विधायकों) को विभिन्न प्रकार के विशेषाधिकार प्रदान करते हैं।
    • वैधानिक आधार: अनुच्छेद 105(3) के अनुसार, जब तक संसद कानून द्वारा परिभाषित नहीं किया जाता, तब तक विशेषाधिकार 1950 की ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के विशेषाधिकार होंगे। कोई व्यापक कानून अधिनियमित नहीं किया गया है, इसलिये ब्रिटिश मिसालों की भूमिका अब भी प्रमुख बनी हुई है।
    • संसदीय परंपराएँ: ब्रिटिश संसदीय प्रथाओं पर आधारित।
    • संसदीय प्रक्रिया: कार्य संचालन और व्यवसाय नियम (लोकसभा और राज्यसभा)।
    • न्यायिक व्याख्याएँ: सर्चलाइट केस, 1958, JMM रिश्वत मामला, 1998, आदि।
  • विशेषाधिकार का उल्लंघन: विशेषाधिकार का उल्लंघन तब होता है जब किसी व्यक्तिगत या सामूहिक संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन या अवहेलना की जाती है।
  • विशेषाधिकार प्रस्ताव: यह किसी मंत्री द्वारा संसदीय विशेषाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित है। इसे एक सदस्य द्वारा तब लाया जाता है जब उसे लगता है कि किसी मंत्री ने किसी मामले के तथ्यों को छिपाकर या गलत या विकृत तथ्य देकर सदन या उसके एक या अधिक सदस्यों के विशेषाधिकारों का उल्लंघन किया है। इसका उद्देश्य संबंधित मंत्री की निंदा करना है।
    • एक विशेषाधिकार नोटिस एक सांसद द्वारा कथित संसदीय विशेषाधिकार भंग के लिये किसी अन्य सदस्य या बाहरी संस्था के विरुद्ध दायर एक औपचारिक शिकायत है, उदाहरण के लिये, सांसदों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियाँ।
  • विशेषाधिकार समिति: इस समिति के कार्य अर्द्ध-न्यायिक प्रकृति के होते हैं। यह सदन और उसके सदस्यों के विशेषाधिकार के उल्लंघन के मामलों की जाँच करती है और उचित कार्रवाई की सिफारिश करती है। लोकसभा समिति में 15 सदस्य होते हैं, जबकि राज्यसभा समिति में 10 सदस्य होते हैं।

सदन की अवमानना (CoH)

  • सदन की अवमानना (CoH) विशेषाधिकार के उल्लंघन की तुलना में एक व्यापक अवधारणा है।
    • यह किसी भी ऐसे कार्य या चूक को संदर्भित करती है जो संसद के किसी भी सदन, उसके सदस्यों या उसके अधिकारियों के कार्यों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बाधित या अवरुद्ध करती है या सदन के प्राधिकार को कम करती है।
    • सभी विशेषाधिकार के उल्लंघन (BoP) सदन की अवमानना के अंतर्गत आते हैं, लेकिन सदन की अवमानना किसी विशिष्ट विशेषाधिकार के के उल्लंघन के बिना भी हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये, किसी समिति के समक्ष उपस्थित होने के आदेश की अवहेलना करना या किसी सदस्य की उनकी आधिकारिक क्षमता में अपमानजनक टिप्पणियाँ प्रकाशित करना सदन की अवमानना का गठन कर सकता है।

सांसदों को प्राप्त संसदीय विशेषाधिकार क्या हैं?

