अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत की रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिये ब्रिक्स का उपयोग
- 11 Sep 2025
- 106 min read
प्रिलिम्स के लिये: न्यू डेवलपमेंट बैंक, ब्रिक्स, अमेरिकी टैरिफ वृद्धि, स्विफ्ट, क्रय शक्ति समता, क्वाड
मेन्स के लिये: भू-आर्थिक संकट से भारत को बचाने में ब्रिक्स की क्या क्षमता है, ब्रिक्स में भारत की गहरी भागीदारी के रास्ते में प्रमुख बाधाएँ क्या हैं।
स्रोत: IE
चर्चा में क्यों?
वर्चुअल ब्रिक्स नेताओं के शिखर सम्मेलन में, भारत के विदेश मंत्री ने अमेरिकी टैरिफ वृद्धि की पृष्ठभूमि में व्यापार उपायों को राजनीतिक या गैर-व्यापारिक मुद्दों से जोड़ने के प्रति आगाह किया।
- वैश्विक संघर्षों, जलवायु परिवर्तनों और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के बीच निष्पक्ष, पारदर्शी और अनुकूल व्यापार प्रणालियों के महत्त्व पर भी ज़ोर दिया गया है।
ब्रिक्स क्या है?
- ब्रिक्स एक सहकारी अंतर-सरकारी संगठन है, जो उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का समूह है। इसका गठन मूल रूप से आर्थिक सहयोग को बढ़ाने और अपने सदस्य देशों के वैश्विक राजनीतिक एवं आर्थिक प्रभाव को मज़बूत करने के उद्देश्य से किया गया था।
- ब्रिक्स (BRICS) नाम इसके पाँच संस्थापक देशों: ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का संक्षिप्त रूप है।
- आधार: "ब्रिक (BRIC)" शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 2001 में जिम ओ'नील द्वारा ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन की तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं का वर्णन करने के लिये किया गया था।.
- चारों देशों का पहला औपचारिक शिखर सम्मेलन 2009 में रूस में हुआ था, जहाँ उन्होंने आधिकारिक तौर पर एक राजनयिक क्लब का गठन किया था।
- दक्षिण अफ्रीका को वर्ष 2010 में इसमें शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया, जिसके परिणामस्वरूप समूह का नाम बदलकर ब्रिक्स कर दिया गया।
- उद्देश्य:
- आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना: इसमें सदस्य देशों के बीच व्यापार, निवेश और वित्तीय संबंधों को बढ़ाना शामिल है।
- पश्चिमी प्रभाव का प्रतिकार: यह समूह संयुक्त राष्ट्र, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी वैश्विक शासन संस्थाओं में सुधारों का समर्थन करके एक अधिक समतापूर्ण और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था बनाने का प्रयास करता है।
- वैकल्पिक वित्तीय प्रणालियाँ स्थापित करना: अमेरिकी डॉलर और पश्चिमी प्रभुत्व वाली संस्थाओं पर निर्भरता कम करने के लिये, ब्रिक्स देशों ने न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (CRA) की स्थापना की।
- ब्रिक्स का विस्तार: ब्रिक्स ने अपनी सदस्यता का विस्तार करते हुए मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को शामिल किया है। इस विकास को अक्सर “ब्रिक्स+” कहा जाता है।
भू-आर्थिक संकटों से भारत को बचाने में ब्रिक्स की क्या क्षमता है?
