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स्टेट पी.सी.एस.

  • 26 May 2025
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बिहार Switch to English

नालंदा विश्वविद्यालय

चर्चा में क्यों?

अर्थशास्त्री सचिन चतुर्वेदी को 21 मई 2025 को बिहार स्थित नालंदा विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया

मुख्य बिंदु 

नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में:

  • स्थापना और प्रारंभिक उत्कर्ष: 
    • नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 427 ई. में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त ने वर्तमान बिहार में की थी।
    • यह 12वीं शताब्दी तक लगभग 800 वर्षों तक समृद्ध होता रहा।
    • यह विश्वविद्यालय सम्राट हर्षवर्द्धन तथा पाल वंश के शासनकाल में अपनी प्रतिष्ठा और वैभव के चरम पर पहुँचा।
  • आगंतुक और विद्वान:
    • 7वीं शताब्दी के चीनी बौद्ध भिक्षु ह्वेन त्सांग ने नालंदा में लगभग पाँच वर्षों तक अध्ययन किया और कई धर्मग्रंथों को चीन ले गए।
    • एक अन्य चीनी तीर्थयात्री ई-त्सिंग ने 670 ईस्वी में नालंदा का भ्रमण किया और लगभग 2,000 छात्रों की उपस्थिति तथा 200 गाँवों से प्राप्त वित्तीय सहायता का उल्लेख किया।
    • नालंदा ने चीन, मंगोलिया, तिब्बत और कोरिया सहित पूरे एशिया से छात्रों को आकर्षित किया।
    • नागार्जुन, आर्यभट्ट और धर्मकीर्ति जैसे विद्वानों ने यहाँ महत्त्वपूर्ण बौद्धिक योगदान दिये।
    • यह क्षेत्र आध्यात्मिक रूप से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि भगवान बुद्ध और महावीर ने इसी क्षेत्र में ध्यान लगाया था।
  • आक्रमण और पतन:
    • नालंदा विश्वविद्यालय को अपने इतिहास में कई बार विनाश का सामना करना पड़ा। 5वीं शताब्दी में हूणों और 7वीं शताब्दी में गौड़ों द्वारा किये गये आक्रमणों से यह आंशिक रूप से नष्ट हुआ, लेकिन दोनों बार इसके पुनर्निर्माण के प्रयास भी किये गए।
    • हालाँकि, इसका अंतिम और सबसे विनाशकारी आक्रमण 1193 ईस्वी में बख़्तियार खिलजी द्वारा किया गया, जिसमें विश्वविद्यालय को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया।
    • बाद में 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश सर्वेक्षकों फ्राँसिस बुकानन-हैमिल्टन और सर अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने इसके अवशेषों को पुनः खोजा
  • पुनरुद्धार प्रयास:
    • नालंदा को पुनर्जीवित करने का विचार 2000 के दशक के प्रारंभ में पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, सिंगापुर सरकार और पूर्वी एशियाई शिखर सम्मेलन के नेताओं के समर्थन से  गति प्राप्त की
    • इस पुनरुद्धार की परिकल्पना एक क्षेत्रीय ज्ञान केंद्र के रूप में की गई है, जिसमें भारत और पूर्वी एशियाई देशों के बीच सहयोग पर ज़ोर दिया गया।
  • कानूनी और संस्थागत ढाँचा:
    • नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम भारत की संसद द्वारा वर्ष 2010 में पारित किया गया, जिसने इस नवस्थापित संस्था को कानूनी आधार प्रदान किया।
    • बिहार सरकार ने विश्वविद्यालय परिसर के लिये प्राचीन खंडहरों के पास 455 एकड़ भूमि आवंटित की।
  • परिसर की रूपरेखा और विशेषताएँ:

    • परिसर का डिज़ाइन प्रसिद्ध वास्तुकार बी.वी. दोशी द्वारा तैयार किया गया, जिसमें पर्यावरणीय संतुलन और आधुनिक सुविधाओं का सुंदर समन्वय किया गया है।
      यह परिसर एक ‘नेट ज़ीरो’ हरित परिसर (Green Campus) है, जिसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं:
  • सौर ऊर्जा संयंत्र
    • जल शोधन एवं पुनर्चक्रण प्रणाली
    • लगभग 100 एकड़ में फैले जल निकाय
    • शैक्षणिक कार्यक्रम:
    • .नालंदा विश्वविद्यालय अब बौद्ध अध्ययन, ऐतिहासिक अध्ययन, पारिस्थितिकी और पर्यावरण अध्ययन तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध जैसे क्षेत्रों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम प्रदान करता है।
  • मान्यता:
    • प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों को वर्ष 2016 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया, जो इसके वैश्विक सांस्कृतिक महत्त्व को दर्शाता है।


राजस्थान Switch to English

भांड देवरा मंदिर का जीर्णोद्धार

चर्चा में क्यों?

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) राजस्थान के बारां ज़िले में स्थित 10वीं शताब्दी के भांड देवरा मंदिर का जीर्णोद्धार करने जा रहा है, जिसे अक्सर राज्य का "मिनी खजुराहो" कहा जाता है।

मुख्य बिंदु

  • स्थापत्य शैली और स्थान:

 

  • बारां ज़िले में रामगढ़ नदी के तट पर स्थित भांड देवरा मंदिर विशिष्ट नागर स्थापत्य शैली में निर्मित है।
  • खजुराहो के मंदिरों से इसकी समानता अद्भुत है, जिसके कारण इसे "राजस्थान का छोटा खजुराहो" उपनाम दिया गया है।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संरक्षण:
    • यह मंदिर मूलतः नागवंशी राजा मलय वर्मा द्वारा विजय स्मारक के रूप में बनवाया गया था।
    • 1162 ई. में इसे पुनः संरक्षण प्राप्त हुआ, जब मेडा वंश (Meda dynasty) के राजा तृष्णा वर्मा ने इसके जीर्णोद्धार का कार्य प्रारंभ किया।
  • विरासत की उपेक्षा और क्षति:
    • वर्षों की उपेक्षा और उदासीनता के कारण मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया है, जर्जर संरचना और चोरी हुई मूर्तियों के कारण इसकी समृद्ध विरासत नष्ट हो गई है।
  • एक भूवैज्ञानिक और सांस्कृतिक आश्चर्य:
    • समीपवर्ती रामगढ़ क्रेटर, जो लगभग 16.5 करोड़ वर्ष पूर्व एक ग्रह-उल्का (asteroid) के टकराव से बना था, भारत की दुर्लभ भू-विरासत स्थलों में से एक है।
    • यह एक ग्रह-उल्का प्रहार क्रेटर है, जिसका व्यास 3.5 किमी. है और यह विंध्य शृंखला के कोटा पठार में स्थित है, जो राजस्थान के बारां ज़िले के रामगढ़ गाँव के पास स्थित है।
    • यह भारत का आधिकारिक रूप से मान्यता प्राप्त तीसरा क्रेटर है, जिसका आकार मध्य प्रदेश में स्थित 14 किमी. व्यास वाला धाला क्रेटर और महाराष्ट्र में स्थित 1.8 किमी. व्यास वाला लोनार क्रेटर के बीच है।

नागर या उत्तर भारतीय मंदिर शैली

  • परिचय:
    • उत्तरी भारत में सामान्यतः पाए जाने वाले नागर शैली के मंदिरों की पहचान एक वक्रीय मीनार (शिखर), गर्भगृह (Sanctorum) और स्तंभयुक्त हॉल (मंडप) से होती है।
    • ये मंदिर आमतौर पर एक ऊँचे पत्थर के मंच (जगती) पर बनाए जाते हैं, जिसमें प्रवेश के लिये सीढ़ियाँ बनी होती हैं।
    • नागर मंदिर की भूमि योजना आमतौर पर वर्गाकार या आयताकार होती है, जिसमें चार भुजाएँ होती हैं।
  • शिखर (वक्रीय मीनार):
    • प्रारंभिक नागर मंदिरों में एक ही शिखर होता था, लेकिन बाद के मंदिरों में प्रायः अनेक शिखर होते थे।
  • गर्भगृह (पवित्र स्थान):
    • सबसे ऊँचे शिखर के ठीक नीचे स्थित गर्भगृह में मुख्य देवता का निवास है।
    • यह मंदिर के आध्यात्मिक मूल का प्रतिनिधित्व करता है और अक्सर विस्तृत अलंकरण से रहित होता है, जो आंतरिक पवित्रता को दर्शाता है।
  • जगती और पीठा:
    • नागर मंदिर एक ऊँचे मंच पर स्थित होते हैं जिसे जगती के नाम से जाना जाता है, जो मंदिर को भौतिक और प्रतीकात्मक दोनों रूप से ऊँचा उठाता है।
  • अधिष्ठान (आधार मंच):
    • पीठ और जगती के ऊपर अधिष्ठान होता है, जो आधार मंच है, जिस पर अधिरचना (मंदिर का शिखर और दीवारें) का निर्माण किया जाता है।

