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डेली न्यूज़

  • 08 Apr, 2024
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इन्फोग्राफिक्स

भारत की जलवायु परिच्छेदिका/प्रोफाइल

और पढ़ें: जलवायु परिवर्तन


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोडाइकनाल सौर वेधशाला

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का आदित्य-एल1 मिशन, सौर वेधशाला, सनस्पॉट और सौर ज्वालाएँ, KoSO (कोडाईकनाल सौर वेधशाला)।

मेन्स के लिये:

सौर वेधशाला, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कोडाइकनाल सौर वेधशाला ने अपना 125वाँ स्थापना दिवस मनाया। वर्षों से इसने सौर गतिविधि और पृथ्वी की जलवायु तथा अंतरिक्ष के मौसम पर अपने प्रभाव के बारे में हमारी समझ को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

सौर वेधशाला क्या है?

  • परिचय: सौर वेधशाला एक ऐसा संस्थान है जो सूर्य के अवलोकन और अध्ययन के लिये समर्पित है।
    • ये वेधशालाएँ सूर्य की सतह, उसके वायुमंडल और आसपास के स्थान पर विभिन्न घटनाओं का निरीक्षण करने के लिये विशेष दूरबीनों एवं उपकरणों का उपयोग करती हैं।
  • आवश्यकता: सूर्य पृथ्वी पर जीवन के लिये ऊर्जा के मुख्य स्रोत के रूप में कार्य करता है और इसकी सतह या आसपास के क्षेत्रों में परिवर्तन हमारे पृथ्वी के वायुमंडल को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
    • तीव्र सौर आंधियाँ और सौर ज्वालाएँ अंतरिक्ष-आधारित प्रौद्योगिकी पर निर्भर उपग्रह संचालन, पावर ग्रिड एवं नेविगेशन प्रणालियों के लिये अत्यधिक जोखिम उत्पन्न करती हैं।
    • सौर वेधशालाओं के माध्यम से, वैज्ञानिक इन घटनाओं की निगरानी और भविष्यवाणी भी कर सकते हैं जिनका पृथ्वी के वायुमंडल पर प्रभाव पड़ सकता है।

कोडाइकनाल सौर वेधशाला क्या है?

  • परिचय: कोडाइकनाल सौर वेधशाला एक सौर वेधशाला है जिसका स्वामित्व और संचालन भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान द्वारा किया जाता है। इसकी स्थापना 1899 में की गई थी।
    • यह पलनी पहाड़ियों के दक्षिणी सिरे पर है।
    • एवरशेड प्रभाव (सूर्य पर उसके धब्बों के पेनुम्ब्रा (बाहरी क्षेत्र) में देखा गया गैस का स्पष्ट रेडियल प्रवाह) पहली बार जनवरी 1909 में इस वेधशाला में पाया गया था।
  • स्थापना का कारण: भारत में कोडाइकनाल सौर वेधशाला (KoSO) की स्थापना, सौर गतिविधि और मानसून के बीच संबंध को समझने की आवश्यकता से प्रेरित थी।
    • भारत में वर्ष 1875-1877 के विनाशकारी भीषण सूखे ने सौर गतिविधि और मौसमी वर्षा पैटर्न के बीच संभावित संबंध पर प्रकाश डाला।
      • चीन, मिस्र, मोरक्को, इथियोपिया, दक्षिणी अफ्रीका, ब्राज़ील, कोलंबिया और वेनेज़ुएला के साथ भारत को वर्ष 1876-1878 के दौरान 3 वर्षों तक सूखे का सामना करना पड़ा, जिसे बाद में भीषण सूखे का नाम दिया गया, और इन देशों को एक वैश्विक अकाल का सामना करना पड़ा, जिसमें लगभग 50 मिलियन लोग मारे गए।
    • अकाल आयोग ने इस संबंध को समझने के लिये व्यवस्थित सौर अवलोकन के लिये एक सौर वेधशाला स्थापित करने की सिफारिश की।
    • चार्ल्स मिचि स्मिथ, एक भौतिक विज्ञानी, को एक उपयुक्त स्थान की खोज करने का काम सौंपा गया था।
      • तमिलनाडु में कोडाइकनाल स्थान को इसके साफ आसमान, कम आर्द्रता और न्यूनतम कोहरे के कारण चुना गया था।
  • मद्रास वेधशाला (चेन्नई, 1792): वर्ष 1792 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मद्रास वेधशाला की स्थापना की, जो विश्व के इस भाग में अपनी तरह की पहली वेधशाला थी।
    • यहाँ, वर्ष 1812-1825 के दौरान दर्ज किये गए सूर्य, चंद्रमा, चमकीले सितारों और ग्रहों के खगोलीय अवलोकनों को दो बड़े डेटा संस्करणों द्वारा संरक्षित किया गया था।
    • अप्रैल, 1899 में सभी भारतीय वेधशालाओं के पुनर्गठन के बाद इसे KoSO में मिला दिया गया।

भारत में स्थापित अन्य प्रमुख अंतरिक्ष वेधशालाएँ कौन-सी हैं?

  • भारतीय खगोलीय वेधशाला (IAO), हनले: यह लद्दाख में स्थित है और देश के प्रमुख खगोलीय संस्थानों में से एक है।
    • यह वेधशाला भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान द्वारा संचालित है और खगोल विज्ञान तथा भौतिकी के क्षेत्र में भारत के योगदान को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • माउंट आबू इन्फ्रारेड वेधशाला (MIO): यह भारत के राजस्थान के अरावली रेंज में माउंट आबू (गुरुशिखर पर) के शीर्ष पर स्थित है।
    • इसका संचालन भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) द्वारा किया जाता है।
    • इन्फ्रारेड खगोल विज्ञान में विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के इन्फ्रारेड हिस्से में आकाशीय वस्तुओं और घटनाओं का अवलोकन करना शामिल है।
  • विशाल मेट्रोवेव रेडियो टेलीस्कोप: यह भारत के पुणे के पास स्थित एक प्रमुख रेडियो खगोल विज्ञान केंद्र है।
    • नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिज़िक्स (NCRA) द्वारा संचालित, GMRT में एक बड़े क्षेत्र में फैले 30 पूरी तरह से चलाने योग्य परवलयिक रेडियो दूरबीन शामिल हैं।
    • इसका डिज़ाइन रोप ट्रस से जुड़े स्ट्रेच मेश के SMART कॉन्सेप्ट पर आधारित है।