  • व्यक्तिगत विशेषाधिकार: व्यक्तिगत विशेषाधिकार वे अधिकार व संरक्षण हैं जो सांसदों तथा राज्य विधायकों को दिये जाते हैं, ताकि वे स्वतंत्र रूप से और बिना किसी बाधा के अपने कर्त्तव्यों का पालन कर सकें। मुख्य विशेषाधिकार निम्नलिखित हैं:
    • वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: सांसदों को संसद में 'वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विशेषाधिकार है, जो संविधान के अनुच्छेद 105(1) से संबंधित है।
    • कानूनी कार्यवाही से सुरक्षा: सांसद संसद या उसकी समितियों में दिये गए भाषण या डाले गए मत के लिये कानूनी कार्रवाई का सामना नहीं कर सकते (अनुच्छेद 105(2))
    • अनुमोदित प्रकाशनों के लिये सुरक्षा: संसद द्वारा अधिकृत किसी भी रिपोर्ट, पत्र, मत या कार्यवाही के प्रकाशन के लिये कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती (अनुच्छेद 105(2))
    • न्यायिक जाँच से छूट: अनुच्छेद 122(1) के तहत न्यायालयों को कथित प्रक्रिया संबंधी अनियमितताओं के आधार पर संसदीय कार्यवाहियों की वैधता की जाँच करने से रोका गया है।
    • गिरफ्तारी से स्वतंत्रता: सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 135A के अनुसार, संसद सदस्यों को संसदीय सत्र के दौरान तथा सत्र शुरू होने से 40 दिन पहले और समाप्ति के 40 दिन बाद तक, दीवानी मामलों में गिरफ्तारी से छूट प्राप्त होती है।
    • जूरी सेवा से छूट: सांसदों को जूरी सेवा से छूट प्राप्त है। जब संसद सत्र में हो, वे किसी मामले में गवाही देने या गवाह के रूप में पेश होने से इनकार कर सकते हैं।
  • सामूहिक विशेषाधिकार: यह उन सामूहिक अधिकारों व संरक्षणों को दर्शाता है जो भारतीय संसद और राज्य विधायिकाओं को, साथ ही उनके सदस्यों व अधिकारियों को उनके कार्य संचालन तथा अधिकारों की सुरक्षा के लिये प्रदान किये जाते हैं। प्रमुख विशेषाधिकार हैं:
    • प्रकाशन अधिकार: संसद को अपनी रिपोर्ट, बहस और कार्यवाहियों को प्रकाशित करने का विशेष अधिकार प्राप्त है। 44वें संशोधन अधिनियम, 1978 के तहत प्रेस को इन कार्यवाहियों की सही रिपोर्ट बिना पूर्व अनुमोदन के प्रकाशित करने की अनुमति है, सिवाय गोपनीय बैठकों के दौरान।
    • गोपनीय बैठकों का अधिकार: संसद महत्त्वपूर्ण मामलों पर विचार-विमर्श के लिये अनजान व्यक्तियों को बाहर रखकर गोपनीय बैठकें कर सकती है।
    • नियम बनाने और अनुशासनात्मक अधिकार: संसद अपने स्वयं के कार्यविधि नियम स्थापित कर सकती है और कार्य संचालन कर सकती है। इसके अलावा, विशेषाधिकार के उल्लंघन या अपमान के लिये यह सदस्यों या बाहरी व्यक्तियों को फटकार, कारावास, निलंबन या निष्कासन जैसे उपायों के माध्यम से दंडित करने का अधिकार भी रखती है।
    • सूचना का अधिकार: किसी भी सदस्य की गिरफ्तारी, हिरासत, दोषसिद्धि, कारावास या रिहाई के बारे में विधानमंडल को तुरंत सूचित किया जाना चाहिये।
    • जाँच और समन अधिकार: संसद के पास जाँच कराने, गवाहों को पेश करने का आदेश देना और संबंधित दस्तावेज़ों तथा अभिलेखों की मांग करने का अधिकार है।

विशेषाधिकार उल्लंघन की शिकायत को सँभालने की प्रक्रिया

  • सूचना (Notice): कोई सदस्य अध्यक्ष (स्पीकर/चेयरमैन) को लिखित सूचना देता है।
  • अनुमति (Consent): अध्यक्ष इसकी जाँच करते हैं और सदन में इसे उठाने की अनुमति देने या अस्वीकार करने का निर्णय ले सकते हैं।
  • सदन की अनुमति (Leave of the House): यदि अनुमति दी जाती है तो सदस्य मुद्दा उठाने के लिये ‘सदन की अनुमति’ मांगता है। यदि 25 सदस्य इसका समर्थन करते हैं तो अनुमति प्रदान की जाती है।
  • कार्रवाई (Action): सदन स्वयं मामले का निपटारा कर सकता है या इसे विशेषाधिकार समिति को जाँच और रिपोर्ट के लिये भेज सकता है, जो सामान्य प्रथा है।
  • सजा (Punishment): सदन के निर्णय के आधार पर दोषी को निम्नलिखित दंड दिये जा सकते हैं:
    • कारावास (सदन के सत्रावसान तक)।
    • संसद के सदन में फटकारा गया या चेतावनी दी गई।
    • निलंबित या निष्कासित (यदि अपराधी सदस्य है)।

संसदीय विशेषाधिकारों के संबंध में प्रमुख न्यायिक निर्णय क्या हैं?

