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डेली न्यूज़

  • 12 Jul, 2025
  • 45 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

GM फसलों के अवसर और चुनौतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों, आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, बीटी कपास, सूखा-सहिष्णु मक्का किस्में, गोल्डन राइस, C4 राइस, आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, बौद्धिक संपदा अधिकार

मेन्स के लिये:

भारत में GM फसलों के लिये नियामक ढाँचा, GM फसलों से संबंधित लाभ और मुद्दे

स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

चल रही व्यापार वार्ताओं के बीच, अमेरिका भारत पर आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के लिये अपने कृषि बाज़ार को खोलने के लिये दबाव डाल रहा है। हालाँकि, भारत ने दृढ़ता से कहा है कि कृषि और डेयरी क्षेत्र 'पवित्र सीमा रेखाएँ' हैं और चेतावनी दी है कि GM फसलों के आयात की अनुमति देने से किसानों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें क्या हैं?

  • जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) फसलें वे पौधे हैं जिनके DNA को आधुनिक जैव-प्रौद्योगिकी तकनीकों द्वारा संशोधित किया जाता है, ताकि उनमें कीट प्रतिरोध, सूखा सहनशीलता या पोषण वृद्धि जैसे वांछनीय गुण जोड़े या बढ़ाए जा सकें।
  • वैश्विक स्वीकृति: जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) फसलों की वाणिज्यिक शुरुआत सबसे पहले वर्ष 1994 में अमेरिका में हुई थी, जब Flavr Savr टमाटर को बाज़ार में लाया गया। इसे धीरे पकने के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित किया गया था।
    • इंटरनेशनल सर्विस फॉर द एक्विजिशन ऑफ एग्री-बायोटेक एप्लिकेशन्स (ISAAA) के अनुसार, वर्ष 2019 तक 29 देशों के 1.7 करोड़ से अधिक किसान 190 मिलियन हेक्टेयर से अधिक भूमि पर GM फसलों की खेती कर रहे थे।
  • भारत में नियामक ढाँचा: भारत में GM फसलों को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत बनाए गए "खतरनाक सूक्ष्मजीवों, आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण से संबंधित नियम (Rules, 1989)" के तहत नियंत्रित किया जाता है।
    • यह नियम GMOs (जेनेटिकली मोडिफाइड ऑर्गैनिज़्म्स) से जुड़ी सभी गतिविधियों जैसे अनुसंधान और बड़े पैमाने पर उपयोग, जिसमें निर्माण, आयात, भंडारण, बिक्री और निर्यात शामिल हैं, के लिये एक व्यापक नियामक ढाँचा प्रदान करता है।
    • ये नियम आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों, उनसे संबंधित उत्पादों, खाद्य वस्तुओं पर लागू होते हैं तथा कोशिका संकरण एवं जैव-इंजीनियरिंग जैसी नई जीन तकनीकों को भी कवर करते हैं। इन्हीं नियमों के आधार पर भारत की जैव-सुरक्षा व्यवस्था स्थापित की गई है।

Regulatory _Framework_on_GMO

GMO

भारत में GM फसलों को अपनाने की स्थिति क्या है?

  • स्वीकृत GM फसल: बीटी कपास भारत में वाणिज्यिक खेती के लिये स्वीकृत एकमात्र जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) फसल है, जिसे वर्ष 2002 में अनुमति दी गई थी। वर्तमान में यह भारत के कपास क्षेत्रफल के 90% से अधिक, यानी लगभग 1.2 करोड़ हेक्टेयर में उगाई जाती है।
    • बीटी कपास के कारण वर्ष 2002 से 2014 के बीच 193% उत्पादन में वृद्धि हुई, जिससे भारत वर्ष 2011–12 तक विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कपास निर्यातक बन गया।
    • इसने किसानों की आय बढ़ाने और कीटनाशकों के उपयोग को कम करने में भी योगदान दिया।
    • हालाँकि, वर्ष 2015 के बाद से कपास की उत्पादकता में गिरावट आई है, जो वर्ष 2013–14 में 566 किलोग्राम/हेक्टेयर थी, वह वर्ष 2023–24 में घटकर लगभग 436 किलोग्राम/हेक्टेयर रह गई है।
    • अब भारत चीन और ब्राज़ील से पीछे हो गया है, जिसका प्रमुख कारण कीटों की पुनः वृद्धि और GM तकनीकों को समय पर अपडेट न किया जाना बताया जा रहा है।
  • लंबित GM फसल अनुमोदन:
    • बीटी बैंगन: वर्ष 2009 में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) द्वारा अनुमोदित, लेकिन सार्वजनिक और राजनीतिक चिंताओं के कारण इसे स्थगित रखा गया।
    • HT-Bt कपास (शाकनाशी सहनशील): यह एक शाकनाशी-सहिष्णु GM किस्म है, जिसे भारत में व्यावसायिक उपयोग के लिये अनुमोदित नहीं किया गया है, लेकिन गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में इसकी अवैध रूप से खेती की जाती है। अनुमान है कि यह कुल कपास क्षेत्रफल का 15-25% कवर करता है।
    • GM सरसों (DMH-11): इसे वर्ष 2022 में पर्यावरणीय मंज़ूरी दी गई थी, लेकिन इसकी व्यावसायिक शुरुआत सर्वोच्च न्यायालय और नियामक संस्थाओं (GEAC) से अनुमति मिलने तक इसका व्यापक स्तर पर उपयोग रोका गया है।
    • अन्य फसलें: चना, अरहर और गन्ना जैसी फसलों की GM किस्में अनुसंधान, फील्ड ट्रायल तथा नियामक विचार-विमर्श के विभिन्न चरणों में हैं।