सूर्य का अध्ययन करने के अन्य वैश्विक प्रयास और मिशन:

  • भारत का आदित्य-एल1 मिशन: आदित्य-एल1, 1.5 मिलियन किलोमीटर की पर्याप्त दूरी से सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन है।
  • नासा का पार्कर सोलर प्रोब: इसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि सूर्य के कोरोना(वायुमंडल के सबसे बाहरी भाग) के माध्यम से ऊर्जा और ऊष्मा कैसे निष्काषित होती है साथ ही इसका उद्देश्य सौर पवनों के त्वरण के स्रोत का अध्ययन करना भी है।
  • हाल ही में, इसने कोरोनल मास इजेक्शन के भीतर अपनी तरह का पहला अवलोकन किया।
  • इससे पहले 'हेलिओस 2' सौर प्रोब नासा और तत्कालीन पश्चिम जर्मनी की अंतरिक्ष एजेंसी का संयुक्त उपक्रम था जोकि वर्ष 1976 में सूर्य की सतह के 43 मिलियन किलोमीटर के दायरे तक पहुँचा था।
  • सोलर ऑर्बिटर: डेटा एकत्र करने के लिये यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी तथा नासा द्वारा चलाया गया संयुक्त मिशन जो हेलियोफिज़िक्स के एक केंद्रीय प्रश्न का उत्तर देने में सहायता करेगा जैसे कि सूर्य पूरे सौर मंडल में निरंतर परिवर्तित अंतरिक्ष वातावरण का निर्माण और नियंत्रण कैसे करता है, आदि।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: सोलर ऑब्ज़र्वेशन और सोलर एक्टिविटी डेटा गंभीर भूगर्भीय एवं वायुमंडलीय परिघटनाओं की भविष्यवाणी और पूर्वानुमान में कैसे सहायक हैं? इस क्षेत्र में भारत की प्रगति के संदर्भ में चर्चा कीजिये?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

इसरो द्वारा प्रमोचित मंगलयान

  1. को मार्स ऑर्बिटर मिशन भी कहा जाता है।
  2.  ने भारत को USA के बाद मंगल के चारों ओर अंतरिक्ष यान को चक्रमण कराने वाला दूसरा देश बना दिया है।
  3.  ने भारत को एकमात्र ऐसा देश बना दिया है, जिसने अपने अंतरिक्ष यान को मंगल के चारों ओर चक्रमण कराने में पहली बार में ही सफलता प्राप्त कर ली।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स: 

प्रश्न.अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों की चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016)


शासन व्यवस्था

औद्योगिक अल्कोहल विनियमन

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, भारत के मुख्य न्यायाधीश, उत्पाद शुल्क, वस्तु एवं सेवा कर (GST), सातवीं अनुसूची

मेन्स के लिये:

नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे, राज्य के राजस्व सृजन में उत्पाद शुल्क की भूमिका और इसका प्रभाव

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के नेतृत्व में सर्वोच्च न्यायालय वर्तमान में 9 न्यायाधीशों की संविधान पीठ के साथ एक मामले की सुनवाई कर रही है। यह मामला इस प्रश्न से संबंधित है कि क्या राज्यों के पास औद्योगिक अल्कोहल पर उत्पाद शुल्क को विनियमित करने और लगाने का अधिकार है।

नोट:

  • मादक पेय पदार्थों के विपरीत, औद्योगिक अल्कोहल मानव उपभोग (विकृत) के लिये नहीं है। इसका अनुप्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में होता है, जिसमें फार्मास्यूटिकल्स, कीटाणुनाशक, रसायन और यहाँ तक कि जैव ईंधन का निर्माण भी शामिल है।

औद्योगिक अल्कोहल के संबंध में संवैधानिक विवाद क्या है?

  • संवैधानिक ढाँचा:
    • राज्य सूची (प्रविष्टि 8): भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य सूची में प्रविष्टि 8 मादक अल्कोहल के उत्पादन, निर्माण, अधिकार, परिवहन, खरीद और बिक्री से संबंधित कानून बनाने की राज्य सरकारों की शक्ति से संबंधित है।
    • संघ सूची (प्रविष्टि 52): यह संसद को सार्वजनिक हित में समीचीन समझे जाने वाले उद्योगों पर कानून बनाने का अधिकार प्रदान करती है।
    • समवर्ती सूची (प्रविष्टि 33): राज्यों और केंद्र दोनों को उद्योगों पर कानून बनाने की अनुमति देती है, इस शर्त के साथ कि राज्य के कानून केंद्रीय कानूनों का खंडन नहीं कर सकते।
    • औद्योगिक अल्कोहल उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 (IDRA) के अंतर्गत आता है, जो इसे विनियमन की वस्तु के रूप में सूचीबद्ध करता है। संसद का यह अधिनियम केंद्र सरकार को औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • मुख्य मुद्दा:
    • केंद्रीय प्रश्न यह है कि क्या राज्यों के पास औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने की स्वायत्तता है या क्या विशेष नियंत्रण केंद्र के पास है।
  • कानूनी व्याख्या:
    • समवर्ती सूची के विषयों को राज्य और केंद्र दोनों द्वारा विनियमित किया जा सकता है, लेकिन राज्य के कानून केंद्रीय कानून के साथ टकराव नहीं कर सकते।
      • IDRA 1951, जो औद्योगिक अल्कोहल को सूचीबद्ध करता है, विषय वस्तु पर केंद्रीय नियंत्रण की व्याख्या करता है।

राज्यों के तर्क क्या हैं?