  • पंडित एम.एस.एम. शर्मा बनाम श्री श्रीकृष्ण सिन्हा, 1958 (सर्चलाइट केस): सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 194(3) के तहत विधायी विशेषाधिकार अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रभावी होंगे यदि दोनों में टकराव हो। इससे राज्य विधायिकाओं को उनके कार्यवाहियों के प्रकाशन को नियंत्रित करने की अनुमति मिलती है, जैसा कि ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में होता है।
  • पी.वी. नरसिम्हा राव बनाम राज्य, 1998 (JMM रिश्वतखोरी केस): SC ने यह निर्णय दिया कि यदि किसी विधायक ने रिश्वत समझौते के तहत सदन में मतदान किया या भाषण दिया तो उन्हें उस भ्रष्टाचार के लिये अभियुक्त नहीं ठहराया जा सकता।
  • राज्य केरल बनाम के. अजित और अन्य, 2021: SC ने स्पष्ट किया कि संसदीय विशेषाधिकार और सुरक्षा संरक्षण सदस्यों को सामान्य कानूनों से छूट नहीं देते, जिनमें सभी नागरिकों पर लागू होने वाले आपराधिक कानून शामिल हैं।
  • सीता सोरेन बनाम भारत संघ, 2024: एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में SC ने वर्ष 1998 के पी.वी. नरसिम्हा राव मामले में अपने पुराने निर्णय को उलट दिया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संवैधानिक सुरक्षा रिश्वतखोरी तक लागू नहीं होती और रिश्वत लेना एक विशिष्ट आपराधिक अपराध है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को भ्रष्ट करता है और विधायक के संरक्षित कर्त्तव्यों के दायरे में नहीं आता।

विशेषाधिकारों से जुड़े मुख्य मुद्दे और बहस क्या हैं?

  • कोडिफिकेशन पर बहस: लंबे समय से यह बहस चल रही है कि क्या विशेषाधिकारों को एक एकल कानून में संहिताबद्ध किया जाना चाहिये। ऐसा करने से उनके दायरे को स्पष्ट किया जा सकता है, लेकिन निरंतर समितियों ने कोडिफिकेशन के खिलाफ सिफारिश की है (जैसे, लोकसभा की विशेषाधिकार समिति 2008), क्योंकि उन्हें भय है कि इससे सदन की नई प्रकार की अवमानना से निपटने की अंतर्निहित क्षमता सीमित हो सकती है।
  • अन्य अधिकारों के साथ तनाव: गलत रिपोर्टिंग के लिये दंडित करने की विधायिका की शक्ति और प्रेस की संवैधानिक स्वतंत्रता के बीच लगातार तनाव बना रहता है।
  • लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ टकराव: कुछ विशेषाधिकार, जैसे कि गिरफ्तारी से छूट, विधि के समक्ष समानता के मूलभूत सिद्धांत के साथ टकराव उत्पन्न करते हैं। 
  • दुरुपयोग और विश्वास के क्षरण का जोखिम: विशेषाधिकारों का कभी-कभी कानूनी जवाबदेही से बचने या प्रतिरक्षा की आड़ में भड़काऊ, निराधार बयान देने के लिये दुरुपयोग किया जाता है।
    • अपर्याप्त नियामक तंत्र इस जोखिम को बढ़ा देते हैं, जिससे जनता का विश्वास कम होता है और विशेषाधिकार प्रस्तावों का उपयोग विधायी गरिमा को बनाए रखने के बजाय राजनीतिक प्रतिशोध के लिये किया जाने लगता है।
  • अपारदर्शिता और निगरानी का अभाव: विशेषाधिकारों का अक्सर गैर-पारदर्शी प्रक्रियाओं के माध्यम से उपयोग किया जाता है, जिससे सार्वजनिक जाँच गंभीर रूप से सीमित हो जाती है तथा विधायिका में विश्वास कम हो जाता है। 

संसदीय विशेषाधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रथाएँ

  • यूनाइटेड किंगडम: विशेषाधिकार, जिनमें बोलने की स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से छूट और स्वनियमन शामिल हैं, कानूनों, सामान्य कानून और पूर्व उदाहरणों से प्राप्त होते हैं।
  • कनाडा: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से छूट और उल्लंघन पर अधिकार जैसे विशेषाधिकार संविधान अधिनियम, 1867 और कनाडा की संसद अधिनियम, 1985 में परिभाषित हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया: संविधान में ब्रिटेन और कनाडा के समान विशेषाधिकार निहित हैं, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से प्रतिरक्षा और कार्यवाही को विनियमित करने के अधिकार की गारंटी देते हैं।

भारत में संसदीय विशेषाधिकारों में सुधार हेतु कौन-कौन से सुधार किये जा सकते हैं?

