मध्य प्रदेश Switch to English
मध्य प्रदेश में गधों की संख्या में भारी गिरावट
चर्चा में क्यों?
21वीं पशुधन गणना के अनुसार, मध्य प्रदेश में कुल 3.75 करोड़ पशु हैं, लेकिन गधों की संख्या बहुत कम है और पिछले कुछ वर्षों में इसमें लगातार गिरावट दर्ज की गई है।
मुख्य बिंदु:
- परिचय: गधे, जो कभी मध्य प्रदेश में ग्रामीण परिवहन और व्यापार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थे, अब कई ज़िलों में स्थानीय स्तर पर लगभग लुप्तप्राय हो गए हैं, जिससे जैवविविधता के नुकसान और ग्रामीण समुदायों की आजीविका को लेकर गंभीर चिंता उत्पन्न हो गई है।
- आबादी में कमी: राज्य में गधों की संख्या में तेज़ गिरावट आई है, जो वर्ष 1997 में 49,289 थी और 2025 तक घटकर केवल 3,052 रह गई, जो तीन दशकों से भी कम समय में 94% की कमी को दर्शाती है।
- सबसे ज़्यादा गधे वाले ज़िलों में नर्मदापुरम (332), छतरपुर (232), मुरैना (228) और रीवा (226) शामिल हैं।
- विदिशा, जहाँ कभी 6,400 से ज़्यादा गधे थे, अब केवल 171 बचे हैं, वही भोपाल में सिर्फ 56 जनसँख्या है।
- डिंडोरी, निवाड़ी, सिवनी, हरदा और उमरिया जैसे ज़िलों में गधे एक भी नहीं हैं, जो स्थानीय स्तर पर उनके विलुप्त होने का संकेत है।
- गिरावट के कारण:
- गधों की खाल का अवैध व्यापार: चीन में “एजियाओ” उद्योग की माँग के कारण, जहाँ गधों की खाल को उबालकर जिलेटिन निकाला जाता है, जिसका उपयोग पारंपरिक टॉनिक, कामोर्धक और एंटी-एजिंग उत्पादों में किया जाता है।
- परंपरागत उपयोग में गिरावट: परिवहन और कृषि में यंत्रीकरण ने ग्रामीण क्षेत्रों में गधों की आर्थिक उपयोगिता को कम कर दिया है।
मध्य प्रदेश में पशुधन जनसंख्या
प्रजाति |
जनसंख्या |
गाय |
1,57,00,000 |
भैंस |
1,02,00,000 |
बकरियां |
1,09,00,000 |
भेड़ |
5,58,324 |
घोड़े |
9,971 |
खच्चर |
972 |
ऊँट |
2,896 |
सूअर |
89,177 |
गधे |
3,052 |
पशुधन गणना
- देशभर में प्रत्येक पाँच वर्षों पर पशु गणना आयोजित की जाती है, जो वर्ष 1919 से लगातार जारी है।
- वर्ष 2019 में आयोजित 20वीं गणना के अनुसार, भारत में कुल पशु संख्या 535.78 मिलियन है।
- कुल बोवाइन संख्या (गाय, भैंस, मिथुन और याक) 302.79 मिलियन थी।
- पशुपालन के विकास के उद्देश्य से 2014-15 में राष्ट्रीय पशुधन मिशन (NLM) की शुरुआत की गई, जिसमें तीन उप-मिशन शामिल हैं:
- पशुधन और मुर्गी पालन के नस्ल विकास
- चारा और आहार विकास
- विस्तार और नवाचार कार्यक्रम
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वार्षिक ‘हिंगोट युद्ध’ महोत्सव
चर्चा में क्यों?
