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डेली न्यूज़

  • 14 Jul, 2025
  • 49 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

घटती घरेलू बचत और बढ़ती देयता

प्रिलिम्स के लिये:

मुद्रास्फीति, सुकन्या समृद्धि योजना, महिला सम्मान बचत प्रमाणपत्र, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS), बचत का विरोधाभास, FDI, गैर-निष्पादित आस्तियाँ  (NPA), UPI, जन धन, e-RUPI, मुद्रास्फीति अनुक्रमित बॉण्ड, अटल पेंशन योजना, सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड।    

मेन्स के लिये:

भारत में घरेलू बचत की वर्तमान प्रवृत्ति, कम घरेलू बचत दर और बढ़ते घरेलू ऋण के निहितार्थ, भारत में स्थायी घरेलू बचत बनाए रखने तथा ऋण प्रबंधन हेतु आवश्यक रणनीतियाँ।

स्रोत: बिज़नेस लाइन 

चर्चा में क्यों?

भारत का घरेलू बचत प्रारूप एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन से गुजर रहा है, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और घरेलू पूंजी निर्माण को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं।

भारत में घरेलू बचत की वर्तमान प्रवृत्ति क्या है?

  • घटती सकल बचत दर: भारत की सकल घरेलू बचत दर वर्ष 2011–12 में GDP का 34.6% थी, जो वर्ष 2022–23 में घटकर 29.7% रह गई — यह पिछले चार दशकों में सबसे निम्न स्तर है। जबकि घरेलू निवल बचत जो पारंपरिक रूप से कुल बचत का 60% होती है, उसमें भी गिरावट आई है।
  • बढ़ता घरेलू ऋण: वित्त वर्ष 2023–24 में घरेलू देयता (ऋण) GDP के 6.4% तक पहुँच गया, जो वर्ष 2007 के उच्चतम स्तर (6.6%) के करीब है। यह वृद्धि मुख्यतः उपभोग, आवास और शिक्षा के लिये ऋण लेने के कारण हुई है।
  • बचत प्रारूप में बदलाव: भौतिक बचत (जैसे स्वर्ण, स्थावर संपदा) वर्ष 2019–20 के 59.7% से बढ़कर वर्ष 2023–24 में 71.5% हो गई। वहीं, वित्तीय बचत 40.3% से घटकर 28.5% रह गई है।
    • वित्तीय बचत के अंतर्गत, बैंक जमा का हिस्सा वित्त वर्ष 2011–12 में जहाँ 58% था, वह घटकर वित्त वर्ष 2022–23 में 37% रह गया। वहीं, इक्विटी और म्यूचुअल फंडों में निवेश लगभग दोगुना हो गया — जो वित्त वर्ष 2020–21 में 1.02 लाख करोड़ रुपए था, वह 2022–23 में बढ़कर 2.02 लाख करोड़ रुपए हो गया।
  • शहरी बनाम ग्रामीण अंतर: शहरी परिवार अब तेज़ी से वित्तीय साधनों (जैसे म्यूचुअल फंड, इक्विटी) में निवेश कर रहे हैं क्योंकि उन्हें वित्तीय सेवाओं तक बेहतर पहुँच प्राप्त है। वहीं, ग्रामीण परिवार अब भी नकदी और भौतिक संपत्तियों को प्राथमिकता देते हैं, जो वित्तीय समावेशन में अंतर को उजागर करता है।
  • कोविड-19 के बाद और मुद्रास्फीतिक दबाव: कोविड-19 के दौरान व्यय में गिरावट के कारण बचत में अस्थायी बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन अर्थव्यवस्था खुलने के बाद यह प्रवृत्ति पलट गईउच्च मुद्रास्फीति के कारण व्यक्तिगत आय (Disposable income) में गिरावट आई और कम वास्तविक ब्याज दरों ने पारंपरिक बचत विकल्पों (जैसे सावधि जमा) को कम आकर्षक बना दिया।

घरेलू बचत और घरेलू ऋण

  • परिचय:  घरेलू बचत से तात्पर्य है कि किसी परिवार की व्यक्तिगत आय का वह हिस्सा जो उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता, बल्कि भविष्य के लिये सुरक्षित रखा जाता है। यह सामान्यतः बैंक जमा, निवेश, बीमा या भौतिक संपत्तियों (जैसे स्वर्ण या संपत्ति) के रूप में होती है।
  • प्रकार: भारत में घरेलू (HH) बचत में निवल वित्तीय बचत (NFS) और भौतिक बचत शामिल हैं।
    • NFS की गणना सकल वित्तीय बचत (GFS) से वित्तीय देयता (वार्षिक उधार) को घटाकर की जाती है, जिसमें मुद्रा, जमा, बीमा, भविष्य निधि और पेंशन निधि (P&PF), शेयर व डिबेंचर, लघु बचत तथा अन्य शामिल हैं।
    • भौतिक बचत में मुख्य रूप से आवासीय स्थावर संपदा (लगभग दो-तिहाई) और HH-क्षेत्र के उत्पादकों के स्वामित्व वाली मशीनरी/उपकरण शामिल हैं।
  • घरेलू ऋण: इससे तात्पर्य उन सभी ऋणों से है जो किसी परिवार (या परिवारों की सेवा करने वाले गैर-लाभकारी संगठनों) द्वारा लिये गए हैं, जिन्हें निर्धारित भविष्य की तारीख तक मूलधन या ब्याज सहित ऋणदाताओं को चुकाना अनिवार्य होता है
  • घरेलू बचत से संबंधित पहल: सुकन्या समृद्धि योजना, किसान विकास पत्र योजना, महिला सम्मान बचत प्रमाणपत्र, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) आदि।

कम घरेलू बचत दर और बढ़ते घरेलू ऋण के क्या निहितार्थ हैं?

