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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (NMEO)

प्रिलिम्स के लिये: खाद्य तेल, NMEO-ऑयल पाम, NMEO-ऑयलसीड्स, पीली क्रांति, WTO, सहकारी समितियाँ, FPO, अंतर-फसल खेती

मेन्स के लिये: भारत में तिलहन उत्पादन, उपभोग और आयात की स्थिति। तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये NMEO-पाम ऑयल (2021) और NMEO-ऑयलसीड्स (2024) की प्रमुख विशेषताएँ।

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार ने खाद्य तेलों पर राष्ट्रीय मिशन (NMEO) की शुरुआत दो प्रमुख पहलों के माध्यम से की है, जिनका नाम NMEO-ऑयल पाम (2021) और NMEO-ऑयलसीड्स (2024) है, ताकि खाद्य तेलों के आयात पर भारी निर्भरता को कम किया जा सके, जिसने वर्ष 2023-24 में घरेलू खाद्य तेल की मांग का 56% पूरा किया।

राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन- ऑयल पाम (NMEO-OP) क्या है?

  • परिचय: पाम ऑयल (NMEO-OP) को वर्ष 2021 में एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में मंज़ूरी दी गई थी, जिसका उद्देश्य क्षेत्र विस्तार और कच्चे पाम ऑयल (CPO) के उत्पादन में वृद्धि करके देश में खाद्य तिलहन उत्पादन और तेलों की उपलब्धता को बढ़ाना है।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • मूल्य आश्वासन: किसानों को अंतर्राष्ट्रीय CPO मूल्य में उतार-चढ़ाव से बचाने के लिये पहली बार व्यवहार्यता मूल्य (VP) की शुरुआत 
    • सब्सिडी में वृद्धि: पाम ऑयल के लिये रोपण सामग्री के लिये पर्याप्त वृद्धि की गई है, जो 12,000 रुपये प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 29,000 रुपये प्रति हेक्टेयर हो गई है।
    • पुनर्जीवन सहायता: पुराने बगीचों के पुनरुद्धार के लिये 250 रुपये प्रति पौधे की विशेष सहायता दी जा रही है।
    • लक्षित क्षेत्र: उत्तर-पूर्वी राज्यों और आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना जैसे पारंपरिक रूप से कृषि उत्पादक राज्यों पर विशेष जोर दिया गया है।
  • प्रमुख लक्ष्य: 
    • क्षेत्रफल विस्तार: वर्ष 2025-26 तक 6.5 लाख हेक्टेयर भूमि को पाम ऑयल के बागानों के अंतर्गत लाना।
  • उत्पादन लक्ष्य: 2025-26 तक 11.20 लाख टन CPO और 2029-30 तक 28 लाख टन CPO।
    • उपभोग जागरूकता: वर्ष 2025-26 तक प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 19 किलोग्राम का उपभोग स्तर बनाए रखें।
  • प्रगति: नवंबर 2025 तक, NMEO-OP के अंतर्गत 2.50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर किया जा चुका है, जिससे देश में पाम ऑयल की कुल कवरेज 6.20 लाख हेक्टेयर हो गई है। सीपीओ का उत्पादन 2014-15 के 1.91 लाख टन से बढ़कर 2024-25 में 3.80 लाख टन हो गया है।
  • रणनीतिक फोकस क्षेत्र: 

  • कार्यान्वयन संरचना:

राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन - तिलहन (NMEO-OS) क्या है?

  • परिचय: वर्ष 2024 में 2024-25 से 2030-31 की अवधि के लिये अनुमोदित, NMEO-OS का उद्देश्य खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना है। 
    • इसका उद्देश्य 9 प्राथमिक तिलहन फसलों (सरसों, मूंगफली और सोयाबीन सहित) के उत्पादन को बढ़ावा देना और कपास के बीज, नारियल, चावल की भूसी और वृक्ष-जनित तिलहन जैसे द्वितीयक स्रोतों से तेल निष्कर्षण को बढ़ाना है।
  • मुख्य उद्देश्य: सहकारी समितियों, पारिवारिक व्यवसाय संगठनों और निजी भागीदारों के माध्यम से नवीन तकनीकों और बीजों का तेजी से प्रसार करके उपज के अंतर को कम करना।
    • परती भूमि और अंतर-फसल खेती  के माध्यम से तिलहन क्षेत्र का विस्तार करना, जिसे प्रदर्शनों और सुदृढ़ बीज प्रणालियों का समर्थन प्राप्त हो।
    • किसानों के लिये बाज़ार तक पहुँच को मज़बूत करना और उपज एवं उत्पादन बढ़ाने के लिये द्वितीयक तेल स्रोतों को बढ़ावा देना।
  • प्रमुख लक्ष्य:
    • तिलहन की खेती का क्षेत्रफल 29 मिलियन हेक्टेयर (2022-23) से बढ़ाकर 33 मिलियन हेक्टेयर (2030-31) करना और इसी अवधि में प्राथमिक उत्पादन को 39 मिलियन टन से बढ़ाकर 69.7 मिलियन टन करना।
    • धान/आलू की परती भूमि, अंतर-फसल खेती और फसल विविधीकरण का उपयोग करके वर्ष 2030-31 तक 40 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में वृद्धि करना।
    • NMEO-OP और NMEO-OS का संयुक्त लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक 25.45 मिलियन टन खाद्य तेल का उत्पादन करना है, जो घरेलू मांग का लगभग 72% पूरा करेगा।
  • कार्यान्वयन: स्वयं सहायता समूह, विशेष रूप से कृषि सखियाँ, प्रमुख सामुदायिक कृषि सेवा प्रदाताओं (CASP) के रूप में कार्य करते हैं, जो किसानों को अंतिम छोर तक सहायता प्रदान करते हैं।
    • इन समूहों, विशेष रूप से कृषि सखियों को, कृषि मैपर प्लेटफॉर्म पर महत्त्वपूर्ण डेटा एकत्र करने और उसे अपडेट करने के काम पर लगाया जा रहा है।

