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डेली न्यूज़

  • 09 Apr, 2024
  • 38 min read
इन्फोग्राफिक्स

वन्यजीव संरक्षण पहल

Wildlife Conservation Initiatives

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शासन व्यवस्था

विश्व डोपिंग रोधी रिपोर्ट 2022

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी, राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी, डोपिंग रोधी, राष्ट्रीय डोपिंग रोधी अधिनियम, यूनेस्को

मेन्स के लिये:

खेलों में डोपिंग के नैतिक निहितार्थ, डोपिंग रोधी से संबंधित सरकारी नीतियों की प्रभावशीलता, भारत के डोपिंग रोधी प्रयास

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड

चर्चा में क्यों? 

विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (World Anti-Doping Agency- WADA) द्वारा जारी WADA: डोपिंग रोधी रिपोर्ट, 2022 में वैश्विक डोपिंग उल्लंघनों पर चौंकाने वाले आँकड़े सामने आए हैं, जो वैश्विक स्तर पर खेलों की अखंडता की रक्षा के लिये कड़े उपायों की आवश्यकता पर बल देते हैं।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  •  डोपिंग अपराधों में भारत विश्व स्तर पर अग्रणी:
    • भारत डोपिंग अपराधियों के उच्चतम प्रतिशत के साथ उभरा, जिसमें परीक्षण किये गए एथलीटों का प्रतिशत 3.26% था।
      • AAF एक WADA-मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला (WADA-Accredited Laboratory) की एक रिपोर्ट है, जो एक नमूने में निषिद्ध पदार्थ और/या उसके मेटाबोलाइट्स या मार्करों की उपस्थिति की पहचान करती है।
        • भारत की राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (National Anti-Doping Agency- NADA) द्वारा परीक्षण किये गए 3,865 नमूनों में से 125 में प्रतिकूल विश्लेषणात्मक निष्कर्ष (Adverse Analytical Findings- AAFs) आए, जिससे भारत 100 से अधिक सकारात्मक परिणामों वाला एकमात्र देश बन गया और 2,000 से अधिक नमूनों का परीक्षण करने वाले देशों की तुलना में सबसे अधिक हो गया।
    • परीक्षण किये गए नमूनों की संख्या में 11वें स्थान पर होने के बावजूद, भारत के डोपिंग उल्लंघनों ने रूस, अमेरिका, इटली और फ्राँस जैसे खेलों में प्रमुखता रखने वाले देशों को पीछे छोड़ दिया।
  • अन्य राष्ट्रों से तुलना:
    • 2,000 से अधिक नमूने एकत्र करने वाले देशों में 2.09% नमूनों के सकारात्मक परीक्षण (Test) के साथ दक्षिण अफ्रीका का स्थान भारत के बाद था।
    • चीन ने सबसे अधिक नमूनों (17,357) का परीक्षण किया, जिससे केवल 0.25% AAF का उत्पादन हुआ, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका (84) और रूस (85) ने सकारात्मक परिणामों की संख्या में भारत का अनुसरण किया।
  • परीक्षण और AAF में समग्र वृद्धि:
    • WADA ने वर्ष 2021 की तुलना में 2022 में अपने एंटी-डोपिंग एडमिनिस्ट्रेशन एंड मैनेजमेंट सिस्टम (ADAMS) में विश्लेषण और रिपोर्ट किये गए नमूनों की कुल संख्या में 6.4% की वृद्धि दर्ज की, जो खेल की अखंडता को बनाए रखने की दिशा में एक सकारात्मक प्रवृत्ति का संकेत है।
      • AAF का प्रतिशत 2021 में 0.65% से बढ़कर 2022 में 0.77% हो गया।
    • WADA के महानिदेशक ने डोपिंग से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये मूल्यों पर आधारित शिक्षा, खुफिया जानकारी, जाँच और अन्य रणनीतियों के साथ-साथ खुफिया नेतृत्त्व वाली रणनीतिक परीक्षण योजनाओं के महत्त्व पर बल दिया।

भारत के लिये इन निष्कर्षों के क्या निहितार्थ हैं?

