राजस्थान Switch to English
राजस्थान में नवीकरणीय ऊर्जा की उपलब्धि
चर्चा में क्यों?
राजस्थान ने प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान मिशन (PM-KUSUM) के तहत 2,000 मेगावाट का महत्त्वपूर्ण नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य प्राप्त कर लिया है, यह योजना किसानों-केंद्रित सौर ऊर्जा कार्यक्रम के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्रमुख बिंदु:
- परिचय: सौर ऊर्जा में अग्रणी राज्य राजस्थान ने मई 2025 में पहली बार 1,000 मेगावाट का आँकड़ा पार करने के बाद एक ही समय में अपनी सौर क्षमता दोगुनी कर ली है, जो किसानों और निजी डेवलपर्स की मज़बूत भागीदारी को दर्शाता है।
- सवाई माधोपुर ज़िले के कोलाड़ा में नया 1.82 मेगावाट का सौर संयंत्र स्थापित होने के बाद राजस्थान की PM-KUSUM योजना के घटक-A और घटक-C के तहत कुल स्थापित क्षमता 2,001 मेगावाट तक पहुँच गई है।
- राष्ट्रीय रैंकिंग:
- घटक-A: राजस्थान भारत में पहले स्थान पर है, जहाँ अर्द्ध-उपजाऊ और बंजर भूमि का उपयोग ग्रिड-संयुक्त सौर परियोजनाओं के लिये किया जा रहा है।
- घटक-C: राज्य राष्ट्रीय स्तर पर तीसरे स्थान पर है, महाराष्ट्र और गुजरात के बाद तथा यह कृषि पंपों के सौरकरण पर केंद्रित है।
PM-कुसुम
- परिचय: पीएम-कुसुम (PM-KUSUM) योजना को नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा वर्ष 2019 में शुरू किया गया था, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में ऑफ-ग्रिड सौर पंपों की स्थापना को बढ़ावा दिया जा सके तथा ग्रिड-संयुक्त क्षेत्रों में ग्रिड पर निर्भरता को कम किया जा सके।
उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य किसानों को उनकी बंजर भूमि पर सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने में सक्षम बनाना और उस ऊर्जा को ग्रिड में बेचने का अवसर उपलब्ध कराना है।
- यह किसानों की आय बढ़ाने का भी लक्ष्य रखता है, ताकि वे अतिरिक्त सौर ऊर्जा को ग्रिड को बेचकर लाभ कमा सकें।
मुख्य विशेषताएँ:
- बिना पूँजी निवेश वाले किसान सौर परियोजनाएँ स्थापित करने के लिए निजी डेवलपर्स के साथ साझेदारी कर सकते हैं।
- घटक-A के अंतर्गत, किसान 2 मेगावाट तक के ग्रिड-कनेक्टेड सौर संयंत्र स्थापित कर सकते हैं।
- घटक-C के अंतर्गत, यह योजना 5 मेगावाट तक के सौर प्रणालियों का समर्थन करती है।
- घटक-C के अंतर्गत केंद्र सरकार प्रति मेगावाट ₹1.05 करोड़ की वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जो परियोजना लागत का 30% है।
राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English
लेसर फ्लोरिकन की आबादी में गिरावट
चर्चा में क्यों?