तिलहन

  • परिचय: तिलहन फसलें वे फसलें हैं जो मुख्यतः उनके बीजों में निहित खाद्य या औद्योगिक तेल के लिये उगाई जाती हैं। 
    • भारत और वैश्विक स्तर पर यह वाणिज्यिक फसलों के सबसे महत्त्वपूर्ण समूहों में से एक हैं। भारत में, तिलहन फसलों का क्षेत्रफल और उत्पादन मूल्य खाद्यान्नों के बाद दूसरे स्थान पर है।
  • भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहन फसलें: 9 प्रमुख तिलहन फसलें — मूँगफली, सोयाबीन, सरसों-राप्ती, सूरजमुखी, तिल, कुसुम, रामतिल, अरंडी और अलसी — कुल बोए गए क्षेत्र के 14.3% भाग पर उगाई जाती हैं और आहार ऊर्जा का 12–13% प्रदान करती हैं।
    • 9 प्रमुख तिलहन फसलों के अलावा, तेल कपास बीज, चावल की चोकर, नारियल (खोपरा) और वृक्ष-आधारित तिलहन फसलों (TBO) जैसे नीम, जट्रोफा, करंज, महुआ और सिमारूबा से भी निकाला जाता है। 
  • तिलहन फसलों का महत्त्व: भारत के लिये तिलहन फसलें निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण हैं: 
    • पोषण सुरक्षा: आहार वसा, ऊर्जा और वसा-घुलनशील विटामिनों (A, D, E, K) का प्रमुख स्रोत हैं, जो कैलोरी सेवन में सुधार करती हैं और छिपी हुई कुपोषण की समस्या दूर करती हैं। 
    • किसान कल्याण: यह ग्रामीण आय और लाखों किसानों के लिये रोज़गार बनाए रखने वाली एक महत्त्वपूर्ण नकदी फसल है। 
    • निर्यात क्षमता: कृषि निर्यात में लगभग 8% का योगदान करती हैं, जिसमें तिलहन खली, तिलहन बीज और लघु तेलों का मूल्य वर्ष 2023-24 में 29,587 करोड़ रुपए था। 
  • उत्पादन: भारत वैश्विक तिलहन उत्पादन में 5-6% हिस्सेदारी रखता है, फिर भी उसका घरेलू खाद्य तेल उत्पादन 12.18 मिलियन टन (2023-24) होने से केवल 44% मांग की पूर्ति होती है, जिससे उस पर निर्यात पर महत्त्वपूर्ण निर्भरता बनी रहती है। 
    • मुख्य उत्पादन राज्य: उत्पादन कुछ ही राज्यों में केंद्रित है जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, और महाराष्ट्र, जो मिलकर भारत के कुल तिलहन बीज उत्पादन का 77% से अधिक योगदान देते हैं। 
    • क्षेत्रीय विशेषज्ञता: राजस्थान में सरसों, मध्य प्रदेश में सोयाबीन, और आंध्र प्रदेश–तेलंगाना में तेल पाम (98%) का प्रमुख उत्पादन होता है। 
      • तेल पाम की खेती अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, त्रिपुरा और नगालैंड में भी बढ़ रही है। 

  • खपत: खपत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, ग्रामीण क्षेत्रों में वार्षिक खपत 83.68% और शहरी क्षेत्रों में 48.74% बढ़ी है (2004-05 से 2022-23 तक)। 

  • आयात निर्भरता के कारण:
    • WTO का प्रभाव: भारत ने शुरू में 1990 के दशक की येलो रिवोल्यूशन के दौरान खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता हासिल की थी, जिसका उद्देश्य तेल बीजों के उत्पादन को बढ़ाना था।
      • हालाँकि यह स्थिति WTO समझौतों के तहत आयात शुल्क में कमी और मूल्य सहायता में कटौती के बाद बदल गई।
    • जलवायु संवेदनशीलता: विश्व में चौथा सबसे बड़ा खाद्य तेल उत्पादक होने के बावजूद (USA, चीन और ब्राजील के बाद), भारत का क्षेत्र वर्षा-आधारित कृषि-तेल बीज की खेती का 76%-पर निर्भर होने के कारण सीमित बना हुआ है, जिससे पैदावार जलवायु की परिस्थितियों के प्रति संवेदनशील होती है तथा बढ़ती मांग को पूरा करने की क्षमता बाधित होती है।

निष्कर्ष

राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन भारत की आयात निर्भरता कम करने के लिये तेल पाम के विस्तार और तेल बीज की उत्पादकता बढ़ाने जैसी लक्षित पहलों को लागू करता है। वर्ष 2030-31 तक 72% आत्मनिर्भरता का लक्ष्य रखते हुए, यह मिशन ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को सशक्त बनाता है, विदेशी मुद्रा की बचत करता है और आत्मनिर्भर भारत को आगे बढ़ाता है, साथ ही बढ़ी हुई घरेलू उत्पादन क्षमता के माध्यम से लाखों लोगों के लिये पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत विश्व में चौथा सबसे बड़ा खाद्य तेल उत्पादक होने के बावजूद तेल बीज क्षेत्र के सामने किस प्रकार की चुनौतियाँ हैं, इसका विश्लेषण कीजिये। राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन इन संरचनात्मक बाधाओं को कैसे संबोधित करता है?