  • घरेलू पूंजी निर्माण में कमी: घरेलू बचत में कमी, जो निवेश और पूँजी निर्माण का एक प्रमुख स्रोत होती है, सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को धीमा कर सकती है तथा विदेशी पूँजी (जैसे FDI, बाह्य ऋण) पर निर्भरता बढ़ा सकती है, जिससे बाह्य जोखिमों की संभावना और अधिक बढ़ जाती है।
  • उपभोग-संचालित विकास: कम बचत अधिक उपभोग व्यय को दर्शाती है, जो अल्पकालिक मांग को तो बढ़ा सकती है, किंतु दीर्घकालिक निवेश क्षमता को घटा देती है। इससे ऋण-आधारित विकास को अस्थिर बना सकता है, जैसा कि वर्ष 2008 की अमेरिका की सबप्राइम संकट में देखा गया था।
  • राजकोषीय और मौद्रिक नीति पर दबाव: निजी बचत में गिरावट सरकार को उच्च करों या व्यय में कटौती के माध्यम से सार्वजनिक बचत बढ़ाने के लिये विवश कर सकती है, जबकि RBI के समक्ष एक दुविधा उत्पन्न होती है—निम्न ब्याज दरें बचत को हतोत्साहित करती हैं, जबकि उच्च दरें ऋण की लागत बढ़ा देती हैं।
  • घरेलू ऋण तनाव में वृद्धि: घरेलू ऋण में वृद्धि, विशेष रूप से असुरक्षित ऋण, क्रेडिट कार्ड और व्यक्तिगत ऋण के माध्यम से, ऋण चूक और संभावित ऋण जाल के जोखिम को बढ़ाती है यदि आय आनुपातिक रूप से नहीं बढ़ती है, जिससे गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) बढ़ जाती हैं।
  • सामाजिक एवं असमानता संबंधी चिंताएँ: कम बचत घरेलू आपात स्थिति से निपटने की क्षमता को कमज़ोर बनाती है तथा आवश्यकताओं के लिये ऋण पर निर्भरता बढ़ाती है, जिससे दीर्घकालिक वित्तीय अस्थिरता उत्पन्न होती है। साथ ही भविष्य निधि/पेंशन जैसी पारंपरिक बचत में गिरावट तथा बाज़ार-आधारित निवेश की ओर झुकाव वृद्धावस्था में आर्थिक असुरक्षा की आशंका को बढ़ा देता है।

बचत का विरोधाभास

  • परिचय: बचत का विरोधाभास (या मितव्ययिता का विरोधाभास) एक आर्थिक सिद्धांत है जो यह सुझाव देता है कि पैसा बचाना एक व्यक्ति के लिये अच्छा है, लेकिन यदि प्रत्येक कोई एक साथ अधिक बचत करता है, तो यह समग्र अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • मुख्य विचार: जब परिवार अधिक बचत करते हैं और व्यय में कटौती करते हैं, तो समग्र मांग घट जाती है, जिससे उत्पादन में कमी आती है। इसके परिणामस्वरूप व्यवसाय रोज़गार और आय में कटौती करते हैं।
    • परिणामस्वरूप, आय में गिरावट के कारण अर्थव्यवस्था की समग्र बचत बढ़ने के बजाय घट सकती है।
    • उदाहरण के लिये, मंदी के दौरान, यदि लोगों को नौकरी छूटने का डर रहता है और वे व्यय करने के बजाय अधिक बचत करते हैं, तो व्यवसायों को कम राजस्व प्राप्त होता है → श्रमिकों की छँटनी होती है → बेरोज़गारी बढ़ती है → आय घटती है → बचत घटती है।
  • सिद्धांत की उत्पत्ति और विकास: इस अवधारणा को जॉन मेनार्ड कीन्स ने वर्ष 1936 में अपनी प्रभावशाली कृति, द जनरल थ्योरी ऑफ एम्प्लॉयमेंट, इंटरेस्ट एंड मनी में विशेष रूप से लोकप्रिय बनाया।
    • कीन्सियन अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि उपभोक्ता व्यय आर्थिक विकास को गति देता है, तथा बचत को इन बाज़ारों के लिये वस्तुओं के उत्पादन हेतु निवेश में परिवर्तित किया जाता है।
    • हालाँकि, यदि उपभोक्ता मांग अपर्याप्त है, तो इससे ऐसे निवेशों में गिरावट आ सकती है, जिससे आर्थिक विकास बाधित हो सकता है।

भारत में सतत् घरेलू बचत बनाए रखने के लिये कौन-सी रणनीति अपनाई जा सकती है?

