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कृषि

बासमती चावल को GI टैग देने की मांग

  • 18 Jul 2020
  • 12 min read

प्रीलिम्स के लिये:

 GI टैग, अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ, APEDA, WTO, IPR से संबंधित मुद्दे 

मेन्स के लिये

भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) या ‘जीआई टैग’ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में  मध्य प्रदेश  सरकार द्वारा केंद्र सरकार से राज्य के 13 ज़िलों में उत्पादित बासमती चावल के लिये भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) या ‘जीआई टैग’ (GI Tag) प्राप्त करने के बढ़ते दबाव के बाद ‘अखिल भारतीय चावल निर्यातक संघ’ (All India Rice Exporters’ Association- AIREA) ने केंद्र सरकार से बासमती चावल की प्रतिष्ठा को संरक्षित और सुरक्षित करने की मांग की है।

प्रमुख बिंदु:  

  • भारत के अतिरिक्त विश्व के किसी भी अन्य देश (पाकिस्तान में 18 ज़िलों को छोड़कर) में बासमती चावल का उत्पादन नहीं किया जाता है।   
  • AIREA के अनुसार,  यदि  मध्य प्रदेश  को बासमती चावल की  ‘जीआई सूची’ (GI List) में शामिल किया जाता है, तो यह न केवल भारतीय बासमती की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाएगा, बल्कि राष्ट्रीय हित को भी प्रभावित करेगा।

क्या है ‘जीआई टैग’ (GI Tag)?     

  • ‘कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण’ (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority- APEDA) के अनुसार, जीआई टैग को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता  है।
  • जीआई टैग ऐसे कृषि, प्राकृतिक या एक निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है, जो एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होता है और जिसके कारण इसमें अद्वितीय विशेषताओं और गुणों का समावेश होता है।  
  • भौगोलिक संकेत बौद्धिक संपदा अधिकारों का हिस्सा हैं, जो ‘औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिये पेरिस अभिसमय’ (Paris Convention for the Protection of Industrial Property) का तहत आते हैं।
  • भारत में, भौगोलिक संकेतक के पंजीकरण को ‘माल के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999’ ('Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act,1999') द्वारा विनियमित किया जाता है।
    • यह अधिनियम 13 सितंबर, 2003 को प्रभाव में आया था।
    • इसका विनियमन भौगोलिक पंजीयक रजिस्ट्रार (Registrar of Geographical Indications) द्वारा किया जाता है। 
    • भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री का मुख्यालय चेन्नई (तमिलनाडु) में स्थित है।
    • एक भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष की अवधि के लिये वैध होता है। 

बासमती चावल को ‘जीआई टैग’:

  • मई 2010 में APEDA द्वारा हिमालय की तलहटी से नीचे सिंधु-गंगा के मैदान (Indo-Gangetic Plains-IGP) में स्थित क्षेत्र में उत्पादित बासमती चावल के लिये यह प्रमाण पत्र प्राप्त किया था।
    • इसमें 7 राज्यों [हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश (पश्चिमी यूपी के 26 जिले) और दिल्ली]  के क्षेत्र शामिल हैं। 
  • APEDA के अनुसार,  लंबे अनाज और सुगंधित चावल के रूप में सिंधु-गंगा क्षेत्र में बासमती चावल की उत्पत्ति और इसकी प्रतिष्ठा का जिक्र लोक कथाओं, परंपराओं के साथ वैज्ञानिक, पाक साहित्य (Culinary literature), राजनीतिक और ऐतिहासिक अभिलेखों में पाया जाता है।
  • मध्य प्रदेश राज्य मध्य भारत पठार क्षेत्र में आता है और इस राज्य में बासमती चावल की प्रजातियों की खेती की शुरुआत इसी इस सदी के पहले दशक के मध्य के आसपास ही  हुई थी।
  •  मध्य प्रदेश का दवा है कि राज्य में उत्पादित बासमती चावल में IGP क्षेत्र के बासमती चावल के जैसी ही विशेषताएँ और गुण हैं।
  • साथ ही राज्य के अनुसार, राज्य के 13 ज़िलों में लगभग 80 हज़ार किसान बासमती चावल की खेती करते हैं, जिससे राज्य से प्रतिवर्ष लगभग 3000 करोड़ रुपए के बासमती चावल का निर्यात किया जाता है।

 मध्य प्रदेश  को बासमती चावल की ‘जीआई सूची' में जोड़ने में बाधाएँ:

  • AIREA के अनुसार, विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization- WTO) के ‘बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं’ (Trade Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) या ट्रिप्स समझौते के तहत जीआई टैग अर्जित करने के लिये किसी उत्पाद की केवल भौतिक विशेषताएँ (Physical attributes) पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि भौगोलिक क्षेत्र (Geographic Region) से जुड़ी प्रतिष्ठा आवश्यक और अनिवार्य है।
  • ‘माल भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999’  के अनुसार,  किसी उत्पाद की जीआई मान्यता के लिये उसका भौगोलिक प्रतिष्ठा से जुड़ा होना बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं।      
  • वर्तमान में बासमती चावल के संदर्भ में देश के मात्र 7 राज्यों को ही यह प्रतिष्ठा प्राप्त है।   
  • यद्यपि मध्य प्रदेश उत्पादित चावल की प्रजाति में सभी आवश्यक (या पारंपरिक रूप से बासमती चावल उगाए जाने के लिये प्रचलित क्षेत्रों से बेहतर) विशेषताएँ मौजूद हो सकते हैं, परंतु इसे फिर भी बासमती के समान पात्रता नहीं दी जा सकती। 

अन्य प्रयास:

  • मध्य प्रदेश द्वारा केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के अतिरिक्त मद्रास उच्च न्यायालय में एक अपील दायर दी गई थी,  जिसे फरवरी, 2020 में रद्द कर दिया गया था।
  • इससे पहले वर्ष 2006 में ‘बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड’ (Intellectual Property Appellate Board- IPBA) ने APEDA के पक्ष में फैसला सुनाया था, जो मध्य प्रदेश को जीआई टैग दिये जाने जा समर्थन नहीं करता  है।            
  • इन निर्णयों के बाद भी मध्य प्रदेश द्वारा अलग-अलग माध्यमों और मंचों से से यह माँग लगातार उठाई जाती रही है।
  • यहाँ तक कि मध्य प्रदेश के कुछ व्यापारियों ने अपने राज्य में उत्पादित चावल को बेचने के लिये पैकेजिंग पर IGP की तस्वीरों का प्रयोग करते हैं, यद्यपि मध्य प्रदेश IGP क्षेत्र से काफी बाहर है।

 मध्य प्रदेश को जीआई सूची में शामिल करने के प्रभाव:

  • निर्यातकों के अनुसार, मध्य प्रदेश को इस सूची में शामिल करने के परिणाम बहुत ही क्षतिकारक हो सकते हैं।
  • भारत के लिये अब तक ‘बासमती’ नाम को अन्य कई देशों (जो बासमती के अपने संस्करणों के साथ सामने आते रहे हैं) के अतिक्रमण से बचाए रखने की लड़ाई बहुत ही कठिन रही है।
  • केवल जीआई टैग के कारण ही बासमती चावल को बचाए रखने में सफलता प्राप्त हो सकी है क्योंकि यह क्योंकि यह भारत के IGP क्षेत्र और पाकिस्तान के पंजाब के 18 ज़िलों में पुराने समय से उगाया जाता रहा है।  
  • इस निर्विवाद तथ्य के बल पर ही भारत दुनिया भर में इससे जुड़े विवादों को जीतने में सफल हुआ है।
  • यदि मध्य प्रदेश को शामिल करने की अनुमति दी जाती है, तो यह 1995 से भारतीय बासमती को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिये APEDA के प्रयासों को निरर्थक बना देगा।
  • बासमती चावल की पहचान को बचाए रखने के लिये APEDA द्वारा वर्ष 1995 से लेकर आजतक लगभग 50 देशों के खिलाफ 1,000 से अधिक कानूनी कार्रवाइयाँ की गई हैं। 
  • APEDA के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, यदि मध्य प्रदेश को इस सूची में शामिल किया जाता है तो पाकिस्तान भी तुरंत पूरे देश में बासमती की खेती प्रारंभ कर देगा और इससे चीन को भी लाभ होगा।
  • साथ ही वे सभी 50 से अधिक देश जिन्हें अपने चावलों को बासमती से मिलते-जुलते नाम रखने पर प्रतिबंधित किया गया है, वे भी इस निर्णय का दुरुपयोग प्रारंभ कर देंगे।

निष्कर्ष:

बासमती चावल देश के 7 राज्यों में लगभग 20 लाख से अधिक किसानों की आय एक महत्त्वपूर्ण स्रोत होने के साथ-साथ इन क्षेत्रों के सांस्कृतिकऔर आर्थिक विकास का हिस्सा रहा है। ऐसे में यदि बासमती चावल की प्रतिष्ठा को क्षति होती है तो इन किसानों के परिवारों के लिये एक बड़ी चुनौती बन सकती है। 

आगे की राह:

  • जीआई टैग प्राप्त बासमती चावल के क्षेत्रफल के विस्तार के समय इसे जुड़े आर्थिक हितों के साथ अन्य पहलुओं को देखना भी बहुत आवश्यक है।
  • जीआई टैग प्राप्त बासमती चावल से जुड़ी चुनौतियों को देखते हुए सरकार द्वारा कृषि विशेषज्ञों, निजी संस्थाओं और अन्य हितधारकों के साथ मिलकर मध्य प्रदेश में उत्पादित चावल पर उचित मूल्य प्रदान कराने के प्रचार-प्रसार से जुड़े प्रयासों को बढ़ावा दिया जा सकता है।  

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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