  • प्रविष्टि 8 की व्याख्या: 
    • यह तर्क दिया जाता है कि राज्य सूची की प्रविष्टि 8 में "नशीली शराब" वाक्यांश में अल्कोहल युक्त सभी तरल पदार्थ शामिल हैं।
      • संवैधानिक उत्पाद शुल्क कानूनों में 'शराब (liquor)', 'मद्यसार(spirit)' और 'नशीला पदार्थ (intoxicant)' जैसे शब्दों के ऐतिहासिक उपयोग पर बल दिया गया है।
  • संघ की शक्ति का क्षेत्र: 
    • यह तर्क दिया जाता है कि संघ सूची की प्रविष्टि 52 विकृतीकरण के बाद औद्योगिक अल्कोहल जैसे "तैयार उत्पादों" के विनियमन तक विस्तारित नहीं होती है।
      • यह दावा किया गया है कि ऐसा नियंत्रण समवर्ती सूची की प्रविष्टि 33 के अंतर्गत आता है। औद्योगिक अल्कोहल विनियमन पर विशेष अधिकार का प्रयोग करने के लिये, केंद्र को IDRA की धारा 18-G के तहत एक आदेश जारी करने की आवश्यकता होगी। ऐसे आदेश के बिना, राज्य क्षेत्राधिकार बरकरार रखते हैं।
      • 'विकृत अल्कोहल' शब्द का तात्पर्य ज़हरीले या खराब स्वाद वाले एडिटिव्स (जैसे मेथनॉल, बेंजीन, पाइरीडीन, अरंडी का तेल, गैसोलीन और एसीटोन) की मिलावट वाले अल्कोहल उत्पादों से है, जो इसे मानव उपभोग के लिये अनुपयुक्त बनाता है।
  • राज्यों की शक्तियों का संरक्षण:
    • राज्यों के घटते अधिकार के प्रति सावधानी व्यक्त की गई है। ITC लिमिटेड बनाम कृषि उपज बाजार समिति मामले, 2002 का हवाला देते हुए, जो इस बात पर बल देता है कि राज्य केंद्र के अधीन नहीं हैं।
      • यह राज्यों की संवैधानिक शक्तियों को बनाए रखने और उनकी स्वायत्तता को कमज़ोर करने वाली व्याख्याओं से बचने की आवश्यकता पर बल देता है।

अन्य मामले क्या हैं?

  • सिंथेटिक्स एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 1989:
    • 7 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना कि राज्य सूची की प्रविष्टि 8 के अनुसार राज्यों की शक्तियाँ "नशीली शराब" को विनियमित करने तक सीमित थीं, जो औद्योगिक अल्कोहल से भिन्न है।
      • मूलतः सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि केवल केंद्र ही ऐसी औद्योगिक शराब पर लेवी या कर लगा सकता है जो मानव उपभोग के लिये नहीं है।
    • सर्वोच्च न्यायालय चौधरी टीका रामजी बनाम यू.पी. राज्य मामले, 1956 में अपने ही पूर्व संविधान पीठ के फैसले पर विचार करने में विफल रहा।
  • चौधरी टीका रामजी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामला, 1956: 
    • इस मामले में उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 (IDRA) की धारा 18-G के तहत विशेष केंद्रीय क्षेत्राधिकार का दावा करने वाली चुनौती के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय ने गन्ना उद्योग को विनियमित करने वाले उत्तर प्रदेश के कानून को बरकरार रखा।
      • सत्तारूढ़ ने संघीय शासन के लिये एक महत्त्वपूर्ण मिसाल कायम करने वाले केंद्रीय कानूनों की उपस्थिति में भी उद्योगों से संबंधित कानून बनाने के राज्यों के अधिकार की पुष्टि की।

उत्पाद शुल्क क्या है?

  • उत्पाद शुल्क एक अप्रत्यक्ष कर है, जो वस्तुओं पर उनके उत्पादन, लाइसेंसिंग और बिक्री के लिये लगाया जाता है। यह वस्तु के उत्पादकों द्वारा भारत सरकार को भुगतान किया जाता है और देश के बाहर से आने वाले माल पर लगाए जाने वाले सीमा शुल्क के विपरीत, घरेलू स्तर पर निर्मित माल पर लागू होता है।
    • इससे पहले केंद्रीय स्तर पर उत्पाद शुल्क को केंद्रीय उत्पाद शुल्क, अतिरिक्त उत्पाद शुल्क आदि के रूप में लगाया जाता था। हालाँकि जुलाई 2017 में वस्तु और सेवा कर (GST) की शुरुआत ने कई प्रकार के उत्पाद शुल्क को शामिल किया। वर्तमान में उत्पाद शुल्क केवल पेट्रोलियम और अल्कोहल पर लागू होता है।
      • विनिर्मित वस्तुओं के निर्माण के समय उन पर उत्पाद शुल्क लगाया जाता है, जबकि वस्तुओं और सेवाओं की आपूर्ति पर GST लगाया जाता है।
  • अल्कोहल पर लगाया जाने वाला उत्पाद शुल्क राज्य के राजस्व का एक प्रमुख घटक है, राज्य अक्सर अपनी आय बढ़ाने के लिये अल्कोहल की खपत पर उत्पाद शुल्क जोड़ते हैं।
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 में कर्नाटक ने भारतीय निर्मित शराब (IML) पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (AED) में 20% की बढ़ोतरी की।

विशेषताएँ

परिशुद्ध अल्कोहल 

विकृतीकृत अल्कोहल 

घटक 

शुद्ध इथेनॉल (C₂H₅OH) न्यूनतम या बिना किसी योजक/विकृतीकरण के

इथेनॉल (C₂H₅OH) योजक/विकृतीकरण की उच्च सांद्रता के साथ।

सुरक्षा 

पीने योग्य लेकिन अत्यधिक सावधानी के साथ सेवन किया जाना चाहिये।

विषैला और उपभोग के लिये अनुपयुक्त।

योजक

इसमें थोड़ी मात्रा में अशुद्धियाँ हो सकती हैं।

इसमें उच्च मात्रा में मेथनॉल जैसे योजक होते हैं, जो इसे विषाक्त बनाते हैं।

अनुप्रयोग

प्रयोगशाला अनुप्रयोग (उदाहरण के लिये सतहों को कीटाणुरहित करना, रसायन निकालना), चिकित्सा अनुप्रयोग (उदाहरण के लिये, उपकरणों को स्टरलाइज़ करना, आदि)

औद्योगिक उपयोग (उदाहरण के लिये, ईंधन, सफाई सॉल्वैंट्स), विषाक्तता के कारण चिकित्सा या प्रयोगशाला सेटिंग्स में उपयोग नहीं किया जा सकता है।

गंध और स्वाद

विशिष्ट अल्कोहलिक गंध, थोड़ा मीठा स्वाद

दुर्गंध, कड़वा स्वाद

कराधान 

इसकी शुद्धता के कारण उच्च करों की संभावना है।

पीने योग्य इसकी अनुपयुक्तता के कारण कम कर दर या कर-मुक्त

दृष्टि मेन्स प्रश्न:


प्रश्न . औद्योगिक शराब पर उत्पाद शुल्क लगाने और विनियमित करने के राज्यों के अधिकार के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय में चल रहे मामले के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। इसके परिणाम केंद्र - राज्य संबंधों और अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्न   

मेन्स:

प्रश्न. उन अप्रत्यक्ष करों को गिनाइये जो भारत में वस्तु एवं सेवा कर (GST) में सम्मिलित किये गए हैं। भारत में जुलाई, 2017 से क्रियान्वित GST के राजस्व निहितार्थों पर भी टिप्पणी कीजिये। (2019)

प्रश्न. संविधान (एक सौ एक संशोधन) अधिनियम, 2016 के प्रमुख अभिलक्षणों को समझाइये। क्या आप समझते हैं कि यह "करों के सोपानिक प्रभाव को समाप्त  करने में और माल तथा सेवाओं के लिये साझा राष्ट्रीय बाज़ार उपलब्ध कराने" में काफी प्रभावकारी है? (2017)


भारतीय राजनीति

उच्च न्यायालय की पीठों के प्राधिकार

प्रिलिम्स:

जनहित याचिका, उच्च न्यायालय, न्यायिक पीठ

मेन्स:

जनहित याचिका, उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने सभी प्रकार की जनहित याचिकाओं (PIL) पर निर्णय लेने के लिये मदुरै पीठ के प्राधिकार को बहाल कर दिया है, जिसमें उसके क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर केवल 13 ज़िलों के बजाय संपूर्ण राज्य से संबंधित मामले शामिल हैं।

नोट: चेन्नई में मद्रास उच्च न्यायालय की मुख्य पीठ की मदुरै में एक स्थायी पीठ है, जो मूल क्षेत्राधिकार को छोड़कर सभी मामलों में मुख्य पीठ को प्रतिबिंबित करते हुए अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग करती है।

मद्रास न्यायालय का निर्णय क्या है?

  • मुद्दे:
    • मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा पारित एक निर्णय में ज़िला-विशिष्ट मामलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, मदुरै पीठ के बजाय न्यायालय की मुख्य पीठ पर राज्यव्यापी मंदिर के हितों के संबंध में जनहित याचिका दायर करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया था।
  • निर्णय:
    • हालिया निर्णय में मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के अधिकारों को सभी प्रकार की जनहित याचिकाओं की सुनवाई के लिये बहाल कर दिया गया है, जिसमें वे मुद्दे भी शामिल हैं जो संपूर्ण राज्य से संबंधित हैं, न केवल इसके अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले 13 ज़िलों से।
      • न्यायालय ने कहा कि यदि आवश्यक हो तो मुख्य न्यायाधीश एक मामले को मुख्य पीठ से स्थायी पीठ में हस्तांतरित कर सकते हैं, लेकिन सभी पैन-स्टेट मामलों को केवल मुख्य पीठ में दायर करने की आवश्यकता वाला एक व्यापक आदेश मदुरै पीठ के कामकाज के लिये उपयुक्त नहीं होगा।
  • निर्णय का कानूनी आधार:
    • न्यायालय ने मदुरै पीठ के गठन के लिये वर्ष 2004 में जारी राष्ट्रपति की अधिसूचना पर विश्वास किया, जिसमें इस प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया था।
    • न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि बी. स्टालिन बनाम रजिस्ट्रार, 2012 में एक संपूर्ण पीठ के  निर्णय ने स्पष्ट किया कि मदुरै पीठ में दायर एवं सुनवाई की जा सकने वाली जनहित याचिकाओं के प्रकारों पर कोई प्रतिबंध नहीं था, हालाँकि इसने मुख्य न्यायाधीश के मामलों को मुख्य पीठ और मदुरै पीठ के बीच हस्तांतरित करने के अधिकार की पुष्टि की।

उच्च न्यायालय तथा स्थायी पीठों की स्थापना की प्रक्रिया क्या है?

  • उच्च न्यायालय की पीठों की स्थापना:
    • भारत के संविधान के अनुच्छेद 214 में प्रावधान है कि प्रत्येक राज्य के लिये एक उच्च न्यायालय होगा।
    • हालाँकि, राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 51 में मुख्य स्थान से दूर पीठ स्थापित करने का प्रावधान है।
  • न्यायमूर्ति जसवंत सिंह आयोग:
    • वर्ष 1981 में, उत्तर प्रदेश के पश्चिमी ज़िलों में उच्च न्यायालय की पीठों की मांग पर विचार करने के लिये एक आयोग नियुक्त किया गया था।
    • बाद में वर्ष 1983 में उच्च न्यायालयों के मुख्य स्थानों के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर पीठों की स्थापना के सामान्य प्रश्न की जाँच करने के लिये संदर्भ की शर्तों का विस्तार किया गया।
    • सिफारिशें:
      • आयोग ने क्षेत्र की विशेषताओं, जनसंख्या आकार, क्षेत्र, यात्रा और संचार के साधन, मुकदमों के लिये दूरी, लंबित दर, बुनियादी ढाँचे की उपलब्धता एवं कानूनी प्रतिभा सहित कई मानदंडों की सिफारिश की।
  • सर्वोच्च न्यायालय की स्थिति:
    • एक रिट याचिका में सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य स्थान के अतिरिक्त अन्य केंद्रों पर उच्च न्यायालय की पीठ स्थापित करने की मांग की जाँच की, जिसमें इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि निर्णय, भावनात्मक या संकीर्ण विचारों पर नहीं बल्कि, तर्क पर आधारित होने चाहिये।
      • पीठों की स्थापना के लिये राज्य सरकार, संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल के बीच सर्वसहमती आवश्यक होती है।
  • केंद्र सरकार की भूमिका:
    • मुख्य न्यायाधीश और राज्यपाल की सहमति और राज्य सरकार से पूर्ण प्रस्ताव प्राप्त होने के बाद ही सरकार पीठ स्थापित करने के प्रस्तावों पर विचार करती है।
    • राज्य सरकार बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने तथा उच्च न्यायालय और उसकी पीठ के संपूर्ण व्यय को वहन करने के लिये ज़िम्मेदार होती है।
    • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश उसकी पीठ के दैनिक प्रशासन का प्रबंधन करते हैं, और आवश्यकतानुसार मुख्य सीट से न्यायाधीशों को पीठ में नियुक्त करते हैं।
    • बेंचों की स्थापना पर निर्णय लेने के लिये राज्य सरकार और उच्च न्यायालय के बीच सर्वसम्मति की आवश्यकता वाले परामर्शी दृष्टिकोण को अपनाया जाता है।

भारत का संविधान

भाग VI | राज्य | उच्च न्यायालय

अनुच्छेद 215: उच्च न्यायालयों का अभिलेख न्यायालय होना।

अनुच्छेद 222: एक न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरण।

अनुच्छेद 225: उच्च न्यायालयों का क्षेत्राधिकार।

अनुच्छेद 226: कुछ रिट जारी करने की उच्च न्यायालयों की शक्ति।

अनुच्छेद 230: उच्च न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र का केंद्रशासित प्रदेशों तक विस्तार।

अनुच्छेद 231: दो या दो से अधिक राज्यों के लिये एक सामान्य उच्च न्यायालय की स्थापना।

जनहित याचिका क्या है?