  • वित्तीय साक्षरता एवं जागरूकता में सुधार: विद्यालयों, स्वयं सहायता समूहों (SHGs) तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से वित्तीय शिक्षा कार्यक्रमों का विस्तार करें ताकि बचत की आदतें, निवेश से जुड़े जोखिम तथा ऋण प्रबंधन की समझ विकसित की जा सके। साथ ही, निम्न-आय वर्ग के परिवारों के बीच सुकन्या समृद्धि योजना तथा डाकघर योजनाओं जैसे कम-जोखिम वाले बचत साधनों को प्रोत्साहित किया जाये।
    • छोटी बचत (जैसे, ऐप्स के माध्यम से आवर्ती जमा) के लिये UPI, जन धन और e-RUPI का लाभ उठाना ।
  • कर एवं ब्याज दर प्रोत्साहन: दीर्घकालिक बचत के लिये कर कटौती में वृद्धि, तथा मुद्रास्फीति-सूचकांकित बांड शुरू करने से सुरक्षित निवेश को प्रोत्साहन मिल सकता है , क्रय शक्ति की सुरक्षा हो सकती है, तथा वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है। 
  • सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को मज़बूत करना: अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये पेंशन कवरेज (अटल पेंशन योजना, NPS) का विस्तार करना और निम्न आय वर्ग के लिये वृद्धावस्था निर्भरता जोखिम को कम करने के लिये सब्सिडी वाली सेवानिवृत्ति योजनाएँ प्रदान करना ।
  • उत्तरदायी ऋण विनियमन: लापरवाह उधारी और ऋण जाल से बचाव हेतु असुरक्षित ऋणों (क्रेडिट कार्ड, व्यक्तिगत ऋण) पर सख्त RBI मानदंड लागू किये जायें, जिनमें ऋण-से-आय (Debt-to-Income – DTI) अनुपात की अधिकतम सीमा तथा पारदर्शी ऋण मूल्य निर्धारण शामिल हो, ताकि उधारी को उत्तरदायी बनाया जा सके। 
    • लक्ज़री ऋणों पर उच्च जोखिम भार लागू किया जाये और बुरी ऋण प्रवृत्तियों (आकस्मिक व्यय) की तुलना में अच्छी ऋण शिक्षा (गृह ऋण) को बढ़ावा दिया जाये।
  • उत्पादक निवेश को प्रोत्साहित करना: स्वर्ण मुद्रीकरण योजनाओं जैसे सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड को प्रोत्साहित कर निष्क्रिय संपत्तियों को उपयोग में लाया जाये, और रियल एस्टेट में सट्टा गतिविधियों पर नियंत्रण के लिये किफायती आवास नीतियों को लागू किया जाये। 
    • सट्टा व्यापार को विनियमित करते हुए, दीर्घकालिक इक्विटी होल्डिंग्स के लिये कर प्रोत्साहन (LTCG लाभ का विस्तार) प्रदान करना।

निष्कर्ष

भारत में घटती घरेलू बचत और बढ़ता ऋण आर्थिक स्थिरता के लिये खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। सततता सुनिश्चित करने के लिये ऐसी नीतियाँ आवश्यक हैं जो वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा दें, बचत को प्रोत्साहित करें, लापरवाही से ऋण वितरण को नियंत्रित करना और सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करना। उपभोग-आधारित वृद्धि को विवेकपूर्ण बचत एवं ऋण प्रबंधन के साथ संतुलित करना दीर्घकालिक लचीलापन, समावेशी विकास के साथ-साथ बदलते वित्तीय परिदृश्य में संवेदनशीलताओं को कम करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

Q. भारत में घरेलू बचत दर में गिरावट दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि के लिये जोखिम उत्पन्न करती है। इसके कारणों का विश्लेषण कीजिये तथा स्थायी बचत को पुनर्जीवित करने हेतु नीतिगत उपाय सुझाइये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019)

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।
(b) कीमत- स्तर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।
(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।
(d) सार्वजनिक वितरण की गुणवत्ता अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।

उत्तर: (b)


प्रश्न. एन.एस.एस.ओ. के 70वें चक्र द्वारा संचालित ‘‘कृषक-कुटुम्बों की स्थिति आकलन सर्वेक्षण’’ के अनुसार निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. राजस्थान में ग्रामीण कुटुम्बाें में कृषि कुटुम्बों का प्रतिशत सर्वाधिक है
  2.  देश के कुल कृषि कुटुम्बों में 60% से कुछ अधिक ओ.बी.सी. के हैं।
  3.   केरल में 60% से कुछ अधिक कृषि कुटुम्बों ने यह सूचना दी कि उन्होंने अधिकतम आय गै़र कृषि स्रोतों से प्राप्त की है।

उपर्युत्त कथनाें में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 2 औ 3  
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न .भारत की संभावित वृद्धि के कई कारकों में से बचत दर सबसेअधिक प्रभावी है। क्या आप सहमत हैं? विकास क्षमता के लिये अन्य कौन से कारक उपलब्ध हैं? (2017)


शासन व्यवस्था

महाराष्ट्र द्वारा हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में समाप्त करने का निर्णय

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, अनुच्छेद 29, भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची

मेन्स के लिये:

भाषा पर संवैधानिक प्रावधान, भारत में बहुभाषी शिक्षा के कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

स्रोत:द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

महाराष्ट्र सरकार ने मराठी और अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने वाले अपने सरकारी संकल्प (GR) को रद्द कर दिया।

  • यद्यपि यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 के अनुरूप था, जो त्रि-भाषा फार्मूले के माध्यम से बहुभाषावाद को बढ़ावा देता है, लेकिन भाषायी पहचान, सांस्कृतिक आधिपत्य और कार्यान्वयन की व्यवहार्यता पर चिंताओं के कारण इसे वापस ले लिया गया।
  • सरकार ने त्रिभाषा नीति का अध्ययन करने के लिये प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की है। 

त्रिभाषा नीति के कार्यान्वयन में क्या मुद्दे हैं?