  • संतुलित वैधानिक ढाँचा: कठोर संहिताकरण के बजाय, एक व्यापक वैधानिक ढाँचे में मुख्य विशेषाधिकारों को परिभाषित किया जाना चाहिये और उनके उपयोग हेतु स्पष्ट सिद्धांत निर्धारित किये जाने चाहिये। इसमें प्रमुख न्यायिक निर्णयों को शामिल किया जाएगा और सीमाएँ निर्धारित की जाऍंगी, साथ ही संसद को अपनी प्रक्रियाओं के माध्यम से अवमानना ​​के नए रूपों से निपटने के लिये विवेकाधिकार भी सुरक्षित रखा जाएगा।
  • विशेषाधिकार मामलों के लिये पारदर्शी प्रक्रियाएँ: विशेषाधिकार उल्लंघन से जुड़ी शिकायतों के समाधान के लिये नोटिस जारी करने से लेकर अंतिम निर्णय तक स्पष्ट, मानकीकृत और सार्वजनिक रूप से सुलभ प्रक्रियाएँ विकसित की जाएँ, ताकि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों—जैसे सुनवाई का अधिकार और प्रतिनिधित्व का अधिकार—का पूर्ण रूप से पालन सुनिश्चित हो सके।
  • आंतरिक नैतिकता को मज़बूत करना: सदस्यों के लिये आचार संहिता को मज़बूत करना और इसे विशेषाधिकारों के ज़िम्मेदार उपयोग, विशेष रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में स्पष्ट रूप शामिल किया जाए।
    • नीतिशास्त्र समितियों को अधिक सशक्त किया जाए ताकि वे विशेषाधिकार संबंधी दावों के सार्वजनिक हित या नैतिक मानकों से टकराने की स्थिति में सदस्यों को सक्रिय रूप से मार्गदर्शन और परामर्श दे सकें, जिससे संयम और उत्तरदायित्व की संस्कृति को प्रोत्साहन मिल सके।
  • विशेषाधिकार-मौलिक अधिकार के बीच अंतर स्पष्ट करना: प्रक्रिया नियमों में सर्वोच्च न्यायालय के सामंजस्यपूर्ण व्याख्या के सिद्धांत का औपचारिक रूप से समर्थन करना, जो सदनों को अपने विशेषाधिकारों की व्याख्या इस तरह से करने के लिये मार्गदर्शन करता है जो भाषण की स्वतंत्रता और विधि के समक्ष समानता जैसे संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकारों का सम्मान करता है।

निष्कर्ष:

संसदीय विशेषाधिकार विधायी स्वायत्तता के लिये आवश्यक हैं, लेकिन स्वतंत्रता और उत्तरदायित्व के बीच संतुलन बनाए रखने के लिये उनका ज़िम्मेदार उपयोग अनिवार्य है। हालिया विशेषाधिकार उल्लंघन नोटिस स्पष्ट, पारदर्शी प्रक्रियाओं और नैतिक आत्म-नियमन की आवश्यकता को रेखांकित करता है, ताकि संस्था के प्रति जनविश्वास बना रह सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: संसदीय विशेषाधिकार विधायी स्वतंत्रता के लिये आवश्यक होने के बावजूद प्रायः लोकतांत्रिक मूल्यों और मौलिक अधिकारों से टकराते हैं। इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. संसदीय विशेषाधिकार क्या हैं? 
संसद, राज्य विधानमंडलों और उनके सदस्यों को प्राप्त विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ और छूटें, जो स्वतंत्र और प्रभावी कामकाज सुनिश्चित करने के लिये प्रदान की जाती हैं।

2. संविधान के कौन-से अनुच्छेद संसदीय विशेषाधिकारों का प्रावधान करते हैं? 
अनुच्छेद 105, 122, 194 और 212 सांसदों और विधायकों के विशेषाधिकारों से संबंधित हैं।

3. विशेषाधिकार के हनन और सदन की अवमानना ​​में क्या अंतर है? 
विशेषाधिकार का हनन तब होता है जब किसी विशिष्ट विशेषाधिकार का उल्लंघन किया जाता है, अवमानना ​​में सदन के कामकाज में बाधा डालना या उसके अधिकार को कम करना शामिल है, भले ही इसमें किसी परिभाषित विशेषाधिकार का उल्लंघन न किया गया हो।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में, साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है/हैं?  (2017)

सेवा प्रदाता (सर्विस प्रोवाइडर) 

डेटा सेंटर 

कॉर्पोरेट निकाय (बॉडी कॉर्पोरेट)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1

(b) केवल 1 और 2

(c) केवल 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न. भारत के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन से सिद्धांत संसदीय सरकार में संस्थागत रूप से निहित है/हैं?