वार्षिक ‘हिंगोट युद्ध’ (आग का गोला युद्ध) महोत्सव 21 अक्तूबर, 2025 को मध्य प्रदेश के इंदौर से लगभग 59 किलोमीटर दूर देपालपुर तहसील के अंतर्गत गौतमपुरा गाँव में शुरू हुआ।
मुख्य बिंदु
- परिचय: यह उत्सव 17 वीं -18 वीं शताब्दी के मुगल-मराठा संघर्षों की याद में प्रत्येक वर्ष 'धोक पड़वा' ( दिवाली के एक दिन बाद) पर आयोजित किया जाता है।
- सांस्कृतिक महत्त्व: स्थानीय लोककथाओं के अनुसार, हिंगोट युद्ध की उत्पत्ति गुर्जर सैनिकों की योद्धा परंपराओं से हुई, जो बाद में वास्तविक युद्ध समाप्त होने के बाद एक प्रतीकात्मक और उत्सवपूर्ण खेल के रूप में विकसित हो गया।
- यह क्षेत्र, जिसमें मुख्यतः गुर्जर समुदाय निवास करता है, अपनी सैन्य परंपराओं, बहादुरी और घुड़सवारी के लिये जाना जाता है।
- त्यौहार अनुष्ठान:
- यह कार्यक्रम सूर्यास्त के बाद शुरू होता है।
- ग्रामीण लोग प्रार्थना करने के लिये मंदिर में एकत्र होते हैं, जिसके बाद अग्नि-गोलों की लड़ाई शुरू होती है।
- नदी के विपरीत किनारों पर स्थित गौतमपुरा और रुंजी के ग्रामीण इस अनुष्ठानिक युद्ध में भाग लेते हैं।
- गौतमपुरा निवासी तुर्रा सेना का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- रुंजी गाँववासी कलंगी सेना का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- हिंगोट: "हिंगोट" एक स्थानीय फल है जिसे तोड़कर, सुखाकर, बारूद से भर दिया जाता है, फिर एक लकड़ी की छड़ी से बांधकर जलाया जाता है और विरोधियों पर फेंका जाता है, जो रॉकेट की तरह हवा में उड़ता है।
राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English
लेसर फ्लोरिकन की आबादी में गिरावट
चर्चा में क्यों?
लेसर फ्लोरिकन (साइफियोटाइड्स इंडिकस), जिसे सामान्यतः "ग्रास पिकॉक" के रूप में जाना जाता है, भारत में जनसंख्या में भारी गिरावट का अनुभव कर रहा है।
मुख्य बिंदु
- परिचय:
- भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, वैश्विक जनसंख्या अब केवल 150-200 व्यक्ति अनुमानित है, जिसमें वर्ष 2025 के प्रजनन काल के दौरान गुजरात और राजस्थान में केवल 19 नर देखे गए हैं।
- पिछले 36 वर्षों में जनसंख्या में 80% से अधिक की गिरावट आई है, जो वर्ष 1982 में 4,374 व्यक्तियों से घटकर 2025 में लगभग 150-200 रह गई है।
- वर्ष 2017, 2018 और 2025 में किये गए बार-बार सर्वेक्षण एक निरंतर और चिंताजनक गिरावट का संकेत देते हैं।
- शेष प्रजनन आबादी मुख्य रूप से राजस्थान और गुजरात तक ही सीमित है।
- इनके शीतकालीन प्रवास स्थल महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना हैं, ये पक्षी मुख्यतः रात में प्रवास करते हैं, प्रायः प्रतिदिन 20-27 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं।
- 12 पक्षियों पर किये गए टेलीमेट्री अध्ययनों से पता चला है कि ये पक्षी अजमेर (राजस्थान) से दक्कन क्षेत्रों की ओर 1,500 किलोमीटर तक प्रवास करते हैं।
- संरक्षण प्रयास:
- अजमेर (राजस्थान) में एक बंदी प्रजनन केंद्र स्थापित किया गया है, जहाँ वर्तमान में 10 पक्षी (6 मादा और 4 नर) हैं, जिनमें ऊष्मायन और चूजा पालन की सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
