शासन व्यवस्था
राज्य PSCs को मज़बूत करना
- 24 Dec 2025
- 101 min read
प्रिलिम्स के लिये: उपराष्ट्रपति, राज्य लोक सेवा आयोग (SPSCs), संवैधानिक निकाय, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), भारत सरकार अधिनियम, 1919, राज्यपाल, सर्वोच्च न्यायालय, संसद, राष्ट्रपति, CAG।
मेन्स के लिये: SPSCs से संबंधित मुख्य प्रावधान, संबंधित चुनौतियाँ और SPSCs को मज़बूत करने के लिये आगे की राह।
चर्चा में क्यों?
उपराष्ट्रपति ने भर्ती प्रक्रियाओं में हो रही देरी और सत्यनिष्ठा से जुड़े मुद्दों पर बढ़ती जाँच के बीच सक्षम और नैतिक सिविल सेवा के निर्माण में राज्य लोक सेवा आयोगों (SPSCs) की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया।
- उन्होंने भर्ती प्रक्रिया को राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप बनाने और अभ्यर्थियों का विश्वास पुनः स्थापित करने के लिये त्वरित सुधारों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
सारांश
- राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) संवैधानिक निकाय हैं, जो राज्य सेवाओं में योग्यता-आधारित भर्ती सुनिश्चित करते हैं।
- हालाँकि, इन्हें परीक्षा पत्र लीक, राजनीतिक हस्तक्षेप, देरी और पुरानी प्रणालियों जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- इन्हें सशक्त बनाने के लिये बाध्यकारी अनुशंसाएँ, डिजिटल आधुनिकीकरण, पारदर्शिता, क्षमता निर्माण और स्वतंत्र नियुक्तियाँ आवश्यक हैं, ताकि जनविश्वास को पुनः स्थापित किया जा सके।
राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) क्या है?
- परिचय: SPSC एक संवैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना अनुच्छेद 315-323 (भाग XIV) के तहत राज्य सिविल सेवाओं में योग्यता-आधारित, निष्पक्ष और स्वतंत्र भर्ती सुनिश्चित करने के लिये की गई है।
- केंद्र में संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की तरह प्रत्येक राज्य का अपना विशेष सेवा आयोग (SPSC) होता है, जो राज्य सिविल सेवाओं में पारदर्शी और योग्यता-आधारित भर्ती सुनिश्चित करने के लिये योग्यता प्रणाली के संवैधानिक निगरानी निकाय के रूप में कार्य करता है।
- ऐतिहासिक संदर्भ: भारत सरकार अधिनियम, 1919 में केंद्रीय लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया गया था, जिसकी स्थापना वर्ष 1926 में सिविल सेवकों की भर्ती के लिये की गई थी।
- भारत सरकार अधिनियम, 1935 में संघीय PSC की स्थापना के साथ-साथ प्रांतीय PSC और दो या दो से अधिक प्रांतों के लिये संयुक्त PSC की स्थापना का भी प्रावधान किया गया था।
- संरचना: इसमें एक अध्यक्ष और राज्यपाल द्वारा नियुक्त सदस्य शामिल होते हैं।
- सदस्यों की संख्या: संविधान में सदस्यों की संख्या निर्दिष्ट नहीं है। यह राज्यपाल के विवेक पर निर्भर करता है।
- कार्यकाल: सदस्य 6 वर्ष के लिये या 62 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, सेवा करते हैं (UPSC सदस्य 65 वर्ष तक सेवा करते हैं)।
- योग्यता संबंधी आवश्यकताएँ: आधे सदस्यों के पास भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कम-से-कम 10 वर्ष की सेवा होनी चाहिये, इसके अलावा कोई अन्य योग्यता निर्धारित नहीं है।
- सेवा शर्तें: राज्यपाल द्वारा निर्धारित की जाती हैं, जो रोज़गार की शर्तें भी तय करते हैं। राज्यपाल किसी सदस्य को कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में नियुक्त कर सकते हैं जब पद रिक्त हो जाता है या अध्यक्ष अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ होते हैं।