1. मंत्रिमंडल के सदस्य संसद के सदस्य होते हैं।

2. मंत्री तब तक पद पर रहते हैं जब तक वे संसद के लिये उपयोगी पात्र होते हैं।

3. मंत्रिमंडल का मुखिया राज्य प्रमुख होता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 3

(c) केवल 2 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न. संसद और उसके सदस्यों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ (इम्यूनिटीज़), जैसे कि वे संविधान की धारा 105 में परिकल्पित हैं, अनेकों असंहिताबद्ध (अन-कोडिफाइड) और अ-परिगणित विशेषाधिकारों के जारी रहने का स्थान खाली छोड़ देती हैं। संसदीय विशेषाधिकारों के विधिक संहिताकरण की अनुपस्थिति के कारणों का आकलन कीजिये। इस समस्या का क्या समाधान निकाला जा सकता है? (2014)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भू-राजनीतिक परिवर्तनों के दौर में ब्रिक्स

प्रिलिम्स के लिये: ब्रिक्स, अमेज़न वर्षावन, संयुक्त राष्ट्र, IMF, क्रय शक्ति समता, न्यू डेवलपमेंट बैंक, आकस्मिक आरक्षित व्यवस्था (CRA), WTO, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, विश्व बैंक, स्विफ्ट, महत्त्वपूर्ण खनिज, अफ्रीकी संघ, आसियान, शांति स्थापना।     

मेन्स के लिये: ब्रिक्स से संबंधित प्रमुख तथ्य और समकालीन समय में इसकी प्रासंगिकता। ब्रिक्स से जुड़ी चुनौतियाँ और ब्रिक्स को मज़बूत करने का मार्ग।

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों?

ब्राज़ील ने ब्रिक्स की अध्यक्षता ग्रहण करते समय भारत को अमेज़न वर्षावन की रीसायकल की गई लकड़ी से बना एक गैवल भेंट में दिया, जो सतत विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

  •  ब्राज़ील का मानना है कि आज जब विश्व में बहुपक्षीय प्रणालियों पर अविश्वास बढ़ रहा है तब ब्रिक्स अपने संवाद और सहयोग के एक विश्वसनीय मंच के रूप में अपनी भूमिका को और मज़बूती से निभा रहा है।

सारांश

  • बहुपक्षवाद में बढ़ते अविश्वास के बीच ब्राज़ील ने ब्रिक्स की अध्यक्षता भारत को सौंप दी है।
  • ब्रिक्स समूह, जिसमें मिस्र और यूएई जैसे देशों को भी शामिल किया गया है, NDB जैसी संस्थाओं और अनाज विनिमय जैसी पहलों के माध्यम से बहुध्रुवीयता को बढ़ावा देता है। 
  • वैश्विक अविश्वास के बीच इसकी भूमिका बढ़ रही है, लेकिन आंतरिक विभाजन और आर्थिक विषमता इसकी प्रभावशीलता को चुनौती देते हैं, जिसके लिये मज़बूत संस्थागत और रणनीतिक समन्वय की आवश्यकता है।

ब्रिक्स क्या है?

  • परिचय: ब्रिक्स प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं का एक सहयोगी अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने और अपने सदस्यों के वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को बढ़ाने के लिये की गई है।
    • यह संक्षिप्त नाम मूल रूप से ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन के लिये था, जिसमें दक्षिण अफ्रीका वर्ष 2010 में बाद में शामिल हुआ।
  • मुख्य उद्देश्य: इसके प्रमुख उद्देश्यों में सदस्य देशों के बीच व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना, संयुक्त राष्ट्र और IMF जैसे वैश्विक शासन संस्थानों में सुधार करना और डॉलर पर निर्भरता को कम करने के लिये वैकल्पिक वित्तीय प्रणालियों की स्थापना करना शामिल है।
    • इसका उद्देश्य पश्चिमी प्रभाव को संतुलित करना और अधिक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत करना है।
  • स्थापना और विकास: ब्रिक शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अर्थशास्त्री जिम ओ'नील ने 2001 में किया था। इस समूह ने 2006 के G-8 आउटरीच शिखर सम्मेलन में औपचारिक सहयोग शुरू किया और वर्ष 2009 में रूस में अपना पहला आधिकारिक शिखर सम्मेलन आयोजित किया।
  • सदस्यता का विस्तार: वर्ष 2024 में मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात के शामिल होने से समूह का विस्तार हुआ। इंडोनेशिया 2025 में शामिल हुआ। 
    • सऊदी अरब ने सदस्यता स्वीकार कर ली है लेकिन अभी तक इसे औपचारिक रूप नहीं दिया है, जबकि अर्जेंटीना ने प्रारंभिक विचार-विमर्श के बाद सदस्यता से बाहर रहने का विकल्प चुना है।
    • वर्ष 2024 में ब्रिक्स ने पार्टनर कंट्री का दर्जा शुरू किया, जिसे प्रारंभ में बेलारूस, बोलीविया, क्यूबा, कज़ाखस्तान, मलेशिया, नाइजीरिया, थाईलैंड, युगांडा और उज़्बेकिस्तान को प्रदान किया गया। इस व्यवस्था के तहत ये देश पूर्ण सदस्यता के बिना ही शिखर सम्मेलनों में भाग ले सकते हैं।
  • शेरपा प्रणाली: ब्रिक्स शेरपा नामित नेता होते हैं, जो ब्रिक्स ब्लॉक के भीतर अपने देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा ब्रिक्स देशों के बीच संचार के प्राथमिक चैनल के रूप में कार्य करते हैं।
    • वर्तमान में ब्रिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व शेरपा के रूप में सुधाकर दलेला कर रहे हैं।
  • न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB): NDB एक बहुपक्षीय विकास बैंक है जिसकी स्थापना वर्ष 2015 में ब्रिक्स देशों द्वारा उभरते बाज़ारों और विकासशील देशों (EMDC) में बुनियादी ढाँचे और सतत विकास परियोजनाओं के लिये संसाधन जुटाने के लिये की गई थी। 
  • संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों के लिये इसकी सदस्यता खुली है, जिसके तहत बांग्लादेश (2021), संयुक्त अरब अमीरात (2021), मिस्र (2023) और अल्जीरिया (2025) नए सदस्यों के रूप में शामिल हुए हैं।
  • न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की प्रारंभिक अधिकृत पूंजी 100 अरब अमेरिकी डॉलर निर्धारित की गई है। ब्रिक्स के पाँचों संस्थापक सदस्यों के पास समान मतदान हिस्सेदारी है, स्थापना के समय प्रत्येक के पास 20% पूंजी थी तथा नए सदस्यों के शामिल होने पर भी उन्हें संस्था के मतदान अधिकारों का कम-से-कम 55% हिस्सा बरकरार रखने की गारंटी प्राप्त है।
  • महत्त्व: ब्रिक्स विश्व की लगभग 45% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है तथा वैश्विक GDP का 37.3% हिस्सा (क्रय शक्ति समता के संदर्भ में) रखता है, जो सामूहिक रूप से G7 (29.3%) की आर्थिक हिस्सेदारी से अधिक है। 
  • प्रमुख पहल: प्रमुख पहलों में न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB, 2014), कंटिंजेंट रिज़र्व अरेंजमेंट (CRA), ब्रिक्स ग्रेन एक्सचेंज और विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI) फ्रेमवर्क प्रोग्राम (2015) शामिल हैं।