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों के प्रमुख लाभ क्या हैं?

  • उन्नत कीट एवं रोग प्रतिरोधक क्षमता: Bt कपास जैसी GM फसलें अपने भीतर ही कीटनाशक उत्पन्न करती हैं, जिससे बोलवर्म जैसे कीटों पर प्रभावी नियंत्रण होता है।
    • कीटनाशकों के उपयोग में कमी से लागत घटती है, उत्पादन बढ़ता है और पर्यावरणीय क्षति भी कम होती है, विशेषकर कीट-प्रभावित क्षेत्रों में।
  • जलवायु अनुकूल और संसाधन दक्षता: GM फसलें सूखा, लवणीयता (Salinity) और अत्यधिक तापमान को सहन करने के लिये विकसित की जाती हैं, जो जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
    • उदाहरण के लिये केन्या में सूखा-सहिष्णु मक्का की उत्पादकता शुष्क मौसम में भी बेहतर रही है। 
    • इसके अतिरिक्त C4 राइस और नाइट्रोजन-कुशल किस्मों जैसी GM फसलों का लक्ष्य कम पानी, उर्वरक और भूमि का उपयोग करते हुए अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना है।
  • पोषण संवर्द्धन (बायोफोर्टिफिकेशन): GM प्रौद्योगिकी आवश्यक पोषक तत्त्वों से युक्त फसलों के विकास को सक्षम बनाती है, जिससे छिपी हुई भूख की समस्या का समाधान होता है। 
    • उदाहरण: गोल्डन राइस (विटामिन A के लिये बीटा-कैरोटीन), आयरन युक्त चावल और जिंक युक्त गेहूँ, सीमित आहार विविधता और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों तक खराब पहुँच वाले देशों में कुपोषण को लक्षित करते हैं।
  • कटाई के बाद होने वाले नुकसान में कमी: लंबी शेल्फ-लाइफ वाली GM फसलें (जैसे फ्लेवर सेवर टमाटर) कटाई के बाद होने वाली क्षति को कम करती हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ ठंडा भंडारण और रेफ्रिजरेशन की सुविधाएँ नहीं हैं
    • शाकनाशी-सहिष्णु फसलें बिना जुताई वाली खेती को संभव बनाती हैं, जिससे मिट्टी का कटाव, कार्बन उत्सर्जन में कमी और पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण संभव होता है।
  • चिकित्सा और पर्यावरणीय सफाई में नवाचार: GM फसलों पर बायोफार्मिंग के लिये शोध किया जा रहा है, जैसे कि केला तथा आलू जैसे पौधों में वैक्सीन एवं चिकित्सकीय यौगिकों का उत्पादन, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की लागत घट सकती है व पहुँच बढ़ सकती है।
    • इसके अलावा फाइटोरेमिडिएशन (यानि पौधों द्वारा प्रदूषकों की सफाई) के लिये GM पौधों जैसे संशोधित पॉपलर का उपयोग किया जा रहा है, जो भारी धातुओं और विषाक्त तत्त्वों को अवशोषित कर सकते हैं।

Benefits_Of_GM_Crops

भारत में GM फसलों को अपनाने से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं?