- निष्कासन: सदस्यों को केवल राष्ट्रपति द्वारा ही हटाया जा सकता है, राज्यपाल द्वारा नहीं। इसके कारणों में दिवालियापन, वेतनभोगी रोज़गार, अस्वस्थता या दुर्व्यवहार शामिल हैं। राष्ट्रपति उन्हें उन्हीं आधारों और उसी तरीके से हटा सकते हैं जैसे वे UPSC के अध्यक्ष या सदस्य को हटाते हैं।
- दुर्व्यवहार के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय (SC) की जाँच अनिवार्य है तथा उसकी सलाह बाध्यकारी है। राज्यपाल जाँच के दौरान सदस्य को निलंबित कर सकता है।
- सदस्य राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपकर किसी भी समय इस्तीफा दे सकते हैं।
- स्वतंत्रता के लिये सुरक्षा उपाय:
- सेवा शर्तों का संरक्षण: एक बार नियुक्त होने के बाद, सेवा शर्तों को उनके नुकसान के लिये बदला नहीं जा सकता है ।
- वित्तीय स्वतंत्रता: वेतन, भत्ते और पेंशन राज्य के समेकित कोष से दिये जाते हैं—ये विधायी मतदान के अधीन नहीं होते हैं ।
- सेवानिवृत्ति के बाद की पाबंदियॉं: अध्यक्ष की नियुक्ति केवल यूपीएससी या किसी अन्य एसपीएससी के अध्यक्ष पद पर ही हो सकती है —अन्य किसी सरकारी रोज़गार पर नहीं ।
- सदस्य UPSC के सदस्य या SPSC के अध्यक्ष बन सकते हैं- कोई अन्य सरकारी नौकरी प्राप्त नहीं कर सकते।
- पुनर्नियुक्ति नहीं: सदस्य अपना पहला कार्यकाल पूरा करने के बाद दूसरे कार्यकाल के लिये पात्र नहीं होते हैं।
- SPSC के कार्य:
- परीक्षा का संचालन: राज्य सेवाओं में नियुक्तियों के लिये प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन करता है।
- भर्ती संबंधी सलाहकार की भूमिका: यह सिविल सेवाओं और पदों के लिये भर्ती के तरीकों, पदोन्नति, अंतर-सेवा तबादलों पर सलाह देता है तथा प्रतिनियुक्ति के लिये उम्मीदवारों की उपयुक्तता का आकलन करता है।
- अनुशासनात्मक परामर्श: यह निंदा, वेतन वृद्धि या पदोन्नति को रोकना, वित्तीय नुकसान की वसूली, निष्कासन या बर्खास्तगी सहित अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाइयों पर सलाह देता है।
- वार्षिक रिपोर्टिंग: राज्यपाल को प्रदर्शन रिपोर्ट प्रस्तुत करता है, जो अस्वीकृत सलाह के स्पष्टीकरण के साथ उन्हें राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत करता है।
- विस्तारित अधिकार क्षेत्र: राज्य विधानमंडल SPSC की भूमिका का विस्तार करके इसे स्थानीय प्राधिकरणों, निगमित निकायों या सार्वजनिक संस्थानों तक बढ़ा सकता है।
- संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग: संविधान दो या दो से अधिक राज्यों के लिये संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग (JSPSC) के गठन की अनुमति देता है। वर्ष 1966 में हरियाणा के गठन के बाद पंजाब और हरियाणा ने कुछ समय के लिये संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग का गठन किया था।
- UPSC और SPSC (संवैधानिक निकाय) के विपरीत, JSPSC एक वैधानिक निकाय है जिसे संबंधित राज्य विधानसभाओं के अनुरोध पर संसद द्वारा स्थापित किया गया है।
- सेवा शर्तें: सदस्यों की संख्या और सेवा शर्तें अध्यक्ष द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
- रिपोर्टिंग: JSPSC प्रत्येक संबंधित राज्य के राज्यपाल को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है, जो उन्हें संबंधित राज्य विधानमंडलों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।
- वैकल्पिक व्यवस्था: राष्ट्रपति की स्वीकृति से राज्य के राज्यपाल के अनुरोध पर UPSC राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है।
SPSC के अधिकार क्षेत्र की संवैधानिक सीमाएँ क्या हैं?