बहुपक्षीय संस्थानों के प्रति बढ़ते अविश्वास के इस युग में ब्रिक्स ने अपनी प्रासंगिकता किस प्रकार बढ़ाई है?

  • बहुपक्षीय गतिरोध के लिये व्यावहारिक प्रतिक्रिया: विश्व व्यापार संगठन (WTO) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गतिरोध के बीच ब्रिक्स ने खाद्य सुरक्षा (ब्रिक्स अनाज विनिमय), डिजिटल शासन (ब्रिक्स रैपिड सूचना सुरक्षा चैनल), प्रौद्योगिकी साझाकरण (STI फ्रेमवर्क), कोविड-19 के दौरान वैक्सीन की समानता और NDB के माध्यम से जलवायु वित्त में कार्यात्मक सहयोग के माध्यम से अपनी प्रासंगिकता को बढ़ाया है।
  • प्रतिनिधित्व में वृद्धि: इंडोनेशिया के शामिल होने और ब्रिक्स भागीदार-देश मॉडल के साथ इस समूह ने वैश्विक दक्षिण में अपनी उपस्थिति का विस्तार किया है, जिससे सीमित क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व की आलोचनाओं का खंडन करते हुए संस्थागत अनुकूलता को बनाए रखा जा सके।
  • भौतिक, आर्थिक और ऊर्जा महत्त्व: वैश्विक जनसंख्या के लगभग 45% और विश्व GDP (PPP) के 35% से अधिक का प्रतिनिधित्व करने वाला ब्रिक्स, ईरान, यूएई और (संभावित रूप से) सऊदी अरब जैसे ऊर्जा-समृद्ध सदस्यों के समर्थन से वैश्विक विकास विमर्श, ऊर्जा बाज़ारों और मूल्य निर्धारण नीतियों पर अपना प्रभाव लगातार बढ़ा रहा है।
  • पश्चिम-नेतृत्व वाले ढाँचों के संस्थागत विकल्प: न्यू डेवलपमेंट बैंक और CRA IMF-केंद्रित शर्तों से बाहर विकास, जलवायु तथा तरलता समर्थन प्रदान करते हैं, जिससे BRICS एक परामर्शात्मक मंच से आगे बढ़कर समाधान-केंद्रित, विश्वसनीय संस्थागत प्लेटफॉर्म के रूप में विकसित हो रहा है।
  • बहुध्रुवीय विमर्श और कूटनीतिक अनुकूलनशीलता: कोविड-19 और यूक्रेन युद्ध जैसे संकटों के दौरान संवाद बनाए रखते हुए, स्वयं को अधिक न्यायसंगत बहुध्रुवीय व्यवस्था के समर्थक के रूप में स्थापित करके BRICS उन ग्लोबल साउथ देशों के साथ सामंजस्य स्थापित करता है, जो भू-राजनीतिक ध्रुवीकरण के बीच रणनीतिक स्वायत्तता तथा गैर-संरेखित कूटनीतिक क्षेत्र की तलाश में हैं।

