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भारतीय अर्थव्यवस्था

घटती घरेलू बचत और बढ़ती देयता

  • 14 Jul 2025
  • 17 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मुद्रास्फीति, सुकन्या समृद्धि योजना, महिला सम्मान बचत प्रमाणपत्र, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS), बचत का विरोधाभास, FDI, गैर-निष्पादित आस्तियाँ  (NPA), UPI, जन धन, e-RUPI, मुद्रास्फीति अनुक्रमित बॉण्ड, अटल पेंशन योजना, सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड।    

मेन्स के लिये:

भारत में घरेलू बचत की वर्तमान प्रवृत्ति, कम घरेलू बचत दर और बढ़ते घरेलू ऋण के निहितार्थ, भारत में स्थायी घरेलू बचत बनाए रखने तथा ऋण प्रबंधन हेतु आवश्यक रणनीतियाँ।

स्रोत: बिज़नेस लाइन 

चर्चा में क्यों?

भारत का घरेलू बचत प्रारूप एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन से गुजर रहा है, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता और घरेलू पूंजी निर्माण को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं।

भारत में घरेलू बचत की वर्तमान प्रवृत्ति क्या है?

  • घटती सकल बचत दर: भारत की सकल घरेलू बचत दर वर्ष 2011–12 में GDP का 34.6% थी, जो वर्ष 2022–23 में घटकर 29.7% रह गई — यह पिछले चार दशकों में सबसे निम्न स्तर है। जबकि घरेलू निवल बचत जो पारंपरिक रूप से कुल बचत का 60% होती है, उसमें भी गिरावट आई है।
  • बढ़ता घरेलू ऋण: वित्त वर्ष 2023–24 में घरेलू देयता (ऋण) GDP के 6.4% तक पहुँच गया, जो वर्ष 2007 के उच्चतम स्तर (6.6%) के करीब है। यह वृद्धि मुख्यतः उपभोग, आवास और शिक्षा के लिये ऋण लेने के कारण हुई है।
  • बचत प्रारूप में बदलाव: भौतिक बचत (जैसे स्वर्ण, स्थावर संपदा) वर्ष 2019–20 के 59.7% से बढ़कर वर्ष 2023–24 में 71.5% हो गई। वहीं, वित्तीय बचत 40.3% से घटकर 28.5% रह गई है।
    • वित्तीय बचत के अंतर्गत, बैंक जमा का हिस्सा वित्त वर्ष 2011–12 में जहाँ 58% था, वह घटकर वित्त वर्ष 2022–23 में 37% रह गया। वहीं, इक्विटी और म्यूचुअल फंडों में निवेश लगभग दोगुना हो गया — जो वित्त वर्ष 2020–21 में 1.02 लाख करोड़ रुपए था, वह 2022–23 में बढ़कर 2.02 लाख करोड़ रुपए हो गया।
  • शहरी बनाम ग्रामीण अंतर: शहरी परिवार अब तेज़ी से वित्तीय साधनों (जैसे म्यूचुअल फंड, इक्विटी) में निवेश कर रहे हैं क्योंकि उन्हें वित्तीय सेवाओं तक बेहतर पहुँच प्राप्त है। वहीं, ग्रामीण परिवार अब भी नकदी और भौतिक संपत्तियों को प्राथमिकता देते हैं, जो वित्तीय समावेशन में अंतर को उजागर करता है।
  • कोविड-19 के बाद और मुद्रास्फीतिक दबाव: कोविड-19 के दौरान व्यय में गिरावट के कारण बचत में अस्थायी बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन अर्थव्यवस्था खुलने के बाद यह प्रवृत्ति पलट गईउच्च मुद्रास्फीति के कारण व्यक्तिगत आय (Disposable income) में गिरावट आई और कम वास्तविक ब्याज दरों ने पारंपरिक बचत विकल्पों (जैसे सावधि जमा) को कम आकर्षक बना दिया।