  • एथलीटों के संबंध में चिंताएँ:
    • युवा एथलीटों में डोपिंग का प्रसार उनके शारीरिक और मानसिक विकास से संबंधित गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करता है।
      • डोपिंग एथलीटों के लिये अत्यधिक स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न करता है और उनके दीर्घकालिक कल्याण को कमज़ोर करता है।
    • भारत के लिये डोपिंग को रोकने और परिशुद्ध क्रीडा संस्कृति को बढ़ावा देने के उपायों को लागू करके अपने एथलीटों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा को प्राथमिकता देना अनिवार्य है।
  •  प्रतिष्ठा की हानि:
    • डोपिंग अपराधियों के उच्चतम प्रतिशत वाले देश के रूप में भारत का उभरना अंतर्राष्ट्रीय खेल समुदाय में इसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करता है।
    • डोपिंग का प्रसार भारतीय एथलीटों में विश्वास को कम कर सकता है तथा उनकी उपलब्धियों पर संदेह भी उत्पन्न कर सकता है, जिससे वैश्विक खेलों में भारत की विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है।
  • ओलंपिक 2024:
    • NADA द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2022 एवं मार्च 2023 के बीच भारत के कुल 142 एथलीट डोपिंग-संबंधित गतिविधियों में पकड़े गए थे।
    • डोपिंग उल्लंघन आने वाले ओलंपिक 2024 में भारतीय एथलीटों के लिये अयोग्यता का एक महत्त्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न कर सकता है, जिससे वे खेल प्रतियोगिता के उच्चतम स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने और अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के अवसर से वंचित हो सकते हैं।
    • अयोग्यता का खतरा भारत के लिये डोपिंग को प्रभावी ढंग से संबोधित करने तथा ओलंपिक में इमानदारीपूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
  • परीक्षण प्रयासों में विसंगतियाँ:
    • जबकि परीक्षण किये गए नमूनों की कुल संख्या वर्ष 2021 में 1,794 से बढ़कर वर्ष 2022 में 3,865 हो गई, यह चीन जैसे देशों की तुलना में कम है, जिसने 17,357 नमूनों (भारत से लगभग पाँच गुना) का परीक्षण किया, लेकिन केवल 33 सकारात्मक परिणाम ही प्राप्त हुए।
      • परीक्षण में वृद्धि के बावजूद, सकारात्मक मामलों की संख्या चिंता का विषय बनी हुई है, जो अधिक व्यापक उपायों की आवश्यकता का संकेत देती है।
  • विनियामक निरीक्षण:
    • डोपिंग अपराधियों की सूची में शीर्ष पर भारत की स्थिति चिंता का विषय है और साथ ही यह देश के डोपिंग रोधी ढाँचे के भीतर प्रणालीगत मुद्दों को भी उजागर करती है।
      • डोपिंग पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाने हेतु नियामक ढाँचे को मज़बूत करने और निगरानी तंत्र को बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है।
  • आर्थिक प्रभाव:
    • डोपिंग संकट के आर्थिक परिणाम हो सकते हैं, जिससे भारतीय खेलों से जुड़े प्रायोजन, निवेश एवं राजस्व स्रोत प्रभावित हो सकते हैं।
    • भारत के खेल उद्योग और अर्थव्यवस्था को बनाए रखने तथा विकसित करने के लिये खेलों में ईमानदारी को बनाए रखना आवश्यक है।

एंटी डोपिंग क्या है?