  • शैक्षणिक चुनौतियाँ: तंत्रिका विज्ञान संबंधी शोध, प्रारंभिक अवस्था में ही बहुभाषाओं से परिचय (2-8 वर्ष की आयु) का समर्थन करता है, लेकिन यह औपचारिक कक्षा निर्देश के समान नहीं है।
    • प्रभावी अधिगम के लिये बच्चों को अतिरिक्त भाषाएँ सीखने से पहले अपनी मातृभाषा में मूलभूत साक्षरता विकसित करना आवश्यक होता है।
    • कक्षा 1 से तीन भाषाओं को शामिल करने से प्राथमिक भाषा में मूल साक्षरता कमज़ोर हो सकती है।
  • संघीय चिंताएँ: शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है। राज्य से उचित परामर्श के बिना हिंदी को अनिवार्य भाषा बनाना शैक्षिक मामलों में संघीय भावना को कमज़ोर करता है।
    • त्रिभाषा नीति की आलोचना इस आधार पर की गई है कि इसमें क्षेत्रीय भाषाओं की कीमत पर हिंदी को बढ़ावा दिया जा रहा है। तमिलनाडु जैसे राज्यों में इसे भाषायी केंद्रीकरण के कार्य के रूप में देखा गया।
    • द्रविड़ आंदोलन से प्रेरित होकर तमिलनाडु ने वर्ष 1968 में त्रिभाषा फार्मूले को खारिज करते हुए दो भाषाओं (तमिल और अंग्रेज़ी) की नीति अपनाई। यह रुख आज भी जारी है। वर्ष 2019 में, तमिलनाडु के कड़े विरोध के कारण NEP, 2020 के मसौदे से हिंदी की अनिवार्यता हटा दी गई थी। 
  • नई शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्य से विचलन: नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 मुख्य रूप से प्रारंभिक वर्षों में मातृभाषा (‘R1’) में शिक्षण पर ज़ोर देती है, साथ ही एक दूसरी भाषा (‘R2’ – जो R1 के अलावा कोई अन्य भाषा हो) को शामिल करने की बात करती है, न कि प्रारंभिक स्तर पर तीन भाषाओं के अध्ययन की।
  • सांस्कृतिक और सामाजिक चिंताएँ: सिविल सोसाइटी समूहों का तर्क है कि हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने से स्थानीय जनजातीय या अल्पसंख्यक भाषाओं के उपयोग को हतोत्साहित किया जा सकता है।
    • आलोचकों ने इसे "पारदर्शिता रहित निर्णय प्रक्रिया" बताते हुए "हिंदी को परोक्ष रूप से अनिवार्य करना" करार दिया है। उन्होंने यह भी इंगित किया कि कुछ राज्य-स्तरीय नीतियाँ, जो हिंदी को अनिवार्य बनाती हैं, विशेषज्ञ भाषा समितियों या जन-संलग्न हितधारकों से उचित परामर्श के बिना लागू की गई हैं।
  • प्रशासनिक और बुनियादी ढाँचे संबंधी समस्याएँ: कई स्कूलों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, तीनों भाषाओं के लिये  योग्य शिक्षकों की कमी है, जिससे शिक्षण की गुणवत्ता असमान हो जाती है।
    • तीन भाषाओं के लिये आयु-उपयुक्त और समन्वित पाठ्यक्रम तैयार करना भी एक चुनौती है, विशेषकर प्रारंभिक स्तर पर। इससे छात्रों और शिक्षकों दोनों पर अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है, जो अंततः रटकर सीखने (Rote learning) तथा कम समझ जैसी समस्याएँ उत्पन्न करता है।

नोट: कोठारी आयोग (1964–66) ने एक सामान्य शैक्षिक ढाँचे के माध्यम से राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिये  त्रिभाषा सूत्र (Three-Language Formula) का प्रस्ताव दिया था। बाद में इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1968 में अपनाया गया।

नई शिक्षा नीति 2020 में भाषा को लेकर क्या प्रावधान किये गए हैं?