घरेलू बचत और घरेलू ऋण

  • परिचय:  घरेलू बचत से तात्पर्य है कि किसी परिवार की व्यक्तिगत आय का वह हिस्सा जो उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता, बल्कि भविष्य के लिये सुरक्षित रखा जाता है। यह सामान्यतः बैंक जमा, निवेश, बीमा या भौतिक संपत्तियों (जैसे स्वर्ण या संपत्ति) के रूप में होती है।
  • प्रकार: भारत में घरेलू (HH) बचत में निवल वित्तीय बचत (NFS) और भौतिक बचत शामिल हैं।
    • NFS की गणना सकल वित्तीय बचत (GFS) से वित्तीय देयता (वार्षिक उधार) को घटाकर की जाती है, जिसमें मुद्रा, जमा, बीमा, भविष्य निधि और पेंशन निधि (P&PF), शेयर व डिबेंचर, लघु बचत तथा अन्य शामिल हैं।
    • भौतिक बचत में मुख्य रूप से आवासीय स्थावर संपदा (लगभग दो-तिहाई) और HH-क्षेत्र के उत्पादकों के स्वामित्व वाली मशीनरी/उपकरण शामिल हैं।
  • घरेलू ऋण: इससे तात्पर्य उन सभी ऋणों से है जो किसी परिवार (या परिवारों की सेवा करने वाले गैर-लाभकारी संगठनों) द्वारा लिये गए हैं, जिन्हें निर्धारित भविष्य की तारीख तक मूलधन या ब्याज सहित ऋणदाताओं को चुकाना अनिवार्य होता है
  • घरेलू बचत से संबंधित पहल: सुकन्या समृद्धि योजना, किसान विकास पत्र योजना, महिला सम्मान बचत प्रमाणपत्र, राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) आदि।

कम घरेलू बचत दर और बढ़ते घरेलू ऋण के क्या निहितार्थ हैं?

  • घरेलू पूंजी निर्माण में कमी: घरेलू बचत में कमी, जो निवेश और पूँजी निर्माण का एक प्रमुख स्रोत होती है, सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर को धीमा कर सकती है तथा विदेशी पूँजी (जैसे FDI, बाह्य ऋण) पर निर्भरता बढ़ा सकती है, जिससे बाह्य जोखिमों की संभावना और अधिक बढ़ जाती है।
  • उपभोग-संचालित विकास: कम बचत अधिक उपभोग व्यय को दर्शाती है, जो अल्पकालिक मांग को तो बढ़ा सकती है, किंतु दीर्घकालिक निवेश क्षमता को घटा देती है। इससे ऋण-आधारित विकास को अस्थिर बना सकता है, जैसा कि वर्ष 2008 की अमेरिका की सबप्राइम संकट में देखा गया था।
  • राजकोषीय और मौद्रिक नीति पर दबाव: निजी बचत में गिरावट सरकार को उच्च करों या व्यय में कटौती के माध्यम से सार्वजनिक बचत बढ़ाने के लिये विवश कर सकती है, जबकि RBI के समक्ष एक दुविधा उत्पन्न होती है—निम्न ब्याज दरें बचत को हतोत्साहित करती हैं, जबकि उच्च दरें ऋण की लागत बढ़ा देती हैं।
  • घरेलू ऋण तनाव में वृद्धि: घरेलू ऋण में वृद्धि, विशेष रूप से असुरक्षित ऋण, क्रेडिट कार्ड और व्यक्तिगत ऋण के माध्यम से, ऋण चूक और संभावित ऋण जाल के जोखिम को बढ़ाती है यदि आय आनुपातिक रूप से नहीं बढ़ती है, जिससे गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (NPA) बढ़ जाती हैं।
  • सामाजिक एवं असमानता संबंधी चिंताएँ: कम बचत घरेलू आपात स्थिति से निपटने की क्षमता को कमज़ोर बनाती है तथा आवश्यकताओं के लिये ऋण पर निर्भरता बढ़ाती है, जिससे दीर्घकालिक वित्तीय अस्थिरता उत्पन्न होती है। साथ ही भविष्य निधि/पेंशन जैसी पारंपरिक बचत में गिरावट तथा बाज़ार-आधारित निवेश की ओर झुकाव वृद्धावस्था में आर्थिक असुरक्षा की आशंका को बढ़ा देता है।