  • पर्यावरण और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएएँ: GM फसलें जंगली प्रजातियों में जीन प्रवाह (Gene Flow) का कारण बन सकती हैं, जिससे शाकनाशी (हर्बीसाइड)-प्रतिरोधी सुपरवीड्स विकसित हो सकते हैं। वहीं, बीटी फसलें गैर-लक्ष्यित कीटों को नुकसान पहुँचा सकती हैं तथा एकल फसलीकरण के कारण जैवविविधता में कमी ला सकती हैं।
    • स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं में संभावित एलर्जेंस, पोषण संबंधी बदलाव तथा दीर्घकालिक सुरक्षा शामिल हैं, जैसा कि StarLink मक्का प्रकरण (2000) में देखा गया था, जहाँ केवल पशु चारे के लिये स्वीकृत GM मक्का का उपयोग मानव खाद्य शृंखला में किया जाने लगा था।
  • नियामक और नीतिगत बाधाएँ: भारत में GM फसलों को मंजूरी देने में देरी नियामक अस्पष्टता, दीर्घकालिक प्रतिबंध और राजनीतिक झिझक के कारण होती है, यहाँ तक ​​कि Bt ब्रिंजल तथा GM मस्टर्ड जैसी वैज्ञानिक रूप से स्वीकृत फसलों के लिये भी।
    • कॉटन सीड प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (2015) जैसी नीतियाँ और अनिवार्य प्रौद्योगिकी हस्तांतरण प्रावधानों ने निजी अनुसंधान एवं विकास (R&D) को हतोत्साहित किया है, जिससे जैव-प्रौद्योगिकी नवाचार में रुकावट आई है।
  • सामाजिक-आर्थिक और नैतिक मुद्दे: छोटे किसानों के लिये बाज़ार पर एकाधिकार, बीज पर निर्भरता और उच्च कृषि लागत जैसी चिंताएँ बनी रहती हैं।
    • नैतिक पहलुओं में "ईश्वर की भूमिका निभाने (Playing God) जैसी आलोचना, खाद्य संप्रभुता, और सामुदायिक अधिकार शामिल हैं, जो सार्वजनिक स्वीकार्यता को प्रभावित करते हैं।
    • मोनसेंटो (अमेरिका स्थित कृषि जैव प्रौद्योगिकी कंपनी) द्वारा GM बीजों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों के प्रवर्तन जैसे मामलों ने भारत, अमेरिका और कनाडा में विशेषता शुल्क, बीज संप्रभुता तथा पेटेंट योग्यता पर वैश्विक विवादों को जन्म दिया है।
  • सह-अस्तित्व, संदूषण और अवैध कृषि: GM और गैर-GM फसलों का सह-अस्तित्व पराग-परिवर्तन (Cross-pollination) के कारण चुनौतियाँ उत्पन्न करता है, जिससे जैविक प्रमाणन तथा बाज़ार तक पहुँच पर जोखिम उत्पन्न होता है (जैसे वर्ष 2013 का ओरेगन GM गेहूँ मामला)
    • भारत में, HT-Bt कॉटन को गैरकानूनी रूप से लगभग 25% कपास क्षेत्रफल पर उगाया जा रहा है, जिससे जैव-सुरक्षा संबंधी जोखिम उत्पन्न हो रहे हैं और अनियमित बीजों की कालाबाज़ारी हो रही है।
  • प्रतिरोध का विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: GM विशेषताओं के अत्यधिक उपयोग ने कीटों और खरपतवारों में प्रतिरोध उत्पन्न कर दिया है, जिससे Bt कॉटन और ग्लाइफोसेट-प्रतिरोधी फसलों की प्रभावशीलता कम हो गई है तथा निरंतर नवाचार की आवश्यकता बढ़ गई है।
    • भारत के कपास निर्यात में गिरावट और वर्ष 2024–25 में शुद्ध आयातक बनने से संकेत मिलता है कि GM तकनीक को अपनाने में देरी तथा नवाचार की रुकावट के कारण भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता घट रही है

भारत में GM फसलों को ज़िम्मेदारीपूर्वक अपनाने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये?