  • शिक्षण का माध्यम: NEP 2020 यह सिफारिश करती है कि कम से कम कक्षा 5 तक और यदि संभव हो तो कक्षा 8 और उससे आगे तक, मातृभाषा, स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा को शिक्षण का माध्यम बनाया जाए।
    • NEP 2020 द्वैभाषिक शिक्षण (Bilingual teaching) को बढ़ावा देती है, विशेष रूप से प्रारंभिक कक्षाओं में शिक्षण के माध्यम के रूप में अंग्रेज़ी के साथ-साथ घरेलू भाषा या मातृभाषा के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • बहुभाषावाद: NEP 2020 द्वारा प्रस्तावित वर्तमान त्रिभाषा सूत्र NEP, 1968 से काफी अलग है, जिसमें हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी, अंग्रेज़ी और एक आधुनिक भारतीय भाषा (अधिमानतः दक्षिणी भाषाओं में से एक) तथा गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी, अंग्रेज़ी एवं एक क्षेत्रीय भाषा के अध्ययन पर ज़ोर दिया गया था।
    • इसके विपरीत, NEP 2020 में कहा गया है कि यह त्रिभाषा सूत्र में अधिक अनुकूलन प्रदान करता है और किसी भी राज्य पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी।
    • इसके साथ ही, यह नीति शास्त्रीय भाषाओं जैसे तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और अन्य को त्रिभाषा सूत्र का हिस्सा बनाने के लिये भी प्रोत्साहित करती है।
  • विदेशी भाषाएँ: NEP 2020 माध्यमिक स्तर पर छात्रों को कोरियाई, जापानी, फ्रेंच, जर्मन और स्पेनिश जैसी विदेशी भाषाएँ सीखने का विकल्प प्रदान करती है।
    • केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने यह निर्देश दिया है कि कक्षा 10 तक छात्र दो भारतीय भाषाएँ सीखेंगे, जबकि कक्षा 11 और 12 में वे एक भारतीय भाषा तथा एक विदेशी भाषा का चयन कर सकते हैं।

स्कूलों में मातृभाषा

  • राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा किये गए आठवें अखिल भारतीय स्कूली शिक्षा सर्वेक्षण (AISES) से पता चलता है कि शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा के प्रयोग में गिरावट आई है। प्राथमिक स्तर पर वर्ष 2009 में 86.62% स्कूलों में मातृभाषा का प्रयोग किया गया, जो वर्ष 2002 में 92.07% से कम है। 
    • यह गिरावट ग्रामीण (92.39% से 87.56%) और शहरी (90.39% से 80.99%) दोनों क्षेत्रों में देखी गई है।

भाषा के संबंध में संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 29: नागरिकों को अपनी विशिष्ट भाषा और संस्कृति के संरक्षण के अधिकार की रक्षा करता है।
  • अनुच्छेद 343: देवनागरी लिपि में हिंदी को संघ की आधिकारिक भाषा घोषित करता है, 1950 से 15 वर्षों (बाद में कानून द्वारा बढ़ाया गया) तक आधिकारिक उद्देश्यों के लिये अंग्रेजी के निरंतर उपयोग की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद 346: राज्यों के बीच और संघ के साथ पत्र-व्यवहार हेतु राजभाषा का निर्धारण करता है। यदि संबंधित राज्य सहमत हों तो हिंदी का प्रयोग किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 347: राष्ट्रपति को किसी भाषा को किसी राज्य या उसके भाग की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने की अनुमति देता है, यदि जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा इसकी मांग करता है।
  • अनुच्छेद 350A : राज्यों को भाषायी अल्पसंख्यक बच्चों के लिये मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का निर्देश देता है।
  • अनुच्छेद 350B: भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये सुरक्षा उपायों के कार्यान्वयन पर रिपोर्ट करने के लिये राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त भाषायी अल्पसंख्यकों हेतु एक विशेष अधिकारी का प्रावधान करता है।
  • अनुच्छेद 351: संघ को हिंदी को बढ़ावा देने तथा अन्य भारतीय भाषाओं के तत्त्वों से समृद्ध करने का दायित्व देता है।
  • आठवीं अनुसूची: इसमें हिंदी, बंगाली, तमिल, तेलुगु, उर्दू और अन्य सहित 22 आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हें "अनुसूचित भाषाएँ" कहा जाता है।

त्रिभाषा नीति के पक्ष और विपक्ष में तर्क क्या हैं?

पक्ष के तर्क

  • बहुभाषावाद और संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा: कई भाषाएँ सीखने से स्मृति, समस्या-समाधान तथा समग्र शैक्षणिक प्रदर्शन में सुधार होता है।
  • बच्चों की लचीले ढंग से सोचने और विविध दृष्टिकोणों को समझने की क्षमता को बढ़ाता है।
  • राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा: त्रि-भाषा नीति विभिन्न भाषायी समूहों के बीच संचार को प्रोत्साहित करती है। यह विभिन्न क्षेत्रों के छात्रों को भारत की सांस्कृतिक और भाषायी विविधता को समझने तथा उसका सम्मान करने में मदद करती है।
  • बेहतर नौकरी की संभावनाएँ: कई भाषाओं को जानने से पर्यटन, प्रौद्योगिकी, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और मीडिया जैसे क्षेत्रों में अवसर बढ़ जाते हैं।

विपक्ष में तर्क

  • राजनीतिक संवेदनशीलता: कुछ राज्यों में इस नीति को हिंदी थोपने के रूप में देखा जाता है, जिससे क्षेत्रीय पहचान की राजनीति और "भूमिपुत्रों" की भावना को बढ़ावा मिलता है, जो स्थानीय अधिकारों, भाषा और संस्कृति को प्राथमिकता देता है।
  • छात्रों और स्कूलों पर बोझ: छात्र पहले से ही बुनियादी साक्षरता के साथ संघर्ष करते हैं, तीसरी अनिवार्य भाषा उन पर बोझ बढ़ा सकती है। एकभाषी परिवारों के बच्चों को यह तनावपूर्ण या भ्रमित करने वाला लग सकता है।
  • क्रियान्वयन संबंधी चुनौतियाँ: असंबंधित भाषाओं (जैसे, हरियाणा में तमिल) को लागू करने के प्रयास कमज़ोर योजना एवं मांग के अभाव के कारण विफल रहे हैं।

शिक्षा में समावेशी और प्रभावी भाषा नीति के लिये मार्गदर्शक सिद्धांत क्या होने चाहिये?