बचत का विरोधाभास

  • परिचय: बचत का विरोधाभास (या मितव्ययिता का विरोधाभास) एक आर्थिक सिद्धांत है जो यह सुझाव देता है कि पैसा बचाना एक व्यक्ति के लिये अच्छा है, लेकिन यदि प्रत्येक कोई एक साथ अधिक बचत करता है, तो यह समग्र अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • मुख्य विचार: जब परिवार अधिक बचत करते हैं और व्यय में कटौती करते हैं, तो समग्र मांग घट जाती है, जिससे उत्पादन में कमी आती है। इसके परिणामस्वरूप व्यवसाय रोज़गार और आय में कटौती करते हैं।
    • परिणामस्वरूप, आय में गिरावट के कारण अर्थव्यवस्था की समग्र बचत बढ़ने के बजाय घट सकती है।
    • उदाहरण के लिये, मंदी के दौरान, यदि लोगों को नौकरी छूटने का डर रहता है और वे व्यय करने के बजाय अधिक बचत करते हैं, तो व्यवसायों को कम राजस्व प्राप्त होता है → श्रमिकों की छँटनी होती है → बेरोज़गारी बढ़ती है → आय घटती है → बचत घटती है।
  • सिद्धांत की उत्पत्ति और विकास: इस अवधारणा को जॉन मेनार्ड कीन्स ने वर्ष 1936 में अपनी प्रभावशाली कृति, द जनरल थ्योरी ऑफ एम्प्लॉयमेंट, इंटरेस्ट एंड मनी में विशेष रूप से लोकप्रिय बनाया।
    • कीन्सियन अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि उपभोक्ता व्यय आर्थिक विकास को गति देता है, तथा बचत को इन बाज़ारों के लिये वस्तुओं के उत्पादन हेतु निवेश में परिवर्तित किया जाता है।
    • हालाँकि, यदि उपभोक्ता मांग अपर्याप्त है, तो इससे ऐसे निवेशों में गिरावट आ सकती है, जिससे आर्थिक विकास बाधित हो सकता है।

भारत में सतत् घरेलू बचत बनाए रखने के लिये कौन-सी रणनीति अपनाई जा सकती है?