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (NMEO) क्या है?
NMEO में NMEO-तेल पाम (2021) और NMEO-तेल बीज (2024) शामिल हैं, जो वर्ष 2030-31 तक 72% आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का लक्ष्य रखते हैं।

2. भारत में तेल बीज और तेल पाम उत्पादन में कौन से राज्य प्रमुख हैं?
राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र भारत के तेल बीज उत्पादन में 77.68% का योगदान करते हैं, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना तेल पाम का 98% उत्पादन करते हैं, जबकि उत्तर-पूर्वी राज्य इसका विस्तार कर रहे हैं।

3. NMEO के क्रियान्वयन में कृषि सखियाँ की क्या भूमिका है?
कृषि सखियाँ अंतिम स्तर पर समर्थन प्रदान करती हैं, कृषि मैपर (Krishi Mapper) पर डेटा एकत्रित करती हैं और ज़मीनी स्तर पर क्रियान्वयन के लिये बाज़ार से जोड़ने में मदद करती हैं।

सारांश

  • भारत खाद्य तेल सुरक्षा की गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है, जहाँ घरेलू मांग का 56% आयात द्वारा पूरा होता है (2023-24 में 15.66 मिलियन टन), जिससे आर्थिक रूप से असुरक्षा उत्पन्न होती है।
  • सरकार की प्रतिक्रिया दो-आयामी राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन (NMEO) है, जिसमें NMEO-तेल पाम (क्षेत्र विस्तार के लिये) और NMEO-तेल बीज (उत्पादकता वृद्धि हेतु) शामिल हैं।
  • मुख्य रणनीतियों में तेल पाम किसानों हेतु मूल्य आश्वासन (Viability Price), तेल बीज के लिये क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण, परती भूमि का उपयोग और अंतिम स्तर पर सेवाओं के लिये सामुदायिक संसाधनों (कृषि सखियों) का उपयोग शामिल है।
  • इस मिशन का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक 25.45 मिलियन टन खाद्य तेल घरेलू स्तर पर उत्पादन करना है, जिससे मांग का 72% पूरा होगा और आयात पर निर्भरता में महत्त्वपूर्ण कमी आएगी, जिससे खाद्य सुरक्षा और किसान कल्याण सुदृढ़ होगा।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. सभी अनाजों, दालों और तिलहनों के मामले में भारत के किसी भी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद असीमित है। 
  2. अनाज और दालों के मामले में MSP किसी भी राज्य / केंद्रशासित प्रदेश में उस स्तर पर तय किया जाता है जहाँ बाज़ार मूल्य कभी नहीं बढ़ेगा। 

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 व 2 दोनों

(d) न तो 1 न ही 2

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. पिछले पाँच वर्षों में आयातित खाद्य तेलों की मात्रा, खाद्य तेलों के घरेलू उत्पादन से अधिक रही है।  
  2. सरकार विशेष स्थिति के तौर पर भी सभी आयातित खाद्य तेलों पर किसी प्रकार का सीमा शुल्क नहीं लगाती।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)


प्रश्न. जात्रोफा के अलावा पोंगामिया पिनाटा को भारत में बायो-डीजल उत्पादन के लिये अच्छा विकल्प क्यों माना जाता है? (2010)

  1. पोंगामिया पिनाटा भारत के अधिकांश शुष्क क्षेत्रों में स्वाभाविक रूप से उगता है।
  2. पोंगामिया पिनाटा के बीजों में उच्च वसा (लिपिड) सामग्री होती है, जिसमें से लगभग आधा हिस्सा ओलेइक एसिड होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न. फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती है? (2021)


जैव विविधता और पर्यावरण

ग्लोबल एनवायरनमेंट आउटलुक 2025

प्रिलिम्स के लिये: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), ग्लोबल एनवायरनमेंट आउटलुक (GEO), जैव विविधता, ग्रीनहाउस गैस (GHG), बेरोज़गारी, कुपोषण, महत्त्वपूर्ण खनिज

मेन्स के लिये: ग्लोबल एनवायरनमेंट आउटलुक 2025 के प्रमुख निष्कर्ष, वैश्विक पर्यावरणीय क्षरण की वर्तमान स्थिति और इसके परिणाम, पर्यावरणीय क्षरण को रोकने के लिये सुधार आवश्यक पाँच प्रमुख क्षेत्र और आगे की राह।

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) ने नैरोबी में UNEP के 7वें सत्र के दौरान ग्लोबल एनवायरनमेंट आउटलुक 2025 (GEO-7) का 7वाँ संस्करण जारी किया है।

