अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और न्यूज़ीलैंड मुक्त व्यापार समझौता
- 24 Dec 2025
- 100 min read
प्रिलिम्स के लिये: मुक्त व्यापार समझौता (FTA), प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), भौगोलिक संकेत (GI), यूरोपीय संघ, फाइव आइज़, आसियान, MSME, व्यापार घाटा, व्यापार में तकनीकी बाधाएँ (TBT), बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), एंटी-डंपिंग, कार्बन क्रेडिट, फ्रेंड शोरिंग।
मेन्स के लिये: भारत और न्यूज़ीलैंड (NZ) के मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की प्रमुख विशेषताएँ और इसका महत्त्व, FTA से भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ और भारत द्वारा FTA का पूरी तरह से उपयोग करने का मार्ग।
चर्चा में क्यों?
भारत और न्यूज़ीलैंड (NZ) ने मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर वार्ता के सफल समापन की घोषणा की है। इसके तहत न्यूज़ीलैंड भारत के 100% निर्यात को शून्य शुल्क (ज़ीरो-ड्यूटी) पहुँच प्रदान करेगा और अगले 15 वर्षों में 20 अरब अमेरिकी डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का निवेश करने की प्रतिबद्धता जताएगा।
सारांश
- यह मुक्त व्यापार समझौता भारतीय निर्यात को शून्य शुल्क पर पहुँच प्रदान करता है, न्यूज़ीलैंड की लगभग 70% टैरिफ लाइनों का उदारीकरण करता है तथा डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- इसके माध्यम से 118 क्षेत्रों में 20 अरब अमेरिकी डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI), कौशल गतिशीलता और सेवा व्यापार को बढ़ावा मिलता है, जिससे आर्थिक विकास और रोज़गार के नए अवसर सृजित होते हैं।
- रणनीतिक दृष्टि से यह समझौता भारत के वैश्विक व्यापार के विविधीकरण, क्षेत्रीय प्रभाव के विस्तार और विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ दीर्घकालिक आर्थिक सहयोग को सुदृढ़ करता है।
भारत-न्यूज़ीलैंड मुक्त व्यापार समझौते की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- व्यापार उदारीकरण: न्यूज़ीलैंड की प्रतिबद्धताओं में भारतीय निर्यात के 100% पर शून्य शुल्क पहुँच प्रदान करना और वर्तमान औसत टैरिफ 2.2% को पूरी तरह से समाप्त करना शामिल है।
- भारत की प्रतिबद्धताएँ: 70% टैरिफ लाइनों पर शुल्क उदारीकरण (मूल्य के हिसाब से न्यूज़ीलैंड के 95% निर्यात को कवर करते हुए)। लकड़ी, ऊन और भेड़ के मांस सहित उत्पादों के लिये 30% टैरिफ लाइनों पर तत्काल शुल्क समाप्ति।
- औसत सीमा शुल्क दर वर्तमान 16.2% से घटकर प्रारंभ में 13.18% हो जाएगी, इसके बाद 5 वर्षों में 10.3% और 10वें वर्ष तक 9.06% तक आ जाएगी।
- भारत के डेयरी क्षेत्र को संरक्षित करने के लिये लगभग 30% टैरिफ मदों (डेयरी, कुछ पशु उत्पाद, सब्जियाँ, बादाम, चीनी) को बाहर रखा गया है।
- निवेश प्रतिबद्धता: न्यूज़ीलैंड ने भारत में 15 वर्षों में 20 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश को सुविधाजनक बनाने की प्रतिबद्धता जताई है, जिसके लिये एक पुनर्संतुलन तंत्र का प्रावधान है जो भारत को निर्धारित अवधि के भीतर निवेश न होने की स्थिति में मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के लाभों को निलंबित करने की अनुमति देता है।
- भारत की प्रतिबद्धताएँ: 70% टैरिफ लाइनों पर शुल्क उदारीकरण (मूल्य के हिसाब से न्यूज़ीलैंड के 95% निर्यात को कवर करते हुए)। लकड़ी, ऊन और भेड़ के मांस सहित उत्पादों के लिये 30% टैरिफ लाइनों पर तत्काल शुल्क समाप्ति।
- आवागमन संबंधी प्रावधान: न्यूज़ीलैंड में भारतीय छात्रों की संख्या पर कोई सीमा नहीं है। अध्ययन के दौरान प्रति सप्ताह कम-से-कम 20 घंटे कार्य की गारंटी। अध्ययन के बाद कार्य वीज़ा की अवधि बढ़ाई जाती है (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) स्नातकों के लिये 3 वर्ष तक, पीएचडी धारकों के लिये 4 वर्ष तक)।
- एक नया अस्थायी रोज़गार प्रवेश वीज़ा मार्ग, जिसके तहत एक समय में अधिकतम 5,000 भारतीय पेशेवरों को (अधिकतम 3 वर्ष की अवधि के लिये) प्रवेश दिया जा सकता है। इसमें आयुष, योग, भारतीय रसोइये, आईटी, इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य सेवा आदि शामिल हैं।
