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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत के कॉर्पोरेट निवेश में मंदी

  • 15 Jul 2025
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP), सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF), पूंजीगत व्यय, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश

मेन्स के लिये:

भारत में निजी निवेश को प्रभावित करने वाले कारक, भारत का निवेश वातावरण

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों? 

सरकारी समर्थन के बावजूद भारत में कॉरपोरेट निवेश में मंदी बनी हुई है। जून 2025 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) की वृद्धि दर 9 महीने के निचले स्तर 1.2% पर आ गई, जिससे औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट आई है तथा भारत की वृद्धि और रोज़गार की संभावनाओं को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

भारत में कॉर्पोरेट निवेश मंद क्यों है?

  • माँग में कमी: निवेश के फैसले मुख्य रूप से अपेक्षित माँग से प्रेरित होते हैं। कर-सुधारों (2019 में कॉर्पोरेट कर में 30% से 22% की कटौती) के बाद ज़्यादा मुनाफ़े के बावजूद, कम उपभोक्ता माँग ने विस्तार को हतोत्साहित किया है।
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में बताया गया है कि कॉर्पोरेट मुनाफे में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन नियुक्तियों और वेतन वृद्धि कम रही है तथा मशीनरी क्षेत्र में निजी क्षेत्र का सकल स्थायी पूंजी निर्माण (GFCF) चार वर्षों में केवल 35% बढ़ा है। माँग में सुधार के बिना, केवल मुनाफा निवेश के लिये प्रोत्साहन नहीं है।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये ब्याज दरों में कटौती और तरलता में ढील दी, लेकिन कमज़ोर मांग के कारण व्यावसायिक विश्वास प्रभावित हुआ है। मांग के अभाव में कंपनियाँ ऋण लेने से बचती हैं, क्योंकि उन्हें कम लाभ मिलने का डर रहता है।
    • क्षमता का कम उपयोग आगे निवेश को हतोत्साहित करता है, क्योंकि कंपनियाँ मौजूदा परिसंपत्तियों को अधिक कुशलता से संचालित करना पसंद करती हैं।
  • GDP के मुकाबले निम्न निवेश अनुपात: हाल के वर्षों में कॉर्पोरेट निवेश और GDP का अनुपात काफी कम रहा है। वित्त वर्ष 2022-23 में, कॉर्पोरेट निवेश GDP का 12% रहा, जबकि विकास के वर्षों (2004-2008) के दौरान यह अनुपात 16% था। 
    • यह गिरावट दीर्घकालिक विकास संभावनाओं में कम होते विश्वास को दर्शाती है। निवेश का यह स्तर भारत के 8% से अधिक संरचनात्मक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये अपर्याप्त है, जिसके लिये 35% या उससे अधिक निवेश दर की आवश्यकता होगी।
  • सरकारी पूंजीगत व्यय का कम गुणक प्रभाव: सरकार ने विकास को बढ़ावा देने और सुधार को समर्थन देने हेतु बुनियादी ढाँचे पर खर्च ( वित्त वर्ष 2025-26 में 11.21 लाख करोड़ रुपए (जीडीपी का 3.1%) निर्धारित) को बढ़ा दिया है।
    • उच्च सार्वजनिक खर्च के बावजूद, निजी निवेश सुस्त बना हुआ है, जिसका कारण है— परियोजनाओं की लंबी समय-सीमा, उच्च आयात निर्भरता और मशीन-प्रधान अवसंरचना से होने वाली कम रोज़गार सृजन
  •  ऋण वितरण में देरी: विशेषकर बड़े अवसंरचना परियोजनाओं के लिए, ऋण वितरण में दो से तीन साल तक का समय लग सकता है।
    • उदाहरण के लिये, नवंबर 2023 में अवसंरचना क्षेत्र को दिया गया ऋण केवल 2.1% की दर से बढ़ा, जबकि नवंबर 2022 में यह वृद्धि 11.1% थी।
  • RBI के आँकड़ों के अनुसार, नवंबर 2023 में सड़क क्षेत्र को दिये गए ऋण में केवल 6.4% की वृद्धि हुई, जबकि पिछले वर्ष यह 14% थी।
    • इसके विपरीत, वैयक्तिक ऋण (personal loans) में 2023 में 30.1% की वृद्धि हुई, जो घरेलू मांग को दर्शाता है, लेकिन औद्योगिक निवेश की सुस्ती भी स्पष्ट करता है।
  • वैश्विक व्यापार की प्रतिकूल परिस्थितियाँ: अमेरिका जैसे प्रमुख बाज़ारों में टैरिफ व्यवस्थाओं सहित वैश्विक स्तर पर संरक्षणवादी नीतियों ने निर्यात-आधारित निवेश अवसरों को कमज़ोर कर दिया है।