- अधिकार क्षेत्र से बाहर के मामले: इसमें पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण और नियुक्तियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के दावों पर विचार करना शामिल है।
- राज्यपाल की नियामक शक्ति: राज्यपाल विनियमों के माध्यम से विशिष्ट पदों, सेवाओं और मामलों को SPSC परामर्श से बाहर कर सकते हैं (इन्हें 14 दिनों के लिये विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिये तथा राज्य विधानमंडल द्वारा संशोधन या निरसन के अधीन हैं)।
- सलाहकारी प्रकृति: SPC की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं हैं- राज्य सरकारें सलाह को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती हैं।
- न्यायालय के निर्णय: उत्तर प्रदेश राज्य बनाम मनबोधन लाल श्रीवास्तव (1957) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना कि SPSC से परामर्श न करने से सरकारी निर्णय अमान्य नहीं होते। यह प्रावधान निर्देशात्मक है, अनिवार्य नहीं।
राज्य लोक सेवा आयोगों के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- प्रश्नपत्र लीक: राज्य लोक सेवा आयोगों की परीक्षाओं में बार-बार प्रश्नपत्र लीक होने की घटनाओं (जैसे बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश) ने सार्वजनिक विश्वास को गंभीर रूप से कमज़ोर किया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, केवल वर्ष 2018 में ही लगभग 2,000 परीक्षा कदाचार के मामले (जिनमें प्रश्नपत्र लीक और प्रतिरूपण शामिल हैं) दर्ज किये गए थे।
- पिछले 7 वर्षों में देशभर में 70 से अधिक मामलों ने 1.7 करोड़ से अधिक छात्रों को प्रभावित किया है, जिनमें वर्ष 2024 में राजस्थान लोक सेवा आयोग के एक पूर्व सदस्य की 2021 उप-निरीक्षक परीक्षा प्रश्नपत्र लीक मामले में गिरफ्तारी भी शामिल है।
- भर्ती प्रक्रियाओं में देरी: आरक्षण, पाठ्यक्रम और पात्रता से जुड़े न्यायालयी मामलों के कारण SPSC के माध्यम से होने वाली भर्तियाँ प्राय: पूरी नहीं हो पातीं, जिससे हज़ारों चयन प्रक्रियाएँ वर्षों तक लंबित रह जाती हैं।
- भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की समस्याएँ: परीक्षा घोटालों, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी के कारण राज्य लोक सेवा आयोगों की विश्वसनीयता पर गंभीर संकट आया है, जिनमें मध्य प्रदेश का कुख्यात व्यवस्थित व्यापम घोटाला (2013) प्रमुख उदाहरण है। सोशल मीडिया पर फैलने वाली अप्रमाणित अफवाहें और SPSC की ओर से समय पर आधिकारिक स्पष्टीकरण के अभाव में सार्वजनिक विश्वास और भी कमज़ोर होता है, जिसके परिणामस्वरूप प्राय: विरोध प्रदर्शन तथा परीक्षाओं का बहिष्कार देखने को मिलता है।
- स्वायत्तता और राजनीतिक प्रभाव से जुड़े मुद्दे: यद्यपि राज्य लोक सेवा आयोग संवैधानिक रूप से संरक्षित है, फिर भी राज्यपाल द्वारा की जाने वाली नियुक्ति प्रक्रिया सदस्यों की नियुक्ति में संभावित राजनीतिक प्रभाव को लेकर चिंताएँ उत्पन्न करती है। इससे आयोग की स्वतंत्रता और पक्षपात की आशंकाएँ उत्पन्न होती हैं।
- पुरानी प्रणालियाँ और अवसंरचना: कई SPSC के पास बड़े पैमाने की परीक्षाओं को सुरक्षित रूप से संचालित करने के लिये आवश्यक संस्थागत क्षमता, मानव संसाधन और लॉजिस्टिक व्यवस्था का अभाव है। भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने कमज़ोर योजना, स्टाफ की कमी और अपर्याप्त परीक्षा सुरक्षा को प्रमुख कमज़ोरियों के रूप में रेखांकित किया है।
- कमज़ोर जवाबदेही और पारदर्शिता तंत्र: अधिकांश SPSC में सशक्त बाह्य लेखा-परीक्षा और संसदीय निगरानी का अभाव है। RTI के कमज़ोर अनुपालन, अंकों व अभिलेखों के प्रकाशन में विलंब तथा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) जैसे संगठनों द्वारा उजागर की गई पारदर्शिता की कमियाँ निष्पक्ष प्रक्रियाओं के बावजूद जनविश्वास को कमज़ोर करती हैं।
राज्य लोक सेवा आयोगों (SPSC) को सुदृढ़ करने हेतु कौन-से उपाय आवश्यक हैं?
