भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में बुनियादी ढाँचा से संबंधित चुनौतियाँ
- 15 Jul 2025
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय राजमार्ग, क्षेत्रीय संपर्क योजना (RCS‑UDAN), उड़ान, गैलेथिया बे मेगा पोर्ट, भारत‑मध्य पूर्व‑यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC), दिल्ली‑मेरठ RRTS कॉरिडोर, पर्वतमाला परियोजना, ब्लॉकचेन, पीएम गति शक्ति, म्यूनिसिपल बॉण्ड, इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (InvIT), ग्रीन बॉण्ड। मेन्स के लिये:भारत में बुनियादी ढाँचे की स्थिति और इससे संबंधित चुनौतियाँ, बुनियादी ढाँचे के विकास में सुधार और मज़बूती के लिये आवश्यक कदम। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
संरचनात्मक विफलता के कारण वडोदरा में महिसागर नदी पुल के ढहने से 20 लोगों की मौत हो गई, जो देशभर में हो रही ऐसी घटनाओं के बीच बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता को लेकर बढ़ती चिंताओं को उजागर करता है।
भारत के खराब बुनियादी ढाँचे के ऐसे ही उदाहरण:
- गुजरात: वर्ष 2022 में मोरबी सस्पेंशन ब्रिज गिरने से 135 लोगों की मृत्यु हो गई।
- महाराष्ट्र: कल्याण-शिल रोड पर स्थित पलावा पुल को उद्घाटन के दो घंटे के भीतर ही संरचनात्मक दोषों के कारण बंद करना पड़ा, जबकि इंद्रायणी नदी पर बना पुणे का पैदल यात्री पुल पर्यटकों के भार से ढह गया।
- असम: जून 2025 में भारी बारिश के दौरान दो ओवरलोडेड ट्रकों के पार करने के बाद हरांग पुल ढह गया, जिससे बराक घाटी का त्रिपुरा, मिज़ोरम और मणिपुर से संपर्क कट गया।
- मध्य प्रदेश: भोपाल में ऐशबाग रेल ओवरब्रिज, जिसमें 90 डिग्री का खतरनाक मोड़ है, ने जनता में आक्रोश उत्पन्न कर दिया है।
- बिहार: वर्ष 2024 में केवल 20 दिनों के भीतर कम-से-कम 12 पुल गिर गए। वर्ष 2025 में गंडक नदी पर स्थित मंगर का बिछली पुल गिरने से लगभग 80,000 निवासी अलग-थलग पड़ गए।
भारत की खराब बुनियादी अवसरंचना के पीछे कौन-से कारण हैं?
- भ्रष्टाचार और खराब सामग्री: ठेकेदार माफिया और रिश्वत (करार के लिये इनाम) राजनीतिक रूप से जुड़ी फर्मों को अधिक लाभ के लिये खराब गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग करने की अनुमति देते हैं।
- बिहार जैसे राज्यों में "घोस्ट प्रोजेक्ट्स" (कागज़ों पर बने लेकिन ज़मीनी हकीकत में नहीं) और फंड के दुरुपयोग के कारण कमज़ोर संरचनाएँ बनती हैं, जैसे पूर्णिया में ज़मीन घोटाले के लिये अवैध रूप से बना "घोस्ट ब्रिज"।
- खराब रखरखाव और अधिक भार: पुराने पुलों की अनदेखी, जैसे मोरबी और इंद्रायणी नदी पर बने पुल, समय पर निरीक्षण और सुदृढ़ीकरण (reinforcement) न होने के कारण ढह गए।
- असम के हरांग पुल में देखा गया कि ट्रैफिक नियमों की अनदेखी और भारी वाहनों की निगरानी न होने से पुल टूट गया।
- इंजीनियरिंग खामियां : भोपाल के ऐशबाग रेल ओवरब्रिज और इंदौर के निर्माणाधीन पुल में देखी गई खराब योजना के परिणामस्वरूप असुरक्षित बुनियादी ढाँचा का उजागर हुआ है।