  • जनहित याचिका (PIL) की अवधारणा 1960 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रारंभ एवं विकसित हुई।
  • भारत में जनहित याचिका न्यायिक सक्रियता का एक उदाहरण है। न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्णा अय्यर तथा जस्टिस पी.एन. भगवती PIL की अवधारणा के प्रणेता थे।
  • भारत में PIL की शुरूआत 'लोकस स्टैंडी' के पारंपरिक नियम में छूट प्राप्त हुई। इस नियम के अनुसार केवल वही व्यक्ति जिसके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, उपचार के लिये न्यायालय जा सकता है, जबकि जनहित याचिका इस पारंपरिक नियम का अपवाद है।
  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका को "सार्वजनिक हित अथवा सामान्य हित को लागू करने के लिये न्यायालय में शुरू की गई एक कानूनी कार्रवाई के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें जनता अथवा समुदाय के एक वर्ग का आर्थिक हित या कुछ अन्य हितों के साथ-साथ उनके कानूनी अधिकार एवं दायित्व भी प्रभावित होते हैं।"
  • जनहित याचिका को किसी कानून अथवा किसी अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है। बड़े पैमाने पर जनता की मंशा पर विचार करने हेतु न्यायाधीशों द्वारा इसकी व्याख्या की गई है।
  • जनहित याचिका के तहत विचार किये जाने वाले कुछ मामले हैं:
    • बँधुआ मज़दूरी के मामले
    • उपेक्षित बच्चे
    • श्रमिकों को न्यूनतम वेतन का भुगतान न करना और आकस्मिक श्रमिकों का शोषण
    • महिलाओं पर अत्याचार
    • पर्यावरण प्रदूषण एवं पारिस्थितिक संतुलन में गड़बड़ी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत की न्यायिक प्रणाली में जनहित याचिका (पीआईएल) की भूमिका और महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। पिछले कुछ वर्षों में जनहित याचिका कैसे विकसित हुई है और इसका शासन तथा सामाजिक न्याय पर क्या प्रभाव पड़ा है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2013)

(a) भारत में एक ही व्यक्ति को एक समय में दो या अधिक राज्यों में राज्यपाल नियुक्त नहीं किया जा सकता।
(b) भारत में राज्यों के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राज्य के राज्यपाल द्वारा नियुक्त किये जातें हैं, ठीक वैसे ही जैसे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किये जातें हैं।
(c) भारत के संविधान में राज्यपाल को उसके पद से हटाने हेतु कोई भी प्रक्रिया अधिकथित नहीं है।
(d) विधायी व्यवस्था वाले संघ राज्यक्षेत्र में मुख्यमंत्री की नियुक्ति उपराज्यपाल द्वारा बहुमत समर्थन के आधार पर की जाती है।

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारतीय न्यायपालिका के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2021)

  1. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश को भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा भारत के राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से वापस बैठने और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिये बुलाया जा सकता है। 
  2. भारत में उच्च न्यायालय के पास अपने निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति है जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय करता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


शासन व्यवस्था

निवारक निरोध

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय,निवारक निरोध,अनुच्छेद 22 , उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, दंडात्मक हिरासत, 'सार्वजनिक व्यवस्था' , कानून और व्यवस्था, राम मनोहर लोहिया बनाम बिहार राज्य मामले, 1965 

मेन्स के लिये:

निवारक निरोध और कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने में इसका महत्त्व।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि निवारक निरोध कानूनों के तहत सलाहकार बोर्डों को सरकार के लिये केवल "रबर-स्टांपिंग प्राधिकारी" की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिये।

  • उन्हें एक ऐसे सुरक्षा वाल्व के रूप में कार्य करना चाहिये जो राज्य द्वारा शक्ति के अनियंत्रित उपयोग के साथ ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के बीच खड़ा हो।

निवारक निरोध क्या है?