- वैकल्पिक वित्तीय संरचना: ब्रिक्स भारत को IMF और विश्व बैंक जैसे पश्चिमी प्रभुत्व वाले संस्थानों के बाहर वित्तीय संसाधनों तक पहुँच प्रदान करता है।
- NDB ने भारत में 28 प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये लगभग 10 बिलियन अमरीकी डालर के ऋण को मंजूरी प्रदान की है, जिसमें चेन्नई, इंदौर और मुंबई मेट्रो सिस्टम, दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ क्षेत्रीय रैपिड ट्रांज़िट सिस्टम और नमो भारत हाई-स्पीड ट्रेनें शामिल हैं।
- ऐसा वित्तपोषण भारत को उस समय मदद करता है जब वैश्विक ऋण संकट उत्पन्न होता है या जब पश्चिमी एजेंसियाँ शर्तें लागू करती हैं।
- इससे ब्रेटन वुड्स संस्थाओं के साथ संवाद में भारत की सौदेबाजी की शक्ति भी बढ़ेगी।
- ऊर्जा सुरक्षा और विविधीकृत आपूर्ति: इस समूह में रूस और ब्राज़ील जैसे प्रमुख ऊर्जा निर्यातक तथा भारत और चीन जैसे बड़े उपभोक्ता शामिल हैं, जिससे यह ऊर्जा सहयोग के लिये एक स्वाभाविक मंच बन जाता है।
- भारत, जो अपनी कच्चे तेल की ज़रूरतों का 80% से अधिक आयात करता है, को यूक्रेन संकट के बाद लाभ हुआ जब रूस एक प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता के रूप में उभरा।
- रियायती दामों पर रूसी तेल की उपलब्धता ने भारत को मुद्रास्फीति और व्यापार घाटे को नियंत्रित करने में मदद की है।
- ब्रिक्स में “ऊर्जा गठबंधन” पर होने वाली चर्चाएँ आगे चलकर स्थिर आपूर्ति और पूर्वानुमानित कीमतों का वादा करती हैं।
- स्थानीय मुद्रा व्यापार और डि-डॉलराइजेशन: स्थानीय मुद्राओं में लेन-देन को बढ़ावा देकर, ब्रिक्स भारत को डॉलर की अस्थिरता और प्रतिबंधों के जोखिम से बचाव प्रदान करता है।
- ब्रिक्स रिज़र्व मुद्रा और रुपया-रूबल व्यापार जैसी द्विपक्षीय व्यवस्थाओं की दिशा में प्रयास महत्त्वपूर्ण कदम हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत और रूस ने 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 बिलियन डॉलर तक बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की, जिसमें पश्चिमी प्रतिबंधों से बचने के लिये राष्ट्रीय मुद्राओं का उपयोग भी शामिल है।
- इससे भारत की अमेरिकी मौद्रिक सख्ती या स्विफ्ट जैसी वैश्विक भुगतान प्रणालियों में प्रतिबंधों से प्रेरित व्यवधान जैसे बाहरी झटकों के प्रति संवेदनशीलता कम हो जाती है।
- वैश्विक मंदी के बीच बाज़ार तक पहुँच: जब पश्चिमी अर्थव्यवस्थाएँ धीमी हो जाती हैं या व्यापार बाधाएँ उत्पन्न होती हैं, तो विस्तारित ब्रिक्स बाज़ार भारत के लिये एक सहारा के रूप में कार्य करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2024 में क्रय शक्ति समता के आधार पर ब्रिक्स का योगदान वैश्विक अर्थव्यवस्था में 40% रहा।
- भारत के औषधि निर्यात, कृषि उत्पाद तथा IT सेवाओं की इस समूह में स्थिर मांग बनी रह सकती है।
- इस प्रकार, ब्रिक्स पारंपरिक पश्चिमी बाज़ारों में मांग संबंधी झटकों के विरुद्ध एक संरक्षण प्रदान करता है।
- प्रौद्योगिकी और डिजिटल सहयोग: भू-आर्थिक झटके अक्सर प्रौद्योगिकी प्रतिबंधों के रूप में सामने आते हैं, जैसा कि सेमीकंडक्टर और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर अमेरिकी प्रतिबंधों में देखा गया है।
- ब्रिक्स AI, फिनटेक, 5G और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों में सहयोग को बढ़ावा देता है, जिससे वैकल्पिक पारिस्थितिक तंत्र निर्मित होते हैं।
- भारत की स्मार्ट सिटी परियोजनाओं के लिये NDB का समर्थन भी दर्शाता है कि ब्रिक्स किस प्रकार डिजिटल अवसंरचना को सुदृढ़ करता है और भारत को बाहरी प्रौद्योगिकी-प्रेरित झटकों से बचाव प्रदान करता है।
- खाद्य और उर्वरक सुरक्षा: वैश्विक संकट प्रायः खाद्य और उर्वरक आपूर्ति को बाधित करते हैं, जिससे भारत की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था को खतरा होता है।
- ब्रिक्स एक सुरक्षा कवच प्रदान करता है, क्योंकि रूस उर्वरकों और कृषि-इनपुट्स का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता है।
- इसी प्रकार, कृषि अनुसंधान और आपूर्ति शृंखलाओं में सहयोग अनाज और खाद्य तेल की उपलब्धता में स्थिरता सुनिश्चित करता है, जिससे वैश्विक व्यवधानों के दौरान भारत की खाद्य सुरक्षा संरक्षित रहती है।
ब्रिक्स में भारत की गहन भागीदारी के मार्ग में कौन-सी प्रमुख बाधाएँ हैं?