- समयबद्ध भर्ती: राज्य सेवा नियमों में संशोधन कर भर्ती की प्रत्येक अवस्था के लिये अधिकतम समय-सीमा निर्धारित की जानी चाहिये। साथ ही, पूर्वानुमेयता सुनिश्चित करने के लिये प्रत्येक SPSC को वार्षिक परीक्षा कैलेंडर प्रकाशित करने और उसका पालन करने के लिये बाध्य किया जाना चाहिये। ऐसा माना जाता है कि इस प्रकार के कानूनी ढाँचे से भर्ती प्रक्रियाएँ अधिक शीघ्र पूरी हो सकेंगी।
- संस्थागत एवं परिचालन सुधार: राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) की तर्ज पर एक राज्य परीक्षा सुरक्षा प्राधिकरण (SESA) का गठन किया जाना चाहिये, जो विशेष रूप से प्रश्नपत्र निर्माण, एन्क्रिप्शन, लॉजिस्टिक्स तथा पेपर लीक की जाँच का कार्य सॅंभाले।
- स्वतंत्रता और जवाबदेही को सुदृढ़ करना: SPSC के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के लिये एक कॉलेजियम प्रणाली स्थापित की जाए, जिसमें राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, UPSC के अध्यक्ष और राज्य के मुख्य सचिव शामिल हों। इससे नियुक्ति प्रक्रिया को प्रत्यक्ष राजनीतिक नियंत्रण से अलग रखा जा सकेगा। साथ ही जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये SPSC को नियमित CAG प्रदर्शन ऑडिट के दायरे में लाया जाए।
- क्षमता निर्माण और पारदर्शिता: SPSC के सदस्यों और कर्मचारियों के लिये आधुनिक भर्ती तकनीकों तथा नैतिक मानकों पर व्यापक प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए। इसके अतिरिक्त प्रत्येक भर्ती चक्र के लिये एक रीयल-टाइम सार्वजनिक डैशबोर्ड विकसित किया जाए, जिसमें चरणवार प्रगति और अंतिम चयन की जानकारी प्रदर्शित हो, ताकि पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
निष्कर्ष
योग्यता के संवैधानिक प्रहरी के रूप में राज्य लोक सेवा आयोग (SPSCs) प्रश्नपत्र लीक, भर्ती में देरी और राजनीतिक प्रभाव जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, जिससे उनकी विश्वसनीयता क्षीण हुई है। इन्हें सुदृढ़ करने के लिये उनके परामर्श को बाध्यकारी बनाना, परिचालन स्वतंत्रता सुनिश्चित करना और प्रौद्योगिकी-आधारित पारदर्शिता अपनाना आवश्यक है, ताकि सक्षम राज्य सिविल सेवा के निर्माण में उनकी भूमिका पुनः स्थापित हो सके।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में राज्य लोक सेवा आयोगों की संवैधानिक भूमिका और कार्यों की समीक्षा कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. राज्य लोक सेवा आयोग (SPSC) क्या है?
यह अनुच्छेद 315–323 के अंतर्गत स्थापित एक संवैधानिक निकाय है, जो राज्य सिविल सेवाओं में योग्यता-आधारित, निष्पक्ष और स्वतंत्र भर्ती सुनिश्चित करता है।
2. SPSC के सदस्यों की नियुक्ति और पदच्युति कैसे होती है?
सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है तथा उन्हें केवल राष्ट्रपति द्वारा ही हटाया जा सकता है। पदच्युति के आधारों में कदाचार, दिवालियापन या अक्षमता शामिल हैं। कदाचार के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जाँच अनिवार्य होती है।
3. क्या SPSC की सिफारिशें राज्य सरकार पर कानूनी रूप से बाध्यकारी होती हैं?
नहीं। SPSC की सिफारिशें परामर्शात्मक प्रकृति की होती हैं और जैसा कि उत्तर प्रदेश राज्य बनाम मनबोधन लाल श्रीवास्तव (1957) में कहा गया है, बिना परामर्श के सरकार की कार्रवाई अमान्य नहीं होती।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न. भारतीय संविधान के अनुसार, भारत के राष्ट्रपति का यह कर्त्तव्य है कि वे निम्नलिखित में से किसको/किनको संसद् के पटल पर रखवाए? (2012)
1. संघ वित्त आयोग की सिफारिशों को
2. लोक लेखा समिति के प्रतिवेदन को
3. नियंत्रक-महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन को
4. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के प्रतिवेदन को
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सहीं उत्तर चुनिये:
(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4.
(d) 1,2,3 और 4
उत्तर: (c)
मेन्स
प्रश्न. एक प्रभावी लोक सेवक बनने के लिये आवश्यक दस आवश्यक मूल्यों की पहचान कीजिये। लोक सेवकों में अनैतिक आचरण को रोकने के उपायों का वर्णन कीजिये। (2021)
प्रश्न. "आर्थिक प्रदर्शन के लिये संस्थागत गुणवत्ता एक निर्णायक चालक है"। इस संदर्भ में लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिये सिविल सेवा में सुधारों के सुझाव दीजिये। (2020)
