इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

राजनीति का अपराधीकरण

  • 06 May 2023
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

राजनीति का अपराधीकरण, लोकतांत्रिक सुधार संघ, भ्रष्टाचार, कानून की अवमानना, काला धन, RP अधिनियम 1951

मेन्स के लिये:

राजनीति का अपराधीकरण, इसके कारण और निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकतांत्रिक सुधार संघ (Association for Democratic Reforms- ADR) ने खुलासा किया है कि वर्ष 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले कर्नाटक के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों में आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई है, जो राजनीति के अपराधीकरण के मुद्दे को उजागर करता है।

  • ADR ने चुनाव लड़ने के संबंध में गंभीर अपराधों के दोषी उम्मीदवारों की स्थायी अयोग्यता की सिफारिश की है। हालाँकि ऐसी अयोग्यताओं को अभी तक लागू नहीं किया गया है।

राजनीति का अपराधीकरण:

  • परिचय:
    • राजनीति के अपराधीकरण को उस स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है जब अपराधी सरकार में बने रहने के लिये राजनीति में भाग लेते हैं, यानी चुनाव लड़ते हैं और संसद एवं राज्य विधानसभाओं हेतु चुने जाते हैं।
    • यह बढ़ता हुआ खतरा समाज हेतु एक बड़ी समस्या बन गया है, जो लोकतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों को प्रभावित कर रहा है, जैसे चुनावों में निष्पक्षता, कानून का पालन एवं जवाबदेह होना।
  • वर्तमान स्थिति:
    • ADR के आँकड़ों के अनुसार, भारत में संसद हेतु चुने गए आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों की संख्या वर्ष 2004 से बढ़ती जा रही है।
    • वर्ष 2004 में 24% सांसदों पर आपराधिक मामले लंबित थे, जो वर्ष 2019 में बढ़कर 43% हो गए।
    • फरवरी 2023 में दायर एक याचिका में दावा किया गया था कि वर्ष 2009 से घोषित आपराधिक मामलों वाले सांसदों की संख्या में 44% की वृद्धि हुई है।
      • वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में 159 सांसदों ने अपने उपर गंभीर आपराधिक मामलों की घोषणा की थी, जिनमें बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध शामिल हैं।

राजनीति के अपराधीकरण का कारण:

  • वोट बैंक:
    • उम्मीदवार और राजनीतिक दल अक्सर वोट खरीदने और अन्य गैर-कानूनी प्रथाओं तथा ऐसे लोगों का सहारा लेते हैं, जिन्हें आमतौर पर "गुंडा" कहा जाता है।
    • राजनेताओं और उनके निर्वाचन क्षेत्रों के बीच घनिष्ठ संबंध एक ऐसा वातावरण तैयार करता है जो व्यक्तिगत लाभ के लिये सत्ता और संसाधनों के दुरुपयोग को प्रोत्साहित करता है तथा भ्रष्टाचार एवं आपराधिक गतिविधियों को जन्म देता है। राजनीतिक अपराध की इस संस्कृति को अक्सर इन संबंधों के कारण बल मिलता है।
  • भ्रष्टाचार:
    • चुनाव लड़ने वाले अधिकांश उम्मीदवारों को धन, निधि और दान की आवश्यकता होती है। यह ध्यान रखना उचित है कि भ्रष्टाचार सीधे तौर पर कानून की अवमानना को जन्म देता है।
    • कानून की अवमानना और राजनीति के अपराधीकरण के बीच सीधा संबंध है। जब कानून की अवमानना ​​राजनीति के अपराधीकरण के साथ जुड़ जाती है, तो यह भ्रष्टाचार को जन्म देती है।
  • निहित स्वार्थ:
    • लोग आमतौर पर सामुदायिक हितों के एक संकीर्ण पूर्वाग्रही दृष्टिकोण के तहत मतदान करते हैं और राजनेताओं की आपराधिक पृष्ठभूमि की अनदेखी कर देते हैं।
    • इससे एक ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जिसमें आपराधिक पृष्ठभूमि वाले राजनेताओं को केवल इसलिये चुना जाता है क्योंकि वे अपने कार्यों हेतु जवाबदेह होने के बजाय किसी विशेष समुदाय के हितों के साथ संरेखित होते हैं।
  • बाहुबल:
    • राजनेता चुनावों के दौरान भ्रष्टाचार और बाहुबल को खत्म करने के वादे करते हैं परंतु शायद ही कभी पूरा करते हैं।
    • फर्स्ट पास्ट द पोस्ट (FPTP) प्रणाली सबसे अधिक मत पाने वाले उम्मीदवार का पक्ष लेती है। बाहुबल का उपयोग करने के पीछे विचारधारा यह है कि भय और हिंसा दलों को जीतने में मदद कर सकती है यद्यपि वे विश्वास हासिल नहीं कर सकते हैं।
      • FPTP प्रणाली को साधारण बहुमत प्रणाली के रूप में भी जाना जाता है। इस मतदान पद्धति में किसी निर्वाचन क्षेत्र में सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को विजेता घोषित किया जाता है।
    • यह राजनीतिक दलों और अपराधियों के बीच एक गंभीर गठजोड़ बनाता है।
  • धन बल:
    • काला धन और माफिया द्वारा दिया जाने वाला फंड राजनीति के अपराधीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। धन के इन अवैध स्रोतों का उपयोग वोट खरीदने और चुनाव जीतने के लिये किया जाता है, जिससे राजनीति के अपराधीकरण में वृद्धि होती है।
  • अकुशल शासन:
    • देश का अकुशल शासन भी राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चुनाव की प्रक्रिया को नियंत्रित करने हेतु उचित कानूनों और नियमों का अभाव होता है।