  • परिचय:
    • डोपिंग खेल प्रतियोगिताओं में दूसरों पर बढ़त प्राप्त करने के लिये कृत्रिम एवं प्राय: अवैध पदार्थों का सेवन करने का कार्य है (उदाहरण के लिये: एनाबॉलिक स्टेरॉयड, मानव विकास हार्मोन, उत्तेजक आदि।)
      • डोपिंग उत्पादों का प्राय: अवैध रूप से उत्पादन, तस्करी एवं वितरण किया जाता है। चूँकि इन्हें सार्वजनिक उपयोग के लिये शायद ही कभी मंज़ूरी दी जाती है, इसलिये इनका सेवन हानिकारक है तथा पेशेवर एवं शौकिया तौर पर खेल से जुड़े लोगों, दोनों के लिये गंभीर स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न कर सकता है।
    • एंटी डोपिंग, एथलेटिक प्रदर्शन में सुधार के लिये डोपिंग को निषेध करती है।
  • एंटी डोपिंग से संबंधित भारत की पहल:
    • राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी (NADA):
      • NADA की स्थापना वर्ष 2005 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में की गई थी, जिसका उद्देश्य भारत में डोपिंग-मुक्त तरीके से खेल संपन्न कराना था।
      • NADA भारत की डोपिंग रोधी गतिविधियों की योजना, कार्यान्वयन एवं समन्वय के लिये ज़िम्मेदार है। यह विश्व डोपिंग रोधी एजेंसी (VADA) संहिता और विनियमों का पालन करता है।
    • राष्ट्रीय डोपिंग रोधी अधिनियम 2022:
      • यह राष्ट्रीय डोपिंग रोधी अधिनियम, 2022 NADA को कानूनी सहायता प्रदान करता है। खेलों में डोपिंग रोधी गतिविधियों को विनियमित करने के साथ ही खेलों में डोपिंग के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को प्रभावी बनाने के लिये।
        • इस अधिनियम का उद्देश्य घरेलू तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने एवं तैयारी करते समय सत्यनिष्ठा के उच्चतम मानकों को सुनिश्चित करना है।
    • राष्ट्रीय डोप परीक्षण प्रयोगशाला (NDTL):
      • युवा मामले और खेल मंत्रालय के तहत NDTL, डोप विश्लेषण के क्षेत्र में नमूना विश्लेषण एवं अनुसंधान कार्यों के लिये ज़िम्मेदार है।
      • NDTL WADA-मान्यता प्राप्त है, यह मान्यता इसकी परीक्षण प्रक्रियाओं में गुणवत्ता और सटीकता के प्रति NDTL की प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है।

विश्व एंटी डोपिंग एजेंसी (WADA):

  • वैश्विक स्तर पर खेलों में डोपिंग से बचने के लिये अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) द्वारा इसे वर्ष 1999 में स्थापित किया गया। WADA का प्रशासन और फंडिंग खेल आंदोलन तथा विश्व की सरकारों के बीच समान साझेदारी पर आधारित है।
    • IOC एक गैर-लाभकारी स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जो खेल के माध्यम से एक बेहतर दुनिया के निर्माण के लिये प्रतिबद्ध है। वर्ष 1894 में स्थापित यह संस्था ओलंपिक गतिविधियों का सर्वोच्च प्राधिकरण है, जो ओलंपिक परिवार में शामिल सभी पक्षों के बीच सहयोग को बढ़ावा देता है।
  • इसका मिशन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेलों में डोपिंग के विरुद्ध संघर्ष को बढ़ावा देना और समन्वय करना है।
  • मुख्यालय: मॉन्ट्रियल (कनाडा) 
  • विश्व डोपिंग रोधी संहिता (कोड) WADA द्वारा निर्मित मुख्य दस्तावेज़ है, जो खेल संगठनों और लोक प्राधिकरणों के बीच एंटी डोपिंग नीतियों, नियमों एवं विनियमों में सामंजस्य स्थापित करता है।
    • इसे एंटी डोपिंग नीतियों में सामंजस्य स्थापित करने और यह सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, कि मानक सभी एथलीटों के लिये समान हैं।
  • WADA निषिद्ध सूची (WADA Prohibited List) खेलों में प्रतिबंधित पदार्थों और तरीकों की पहचान के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानक है।
    • इसे प्रतिवर्ष अद्यतन किया जाता है तथा यह प्रतिस्पर्द्धा के अंदर और बाहर, दोनों परिदृश्यों के साथ-साथ विशिष्ट खेलों पर भी लागू होता है।