- घोंसले के शिकार स्थलों के पास 3,000 से अधिक छात्रों और 2,500 स्थानीय ग्रामीणों को शिक्षित करने के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किये गए हैं।
- WII ने दीर्घकालिक संरक्षण रणनीतियों को विकसित करने के लिये पशुपालन और प्रजनन प्रोटोकॉल पर अध्ययन शुरू किया है।
लेसर फ्लोरिकन (साइफियोटाइड्स इंडिकस)
- यह भारत में पाई जाने वाली तीन स्थानिक बस्टर्ड प्रजातियों में से एक है, अन्य दो प्रजातियाँ बंगाल फ्लोरिकन (गंभीर रूप से लुप्तप्राय) और ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गंभीर रूप से लुप्तप्राय) हैं।
- यह बस्टर्ड परिवार का सबसे छोटा सदस्य है और अपनी शानदार छलांग लगाने वाली प्रजनन क्षमता के लिये प्रसिद्ध है।
- स्थानीय भाषा में, इस पक्षी को 'तनमोर' या 'खरमोर' के नाम से जाना जाता है, जो मोर के मूल शब्द 'मोर' से बना है।
- संरक्षण स्थिति:
- IUCN स्थिति: गंभीर रूप से लुप्तप्राय
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम,1972: अनुसूची I
- CITES: परिशिष्ट II
राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English
INS सह्याद्रि ने JAIMEX-25 में भाग लिया
चर्चा में क्यों?
भारतीय नौसेना पोत (INS) सह्याद्रि, एक स्वदेश निर्मित शिवालिक श्रेणी निर्देशित मिसाइल स्टील्थ फ्रिगेट, ने 16 से 18 अक्तूबर 2025 तक JAIMEX-25 (जापान-भारत समुद्री अभ्यास) के सी फेज में भाग लिया, जिसके बाद 21 अक्तूबर 2025 को जापान के योकोसुका में बंदरगाह फेस में भाग लिया।
प्रमुख बिंदु
- उद्देश्य:
- JAIMEX-25, भारत और जापान के बीच वर्ष 2014 में स्थापित 'विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी' को सुदृढ़ करता है, जिसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देना है, साथ ही एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी समुद्री क्षेत्र के उनके साझा दृष्टिकोण को भी प्रतिबिंबित करना है।
- चरण:
- समुद्री चरण में INS सह्याद्रि, JMSDF के जहाज़ असाही (Asahi), ओमी (Oumi) और पनडुब्बी जिनरयू (Jinryu) ने उन्नत पनडुब्बी रोधी युद्ध अभ्यास, मिसाइल रक्षा अभ्यास, उड़ान संचालन और अंतर्संचालनीयता बढ़ाने के लिये चल रहे रिप्लिनिशमेंट का आयोजन किया।
- योकोसुका के बंदरगाह चरण में व्यावसायिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर ध्यान केंद्रित किया गया, जैसे कि क्रॉस-डेक चरण, परिचालन योजना, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करना और एक संयुक्त योग सत्र, जो कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में INS सह्याद्रि की लंबी दूरी की तैनाती का एक हिस्सा था।
- अन्य अभ्यास: भारत और जापान के बीच अन्य द्विपक्षीय अभ्यासों में मालाबार अभ्यास (नौसेना अभ्यास), 'वीर गार्जियन' (वायु सेना) और धर्मा गार्जियन (थल सेना) शामिल हैं।
- INS सह्याद्रि:
- वर्ष 2012 में कमीशन किया गया INS सह्याद्रि, स्वदेशी रक्षा प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है और देश के 'आत्मनिर्भर भारत' दृष्टिकोण के अनुरूप है।
- इस बहु-भूमिका वाले स्टील्थ फ्रिगेट ने विभिन्न परिचालन तैनाती के साथ-साथ द्विपक्षीय और बहुपक्षीय नौसैनिक अभ्यासों में सक्रिय रूप से भाग लिया है।