खजुराहो मंदिर 

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण:

  • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) संस्कृति मंत्रालय के तहत देश की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्त्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।
  • यह 3650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के अवशेषों का प्रबंधन करता है।
  • इसके कार्यों में पुरातात्त्विक अवशेषों का सर्वेक्षण, पुरातात्त्विक स्थलों की खोज एवं उत्खनन, संरक्षित स्मारकों का संरक्षण और रखरखाव करना आदि शामिल हैं।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1861 में ASI के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। अलेक्जेंडर कनिंघम को "भारतीय पुरातत्त्व के जनक" के रूप में भी जाना जाता है।

मध्य प्रदेश Switch to English

मध्य प्रदेश ने प्रमुख विकास परियोजनाओं का शुभारंभ किया

चर्चा में क्यों?

अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती के उपलक्ष्य में, मध्य प्रदेश ने बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने, महिलाओं को सशक्त बनाने और युवाओं के लिये रोज़गार सृजित करने के लिये प्रमुख पहलों की घोषणा की।

मुख्य बिंदु

  • कैबिनेट के प्रमुख निर्णय:
    • देवी अहिल्याबाई होल्कर प्रशिक्षण कार्यक्रम योजना:
      • इसका उद्देश्य कौशल विकास के माध्यम से युवाओं को रोज़गार से जोड़ना है।
      • कौशल-आधारित ऋण पर प्रति व्यक्ति 10,000 रुपए तक की ब्याज सब्सिडी प्रदान करता है।
      • वार्षिक सरकारी आवंटन 100 करोड़ रुपए होगा।
  • मध्य प्रदेश महानगर क्षेत्र योजना एवं विकास अधिनियम, 2025:
    • 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों के लिये महानगर योजना समितियों और विकास प्राधिकरणों के गठन को सक्षम बनाता है।
    • लक्षित क्षेत्र इंदौर, भोपाल, उज्जैन और देवास जैसे शहरों में शहरी नियोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आर्थिक विकास होंगे।
  • एकात्म धाम परियोजना के अंतर्गत आचार्य शंकर संग्रहालय:
    • 2,195 करोड़ रुपए का संशोधित बजट स्वीकृत किया गया।
    • ओंकारेश्वर में स्थित यह संग्रहालय अद्वैत वेदांत पर केंद्रित होगा तथा इसका उद्देश्य शिक्षा और पर्यटन को बढ़ावा देना है।
  • औद्योगिक क्षेत्रों में कार्यरत महिलाओं के छात्रावास:
    • 249 करोड़ रुपए के बजट से 4 औद्योगिक क्षेत्रों में 26 छात्रावासों के निर्माण को मंजूरी दी गई।
    • इसमें फूड कोर्ट, मनोरंजन क्षेत्र और चाइल्डकेयर क्षेत्र जैसी सुविधाएँ शामिल होंगी, जिससे महिला श्रमिकों के लिये सुरक्षित और सक्षम स्थान का निर्माण होगा।
  • MYR अस्पताल और श्याम शाह मेडिकल कॉलेज का उन्नयन:
    • महाराजा यशवंत राव अस्पताल (इंदौर) एवं श्याम शाह चिकित्सा महाविद्यालय (रीवा) के उन्नयन हेतु 1,095 करोड़ रुपए की स्वीकृति।
    • इसमें नए अस्पताल ब्लॉक, नर्सिंग छात्रावास और बेहतर चिकित्सा बुनियादी ढाँचे का निर्माण शामिल है।
  • राहवीर योजना:
    • दुर्घटना पीड़ितों को “स्वर्णिम घंटे” के भीतर परिवहन करने वाले दर्शकों को प्रोत्साहित किया जाता है।
    • जीवन रक्षक कार्य के लिये इनाम राशि 5,000 रुपए से बढ़ाकर 25,000 रुपए कर दी गई।
  • मुख्यमंत्री शहरी स्वच्छता मिशन का विस्तार:
    • इस योजना को 227 करोड़ रुपए के बजट के साथ वर्ष 2028-29 तक बढ़ाया गया।
    • सफाई कर्मचारियों के लिये कीचड़ हटाने वाले वाहनों, सीवर सफाई उपकरणों और सुरक्षात्मक गियर की खरीद के माध्यम से शहरी स्वच्छता को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना।