आगे की राह

  • सतर्कता बढ़ाना:
    • डोपिंग घोटालों से देश की प्रतिष्ठा को धूमिल होने से रोकने के लिये अधिकारियों को सावधानी से कदम उठाने और सतर्कता बरतने की आवश्यकता है।
    • नाडा को एथलीटों, विशेषकर हाई-प्रोफाइल एथलीटों के बीच डोपिंग का पता लगाने और उसे रोकने के लिये परीक्षण प्रयासों में तेज़ी लानी चाहिये।
    • NADA, राष्ट्रीय खेल महासंघों, भारतीय खेल प्राधिकरण और संबंधित गैर सरकारी संगठनों सहित सभी हितधारकों को इस मुद्दे से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये सहयोग करना चाहिये।
  • चीन का दृष्टिकोण:
    • चीन के दृष्टिकोण के समान एथलीटों और कोचों के लिये जेल के सज़ा के साथ डोपिंग को अपराध बनाने पर विचार।
    • चीन ने खेलों में डोपिंग को अपराध घोषित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप डोपिंग के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट आई।
      • इन नियमों के तहत एथलीटों को प्रतिबंधित पदार्थों का उपयोग करने के लिये प्रोत्साहित करने वाले व्यक्तियों को दंड के रूप में तीन वर्ष तक की सज़ा और ज़ुर्माना हो सकता है। डोपिंग के आयोजकों (Organisers of doping) को और भी कठोर दंड मिल सकता है, जानबूझकर एथलीटों को प्रतिबंधित पदार्थ प्रदान करना भी एक दाण्डिक अपराध माना जाता है।
    • WADA की वर्ष 2022 की रिपोर्ट में चीन के पास सख्त सज़ा की प्रभावशीलता को प्रदर्शित करने वाले काफी कम सकारात्मक परिणाम थे।
  • शिक्षा: 
    • एथलीटों को डोपिंग के खतरों के बारे में शिक्षित करने और पूरक आहार पर उचित मार्गदर्शन प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • डोपिंग का पता लगाना:
    • विकसित हो रहे डोपिंग तरीकों से आगे रहने के लिये नवीन तकनीकों का विकास और कार्यान्वयन करना। उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों को लक्षित करने के लिये एथलीट डेटा, प्रतिस्पर्द्धा के रुझान और मुखबिरों (whistleblower) द्वारा जानकारी का उपयोग करना।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत एथलीटों के बीच डोपिंग उल्लंघनों में चिंताजनक वृद्धि को कैसे संबोधित कर सकता है और खेलों की अखंडता की रक्षा कैसे कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. खिलाड़ी ओलंपिक्स में व्यक्तिगत विजय और देश के गौरव के लिये भाग लेता है; वापसी पर, विजेताओं पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा नकद प्रोत्साहनों की बौछार की जाती है। प्रोत्साहन के तौर पर पुरस्कार कार्यविधि के तर्काधार के मुकाबले, राज्य प्रायोजित प्रतिभा खोज और उसके पोषण के गुणावगुण पर चर्चा कीजिये। (2014)


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सेमीकंडक्टर चिप विनिर्माण प्रौद्योगिकी

प्रिलिम्स के लिये:

अर्द्धचालक (सेमीकंडक्टर), उन्नत कंप्यूटिंग विकास केंद्र (सी-डैक), महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना, उद्योग 4.0, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन 

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में सेमीकंडक्टिंग उपकरणों का महत्त्व, इलेक्ट्रॉनिक्स और अर्द्धचालक/सेमीकंडक्टर उद्योग को बढ़ावा देने की आवश्यकता, भारत को आत्मनिर्भर बनाने में इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग की भूमिका

स्रोत द हिंदू

चर्चा में क्यों

हाल ही में टाटा समूह ने 2026 में 28nm (नैनोमीटर) चिप लॉन्च करने की योजना के साथ गुजरात में 300 मिलीमीटर वेफर फैब्रिकेशन प्लांट स्थापित करने के लिये ताइवान के PSMC के साथ सहयोग किया।

  • भारत सरकार ने हाल ही में गुजरात व असम में दो असेंबली और परीक्षण संयंत्रों को भी मंज़ूरी दी है।

अर्द्धचालक/सेमीकंडक्टर चिप क्या है?