  • पारदर्शी, विज्ञान-आधारित विनियमन: भारत को अपने GM फसलों की अनुमोदन प्रक्रिया को समयबद्ध, साक्ष्य-आधारित और स्वतंत्र प्राधिकरण द्वारा संचालित करना चाहिये, जिसमें विभिन्न हितधारकों की भागीदारी हो।
    • पारदर्शी फील्ड परीक्षण, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा, स्वतंत्र निगरानी, दीर्घकालिक प्रभावों का मूल्यांकन और नियमित पारिस्थितिक समीक्षा जैव-सुरक्षा तथा जैव विविधता की चिंताओं को दूर करने के लिये आवश्यक हैं।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास (R&D) को सशक्त बनाना: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल के तहत जैव-प्रौद्योगिकी अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाना चाहिये, ताकि नवाचार और जनहित के बीच संतुलन बना रहे। कॉटन सीड प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (2015) और अनिवार्य तकनीकी हस्तांतरण नियमों जैसे हतोत्साहित करने वाले प्रावधानों में सुधार किया जाना चाहिये।
    • भारतीय परिस्थितियों और पोषण आवश्यकताओं के अनुरूप क्षेत्र-विशिष्ट GM फसलों के विकास का समर्थन किया जाना चाहिये, जिसमें बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) साझा करने की स्पष्ट व्यवस्था हो और बायोफोर्टिफाइड (पोषण-संपन्न) फसलों के अनुसंधान एवं विकास (R&D) के लिये वित्तीय सहायता में वृद्धि करना।
  • समावेशी और उत्तरदायी GM फसल शासन: किसान-केंद्रित नीतियों को अपनाना, गुणवत्तापूर्ण बीजों तक पहुँच, प्रशिक्षण, बीमा और निर्णय लेने में भागीदारी सुनिश्चित करना, साथ ही बीज एकाधिकार को रोकना तथा राष्ट्रीय जीन बैंक के माध्यम से स्वदेशी किस्मों को संरक्षित करना।   
    • GM और गैर-GM फसलों के सह-अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिये बफर ज़ोन तथा पृथक्करण दूरी निर्धारित करना। इसके अलावा, GM लेबलिंग, जन-जागरूकता और गैरकानूनी कृषि के खिलाफ सख्त प्रवर्तन को लागू करना।
  • वैश्विक मानक और पोषण पर केंद्रित दृष्टिकोण: जैव-सुरक्षा मानकों और व्यापार विनियमों को समान रूप से लागू करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय भागीदारी की जाएँ। सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने के लिये बायोफोर्टिफाइड GM फसलों जैसे गोल्डन राइस, आयरन-युक्त दालें और जिंक-संपन्न गेहूँ को प्राथमिकता दें। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के साथ मिलकर पायलट कार्यक्रम शुरू करें ताकि इन फसलों के वास्तविक स्वास्थ्य लाभों को प्रदर्शित किया जा सके।

निष्कर्ष

भारत के जीन संवर्धित फसलों का विकास, Bt कॉटन की सफलता और एक लंबे नीतिगत गतिरोध से चिह्नित है, जो वैज्ञानिक संभावना तथा नियामक झिझक के बीच के तनाव को दर्शाता है। जलवायु चुनौतियों, पोषण की कमी तथा व्यापारिक असुरक्षाओं के दौर में, अब एक विज्ञान-आधारित, किसान-केंद्रित और नवाचार-सक्षम नीति दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य है। जैसा कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ठीक ही कहा था, "वॉट आईटी इज़ टू इंडिया, बीटी इज़ टू भारत (What IT is to India, BT is to Bharat)" , यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसे अब कार्यरूप में परिणत किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न

प्रश्न. जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जनसंख्या के बीच आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें भारत की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में किस प्रकार योगदान दे सकती हैं? इनके व्यापक रूप से अपनाए जाने से जुड़ी संभावनाओं और जोखिमों का मूल्यांकन कीजिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. पीड़कों को प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ हैं जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपों का निर्माण किया गया है? (2012) 

  1. सूखा सहन करने के लिये सक्षम बनाना  
  2.  उत्पाद में पोषकीय मान बढ़ाना 
  3.  अंतरिक्ष यानों और अंतरिक्ष स्टेशनों में उन्हें उगाने तथा प्रकाश संश्लेषण करने के लिये सक्षम बनाना
  4.  उनकी शेल्फ लाइफ बढ़ाना 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3 और 4
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (c)


प्रश्न. बोल्गार्ड I और बोल्गार्ड II प्रौद्योगिकियों का उल्लेख किसके संदर्भ में किया गया है? (2021)

(a) फसल पौधों का क्लोनल प्रवर्द्धन
(b) आनुवंशिक रूप से संशोधित फसली पौधों का विकास
(c) पादप वृद्धिकर पदार्थों का उत्पादन
(d) जैव उर्वरकों का उत्पादन

उत्तर: B


मेन्स

प्रश्न. किसानों के जीवन स्तर को सुधारने में जैव प्रौद्योगिकी कैसे मदद कर सकती है? (2019)


मुख्य परीक्षा

भारत में कृषि विकास से संबंधित पहलें

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों? 

16वें एग्रीकल्चर लीडरशिप कॉन्क्लेव में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने भारत में कृषि विकास को गति देने वाली प्रमुख पहलों पर प्रकाश डाला, जिनमें मृदा स्वास्थ्य, कृषि ऋण की पहुँच, डिजिटल नवाचार और वैश्विक व्यापार पर विशेष ज़ोर दिया गया।

भारत में कृषि विकास को प्रोत्साहित करने वाली प्रमुख पहलें क्या हैं?