अहिल्याबाई होल्कर

  • जन्म और पृष्ठभूमि: अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को चोंडी, अहमदनगर (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनके पिता, मानकोजी राव शिंदे, गाँव के मुखिया थे।
  • विवाह और प्रारंभिक जीवन: उनका विवाह वर्ष 1733 में खांडेराव होलकर से हुआ था, जो मल्हार राव होलकर के पुत्र थे। मल्हार राव होलकर मालवा के शासक और होलकर वंश के संस्थापक थे।
    • वर्ष 1745 में कुम्हेर किले की घेराबंदी में खांडेराव की मृत्यु के बाद अहिल्याबाई विधवा हो गईं।
    • मल्हार राव होल्कर ने अहिल्याबाई को सती होने से रोका और उन्हें सैन्य एवं प्रशासनिक मामलों में प्रशिक्षित किया।
  • सत्ता पर आरोहण: वर्ष 1766 में मल्हार राव होलकर और वर्ष 1767 में उनके पुत्र मालेराव होलकर की मृत्यु के बाद, अहिल्याबाई होलकर ने मालवा की बागडोर संभाली और वर्ष 1767 में इंदौर की शासिका बनीं।
    • उन्होंने तुकोजी राव होल्कर को सेनापति नियुक्त किया और मध्य प्रदेश में महेश्वर को होल्कर राजवंश की राजधानी बनाया।
  • सामाजिक और आर्थिक योगदान: अहिल्याबाई होलकर ने सोमनाथ और काशी विश्वनाथ मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया, जिससे भगवान शिव के प्रमुख ज्योतिर्लिंगों की पुनर्स्थापना हुई। उन्होंने खुशाली राम, मराठी कवि मोरोपंत और शाहीर अनंतफंदी जैसे विद्वानों को संरक्षण दिया।
    • उन्होंने महिला शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया और सती प्रथा जैसी प्रथाओं का विरोध किया, साथ ही भील, गोंड जनजातियों तथा निम्न जातियों का उत्थान किया।
    • उन्होंने महेश्वर और इंदौर को प्रमुख व्यापार केंद्र बनाया, माहेश्वरी बुनाई उद्योग को बढ़ावा दिया और माहेश्वरी साड़ियों को पूरे भारत में प्रसिद्ध बनाया तथा अब इसे भौगोलिक संकेतक (GI) टैग के साथ पंजीकृत किया गया है।


बिहार Switch to English

बिरसा मुंडा

चर्चा में क्यों?

25 मई 2025 को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने झारखंड के राँची में जेल संग्रहालय का दौरा किया और बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि अर्पित की। 

मुख्य बिंदु

बिरसा मुंडा के बारे में: 

