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भारतीय अर्थव्यवस्था

निर्यात संवर्द्धन मिशन

  • 10 Dec 2025
  • 81 min read

प्रिलिम्स के लिये: सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम, विदेश व्यापार महानिदेशालय, निर्यात प्रोत्साहन एवं निर्यात

मेन्स के लिये: विकास और वृद्धि, भारत के निर्यात परिदृश्य को बदलना, ज़िलों को निर्यात हब के रूप में विकसित करना, समावेशी निर्यात विकास।

स्रोत: PIB

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार ने निर्यात संवर्द्धन मिशन (Export Promotion Mission – EPM) को मंज़ूरी दी है, जिसका उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देना है—विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs), श्रम-प्रधान क्षेत्रों तथा कम निर्यात-तीव्रता वाले क्षेत्रों से निर्यात को प्रोत्साहित करना है।

निर्यात संवर्द्धन मिशन (EPM) क्या है?

  • परिचय: केंद्रीय बजट 2025-26 में घोषित, मिशन एक प्रमुख ढाँचागत सुधार का प्रतिनिधित्व करता है, जो कई  निर्यात-समर्थन पहलों को एक एकल, परिणाम-आधारित और डिजिटल रूप से सक्षम ढाँचे में विलय करता है।
    • वित्त वर्ष 2025-26 से वित्त वर्ष 2030-31 के लिये 25,060 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ इसका उद्देश्य भारत के निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना और लघु एवं मध्यम उद्यमों और श्रम-प्रधान क्षेत्रों के लिये प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना है।
  • संरचना और शासन: EPM एक समन्वित संस्थागत ढाँचे पर आधारित है जिसमें वाणिज्य विभाग, MSME मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, निर्यात संवर्द्धन परिषदें, कमोडिटी बोर्ड, वित्तीय संस्थान, उद्योग निकाय और राज्य सरकारें शामिल हैं।
    • विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGPT) कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
  • एकीकृत उप-योजनाएँ: EPM दो एकीकृत उप-योजनाओं के माध्यम से संचालित होता है जो एक साथ वित्त और गैर-वित्तीय सक्षमताओं को संबोधित करते हैं:
  • निर्यात प्रोत्साहन: यह MSMEs के लिये किफायती व्यापार वित्त, ब्याज सब्सिडी, फैक्टरिंग, निर्यातक क्रेडिट कार्ड, संपार्श्विक सहायता और ऋण संवर्द्धन जैसी वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
  • निर्यात दिशा: यह गैर-वित्तीय सहायता प्रदान करती है जैसे गुणवत्ता और अनुपालन में सहायता, ब्रांडिंग, व्यापार मेले, रसद और परिवहन सहायता और ज़िला-स्तरीय क्षमता निर्माण।
  • डिजिटल कार्यान्वयन और निगरानी:  EPM कागज़ रहित, एकीकृत प्रसंस्करण और तीव्र, पारदर्शी वितरण के लिये DGPT द्वारा संचालित डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग करता है।
    • इसका परिणाम-आधारित डिजिटल डिज़ाइन वैश्विक व्यापार परिवर्तनों के लिये समन्वित कार्यान्वयन और त्वरित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है।
  • क्षेत्रीय और क्षेत्रीय फोकस: EPM वैश्विक शुल्क वृद्धि से सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों को प्राथमिकता देता है, मिशन स्पष्ट रूप से MSME, पहली बार निर्यातकों और श्रम-गहन मूल्य शृंखलाओं को लक्षित करता है, जिससे समावेशी पहुँच सुनिश्चित होती है।   
    • निर्यात दिशा योजना के तहत, भारत के निर्यात आधार को बढ़ाने और वैश्विक बाज़ारों में अधिक समावेशी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये आंतरिक और कम निर्यात वाले ज़िलों को लक्षित सहायता प्रदान की जाती है।
  • नियामक और केंद्रीय बैंक का समर्थन: वर्ष 2025 में RBI ने भारतीय रिज़र्व बैंक (व्यापार राहत उपाय) दिशानिर्देश, 2025  जारी किया, जिसका उद्देश्य ऋण-सेवा तनाव को कम करना और व्यवहार्य निर्यात-उन्मुख व्यवसायों की निरंतरता को बढ़ावा देना है।
  • अपेक्षित परिणाम: लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिये बेहतर व्यापार वित्तपोषण, मज़बूत प्रमाणीकरण और गुणवत्ता अनुपालन, बेहतर ब्रांडिंग और वैश्विक दृश्यता और गैर-पारंपरिक ज़िलों से निर्यात में वृद्धि शामिल हैं।
    • ये परिणाम निर्यात-आधारित विकास का समर्थन करते हैं, आत्मनिर्भर भारत के अनुरूप हैं और भारत को एक अधिक प्रतिस्पर्द्धी वैश्विक व्यापार भागीदार बनाकर विकसित भारत @2047 की परिकल्पना को आगे बढ़ाते हैं।

 

भारत के निर्यात उद्योग की स्थिति क्या है?

