भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में बुनियादी ढाँचा से संबंधित चुनौतियाँ
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय राजमार्ग, क्षेत्रीय संपर्क योजना (RCS‑UDAN), उड़ान, गैलेथिया बे मेगा पोर्ट, भारत‑मध्य पूर्व‑यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), दिल्ली‑मेरठ RRTS कॉरिडोर, पर्वतमाला परियोजना, ब्लॉकचेन, पीएम गति शक्ति, म्यूनिसिपल बॉण्ड, इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (InvIT), ग्रीन बॉण्ड। मेन्स के लिये:भारत में बुनियादी ढाँचे की स्थिति और इससे संबंधित चुनौतियाँ, बुनियादी ढाँचे के विकास में सुधार और मज़बूती के लिये आवश्यक कदम। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
संरचनात्मक विफलता के कारण वडोदरा में महिसागर नदी पुल के ढहने से 20 लोगों की मौत हो गई, जो देशभर में हो रही ऐसी घटनाओं के बीच बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता को लेकर बढ़ती चिंताओं को उजागर करता है।
भारत के खराब बुनियादी ढाँचे के ऐसे ही उदाहरण:
- गुजरात: वर्ष 2022 में मोरबी सस्पेंशन ब्रिज गिरने से 135 लोगों की मृत्यु हो गई।
- महाराष्ट्र: कल्याण-शिल रोड पर स्थित पलावा पुल को उद्घाटन के दो घंटे के भीतर ही संरचनात्मक दोषों के कारण बंद करना पड़ा, जबकि इंद्रायणी नदी पर बना पुणे का पैदल यात्री पुल पर्यटकों के भार से ढह गया।
- असम: जून 2025 में भारी बारिश के दौरान दो ओवरलोडेड ट्रकों के पार करने के बाद हरांग पुल ढह गया, जिससे बराक घाटी का त्रिपुरा, मिज़ोरम और मणिपुर से संपर्क कट गया।
- मध्य प्रदेश: भोपाल में ऐशबाग रेल ओवरब्रिज, जिसमें 90 डिग्री का खतरनाक मोड़ है, ने जनता में आक्रोश उत्पन्न कर दिया है।
- बिहार: वर्ष 2024 में केवल 20 दिनों के भीतर कम-से-कम 12 पुल गिर गए। वर्ष 2025 में गंडक नदी पर स्थित मंगर का बिछली पुल गिरने से लगभग 80,000 निवासी अलग-थलग पड़ गए।
भारत की खराब बुनियादी अवसरंचना के पीछे कौन-से कारण हैं?
- भ्रष्टाचार और खराब सामग्री: ठेकेदार माफिया और रिश्वत (करार के लिये इनाम) राजनीतिक रूप से जुड़ी फर्मों को अधिक लाभ के लिये खराब गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग करने की अनुमति देते हैं।
- बिहार जैसे राज्यों में "घोस्ट प्रोजेक्ट्स" (कागज़ों पर बने लेकिन ज़मीनी हकीकत में नहीं) और फंड के दुरुपयोग के कारण कमज़ोर संरचनाएँ बनती हैं, जैसे पूर्णिया में ज़मीन घोटाले के लिये अवैध रूप से बना "घोस्ट ब्रिज"।
- खराब रखरखाव और अधिक भार: पुराने पुलों की अनदेखी, जैसे मोरबी और इंद्रायणी नदी पर बने पुल, समय पर निरीक्षण और सुदृढ़ीकरण (reinforcement) न होने के कारण ढह गए।
- असम के हरांग पुल में देखा गया कि ट्रैफिक नियमों की अनदेखी और भारी वाहनों की निगरानी न होने से पुल टूट गया।
- इंजीनियरिंग खामियां : भोपाल के ऐशबाग रेल ओवरब्रिज और इंदौर के निर्माणाधीन पुल में देखी गई खराब योजना के परिणामस्वरूप असुरक्षित बुनियादी ढाँचा का उजागर हुआ है।
- विशेषज्ञ निरीक्षण और तकनीकी समीक्षा के अभाव के कारण कई परियोजनाओं में संरचनात्मक खामियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
- जवाबदेही की कमी: मोरबी और महिसागर जैसी आपदाओं के बाद भी जवाबदेही का अभाव देखने को मिलता है, जहाँ अधिकारियों और ठेकेदारों को शायद ही कभी दंडित किया जाता है।
- अपर्याप्त सुरक्षा नियम और स्ट्रिक्ट ब्रिज ऑडिट के अभाव के कारण असुरक्षित संरचनाएँ उपयोग में बनी रहती हैं।
- जलवायु एवं पर्यावरणीय कारक: असम और बिहार में बाढ़ तथा नदी कटाव ब्रिज की नींव को कमज़ोर हो जाती है, फिर भी निवारक कार्रवाई का अभाव है।
- मुंबई और पुणे जैसे शहरों में अनियोजित शहरीकरण के कारण बुनियादी अवसरंचना पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: अधूरी परियोजनाओं का जल्दबाज़ी में उद्घाटन (जैसे पलावा ब्रिज), सुरक्षा जाँच को दरकिनार कर किया जाता है।
- नौकरशाही देरी और निधि विवाद सहित राज्य-केंद्र कुप्रबंधन के कारण कई बुनियादी अवसरंचना परियोजनाएँ रुकी हुई हैं।
भारत में बुनियादी अवसरंचना के विकास की वर्तमान स्थिति क्या है?