  • पृष्ठभूमि: 
    • निवारक निरोध को अधिकृत करने वाले कानून वर्ष 1818 से भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन में अस्तित्व में थे।
    • प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने पर वर्ष 1915 का भारत रक्षा अधिनियम पारित किया गया था, और साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बनाए गए आपातकालीन नियमों के संबंध में भी इसे दोहराया गया था।
      • दोनों में निवारक निरोध के प्रावधान हैं, यानी किसी व्यक्ति को विचारण और दोषसिद्धि के बिना हिरासत में रखना।
  • परिचय:
    • निवारक निरोध का अर्थ है किसी व्यक्ति को न्यायालय द्वारा विचारण एवं दोषसिद्धि के बिना हिरासत में लेना। इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को पूर्व अपराध के लिये दंडित करना नहीं है बल्कि उसे निकट भविष्य में अपराध करने से रोकना है।
    • किसी व्यक्ति की हिरासत तीन महीने से अधिक नहीं हो सकती जब तक कि सलाहकार बोर्ड विस्तारित हिरासत हेतु पर्याप्त कारण के लिये रिपोर्ट जारी नहीं करता है।
    • निवारक निरोध के लिये आधार:
      • राज्य की सुरक्षा
      • लोक व्यवस्था
      • विदेशी मामले, आदि।
  • हिरासत के दो प्रकार:
    • निवारक निरोध तब होता है जब किसी व्यक्ति को केवल इस संदेह के आधार पर पुलिस हिरासत में रखा जाता है कि वे कोई आपराधिक कार्य कर सकते हैं या समाज को हानि पहुँचा सकते हैं।
      • पुलिस के पास किसी भी व्यक्ति पर अपराध करने का संदेह होने पर उसे हिरासत में लेने और कुछ मामलों में वारंट अथवा मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना गिरफ्तारी करने का भी अधिकार है।
    • दंडात्मक हिरासत जिसका अर्थ है किसी दाण्डिक अपराध के लिये सज़ा के रूप में हिरासत में रखना। यह तब होता है जब कोई अपराध वास्तव में किया गया हो, या उस अपराध को करने का प्रयास किया गया हो।
  • सुरक्षा:
    • अनुच्छेद 22 गिरफ्तार या हिरासत में लिये गए व्यक्तियों को संरक्षण प्रदान करता है।
      • दो प्रकार के हिरासत - पहला भाग सामान्य कानूनी मामलों से संबंधित है और दूसरा भाग निवारक निरोध के मामलों से संबंधित है।
      • यह अनुच्छेद निवारक निरोध कानूनों के लिये सलाहकार बोर्ड के निर्माण को अनिवार्य करता है, जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिये योग्य व्यक्ति शामिल होते हैं।
      • विभिन्न कानूनों के तहत, समीक्षा बोर्डों को प्रत्येक तीन माह में हिरासत के आदेशों का आकलन करना चाहिये, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि निवारक निरोध के लिये पर्याप्त कारण हैं या नहीं। वे साक्ष्यों की जाँच करते हैं, यदि आवश्यक हो तो अधिक जानकारी का अनुरोध करते हैं, हिरासत में लिये गए व्यक्ति की बात सुनते हैं और फिर रिपोर्ट करते हैं कि हिरासत उचित थी या नहीं।
    • हिरासत में लिये गए व्यक्ति को उपलब्ध सुरक्षा उपाय:
      • किसी व्यक्ति को केवल 3 माह के लिये निवारक हिरासत में लिया जा सकता है।
        • सलाहकार बोर्ड की स्वीकृति के बाद ही हिरासत की अवधि को 3 माह से अधिक के लिये बढ़ाया जा सकता है।
      • बंदी को अपनी हिरासत के कारणों को जानने का अधिकार है।
        • हालाँकि, यदि लोकहित में ऐसा करना आवश्यक हो तो राज्य आधार बताने से इनकार कर सकता है।
      • बंदी को उसकी हिरासत को चुनौती देने का अवसर प्रदान किया जाता है।
  • सापेक्ष निवारक कानून:
  • निवारक हिरासत से संबंधित मुद्दे:
    • लोकतंत्र पर प्रश्नचिह्न: विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश ने निवारक हिरासत को संविधान का अभिन्न अंग नहीं बनाया है जैसा कि भारत में किया गया है।
    • अतिरिक्त न्यायिक प्राधिकरण: सरकारें कभी-कभी ऐसे कानूनों का उपयोग अतिरिक्त न्यायिक अधिकार का प्रयोग करने के लिये करती हैं, जिससे निवारक हिरासत को लेकर चिंताएँ बढ़ जाती हैं।
    • अन्य अधिनियमों का दुरुपयोग: गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 जैसे कई कानून हैं जिनका दुरुपयोग निवारक हिरासत के लिये किये जाने की संभावना है।
    • सरकारी अधिकारियों द्वारा हेरफेर: ज़िला मजिस्ट्रेट तथा पुलिस भी अक्सर उभरती सांप्रदायिक झड़पों या किन्हीं दो समुदायों के बीच हुई झड़पों के दौरान कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिये संबंधित व्यक्तियों को नियंत्रित करने के लिये उन्हें निवारक हिरासत में लेते हैं, भले ही इससे हमेशा सार्वजनिक अव्यवस्था न हुई हो।

निवारक निरोध पर सर्वोच्च न्यायालय:

  • अमीना बेगम केस, 2023: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि निवारक हिरासत आपातकालीन स्थितियों के लिये एक असाधारण उपाय है और इसे नियमित रूप से इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये।
    • निवारक हिरासत का उद्देश्य सज़ा देना नहीं है बल्कि राज्य की सुरक्षा के लिये हानिकारक किसी भी चीज़ को रोकना है।
  • अंकुल चंद्र प्रधान केस, 1997: इस मामले में इस बात पर बल दिया गया कि निवारक हिरासत का उद्देश्य सज़ा देने के बजाय राज्य की सुरक्षा को नुकसान से बचाना है।

सार्वजनिक व्यवस्था एवं कानून व्यवस्था क्या है?

  • परिचय:
    • सार्वजनिक व्यवस्था का तात्पर्य समाज के भीतर शांति, स्थिरता और सद्भाव बनाए रखना है, यह सुनिश्चित करना कि गतिविधियाँ और व्यवहार समुदाय की समग्र कल्याण या सुरक्षा को बाधित न करें।
    • सार्वजनिक व्यवस्था भी स्वतंत्र भाषण और अन्य मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने का एक आधार है।
  • सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की शक्ति:
    • सूची I (संघ सूची) की प्रविष्टि 9 के तहत, भारत का संविधान संसद को भारत की रक्षा, विदेशी मामलों या सुरक्षा से जुड़े कारणों के लिये निवारक हिरासत के लिये कानून बनाने की विशेष शक्ति प्रदान करता है।
    • सूची III (समवर्ती सूची) की प्रविष्टि 3 के तहत, संसद और राज्य विधानमंडल दोनों के पास सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव या समुदाय के लिये आवश्यक आपूर्ति या सेवाओं के रखरखाव से संबंधित कारणों से ऐसे कानून बनाने की शक्तियाँ हैं।
    • संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची (सूची 2) के अनुसार, सार्वजनिक व्यवस्था के पहलुओं पर कानून बनाने की शक्ति राज्यों के पास है।
  • सार्वजनिक व्यवस्था और कानून एवं व्यवस्था के बीच अंतर:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने 'सार्वजनिक व्यवस्था' और 'कानून और व्यवस्था' के बीच अंतर किया। 
    • राम मनोहर लोहिया बनाम बिहार राज्य मामले, 1965 में, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि 'कानून और व्यवस्था' की समस्या केवल कुछ व्यक्तियों को प्रभावित करती है, लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था के मुद्दे ने समुदाय या जनता को बड़े पैमाने पर या यहाँ तक कि देश को भी प्रभावित किया है।
      • 'कानून और व्यवस्था' और 'सार्वजनिक व्यवस्था' के बीच अंतर उनके दायरे की डिग्री एवं सीमा में निहित है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की गतिविधियों को "सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के लिये हानिकारक किसी भी तरीके से कार्य करने" की अभिव्यक्ति के अंतर्गत लाने के लिये गतिविधियाँ ऐसी प्रकृति की होनी चाहिये कि सामान्य कानून उनसे निपट न सकें या समाज को प्रभावित करने वाली विध्वंसक गतिविधियों को रोक न सकें।