वैश्विक पर्यावरण दृष्टिकोण 2025 रिपोर्ट के प्रमुख प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • ग्रीनहाउस गैस में वृद्धि: 1990 से ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन प्रतिवर्ष 1.5% की दर से बढ़ रहा है और वर्ष 2024 में रिकॉर्ड ऊँचाई (1.55°C) तक पहुँच गया जिससे जलवायु प्रभाव और भी तीव्र हो गए।
  • जैव विविधता ह्रास: अनुमानित आठ मिलियन प्रजातियों में से एक मिलियन प्रजातियाँ विलुप्त होने के खतरे में हैं। वैश्विक भूमि का 20–40% अपदूषित हो चुका है, जिससे 3 अरब से अधिक लोग प्रभावित हैं।
  • आर्थिक लागत: जलवायु से संबंधित चरम मौसम घटनाओं की लागत पिछले दो दशकों में वार्षिक लगभग 143 अरब अमेरिकी डॉलर रही है; केवल वायु प्रदूषण से होने वाले स्वास्थ्य नुकसान की लागत वर्ष 2019 (वैश्विक GDP का 6.1%) में 8.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
    • प्रदूषण से जुड़े कारणों से प्रतिवर्ष 9 मिलियन मृत्यु होती हैं।
    • रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु स्थिरता, जैव विविधता और प्रदूषण घटाने में रणनीतिक निवेश से वर्ष 2070 तक प्रतिवर्ष 20 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का लाभ हो सकता है, जबकि निष्क्रियता अर्थव्यवस्थाओं और पारिस्थितिक तंत्र दोनों के लिये विनाशकारी साबित हो सकती है।
  • प्लास्टिक संकट: 8,000 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट पृथ्वी को प्रदूषित कर रहा है और विषैले रसायनों के संपर्क से प्रतिवर्ष 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का स्वास्थ्य-संबंधित आर्थिक नुकसान होता है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP)

  • UNEP: UNEP की स्थापना 5, जून 1972 को हुई थी और यह विश्व की अग्रणी पर्यावरण संस्था है। यह वैश्विक पर्यावरणीय एजेंडा निर्धारित करती है, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंतर्गत सतत विकास को प्रोत्साहित करती है तथा पृथ्वी के संरक्षण के लिये एक प्रभावशाली नेतृत्वकारी भूमिका निभाती है।
  • उल्लेखनीय प्रकाशन: उत्सर्जन अंतर रिपोर्ट, अडैप्टेशन गैप रिपोर्ट, वैश्विक पर्यावरण आउटलुक, फ्रंटियर्स, स्वस्थ ग्रह में निवेश करना।
  • प्रमुख पहल: प्रदूषण पर विजय, संयुक्त राष्ट्र 75, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाइफ।

मुख्यालय: नैरोबी, केन्या।

पर्यावरण क्षरण के विभिन्न प्रभाव क्या हो सकते हैं?

  • खतरनाक टिपिंग पॉइंट्स को पार करना: वर्ष 2030 के दशक की शुरुआत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस और 2040 के दशक तक 2.0 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने की संभावना है, जिससे अपरिवर्तनीय पारिस्थितिकी तंत्र का पतन और बड़े पैमाने पर विस्थापन होगा।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं का पतन: वर्ष 2050 तक वार्षिक वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 4% और 2100 तक 20% की गिरावट हो सकती है, जिससे बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी, गरीबी और व्यवस्थागत अस्थिरता उत्पन्न होगी।
  • उपजाऊ भूमि की हानि: प्रतिवर्ष कोलंबिया या इथियोपिया के बराबर उपजाऊ भूमि का नुकसान हो रहा है, जो कृषि और जल उपलब्धता को खतरे में डालता है, आजीविकाओं को नष्ट करता है, संघर्ष को बढ़ावा देता है और जैव विविधता को क्षीण करता है।
  • पोषण स्तर में गिरावट: वर्ष 2050 तक प्रति व्यक्ति खाद्य उपलब्धता में 3.4% की कमी हो सकती है, जिससे भूख, कुपोषण, अकाल और सामाजिक अशांति तीव्र होगी।
  • वित्तीय क्षरण: पहले से ही प्रतिवर्ष खरबों की लागत वाली ये हानियाँ और बढ़ेंगी, जिससे महत्त्वपूर्ण संसाधनों का अपव्यय होगा और समाज स्थायी संकट में फँस जाएँगे।

पर्यावरणीय क्षरण को रोकने के लिये GEO-7 द्वारा सुझाए गए परिवर्तनकारी उपाय क्या हैं?