- राजमार्ग और सड़कें: भारत के पास विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क (संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद) है। वर्ष 2024 तक राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई 1,46,145 किलोमीटर तक पहुँच चुकी है।
- रेलवे: भारत की पहली बुलेट ट्रेन परियोजना, जिसे 280 किमी/घंटा की गति के लिये डिज़ाइन किया गया है, वर्ष 2026 तक पूरी होने की उम्मीद है।
- पिछले दशक में, कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसे जैसी कुछ घटनाओं के बावजूद, गंभीर रेल दुर्घटनाओं की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है।
- नागरिक उड्डयन: भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाज़ार है। देश में संचालित हवाई अड्डों की संख्या वर्ष 2014 में 74 से बढ़कर वर्ष 2024 में 157 हो गई है।
- क्षेत्रीय संपर्क योजना (RCS)–उड़ान के तहत दिसंबर 2024 तक लाखों यात्रियों को लाभ प्राप्त हुआ है।
- समुद्री क्षेत्र: भारत का लक्ष्य है कि वह वर्ष 2047 तक विश्व के शीर्ष पाँच जहाज़ निर्माण राष्ट्रों में शामिल हो।
- गैलेथिया बे मेगा पोर्ट और भारत–मध्य पूर्व–यूरोप आर्थिक गलियारा जैसी प्रमुख परियोजनाएँ व्यापारिक संपर्क को सुदृढ़ बनाने के लिये प्रगति पर हैं।
- शहरी मेट्रो: मेट्रो नेटवर्क वर्ष 2014 में 248 किमी से बढ़कर वर्ष 2024 तक 945 किमी तक पहुँच चुका है। यह अब 21 शहरों में संचालित हो रहा है और प्रतिदिन 1 करोड़ यात्रियों को सेवाएँ प्रदान कर रहा है।
- नमो भारत ट्रेन, दिल्ली–मेरठ RRTS कॉरिडोर पर, क्षेत्रीय संपर्क को मज़बूत करती है और शहरी परिवहन को बेहतर बनाती है।
- रोपवे विकास: पर्वतमाला परियोजना के तहत वित्त वर्ष 2024–25 तक लगभग 60 किमी लंबाई की रोपवे परियोजनाओं को स्वीकृति देने की योजना थी, जिनमें वाराणसी अर्बन रोपवे और गौरीकुंड–केदारनाथ रोपवे शामिल हैं।
बुनियादी अवसरंचना के विकास हेतु सरकारी पहल
भारत अपनी बुनियादी अवसरंचना के विकास को कैसे बेहतर और सुदृढ़ कर सकता है?