- चीन का प्रभुत्व और सामरिक प्रतिद्वंद्विता: चीन का आर्थिक आकार और राजनीतिक प्रभाव अन्य ब्रिक्स सदस्यों पर हावी रहता है, जिससे भारत की एजेंडा तय करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
- चीन की GDP भारत से लगभग पाँच गुना अधिक है, जो डि-डॉलराइजेशन और प्रौद्योगिकी ढाँचे जैसे मुद्दों पर रुख तय करता है।
- गलवान (2020) में सीमा तनाव और भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UNSC) सदस्यता के प्रति बीजिंग का विरोध आपसी विश्वास को कमज़ोर करता है।
- भिन्न सामरिक संरेखण: सदस्य देश प्रायः परस्पर विरोधी विदेश नीति रुख अपनाते हैं, जिससे एकजुटता कठिन हो जाती है।
- उदाहरण के लिये, रूस और चीन खुले तौर पर पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती देते हैं, जबकि भारत यूरोपीय संघ (EU) और क्वाड के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखता है।
- विभिन्न सरकारों के अधीन ब्राज़ील कभी पश्चिम-समर्थक तो कभी दक्षिण-दक्षिण सहयोग की ओर झुकाव दिखाता रहा है।
- यह भिन्नता ब्रिक्स की एक संयुक्त मोर्चे के रूप में प्रभावशीलता को कम करती है, और भारत को दो खेमों के बीच एक बाहरी व्यक्ति के रूप में देखे जाने का जोखिम है।
- सीमित संस्थागत गहराई: यूरोपीय संघ (EU) या आसियान (ASEAN) के विपरीत ब्रिक्स में बाध्यकारी संरचनाओं, स्थायी सचिवालय या प्रवर्तन तंत्र का अभाव है।
- अधिकांश पहलें, जैसे ब्रिक्स आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था, अप्रयुक्त और प्रतीकात्मक बनी हुई हैं।
- भारत, जिसे ठोस आर्थिक और रणनीतिक लाभों की आवश्यकता है, के लिये मज़बूत संस्थागत ढाँचों का अभाव, झटकों के विरुद्ध एक विश्वसनीय बफर के रूप में कार्य करने की ब्रिक्स की क्षमता को कम करता है।
- वित्तीय विकल्पों पर धीमी प्रगति: यद्यपि ब्रिक्स डि-डॉलराइजेशन और स्थानीय मुद्रा में व्यापार को बढ़ावा देता है, परंतु वास्तविक क्रियान्वयन अब भी बिखरा हुआ है।
- ब्रिक्स देशों के भीतर व्यापार अभी भी काफी हद तक डॉलर में ही आधारित है और बहुचर्चित ब्रिक्स आरक्षित मुद्रा अभी तक मूर्त रूप नहीं ले पाई है।
- भारत के लिये, जिसे डॉलर-जनित झटकों से बचाव हेतु विश्वसनीय और त्वरित वित्तीय विकल्पों की आवश्यकता है, यह धीमी गति ब्रिक्स के वादों की व्यावहारिक उपयोगिता को कम कर देती है।
- अन्य गठबंधनों के साथ ओवरलैप और सामरिक संतुलन: भारत की विदेश नीति सामरिक स्वायत्तता के सिद्धांत पर आधारित है, जिसके अंतर्गत वह किसी एक गुट से बंधे बिना अनेक समूहों के साथ जुड़ा रहता है।
- ब्रिक्स का सदस्य होने के साथ ही भारत पश्चिम-नेतृत्व वाले समूहों जैसे G7 और चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता (क्वाड) से भी घनिष्ठ संबंध बनाए रखता है।
- यह एक नाज़ुक संतुलन साधने की माँग करता है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि ब्रिक्स में उसकी भागीदारी, जिसे अक्सर पश्चिम के संतुलनकारी के रूप में देखा जाता है, उसके सामरिक साझेदारों विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका से दूरी न बढ़ाए।
भारत अपनी भू-आर्थिक महत्वाकांक्षाओं के लिये ब्रिक्स का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिये क्या उपाय कर सकता है?