  • निर्यात वृद्धि: भारत के निर्यात वर्ष 2023-24 में ऐतिहासिक स्तर पर 778.21 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गए, जो वर्ष 2013-14 की तुलना में 67% की तीव्र वृद्धि को दर्शाता है।
    • निर्यात में यह वृद्धि अल्पकालिक उतार-चढ़ाव नहीं, बल्कि विनिर्माण क्षेत्र के विस्तार, डिजिटल क्षमताओं में वृद्धि और बाज़ार विविधीकरण को प्रतिबिंबित करती है।
  • प्रमुख निर्यात बाज़ार: शीर्ष गंतव्य (2023-24) में अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, नीदरलैंड्स, चीन, सिंगापुर, यूनाइटेड किंगडम, सऊदी अरब, बांग्लादेश, जर्मनी और इटली शामिल हैं।
    • ये 10 देश कुल वस्तु-निर्यात का 51% हिस्सा हैं।
    • निर्यात पहुँच उत्तरी अमेरिका, यूरोपीय संघ, आसियान, पश्चिम एशिया और उत्तर-पूर्व एशिया में विस्तृत हुई है, जो भौगोलिक विविधता को दर्शाती है।
  • भारत के निर्यात संरचना का विकास: भारत की निर्यात संरचना में स्पष्ट उन्नयन हो रहा है, जो वस्त्र और बुनियादी कृषि जैसे कम मूल्य वाले सामानों से इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग वस्तुओं जैसे उच्च मूल्य विनिर्माण की ओर स्थानांतरित हो रही है।
    • सेवा क्षेत्र अब कुल निर्यात में लगभग 44% का योगदान करता है, जो भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को मज़बूत करता है।
    • चिकित्सा उपकरण, नवीकरणीय ऊर्जा घटक और उन्नत इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे नवोदित क्षेत्र भारत के निर्यात विविधीकरण और मूल्यवर्द्धन को और सुदृढ़ कर रहे हैं।

निर्यात को बढ़ावा देने के लिये भारत की प्रमुख पहलें क्या हैं?

पहल

उद्देश्य / मुख्य विशेषताएँ

प्रधानमंत्री गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान

यह बुनियादी ढाँचा नियोजन को एकीकृत करता है; बहु-मॉडल लॉजिस्टिक्स में सुधार करता है और पारगमन समय एवं लागत को कम करता है। 

राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति (NLP)

इसका लक्ष्य लॉजिस्टिक्स लागत में कमी लाना है; बहु-मॉडल संपर्कता और डिजिटल लॉजिस्टिक्स प्लेटफॉर्मों को बढ़ावा देना है। 

निर्यातकों के लिये ऋण गारंटी योजना (CGSE)

यह निर्यातकों, जिसमें MSME शामिल हैं, को 100% सरकारी गारंटी प्रदान करता है ताकि तरलता बढ़ाई जा सके और भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को सुदृढ़ किया जा सके। 

निर्यातित उत्पादों पर शुल्कों एवं करों में छूट (RoDTEP) 

यह GST के अंतर्गत शामिल नहीं किये गए अंतर्निहित करों/शुल्कों की प्रतिपूर्ति करता है ताकि निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार हो सके। 

राज्य और केंद्रीय करों व लेवी में छूट (ROSCTL)

यह वस्त्र और परिधान निर्यात पर राज्य तथा केंद्रीय करों की प्रतिपूर्ति करता है।

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ

यह इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, वस्त्र, ड्रोन आदि क्षेत्रों में विनिर्माण पैमाने और निर्यात को बढ़ावा देता है। 

TIES (निर्यात हेतु व्यापार अवसंरचना योजना)

यह परीक्षण प्रयोगशालाओं, ICD, शीत भंडारण और सीमा हाट जैसी निर्यात-संबंधित अवसंरचना का वित्तपोषण करता है।

मुक्त व्यापार समझौते (FTA)

UAE, ऑस्ट्रेलिया, EFTA आदि के साथ समझौतों के माध्यम से शुल्क में कटौती और बाज़ार तक पहुँच सुनिश्चित करता है। 

डिस्ट्रिक्ट ऐज़ एक्सपोर्ट हब (DEH) 

यह ज़िला-विशिष्ट उत्पादों को ब्रांडिंग, क्षमता निर्माण और लॉजिस्टिक्स सहायता के साथ बढ़ावा देता है। 

