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डेली न्यूज़

कृषि

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलें

  • 25 Oct 2021
  • 6 min read

प्रिलिम्स के लिये:

GM फसल

मेन्स के लिये:

GM फसलों से संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों? 

कोएलिशन फॉर GM फ्री इंडिया के अनुसार, जून 2021 में भारत द्वारा यूरोपीय संघ के देशों को निर्यात की जाने वाली एक खेप में 500 टन आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) चावल का पता चलने से "भारत और उसके कृषि बाज़ार की प्रतिष्ठा को नुकसान" हुआ है।

प्रमुख बिंदु 

  • GM फसलें:
    • GM खाद्य पदार्थ उन पौधों से प्राप्त होते हैं जिनके जीन कृत्रिम रूप से संशोधित किये जाते हैं, आमतौर पर इसमें किसी विशिष्ट प्रजाति के आनुवंशिक गुणों को सामान्य प्रजाति की फसलों की उपज में वृद्धि, खर-पतवार के प्रति सहिष्णुता, रोग या सूखे के प्रतिरोध और इसमें पोषक सुधार के लिये संकरण विधि को अपनाया जाता है। 
    • संभवतः GM चावल की सबसे प्रसिद्ध किस्म गोल्डन राइस है।
      • गोल्डन राइस में डैफोडील्स और मक्का के पौधे के जीन सम्मिलित किये जाते हैं और यह विटामिन A से समृद्ध होता है।
    • भारत ने केवल एक GM फसल, बीटी कपास की व्यावसायिक खेती को मंज़ूरी दी है।
    • देश में किसी भी GM खाद्य फसल को व्यावसायिक खेती के लिये मंज़ूरी नहीं दी गई है।
      • हालाँकि कम-से-कम 20 GM फसलों के लिये सीमित क्षेत्र परीक्षण की अनुमति दी गई है।
    • इसमें GM चावल की किस्में शामिल हैं जो कीड़ों और बीमारियों के प्रतिरोध में सुधार करती हैं, साथ ही संकर बीज उत्पादन तथा पोषण संबंधी वृद्धि भी शामिल है।
    • GM खाद्य पदार्थों का नुकसान यह है कि वे अपने परिवर्तित डीएनए के कारण एलर्जी का कारण बन सकते हैं और एंटीबायोटिक प्रतिरोध बढ़ा सकते हैं।

GM-Crops

  • GM चावल का निर्यात (भारत के निहितार्थ):
    • भारत दुनिया का शीर्ष चावल निर्यातक है, इसने वर्ष 2020 में 18 मिलियन टन अनाज (जैविक चावल) बेचकर 65,000 करोड़ रुपए कमाए, जिसमें से लगभग एक-चौथाई प्रीमियम बासमती है।
    • बासमती चावल खरीदने वाले ज़्यादातर पश्चिम एशियाई देश, अमेरिका और ब्रिटेन हैं, जबकि गैर-बासमती का अधिकांश हिस्सा अफ्रीकी देशों एवं पड़ोसी देशों नेपाल तथा बांग्लादेश द्वारा आयात किया जाता है।
    • यह भारत के लिये मुश्किल भरा हो सकता है जैसा कि वर्ष 2006 में अमेरिका में हुआ था, जब निर्यात के लिये तैयार शिपमेंट में GM चावल की कुछ मात्रा पाई गई थी।
      • इसके परिणामस्वरूप जापान, रूस और यूरोपीय संघ जैसे व्यापारिक साझेदारों ने अमेरिका से चावल के आयात को निलंबित कर दिया, जिससे किसानों को भारी नुकसान हुआ।
    • उस समय चावल निर्यात लॉबी के दबाव में भारत ने बासमती बेल्ट में GM चावल के परीक्षण पर प्रतिबंध लगाने के लिये नीतियों का मसौदा तैयार किया। हालाँकि देश के अन्य हिस्सों के किसानों, विशेष रूप से जो नए लेकिन बढ़ते जैविक चावल निर्यात बाज़ार का लक्ष्य रखते हैं, को चिंता है कि उनके उत्पाद दूषित हो सकते हैं।
      • अनधिकृत HtBt कपास और बीटी बैंगन पहले से ही व्यावसायिक रूप से उगाए जा रहे हैं, सैकड़ों उत्पादकों ने सरकारी प्रतिबंध की खुलेआम अवहेलना की है।

आगे की राह 

  • ऐसा लगता है कि भारत के शीर्ष चावल वैज्ञानिक फिलहाल पारंपरिक GM चावल अनुसंधान से दूर हो गए हैं।
    • हाल ही में गैर-GM शाकनाशी सहिष्णु चावल की पहली किस्में लॉन्च की गईं, जिसे सीधे बोया जा सकता है, इस प्रकार पानी और श्रम लागत (पूसा बासमती 1979 और पूसा बासमती 1985) की बचत होती है।
    • IARI (भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) नई जीन संपादन तकनीक {साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज (एसडीएन) 1 और 2} के माध्यम से सूखा-सहिष्णु, लवणता-सहिष्णु चावल के उपभेदों को बनाने के लिये भी काम कर रहा है, जिसे अभी तक नियामक अनुमोदन प्राप्त नहीं हुआ है, जो किसी अन्य प्रजाति के जीन की प्रवृष्टि के बिना चावल के पौधे के अपने जीन को परिवर्तित करता है।
  • इस तरह की नई प्रगति के सामने घरेलू और निर्यात उपभोक्ताओं के लिये नियामक व्यवस्था को मज़बूत करने की ज़रूरत है।
  • प्रौद्योगिकी अनुमोदन को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये और विज्ञान आधारित निर्णयों को लागू किया जाना चाहिये।
  • सुरक्षा प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने के लिये कठोर निगरानी की आवश्यकता है और अवैध GM फसलों के प्रसार को रोकने के लिये प्रवर्तन को गंभीरता से लिया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू

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