निवेश और लाभ से संबंधित आर्थिक सिद्धांत

  • एक शुद्ध पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (जहाँ राज्य का कोई हस्तक्षेप न हो और बाहरी बाजारों तक कोई पहुँच न हो) में, निवेश और लाभ के बीच गहरा संबंध होता है, लेकिन इसमें कौन किसका कारण बनता है, इस पर विद्वानों के बीच मतभेद है।
  • अर्थशास्त्रियों जैसे टुगान बारानोव्स्की, लक्समबर्ग और कालेकी के अनुसार, निवेश और लाभ के बीच संबंध को समझना निवेश चक्र (Investment Cycle) को समझने के लिये आवश्यक है।
  • टुगान बारानोव्स्की का दृष्टिकोण: उन्होंने कहा कि निवेश स्वयं अपनी मांग उत्पन्न कर सकता है। यदि उपभोग वस्तुओं और पूंजीगत वस्तुओं में निवेश संतुलित रहता है, तो अर्थव्यवस्था मजबूत उपभोक्ता मांग के बिना भी बढ़ सकती है। अर्थात् निवेश ही वृद्धि का आधार बन सकता है।
  • लक्समबर्ग का दृष्टिकोण: उन्होंने माना कि निवेश से लाभ होता है, लेकिन यह निवेश की गारंटी नहीं देता। पूंजीवाद में निर्णय सामूहिक नहीं बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर लिये जाते हैं।
    • मंदी के दौर में, जब मौजूदा कंपनी ही पूरी क्षमता से नहीं चल रही हों, तो नई क्षमता जोड़ना तर्कसंगत नहीं होता। 
    • सामूहिक निवेश अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित कर सकता है, लेकिन पूंजीवाद में इस प्रकार की सामंजस्यपूर्ण योजना का अभाव होता है।
  • कलेकी (Kalecki): उन्होंने तर्क दिया कि निवेश ही लाभ को उत्पन्न करता है, न कि इसके विपरीत। लेकिन कंपनियाँ तभी निवेश करती हैं जब उन्हें मांग की अपेक्षा होती है। यदि कोई बाह्य प्रोत्साहन (External stimulus) नहीं हो, तो अर्थव्यवस्था कम मांग और कम निवेश के चक्र में फँस जाती है।

निवेश बढ़ाने के लिये भारत के क्या उपाय हैं? 

कॉरपोरेट निवेश को स्थायी रूप से पुनर्जीवित करने के लिये नीति दृष्टिकोण क्या होना चाहिये?