    • परिचय:
      • अर्द्धचालकों/सेमीकंडक्टर: अर्द्धचालकों में कंडक्टर और इंसुलेटर के बीच विद्युत चालकता के गुण होते हैं जिन्हें डोपेंट पेश करके संशोधित किया जा सकता है।
      • सेमीकंडक्टर चिप्स, ट्रांज़िस्टर, फैब्रिकेशन टेक्नोलॉजी और वेफर्स इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की कार्यक्षमता के लिये आवश्यक अन्योन्याश्रित घटक हैं।
        • ट्राँज़िस्टर विशिष्ट तकनीकों का उपयोग करके वेफर्स पर निर्मित सेमीकंडक्टर चिप्स के बिल्डिंग ब्लॉक के रूप में कार्य करते हैं, जो आधुनिक तकनीक को शक्ति देने वाले जटिल उपकरणों के निर्माण को सक्षम करते हैं।
      • सेमीकंडक्टर चिप्स:
        • यह सेमीकंडक्टर (सिलिकॉन या जर्मेनियम) से बना एक छोटा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है, जो अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के बेसिक बिल्डिंग ब्लॉक के रूप में कार्य करता है।
        • इन चिप्स में एक नाखून से भी छोटी चिप पर अरबों माइक्रोस्कोपिक स्विच हो सकते हैं।
        • सेमीकंडक्टर चिप का मूल घटक छोटे ट्रांजिस्टर से निर्मित एक सिलिकॉन वेफर है, जो विभिन्न कम्प्यूटेशनल निर्देशों के अनुसार विद्युत् प्रवाह को नियंत्रित करता है।
        • यह विभिन्न कार्य करता है, जैसे डेटा संसाधित करना, जानकारी संग्रहीत करना या इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को नियंत्रित करना आदि।
        • ये स्मार्टफोन, कंप्यूटर और एकीकृत सर्किट सहित लगभग प्रत्येक आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं।
      • ट्राँज़िस्टर:
        • ट्राँजिस्टर सेमीकंडक्टर डिवाइस के मूलभूत घटक हैं, जो इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल और विद्युत शक्ति को बढ़ाते या स्विच करते हैं।
        • ये आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के बिल्डिंग ब्लॉक हैं, जो एम्पलीफायरों, स्विच और डिजिटल सर्किट सहित विभिन्न अनुप्रयोगों में उपयोग किये जाते हैं।
        • फैब्रिकेशन टेक्नोलॉजी:
        • फैब्रिकेशन टेक्नोलॉजी से तात्पर्य चिप्स और ट्राँज़िस्टर जैसे सेमीकंडक्टर डिवाइसेस के  निर्माण की प्रक्रिया से है। इसमें वेफर उपक्रम (wafer preparation), फोटोलिथोग्राफी, नक्काशी, डोपिंग और पैकेजिंग सहित कई महत्त्वपूर्ण चरण शामिल हैं।
      • वेफर:
        • वेफर (जिसे स्लाइस या सब्सट्रेट भी कहा जाता है) अर्द्धचालक सामग्री का एक पतला टुकड़ा होता है, जैसे कि क्रिस्टलीय सिलिकॉन, जिसका उपयोग एकीकृत सर्किट के निर्माण के लिये किया जाता है।
        • एक सेमीकंडक्टर चिप का उत्पादन एक गोलाकार सेमीकंडक्टर वेफर पर चिप्स की एक शृंखला को प्रिंट करके किया जाता है, जैसे डाक टिकटों को एक शीट पर मुद्रित किया जाता है और फिर एक- एक करके काटा जाता है।
        • उद्योग में बड़े वेफर आकार एक ही वेफर र अधिक चिप्स मुद्रित करने में सक्षम बनाते हैं, जिससे तकनीकी चुनौतियों और प्रारंभिक पूंजीगत व्यय के बावजूद, चिप उत्पादन की लागत में तेज़ी कमी आती है।

    Semiconductor

    भारत के सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिति क्या है?