- युवा भारतीयों के लिये प्रतिवर्ष 1,000 वर्किंग हॉलिडे वीज़ा।
- महत्त्वाकांक्षी सेवा उदारीकरण: इस समझौते में भारत की अब तक की सबसे महत्त्वाकांक्षी सेवा पेशकश शामिल है, जिसमें 118 सेवा क्षेत्र शामिल हैं, जिससे सेवा व्यापार और पेशेवर गतिशीलता को बढ़ावा मिलेगा।
- व्यापार विस्तार का लक्ष्य: मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का उद्देश्य 5 वर्षों के भीतर द्विपक्षीय व्यापार को 2.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर लगभग 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर करना है, जिससे आर्थिक एकीकरण मज़बूत होगा।
- भारत के बौद्धिक संपदा अधिकारों की मान्यता: न्यूज़ीलैंड का वर्तमान भौगोलिक संकेत (GI) कानून केवल भारत की वाइन और स्पिरिट के पंजीकरण की अनुमति प्रदान करता है, लेकिन उसने यूरोपीय संघ को दिये गए लाभों के बराबर भारत की वाइन, स्पिरिट और अन्य वस्तुओं के पंजीकरण को सक्षम करने के लिये अपने कानून में संशोधन करने की प्रतिबद्धता जताई है।
- भारत के बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) की मान्यता: न्यूज़ीलैंड का वर्तमान भौगोलिक संकेतक (GI) कानून केवल भारत की वाइन और स्पिरिट्स के पंजीकरण की अनुमति प्रदान करता है। अब उसने अपने कानून में संशोधन कर भारत की वाइन, स्पिरिट्स और अन्य उत्पादों के पंजीकरण को संभव बनाने की प्रतिबद्धता जताई है, जिससे भारत को यूरोपीय संघ को दिये गए लाभों के समान अधिकार प्राप्त होंगे।
भारत और न्यूज़ीलैंड के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते (FTA) का क्या महत्त्व है?
- रणनीतिक आर्थिक पुनर्संतुलन: यह समझौता 2021 के बाद से भारत का 7वाँ व्यापार समझौता और फाइव आइज़ एलायंस (ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बाद) के साथ तीसरा समझौता है, जो संरक्षणवादी नीतियों से प्रेरित वैश्विक पुनर्गठन के बीच व्यापार संबंधों में विविधता लाने की दिशा में नई दिल्ली के रणनीतिक बदलाव को दर्शाता है।
- द्विपक्षीय लाभों से आगे बढ़कर, यह मुक्त व्यापार समझौता भारतीय कंपनियों को प्रशांत द्वीप समूह की अर्थव्यवस्थाओं में अपनी उपस्थिति स्थापित करने का अवसर प्रदान करता है।
- संवेदनशील क्षेत्रों का संरक्षण: भारत ने अपने राजनीतिक और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण डेयरी क्षेत्र के साथ-साथ अन्य संवेदनशील कृषि उत्पादों (जैसे प्याज, बादाम) को सफलतापूर्वक पूरी तरह से बाहर कर दिया , जिससे कमज़ोर घरेलू उद्योगों की रक्षा के प्रति एक दृढ़ रुख प्रदर्शित हुआ।
- निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता: वस्त्र, परिधान, चमड़ा, कालीन और ऑटो कंपोनेंट जैसे क्षेत्रों को न्यूज़ीलैंड में तत्काल शुल्क-मुक्त पहुँच प्राप्त होती है, जिन्हें पहले 10% तक के शुल्क का सामना करना पड़ता था।
- 118 सेवा क्षेत्रों तक पहुँच भारतीय IIT, इंजीनियरिंग, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा कंपनियों को नए अवसर प्रदान करती है।
- सुरक्षा उपायों के साथ नियंत्रित उदारीकरण: भारत के टैरिफ 10 वर्षों में धीरे-धीरे कम होंगे, जिससे घरेलू उद्योगों को समायोजन के लिये समय मिलेगा।
- सेब, कीवी और शराब जैसे संवेदनशील आयातों के मामले में भारत पूर्ण उदारीकरण के स्थान पर टैरिफ-रेट कोटा (TRQ) और मौसमी पहुँच जैसी व्यवस्थाएँ अपनाता है, ताकि बाज़ार तक पहुँच और घरेलू उत्पादकों के संरक्षण के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके।
- गहन सहयोग के लिये ढाँचा: यह समझौता व्यापारिक क्षेत्र में एक बड़ी सफलता से कहीं अधिक गहन सहयोग के लिये एक ढाँचा है। इसका महत्त्व तत्काल व्यापार की मात्रा बढ़ाने के बजाय एकीकृत आपूर्ति शृंखलाओं के लिये बुनियादी ढाँचा तैयार करने, सेवाओं के व्यापार का विस्तार करने, शिक्षा और कौशल साझेदारी को मज़बूत करने और प्रवासी भारतीयों के संबंधों का लाभ उठाने में निहित है।
मुक्त व्यापार समझौते (FTAs) क्या हैं?
