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सामाजिक न्याय

नागरिक संघ और विवाह

  • 20 Apr 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

निजता का अधिकार, विवाह का अधिकार, धारा 377 IPC, विशेष विवाह अधिनियम।

मेन्स के लिये:

भारत में समलैंगिक विवाहों को वैध बनाना और चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?  

केंद्र ने विवाह की "सामाजिक-कानूनी संस्था" को कानूनी मान्यता प्रदान करने के न्यायपालिका के अधिकार के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं की सुनवाई का विरोध किया है।

  • केंद्र की आपत्तियों के जवाब में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने स्पष्ट किया कि सुनवाई का दायरा एक "नागरिक संघ" की धारणा विकसित करने तक सीमित होगा, जिसे विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत कानूनी मान्यता मिलती है।

नागरिक संघ: 

  • परिचय:  
    • "नागरिक संघ" एक कानूनी स्थिति है जो समलैंगिक जोड़ों को कुछ अधिकार और जिम्मेदारियाँ प्रदान करता है, यह आमतौर पर विवाहित जोड़ों को दी जाती है।
    • हालाँकि एक नागरिक संघ एक विवाह जैसी स्थिति है और इसके साथ रोज़गार, विरासत, संपत्ति और पैतृक अधिकार आते हैं, दोनों के बीच कुछ अंतर हैं।  
  • नागरिक संघ बनाम विवाह:
    • नागरिक संघ/सिविल यूनियन एक विवाह जैसी कानूनी स्वीकृति है जो आमतौर पर समान लिंग के दो व्यक्तियों को प्रदान की जाती है।
    • विवाह कानून द्वारा मान्यता प्राप्त एक धार्मिक संस्था है जो दो व्यक्तियों (पुरुष और महिला) को विवाह करने की अनुमति देती है।
    • चूँकि समलैंगिक  विवाह, विवाह की धर्म-आधारित परिभाषा के दायरे से बाहर है, इसलिये सिविल यूनियन एक उपकरण है जो समान लिंग विवाह का विकल्प चुनने वाले जोड़ों को समान कानूनी सुरक्षा प्रदान करने के लिये तैयार किया गया है।
  • अन्य देश जो नागरिक संघ की अनुमति देते हैं:
    • संयुक्त राज्य अमेरिका: वर्ष 2015 में संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय (SCOTUS) ने "ओबेर्गेफेल बनाम होजेस" में अपने ऐतिहासिक निर्णय के साथ पूरे देश में समलैंगिक विवाहों को वैध कर दिया।
      • वर्ष 2015 से पहले अमेरिका के अधिकांश राज्यों में नागरिक संघों हेतु कानून थे जो समान लिंग के जोड़ों को विवाह करने की अनुमति देते थे।
    • स्वीडन: वर्ष 2009 से पहले LGBTQ युगल नागरिक संघ  के लिये आवेदन कर सकते थे और गोद लेने के अधिकार जैसे लाभों का लाभ ले सकते थे। स्वीडन ने वर्ष 2009 में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी थी।
    • इसी प्रकार, ब्राज़ील, उरुग्वे और चिली जैसे देशों ने भी विवाह के कानूनी अधिकार को औपचारिक रूप से मान्यता देने से पहले ही समलैंगिक जोड़ों के नागरिक संघों में प्रवेश करने के अधिकार को मान्यता दे दी थी।

भारत में समलैंगिक विवाहों की स्थिति:

  • हालाँकि नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने IPC की धारा 377 के तहत समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया, लेकिन भारत में समलैंगिक विवाह को कानूनी दर्जा मिलना अभी बाकी है।
  • तब से सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कई याचिकाएँ दायर की गई हैं और न्यायपालिका ने ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर दी है तथा विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत नागरिक संघ के दायरे की तलाश कर रही है। 
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत एक विवाह दो अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमि के लोगों को विवाह के बंधन में बांधने की अनुमति देता है, जिसकी व्यक्तिगत/धार्मिक कानूनों के तहत अनुमति नहीं है।
  • LGBTQ अधिकारों पर सर्वोच्च न्यायालय का महत्त्वपूर्ण निर्णय:
    • केएस पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ, 2017: निजता के अधिकार पर इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसी भी व्यक्ति का यौन अभिविन्यास उसके निजता के अधिकार के तहत आता है।
      • यह ऐतिहासिक निर्णय IPC की धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करने का आधार बना जिसके तहत समलैंगिकता एक अपराध माना गया था। 
    • नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने IPC की धारा 377 को इस हद तक खत्म कर दिया कि यह समलैंगिकता को अपराध मानती है।
      • यह भी कहा गया कि यौन अभिविन्यास और लैंगिक आधार पर कानून में भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
    • इसके अलावा लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, सफीन बनाम अशोकन और शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ के मामलों जैसे विभिन्न निर्णयों में यह माना गया है कि जीवन साथी चुनना अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है। 

समलैंगिक विवाह को वैध बनाने के संबंध में तर्क: 

  • पक्ष में तर्क:  
    • 'जेंडर' की एक व्यापक परिभाषा: सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, यहाँ पुरुष या महिला की कोई पूर्ण अवधारणा नहीं है। यह सिर्फ उनकी शारीरिक रचना से कहीं अधिक जटिल है।
    • परिवर्तन मौलिक नियम: समाज समय के साथ विकसित होता रहता है और समाज में परिवर्तन के साथ कानून भी विकसित होने चाहिये।
    • कम कानूनी जटिलताएँ: व्यक्तिगत कानूनों में संशोधन की आवश्यकता नहीं है, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की व्यापक व्याख्या समलैंगिक विवाह को वैध बनाने हेतु पर्याप्त होगी।
    • समानता को कायम रखना: समलैंगिक जोड़ों को भी निजता और स्वतंत्रता दी जानी चाहिये और उन्हें विषमलैंगिक जोड़ों जैसे उपलब्ध समान अधिकार मिलना चाहिये।
      • इसके अलावा उन्हें कम नश्वर के रूप में नहीं माना जाना चाहिये और केवल इसलिये संतुष्ट होने कि अपेक्षा की जानी चाहिये क्योंकि समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।
  • विपक्ष में तर्क  
    • सामाजिक स्वीकृति: यह तर्क दिया जाता है कि समाज यह स्वीकार नहीं कर सकता है कि समलैंगिक विवाह विषमलैंगिक विवाहों के सामान होना चाहिये।
      • समाज द्वारा किसी भी रिश्ते की स्वीकृति कभी भी विधानों या निर्णयों पर निर्भर नहीं होती है। 
    • दायरे को बढ़ाने संबंधी मुद्दे: 'लिंग’ शब्द की व्यापक परिभाषा प्रदान करना समस्याप्रद हो सकता है; यदि पुरुष की जैविक विशेषता वाला कोई पुरुष खुद को एक महिला के रूप में पहचानने लगता है, तो प्राधिकारों के लिये यह समस्या हो जाएगी कि उसे कानून के तहत पुरुष माना जाए अथवा महिला।
    • कानूनी पेचीदगियाँ: समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से कई कानूनी अड़चनें आ सकती हैं। जैसे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) का तर्क है कि इसे कानूनी दर्जा देना किशोर न्याय अधिनियम, 2015 के खिलाफ होगा।
      • उदाहरण के लिये इस अधिनियम की धारा 5(2)A एकल पुरुष द्वारा एक बालिका को गोद लेने पर रोक लगाती है। समलैंगिक युगलों के लिये बच्चा गोद लेने में भी यह समस्या उत्पन्न हो सकती है।
      • इसके अतिरिक्त विवाह समवर्ती सूची का विषय है, समलैंगिक विवाह के वैधीकरण के लिये बहुत सारे कानूनों में संशोधन किये जाने की आवश्यकता होगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारतीय संविधान का कौन-सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के अधिकार की रक्षा करता है? (2019)

(a) अनुच्छेद 19
(b) अनुच्छेद 21
(c) अनुच्छेद 25
(d) अनुच्छेद 29

उत्तर: (b)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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