  • समग्र मांग को बढ़ावा देना: सामाजिक क्षेत्र पर व्यय बढ़ाना, ग्रामीण रोज़गार योजनाएँ (जैसे MGNREGA) और लक्षित नकद हस्तांतरण उपभोग को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
    • आवास और MSME जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश से रोज़गार सृजन हो सकता है और घरेलू आय में वृद्धि हो सकती है, इससे सभी क्षेत्रों में मांग पर प्रभाव पड़ेगा।
  • बेहतर प्रतिस्पर्द्धा के लिये सुधार कारक बाज़ार: भूमि की उच्च कीमतें (शहरी क्षेत्रों में मूल्य-से-आय अनुपात (PTI) लगभग 11 है जो सामर्थ्य मानक 5 से काफी अधिक है) उत्पादन लागत बढ़ाती हैं और प्रतिस्पर्द्धा को हानि पहुँचाती हैं।
    • पारदर्शी भूमि आपूर्ति और बेहतर भूमि उपयोग नीतियाँ लागत कम कर सकती हैं, सामर्थ्य बढ़ा सकती हैं तथा निवेश आकर्षित कर सकती हैं।
  • निजी निवेश का जोखिम कम करना: उत्पादन और स्वच्छ ऊर्जा जैसे ग्रीनफील्ड निवेशों के लिये दीर्घकालिक व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) और जोखिम-साझाकरण मॉडल तैयार किये जाएँ।
  • हरित और डिजिटल परिवर्तन का समर्थन करना: जो क्षेत्र सतत् ऊर्जा, सर्कुलर इकोनॉमी मॉडल और नेट-ज़ीरो लक्ष्यों को अपना रहे हैं, उनके लिये ग्रीन कैपेक्स प्रोत्साहन तैयार किये जाएँ।
    • उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं को केवल उत्पादन से नहीं, बल्कि रोज़गार सृजन और नवाचार से भी जोड़ा जाए, ताकि समावेशी विकास को बढ़ावा मिल सके।
  • मिशन-आधारित निवेश रणनीति तैयार करना: ऊर्जा परिवर्तन, रक्षा क्षेत्र में स्वदेशीकरण और डिजिटल बुनियादी ढाँचे जैसे राष्ट्रीय अभियानों को औद्योगिक नीति से जोड़ा जाए, ताकि दीर्घकालिक निवेश को आकर्षित किया जा सके।
    • ऐसे विशेषीकृत एवं नवोन्मेषी उत्पादों (जैसे अनमैन्ड एरियल व्हीकल, इलेक्ट्रिक वाहन घटक, रक्षा-ग्रेड अर्धचालक) के विकास तथा निर्यात को प्रोत्साहित किया जाए, जो वैश्विक मांग को पूरा करते हों और भारत को उभरते क्षेत्रों में प्रतिस्पर्द्धी अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करने में सहायता करें।
  • कॉरपोरेट विश्वास को सुदृढ़ करना: मुद्रास्फीति को RBI की सहज सीमा के भीतर बनाए रखना, ताकि ब्याज दरों में अस्थिरता कम हो। राजकोषीय अनुशासन का पालन करें और बजट से बाहर की उधारियों में अधिक पारदर्शिता रखें, ताकि विश्वसनीयता स्थापित हो सके।
    • बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की स्वीकृति प्रक्रिया को तीव्र करें, ताकि विलंब को कम किया जा सके और दीर्घकालिक निवेश को आकर्षित किया जा सके।

निष्कर्ष

सतत् कॉरपोरेट निवेश पुनरुद्धार केवल कर कटौतियों और मौद्रिक सहजता के माध्यम से संभव नहीं है। इसके लिये मांग सृजन, संरचनात्मक सुधार, वित्तीय सुदृढ़ीकरण और संस्थागत विश्वास का सम्मिलित व समग्र रणनीतिक दृष्टिकोण आवश्यक है। भारत की जनसांख्यिकीय बढ़त और भूराजनैतिक पुनर्स्थापन एक अनूठा अवसर प्रदान करते हैं, जिससे निवेश ढाँचे को एक अधिक अनुकूल तथा समावेशी अर्थव्यवस्था की दिशा में पुनःसंयोजित किया जा सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: महत्त्वपूर्ण कर सुधारों और सार्वजनिक पूँजीगत व्यय के बावजूद भारत में निजी कॉर्पोरेट निवेश सुस्त क्यों बना हुआ है? इस प्रवृत्ति को बदलने के लिये नीतिगत उपाय सुझाएँ।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में कर में कमी निम्नलिखित में से किसको दर्शाती है? (2015)

  1. धीमी आर्थिक विकास दर
  2.  राष्ट्रीय आय का कम न्यायसंगत वितरण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर का चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. "सुधार के बाद की अवधि में औद्योगिक विकास दर सकल-घरेलू-उत्पाद (जीडीपी) की समग्र वृद्धि से पीछे रह गई है" कारण बताइये। औद्योगिक नीति में हालिया बदलाव औद्योगिक विकास दर को बढ़ाने में कहाँ तक ​​सक्षम हैं? (2017)

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