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विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO)

  • 01 Apr 2019
  • 12 min read

 Last Updated: July 2022 

सबसे पहले WIPO के बारे में सामान्य जानकारी ....

  • WIPO का पूरा नाम World Intellectual Property Organization यानी विश्व बौद्धिक संपदा संगठन है।
  • यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे पुरानी एजेंसियों में से एक है।
  • इसका गठन 1967 में रचनात्मक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और विश्व में बौद्धिक संपदा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।
  • इसके तहत वर्तमान में 26 अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ आती हैं।
  • WIPO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
  • प्रत्येक वर्ष 26 अप्रैल को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस मनाया जाता है।
  • अभी 191 देश इसके सदस्य हैं, जिनमें संयुक्त राष्ट्र के 188 सदस्य देशों के अलावा कुक द्वीपसमूह, होली सी और न्यूए (Niue) शामिल हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इसके सदस्य बन सकते हैं, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं है।
  • फिलिस्तीन को इसमें स्थायी पर्यवेक्षक का दर्जा मिला हुआ है तथा लगभग 250 NGO और अंतर-सरकारी संगठन इसकी बैठकों में बतौर आधिकारिक पर्यवेक्षक शामिल होते हैं।
  • भारत 1975 में WIPO का सदस्य बना था।

बौद्धिक संपदा

  • बौद्धिक संपदा (Intellectual property- IP) संपत्ति की एक श्रेणी है जिसमें मानव बुद्धि की अमूर्त रचनाएँ मुख्य रूप से कॉपीराइट, पेटेंट और ट्रेडमार्क शामिल हैं।
  • इसमें अन्य प्रकार के अधिकार भी शामिल हैं जैसे- व्यापार रहस्य, प्रचार अधिकार, नैतिक अधिकार और अनुचित प्रतिस्पर्द्धा के खिलाफ अधिकार।

WIPO की सदस्यता की स्थिति

  • वर्तमान में WIPO में 193 सदस्य देश शामिल हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश WIPO जैसी विशिष्ट एजेंसियों के सदस्य बनने के हकदार हैं, हालाँकि वे बाध्य नहीं हैं।
  • 190 संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों के साथ-साथ कुक आइलैंड्स, होली सी और नीयू WIPO के सदस्य हैं।
  • फिलिस्तीन को स्थायी पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।
  • इसके अलावा, 281 गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ), 47 अंतर सरकारी संगठन (आईजीओ), 17 संयुक्त राष्ट्र संगठनों की प्रणाली और 10 आईपी संगठनों को WIPO की बैठकों में आधिकारिक पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।
  • 1975 में भारत वर्ष WIPO में शामिल हुआ।

WIPO का इतिहास

  • औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिये पेरिस अभिसमय (1883): विभिन्न देशों में बौद्धिक कार्यों के संरक्षण के लिये पहला कदम, जिसमें ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिज़ाइन आविष्कार के पेटेंट शामिल थे।
  • साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न अभिसमय (1886): इसमें उपन्यास, लघु कथाएँ, नाटक, गाने, ओपेरा, संगीत, ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला और वास्तुशिल्प कृतियाँ शामिल हैं।
  • मैड्रिड समझौता (1891): यहाँ से अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा फाइलिंग सेवा की शुरुआत हुई।
  • BIRPI की स्थापना (1893): बौद्धिक संपदा संरक्षण हेतु पेरिस और बर्न अभिसमय पर अमल करने के लिये बनाए गए दो सचिवालयों को मिलाकर BIRPI (United International Bureaux for the Protection of Intellectual Property) की स्थापना हुई।
  • BIRPI बना WIPO (1970): सदस्य देशों का नेतृत्व करने वाले एक अंतर-सरकारी संगठन के रूप में WIPO की स्थापना की गई।
  • UN में शामिल हुआ WIPO (1974): WIPO ने वर्ष 1974 से संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी के तौर पर काम करना शुरू किया।
  • पेटेंट कोऑपरेशन ट्रीटी सिस्टम की शुरुआत (1978): इस संधि के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट आवेदन दाखिल कर एक साथ कई देशों में आविष्कार के संरक्षण का प्रयास किया जा सकता है।
  • मध्यस्थता केंद्र की स्थापना (1994): यह केंद्र निजी पक्षों के बीच अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों को हल करने में सहायता के लिये वैकल्पिक विवाद समाधान सेवाएँ प्रदान करता है।

WIPO के कार्य

  • हर पल बदलती दुनिया में संतुलित अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा नियमों को बनाने के लिये यह एक नीतिगत मंच का काम करता है।
  • विभिन्न देशों की सीमाओं के पार बौद्धिक संपदा संरक्षण और विवादों को हल करने के लिये वैश्विक सेवाएँ देना भी इसके कार्यों में शामिल है।
  • बौद्धिक संपदा प्रणालियों को आपस में जोड़ने और ज्ञान साझा करने के लिये तकनीकी आधारभूत संरचना बनाना भी WIPO के ज़िम्मे है।
  • सभी सदस्य देशों को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के लिये बौद्धिक संपदा का उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिये सहयोग और क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाना।
  • WIPO बौद्धिक संपदा की जानकारी के लिये विश्वसनीय वैश्विक संदर्भ स्रोत का काम करता है।