- कठोर गुणवत्ता नियंत्रण: सभी प्रमुख बुनियादी अवसरंचना परियोजनाओं जैसे ब्रिज, राजमार्ग और बाँधों की IIT जैसे स्वतंत्र संस्थानों द्वारा ऑडिट कराई जानी चाहिये तथा खराब निर्माण कार्य में लिप्त कंपनियों पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।
- ब्लॉकचेन के माध्यम से वास्तविक समय में निधि निगरानी (रियल-टाइम फंड ट्रैकिंग) को लागू किया जाए ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे और पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
- उन्नत इंजीनियरिंग और सामग्री को अपनाना: जापान के भूकंप-रोधी पुलों से प्रेरणा लेते हुए, बाढ़-प्रवण क्षेत्रों जैसे असम और बिहार में फाइबर-प्रबलित पॉलिमर (Fiber-Reinforced Polymers) और जंग-रोधी मिश्र धातुओं (Corrosion-Resistant Alloys) जैसी उच्च गुणवत्ता वाली सामग्रियों का उपयोग करना।
- दरारें, तनाव और अतिभार का पता लगाने हेतु पुलों की रियल-टाइम मॉनिटरिंग के लिये AI और IoT-आधारित सेंसर अपनाना।
- निर्माण से रखरखाव पर ध्यान केंद्रित करना: भारत को ब्रिज मैनेजमेंट सिस्टम (BMS) का उपयोग करते हुए एक सक्रिय रखरखाव दृष्टिकोण अपनाना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि पूंजीगत व्यय का एक निश्चित हिस्सा परिचालन और रखरखाव के लिये आवंटित किया जाए।
- राज्यों को बिहार की ब्रिज मेंटेनेंस नीति 2025 की तरह संरचित रखरखाव नीतियों को लागू करना चाहिये, जिसमें IIT ऑडिट और सेंसर-आधारित निगरानी शामिल हो।
- बुनियादी ढाँचे की योजना को सुदृढ़ करना: एकीकृत, डेटा-संचालित बुनियादी ढाँचे की योजना के लिये पीएम गति शक्ति के तहत GIS-आधारित राष्ट्रीय मास्टर प्लान का उपयोग करना और पूर्वानुमानित योजना, रसद अनुकूलन और अड़चन का पता लगाने हेतु AI उपकरणों का विस्तार करना।
- बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण को गहन बनाना: PPP मॉडल को प्रोत्साहित करते हुए उच्च सार्वजनिक पूंजीगत व्यय को बनाए रखना तथा नए बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण के लिये ब्राउनफील्ड परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण करना।
- दीर्घकालिक संस्थागत निवेश को आकर्षित करने के लिये म्यूनिसिपल बॉण्ड, इनविट्स, ग्रीन बॉण्ड और मिश्रित वित्त को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
भारत का बुनियादी ढाँचा विरोधाभासी तेज़ी से विस्तार के साथ-साथ स्पष्ट विफलताओं का सामना कर रहा है। जहाँ राजमार्ग, महानगर और विमानन क्षेत्र में प्रगति हुई है, वहीं बार-बार पुलों के ढहने से गुणवत्ता नियंत्रण, भ्रष्टाचार तथा रखरखाव में गहरी व्यवस्थागत खामियाँ उजागर होती हैं। समावेशी तथा संरचनात्मक रूप से सुदृढ़ विकास सुनिश्चित करने के लिये नियोजन , क्रियान्वयन एवं पारदर्शिता में तत्काल सुधार आवश्यक हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: भारत में बार-बार होने वाली बुनियादी ढाँचे की विफलताओं के पीछे प्रमुख कारणों को हाल के उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सQ. 'राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना निधि' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्सQ. “तीव्रतर एवं समावेशी आर्थिक विकास के लिये आधारिक-अवसंरचना में निवेश आवश्यक है।” भारतीय अनुभव के परिपेक्ष्य में विवेचना कीजिये। (2021) |
शासन व्यवस्था
मिज़ोरम का शरणार्थी संकट
प्रिलिम्स के लिये:मुक्त आवाजाही व्यवस्था, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन 1951, शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त, स्मार्ट फेंसिंग मेन्स के लिये:भारत में शरणार्थी नीति और कानूनी ढाँचा, भारत-म्यांमार सीमा और मुक्त आवागमन व्यवस्था, शरणार्थी प्रबंधन में राज्यों की भूमिका |
स्रोत:TH
चर्चा में क्यों?
मिज़ोरम वर्ष 2021 में म्याँमार में हुए सैन्य तख्तापलट के बाद से बढ़ते शरणार्थी संकट का सामना कर रहा है, और म्याँमार, बांग्लादेश तथा मणिपुर से आए हज़ारों लोगों को शरण दे रहा है।
- वर्ष 2025 के आरंभ में म्याँमार के चिन राज्य से लगभग 4,000 शरणार्थी सशस्त्र संघर्ष के बाद मिज़ोरम में प्रवेश कर गए, जिससे राज्य की पहले से ही नाजुक मानवीय स्थिति और अधिक तनावपूर्ण हो गई।
मिज़ोरम शरणार्थियों के आगमन को किस प्रकार नियंत्रित और प्रबंधित कर रहा है?