  • संस्थागत तैयारी: केवल नई भाषाएँ जोड़ने के बजाय आधारभूत साक्षरता, शिक्षण की गुणवत्ता और सीखने के परिणामों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • संतुलित बहुभाषावाद: त्रिभाषा नीति का कार्यान्वयन सभी गैर-हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी को अनिवार्य रूप से लागू करने तक सीमित नहीं होना चाहिये।
    • इसके स्थान पर, पारस्परिक भाषा अधिग्रहण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये — जैसे कि उत्तर भारतीय छात्र केंद्रीय विद्यालयों में द्रविड़ या आदिवासी भाषाएँ सीखें। इससे आपसी सम्मान का भाव प्रकट होगा, न कि बहुसंख्यक विशेषाधिकार।
  • भाषा अधिग्रहण को कौशल एवं रोज़गार क्षमता से जोड़ें: भाषा शिक्षण को व्यावसायिक तथा डिजिटल कौशल के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये, विशेषकर अंग्रेज़ी और हिंदी जैसी भाषाओं के लिये, जो राष्ट्रीय स्तर पर गतिशीलता उपलब्ध कराती हैं।
    • इसी प्रकार, राज्य स्तरीय रोज़गार और सार्वजनिक सेवाओं में क्षेत्रीय भाषाओं में दक्षता को भी मान्यता और प्रोत्साहन मिलना चाहिये।
  • भाषा को सामाजिक न्याय के साधन के रूप में बढ़ावा देना: भाषा अधिग्रहण का उद्देश्य शिक्षार्थी को सशक्त बनाना होना चाहिये, न कि उसे राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा का माध्यम बनाना।
    • भाषाई पदानुक्रम के स्थान पर भाषाई समानता को प्राथमिकता दी जानी चाहिये और प्रत्येक भारतीय भाषा को एक संसाधन के रूप में मान्यता दी जानी चाहिये, न कि एक बाधा के रूप में।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: शिक्षा में भाषा का उद्देश्य सशक्तीकरण होना चाहिये, न कि थोपना। इस कथन का मूल्यांकन कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)

  1. राज्य नीति के निदेशक तत्त्व 
  2.  ग्रामीण और शहरी स्थानीय निकाय 
  3.  पाँचवीं अनुसूची छठी 
  4.  अनुसूची सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनें:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3, 4 और 5
(c) केवल 1, 2 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों को विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)

प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)


जैव विविधता और पर्यावरण

भारत में नदी प्रदूषण

प्रिलिम्स के लिये:

नमामि गंगे कार्यक्रम ,गंगा ,यमुना, शैवाल प्रस्फुटन,सतलुज नदी,जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (BOD), गंगा नदी डॉल्फिन, पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक।                    

मेन्स के लिये:

नदियों के प्रदूषण के कारण, उसकी रोकथाम में नमामि गंगे कार्यक्रम (NGP) की भूमिका तथा नदियों के प्रदूषण को प्रभावी ढंग से कम करने के लिये आवश्यक अतिरिक्त उपाय।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

चर्चा में क्यों?

दिल्ली सरकार ने यमुना नदी के प्रदूषण की सफाई को प्राथमिकता दी है, जिसे नमामि गंगे कार्यक्रम (NGP) के साथ जोड़ा गया है। गंगा की सहायक नदी के रूप में यमुना की भूमिका स्थानीय प्रयासों को गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों की सफाई के लिये राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ समन्वय स्थापित करने में सहायक बनाती है।

भारत में नदी प्रदूषण के कारण क्या हैं? 

  • औद्योगिक प्रदूषण: वस्त्र, टेनरी (चमड़ा) एवं रसायन जैसे उद्योग गंगा (कानपुर), यमुना (दिल्ली) और दामोदर (झारखंड) जैसी नदियों में सीसा, पारा, आर्सेनिक जैसे विषैले अपशिष्ट जल का उत्सर्जन करते हैं।
    • कई कारखाने अपशिष्ट जल शोधन संयंत्रों (ETPs) को दरकिनार कर देते हैं या उनका दुरुपयोग करते हैं, और प्राय: अपशिष्ट के नियामक मानकों को कृत्रिम रूप से पूरा दिखाते हैं।
  • कृषि अपवाह: उर्वरकों और कीटनाशकों से होने वाला अपवाह नाइट्रेट और फॉस्फेट प्रदूषण को जन्म देता है, जिससे शैवाल प्रस्फुटन (algal blooms) होता है और जलीय जीवन को हानि पहुँचती है, जैसा कि पंजाब की सतलुज नदी में देखा गया है।
    • पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने से उत्पन्न राख वर्षा जल के बहाव के साथ नदियों में पहुँचती है, जिससे जल की गुणवत्ता और अधिक खराब होती है।
  • धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाएँ: मूर्ति विसर्जन और अंतिम संस्कार जैसे अनुष्ठानों से नदियाँ प्रदूषित होती हैं क्योंकि इनमें प्लास्टर ऑफ पेरिस, विषैले रंग, प्लास्टिक, पॉलिथीन और पुष्प कचरे का उपयोग होता है, विशेष रूप से वाराणसी के गंगा घाट जैसे स्थानों पर।
  • ठोस अपशिष्ट एवं प्लास्टिक डंपिंग: भारत दुनिया में सबसे बड़ा प्लास्टिक उत्सर्जक है, तथा मुंबई की मीठी नदी जैसी नदियों में प्लास्टिक की काफी मात्रा जमा हो जाती है ।
    • "दिल्ली के गाज़ीपुर जैसे लैंडफिल से निकलने वाला विषैला अपवाह भूजल और निकटवर्ती नदियों दोनों को प्रदूषित करता है।"
  • थर्मल और रेडियोधर्मी प्रदूषण: थर्मल प्लांट से निकलने वाले अपशिष्ट (जैसे, फरक्का, NTPC) और जादूगोड़ा (झारखंड) में यूरेनियम खनन से नदियाँ प्रदूषित होती हैं, तथा ऊष्मा और रेडियोधर्मी अपशिष्ट के कारण जलीय जीवन को नुकसान पहुँचता है।
  • जलवायु-संबंधी तनाव:  अनियमित वर्षा और लंबे समय तक कम प्रवाह की स्थिति प्रदूषकों को एकत्रित कर देती है, जबकि तीव्र तूफानों के कारण बड़ी मात्रा में प्रदूषक नदियों में प्रवाहित हो जाते हैं।