  • वित्तीय साक्षरता एवं जागरूकता में सुधार: विद्यालयों, स्वयं सहायता समूहों (SHGs) तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से वित्तीय शिक्षा कार्यक्रमों का विस्तार करें ताकि बचत की आदतें, निवेश से जुड़े जोखिम तथा ऋण प्रबंधन की समझ विकसित की जा सके। साथ ही, निम्न-आय वर्ग के परिवारों के बीच सुकन्या समृद्धि योजना तथा डाकघर योजनाओं जैसे कम-जोखिम वाले बचत साधनों को प्रोत्साहित किया जाये।
    • छोटी बचत (जैसे, ऐप्स के माध्यम से आवर्ती जमा) के लिये UPI, जन धन और e-RUPI का लाभ उठाना ।
  • कर एवं ब्याज दर प्रोत्साहन: दीर्घकालिक बचत के लिये कर कटौती में वृद्धि, तथा मुद्रास्फीति-सूचकांकित बांड शुरू करने से सुरक्षित निवेश को प्रोत्साहन मिल सकता है , क्रय शक्ति की सुरक्षा हो सकती है, तथा वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा मिल सकता है। 
  • सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को मज़बूत करना: अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के लिये पेंशन कवरेज (अटल पेंशन योजना, NPS) का विस्तार करना और निम्न आय वर्ग के लिये वृद्धावस्था निर्भरता जोखिम को कम करने के लिये सब्सिडी वाली सेवानिवृत्ति योजनाएँ प्रदान करना ।
  • उत्तरदायी ऋण विनियमन: लापरवाह उधारी और ऋण जाल से बचाव हेतु असुरक्षित ऋणों (क्रेडिट कार्ड, व्यक्तिगत ऋण) पर सख्त RBI मानदंड लागू किये जायें, जिनमें ऋण-से-आय (Debt-to-Income – DTI) अनुपात की अधिकतम सीमा तथा पारदर्शी ऋण मूल्य निर्धारण शामिल हो, ताकि उधारी को उत्तरदायी बनाया जा सके। 
    • लक्ज़री ऋणों पर उच्च जोखिम भार लागू किया जाये और बुरी ऋण प्रवृत्तियों (आकस्मिक व्यय) की तुलना में अच्छी ऋण शिक्षा (गृह ऋण) को बढ़ावा दिया जाये।
  • उत्पादक निवेश को प्रोत्साहित करना: स्वर्ण मुद्रीकरण योजनाओं जैसे सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड को प्रोत्साहित कर निष्क्रिय संपत्तियों को उपयोग में लाया जाये, और रियल एस्टेट में सट्टा गतिविधियों पर नियंत्रण के लिये किफायती आवास नीतियों को लागू किया जाये। 
    • सट्टा व्यापार को विनियमित करते हुए, दीर्घकालिक इक्विटी होल्डिंग्स के लिये कर प्रोत्साहन (LTCG लाभ का विस्तार) प्रदान करना।

निष्कर्ष

भारत में घटती घरेलू बचत और बढ़ता ऋण आर्थिक स्थिरता के लिये खतरा उत्पन्न कर रहे हैं। सततता सुनिश्चित करने के लिये ऐसी नीतियाँ आवश्यक हैं जो वित्तीय साक्षरता को बढ़ावा दें, बचत को प्रोत्साहित करें, लापरवाही से ऋण वितरण को नियंत्रित करना और सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करना। उपभोग-आधारित वृद्धि को विवेकपूर्ण बचत एवं ऋण प्रबंधन के साथ संतुलित करना दीर्घकालिक लचीलापन, समावेशी विकास के साथ-साथ बदलते वित्तीय परिदृश्य में संवेदनशीलताओं को कम करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

Q. भारत में घरेलू बचत दर में गिरावट दीर्घकालिक आर्थिक वृद्धि के लिये जोखिम उत्पन्न करती है। इसके कारणों का विश्लेषण कीजिये तथा स्थायी बचत को पुनर्जीवित करने हेतु नीतिगत उपाय सुझाइये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019)

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।
(b) कीमत- स्तर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।
(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।
(d) सार्वजनिक वितरण की गुणवत्ता अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।

उत्तर: (b)


प्रश्न. एन.एस.एस.ओ. के 70वें चक्र द्वारा संचालित ‘‘कृषक-कुटुम्बों की स्थिति आकलन सर्वेक्षण’’ के अनुसार निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. राजस्थान में ग्रामीण कुटुम्बाें में कृषि कुटुम्बों का प्रतिशत सर्वाधिक है
  2.  देश के कुल कृषि कुटुम्बों में 60% से कुछ अधिक ओ.बी.सी. के हैं।
  3.   केरल में 60% से कुछ अधिक कृषि कुटुम्बों ने यह सूचना दी कि उन्होंने अधिकतम आय गै़र कृषि स्रोतों से प्राप्त की है।

उपर्युत्त कथनाें में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 2 औ 3  
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न .भारत की संभावित वृद्धि के कई कारकों में से बचत दर सबसेअधिक प्रभावी है। क्या आप सहमत हैं? विकास क्षमता के लिये अन्य कौन से कारक उपलब्ध हैं? (2017)

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