  • अर्थव्यवस्था और वित्त: सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के वास्तविक मूल्य को प्रतिबिंबित करने के लिये व्यापक संपदा मापदंडों और बाह्यताओं के मूल्य निर्धारण की ओर संक्रमण करना। नीतियों में सुधार कर डीकार्बनाइज़ेशन, संधारणीय कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्स्थापन को प्रोत्साहित करना।
    • वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने और जैव विविधता की आवश्यकताओं के वित्तपोषण के लिये वर्ष 2050 तक प्रतिवर्ष लगभग 8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता होगी — यह राशि निष्क्रियता की लागत का एक अंश मात्र है।
    • इसके वैश्विक लाभ वर्ष 2070 तक प्रतिवर्ष 20 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकते हैं और उसके बाद संभावित रूप से प्रतिवर्ष 100 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक विस्तारित हो सकते हैं।
  • सामग्री और अपशिष्ट: पारदर्शी, अनुरेखणीय चक्रीय डिज़ाइन लागू करना, निवेश को चक्रीय एवं पुनर्जीवित मॉडलों की ओर स्थानांतरित करना और चक्रीय मानसिकता के माध्यम से उपभोग का पुनर्गठन करना।
  • ऊर्जा: ऊर्जा आपूर्ति का डीकार्बनाइज़ेशन करना, सभी क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता में सुधार करना, महत्त्वपूर्ण खनिजों की सतत मूल्य शृंखला सुनिश्चित करना और वैश्विक ऊर्जा पहुँच तथा ऊर्जा गरीबी को संबोधित करें।
    • वायु प्रदूषण में कटौती जैसे उपायों से वर्ष 2050 तक 90 लाख अकाल मृत्यु को टाला जा सकता है।
  • खाद्य प्रणालियाँ: स्वस्थ व स्थायी आहार को बढ़ावा देना, कृषि में चक्रीयता एवं दक्षता बढ़ाना तथा खाद्य हानि और अपशिष्ट में तीव्र कटौती करना।
    • लगभग 200 मिलियन लोगों को कुपोषण से बाहर निकाला जा सकता है। 100 मिलियन से अधिक लोग अत्यधिक गरीबी से मुक्त हो सकते हैं।
  • पर्यावरण: पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण और पुनर्स्थापन में तेज़ी लाना, प्रकृति-आधारित समाधानों के माध्यम से जलवायु अनुकूलन को सुदृढ़ करना और मज़बूत जलवायु शमन रणनीतियों को लागू करना।
  • सहयोग: इसमें सरकारों, निजी क्षेत्र, नागरिक समाज, शैक्षणिक संस्थानों और स्वदेशी समुदायों द्वारा समाधानों का सह-विकास आवश्यक है, जिनका ज्ञान महत्त्वपूर्ण है।
  • एकीकृत कार्रवाई: पाँच प्रमुख क्षेत्रों में नीतियों को अलग-अलग नहीं, बल्कि समानांतर रूप से लागू किया जाना चाहिये, ताकि सभी के लिये एक न्यायसंगत परिवर्तन सुनिश्चित हो सके।

पर्यावरणीय क्षरण को रोकने के लिये भारत की रणनीतिक प्राथमिकताएँ क्या होनी चाहिये?

  • ग्रीन GDP ढाँचा: ‘समावेशी संपदा सूचकांक’ या ‘हरित सकल घरेलू उत्पाद या ग्रीन GDP’ विकसित एवं लागू करना, जो आर्थिक विकास के साथ-साथ प्राकृतिक पूंजी (वन, मृदा, जल, वायु गुणवत्ता) के ह्रास को भी समाहित करे।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर संक्रमण: क्षेत्र-विशिष्ट (निर्माण, प्लास्टिक, इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र) रोडमैप के साथ एक राष्ट्रीय चक्रीय अर्थव्यवस्था मिशन आरंभ करना। पैकेजिंग में पुनर्चक्रित सामग्री अनिवार्य करना और द्वितीयक कच्चे माल के लिये मज़बूत बाज़ार सृजित करना।
  • सब्सिडी सुधार: पेट्रोल, डीज़ल और कोयले की सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना तथा उन्हें नवीकरणीय ऊर्जा, विद्युत गतिशीलता, जैविक कृषि और स्थायी सार्वजनिक परिवहन की ओर पुनर्निर्देशित करना।
  • प्रकृति-आधारित समाधानों (NbS) का विस्तार: प्रकृति-आधारित समाधानों को सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के बजट को मुख्यधारा में लाना। मैंग्रोव पुनर्स्थापना को तटीय सुरक्षा, आर्द्रभूमि पुनर्जीवन को जल सुरक्षा और नगरीय हरित स्थानों को सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना के रूप में व्यवहृत करना।

निष्कर्ष

GEO-7 मानवता के समक्ष एक निर्णायक विकल्प प्रस्तुत करता है: अर्थव्यवस्था, ऊर्जा, खाद्य, सामग्री और पर्यावरण के क्षेत्र में सामूहिक परिवर्तन को अपनाना चाहिये और वर्ष 2070 तक प्रतिवर्ष 20 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का लाभ अर्जित करना चाहिये अथवा विनाशकारी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) हानि, पारिस्थितिकी तंत्र के पतन और बड़े पैमाने पर विस्थापन का सामना करना चाहिये। संपूर्ण-सरकारी दृष्टिकोण, स्वदेशी ज्ञान का समन्वय और वर्ष 2050 तक प्रतिवर्ष 8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश, ग्रहीय और मानव कल्याण को सुरक्षित करने के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. GEO-7 रिपोर्ट में बताए गए वैश्विक पर्यावरण गिरावट की वर्तमान स्थिति का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

1. GEO-7 रिपोर्ट क्या है?
GEO-7, UNEP द्वारा जारी किया गया 7वाँ वैश्विक पर्यावरण आउटलुक है, जो ग्रह के पर्यावरणीय स्वास्थ्य और आर्थिक परिवर्तन के मार्गों का आकलन करता है।

2. वर्ष 2070 तक पर्यावरणीय परिवर्तन से अनुमानित आर्थिक लाभ क्या होंगे?
परिवर्तन के ये मार्ग 2070 तक प्रतिवर्ष लगभग 20 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर और उसके बाद 100 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक का राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं, जबकि 2050 तक 9 मिलियन असमय मौतों को रोका जा सकता है और 200 मिलियन लोगों को कुपोषण से मुक्त किया जा सकता है।

3. रिपोर्ट के अनुसार, परिवर्तन की आवश्यकता वाले पाँच प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?
ये पाँच प्रमुख क्षेत्र हैं: अर्थव्यवस्था और वित्त, सामग्री और अपशिष्ट, ऊर्जा, खाद्य प्रणाली और पर्यावरण, जिनमें से सभी के लिये समानांतर और एकीकृत नीतिगत कार्रवाई की आवश्यकता है।