  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में वृद्धि: कई फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसमें दलहन और तिलहन की फसलों का MSP 98% तक बढ़ा है। इससे किसानों को सीधा लाभ मिल रहा है, क्योंकि उनकी उपज के लिये लाभकारी मूल्य सुनिश्चित किया गया है।
    • यह नीति किसानों को उनकी उपज के लिये उचित मूल्य सुनिश्चित करती है, जिससे बाज़ार की अस्थिरता से होने वाले जोखिम कम होते हैं और वित्तीय सुरक्षा मिलती है।
  • मृदा स्वास्थ्य कार्ड: अब तक 25 करोड़ से अधिक मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किये जा चुके हैं। ये कार्ड किसानों को उनकी भूमि की पोषण स्थिति की जानकारी देते हैं, जिससे वे उपयुक्त उर्वरक का सही मात्रा में उपयोग कर सकते हैं। इससे पैदावार बढ़ती है और हानिकारक रसायनों पर निर्भरता कम होती है।
  • किसान क्रेडिट कार्ड (KCC): KCC किसानों को आसान और त्वरित ऋण सुविधा प्रदान करता है जिससे वे समय पर बीज, खाद, सिंचाई आदि के लिये पूंजी जुटा पाते हैं।
    • वर्ष 2024 तक, 7.75 करोड़ सक्रिय किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) खाते हैं जिन पर 9.81 लाख करोड़ रुपए का बकाया ऋण है। इसके अतिरिक्त, मत्स्य पालन के लिये 1.24 लाख और पशुपालन गतिविधियों के लिए 44.4 लाख KCC कार्ड जारी किये  गए हैं।
  • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि: यह एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है जिसका 100% वित्तपोषण भारत सरकार द्वारा किया जाता है। इस योजना के तहत सभी भूमिधारक किसान परिवारों को तीन समान किश्तों में प्रति वर्ष 6,000 रुपए की आय सहायता प्रदान की जाएगी।
    • यह धनराशि सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में हस्तांतरित की जाएगी।
    • वर्ष 2024 तक, लगभग 11.8 करोड़ किसानों को इस योजना के अंतर्गत वित्तीय सहायता प्राप्त हो चुकी है, जिससे यह विश्व की सबसे बड़ी प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) योजनाओं में से एक बन गई है।
  • e-NAM एकीकरण: पारदर्शिता और मूल्य प्राप्ति में सुधार के लिये 1,400 मंडियों को इलेक्ट्रॉनिक राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) से जोड़ा गया है।
  • उर्वरक सब्सिडी: भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिये उर्वरक सब्सिडी के लिये 1.67 लाख करोड़ रुपए से अधिक का बजट निर्धारित किया है, जो भारत के कृषि बजट का लगभग 70% है। उर्वरक सब्सिडी भारत के कुल सब्सिडी व्यय का लगभग 40% है।
  • मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए): ऑस्ट्रेलिया, यूएई, ईएफटीए राष्ट्रों और यूके के साथ भारत के एफटीए ने भारतीय कृषि उत्पादों के लिए नए अंतर्राष्ट्रीय बाजार खोल दिए हैं।
  • डिजिटल एग्रीकल्चर (डिजिटल कृषि): कृषि क्षेत्र को आधुनिक बनाने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), भू-स्थानिक तकनीक, मौसम पूर्वानुमान और वर्टिकल फार्मिंग पर विशेष जोर दिया जा रहा है।
    • डिजिटल एग्रीकल्चर मिशन, जिसे वर्ष 2024 में स्वीकृति मिली, का उद्देश्य एक किसान-केंद्रित डिजिटल इकोसिस्टम का निर्माण करना है। इसमें एग्रीस्टैक (AgriStack) जैसे प्रमुख घटक शामिल हैं, जो किसानों का डेटा, भूमि और फसल से जुड़ी जानकारी को डिजिटाइज़ करता है, ताकि उन्हें क्रेडिट, बीमा जैसी सेवाओं तक आसानी से पहुंच मिल सके।
  • किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) को समर्थन: "10,000 FPOs के गठन और संवर्द्धन" योजना, जिसे वर्ष 2020 में शुरू किया गया था, का उद्देश्य छोटे और सीमांत किसानों को एकजुट कर बेहतर बाज़ार पहुँच, इनपुट लागत में कमी तथा आय में वृद्धि सुनिश्चित करना है।
    • फरवरी, 2025 तक लगभग 30 लाख किसान (40% महिलाएँ) FPO में शामिल हो चुके हैं। 
    • FPO को कृषि, खाद्य प्रसंस्करण सहित कई मंत्रालयों से समर्थन प्राप्त है। एक समर्पित क्रेडिट गारंटी फंड के माध्यम से उन्हें ऋण सुविधा में सुधार मिलता है, जिससे FPO की क्षमता बढ़ती है तथा ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा मिलता है।
  • कृषि-निर्यात और मूल्य संवर्द्धन: भारत के कृषि और मत्स्य निर्यात 4.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गए हैं और इसे 20 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ाने की क्षमता है।
  • बुनियादी ढाँचा और सिंचाई: वेयरहाउसिंग, कोल्ड चेन, ड्रिप सिंचाई और जैविक/प्राकृतिक खेती जैसी संरचनाओं में निवेश को बढ़ाया जा रहा है।
    • एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (AIF) योजना का विस्तार किया गया है ताकि सामुदायिक खेती परिसंपत्तियों, एकीकृत प्रसंस्करण परियोजनाओं और पीएम-कुसुम (PM-KUSUM) के साथ समन्वय के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा सके।
    • वर्ष 2015 से 2025 के बीच, 96.97 लाख हेक्टेयर भूमि को 'प्रति बूंद अधिक फसल (PDMC)' योजना के तहत माइक्रो सिंचाई से जोड़ा गया है, जिसमें 46.37 लाख हेक्टेयर क्षेत्र ड्रिप सिंचाई और 50.60 लाख हेक्टेयर क्षेत्र स्प्रिंकलर सिंचाई के अंतर्गत आता है।