- जातीय संबंध और मानवीय आधार: मिज़ोरम में सीमा पार आवागमन लंबे समय से सामान्य रहा है, विशेषकर वर्ष 1968 में 'फ्री मूवमेंट रेजीम' (FMR) के औपचारिक रूप से लागू होने से पहले से ही।
- मिज़ोरम की प्रमुख मिज़ो समुदाय का म्याँमार के चिन, बांग्लादेश के बॉम और मणिपुर के कुकी-ज़ो समुदायों से गहरा जातीय, सांस्कृतिक और पारिवारिक संबंध है, ये सभी ज़ो (Zo) जातीय समूह का हिस्सा हैं।
- इस साझा पहचान के कारण एकजुटता की भावना उत्पन्न हुई है, और विशेषकर म्याँमार से आए शरणार्थियों को मिज़ो समुदाय ने सहानुभूति और सहयोग प्रदान किया है।
- सामुदायिक सहायता: यंग मिज़ो असोसिएशन (YMA), चर्च समूहों और स्थानीय नागरिकों जैसे विभिन्न संगठनों ने शरणार्थियों को खाद्य, आश्रय और बुनियादी आवश्यकताएँ प्रदान करने में सक्रिय भूमिका निभाई है।
- राज्य की नागरिक प्रतिक्रिया सहानुभूतिपूर्ण रही है, हालाँकि इस संकट ने स्थानीय संसाधनों पर अत्यधिक दबाव भी डाला है।
- मिज़ोरम सरकार की स्थिति: जातीय और मानवीय कारणों का हवाला देते हुए मिज़ोरम सरकार ने अब तक शरणार्थियों को निर्वासित नहीं किया है।
- हालाँकि, स्थानीय स्तर पर बढ़ते दबाव के कारण कुछ गाँवों ने शरणार्थियों की आवाजाही और व्यापार पर प्रतिबंध लगा दिये हैं, यह कहते हुए कि इससे कानूनी उल्लंघन और सीमा सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
- केंद्र सरकार से सीमित सहायता: प्रारंभ में संकोच के बावजूद केंद्र सरकार ने मिज़ोरम को इस संकट से निपटने के लिये 8 करोड़ रुपए की राहत राशि प्रदान की।
- हालाँकि, स्थानीय प्रशासन ने इस सहायता को अपर्याप्त बताते हुए असंतोष जताया है, क्योंकि यह राशि तेज़ी से बढ़ती चुनौतियों का समाधान करने के लिये पर्याप्त नहीं मानी जा रही है।
मिज़ोरम में शरणार्थियों को नियंत्रित करने वाला कानूनी ढाँचा क्या है?
- वर्ष 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 प्रोटोकॉल के अनुसार, शरणार्थी वह व्यक्ति होता है जो अपने मूल देश के बाहर है और किसी उत्पीड़न के उचित और वास्तविक भय के कारण अपने देश वापस लौटने में असमर्थ या अनिच्छुक है। यह भय किसी के नस्ल, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह की सदस्यता, या राजनीतिक विचारों पर आधारित हो सकता है।
- वह व्यक्ति जिसके शरणार्थी होने का दावा अभी तक कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त नहीं हुआ है।
- शरणार्थी अवैध प्रवासी नहीं होते हैं, क्योंकि वे उत्पीड़न से भागते हैं, जबकि अवैध प्रवासी बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में स्वेच्छा से सीमा पार करते हैं।
- भारत का रुख: भारत वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन या इसके वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है तथा भारत में कोई राष्ट्रीय शरणार्थी कानून भी नहीं है।
- भारत में शरणार्थियों को मुख्यतः विदेशी नागरिक अधिनियम, 1946 (Foreigners Act) के तहत नियंत्रित किया जाता है। इसके अलावा भारत में शरणार्थियों से निपटने के लिये निम्नलिखित कानूनों का प्रयोग होता है:
- भारतीय पासपोर्ट अधिनियम, 1920
- कैदियों की प्रत्यावर्तन अधिनियम, 2003 (Repatriation of Prisoners Act)
- पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) नियम, 1950
- भारत में शरणार्थियों को मुख्यतः विदेशी नागरिक अधिनियम, 1946 (Foreigners Act) के तहत नियंत्रित किया जाता है। इसके अलावा भारत में शरणार्थियों से निपटने के लिये निम्नलिखित कानूनों का प्रयोग होता है:
- FMR और सीमा नियंत्रण: FMR भारत और म्याँमार के बीच 1968 में हुई एक द्विपक्षीय व्यवस्था है जो पहाड़ी जनजातियों के सदस्यों को सीमा पार जाने की अनुमति प्रदान करती है। इसका उद्देश्य सीमा पार सांस्कृतिक संबंधों को बनाए रखना, व्यापार को बढ़ावा देना और भारत की एक्ट ईस्ट नीति का समर्थन करना है।
- मूल रूप से 40 किलोमीटर की यात्रा की अनुमति थी, लेकिन बाद में सीमा को घटाकर 10 किलोमीटर कर दिया गया। असम राइफल्स म्याँमार सीमा की सुरक्षा करती है, जबकि राज्य के अधिकारी FMR के तहत सीमा पास जारी करते हैं।
- सीमा क्षेत्र के निवासी वीजा या पासपोर्ट के बिना यात्रा कर सकते हैं, लेकिन इसके लिये QR कोड-युक्त सीमा पास जरूरी है। बायोमेट्रिक डेटा एकत्र कर केंद्रीकृत पोर्टल पर अपलोड किया जाता है, जिससे लोगों को नकारात्मक सूची (Negative List) से मिलान किया जा सके।