आगे की राह

  • संविधान के कामकाज की समीक्षा करने के लिये राष्ट्रीय आयोग (NCRWC): निवारक निरोध प्रावधानों की समीक्षा के बाद वर्ष 2002 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें दो सिफारिशें दी गईं:
    • अनुच्छेद 22 के तहत हिरासत की अधिकतम अवधि छह महीने होनी चाहिये।
    • सलाहकार बोर्ड की संरचना में एक अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य शामिल होने चाहिये जो उच्च न्यायालय के सेवारत न्यायाधीश हों।
  • सर्वोच्च न्यायालय का दृष्टिकोण: जुलाई, 2022 में, तेलंगाना में एक चेन-स्नैचर के लिये जारी निवारक निरोध आदेश को रद्द करते हुए, यह देखा गया कि राज्य को दी गई ये शक्तियाँ "असाधारण" थीं और चूँकि वे किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रभावित करते हैं, इसलिये उनका उपयोग कम-से-कम किया जाना चाहिये।
    • न्यायालय ने यह भी कहा था कि इन शक्तियों का उपयोग सामान्य कानून और व्यवस्था की समस्याओं को नियंत्रित करने के लिये नहीं किया जाना चाहिये।

Drishti Mains Question

प्रश्न. सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखने में निवारक निरोध तथा इसकी प्रभावशीलता पर चर्चा कीजिये।

विधिक अंतर्दृष्टि: निवारक निरोध की वैधता

https://www.drishtijudiciary.com/hin


कृषि

प्याज निर्यात प्रतिबंध और उससे जुड़ी चुनौतियाँ

प्रिलिम्स:

प्याज़, भारत की निर्यात नीति, बागवानी, कृषि से संबंधित निकाय

मेन्स:

भारत की निर्यात नीति, भारत-UAE संबंध, कृषि सुधार, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत सरकार ने घरेलू अधिशेष को कम करने के उद्देश्य से चल रहे निर्यात प्रतिबंध के बावजूद संयुक्त अरब अमीरात को प्याज़ निर्यात की अनुमति दी। 

  • हालाँकि आलोचकों का आरोप है कि संयुक्त अरब अमीरात के बाज़ार में बिक्री मूल्य वैश्विक कीमतों की तुलना में काफी कम है, जिससे उनके मुनाफे में कमी आई है और अनुचित प्रथाओं के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।

प्याज़ के निर्यात से जुड़ा मौज़ूदा मुद्दा:

  • पृष्ठभूमि: दिसंबर, 2023 में भारत सरकार ने घरेलू उत्पादन में कमी को नियंत्रित करने के लिये प्याज़ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन राजनयिक अनुरोधों पर संयुक्त अरब अमीरात जैसे विशिष्ट देशों को निर्यात की अनुमति दी।
    • हालाँकि संयुक्त अरब अमीरात में प्याज़ के शिपमेंट के परिणामस्वरूप कीमतों में काफी अंतर हो गया है, भारतीय किसानों को संयुक्त अरब अमीरात के बाज़ारों में प्याज़ की कम कीमतें मिल रही हैं।
      • उदाहरण के लिये, हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात जैसे प्रमुख बाज़ारों में प्याज़ की कीमतें 1500 डॉलर प्रति टन तक बढ़ गई, जबकि संयुक्त अरब अमीरात में भारत के हालिया शिपमेंट लगभग 500 से 550 डॉलर प्रति टन पर भेजे गए थे।
  • निर्यातकों द्वारा जताई गई चिंताएँ:
    • पारदर्शिता का अभाव: निर्यात कीमतों को निर्धारित करने और निर्यातकों तथा आयातकों का चयन करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव है, जिससे किसानों एवं निर्यातकों के बीच चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
      • निर्यातकों का आरोप है कि संयुक्त अरब अमीरात में कुछ आयातकों ने भारतीय किसानों की कीमत पर अप्रत्याशित लाभ कमाया है।
      • निर्यात का प्रबंधन भारत में सरकारी स्वामित्व वाली संस्था नेशनल कोऑपरेटिव एक्सपोर्ट्स लिमिटेड (NCEL) द्वारा किया जा रहा है।
        • संयुक्त अरब अमीरात में इन शिपमेंट को प्राप्त करने वाले आयातक निजी व्यापारी और सुपरमार्केट शृंखलाएँ हैं, न कि खाद्य सुरक्षा पर केंद्रित सरकारी एजेंसियाँ। 
    • व्यापार मानदंडों का उल्लंघनः व्यापार मानदंडों के अनुसार, स्थानीय प्याज़ आपूर्तिकर्त्ता अत्यधिक कम संभव मूल्य के लिये बोली लगाते हैं, जबकि खरीदारों का चयन उच्चतम मूल्य के आधार पर किया जाता है। 
      • हालाँकि निर्यातकों का तर्क है कि UAE के मामले में इस प्रथा का पालन नहीं किया जा रहा है।
  • प्याज़ उगाने वाले किसानों द्वारा उठाई गई चिंताएँ: 
    • MSP का अभाव: प्याज़ उगाने वाले किसानों को सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) आधारित खरीद से कोई लाभ नहीं मिलता है और वे पूरी तरह से बाज़ार पर निर्भर होते हैं।
    • मूल्य असमानता: किसानों को उनके उगाए गए प्याज़ के लिये अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में बेची जाने वाली कीमतों की तुलना में बहुत कम कीमत दी जाती है, जिससे किसानों को काफी नुकसान होता है।
      • मार्च और अप्रैल, 2023 में बेमौसम भारी वर्षा ने कटे हुए प्याज़ को नुकसान पहुँचाया, जिससे वे भंडारण के लिये कम उपयुक्त हो गए, जिससे किसानों को प्याज़ की संकटपूर्ण बिक्री करनी पड़ी तथा प्याज़ की गुणवत्ता में तेज़ी से गिरावट आई।
    • निर्यात प्रतिबंध: उत्पादन में कमी के कारण सरकार द्वारा प्याज़ के निर्यात पर बार-बार प्रतिबंध लगाने से बाज़ार बाधित हो सकता है और किसानों की आय प्रभावित हो सकती है।
      • अधिकांश रबी प्याज़ उगाने वाले किसान नमी और अंकुरण को रोकने के लिये फसल की कटाई के बाद उसका भंडारण करते हैं, और उन्हें अगली खरीफ फसल से पहले सितंबर से अक्तूबर तक धीरे-धीरे बेचते हैं।
      • ऑफ-सीज़न में अधिक प्राप्तियाँ उन्हें पहले की कम कीमत वाली बिक्री से हुए नुकसान की भरपाई करने में सहायता करती हैं। लेकिन निर्यात प्रतिबंध जैसे कदमों से उन्हें उचित लाभ कमाने की उम्मीद धूमिल हो गई है।
      • इसके अलावा, चावल, गेँहू या प्याज़ जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों पर निर्यात प्रतिबंध एक भरोसेमंद वैश्विक खाद्य स्रोत के रूप में भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचा सकता है, जिससे इसकी बहाली चुनौतीपूर्ण हो जाएगी।

भारत में प्याज़ उगाने वाले किसानों की समस्याओं के समाधान के लिये क्या कदम आवश्यक हैं?