    • भारत अपनी बड़ी बाज़ार क्षमता, प्रतिभा और सरकारी समर्थन के साथ मिलकर सक्रिय रूप से एक मज़बूत सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र के विकास पर काम कर रहा है। भारत का लक्ष्य आयात पर निर्भरता कम करना और घरेलू विनिर्माण क्षमताएँ स्थापित करना है।
    • 1990 के दशक से भारत का स्थापित चिप विनिर्माण उद्योग इसके सेमीकंडक्टर विनिर्माण प्रयासों में सहायता करेगा, जो इलेक्ट्रॉनिक्स तथा कंप्यूटर इंजीनियरों से परे विभिन्न पेशेवरों के लिये अवसर प्रदान करेगा।
    • प्रमुख लाभ:
      • बाज़ार की संभावनाएँ: भारत की तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या तथा बढ़ता मध्यम वर्ग सेमीकंडक्टर उत्पादों की मज़बूत माँग उत्पन्न करता है।
        • भारत का सेमीकंडक्टर बाज़ार वर्ष 2026 तक 55 बिलियन डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है, जो घरेलू विनिर्माण पर इसके फोकस को दर्शाता है।
      • प्रतिभा पूल: भारत घरेलू चिप विनिर्माण कौशल को प्रोत्साहित करते हुए कौशल विकास के साथ नवाचार पर भी ज़ोर देता है।

    Status_of_Global_Semiconductor_Fabrication_Capacity

    दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

    प्रश्न. भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र में विकास को बढ़ाने के लिये आवश्यक बाधाओं, नीतिगत सुझावों तथा संभावित परिवर्तनों का अन्वेषण कीजिये।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. निम्नलिखित में से किस लेज़र प्रकार का उपयोग लेज़र प्रिंटर में किया जाता है? (2008) 

    (a) डाई लेज़र 
    (b) गैस लेज़र
    (c) सेमीकंडक्टर लेज़र
    (d) एक्सीमर लेज़र 

    उत्तर: (c)


    भारतीय राजनीति

    संवैधानिक नैतिकता

    प्रिलिम्स के लिये:

    संवैधानिक नैतिकता, संवैधानिक नैतिकता के स्तंभ, सशर्त नैतिकता और भारतीय संविधान, राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत, मौलिक अधिकार, सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2023, चुनाव आयोग के लिये नियुक्ति समिति

    मेन्स के लिये:

    भारत में संवैधानिक नैतिकता को चुनौतियाँ, भारत में संवैधानिक नैतिकता से संबंधित न्यायिक घोषणाएँ।

    स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

    चर्चा में क्यों? 

    भारत जैसे संसदीय लोकतंत्र में भ्रष्टाचार के आरोप में एक सेवारत मुख्यमंत्री की हालिया गिरफ्तारी कानूनी, राजनीतिक और संवैधानिक चिंताओं को जन्म देती है तथा संवैधानिक नैतिकता के साथ इसकी स्थिरता पर प्रश्न उठाती है।

    संवैधानिक नैतिकता क्या है? 