- हालाँकि इस योजना का उद्देश्य सकारात्मक है, लेकिन सुरक्षा, तस्करी और अवैध प्रवासन की चिंताओं के चलते इस पर नियंत्रण कठोर कर दिया गया है।
- UNHCR: संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) के साथ पंजीकृत शरणार्थियों को सीमित सुरक्षा और सेवाएँ मिलती हैं, लेकिन उनके पास सरकारी दस्तावेज़ नहीं होते।
- इस कारण से वे भारत में कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा सकते साथ ही बैंक खाता भी नहीं खोल सकते, जिससे वे सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित रह जाते हैं।
नोट: मिज़ोरम (परिवार रजिस्टरों का रखरखाव)) विधेयक, 2019, जो वर्तमान में विचाराधीन है, का उद्देश्य राज्य में रह रहे विदेशी नागरिकों की पहचान और निगरानी करना है। यह विधेयक मिज़ो नागरिकों, शरणार्थियों और अवैध प्रवासियों के बीच अंतर करने में मदद करने के लिये लाया गया है।
शरणार्थी और शरण चाहने वालों के मुद्दों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने हेतु कौन-से उपाय आवश्यक हैं?
- कानूनी सुधार: शरणार्थियों और अवैध प्रवासियों के बीच अंतर करने वाला एक व्यापक राष्ट्रीय शरणार्थी कानून लागू करना। मानवीय कानून के तहत निष्पक्ष सुनवाई और सुरक्षा के अधिकार सुनिश्चित करना।
- यदि मिज़ोम परिवार रजिस्टर रखरखाव विधेयक, 2019 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाती है, तो यह स्थानीय स्तर पर पहचान और विनियमन के लिये एक मॉडल बन सकता है।
- संस्थागत सुदृढ़ीकरण: राज्य-स्तरीय विदेशी पंजीकरण अधिकारियों (FRO) को स्पष्ट दिशा-निर्देशों और प्रशिक्षण से सशक्त बनाना। समय पर शरणार्थी स्थिति निर्णय के लिये गृह मंत्रालय और UNHCR के बीच समन्वय स्थापित करना।
- शरणार्थियों के प्रति प्रतिक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिये गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और मिज़ोरम सरकार को शामिल करते हुए एक समर्पित अंतर-मंत्रालयी शरणार्थी समन्वय कार्य बल की स्थापना करना।
- सामुदायिक एकीकरण: समावेशी स्थानीय विकास योजनाओं को बढ़ावा देना तथा वास्तविक शरणार्थियों के लिये बुनियादी सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित करना।
- महिलाओं और बच्चों जैसे कमज़ोर समूहों को तस्करी और शोषण से बचाना।
- बुनियादी ढाँचे और शिविर प्रबंधन को मज़बूत करना: शरणार्थियों को वर्तमान में अस्थायी आश्रयों में रखा जाता है, जहाँ स्वच्छता, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा तक उनकी पहुँच सीमित है।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और UNHCR के सहयोग से अस्थायी स्वागत केंद्र स्थापित करना। शरणार्थियों के आगमन और सेवा आवश्यकताओं पर नज़र रखने के लिये एक शरणार्थी डेटा प्रबंधन प्रणाली का निर्माण करना।
- सीमा प्रबंधन: संवेदनशील सीमाओं की निगरानी के लिए स्मार्ट फेंसिंग तकनीक का उपयोग करें, साथ ही आश्रय चाहने वालों के लिए मानवीय गलियारों को सुनिश्चित करना।
- स्थानीय पुलिसिंग और सामुदायिक भागीदारी को मज़बूत करना ताकि जातीय प्रोफाइलिंग किये बिना आपराधिक गतिविधियों का पता लगाया जा सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: ""जातीय एकजुटता राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर नहीं होनी चाहिये।" मिज़ोरम की शरणार्थी प्रतिक्रिया के संदर्भ में इस कथन का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नQ. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से युग्म सही सुमेलित है/हैं? (a) 1 और 2 उत्तर- (c) मेन्सQ. "शरणार्थियों को उस देश में वापस नहीं लौटाया जाना चाहिए जहाँ उन्हें उत्पीड़न अथवा मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ेगा।" खुले समाज और लोकतांत्रिक होने का दावा करने वाले किसी राष्ट्र के द्वारा नैतिक आयाम के उल्लंघन के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2021) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत के कॉर्पोरेट निवेश में मंदी
प्रिलिम्स के लिये:औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP), सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF), पूंजीगत व्यय, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मेन्स के लिये:भारत में निजी निवेश को प्रभावित करने वाले कारक, भारत का निवेश वातावरण |
स्रोत: TH
चर्चा में क्यों?