भारत का कृषि विकास:

  • कृषि और संबद्ध क्षेत्र ने वित्त वर्ष 2017 से 2023 के बीच प्रतिवर्ष 5% की दर से वृद्धि दर्ज की, जिसमें सकल मूल्यवर्द्धन (GVA) की हिस्सेदारी वर्ष 2014-15 में 24.38% से बढ़कर 2022-23 में 30.23% हो गई।
  • वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत का एग्रो-फूड निर्यात 46.44 अरब अमेरिकी डॉलर (कुल निर्यात का 11.7%) तक पहुँच गया। प्रोसेस्ड फूड (प्रसंस्कृत खाद्य) का हिस्सा वित्त वर्ष 2018 में 14.9% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 23.4% हो गया है, जो मूल्य संवर्द्धन में वृद्धि को दर्शाता है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न:  कृषि विकास और किसानों की आय बढ़ाने के प्रति भारत के एकीकृत दृष्टिकोण का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स:

Q. भारतीय कृषि की प्रकृति की अनिश्चितताओं पर निर्भरता के मद्देनज़र, फसल बीमा की आवश्यकता की विवेचना कीजिये और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पी० एम० एफ० बी० वाइ०) की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। (2016)

Q. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि क्षेत्र में हुई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों की व्याख्या कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार मदद की है?  (2017)


सामाजिक न्याय

विश्व जनसंख्या दिवस 2025 और भारत का युवा वर्ग

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व जनसंख्या दिवस, जनसांख्यिकी लाभांश, राष्ट्रीय युवा नीति 2014, स्टार्टअप इंडिया, राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS), बेरोज़गारी, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना।               

मेन्स के लिये:

भारत में युवा जनसंख्या से जुड़े अवसर और चुनौतियाँ तथा उन्हें सशक्त बनाने हेतु आवश्यक कदम।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

11 जुलाई को मनाया जाने वाला विश्व जनसंख्या दिवस वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित किया गया था, जिसका उद्देश्य जनसंख्या से जुड़े मुद्दों और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना है।

  • विश्व जनसंख्या दिवस 2025 की थीम है: "युवाओं को एक निष्पक्ष और उम्मीद भरी दुनिया में अपने मनचाहे परिवार बनाने के लिये सशक्त बनाना (Empowering young people to create the families they want in a fair and hopeful world)", जिसका उद्देश्य युवाओं को यौन तथा प्रजनन स्वास्थ्य से संबंधित सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाना है। 

भारत में युवाओं की स्थिति क्या है?