- स्थानीय मुद्रा व्यापार और भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देना: डॉलर की अस्थिरता के प्रभाव को कम करने के लिये भारत ब्रिक्स समूह के भीतर रुपया-आधारित व्यापार तंत्र का विस्तार कर सकता है।
- UPI को रूस के SPFS के साथ जोड़ने या रुपया-युआन भुगतान को बढ़ावा देने से SWIFT पर निर्भरता कम हो सकती है।
- संतुलित व्यापार और आपूर्ति शृंखला की लचीलता को बढ़ावा देना: भारत को ब्रिक्स के भीतर विविधीकृत आपूर्ति शृंखलाओं के लिये बातचीत करनी चाहिये, ताकि चीन के साथ अपने बड़े व्यापार घाटे को संतुलित किया जा सके।
- कृषि उत्पादों के लिये ब्राजील, ऊर्जा के लिये रूस, खनिजों के लिये दक्षिण अफ्रीका तथा व्यापार, निवेश और रणनीतिक क्षेत्रों के लिये संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र और इंडोनेशिया जैसे नए ब्रिक्स+ सदस्यों के साथ सहयोग को गहरा करने से भारत को अधिक संतुलित और विविध आर्थिक संबंध बनाने में मदद मिल सकती है।
- इससे चीनी आयात पर भारत की अत्यधिक निर्भरता कम हो जाती है, तथा ब्रिक्स भारत के आत्मनिर्भर भारत और लचीली वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के दृष्टिकोण के साथ संरेखित हो जाता है।
- ऊर्जा और संसाधन साझेदारी का लाभ उठाना: भारत ब्रिक्स ऊर्जा ढाँचे के माध्यम से रूस और ब्राज़ील के साथ दीर्घकालिक ऊर्जा साझेदारी को संस्थागत बना सकता है।
- उदाहरण के लिये तेल, प्राकृतिक गैस और उर्वरकों तक पूर्वानुमानित कीमतों पर स्थिर पहुँच सुनिश्चित करने से भारत को वैश्विक बाज़ार की अस्थिरता से सुरक्षा मिलेगी।
- ब्रिक्स के अंतर्गत संयुक्त अन्वेषण और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ भारत की ऊर्जा टोकरी में और विविधता ला सकती हैं, साथ ही इसकी नेट-जीरो 2070 प्रतिबद्धता का समर्थन भी कर सकती हैं।
- डिजिटल और प्रौद्योगिकी सहयोग का विस्तार: भारत को AI, फिनटेक, साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में ब्रिक्स सहयोग को बढ़ावा देना चाहिये, जहाँ उसे पहले से ही तुलनात्मक लाभ प्राप्त है।
- ब्रिक्स देशों में UPI जैसे मॉडलों को बढ़ावा देना या 6G तथा डिजिटल बुनियादी ढाँचे पर सहयोग करना भारत को डिजिटल क्षेत्र में अग्रणी बनाएगा।
- इससे पश्चिमी तकनीकी प्रतिबंधों का जोखिम कम होगा, जबकि भारत के IT क्षेत्र के लिये निर्यात के अवसर पैदा होंगे।
- मुद्दा-आधारित व्यावहारिकता अपनाना: ब्रिक्स के भीतर आंतरिक मतभेदों को देखते हुए, भारत को चयनात्मक सहयोग की नीति अपनानी चाहिये और ऊर्जा सुरक्षा, ग्रीन फाइनेंस तथा डिजिटल सहयोग जैसे ऐसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जहाँ ब्रिक्स भारत के लिये वास्तविक लाभ प्रदान करता है।
- इसके साथ ही उसे चीन या रूस के नेतृत्व वाले पश्चिम-विरोधी गुटों में शामिल होने से बचना चाहिये।
- यह व्यावहारिक रणनीति यह सुनिश्चित करती है कि ब्रिक्स क्वाड, G20 और SCO में भारत की समानांतर गतिविधियों को जटिल बनाने के बजाय उन्हें पूरक बनाए।
- जन-से-जन और सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ करना: आर्थिक सहयोग से परे, भारत ब्रिक्स देशों के साथ शैक्षणिक आदान-प्रदान, पर्यटन तथा संयुक्त अनुसंधान पहल को बढ़ावा देकर दीर्घकालिक सॉफ्ट पावर का निर्माण कर सकता है।
- मिस्र, सऊदी अरब और इंडोनेशिया जैसे ब्रिक्स+ सदस्यों के साथ सांस्कृतिक सहयोग से सामरिक क्षेत्रों में सद्भावना, विश्वास और सहयोग को भी बढ़ावा मिल सकता है।
निष्कर्ष:
बढ़ती भू-आर्थिक अस्थिरता के दौर में, ब्रिक्स भारत को व्यापार में विविधता लाने, ऊर्जा और संसाधन सुरक्षा को मज़बूत करने तथा तकनीकी एवं वित्तीय सहयोग का विस्तार करने के लिये एक रणनीतिक मंच प्रदान करता है। एक व्यावहारिक, मुद्दा-आधारित दृष्टिकोण यह सुनिश्चित करता है कि ब्रिक्स भारत की व्यापक विदेश नीति व लचीलेपन को बढ़ावा देने की आर्थिक दृष्टि का पूरक बने।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: भारत की भू-आर्थिक महत्त्वाकांक्षाओं के संदर्भ में ब्रिक्स के साथ भारत की भागीदारी की संभावनाओं और चुनौतियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। भारत अपने व्यापक विदेश नीति हितों की रक्षा करते हुए व्यापार, ऊर्जा सुरक्षा तथा तकनीकी सहयोग बढ़ाने के लिये इस समूह का रणनीतिक लाभ कैसे उठा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
- न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना APEC द्वारा की गई है।
- न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई में है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (B)
प्रश्न. हाल ही में चर्चा में रहा 'फोर्टालेजा डिक्लेरेशन' किससे संबंधित है? (2015)
(A) आसियान
(B) ब्रिक्स
(C) ओईसीडी
(D) विश्व व्यापार संगठन
उत्तर: (b)