सरकारी समर्थन के बावजूद भारत में कॉरपोरेट निवेश में मंदी बनी हुई है। जून 2025 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) की वृद्धि दर 9 महीने के निचले स्तर 1.2% पर आ गई, जिससे औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट आई है तथा भारत की वृद्धि और रोज़गार की संभावनाओं को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
भारत में कॉर्पोरेट निवेश मंद क्यों है?
- माँग में कमी: निवेश के फैसले मुख्य रूप से अपेक्षित माँग से प्रेरित होते हैं। कर-सुधारों (2019 में कॉर्पोरेट कर में 30% से 22% की कटौती) के बाद ज़्यादा मुनाफ़े के बावजूद, कम उपभोक्ता माँग ने विस्तार को हतोत्साहित किया है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में बताया गया है कि कॉर्पोरेट मुनाफे में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन नियुक्तियों और वेतन वृद्धि कम रही है तथा मशीनरी क्षेत्र में निजी क्षेत्र का सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF) चार वर्षों में केवल 35% बढ़ा है। माँग में सुधार के बिना, केवल मुनाफा निवेश के लिये प्रोत्साहन नहीं है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये ब्याज दरों में कटौती और तरलता में ढील दी, लेकिन कमज़ोर मांग के कारण व्यावसायिक विश्वास प्रभावित हुआ है। मांग के अभाव में कंपनियाँ ऋण लेने से बचती हैं, क्योंकि उन्हें कम लाभ मिलने का डर रहता है।
- क्षमता का कम उपयोग आगे निवेश को हतोत्साहित करता है, क्योंकि कंपनियाँ मौजूदा परिसंपत्तियों को अधिक कुशलता से संचालित करना पसंद करती हैं।
- GDP के मुकाबले निम्न निवेश अनुपात: हाल के वर्षों में कॉर्पोरेट निवेश और GDP का अनुपात काफी कम रहा है। वित्त वर्ष 2022-23 में, कॉर्पोरेट निवेश GDP का 12% रहा, जबकि विकास के वर्षों (2004-2008) के दौरान यह अनुपात 16% था।
- यह गिरावट दीर्घकालिक विकास संभावनाओं में कम होते विश्वास को दर्शाती है। निवेश का यह स्तर भारत के 8% से अधिक संरचनात्मक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अपर्याप्त है, जिसके लिये 35% या उससे अधिक निवेश दर की आवश्यकता होगी।
- सरकारी पूंजीगत व्यय का कम गुणक प्रभाव: सरकार ने विकास को बढ़ावा देने और सुधार को समर्थन देने हेतु बुनियादी ढाँचे पर खर्च ( वित्त वर्ष 2025-26 में 11.21 लाख करोड़ रुपए (जीडीपी का 3.1%) निर्धारित) को बढ़ा दिया है।
- उच्च सार्वजनिक खर्च के बावजूद, निजी निवेश सुस्त बना हुआ है, जिसका कारण है— परियोजनाओं की लंबी समय-सीमा, उच्च आयात निर्भरता और मशीन-प्रधान अवसंरचना से होने वाली कम रोज़गार सृजन।
- ऋण वितरण में देरी: विशेषकर बड़े अवसंरचना परियोजनाओं के लिए, ऋण वितरण में दो से तीन साल तक का समय लग सकता है।
- उदाहरण के लिये, नवंबर 2023 में अवसंरचना क्षेत्र को दिया गया ऋण केवल 2.1% की दर से बढ़ा, जबकि नवंबर 2022 में यह वृद्धि 11.1% थी।
- RBI के आँकड़ों के अनुसार, नवंबर 2023 में सड़क क्षेत्र को दिये गए ऋण में केवल 6.4% की वृद्धि हुई, जबकि पिछले वर्ष यह 14% थी।
- इसके विपरीत, वैयक्तिक ऋण (personal loans) में 2023 में 30.1% की वृद्धि हुई, जो घरेलू मांग को दर्शाता है, लेकिन औद्योगिक निवेश की सुस्ती भी स्पष्ट करता है।
- वैश्विक व्यापार की प्रतिकूल परिस्थितियाँ: अमेरिका जैसे प्रमुख बाज़ारों में टैरिफ व्यवस्थाओं सहित वैश्विक स्तर पर संरक्षणवादी नीतियों ने निर्यात-आधारित निवेश अवसरों को कमज़ोर कर दिया है।