    • परिचय: 
      • संवैधानिक नैतिकता (Constitutional morality - CM) एक अवधारणा है जो संविधान के अंतर्निहित सिद्धांतों और मूल्यों को संदर्भित करती है, जो सरकार व नागरिक दोनों के कार्यों का मार्गदर्शन करती है।
        • संवैधानिक नैतिकता की अवधारणा 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश क्लासिकिस्ट जॉर्ज ग्रोट द्वारा प्रतिपादित की गई थी।
          • उन्होंने मुख्यमंत्री को “देश के संविधान के स्वरूपों के प्रति सर्वोपरि श्रद्धा रखने वाला बताया।”
        • भारत में इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने किया था।
    • संवैधानिक नैतिकता के स्तंभ: 
      • संवैधानिक मूल्य: संविधान में निहित मूल मूल्यों, जैसे न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, धर्मनिरपेक्षता और व्यक्ति की गरिमा को कायम रखना।
      • विधि का शासन: कानून की सर्वोच्चता को कायम रखना, जहाँ सरकारी अधिकारियों सहित सभी  कानून के अधीन है और इसके लिये जवाबदेह है।
      • लोकतांत्रिक सिद्धांत: एक प्रतिनिधि लोकतंत्र के कामकाज को सुनिश्चित करना जहाँ नागरिकों को निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भाग लेने और अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने का अधिकार है।
      • मौलिक अधिकार: संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों, जैसे समानता का अधिकार, वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जीवन व वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार, आदि का सम्मान एवं सुरक्षा करना।
      • शक्तियों का पृथक्करण: किसी भी एक शाखा को अत्यधिक शक्तिशाली बनने से रोकने के लिये सरकार की विधायी, कार्यकारी और न्यायिक शाखाओं के बीच शक्तियों का पृथक्करण एवं संतुलन बनाए रखना।
      • नियंत्रण और संतुलन: ऐसे तंत्र और संस्थान स्थापित करना जो सत्ता के दुरुपयोग को रोकने तथा व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिये जाँच एवं संतुलन प्रदान करते हैं।
      • संवैधानिक व्याख्या: संविधान की इस तरह से व्याख्या करना कि बदलती सामाजिक आवश्यकताओं और परिस्थितियों के अनुरूप ढलते हुए इसके अंतर्निहित सिद्धांतों एवं मूल्यों को बढ़ावा मिले।
      • नैतिक शासन व्यवस्था: शासन में नैतिक आचरण, सार्वजनिक सेवा में पारदर्शिता, जवाबदेही और सत्यनिष्ठा सुनिश्चित करना।
    • सशर्त नैतिकता और भारतीय संविधान: 
      • भारतीय संविधान में "संवैधानिक नैतिकता" शब्द का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है।
        • यह अवधारणा संविधान के मूल सिद्धांतों में अंतर्निहित है, जो न्याय, समानता और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों पर बल देती है।
        • ये सिद्धांत संपूर्ण संविधान में निहित हैं, जिसमें प्रस्तावना, मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्व शामिल हैं।
      • इसका सार उच्चतम न्यायालय के विभिन्न निर्णयों में भी परिलक्षित होता है।
    • संवैधानिक नैतिकता को कायम रखने वाले निर्णय:
      • केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य, 1973: इस मामले ने "बुनियादी ढाँचा सिद्धांत" की स्थापना की, जो अनिवार्य रूप से संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को सीमित करता है और सुनिश्चित करता है कि इसके मूल सिद्धांत स्थिर रहें।
        • इसे न्यायालय द्वारा संविधान की भावना को बरकरार रखने के प्रारंभिक उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है।
      • एस.पी. गुप्ता मामला (प्रथम न्यायाधीश मामला), 1982: सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक उल्लंघन को संवैधानिक नैतिकता का गंभीर उल्लंघन करार दिया है।
      • नाज़ फाउंडेशन बनाम NCT दिल्ली सरकार, 2009: इस फैसले ने वयस्कों के बीच सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया।
        • न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि "संवैधानिक नैतिकता" नैतिकता की सामाजिक धारणाओं पर हावी होनी चाहिये, व्यक्तिगत अधिकारों को बनाए रखना चाहिये।
      • मनोज नरूला बनाम भारत संघ, 2014: सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि "संवैधानिक नैतिकता का अर्थ संविधान के मानदंडों के समक्ष झुकाव है और ऐसे तरीके से कार्य नहीं करना है जो मनमाने तरीके से कार्रवाई के कानून के नियम का उल्लंघन हो।
      • इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य (सबरीमाला मामला), 2018: न्यायालय ने सबरीमाला मंदिर से एक निश्चित आयु वर्ग की महिलाओं को बाहर करने की प्रथा को रद्द कर दिया।
        • इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि "संवैधानिक नैतिकता" में न्याय, समानता, स्वतंत्रता और भाईचारे के सिद्धांत शामिल हैं, जो महिलाओं के प्रवेश को प्रतिबंधित करने वाले धार्मिक रीति-रिवाज़ों से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।
      • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ, 2018: इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को हटा दिया गया, जो समलैंगिकता को अपराध मानती है।
    • भारत में संवैधानिक नैतिकता के समक्ष चुनौतियाँ: 
      • राजनीतिक हस्तक्षेप: महत्त्वपूर्ण चुनौतियों में से एक संवैधानिक निकायों और संस्थानों के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप है।
      • न्यायिक सक्रियता बनाम न्यायिक अवरोध: न्यायिक सक्रियता को न्यायिक अवरोध के साथ संतुलित करना एक और चुनौती है।
        • जबकि न्यायिक सक्रियता अधिकारों की सुरक्षा और संवैधानिक मूल्यों के प्रवर्तन को बढ़ावा दे सकती है, अत्यधिक सक्रियता कार्यपालिका व विधायिका के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर सकती है।
      • प्रवर्तन और अनुपालन: एक मज़बूत संवैधानिक ढाँचा होने के बावजूद, प्रभावी प्रवर्तन और अनुपालन सुनिश्चित करना एक चुनौती बनी हुई है।
        • कार्यान्वयन में अंतराल, न्याय वितरण में देरी और आम जनता के बीच संवैधानिक अधिकारों के बारे में जागरूकता की कमी इस चुनौती में योगदान करती है।