  • युवा जनसंख्या प्रोफाइल: UNICEF के अनुसार, भारत में विश्व की सबसे बड़ी युवा जनसंख्या है, जिसमें 15 से 29 वर्ष की आयु वर्ग के 371 मिलियन लोग शामिल हैं।
    • जनसंख्या प्रक्षेपण पर तकनीकी समूह (2021) के अनुसार, वर्ष 2021 में 15 से 29 वर्ष की आयु वाले युवा देश की कुल जनसंख्या का 27.2% थे, लेकिन अनुमान है कि यह अनुपात वर्ष 2036 तक घटकर 22.7% रह जाएगा।
  • जनसांख्यिकीय महत्त्व: युवाओं की बड़ी जनसंख्या श्रम शक्ति में भागीदारी बढ़ाती है और निर्भरता अनुपात को कम करती है, जिससे देश को जनसांख्यिकीय लाभांश (Demographic Dividend) प्राप्त होता है। 
  • नीति एवं शासन: युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय के अधीन युवा मामले विभाग युवाओं से संबंधित नीतियों और कार्यक्रमों के लिये नोडल एजेंसी है।
    • इसके दो उद्देश्य हैं - व्यक्तित्व विकास और राष्ट्र निर्माण
  • युवा नीति का विकास:
    • राष्ट्रीय युवा नीति, 1988: यह भारत की पहली संगठित युवा नीति थी, जिसने युवाओं की राष्ट्र निर्माण में भूमिका को रेखांकित किया और उनके व्यक्तित्व तथा कौशल विकास पर विशेष ध्यान दिया।
    • राष्ट्रीय युवा नीति 2003: यह नीति वर्ष 1988 की नीति का स्थान लेने के लिये लाई गई थी। इसमें युवाओं की आयु सीमा 13 से 35 वर्ष के रूप में परिभाषित की गई और इसका उद्देश्य था देशभक्ति, सामाजिक न्याय तथा राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना।
    • राष्ट्रीय युवा नीति 2014: यह नीति वर्ष 2003 की नीति का स्थान लेने के लिये लाई गई थी। इसमें युवाओं की आयु सीमा 15 से 29 वर्ष निर्धारित की गई है। इसका उद्देश्य युवाओं को इस प्रकार सशक्त बनाना है कि वे अपनी पूर्ण क्षमताओं का विकास कर सकें और भारत को वैश्विक मंच पर अग्रणी बनाने में योगदान दे सकें। इस नीति में 5 प्रमुख उद्देश्य और 11 प्राथमिकता वाले क्षेत्र निर्धारित किये गए हैं।
    • राष्ट्रीय युवा नीति 2024: सरकार ने राष्ट्रीय युवा नीति (NYP) 2014 को अद्यतन किया है और NYP 2024 के लिये एक मसौदा जारी किया है, जिसमें सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के अनुरूप युवा विकास के लिये 10-वर्षीय दृष्टिकोण की रूपरेखा प्रस्तुत की गई है। मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:   

 

  • वर्ष 2030 तक युवा विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक स्पष्ट रोडमैप तैयार किया गया है।
  • कॅरियर और जीवन कौशल को बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) के साथ समन्वय किया गया है।
  • नेतृत्व, स्वयंसेवा (वॉलंटियरिंग) और प्रौद्योगिकी-संचालित सशक्तीकरण को प्रोत्साहित किया गया है।
  • मानसिक और प्रजनन स्वास्थ्य, खेल तथा फिटनेस पर विशेष ज़ोर दिया गया है।
  • हाशिये पर मौजूद युवाओं के लिये सुरक्षा, न्याय और सहायता सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गई है।

भारत की युवा जनसंख्या क्या अवसर प्रस्तुत करती है?

  • जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ: युवाओं की बहुलता वाली जनसंख्या से निर्भरता अनुपात घटता है और आर्थिक रूप से सक्रिय नागरिकों की संख्या बढ़ती है, जिससे GDP तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि संभव होती है।
    • विश्व बैंक और नीति आयोग के अनुसार, यदि इस संभावना का सही उपयोग किया जाए तो वर्ष 2030 तक भारत की GDP में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की बढ़ोतरी हो सकती है।
  • नवाचार और उद्यमिता: युवा उद्यमियों की अगुवाई में भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम तेज़ी  से विकसित हुआ है। स्टार्टअप इंडिया जैसी पहलों ने युवा-केंद्रित नवाचार संस्कृति को बढ़ावा दिया है।
  • वैश्विक कार्यबल में बढ़त: भारत की युवा श्रम शक्ति, तकनीक, स्वास्थ्य और इंजीनियरिंग क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिभा की कमी को पूरा कर सकती है। कम श्रम लागत के चलते भारत उत्पादन और सेवा क्षेत्रों का वैश्विक केंद्र बनता जा रहा है। 
    • उदाहरण के लिये, वृद्ध होती जनसंख्या की बढ़ती चुनौती का सामना कर रहे जर्मनी और जापान जैसे देश अब कुशल श्रमिकों की कमी को पूरा करने के लिये भारत के युवाओं की ओर रुख कर रहे हैं।
  • सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव: भारतीय युवा पारंपरिक रूढ़ियों को चुनौती दे रहे हैं, लैंगिक समानता को बढ़ावा दे रहे हैं और सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत बन रहे हैं। साथ ही, वे फिल्मों, संगीत और डिजिटल सामग्री के माध्यम से वैश्विक स्तर पर भारत की सॉफ्ट पावर को भी विस्तार दे रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये, पिंजरा तोड़ (Pinjra Tod) जैसे युवा-नेतृत्व वाले आंदोलन महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिये संघर्ष कर रहे हैं।
  • लोकतंत्र को सशक्त बनाना: राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) जैसी पहलों के माध्यम से युवाओं को शामिल करना नागरिक जागरूकता, नेतृत्व क्षमता और लोकतांत्रिक जवाबदेही को मज़बूत करता है।
    • उदाहरण के लिये, स्वच्छ भारत अभियान के माध्यम से प्रधानमंत्री ने युवाओं को स्वच्छता, व्यवहार परिवर्तन और सामुदायिक नेतृत्व के प्रमुख प्रेरक शक्ति के रूप में संगठित किया।