सारांश

  • UN की GEO-7 रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु, प्रकृति और प्रदूषण नियंत्रण में निवेश से दीर्घकाल में प्रतिवर्ष 100 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक का आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकता है, जबकि निष्क्रियता से वैश्विक GDP में 20% तक की कटौती और अपूरणीय क्षति का खतरा है।
  • वर्तमान पर्यावरणीय क्षरण अत्यंत गंभीर है—रिकॉर्ड उत्सर्जन, 10 लाख प्रजातियाँ जोखिम में, प्रदूषण से प्रतिवर्ष 90 लाख मौतें तथा प्रत्येक वर्ष ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हो रहा है।
  • इन संकटों को टालने के लिये पाँच प्रमुख प्रणालियों—अर्थव्यवस्था, सामग्री/ऊर्जा उपयोग, खाद्य उत्पादन और पर्यावरण प्रबंधन—में व्यापक और समानांतर रूपांतरण आवश्यक हैं।
  • सफलता के लिये लगभग 8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष के विशाल सहयोगात्मक निवेश, आदिवासी ज्ञान के समावेशन तथा प्राकृतिक और मानव पूंजी को महत्त्व देने वाले ‘GDP से परे’ दृष्टिकोण को अपनाना अनिवार्य है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. यू. एन. ई. पी. द्वारा समर्थित ‘कॉमन कार्बन मेट्रिक’को किसलिये विकसित किया गया है? (2021)

(a) संपूर्ण विश्व में निर्माण कार्यों के कार्बन पदचिह्न का आकलन करने के लिये।

(b) कार्बन उत्सर्जन व्यापार में विश्व भर में वाणिज्यिक कृषि संस्थाओं के प्रवेश हेतु अधिकार प्रदान करने के लिये।

(c) सरकारों को अपने देशों द्वारा किये गए समग्र कार्बन पदचिह्न के आकलन हेतु अधिकार देने के लिये।

(d) किसी इकाई समय (यूनिट टाइम) में विश्व में जीवाश्म ईंधनों के उपयोग से उत्पन्न होने वाले समग्र कार्बन पदचिह्न के आकलन के लिये।

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. ग्लोबल वार्मिंग की चर्चा कीजिये और वैश्विक जलवायु पर इसके प्रभावों का उल्लेख कीजिये। क्योटो प्रोटोकॉल, 1997 के आलोक में ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनने वाली ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को कम करने के लिये नियंत्रण उपायों को समझाइये। (2022)


भारतीय अर्थव्यवस्था

निर्यात संवर्द्धन मिशन

प्रिलिम्स के लिये: सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम, विदेश व्यापार महानिदेशालय, निर्यात प्रोत्साहन एवं निर्यात

मेन्स के लिये: विकास और वृद्धि, भारत के निर्यात परिदृश्य को बदलना, ज़िलों को निर्यात हब के रूप में विकसित करना, समावेशी निर्यात विकास।

स्रोत: PIB

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार ने निर्यात संवर्द्धन मिशन (Export Promotion Mission – EPM) को मंज़ूरी दी है, जिसका उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देना है—विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs), श्रम-प्रधान क्षेत्रों तथा कम निर्यात-तीव्रता वाले क्षेत्रों से निर्यात को प्रोत्साहित करना है।

निर्यात संवर्द्धन मिशन (EPM) क्या है?

  • परिचय: केंद्रीय बजट 2025-26 में घोषित, मिशन एक प्रमुख ढाँचागत सुधार का प्रतिनिधित्व करता है, जो कई  निर्यात-समर्थन पहलों को एक एकल, परिणाम-आधारित और डिजिटल रूप से सक्षम ढाँचे में विलय करता है।
    • वित्त वर्ष 2025-26 से वित्त वर्ष 2030-31 के लिये 25,060 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ इसका उद्देश्य भारत के निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना और लघु एवं मध्यम उद्यमों और श्रम-प्रधान क्षेत्रों के लिये प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना है।
  • संरचना और शासन: EPM एक समन्वित संस्थागत ढाँचे पर आधारित है जिसमें वाणिज्य विभाग, MSME मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, निर्यात संवर्द्धन परिषदें, कमोडिटी बोर्ड, वित्तीय संस्थान, उद्योग निकाय और राज्य सरकारें शामिल हैं।
    • विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGPT) कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
  • एकीकृत उप-योजनाएँ: EPM दो एकीकृत उप-योजनाओं के माध्यम से संचालित होता है जो एक साथ वित्त और गैर-वित्तीय सक्षमताओं को संबोधित करते हैं:
  • निर्यात प्रोत्साहन: यह MSMEs के लिये किफायती व्यापार वित्त, ब्याज सब्सिडी, फैक्टरिंग, निर्यातक क्रेडिट कार्ड, संपार्श्विक सहायता और ऋण संवर्द्धन जैसी वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • निर्यात दिशा: यह गैर-वित्तीय सहायता प्रदान करती है जैसे गुणवत्ता और अनुपालन में सहायता, ब्रांडिंग, व्यापार मेले, रसद और परिवहन सहायता और ज़िला-स्तरीय क्षमता निर्माण।
  • डिजिटल कार्यान्वयन और निगरानी:  EPM कागज़ रहित, एकीकृत प्रसंस्करण और तीव्र, पारदर्शी वितरण के लिये DGPT द्वारा संचालित डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करता है।
    • इसका परिणाम-आधारित डिजिटल डिज़ाइन वैश्विक व्यापार परिवर्तनों के लिये समन्वित कार्यान्वयन और त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है।
  • क्षेत्रीय और क्षेत्रीय फोकस: EPM वैश्विक शुल्क वृद्धि से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों को प्राथमिकता देता है, मिशन स्पष्ट रूप से MSME, पहली बार निर्यातकों और श्रम-गहन मूल्य शृंखलाओं को लक्षित करता है, जिससे समावेशी पहुँच सुनिश्चित होती है।   
    • निर्यात दिशा योजना के तहत, भारत के निर्यात आधार को बढ़ाने और वैश्विक बाज़ारों में अधिक समावेशी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये आंतरिक और कम निर्यात वाले ज़िलों को लक्षित सहायता प्रदान की जाती है।
  • नियामक और केंद्रीय बैंक का समर्थन: वर्ष 2025 में RBI ने भारतीय रिज़र्व बैंक (व्यापार राहत उपाय) दिशानिर्देश, 2025  जारी किया, जिसका उद्देश्य ऋण-सेवा तनाव को कम करना और व्यवहार्य निर्यात-उन्मुख व्यवसायों की निरंतरता को बढ़ावा देना है।
  • अपेक्षित परिणाम: लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिये बेहतर व्यापार वित्तपोषण, मज़बूत प्रमाणीकरण और गुणवत्ता अनुपालन, बेहतर ब्रांडिंग और वैश्विक दृश्यता और गैर-पारंपरिक ज़िलों से निर्यात में वृद्धि शामिल हैं।
    • ये परिणाम निर्यात-आधारित विकास का समर्थन करते हैं, आत्मनिर्भर भारत के अनुरूप हैं और भारत को एक अधिक प्रतिस्पर्द्धी वैश्विक व्यापार भागीदार बनाकर विकसित भारत @2047 की परिकल्पना को आगे बढ़ाते हैं।