  • परिचय 
    • बिरसा मुंडा एक आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक सुधारक और लोक नायक थे, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आदिवासी विद्रोह में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
    • उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को उलिहातु (अब झारखंड के खूंटी ज़िले में) में एक गरीब बटाईदार परिवार में हुआ था
    • वे मुंडा जनजाति से संबंधित थे, जो छोटानागपुर पठार का एक प्रमुख आदिवासी समुदाय है।
    • प्रारंभिक नाम: दाउद मुंडा, जब उनके पिता ने कुछ समय के लिये ईसाई धर्म अपना लिया था।
  • शिक्षा और प्रारंभिक प्रभाव:
    • जयपाल नाग के मार्गदर्शन में स्थानीय स्कूलों में पढ़ाई की।
    • चार साल तक मिशनरी स्कूल और बाद में चाईबासा के बी.ई.एल. स्कूल में पढ़ाई की।
    • ईसाई धर्म से प्रभावित थे लेकिन बाद में सांस्कृतिक और धार्मिक मतभेदों के कारण इसे अस्वीकार कर दिया।
    • वैष्णव धर्म और आनंद पनरे (एक मुंशी) से प्रभावित होकर उन्होंने अपना आध्यात्मिक संप्रदाय बनाया।
    • अपने अनुयायियों द्वारा भगवान के रूप में जाने जाने लगे और बिरसाइत संप्रदाय की स्थापना की।
      • उनके अनुयायी उन्हें प्यार से "धरती आबा" (पृथ्वी के पिता) कहते हैं।
  • विश्वास और शिक्षाएँ:
    • जनजातीय देवता सिंहबोंगा की पूजा के माध्यम से एकेश्वरवाद को बढ़ावा दिया गया।
    • उन्होंने शराबखोरी, काले जादू और अंधविश्वासों में विश्वास तथा जबरन श्रम (बेथ बेगारी) के विरुद्ध अभियान चलाया।
    • स्वच्छ जीवन, स्वच्छता और आध्यात्मिक एकता को प्रोत्साहित किया गया।
    • जनजातीय संस्कृति और सामुदायिक भूमि स्वामित्व पर गर्व करना सिखाया गया।
  • औपनिवेशिक अन्याय के विरुद्ध प्रतिरोध:
    • ब्रिटिश भूमि नीतियों ने खुंटकट्टी भूमि व्यवस्था को नष्ट कर दिया, जहाँ भूमि पर सामुदायिक स्वामित्व होता था।
    • जमींदारों और ठेकेदारों (बिचौलियों) ने आदिवासियों का शोषण करना शुरू कर दिया, जिससे अनेक आदिवासी बंधुआ मज़दूर बन गए।
    • बिरसा ने अपने लोगों को इन अन्यायों के बारे में शिक्षित किया और उनसे अपने अधिकारों को पुनः प्राप्त करने का आग्रह किया।
  • उलगुलान (महान जनजातीय विद्रोह):
    • विद्रोह के कारण:

    • भूमि की हानि, आर्थिक कठिनाई, वनों की कटाई और सांस्कृतिक क्षरण ने बिरसा को कार्रवाई करने के लिये प्रेरित किया।
      • उलगुलान (विद्रोह) का आह्वान किया और आदिवासियों से लगान देना बंद करने का आग्रह किया।
      • प्रतिरोध का नारा: "अबुआ राज एते जाना, महारानी राज टुंडु जाना " (रानी का शासन समाप्त हो और हमारा शासन शुरू हो)।
    • विद्रोह की रूपरेखा:
      • यह विद्रोह वर्ष 1895 में ब्रिटिश राज द्वारा लागू की गई भूमि अतिक्रमण और जबरन श्रम नीतियों के प्रति प्रतिक्रिया के रूप में शुरू हुआ था।
      • वर्ष 1895 में बिरसा मुंडा को दंगा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और दो साल की जेल हुई।
      • वर्ष 1897 में रिहा होने के बाद उन्होंने अपने प्रयास फिर से शुरू किये, समर्थन जुटाने और जनजातीय नेतृत्व वाले राज्य के दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिये वे गाँव-गाँव गए।
      • वर्ष 1900 में बिरसा मुंडा की हैज़ा से मृत्यु हो गई, जिससे विद्रोह का सक्रिय चरण समाप्त हो गया।
    • परिणाम और विरासत:
      • वर्ष 1908 में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम पारित किया गया:
      • आदिवासियों से गैर-आदिवासियों को भूमि हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाया गया।
      • खुंटकट्टी अधिकारों को मान्यता दी गई।
      • बेत बेगारी (जबरन श्रम) पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
    • बिरसा मुंडा को सम्मानित करते हुए:
      • वर्ष 2021 से 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस (जनजातीय गौरव दिवस) के रूप में मनाया जाता है।
      • उन्हें एक साहसी नेता, आध्यात्मिक मार्गदर्शक और दूरदर्शी के रूप में याद किया जाता है।
      • कम आयु में निधन के बावजूद उन्होंने महान रणनीति, साहस और नेतृत्व का परिचय दिया।


उत्तराखंड Switch to English

उत्तराखंड में FM रेडियो स्टेशन लॉन्च

चर्चा में क्यों?