भारत में युवाओं के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएँ: भारत में अनचाहे गर्भधारण (36%) और अपूर्ण प्रजनन लक्ष्यों (30%) की उच्च दर है, जिसमें 23% महिलाएँ दोनों समस्याओं से पीड़ित हैं
    • हालाँकि बाल विवाह में कमी आई है, फिर भी यह NFHS-5 के अनुसार राष्ट्रीय स्तर पर 23.3% है।
  • लैंगिक असमानता: पितृसत्तात्मक सामाजिक मान्यताएँ युवा महिलाओं की शिक्षा, रोज़गार और निर्णय लेने की स्वतंत्रता को सीमित करती हैं। कई महिलाएँ लैंगिक-संवेदनशील कार्यस्थल, कौशल प्रशिक्षण और आर्थिक आत्मनिर्भरता से वंचित रहती हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य संकट:  युवा वर्ग बढ़ते तनाव, दुश्चिंता तथा अवसाद के साथ-साथ सहायता की पहुँच सीमित और निरंतर कलंक के कारण मानसिक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहा है।
  • वर्ष 2020–22 के बीच भारत में 15–29 वर्ष की आयु के 60,700 से अधिक युवाओं की आत्महत्या से मृत्यु हुई, जो विश्व में सबसे अधिक है।
  • रोज़गार संकट: शिक्षा और नौकरी के बीच कौशल का अंतर बढ़ता जा रहा है, जिससे शिक्षित युवाओं में बेरोज़गारी बढ़ रही है। कई युवा मज़बूरी में गिग इकोनॉमी की अस्थिर नौकरियों में कार्य कर रहे हैं, जिनमें लाभ और सुरक्षा की कमी होती है।
  • मादक द्रव्यों का सेवन: युवा वर्ग साथियों के दबाव और तनाव के कारण नशीले पदार्थों की लत के प्रति अधिक संवेदनशील हो रहा है तथा पर्याप्त पुनर्वास सुविधाओं की कमी के कारण यह समस्या और भी बदतर हो रही है।

युवाओं से संबंधित सरकार की प्रमुख पहलें:

भारत में युवाओं को सशक्त बनाने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये?

  • शिक्षा में क्रांति: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत रटकर याद करने की प्रणाली को बदलकर आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और समस्या-समाधान क्षमता को बढ़ावा देना, डिजिटल साक्षरता सुनिश्चित करना तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण (Vocational Training) को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करना है।
  • रोज़गार से जुड़ा कौशल विकास: प्रधानमंत्री राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्द्धन योजना (PM-NAPS) के अंतर्गत बड़ी कंपनियों में शिक्षुता के अवसरों को प्रोत्साहित करना, उभरते क्षेत्रों में कौशल उन्नयन मिशन शुरू करना और वित्तीय सहायता के माध्यम से युवा उद्यमिता को बढ़ावा देना।
  • स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच: सुलभ मानसिक स्वास्थ्य सहायता स्थापित करना, पौष्टिक भोजन के माध्यम से पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना तथा ग्रामीण क्षेत्रों में निशुल्क गर्भनिरोधकों के साथ प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाना।
  • खेल और कला क्षेत्र में अवसंरचना विकास: ग्रामीण प्रशिक्षण सुविधाओं को मज़बूत करके, युवा कलाकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करके और प्रतिभाशाली युवाओं के लिये अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर खेल एवं कला अवसंरचना का विस्तार करना।
  • डिजिटल सशक्तीकरण: इंटरनेट पहुँच का विस्तार करके, युवाओं में डिजिटल कौशल का निर्माण करके और समावेशी डिजिटल विकास के लिये डिजिटल इंडिया को मज़बूत करके डिजिटल विभाजन को कम करना। 

निष्कर्ष

भारत का युवा वर्ग विश्व में सबसे बड़ा है और परिवर्तनकारी जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान करता है। इस संभावनाओं का पूरा लाभ उठाने के लिये भारत को बेरोज़गारी, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और लैंगिक असमानता जैसी चुनौतियों का समाधान करना होगा, साथ ही शिक्षा, कौशल एवं नवाचार को भी बढ़ावा देना होगा। रणनीतिक नीतियाँ और समावेशी विकास युवाओं को सशक्त बना सकते हैं, जिससे वे भारत की वैश्विक प्रगति के अग्रदूत बन सकें तथा सतत् विकास एवं समान प्रगति सुनिश्चित हो सके।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के युवाओं को अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। इन चुनौतियों को अवसरों में बदलने के उपाय सुझाइए।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है- (2013)

(a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है

उत्तर:(c)


मेन्स 

प्रश्न: भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)

प्रश्न. हाल के समय में भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति का वर्णन अक्सर नौकरीहीन संवृद्धि के तौर पर किया जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2015)


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