निवेश और लाभ से संबंधित आर्थिक सिद्धांत
- एक शुद्ध पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (जहाँ राज्य का कोई हस्तक्षेप न हो और बाहरी बाजारों तक कोई पहुँच न हो) में, निवेश और लाभ के बीच गहरा संबंध होता है, लेकिन इसमें कौन किसका कारण बनता है, इस पर विद्वानों के बीच मतभेद है।
- अर्थशास्त्रियों जैसे टुगान बारानोव्स्की, लक्समबर्ग और कालेकी के अनुसार, निवेश और लाभ के बीच संबंध को समझना निवेश चक्र (Investment Cycle) को समझने के लिये आवश्यक है।
- टुगान बारानोव्स्की का दृष्टिकोण: उन्होंने कहा कि निवेश स्वयं अपनी मांग उत्पन्न कर सकता है। यदि उपभोग वस्तुओं और पूंजीगत वस्तुओं में निवेश संतुलित रहता है, तो अर्थव्यवस्था मजबूत उपभोक्ता मांग के बिना भी बढ़ सकती है। अर्थात् निवेश ही वृद्धि का आधार बन सकता है।
- लक्समबर्ग का दृष्टिकोण: उन्होंने माना कि निवेश से लाभ होता है, लेकिन यह निवेश की गारंटी नहीं देता। पूंजीवाद में निर्णय सामूहिक नहीं बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर लिये जाते हैं।
- मंदी के दौर में, जब मौजूदा कंपनी ही पूरी क्षमता से नहीं चल रही हों, तो नई क्षमता जोड़ना तर्कसंगत नहीं होता।
- सामूहिक निवेश अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित कर सकता है, लेकिन पूंजीवाद में इस प्रकार की सामंजस्यपूर्ण योजना का अभाव होता है।
- कलेकी (Kalecki): उन्होंने तर्क दिया कि निवेश ही लाभ को उत्पन्न करता है, न कि इसके विपरीत। लेकिन कंपनियाँ तभी निवेश करती हैं जब उन्हें मांग की अपेक्षा होती है। यदि कोई बाह्य प्रोत्साहन (External stimulus) नहीं हो, तो अर्थव्यवस्था कम मांग और कम निवेश के चक्र में फँस जाती है।
निवेश बढ़ाने के लिये भारत के क्या उपाय हैं?
- विनिर्माण तथा नवाचार को समर्थन देने के लिये मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया।
- एकीकृत बुनियादी ढाँचे और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क के लिये पीएम गतिशक्ति।
- विनिर्माण क्षेत्रों के विकास के लिये राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा कार्यक्रम (NICDP)।
- क्षेत्र-विशिष्ट उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ।
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (EoDB) सुधार और अनुपालन में कमी।
- निवेशक सुविधा के लिये राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली (NSWS)।
- इंडिया इंडस्ट्रियल लैंड बैंक निवेशकों को उपलब्ध भूमि की जानकारी ऑनलाइन उपलब्ध कराना।
- परियोजना कार्यान्वयन संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिये परियोजना निगरानी समूह (PMG) का गठन किया जाएगा।
- 90% से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्रवाह स्वचालित मार्ग के तहत आते हैं, जिससे लालफीताशाही में कमी आई है। अधिकांश क्षेत्रों में 100% FDI की अनुमति है, रणनीतिक महत्त्व वाले कुछ क्षेत्रों को छोड़कर।
- प्रमुख मंत्रालयों में प्रोजेक्ट डेवलपमेंट सेल (PDC) की स्थापना की गई है ताकि निवेश प्रस्तावों का समन्वय किया जा सके और निवेशकों को सहायता प्रदान की जा सके।
कॉरपोरेट निवेश को स्थायी रूप से पुनर्जीवित करने के लिये नीति दृष्टिकोण क्या होना चाहिये?