- विशेषज्ञ निरीक्षण और तकनीकी समीक्षा के अभाव के कारण कई परियोजनाओं में संरचनात्मक खामियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
- जवाबदेही की कमी: मोरबी और महिसागर जैसी आपदाओं के बाद भी जवाबदेही का अभाव देखने को मिलता है, जहाँ अधिकारियों और ठेकेदारों को शायद ही कभी दंडित किया जाता है।
- अपर्याप्त सुरक्षा नियम और स्ट्रिक्ट ब्रिज ऑडिट के अभाव के कारण असुरक्षित संरचनाएँ उपयोग में बनी रहती हैं।
- जलवायु एवं पर्यावरणीय कारक: असम और बिहार में बाढ़ तथा नदी कटाव ब्रिज की नींव को कमज़ोर हो जाती है, फिर भी निवारक कार्रवाई का अभाव है।
- मुंबई और पुणे जैसे शहरों में अनियोजित शहरीकरण के कारण बुनियादी अवसरंचना पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप: अधूरी परियोजनाओं का जल्दबाज़ी में उद्घाटन (जैसे पलावा ब्रिज), सुरक्षा जाँच को दरकिनार कर किया जाता है।
- नौकरशाही देरी और निधि विवाद सहित राज्य-केंद्र कुप्रबंधन के कारण कई बुनियादी अवसरंचना परियोजनाएँ रुकी हुई हैं।
भारत में बुनियादी अवसरंचना के विकास की वर्तमान स्थिति क्या है?
- राजमार्ग और सड़कें: भारत के पास विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क (संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद) है। वर्ष 2024 तक राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई 1,46,145 किलोमीटर तक पहुँच चुकी है।
- रेलवे: भारत की पहली बुलेट ट्रेन परियोजना, जिसे 280 किमी/घंटा की गति के लिये डिज़ाइन किया गया है, वर्ष 2026 तक पूरी होने की उम्मीद है।
- पिछले दशक में, कंचनजंगा एक्सप्रेस हादसे जैसी कुछ घटनाओं के बावजूद, गंभीर रेल दुर्घटनाओं की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है।
- नागरिक उड्डयन: भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा घरेलू विमानन बाज़ार है। देश में संचालित हवाई अड्डों की संख्या वर्ष 2014 में 74 से बढ़कर वर्ष 2024 में 157 हो गई है।
- क्षेत्रीय संपर्क योजना (RCS)–उड़ान के तहत दिसंबर 2024 तक लाखों यात्रियों को लाभ प्राप्त हुआ है।
- समुद्री क्षेत्र: भारत का लक्ष्य है कि वह वर्ष 2047 तक विश्व के शीर्ष पाँच जहाज़ निर्माण राष्ट्रों में शामिल हो।
- गैलेथिया बे मेगा पोर्ट और भारत–मध्य पूर्व–यूरोप आर्थिक गलियारा जैसी प्रमुख परियोजनाएँ व्यापारिक संपर्क को सुदृढ़ बनाने के लिये प्रगति पर हैं।
- शहरी मेट्रो: मेट्रो नेटवर्क वर्ष 2014 में 248 किमी से बढ़कर वर्ष 2024 तक 945 किमी तक पहुँच चुका है। यह अब 21 शहरों में संचालित हो रहा है और प्रतिदिन 1 करोड़ यात्रियों को सेवाएँ प्रदान कर रहा है।
- नमो भारत ट्रेन, दिल्ली–मेरठ RRTS कॉरिडोर पर, क्षेत्रीय संपर्क को मज़बूत करती है और शहरी परिवहन को बेहतर बनाती है।
- रोपवे विकास: पर्वतमाला परियोजना के तहत वित्त वर्ष 2024–25 तक लगभग 60 किमी लंबाई की रोपवे परियोजनाओं को स्वीकृति देने की योजना थी, जिनमें वाराणसी अर्बन रोपवे और गौरीकुंड–केदारनाथ रोपवे शामिल हैं।
बुनियादी अवसरंचना के विकास हेतु सरकारी पहल
भारत अपनी बुनियादी अवसरंचना के विकास को कैसे बेहतर और सुदृढ़ कर सकता है?
