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भारतीय राजव्यवस्था

लोक सुरक्षा अधिनियम: जम्मू-कश्मीर

  • 25 Oct 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

जम्मू-कश्मीर, उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय

मेन्स के लिये:

जम्मू-कश्मीर लोक सुरक्षा अधिनियम, जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक अवस्थिति

चर्चा में क्यों?

गृह मंत्री की यात्रा से पहले केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर (J&K) में लगभग 700 व्यक्तियों को हिरासत में लिया गया और इनमें से कुछ व्यक्तियों को जम्मू-कश्मीर लोक सुरक्षा अधिनियम (PSA), 1978 के तहत हिरासत में लिया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • PSA के तहत किसी व्यक्ति को कार्यकारी आदेश के आधार पर अधिकतम दो वर्षों के लिये बिना किसी मुकदमे के हिरासत में लिया जा सकता है, यदि उसका कार्य राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव के प्रतिकूल है।
  • प्रवर्तन:
    • निरोध आदेश या तो संभागीय आयुक्त या ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित किया जाता है।
  • परिभाषा में संशोधन
    • हिरासत में लिये गए व्यक्ति के संबंधियों द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से प्रशासनिक निवारक निरोध आदेश को चुनौती देने का एकमात्र तरीका है।
      • उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के पास ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई करने तथा PSA को निरस्त करने के लिये अंतिम आदेश पारित करने का अधिकार क्षेत्र है।
      • हालाँकि अगर आदेश को निरस्त कर दिया जाता है, तो सरकार द्वारा PSA के तहत एक और नज़रबंदी आदेश पारित करने और व्यक्ति को फिर से हिरासत में लेने पर कोई रोक नहीं है।
      • आदेश पारित करने वाले अधिकारी के खिलाफ कोई अभियोजन या कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती है।
  • PSA संबंधी मुद्दे:
    • मुकदमे के बिना हिरासत:
      • PSA किसी व्यक्ति को बिना औपचारिक आरोप के और बिना किसी मुकदमे के हिरासत में रखने की अनुमति देता है।
      • सामान्य परिस्थितियों के विपरीत PSA के तहत हिरासत में लिये गए व्यक्ति को नज़रबंदी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने की आवश्यकता नहीं होती।
    • जमानत याचिका दाखिल करने का अधिकार नहीं: 
      • हिरासत में लिये गए व्यक्ति को अदालत के समक्ष जमानत याचिका दायर करने का अधिकार नहीं है और वह हिरासत में लेने वाले प्राधिकारी के समक्ष उसका प्रतिनिधित्व करने के लिये किसी वकील को नियुक्त नहीं कर सकता है।
    • PSA की धारा 8:
      • यह हिरासत में  लेने के कई कारण प्रदान करता है, जिसमें "धर्म, मूल, जाति, समुदाय या क्षेत्र के आधार पर दुष्प्रचार करना या दुष्प्रचार का प्रयास करना, दुश्मनी या घृणा या वैमनस्य की भावना को उकसाना या ऐसे कार्यों को समर्थन करना शामिल है। 
      • इस संबंध में निर्णय लेने की ज़िम्मेदारी ज़िला कलेक्टरों (DM) या ज़िलाधिकारियों की होती है, इसके लिये 12 दिन की अवधि प्रदान की जाती है, इसके अंतर्गत एक सलाहकार बोर्ड को नज़रबंदी को मंज़ूरी देनी होती है।
    • छोटे और बड़े अपराधों के बीच कोई भेद नहीं:
      • यह सार्वजनिक व्यवस्था में व्यवधान के लिये 1 वर्ष तक और राज्य की सुरक्षा के लिये हानिकारक कार्यों हेतु 2 वर्ष तक की कैद की अनुमति देता है।
  • लोक सुरक्षा अधिनियम पर सर्वोच्च न्यायालय का पक्ष:
    • सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने माना है कि PSA के तहत किसी व्यक्ति को हिरासत में लेते समय DM का कानूनी दायित्व है कि वह उस व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने से पहले सभी परिस्थितियों का विश्लेषण करे।
    • यह भी माना गया है कि जब पहले से ही पुलिस हिरासत में एक व्यक्ति को PSA के तहत गिरफ्तार किया जाता है, तो DM को उस व्यक्ति को हिरासत में लेने का "उपयुक्त कारण" दर्ज कराना पड़ता है।
    • हालाँकि DM किसी व्यक्ति को PSA के तहत कई बार हिरासत में ले सकता है, परंतु उसे बाद में नज़रबंदी आदेश पारित करते समय नए तथ्य प्रस्तुत करने होंगे।
    • साथ ही उन सभी तथ्यों, जिसके आधार पर निरोध आदेश पारित किया गया है, से हिरासत में लिये गए व्यक्ति को अवगत कराया जाना चाहिये।
    • हिरासत में लिये गए व्यक्ति द्वारा समझी जाने वाली भाषा में निरोध के आधार को स्पष्ट करना और व्यक्ति से संवाद करना होता है।

बंदी प्रत्यक्षीकरण:

  • यह एक लैटिन शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है "आपके पास शरीर होना चाहिये"। यह रिट मनमानी नज़रबंदी के खिलाफ व्यक्तिगत स्वतंत्रता का एक कवच है।
  • इसे सार्वजनिक प्राधिकरणों के साथ-साथ निजी व्यक्तियों दोनों के खिलाफ जारी किया जा सकता है।
  • दूसरी ओर रिट वहाँ जारी नहीं की जाती है, जहाँ:
    • हिरासत वैध है।
    • कार्यवाही एक विधायिका या अदालत की अवमानना ​​के लिये की गई है।
    • निरोध की कार्यवाही एक सक्षम अदालत द्वारा की गई है।
    • हिरासत में रखना न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।

आगे की राह:

  • अब जबकि यह राज्य एक केंद्रशासित प्रदेश बन गया है, PSA को अखिल भारतीय कानून के अनुरूप लाया जाना चाहिये था।
  • जम्मू-कश्मीर में क्षेत्रीय नेताओं की निरंतर हिरासत जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करने और राजनीतिक समाधान खोजने के लिये सही नहीं होगी।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि इस संभावित खतरनाक शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिये निवारक निरोध के कानून को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिये और प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का सावधानीपूर्वक अनुपालन किया जाना अनिवार्य और महत्त्वपूर्ण है।
  • यदि सरकार की आलोचना करने का नागरिकों का अधिकार कानून और व्यवस्था के लिये खतरा बन जाता है, तो एक कार्यशील लोकतंत्र के रूप में गणतंत्र का भविष्य एक खुला प्रश्न बन जाता है।

स्रोत: द हिंदू

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