BRICS के प्रभावी कार्यकरण में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

चुनौती क्षेत्र

                                        विवरण 

भू-राजनीतिक और रणनीतिक मतभेद

  • सदस्य देशों के रणनीतिक हितों में टकराव है (जैसे भारत–चीन सीमा विवाद, भारत–अमेरिका संबंध बनाम रूस–चीन गठजोड़), जिससे सुरक्षा, व्यापार और वैश्विक शासन सुधारों पर सहमति बनाना जटिल हो जाता है।
  • चीन, भारत और रूस ग्लोबल साउथ के नेतृत्व को लेकर आंशिक रूप से भिन्न तथा परस्पर प्रतिस्पर्द्धी दृष्टिकोण रखते हैं, जिसके कारण BRICS के एजेंडा, प्रतिनिधित्व और भविष्य की दिशा को लेकर सूक्ष्म स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा दिखाई देती है।
  • BRICS में लोकतंत्र, मानवाधिकार और शासन पर आम सहमति का अभाव है, जिससे यह पश्चिमी संस्थानों के वास्तविक विकल्प के रूप में सीमित रह जाता है।

बाह्य दबाव और राजनीतिक दबाव

  • BRICS को विशेष रूप से डी-डॉलरीकरण के प्रयासों को लेकर अमेरिका जैसे देशों से प्रत्यक्ष बाह्य दबाव का सामना करना पड़ता है। दंडात्मक परिणामों, शुल्क और सदस्यों के गठबंधनों की आलोचना संबंधी चेतावनियाँ दर्शाती हैं कि BRICS में भागीदारी भू-राजनीतिक दबाव को आकर्षित करती है, जिससे पश्चिमी संबंधों के साथ समझौते करने पड़ते हैं।
  • डी-डॉलरीकरण की अवधारणाएँ मज़बूत हैं, लेकिन व्यावहारिक विकल्प (साझा भुगतान प्रणालियाँ, आरक्षित मुद्राएँ) अभी भी विखंडित हैं और बाज़ारों का पर्याप्त विश्वास हासिल नहीं कर पाई हैं।

आर्थिक असमानता

  • चीन BRICS के कुल GDP का लगभग 70% योगदान देता है, जिससे प्रभाव, निर्णय-निर्माण और संसाधन योगदान में असंतुलन उत्पन्न होता है तथा समानता के बजाय वर्चस्व की धारणा बनती है।

संस्थागत अविकसितता

  • NDB और CRA जैसी प्रमुख संस्थाएँ IMF तथा विश्व बैंक की तुलना में पैमाने एवं संचालन क्षमता में सीमित बनी हुई हैं।

विस्तार–सामंजस्य का द्वंद्व

  • वर्ष 2024 के बाद हुए विस्तार (मिस्र, इथियोपिया, ईरान, यूएई, इंडोनेशिया) से फोकस के कमज़ोर पड़ने, उप-गुटों के बनने और विविध प्राथमिकताओं के कारण निर्णय-निर्माण की गति धीमी होने का जोखिम है।
  • BRICS के पास सामूहिक सुरक्षा ढाँचे का अभाव है, जिससे कठोर सुरक्षा मुद्दों और संकट प्रबंधन पर इसकी विश्वसनीयता सीमित रहती है।

BRICS अपनी प्रभावशीलता और रणनीतिक प्रभाव को मज़बूत करने के लिये कौन-से कदम उठा सकता है?