- परिचय: FTA दो या दो से अधिक देशों के बीच एक समझौता है, जिसके तहत उनके बीच व्यापार किये जाने वाले लगभग सभी सामानों पर लगने वाले टैरिफ और अन्य बाधाओं को हटाया या कम किया जाता है।
- प्राथमिकता व्यापार समझौतों के विपरीत, जो केवल सीमित उत्पादों पर शुल्क कम करते हैं, मुक्त व्यापार समझौते का उद्देश्य लगभग पूर्ण और व्यापक शुल्क उन्मूलन करना होता है।
- उद्देश्य:
- टैरिफ में कमी: अधिकांश (90–95%) वस्तुओं पर सीमा शुल्क को समाप्त या कम करना।
- सुगम नियमावली (Streamlined Regulations): प्रतिबंधात्मक नियमों को समान या सरल बनाकर गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना।
- बाज़ार पहुँच: सेवाओं के व्यापार को सुविधाजनक बनाना और द्विपक्षीय निवेश प्रवाह को बढ़ावा देना।
- व्यापार समझौतों के प्रकार:
भारत के FTA से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- घरेलू विनिर्माण के लिये खतरा: एक प्रमुख चिंता यह है कि उन्नत साझेदारों (जैसे ASEAN, ऑस्ट्रेलिया) से सस्ते आयात भारत के MSME और प्रमुख क्षेत्रों जैसे वस्त्र, डेयरी तथा कृषि को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
- आलोचक बताते हैं कि वर्ष 2017–2022 के बीच भारत का व्यापार घाटा FTA के कारण बढ़ा है तथा FTA साझेदारों से आयात 82% बढ़ा जबकि निर्यात केवल 31% बढ़ा।
- सेवाओं और गतिशीलता में सीमित लाभ: भारत के मज़बूत सेवा क्षेत्र के बावजूद, उसके FTA अक्सर सार्थक बाज़ार पहुँच सुनिश्चित करने में विफल रहते हैं।
- मुख्य बाधाएँ जैसे कड़े वीज़ा नियम, लाइसेंसिंग अड़चनें और पेशेवरों की आवाजाही में रुकावटें, अवसरों को सीमित करती हैं, क्योंकि साझेदार अपने घरेलू श्रम बाज़ार की रक्षा को प्राथमिकता देते हैं।
- गैर-टैरिफ बाधाएँ (NTB) और मानक: टैरिफ हटाए जाने के बावजूद, भारतीय निर्यात को प्राय: साझेदार देशों में तकनीकी व्यापार बाधाओं (TBT), कड़े मानक, जटिल प्रमाणन आवश्यकताओं और अस्पष्ट नियमों का सामना करना पड़ता है, जिससे FTA के लाभ समाप्त हो जाते हैं।
- नीतिगत संप्रभुता पर प्रभाव: नई पीढ़ी के FTA में निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR), सरकारी खरीद और पर्यावरण/श्रम मानकों पर अध्याय शामिल होते हैं।
- चिंता यह है कि ये भारत के नीति क्षेत्र को सार्वजनिक हित के कानून (जैसे किफायती दवाएँ, स्थानीय खरीद प्राथमिकताएँ, पर्यावरणीय नियम) बनाने की क्षमता को सीमित कर सकते हैं।
भारत के FTA की प्रभावशीलता बढ़ाने हेतु प्रमुख रणनीतियाँ क्या हैं?