MSME लीन एवं ZED योजनाएँ 

यह गुणवत्ता में सुधार करता है, अपव्यय कम करता है और MSME को वैश्विक उत्पादन मानकों के साथ संरेखित करता है। 

निष्कर्ष

EPM एक एकीकृत, प्रौद्योगिकी-आधारित ढाँचा तैयार करता है जो भारत के निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत बनाता है। RBI के उपायों और क्रेडिट गारंटी के साथ मिलकर यह भारत की वैश्विक व्यापार में मज़बूती और स्थिति को बढ़ाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. निर्यात संवर्द्धन मिशन (EPM) के डिज़ाइन की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिये, जो निर्यात सुविधा के लिये एक एकीकृत, डिजिटल ढाँचा है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. निर्यात संवर्द्धन मिशन (EPM) क्या है?
EPM एक छह वर्षीय, डिजिटल रूप से सक्षम मिशन (वित्तीय वर्ष 2025–26 से 2030–31 के लिये 25,060 करोड़ रुपये का आवंटन) है, जो निर्यात प्रोत्साहन और निर्यात दिशा के माध्यम से निर्यात समर्थन को समेकित करता है ताकि MSME और श्रम-प्रधान निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके।

2. निर्यात प्रोत्साहन और निर्यात दिशा क्या हैं?
निर्यात प्रोत्साहन किफायती व्यापार वित्त (ब्याज़ सबवेंशन, फैक्टरिंग, गारंटी/संपार्श्विक सहायता) प्रदान करता है। निर्यात दिशा गुणवत्ता/अनुपालन सहायता, ब्रांडिंग, व्यापार मेले का समर्थन, भंडारण और ज़िला स्तर पर लॉजिस्टिक सुविधा प्रदान करता है।

3. क्रेडिट गारंटी योजना फॉर एक्सपोर्टर्स (CGSE) निर्यातकों का समर्थन कैसे करती है?
CGSE निर्यात क्रेडिट को 20,000 करोड़ रुपये तक बढ़ाता है और 100% सरकारी गारंटी (NCGTC के माध्यम से) प्रदान करता है, जिससे पात्र निर्यातकों, विशेषकर MSME को संपार्श्विक-मुक्त ऋण और अतिरिक्त कार्यशील पूंजी प्राप्त करने में सुविधा मिलती है।

सारांश

  • भारत ने निर्यात संवर्द्धन मिशन (EPM) लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य निर्यात-सहायता योजनाओं को एकीकृत करना और MSME व श्रम-प्रधान निर्यात को डिजिटल, परिणाम-आधारित तरीके से सशक्त बनाना है।
  • EPM निर्यात प्रोत्साहन (वित्तीय सहायता) और निर्यात दिशा (अवित्तीय सहायता) के माध्यम से संचालित होता है, जिसे DGFT के डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म तथा समन्वित संस्थागत प्रशासन द्वारा समर्थित किया जाता है।
  • भारत का निर्यात 2023–24 में 778.21 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचा, जिसे उच्च-मूल्य वाले विनिर्माण (इलेक्ट्रॉनिक्स, इंजीनियरिंग, फार्मा) और मज़बूत सेवा क्षेत्र ने संचालित किया, जो कुल निर्यात का लगभग 44% योगदान देता है।
  • पूरक पहलों—CGSE, PM गति शक्ति, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति, PLI योजनाएँ, मुक्त व्यापार समझौते (FTAs) और ज़िला स्तर के निर्यात हब—के माध्यम से लॉजिस्टिक्स, क्रेडिट की पहुँच, अनुपालन तथा बाज़ार विविधीकरण को सशक्त बनाकर निर्यात-आधारित वृद्धि को बनाए रखा जा रहा है, ताकि विकसित भारत @ 2047 की दिशा में कदम बढ़ाया जा सके।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न 1. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।

(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।

(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।

(d) निर्यात की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ता है।

उत्तर: (c)


प्रश्न 2. फरवरी 2006 से प्रभाव में आए SEZ अधिनियम, 2005 के कुछ निर्धारित उद्देश्य हैं। इस संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. अवसंरचना सुविधाओं का विकास। 
  2.  विदेशी स्रोतों से निवेश को बढ़ावा देना। 
  3.  केवल सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा देना।

उपर्युक्त में से कौन-से इस अधिनियम के उद्देश्य हैं?

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 3

(c) केवल 2 और 3

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न 3. ‘बंद अर्थव्यवस्था’ एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसमें: (2011)

(a) मुद्रा की आपूर्ति पूरी तरह से नियंत्रित होती है।

(b) घाटे का वित्तपोषण होता है।

(c) केवल निर्यात होता है।

(d) न तो निर्यात और न ही आयात होता है।

उत्तर: (d)

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