नमामि गंगे कार्यक्रम क्या है?

  • परिचय: यह प्रदूषण को कम करने, जल की गुणवत्ता में सुधार लाने और नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल कर गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के संरक्षण के लिये एक प्रमुख कार्यक्रम है।
  • कार्यान्वयन: इसमें गंगा नदी के प्रभावी प्रबंधन और पुनरुद्धार को सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर पाँच स्तरीय संरचना का प्रावधान किया गया है।
    • राष्ट्रीय गंगा परिषद: प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में, यह गंगा पुनरुद्धार के समग्र प्रयासों की देखरेख करने वाली सर्वोच्च निकाय है।
    • अधिकार प्राप्त कार्यबल (ETF): केंद्रीय जल शक्ति मंत्री की अध्यक्षता में यह कार्यबल गंगा नदी के पुनरुद्धार पर केंद्रित कार्रवाई हेतु ज़िम्मेदार है।
    • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG): यह मिशन गंगा की सफाई और कायाकल्प के उद्देश्य से विभिन्न परियोजनाओं के लिये कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
    • राज्य गंगा समितियाँ: ये समितियाँ अपने अधिकार क्षेत्र में विशिष्ट उपायों को लागू करने के लिये राज्य स्तर पर कार्य करती हैं।
    • जिला गंगा समितियाँ: गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों के निकट प्रत्येक निर्दिष्ट ज़िले में स्थापित ये समितियाँ ज़मीनी स्तर (Grassroots Level) पर कार्य करती हैं।
  • NGP के मुख्य स्तंभ:
    • सीवरेज़ उपचार अवसंरचना: इसका उद्देश्य नदी प्रदूषण को कम करने के लिये अपशिष्ट जल का प्रभावी प्रबंधन करना है।
    • नदी सतह की सफाई: नदी की सतह से ठोस अपशिष्ट और प्रदूषकों को हटाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • वनीकरण: इसमें नदी के किनारों पर वृक्ष लगाना और हरियाली बहाल करना शामिल है।
    • औद्योगिक अपशिष्ट निगरानी: हानिकारक औद्योगिक उत्सर्जन से नदी की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
    • रिवर फ्रंट डेवलपमेंट: नदी के किनारे सार्वजनिक स्थानों के निर्माण के माध्यम से सामुदायिक सहभागिता और पर्यटन को बढ़ावा देना।
    • जैवविविधता: इसका उद्देश्य पारिस्थितिक स्वास्थ्य को बढ़ाना तथा नदी के आसपास के विविध जैविक समुदायों को समर्थन प्रदान करना है।
    • जन जागरूकता: नदी संरक्षण के महत्त्व के बारे में नागरिकों को शिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • गंगा ग्राम: इसका लक्ष्य गंगा की मुख्य धारा के किनारे स्थित गाँवों को बेहतर स्वच्छता और स्थायित्व के साथ आदर्श गाँवों के रूप में विकसित करना है।
  • प्रमुख हस्तक्षेप: 
    • प्रदूषण निवारण (निर्मल गंगा): इसमें स्वच्छ जल सुनिश्चित करने के लिये सीवेज उपचार संयंत्र (STP) स्थापित करना तथा औद्योगिक एवं घरेलू अपशिष्ट उत्सर्जन को न्यूनतम करना शामिल है।
    • पारिस्थितिकी और प्रवाह में सुधार (अविरल गंगा): प्राकृतिक नदी प्रवाह को बहाल करने, जैव विविधता को बढ़ाने तथा जल संरक्षण प्रथाओं को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
    • जन-नदी संपर्क (जन गंगा) को मज़बूत करना: इसका उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना, सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना और संरक्षण प्रयासों में स्थानीय हितधारकों को शामिल करना है।
    • अनुसंधान और नीति को सुविधाजनक बनाना (ज्ञान गंगा): वैज्ञानिक अनुसंधान का समर्थन करता है, अकादमिक अध्ययन को प्रोत्साहित करता है और नदी प्रबंधन के लिये साक्ष्य-आधारित नीतियों को तैयार करने में सहायता करता है।
  • मुख्य सफलताएँ: 
    • प्रदूषण में कमी: सीवेज उपचार क्षमता वर्ष 2014 से पूर्व की क्षमता से 30 गुना अधिक हो गई।
    • जल गुणवत्ता में सुधार: उत्तर प्रदेश में जल गुणवत्ता में सुधार हुआ है, जो BOD 10-20 मिलीग्राम/लीटर (2015) से बढ़कर 3-6 मिलीग्राम/लीटर (2022) हो गई है, तथा बिहार में यह 20-30 मिलीग्राम/लीटर (2015) से बढ़कर 6-10 मिलीग्राम/लीटर (2022) हो गई है।
      • जैव रासायनिक ऑक्सीजन माँग (BOD) पानी में कार्बनिक पदार्थों के अपघटन के लिये सूक्ष्मजीवों द्वारा आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा को दर्शाती है। उच्च BOD अधिक प्रदूषण का संकेत देता है, जबकि कम BOD स्वच्छ पानी को दर्शाता है।
    • जैव विविधता पर प्रभाव: गंगा नदी डॉल्फिन की आबादी में वृद्धि हुई है, बिठुरा से रसूला घाट (प्रयागराज) तक तथा बाबई और बागमती नदियों में नई डॉल्फिन देखी गई हैं।
    • वैश्विक मान्यता: वर्ष 2022 में पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर संयुक्त राष्ट्र दशक (2021-2030) ने नमामि गंगे कार्यक्रम (NGP) को शीर्ष 10 विश्व बहाली प्रमुख पहलों में से एक के रूप में मान्यता दी।