- रणनीतिक वार्ता और डिज़ाइन: भारत की सेवा और डिजिटल व्यापार क्षमताओं के लिये पारस्परिक बाज़ार पहुँच को प्राथमिकता देना तथा किसी भी उत्पाद पर दी जाने वाली छूट को इन लाभों के साथ समन्वित करना।
- डेयरी, कृषि और MSME जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को मज़बूत सुरक्षा उपायों से सुरक्षित रखना, जैसे कि टैरिफ-रेट कोटा, सीजनल टैरिफ तथा कठोर एंटी-डंपिंग उपाय।
- घरेलू प्रतिस्पर्द्धात्मकता को मज़बूत करना: व्यापार लागत को कम करने के लिये लॉजिस्टिक्स, बंदरगाहों और डिजिटल अवसंरचना में निवेश करके प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना। PLI योजनाओं और लक्षित नीतियों के माध्यम से विनिर्माण के पैमाने तथा गुणवत्ता को बढ़ाना, ताकि उद्योग FTA के लाभों का पूरा लाभ उठा सकें।
- नए युग के व्यापार तत्त्वों का लाभ उठाना: सुरक्षा उपायों के साथ सीमा-पार डेटा प्रवाह सुनिश्चित करके तकनीकी निर्यात को बढ़ावा देना। हरित प्रौद्योगिकी साझेदारियों, सतत स्रोतों और कार्बन क्रेडिट बाज़ार तक पहुँच पर वार्ता करना।
- भारत-न्यूजीलैंड मॉडल के अनुसार, FTA को विनिर्माण, हरित ऊर्जा तथा अवसंरचना में बाध्यकारी निवेश से जोड़ना, ताकि रोज़गार सृजित हों और घरेलू क्षमता का निर्माण हो सके।
- रणनीतिक भू-अर्थिक संरेखण: मुख्य उपभोक्ता बाज़ारों (EU, कनाडा) और महत्त्वपूर्ण मूल्य शृंखला साझेदारों (महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये अर्जेंटीना, चिली) के साथ FTA को लक्षित करके व्यापार निर्भरता को विविधतापूर्ण बनाना।
- इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा और खनिज जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में भरोसेमंद साझेदारों के साथ एकीकृत होकर अनुकूल फ्रेंड-शोरिंग को बढ़ावा देना।
- गैर-टैरिफ बाधाओं (NTBs) को संबोधित करना: तकनीकी मानक, सैनिटरी उपाय और पारस्परिक मान्यता समझौतों पर लागू होने वाले अध्याय शामिल करना, ताकि NTB टैरिफ छूट के लाभ को समाप्त न कर सकें।
निष्कर्ष
भारत–न्यूज़ीलैंड FTA द्विपक्षीय व्यापार, निवेश और सेवाओं की गतिशीलता को सुदृढ़ करता है, साथ ही डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा भी करता है। यह विकसित अर्थव्यवस्थाओं की ओर भारत की रणनीतिक ओरिएंटेशन को दर्शाता है, आर्थिक सहयोग, कौशल गतिशीलता और क्षेत्रीय प्रभाव को बढ़ावा देता है। यह समझौता व्यापार उदारीकरण और सुरक्षा उपायों के बीच संतुलन स्थापित करता है, दीर्घकालीन सतत विकास तथा समेकन के लिये एक ढाँचा प्रदान करता है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. घरेलू कृषि, विशेष रूप से डेयरी क्षेत्र की सुरक्षा, भारत के हालिया FTA का एक मूल स्तंभ रही है। इससे जुड़े आर्थिक और राजनीतिक तर्क पर चर्चा कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. भारत–न्यूज़ीलैंड FTA की प्रमुख निवेश विशेषता क्या है?
इसमें न्यूज़ीलैंड से 20 बिलियन USD का निवेश प्रतिबद्धता शामिल है, जिसे एक पुनर्संतुलन तंत्र द्वारा समर्थित किया गया है, जो भारत को यह अधिकार देता है कि यदि प्रतिबद्धताओं का पालन नहीं होता है तो वह लाभ निलंबित कर सकता है।
2. किन भारतीय क्षेत्रों को FTA से बाहर रखा गया है?
संवेदनशील क्षेत्रों जैसे डेयरी, प्याज़, बादाम और कुछ पशु उत्पादों को घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिये FTA से बाहर रखा गया है।
3. द्विपक्षीय व्यापार पर अपेक्षित प्रभाव क्या है?
इस FTA का लक्ष्य पाँच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार को 2.4 बिलियन USD से बढ़ाकर 5 बिलियन USD करना है, जिससे आर्थिक समेकन को बढ़ावा मिलेगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
- ऑस्ट्रेलिया
- कनाडा
- चीन
- भारत
- जापान
- यूएसए
उपर्युक्त में से कौन-से देश आसियान के 'मुक्त-व्यापार भागीदारों' में शामिल हैं?
(a) 1, 2, 4 और 5
(b) 3, 4, 5 और 6
(c) 1, 3, 4 और 5
(d) 2, 3, 4 और 6
उत्तर: (c)
प्रश्न. 'रीज़नल काम्प्रिहेन्सिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (Regional Comprehensive Economic Partnership)' पद प्रायः समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में आता है। देशों के उस समूह को क्या कहा जाता है? (2016)
(a) G- 20
(b) आसियान
(c) एस.सी.ओ.
(d) सार्क
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न. विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाज़ियों की हाल की परिघटनाएँ भारत की समष्टि-आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार से प्रभावित करेंगी? (2018)
प्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में, भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्याकंन कीजिये। (2016)