 

भारत के निर्यात उद्योग की स्थिति क्या है?

  • निर्यात वृद्धि: भारत के निर्यात वर्ष 2023-24 में ऐतिहासिक स्तर पर 778.21 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गए, जो वर्ष 2013-14 की तुलना में 67% की तीव्र वृद्धि को दर्शाता है।
    • निर्यात में यह वृद्धि अल्पकालिक उतार-चढ़ाव नहीं, बल्कि विनिर्माण क्षेत्र के विस्तार, डिजिटल क्षमताओं में वृद्धि और बाज़ार विविधीकरण को प्रतिबिंबित करती है।
  • प्रमुख निर्यात बाज़ार: शीर्ष गंतव्य (2023-24) में अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, नीदरलैंड्स, चीन, सिंगापुर, यूनाइटेड किंगडम, सऊदी अरब, बांग्लादेश, जर्मनी और इटली शामिल हैं।
    • ये 10 देश कुल वस्तु-निर्यात का 51% हिस्सा हैं।
    • निर्यात पहुँच उत्तरी अमेरिका, यूरोपीय संघ, आसियान, पश्चिम एशिया और उत्तर-पूर्व एशिया में विस्तृत हुई है, जो भौगोलिक विविधता को दर्शाती है।
  • भारत के निर्यात संरचना का विकास: भारत की निर्यात संरचना में स्पष्ट उन्नयन हो रहा है, जो वस्त्र और बुनियादी कृषि जैसे कम मूल्य वाले सामानों से इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग वस्तुओं जैसे उच्च मूल्य विनिर्माण की ओर स्थानांतरित हो रही है।
    • सेवा क्षेत्र अब कुल निर्यात में लगभग 44% का योगदान करता है, जो भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को मज़बूत करता है।
    • चिकित्सा उपकरण, नवीकरणीय ऊर्जा घटक और उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे नवोदित क्षेत्र भारत के निर्यात विविधीकरण और मूल्यवर्द्धन को और सुदृढ़ कर रहे हैं।

निर्यात को बढ़ावा देने के लिये भारत की प्रमुख पहलें क्या हैं?

पहल

उद्देश्य / मुख्य विशेषताएँ

प्रधानमंत्री गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान

यह बुनियादी ढाँचा नियोजन को एकीकृत करता है; बहु-मॉडल लॉजिस्टिक्स में सुधार करता है और पारगमन समय एवं लागत को कम करता है। 

राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP)

इसका लक्ष्य लॉजिस्टिक्स लागत में कमी लाना है; बहु-मॉडल संपर्कता और डिजिटल लॉजिस्टिक्स प्लेटफॉर्मों को बढ़ावा देना है। 

निर्यातकों के लिये ऋण गारंटी योजना (CGSE)

यह निर्यातकों, जिसमें MSME शामिल हैं, को 100% सरकारी गारंटी प्रदान करता है ताकि तरलता बढ़ाई जा सके और भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को सुदृढ़ किया जा सके। 

निर्यातित उत्पादों पर शुल्कों एवं करों में छूट (RoDTEP) 

यह GST के अंतर्गत शामिल नहीं किये गए अंतर्निहित करों/शुल्कों की प्रतिपूर्ति करता है ताकि निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार हो सके। 

राज्य और केंद्रीय करों व लेवी में छूट (ROSCTL)

यह वस्त्र और परिधान निर्यात पर राज्य तथा केंद्रीय करों की प्रतिपूर्ति करता है।

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ

यह इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, वस्त्र, ड्रोन आदि क्षेत्रों में विनिर्माण पैमाने और निर्यात को बढ़ावा देता है। 