    आगे की राह

    • संस्थानों को मज़बूत करना: संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखने के लिये निर्वाचन आयोग, राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी (NIA) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) जैसी संस्थानों की स्वतंत्रता, अखंडता एवं प्रभावशीलता को मज़बूत करना आवश्यक है।
      • पारदर्शी नियुक्तियाँ सुनिश्चित करना, राजनीतिक हस्तक्षेप कम करना और जवाबदेही तंत्र को बढ़ाना महत्त्वपूर्ण कदम हैं।
    • नागरिक शिक्षा को बढ़ावा देना: जनता, विशेषकर युवाओं के बीच संवैधानिक अधिकारों और मूल्यों के बारे में जागरूकता व समझ बढ़ाना महत्त्वपूर्ण है।
      • स्कूलों और कॉलेजों में नागरिक शिक्षा कार्यक्रम संवैधानिक ज़िम्मेदारी की भावना उत्पन्न कर सकते हैं तथा नागरिकों को लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में सार्थक रूप से भाग लेने के लिये सशक्त बना सकते हैं।
    • न्याय तक पहुँच बढ़ाना: संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखने के लिये, विशेष रूप से हाशिये पर रहने वाले और कमज़ोर समुदायों के लिये न्याय तक पहुँच में सुधार करना आवश्यक है।
      • इसमें कानूनी सहायता सेवाओं का विस्तार करना, न्यायिक बैकलॉग को कम करना, कानूनी प्रक्रियाओं को सरल बनाना और वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को बढ़ावा देना शामिल है।
    • नैतिक नेतृत्व को प्रोत्साहित करना: संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिये सभी स्तरों पर नैतिक नेतृत्व और शासन प्रथाओं को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।
      • नेताओं और सार्वजनिक अधिकारियों को ईमानदारी, जवाबदेही एवं सार्वजनिक हित की सेवा के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करनी चाहिये, जिससे समाज के लिये एक सकारात्मक उदाहरण स्थापित किया जा सके।
    • उभरती चुनौतियों को अपनाना: तकनीकी प्रगति, वैश्वीकरण और पर्यावरण संबंधी चिंताओं जैसी संवैधानिक नैतिकता के सामने उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये कानूनी एवं संस्थागत ढाँचे को लगातार अपनाना प्रासंगिकता तथा प्रभावशीलता के लिये आवश्यक है।

    क्या भारत में मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तारी से छूट नहीं है?

    • संवैधानिक रूप से केवल भारत के राष्ट्रपति तथा राज्यों के राज्यपालों को अपने कार्यकाल के समापन तक नागरिक एवं आपराधिक कार्यवाही से छूट प्राप्त है।  
    • संवैधानिक रूप से, केवल भारत के राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों को अपने कार्यकाल के समापन तक नागरिक एवं आपराधिक कार्यवाही से छूट प्राप्त है।
      • संविधान के अनुच्छेद 361 में कहा गया है कि ये अधिकारी अपने आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में किये गए कार्यों के लिये किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं हैं।
    • हालाँकि, यह छूट प्रधानमंत्रियों अथवा मुख्यमंत्रियों तक विस्तारित नहीं है, जो संविधान द्वारा समर्थित विधि के समक्ष समानता के सिद्धांत के अधीन हैं।
      • हालाँकि, किसी को गिरफ्तार करने से वह स्वतः ही अयोग्य नहीं हो जाता।

    दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

    प्रश्न. न्यायिक सक्रियता जैसे कारकों पर विचार करते हुए, भारत में संवैधानिक नैतिकता के समक्ष समकालीन चुनौतियों का आकलन कीजिये।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

    मेन्स:

    प्रश्न: 'संवैधानिक नैतिकता' शब्द का क्या अर्थ है? संवैधानिक नैतिकता को किस प्रकार बनाए रखा जा सकता है? (2019)


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