WIPO द्वारा प्रशासित अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और कन्वेंशन  जिनका भारत सदस्य

  • औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन
  • विश्व बौद्धिक संपदा संगठन की स्थापना हेतु कन्वेंशन
  • साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के संरक्षण हेतु बर्न कन्वेंशन
  • पेटेंट सहयोग संधि
  • एकीकृत सर्किट के संबंध में बौद्धिक संपदा पर संधि
  • ओलंपिक प्रतीक के संरक्षण पर नैरोबी संधि

WIPO के  प्रकाशन

  • ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स- नवाचार के लिये उनकी क्षमता और सफलता के आधार पर देशों की वार्षिक रैंकिंग।
    • इसका प्रकाशन कॉर्नेल विश्वविद्यालय और इनसीड के सहयोग से होता है।

आइये, अब एक नज़र डालते हैं इस संगठन के अब तक के सफर पर...

  • औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिये पेरिस अभिसमय (1883): विभिन्न देशों में बौद्धिक कार्यों के संरक्षण के लिये पहला कदम, जिसमें ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिज़ाइन आविष्कार के पेटेंट शामिल थे।
  • साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न अभिसमय (1886): इसमें उपन्यास, लघु कथाएँ, नाटक, गाने, ओपेरा, संगीत, ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला और वास्तुशिल्प कृतियाँ शामिल हैं।
  • मैड्रिड समझौता (1891): यहाँ से अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा फाइलिंग सेवा की शुरुआत हुई।
  • BIRPI की स्थापना (1893): बौद्धिक संपदा संरक्षण हेतु पेरिस और बर्न अभिसमय पर अमल करने के लिये बनाए गए दो सचिवालयों को मिलाकर BIRPI (United International Bureaux for the Protection of Intellectual Property) की स्थापना हुई।
  • BIRPI बना WIPO (1970): सदस्य देशों का नेतृत्व करने वाले एक अंतर-सरकारी संगठन के रूप में WIPO की स्थापना की गई।
  • UN में शामिल हुआ WIPO (1974): WIPO ने वर्ष 1974 से संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी के तौर पर काम करना शुरू किया।
  • पेटेंट कोऑपरेशन ट्रीटी सिस्टम की शुरुआत (1978): इस संधि के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट आवेदन दाखिल कर एक साथ कई देशों में आविष्कार के संरक्षण का प्रयास किया जा सकता है।
  • मध्यस्थता केंद्र की स्थापना (1994): यह केंद्र निजी पक्षों के बीच अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों को हल करने में सहायता के लिये वैकल्पिक विवाद समाधान सेवाएँ प्रदान करता है।

WIPO के कार्य

  • हर पल बदलती दुनिया में संतुलित अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा नियमों को बनाने के लिये यह एक नीतिगत मंच का काम करता है।
  • विभिन्न देशों की सीमाओं के पार बौद्धिक संपदा संरक्षण और विवादों को हल करने के लिये वैश्विक सेवाएँ देना भी इसके कार्यों में शामिल है।
  • बौद्धिक संपदा प्रणालियों को आपस में जोड़ने और ज्ञान साझा करने के लिये तकनीकी आधारभूत संरचना बनाना भी WIPO के ज़िम्मे है।
  • सभी सदस्य देशों को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के लिये बौद्धिक संपदा का उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिये सहयोग और क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाना।
  • WIPO बौद्धिक संपदा की जानकारी के लिये विश्वसनीय वैश्विक संदर्भ स्रोत का काम करता है।

अब चर्चा WIPO की सीमाओं और अपवादों की...

सीमा और अपवाद को WIPO के एजेंडे का एक मुद्दा माना जाता है, क्योंकि अधिकार धारकों और संरक्षित कार्यों का उपयोग करने वालों के हितों के बीच उचित संतुलन बनाए रखने के लिये कॉपीराइट कानून आर्थिक अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध लगाते हैं। प्रायः ये ऐसे मामले होते हैं जिनमें संरक्षित कार्यों का उपयोग अधिकार धारकों की अनुमति के बिना और मुआवज़े का भुगतान करके या न करके किया जा सकता है। देखा यह गया है कि सीमाओं और अपवादों के संबंध में बहस मुख्य रूप से तीन समूहों के लाभार्थियों या गतिविधियों पर केंद्रित रहती है- इसमें 1. शैक्षणिक गतिविधियों 2. पुस्तकालयों और अभिलेखागारों 3. विकलांग व्यक्तियों, विशेषकर दृष्टिबाधितों को शामिल किया गया है।

चलते-चलते कुछ जानकारी बौद्धिक संपदा के बारे में...

संपत्ति की ऐसी श्रेणी बौद्धिक संपदा कहलाती है जिसमें मानव बुद्धि से निर्मित ऐसी रचनाएं शामिल होती हैं, जिन्हें छूकर महसूस नहीं किया जा सकता। इनमें मुख्य रूप से कॉपीराइट, पेटेंट और ट्रेडमार्क शामिल हैं। इनके अलावा ट्रेड सीक्रेट्स, प्रचार अधिकार, नैतिक अधिकार और अनुचित प्रतिस्पर्द्धा के खिलाफ अधिकार भी इसमें शामिल हैं।

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