भारतीय सेना ने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में  'पंचशूल पल्स' नाम से अपना पहला FM रेडियो स्टेशन लॉन्च किया है। इसका उद्घाटन सेना की मध्य कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (GOC) ने किया।

मुख्य बिंदु

  • रेडियो स्टेशन के बारे में:
    • भारतीय सेना की स्थानीय पंचशूल ब्रिगेड के साथ इसके जुड़ाव को दर्शाने के लिये इस स्टेशन का नाम 'पंचशूल पल्स' रखा गया है।
    • इसे ऑपरेशन सद्भावना के एक भाग के रूप में संचालित किया जाता है, जो सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में नागरिकों के साथ रचनात्मक संबंध बनाने के लिये सेना की एक दीर्घकालिक पहल है।
    • ऑपरेशन सद्भावना 1990 के दशक में भारतीय सेना द्वारा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में आतंकवाद से प्रभावित समुदायों की सहायता के लिये शुरू की गई एक मानवीय पहल है।
    • यह वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम के अनुरूप है, जो भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में विकास, संपर्क और जागरूकता पर ज़ोर देता है।
    • यह स्टेशन 88.4 FM आवृत्ति पर प्रसारित होता है, जिसे 12 किमी. के दायरे तक सुना जा सकता है।
  • पहल के उद्देश्य:
    • इसका उद्देश्य सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक आदान-प्रदान के लिये एक मंच के रूप में कार्य करके नागरिक-सैन्य सहयोग को बढ़ाना है।
    • यह स्टेशन सीमावर्ती क्षेत्र के व्यक्तियों के योगदान और बलिदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने का भी प्रयास करता है।
  • रेडियो कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएँ:
    • कार्यक्रम में स्थानीय इतिहास, संस्कृति और सामाजिक प्रथाओं पर विशेष ज़ोर दिया जाता है।
    • इसमें कृषि और बागवानी पर सामग्री शामिल है, जो इस क्षेत्र में प्रमुख व्यवसाय हैं।
    • इस स्टेशन पर उस क्षेत्र के शहीदों और बहादुर सैनिकों की उपलब्धियों का उत्सव मनाने वाली कहानियाँ प्रसारित की गईं।
    • इसमें स्थानीय खिलाड़ियों तथा सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों की उपलब्धियों को भी उजागर किया गया है।

वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम (VVP)

  • कार्यक्रम के बारे में: इस कार्यक्रम को 15 फरवरी 2023 को अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और लद्दाख (UT) सहित राज्यों के 46 ब्लॉकों में 19 ज़िलों में भारत की उत्तरी सीमा पर गाँवों के समग्र विकास के लिये एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में अनुमोदित किया गया था।
  • लक्षित क्षेत्र: पर्यटन, सांस्कृतिक संवर्द्धन, कौशल विकास, उद्यमिता के साथ-साथ कृषि, बागवानी और औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों की खेती के माध्यम से आजीविका सृजन को बढ़ावा दिया जाएगा।
    • यह कार्यक्रम सड़क संपर्क, आवास, नवीकरणीय ऊर्जा आदि के माध्यम से बुनियादी ढाँचे में सुधार के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, स्वच्छता और सामुदायिक केंद्र जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
  • उद्देश्य: बेहतर बुनियादी ढाँचा और आजीविका के अवसर प्रदान करके, सीमा सुरक्षा और सतत् स्थानीय विकास को बढ़ाकर निवासियों को सीमावर्ती गाँवों में रहने के लिये प्रोत्साहित करना।
    • यह कार्यक्रम सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (BADP) का पूरक है, जो 16 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों में अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 0-10 किमी. के भीतर सीमावर्ती गाँवों में बुनियादी ढाँचे की कमी को पूरा करता है।
  • वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम-II (VVP-II):
    • VVP- II को वित्त वर्ष 2024-25 से 2028-29 के लिये ₹6,839 करोड़ के बजट के साथ अंतर्राष्ट्रीय भूमि सीमाओं (उत्तरी सीमा को छोड़कर) के साथ गाँवों को विकसित करने के लिये  लॉन्च किया गया है।