राजनीति के अपराधीकरण के निहितार्थ:

  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांत के खिलाफ: यह एक उपयुक्त उम्मीदवार का चुनाव करने हेतु मतदाताओं की पसंद को सीमित करता है।
    • यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लोकाचार के खिलाफ है जो लोकतंत्र का आधार है।
  • सुशासन को प्रभावित करना: प्रमुख समस्या यह है कि कानून तोड़ने वाले कानून निर्माता बन जाते हैं, यह सुशासन प्रदान करने में लोकतांत्रिक प्रक्रिया की प्रभावशीलता को प्रभावित करता है।
    • लोकतांत्रिक व्यवस्था में ये अस्वास्थ्यकर प्रवृत्तियाँ भारत की सरकारी संस्थाओं की प्रकृति और उसके चुने हुए प्रतिनिधियों की गुणवत्ता की खराब छवि को दर्शाती है।
  • लोक सेवकों की सत्यनिष्ठा को प्रभावित करना: काले धन के प्रचलन से राजनेताओं के लिये वोट खरीदना और अपने पदों को सुरक्षित करना आसान हो जाता है, जिससे ऐसी स्थिति पैदा हो जाती है जहाँ भ्रष्ट आचरण सामान्यतः राजनीतिक प्रणाली का हिस्सा बन जाते हैं।
    • सामाजिक वैमनस्य का कारण: यह समाज में हिंसा की संस्कृति का परिचय देता है और युवाओं के अनुसरण के लिये एक अनुपयुक्त मिसाल कायम करता है तथा शासन प्रणाली के रूप में लोकतंत्र में लोगों के विश्वास को कम करता है।

आपराधिक छवि वाले उम्मीदवारों की अयोग्यता के विधायी पहलू:

  • इस संबंध में भारतीय संविधान यह निर्दिष्ट नहीं करता है कि संसद, विधानसभा या किसी अन्य विधानमंडल के लिये चुनाव लड़ने से किसी व्यक्ति को किन आधारों पर अयोग्य ठहराया जा सकता है?
  • जनप्रतिनिधित्त्व अधिनियम 1951 में विधायिका का चुनाव लड़ने के लिये किसी व्यक्ति को अयोग्य घोषित करने के मानदंड का उल्लेख है।
    • अधिनियम की धारा 8 कुछ अपराधों के लिये दोषी ठहराए जाने पर चुनाव लड़ने हेतु अयोग्यता प्रदान करती है, जिसके अनुसार दो वर्ष से अधिक सज़ायाफ्ता व्यक्ति कारावास की अवधि समाप्त होने के बाद छह वर्ष तक चुनाव में खड़ा नहीं हो सकता है।
    • हालाँकि कानून उन व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से नहीं रोकता है जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, इसलिये आपराधिक मामलों वाले उम्मीदवारों की अयोग्यता इन मामलों में उनकी सज़ा पर निर्भर करती है।

राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ पहल/सिफारिशें:

  • वर्ष 1983 में राजनीति के अपराधीकरण पर वोहरा समिति का गठन राजनीतिक-आपराधिक गठजोड़ की सीमा की पहचान करने और राजनीति के अपराधीकरण से प्रभावी ढंग से निपटने के तरीकों की सिफारिश करने के उद्देश्य से किया गया था।
  • विधि आयोग द्वारा प्रस्तुत 244वीं रिपोर्ट (2014) में विधायिका में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के लिये गंभीर परिणाम पैदा करने वाले आपराधिक राजनेताओं की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की आवश्यकता पर विचार किया गया है।
    • विधि आयोग ने उन लोगों की अयोग्यता की सिफारिश की जिनके खिलाफ पाँच वर्ष या उससे अधिक की सज़ा के साथ दंडनीय अपराध के लिये नामांकन की जाँच की तारीख से कम-से-कम एक वर्ष पहले आरोप तय किये गए हैं।
  • वर्ष 2017 में केंद्र सरकार ने सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के मुकदमे को तेज़ी से ट्रैक करने हेतु एक वर्ष के लिये 12 विशेष अदालतें स्थापित करने की योजना शुरू की।
    • शीर्ष अदालत ने तब से कई निर्देश जारी किये हैं, जिसमें केंद्र से इन मामलों में जाँच में देरी के कारणों की जाँच के लिये एक निगरानी समिति गठित करने को कहा है।

राजनीति के अपराधीकरण के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:

  • एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम भारत संघ (2002):
    • वर्ष 2002 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि चुनाव लड़ने वाले प्रत्येक उम्मीदवार को शैक्षिक योग्यता के साथ उसे अपने आपराधिक और वित्तीय रिकॉर्ड की घोषणा करनी होगी।
  • रमेश दलाल बनाम भारत संघ (2005):
    • वर्ष 2005 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि दोषी ठहराए जाने पर मौजूदा सांसद या विधायक को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और कानून की अदालत द्वारा दो साल या उससे अधिक के लिये कारावास की सज़ा सुनाई जाएगी।
  • लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने घोषणा की है कि संसद या राज्य विधानसभा का कोई भी सदस्य जो किसी अपराध के लिये दोषी ठहराया जाता है और दो साल या उससे अधिक की जेल की सज़ा काटता है, उसे पद धारण करने से अयोग्य घोषित किया जाएगा।
  • मनोज नरूला बनाम भारत संघ (2014):
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि एक व्यक्ति को केवल इसलिये चुनाव लड़ने से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि उस पर आपराधिक आरोप लगाया गया है।
    • हालाँकि अदालत ने यह भी कहा कि राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में नहीं उतारना चाहिये।
  • पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ (2019):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने राजनीतिक दलों को अपने उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड को अपनी वेबसाइट, सोशल मीडिया हैंडल और समाचार पत्रों पर प्रकाशित करने का आदेश दिया है।
    • अदालत ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) को यह सुनिश्चित करने के लिये एक ढाँचा तैयार करने का भी निर्देश दिया ताकि उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी प्रभावी ढंग से प्रसारित की जा सके।

आगे की राह

  • ECI को अधिक शक्ति: चुनाव सुधारों पर समितियों ने चुनावों के राज्य वित्तपोषण और काले धन पर अंकुश लगाने तथा राजनीति के अपराधीकरण को सीमित करने के लिये निर्वाचन आयोग को मज़बूत करने की सिफारिश की है।
  • मतदाताओं का कर्तव्य: मतदाताओं को चुनाव के दौरान धन के दुरूपयोग को लेकर भी सतर्क रहना चाहिये। न्यायपालिका को गंभीर आपराधिक आरोपों वाले उम्मीदवारों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करके एक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिये।
  • शीघ्र न्यायिक प्रक्रियाएँ: न्यायिक प्रक्रिया में तेज़ी लाने से राजनीतिक व्यवस्था में भ्रष्टता को रोकने के अतिरिक्त आपराधिक तत्त्वों को बाहर निकालने में मदद मिल सकती है। एक समयबद्ध न्याय वितरण प्रणाली ECI द्वारा उठाए गए कड़े कदम और प्रासंगिक कानूनों को उचित रूप से मज़बूत करती है।
  • RPA में संशोधन: राजनीति में बढ़ते अपराधीकरण के लिये RPA 1951 में संशोधन की आवश्यकता है ताकि उन व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोका जा सके जिनके खिलाफ कोई गंभीर प्रकृति का अपराध लंबित है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

मेन्स:

प्रश्न. प्राय: कहा जाता है कि 'राजनीति' और 'नैतिकता' साथ-साथ नहीं चल सकते। इस संबंध में आपका क्या मत है? अपने उत्तर का, उदाहरणों सहित आधार बताइये। (2013)

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2