  • संस्थागत और वित्तीय सुदृढ़ीकरण: BRICS को एकीकृत डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म (जैसे ब्रिक्स पे) को कार्यान्वित करना चाहिये, न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) के माध्यम से स्थानीय मुद्राओं में ऋण देने का विस्तार करना चाहिये तथा हरित ऊर्जा और रणनीतिक क्षेत्रों के लिये समर्पित कोष स्थापित करने चाहिये, ताकि स्विफ्ट, अमेरिकी डॉलर और IMF-केंद्रित वित्तीय चैनलों पर निर्भरता कम की जा सके।
  • व्यापार एकीकरण और आपूर्ति-शृंखला स्थिरीकरण: शुल्क युक्तिकरण, मानकों की पारस्परिक मान्यता और निर्बाध लॉजिस्टिक्स पर आधारित एक BRICS साझा बाज़ार ढाँचा, साथ ही BRICS अनाज विनिमय के क्रियान्वयन से खाद्य आपूर्ति को स्थिर किया जा सकेगा तथा औषधि एवं खनिज जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में व्यापार को सुदृढ़ किया जा सकेगा।
  • समन्वित कूटनीति और ग्लोबल साउथ के साथ समन्वय: वैश्विक शासन सुधारों पर BRICS के साझा और संस्थागत रुख को औपचारिक रूप प्रदान करना, क्षेत्रीय संघर्षों (जैसे सूडान, हैती) के लिये संकट-कूटनीति तंत्र विकसित करना तथा अफ्रीकी संघ एवं  आसियान जैसे समूहों के साथ BRICS+ संवाद को संस्थागत बनाना, दक्षिण–दक्षिण सहयोग और BRICS के कूटनीतिक प्रभाव को और मज़बूत करेगा।
  • नीति क्रियान्वयन के लिये स्थायी संस्थागत ढाँचा: एक सशक्त, तकनीकज्ञ-नेतृत्व वाले BRICS सचिवालय की स्थापना से घूर्णनशील अध्यक्षताओं के बावजूद नीतिगत निरंतरता सुनिश्चित होगी, क्रियान्वयन की निगरानी हो सकेगी और शिखर सम्मेलनों की घोषणाओं को मापनीय परिणामों में बदला जा सकेगा, जिससे समूह की कार्यान्वयन-कमी को दूर किया जा सकेगा।
  • संरक्षण एवं  मूल्य-शृंखला शक्ति के माध्यम से रणनीतिक स्वायत्तता: सामूहिक कानूनी एवं वित्तीय सुरक्षा तंत्र (जैसे संयुक्त परिसंपत्ति-संरक्षण कोष) को परिष्करण, प्रसंस्करण, लॉजिस्टिक्स और मानक-निर्धारण जैसे मूल्य-शृंखला खंडों में समन्वित निवेश के साथ जोड़ने से प्रतिबंधों के प्रति अनुकूलन बढ़ेगा तथा BRICS को केवल व्यापार समन्वय से आगे बढ़ाकर संरचनात्मक आर्थिक शक्ति के स्तर तक ले जाया जा सकेगा।

निष्कर्ष:

BRICS बहुध्रुवीयता की पैरवी करने वाला एक महत्त्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है, जो अपनी आर्थिक क्षमता और संस्थागत नवाचार का प्रभावी उपयोग करता है। इसकी भविष्य की प्रासंगिकता आंतरिक असमानताओं और बाह्य दबावों को पार करते हुए ग्लोबल साउथ के लिये ठोस तथा परिणामोन्मुख सहयोग प्रदान करने पर निर्भर करेगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. पारंपरिक पश्चिम-प्रभुत्व वाले बहुपक्षीय संस्थानों के प्रतिरोधक के रूप में BRICS की भूमिका की समालोचनात्मक समीक्षा कीजिये। इसकी प्रमुख उपलब्धियाँ और सीमाएँ क्या हैं?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. BRICS क्या है?
BRICS उभरती अर्थव्यवस्थाओं ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका का एक सहयोगात्मक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका उद्देश्य आर्थिक सहयोग और वैश्विक प्रभाव को बढ़ाना है।

2. वर्ष 2024–2025 में BRICS में किन देशों ने प्रवेश किया?
मिस्र, इथियोपिया, ईरान, यूएई और इंडोनेशिया ने BRICS में प्रवेश किया, जिससे BRICS+ के तहत समूह की पहुँच बढ़ी तथा सऊदी अरब की सदस्यता लंबित है।

3. BRICS के प्रमुख वित्तीय संस्थान कौन-कौन से हैं?
न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और कंटिन्जेंट रिज़र्व अरेंजमेंट (CRA) IMF/विश्व बैंक के विकल्प प्रदान करते हैं, स्थानीय मुद्रा में व्यापार तथा वित्तीय स्वायत्तता को बढ़ावा देते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रिलिम्स 

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना APEC द्वारा की गई है।
  2.  न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई में है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (b) 


प्रश्न. हाल ही में चर्चा में रहा 'फोर्टालेजा डिक्लेरेशन' किससे संबंधित है? (2015) 

(a) आसियान
(b) ब्रिक्स
(c) ओईसीडी
(d) विश्व व्यापार संगठन

उत्तर: (b)


प्रश्न. BRICS के रूप में ज्ञात देशों के समूह के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. BRICS का पहला शिखर सम्मेलन वर्ष 2009 में रिओ डी जेनेरियो में हुआ था।
  2.  दक्षिण अफ्रीका BRICS समूह में शामिल होने वाला अंतिम देश था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


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