- समग्र मांग को बढ़ावा देना: सामाजिक क्षेत्र पर व्यय बढ़ाना, ग्रामीण रोज़गार योजनाएँ (जैसे MGNREGA) और लक्षित नकद हस्तांतरण उपभोग को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
- आवास और MSME जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश से रोज़गार सृजन हो सकता है और घरेलू आय में वृद्धि हो सकती है, इससे सभी क्षेत्रों में मांग पर प्रभाव पड़ेगा।
- बेहतर प्रतिस्पर्द्धा के लिये सुधार कारक बाज़ार: भूमि की उच्च कीमतें (शहरी क्षेत्रों में मूल्य-से-आय अनुपात (PTI) लगभग 11 है जो सामर्थ्य मानक 5 से काफी अधिक है) उत्पादन लागत बढ़ाती हैं और प्रतिस्पर्द्धा को हानि पहुँचाती हैं।
- पारदर्शी भूमि आपूर्ति और बेहतर भूमि उपयोग नीतियाँ लागत कम कर सकती हैं, सामर्थ्य बढ़ा सकती हैं तथा निवेश आकर्षित कर सकती हैं।
- निजी निवेश का जोखिम कम करना: उत्पादन और स्वच्छ ऊर्जा जैसे ग्रीनफील्ड निवेशों के लिये दीर्घकालिक व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) और जोखिम-साझाकरण मॉडल तैयार किये जाएँ।
- MSME से परे मध्यम आकार और विकास-चरण वाली फर्मों के लिये ऋण गारंटी योजनाओं (जैसे आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS)) का विस्तार करना।
- हरित और डिजिटल परिवर्तन का समर्थन करना: जो क्षेत्र सतत् ऊर्जा, सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल और नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को अपना रहे हैं, उनके लिये ग्रीन कैपेक्स प्रोत्साहन तैयार किये जाएँ।
- उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं को केवल उत्पादन से नहीं, बल्कि रोज़गार सृजन और नवाचार से भी जोड़ा जाए, ताकि समावेशी विकास को बढ़ावा मिल सके।
- मिशन-आधारित निवेश रणनीति तैयार करना: ऊर्जा परिवर्तन, रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण और डिजिटल बुनियादी ढाँचे जैसे राष्ट्रीय अभियानों को औद्योगिक नीति से जोड़ा जाए, ताकि दीर्घकालिक निवेश को आकर्षित किया जा सके।
- ऐसे विशेषीकृत एवं नवोन्मेषी उत्पादों (जैसे अनमैन्ड एरियल व्हीकल, इलेक्ट्रिक वाहन घटक, रक्षा-ग्रेड अर्धचालक) के विकास तथा निर्यात को प्रोत्साहित किया जाए, जो वैश्विक मांग को पूरा करते हों और भारत को उभरते क्षेत्रों में प्रतिस्पर्द्धी अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करने में सहायता करें।
- कॉरपोरेट विश्वास को सुदृढ़ करना: मुद्रास्फीति को RBI की सहज सीमा के भीतर बनाए रखना, ताकि ब्याज दरों में अस्थिरता कम हो। राजकोषीय अनुशासन का पालन करें और बजट से बाहर की उधारियों में अधिक पारदर्शिता रखें, ताकि विश्वसनीयता स्थापित हो सके।
- बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की स्वीकृति प्रक्रिया को तीव्र करें, ताकि विलंब को कम किया जा सके और दीर्घकालिक निवेश को आकर्षित किया जा सके।
निष्कर्ष
सतत् कॉरपोरेट निवेश पुनरुद्धार केवल कर कटौतियों और मौद्रिक सहजता के माध्यम से संभव नहीं है। इसके लिये मांग सृजन, संरचनात्मक सुधार, वित्तीय सुदृढ़ीकरण और संस्थागत विश्वास का सम्मिलित व समग्र रणनीतिक दृष्टिकोण आवश्यक है। भारत की जनसांख्यिकीय बढ़त और भूराजनैतिक पुनर्स्थापन एक अनूठा अवसर प्रदान करते हैं, जिससे निवेश ढाँचे को एक अधिक अनुकूल तथा समावेशी अर्थव्यवस्था की दिशा में पुनःसंयोजित किया जा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: महत्त्वपूर्ण कर सुधारों और सार्वजनिक पूँजीगत व्यय के बावजूद भारत में निजी कॉर्पोरेट निवेश सुस्त क्यों बना हुआ है? इस प्रवृत्ति को बदलने के लिये नीतिगत उपाय सुझाएँ। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न. किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में कर में कमी निम्नलिखित में से किसको दर्शाती है? (2015)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. "सुधार के बाद की अवधि में औद्योगिक विकास दर सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि से पीछे रह गई है" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हालिया बदलाव औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) |