- कठोर गुणवत्ता नियंत्रण: सभी प्रमुख बुनियादी अवसरंचना परियोजनाओं जैसे ब्रिज, राजमार्ग और बाँधों की IIT जैसे स्वतंत्र संस्थानों द्वारा ऑडिट कराई जानी चाहिये तथा खराब निर्माण कार्य में लिप्त कंपनियों पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।
- ब्लॉकचेन के माध्यम से वास्तविक समय में निधि निगरानी (रियल-टाइम फंड ट्रैकिंग) को लागू किया जाए ताकि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे और पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
- उन्नत इंजीनियरिंग और सामग्री को अपनाना: जापान के भूकंप-रोधी पुलों से प्रेरणा लेते हुए, बाढ़-प्रवण क्षेत्रों जैसे असम और बिहार में फाइबर-प्रबलित पॉलिमर (Fiber-Reinforced Polymers) और जंग-रोधी मिश्र धातुओं (Corrosion-Resistant Alloys) जैसी उच्च गुणवत्ता वाली सामग्रियों का उपयोग करना।
- दरारें, तनाव और अतिभार का पता लगाने हेतु पुलों की रियल-टाइम मॉनिटरिंग के लिये AI और IoT-आधारित सेंसर अपनाना।
- निर्माण से रखरखाव पर ध्यान केंद्रित करना: भारत को ब्रिज मैनेजमेंट सिस्टम (BMS) का उपयोग करते हुए एक सक्रिय रखरखाव दृष्टिकोण अपनाना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि पूंजीगत व्यय का एक निश्चित हिस्सा परिचालन और रखरखाव के लिये आवंटित किया जाए।
- राज्यों को बिहार की ब्रिज मेंटेनेंस नीति 2025 की तरह संरचित रखरखाव नीतियों को लागू करना चाहिये, जिसमें IIT ऑडिट और सेंसर-आधारित निगरानी शामिल हो।
- बुनियादी ढाँचे की योजना को सुदृढ़ करना: एकीकृत, डेटा-संचालित बुनियादी ढाँचे की योजना के लिये पीएम गति शक्ति के तहत GIS-आधारित राष्ट्रीय मास्टर प्लान का उपयोग करना और पूर्वानुमानित योजना, रसद अनुकूलन और अड़चन का पता लगाने हेतु AI उपकरणों का विस्तार करना।
- बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण को गहन बनाना: PPP मॉडल को प्रोत्साहित करते हुए उच्च सार्वजनिक पूंजीगत व्यय को बनाए रखना तथा नए बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण के लिये ब्राउनफील्ड परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण करना।
- दीर्घकालिक संस्थागत निवेश को आकर्षित करने के लिये म्यूनिसिपल बॉण्ड, इनविट्स, ग्रीन बॉण्ड और मिश्रित वित्त को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष
भारत का बुनियादी ढाँचा विरोधाभासी तेज़ी से विस्तार के साथ-साथ स्पष्ट विफलताओं का सामना कर रहा है। जहाँ राजमार्ग, महानगर और विमानन क्षेत्र में प्रगति हुई है, वहीं बार-बार पुलों के ढहने से गुणवत्ता नियंत्रण, भ्रष्टाचार तथा रखरखाव में गहरी व्यवस्थागत खामियाँ उजागर होती हैं। समावेशी तथा संरचनात्मक रूप से सुदृढ़ विकास सुनिश्चित करने के लिये नियोजन , क्रियान्वयन एवं पारदर्शिता में तत्काल सुधार आवश्यक हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न प्रश्न: भारत में बार-बार होने वाली बुनियादी ढाँचे की विफलताओं के पीछे प्रमुख कारणों को हाल के उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्सQ. 'राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना निधि' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्सQ. “तीव्रतर एवं समावेशी आर्थिक विकास के लिये आधारिक-अवसंरचना में निवेश आवश्यक है।” भारतीय अनुभव के परिपेक्ष्य में विवेचना कीजिये। (2021) |