  • उचित मूल्य तंत्र: एक निष्पक्ष और पारदर्शी मूल्य निर्धारण तंत्र लागू करना, जो सुनिश्चित करता है कि किसानों को उनके प्याज़ के लिये उचित मूल्य मिले।
  • निर्यात नीति की समीक्षा: भारत के लिये टैरिफ और व्यापार पर सामान्य समझौते के अनुरूप निर्यात नीतियों की समीक्षा एवं संशोधन करने का समय आ गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे किसानों पर नकारात्मक प्रभाव न डालें तथा निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं को बढ़ावा दें।
  • बाज़ार सुधार: बिचौलियों पर निर्भरता कम करने और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करने के लिये कृषि विपणन प्रणाली में सुधार लाना।
  • निर्यात मूल्य निगरानी: यह सुनिश्चित करने के लिये निर्यात कीमतों की बारीकी से निगरानी करना कि वे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार की कीमतों के अनुरूप हैं और घरेलू किसानों को हानि नहीं पहुँचाती हैं।
  • सौर ऊर्जा से संचालित निर्जलीकरण इकाइयाँ: गाँव के स्तर पर मोबाइल, सौर ऊर्जा से संचालित निर्जलीकरण इकाइयाँ लगाने से किसानों को अधिशेष के दौरान अतिरिक्त प्याज़ को निर्जलित करने में सशक्त बनाया जा सकता है।
    • यह प्याज़ की शेल्फ लाइफ को बढ़ाता है, उपज को खराब होने को कम करता है, और सरलता से निर्यात योग्य उत्पाद बनाता है।

कृषि उत्पादों के आयात तथा निर्यात से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ/नीतियाँ क्या हैं?

  • कृषि पर WTO समझौता: उरुग्वे दौर की वार्ता के परिणामस्वरूप हुए इस समझौते का उद्देश्य इस क्षेत्र में व्यापार में सुधार करने के साथ-साथ नीतियों को अधिक बाज़ार-उन्मुख बनाना है।
    • इसमें सब्सिडी, व्यापार बाधाओं को कम करने एवं व्यापार को अधिक पूर्वानुमानित तथा पारदर्शी बनाने की प्रतिबद्धताएँ शामिल हैं,  
    • भारत कृषि पर विश्व व्यापार संगठन समझौते (AoA) का एक पक्षकार है।
  • स्वच्छता एवं पादप स्वच्छता उपायों के अनुप्रयोग पर समझौता: ये मानव, पशु, अथवा पौधों के जीवन या स्वास्थ्य को कीटों और बीमारियों, भोजन  पेय पदार्थ, या चारा सामग्री में योजकों, संदूषकों, विषाक्त पदार्थों अथवा रोगजनित जीवों से उत्पन्न होने वाले जोखिमों से बचाने के उपाय हैं।
    • भारत इसका एक पक्षकार है।
  • अंतर्राष्ट्रीय पादप संरक्षण सम्मेलन (IPPC): यह संधि विश्व के पादप संसाधनों को कीटों के प्रसार और संपर्क से बचाती है, साथ ही सुरक्षित व्यापार को भी बढ़ावा देती है।
    • भारत अंतर्राष्ट्रीय पादप संरक्षण कन्वेंशन का एक पक्षकार है।

प्याज़ के बारे में महत्त्वपूर्ण तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: प्याज़ एक जड़ी-बूटी है जो लिली परिवार से संबंधित है। यह एक महत्त्वपूर्ण बागवानी वस्तु है जो विश्व में उनके पाक प्रयोजनों एवं औषधीय मूल्यों के लिये उगाई जाती है।
  • प्रमुख उत्पादक: भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा प्याज़ उत्पादक है।
    • महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु प्रमुख प्याज़  उत्पादक राज्य हैं।
    • वर्ष 2021-22 (तीसरा अग्रिम अनुमान) में प्याज़ उत्पादन में महाराष्ट्र 42.53% की हिस्सेदारी के साथ पहले स्थान पर है, उसके बाद 15.16% की हिस्सेदारी के साथ मध्य प्रदेश है।
  • निर्यात गंतव्य: भारतीय प्याज़ के प्रमुख निर्यात स्थलों में बांग्लादेश, मलेशिया, संयुक्त अरब अमीरात, श्रीलंका तथा नेपाल शामिल हैं।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न. हाल ही में कुछ कृषि उत्पादों पर निर्यात प्रतिबंध पर विचार करते हुए भारत की कृषि निर्यात नीति का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अधीन बनाए गए उपबंधों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. केवल वे ही परिवार सहायता प्राप्त खाद्यान्न लेने की पात्रता रखते हैं जो ‘‘गरीबी रेखा से नीचे’’ (बी.पी.एल) श्रेणी में आते हैं।
  2.  परिवार में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र की सबसे अधिक उम्र वाली महिला ही राशन कार्ड निर्गत किये जाने के प्रयोजन से परिवार का मुखिया होगी।
  3.  गर्भवती महिलाएँ एवं दुग्ध पिलाने वाली माताएँ गर्भावस्था के दौरान और उसके छ: महीने बाद तक प्रतिदिन 1600 कैलोरी वाला राशन घर ले जाने की हकदार हैं।

उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) 1 और 2   
(b) केवल 2
(c) 1 और 3   
(d) केवल 3


मेन्स:

प्रश्न. अब तक भी भूख और गरीबी भारत में सुशासन के समक्ष सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं। मूल्यांकन कीजिये कि इन भारी समस्याओं से निपटने में क्रमिक सरकारों ने किस सीमा तक प्रगति की है। सुधार के लिये उपाय सुझाइए। (2017)

प्रश्न. खाद्यान्न वितरण प्रणाली को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिये सरकार द्वारा कौन से सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं?  (2019)


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