नदी प्रदूषण को कम करने हेतु क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  • प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के लिये शून्य तरल निर्वहन (Zero Liquid Discharge) को अनिवार्य किया जाए, प्रभावी उपचार संयंत्र (Effluent Treatment Plants) को रीयल-टाइम निगरानी के साथ अनिवार्य किया जाए तथा अवैध अपशिष्ट निपटान व अनुपालन न करने पर कड़े दंड लगाए जाएँ।
  • कृषि अपवाह का प्रबंधन: जैविक कृषि और संधारणीय कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना, नदियों के पास वनस्पति बफर ज़ोन स्थापित करना और रासायनिक उपयोग को जागरूकता तथा पर्यावरण-अनुकूल सब्सिडी के माध्यम से नियंत्रित करना चाहिये।
  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार: अपशिष्ट संग्रहण, वर्गीकरण और वैज्ञानिक निपटान को सुदृढ़ करना; नदी तटों पर अपशिष्ट फेंकने/डंपिंग को रोकने के लिये बाड़बंदी तथा गश्त करना और सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर कड़े प्रवर्तन के साथ प्रतिबंध लगाना।  
  • नदी पारिस्थितिक तंत्र को पुनर्स्थापित करना: गाद निकालना (Desilting), वनीकरण और आर्द्रभूमि पुनर्जीवन के माध्यम से नदी पारिस्थितिकी को पुनर्स्थापित करना; बाढ़ क्षेत्र को अतिक्रमण से बचाना तथा स्थानीय वनस्पतियों के साथ रिपेरियन बफर (Riparian buffers) को बढ़ावा देना।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार का उपयोग करना: प्रदूषण निगरानी के लिये AI एवं IoT सेंसर अपनाना; अवैध अपशिष्ट डंपिंग का पता लगाने के लिये GIS मैपिंग तथा ड्रोन का उपयोग करना और नवाचारपूर्ण उपचार समाधानों के लिये जल-तकनीक स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष

यमुना की सफाई नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत भारत के व्यापक नदी पुनरुद्धार मिशन के अनुरूप है। भारत का नदी प्रदूषण संकट तत्काल कार्रवाई, कड़े औद्योगिक नियमन, संधारणीय कृषि, बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली की मांग करता है। नमामि गंगे जैसी पहलों से प्रगति तो दिख रही है, लेकिन सफलता प्रवर्तन, तकनीक और जनभागीदारी पर निर्भर करती है। एक सहयोगात्मक, बहुआयामी दृष्टिकोण हमारी नदियों को पुनर्जीवित कर सकता है और आने वाली पीढ़ियों के लिये स्वच्छ जल सुनिश्चित कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में नदी प्रदूषण के प्रमुख कारण क्या हैं? इनके समाधान के लिये नीतिगत उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी 'राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA)' की प्रमुख विशेषताएँ हैं??

  1. नदी बेसिन, योजना एवं प्रबंधन की इकाई है।
  2.  यह राष्ट्रीय स्तर पर नदी संरक्षण प्रयासों की अगुवाई करता है।
  3.  NGRBA का अध्यक्ष चक्रानुक्रमिक आधार पर उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों में से एक होता है, जिनसे होकर गंगा बहती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की स्थापना पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत की गई है।
  2.  राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण एक वैधानिक निकाय है।
  3.  राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स

प्रश्न: नमामि गंगे और राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) कार्यक्रमों पर और इससे पूर्व की योजनाओं से मिश्रित परिणामों के कारणों पर चर्चा कीजिये। गंगा नदी के परिरक्षण में कौन-सी प्रमात्रा छलांगे, क्रमिक योगदानों की अपेक्षा ज़्यादा सहायक हो सकती हैं? (2015)


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