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उत्तराखंड

हेमकुंड साहिब

  • 26 May 2025
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड के चमोली ज़िले में स्थित सिखों का पवित्र तीर्थस्थल हेमकुंड साहिब श्रद्धालुओं के लिये खोल दिया गया है, जिसके साथ ही वार्षिक तीर्थयात्रा का शुभारंभ हो गया है

मुख्य बिंदु

  • हेमकुंड साहिब के बारे में:
    • हेमकुंड साहिब समुद्र तल से लगभग 4,329 मीटर (14,200 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।
    • यह हेमकुंड झील के तट पर, बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों से घिरा हुआ है।
    • हिमानी जल और अल्पाइन घास के मैदानों से युक्त सुंदर परिदृश्य, शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक वातावरण को और अधिक समृद्ध करता है। 
    • फूलों की घाटी से होते हुए जाने वाले ट्रैकिंग मार्ग इसे एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बनाते हैं।
    • हेमकुंड झील से हिमगंगा नामक एक छोटी धारा बहती है, जो क्षेत्र की पारिस्थितिक समृद्धि में वृद्धि करती है।
  • आध्यात्मिक महत्त्व:
    • हेमकुंड साहिब विश्व में सर्वाधिक पूजनीय सिख तीर्थस्थलों में से एक है।
    •  गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार, दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने अपने प्रारंभिक जीवन में हेमकुंड झील पर गहन तप किया था।
    • यह स्थल भक्तों के लिये दिव्य प्रतिबिंब और पवित्रता का प्रतीक है।

गुरु गोबिंद सिंह 

  • प्रारंभिक जीवन:
    • 22 दिसंबर 1666 को बिहार के पटना में जन्मे गोबिंद राय सोढ़ी सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे।
    • ये नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर के पुत्र थे।
  • गुरु पद ग्रहण:
    • वर्ष 1675 में अपने पिता की शहादत के समय सिर्फ नौ वर्ष की आयु में उन्हें औपचारिक रूप से गुरु पद पर आसीन किया गया।
    • उन्होंने आध्यात्मिक नेतृत्व को सैन्य अनुशासन और साहित्यिक अभिव्यक्ति के साथ जोड़ा।
  • खालसा की स्थापना:
    • वर्ष 1699 में बैसाखी के दिन, उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की, जो संत-सैनिकों का एक सैन्य और आध्यात्मिक संगठन था।
    • उन्होंने पंच प्यारे (पाँच प्रिय जन) को दीक्षा दी, 'खंडे दी पाहुल' (अमृत संचार) की परंपरा शुरू की और पाँच ककार अनिवार्य किया: कंघा (कंघी), केश (बिना कटे बाल), कड़ा (स्टील कंगन), कृपाण (तलवार)और कच्छा (विशेष प्रकार का वस्त्र)।
    • उन्होंने अपना नाम गोबिंद राय से बदलकर गोबिंद सिंह रख लिया।
  • सैन्य संघर्ष और बलिदान:
    • मुगल सेनाओं और पहाड़ी राजाओं के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं, जिनमें भंगानी (1688), नादौन (1691) और मुक्तसर (1705) शामिल हैं।
    • मुगलों के अत्याचारों के कारण अपने चारों पुत्रों और माता गुजरी को खो दिया, लेकिन उनका मनोबल अडिग रहा।
  • अंतिम दिन और विरासत:
    • वर्ष 1708 में सरहिंद के नवाब वज़ीर खान द्वारा भेजे गए हत्यारों के माध्यम से नांदेड़ में घातक रूप से घायल कर दिया गया।
    • 7 अक्तूबर 1708 को अपनी मृत्यु से पहले, उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का शाश्वत गुरु घोषित किया, जिससे व्यक्तिगत गुरुओं की परंपरा समाप्त हो गई।

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