उत्तराखंड Switch to English

हेमकुंड साहिब

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में स्थित सिखों का पवित्र तीर्थस्थल हेमकुंड साहिब श्रद्धालुओं के लिये खोल दिया गया है, जिसके साथ ही वार्षिक तीर्थयात्रा का शुभारंभ हो गया है

मुख्य बिंदु

  • हेमकुंड साहिब के बारे में:
    • हेमकुंड साहिब समुद्र तल से लगभग 4,329 मीटर (14,200 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।
    • यह हेमकुंड झील के तट पर, बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों से घिरा हुआ है।
    • हिमानी जल और अल्पाइन घास के मैदानों से युक्त सुंदर परिदृश्य, शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक वातावरण को और अधिक समृद्ध करता है। 
    • फूलों की घाटी से होते हुए जाने वाले ट्रैकिंग मार्ग इसे एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बनाते हैं।
    • हेमकुंड झील से हिमगंगा नामक एक छोटी धारा बहती है, जो क्षेत्र की पारिस्थितिक समृद्धि में वृद्धि करती है।
  • आध्यात्मिक महत्त्व:
    • हेमकुंड साहिब विश्व में सर्वाधिक पूजनीय सिख तीर्थस्थलों में से एक है।
    •  गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार, दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने अपने प्रारंभिक जीवन में हेमकुंड झील पर गहन तप किया था।
    • यह स्थल भक्तों के लिये दिव्य प्रतिबिंब और पवित्रता का प्रतीक है।

गुरु गोबिंद सिंह 

  • प्रारंभिक जीवन:
    • 22 दिसंबर 1666 को बिहार के पटना में जन्मे गोबिंद राय सोढ़ी सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे।
    • ये नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर के पुत्र थे।
  • गुरु पद ग्रहण:
    • वर्ष 1675 में अपने पिता की शहादत के समय सिर्फ नौ वर्ष की आयु में उन्हें औपचारिक रूप से गुरु पद पर आसीन किया गया।
    • उन्होंने आध्यात्मिक नेतृत्व को सैन्य अनुशासन और साहित्यिक अभिव्यक्ति के साथ जोड़ा।
  • खालसा की स्थापना:
    • वर्ष 1699 में बैसाखी के दिन, उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की, जो संत-सैनिकों का एक सैन्य और आध्यात्मिक संगठन था।
    • उन्होंने पंच प्यारे (पाँच प्रिय जन) को दीक्षा दी, 'खंडे दी पाहुल' (अमृत संचार) की परंपरा शुरू की और पाँच ककार अनिवार्य किया: कंघा (कंघी), केश (बिना कटे बाल), कड़ा (स्टील कंगन), कृपाण (तलवार)और कच्छा (विशेष प्रकार का वस्त्र)।
    • उन्होंने अपना नाम गोबिंद राय से बदलकर गोबिंद सिंह रख लिया।
  • सैन्य संघर्ष और बलिदान:
    • मुगल सेनाओं और पहाड़ी राजाओं के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं, जिनमें भंगानी (1688), नादौन (1691) और मुक्तसर (1705) शामिल हैं।
    • मुगलों के अत्याचारों के कारण अपने चारों पुत्रों और माता गुजरी को खो दिया, लेकिन उनका मनोबल अडिग रहा।
  • अंतिम दिन और विरासत:
    • वर्ष 1708 में सरहिंद के नवाब वज़ीर खान द्वारा भेजे गए हत्यारों के माध्यम से नांदेड़ में घातक रूप से घायल कर दिया गया।
    • 7 अक्तूबर 1708 को अपनी मृत्यु से पहले, उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का शाश्वत गुरु घोषित किया, जिससे व्यक्तिगत गुरुओं की परंपरा समाप्त हो गई।


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