TIES (निर्यात हेतु व्यापार अवसंरचना योजना)

यह परीक्षण प्रयोगशालाओं, ICD, शीत भंडारण और सीमा हाट जैसी निर्यात-संबंधित अवसंरचना का वित्तपोषण करता है।

मुक्त व्यापार समझौते (FTA)

UAE, ऑस्ट्रेलिया, EFTA आदि के साथ समझौतों के माध्यम से शुल्क में कटौती और बाज़ार तक पहुँच सुनिश्चित करता है। 

डिस्ट्रिक्ट ऐज़ एक्सपोर्ट हब (DEH) 

यह ज़िला-विशिष्ट उत्पादों को ब्रांडिंग, क्षमता निर्माण और लॉजिस्टिक्स सहायता के साथ बढ़ावा देता है। 

MSME लीन एवं ZED योजनाएँ 

यह गुणवत्ता में सुधार करता है, अपव्यय कम करता है और MSME को वैश्विक उत्पादन मानकों के साथ संरेखित करता है। 

निष्कर्ष

EPM एक एकीकृत, प्रौद्योगिकी-आधारित ढाँचा तैयार करता है जो भारत के निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत बनाता है। RBI के उपायों और क्रेडिट गारंटी के साथ मिलकर यह भारत की वैश्विक व्यापार में मज़बूती और स्थिति को बढ़ाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. निर्यात संवर्द्धन मिशन (EPM) के डिज़ाइन की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये, जो निर्यात सुविधा के लिये एक एकीकृत, डिजिटल ढाँचा है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. निर्यात संवर्द्धन मिशन (EPM) क्या है?
EPM एक छह वर्षीय, डिजिटल रूप से सक्षम मिशन (वित्तीय वर्ष 2025–26 से 2030–31 के लिये 25,060 करोड़ रुपये का आवंटन) है, जो निर्यात प्रोत्साहन और निर्यात दिशा के माध्यम से निर्यात समर्थन को समेकित करता है ताकि MSME और श्रम-प्रधान निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके।

2. निर्यात प्रोत्साहन और निर्यात दिशा क्या हैं?
निर्यात प्रोत्साहन किफायती व्यापार वित्त (ब्याज़ सबवेंशन, फैक्टरिंग, गारंटी/संपार्श्विक सहायता) प्रदान करता है। निर्यात दिशा गुणवत्ता/अनुपालन सहायता, ब्रांडिंग, व्यापार मेले का समर्थन, भंडारण और ज़िला स्तर पर लॉजिस्टिक सुविधा प्रदान करता है।

3. क्रेडिट गारंटी योजना फॉर एक्सपोर्टर्स (CGSE) निर्यातकों का समर्थन कैसे करती है?
CGSE निर्यात क्रेडिट को 20,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाता है और 100% सरकारी गारंटी (NCGTC के माध्यम से) प्रदान करता है, जिससे पात्र निर्यातकों, विशेषकर MSME को संपार्श्विक-मुक्त ऋण और अतिरिक्त कार्यशील पूंजी प्राप्त करने में सुविधा मिलती है।

सारांश

  • भारत ने निर्यात संवर्द्धन मिशन (EPM) लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य निर्यात-सहायता योजनाओं को एकीकृत करना और MSME व श्रम-प्रधान निर्यात को डिजिटल, परिणाम-आधारित तरीके से सशक्त बनाना है।
  • EPM निर्यात प्रोत्साहन (वित्तीय सहायता) और निर्यात दिशा (अवित्तीय सहायता) के माध्यम से संचालित होता है, जिसे DGFT के डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म तथा समन्वित संस्थागत प्रशासन द्वारा समर्थित किया जाता है।
  • भारत का निर्यात 2023–24 में 778.21 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचा, जिसे उच्च-मूल्य वाले विनिर्माण (इलेक्ट्रॉनिक्स, इंजीनियरिंग, फार्मा) और मज़बूत सेवा क्षेत्र ने संचालित किया, जो कुल निर्यात का लगभग 44% योगदान देता है।
  • पूरक पहलों—CGSE, PM गति शक्ति, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति, PLI योजनाएँ, मुक्त व्यापार समझौते (FTAs) और ज़िला स्तर के निर्यात हब—के माध्यम से लॉजिस्टिक्स, क्रेडिट की पहुँच, अनुपालन तथा बाज़ार विविधीकरण को सशक्त बनाकर निर्यात-आधारित वृद्धि को बनाए रखा जा रहा है, ताकि विकसित भारत @ 2047 की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न 1. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।

(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।

(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।

(d) निर्यात की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ता है।

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. फरवरी 2006 से प्रभाव में आए SEZ अधिनियम, 2005 के कुछ निर्धारित उद्देश्य हैं। इस संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. अवसंरचना सुविधाओं का विकास। 
  2.  विदेशी स्रोतों से निवेश को बढ़ावा देना। 
  3.  केवल सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देना।

उपर्युक्त में से कौन-से इस अधिनियम के उद्देश्य हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 3

(c) केवल 2 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न 3. ‘बंद अर्थव्यवस्था’ एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें: (2011)

(a) मुद्रा की आपूर्ति पूरी तरह से नियंत्रित होती है।

(b) घाटे का वित्तपोषण होता है।

(c) केवल निर्यात होता है।

(d) न तो निर्यात और न ही आयात होता है।

उत्तर: (d)


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