लेसर फ्लोरिकन (साइफियोटाइड्स इंडिकस), जिसे सामान्यतः "ग्रास पिकॉक" के रूप में जाना जाता है, भारत में जनसंख्या में भारी गिरावट का अनुभव कर रहा है।
मुख्य बिंदु
- परिचय:
- भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, वैश्विक जनसंख्या अब केवल 150-200 व्यक्ति अनुमानित है, जिसमें वर्ष 2025 के प्रजनन काल के दौरान गुजरात और राजस्थान में केवल 19 नर देखे गए हैं।
- पिछले 36 वर्षों में जनसंख्या में 80% से अधिक की गिरावट आई है, जो वर्ष 1982 में 4,374 व्यक्तियों से घटकर 2025 में लगभग 150-200 रह गई है।
- वर्ष 2017, 2018 और 2025 में किये गए बार-बार सर्वेक्षण एक निरंतर और चिंताजनक गिरावट का संकेत देते हैं।
- शेष प्रजनन आबादी मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात तक ही सीमित है।
- इनके शीतकालीन प्रवास स्थल महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना हैं, ये पक्षी मुख्यतः रात में प्रवास करते हैं, प्रायः प्रतिदिन 20-27 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं।
- 12 पक्षियों पर किये गए टेलीमेट्री अध्ययनों से पता चला है कि ये पक्षी अजमेर (राजस्थान) से दक्कन क्षेत्रों की ओर 1,500 किलोमीटर तक प्रवास करते हैं।
- संरक्षण प्रयास:
- अजमेर (राजस्थान) में एक बंदी प्रजनन केंद्र स्थापित किया गया है, जहाँ वर्तमान में 10 पक्षी (6 मादा और 4 नर) हैं, जिनमें ऊष्मायन और चूजा पालन की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
- घोंसले के शिकार स्थलों के पास 3,000 से अधिक छात्रों और 2,500 स्थानीय ग्रामीणों को शिक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये गए हैं।
- WII ने दीर्घकालिक संरक्षण रणनीतियों को विकसित करने के लिये पशुपालन और प्रजनन प्रोटोकॉल पर अध्ययन शुरू किया है।
लेसर फ्लोरिकन (साइफियोटाइड्स इंडिकस)
- यह भारत में पाई जाने वाली तीन स्थानिक बस्टर्ड प्रजातियों में से एक है, अन्य दो प्रजातियाँ बंगाल फ्लोरिकन (गंभीर रूप से लुप्तप्राय) और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गंभीर रूप से लुप्तप्राय) हैं।
- यह बस्टर्ड परिवार का सबसे छोटा सदस्य है और अपनी शानदार छलांग लगाने वाली प्रजनन क्षमता के लिये प्रसिद्ध है।
- स्थानीय भाषा में, इस पक्षी को 'तनमोर' या 'खरमोर' के नाम से जाना जाता है, जो मोर के मूल शब्द 'मोर' से बना है।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN स्थिति: गंभीर रूप से लुप्तप्राय
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम,1972: अनुसूची I
- CITES: परिशिष्ट II
राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English
INS सह्याद्रि ने JAIMEX-25 में भाग लिया
चर्चा में क्यों?
भारतीय नौसेना पोत (INS) सह्याद्रि, एक स्वदेश निर्मित शिवालिक श्रेणी निर्देशित मिसाइल स्टील्थ फ्रिगेट, ने 16 से 18 अक्तूबर 2025 तक JAIMEX-25 (जापान-भारत समुद्री अभ्यास) के सी फेज में भाग लिया, जिसके बाद 21 अक्तूबर 2025 को जापान के योकोसुका में बंदरगाह फेस में भाग लिया।
प्रमुख बिंदु
- उद्देश्य:
- JAIMEX-25, भारत और जापान के बीच वर्ष 2014 में स्थापित 'विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी' को सुदृढ़ करता है, जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देना है, साथ ही एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी समुद्री क्षेत्र के उनके साझा दृष्टिकोण को भी प्रतिबिंबित करना है।
- चरण:
- समुद्री चरण में INS सह्याद्रि, JMSDF के जहाज़ असाही (Asahi), ओमी (Oumi) और पनडुब्बी जिनरयू (Jinryu) ने उन्नत पनडुब्बी रोधी युद्ध अभ्यास, मिसाइल रक्षा अभ्यास, उड़ान संचालन और अंतर्संचालनीयता बढ़ाने के लिये चल रहे रिप्लिनिशमेंट का आयोजन किया।
- योकोसुका के बंदरगाह चरण में व्यावसायिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर ध्यान केंद्रित किया गया, जैसे कि क्रॉस-डेक चरण, परिचालन योजना, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना और एक संयुक्त योग सत्र, जो कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में INS सह्याद्रि की लंबी दूरी की तैनाती का एक हिस्सा था।
- अन्य अभ्यास: भारत और जापान के बीच अन्य द्विपक्षीय अभ्यासों में मालाबार अभ्यास (नौसेना अभ्यास), 'वीर गार्जियन' (वायु सेना) और धर्मा गार्जियन (थल सेना) शामिल हैं।
- INS सह्याद्रि:
- वर्ष 2012 में कमीशन किया गया INS सह्याद्रि, स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है और देश के 'आत्मनिर्भर भारत' दृष्टिकोण के अनुरूप है।
- इस बहु-भूमिका वाले स्टील्थ फ्रिगेट ने विभिन्न परिचालन तैनाती के साथ-साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यासों में सक्रिय रूप से भाग लिया है।