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स्टेट पी.सी.एस.

  • 21 Aug 2025
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मध्य प्रदेश Switch to English

'एक बगिया माँ के नाम' परियोजना

चर्चा में क्यों?

महिलाओं को सशक्त बनाने और सतत् कृषि को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मध्य प्रदेश सरकार ने 'एक बगिया माँ के नाम' परियोजना शुरू की है, जिसके तहत स्वयं सहायता समूह (SHG) की महिलाओं की निजी भूमि पर बाग (orchards) विकसित किये जाएंगे।

मुख्य बिंदु

  • योजना के बारे में: 
    • यह परियोजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) का हिस्सा है और इससे राज्य में 31,000 से अधिक महिलाओं को लाभ मिलेगा। 

    • 'एक बगिया माँ के नाम' ऐप के माध्यम से 34,000 से अधिक महिलाएँ पहले ही पंजीकरण करा चुकी हैं। 

    • सरकार पौधे, खाद, सिंचाई टैंक और सुरक्षा के लिये काँटेदार तार की बाड़ जैसे आवश्यक संसाधन उपलब्ध करा रही है।

  • ऐप आधारित चयन प्रक्रिया:
    • लाभार्थियों का चयन विशेष रूप से 'एक बगिया माँ के नाम' ऐप के माध्यम से किया जा रहा है, जिसे मनरेगा परिषद के मार्गदर्शन में MP राज्य इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम लिमिटेड (MPSEDC) द्वारा विकसित किया गया है। 
    • केवल 0.5 से 1 एकड़ भूमि वाली महिलाएँ ही इस परियोजना में भाग लेने के लिये पात्र हैं। 
    • ऐसे मामलों में जहाँ लाभार्थी महिला के पास भूमि नहीं है, वहाँ उसके पति, पिता, ससुर या पुत्र की भूमि पर उनकी सहमति के अधीन वृक्षारोपण किया जा सकता है।
  • लाभार्थी विवरण एवं प्रशिक्षण: 
    • परियोजना के लिये प्रत्येक ब्लॉक में कम-से-कम 100 पात्र महिलाओं का चयन किया जा रहा है। 
    • इन महिलाओं को अपने बागों की उचित देखभाल और वृद्धि सुनिश्चित करने के लिये उर्वरक उपयोग, सिंचाई, कीट नियंत्रण तथा अंतर-फसल खेती सहित बाग प्रबंधन पर द्वि-वार्षिक प्रशिक्षण दिया जाएगा।
  • कृषि सखियों के माध्यम से सहायता: 
    • प्रत्येक 25 एकड़ के लिये, लाभार्थियों को सहायता प्रदान करने के लिये एक कृषि सखी (कृषि साथी) नियुक्त की जाएगी, जो जैविक उर्वरकों और कीटनाशकों की तैयारी सहित सतत् कृषि प्रथाओं पर व्यावहारिक मार्गदर्शन और सलाह देगी।
  • निगरानी और पारदर्शिता: 
    • पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये ड्रोन और उपग्रह इमेजरी के माध्यम से वृक्षारोपण गतिविधियों की निगरानी की जाएगी। 
    • पर्यवेक्षण के लिये एक अलग डैशबोर्ड भी बनाया गया है। प्रदर्शन के आधार पर शीर्ष 3 ज़िलों, 10 ज़िला पंचायतों और 25 ग्राम पंचायतों को पुरस्कृत किया जाएगा।
  • लाभार्थी चयन में अग्रणी जिले: 
    • लाभार्थी चयन में अग्रणी ज़िलों में सिंगरौली, देवास, खंडवा, निवाड़ी और टीकमगढ़ शामिल हैं, जिन्होंने परियोजना में सक्रिय भागीदारी दिखाई है।
  • संभावना: 
    • इस परियोजना से 31,000 से अधिक स्वयं सहायता समूह (SHG) की महिलाएँ लाभान्वित होंगी, जो अपनी निजी भूमि पर 3 मिलियन से अधिक फलदार वृक्ष लगाएंगी, जिससे महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण की नींव रखी जाएगी।


उत्तर प्रदेश Switch to English

पीएम-सूर्य घर योजना में उत्तर प्रदेश अग्रणी

चर्चा में क्यों?

जुलाई 2025 में उत्तर प्रदेश पीएम-सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के तहत प्रतिदिन सौर इकाइयाँ स्थापित करने में देश का अग्रणी राज्य बन गया।

मुख्य बिंदु

  • सौर इकाइयाँ 
    • जुलाई में उत्तर प्रदेश ने प्रतिदिन 891 सौर इकाइयाँ स्थापित करके गुजरात (830 प्रतिदिन) और महाराष्ट्र (781 प्रतिदिन) को पीछे छोड़ दिया, जबकि अप्रैल वर्ष 2025 में यह उनसे पीछे था। 
    • राज्य ने प्रयासों को और आगे बढ़ाने के लिये प्रतिदिन 1,300 सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना का नया लक्ष्य निर्धारित किया है।
  • प्रमुख रणनीतियाँ: 
    • उत्तर प्रदेश अपनी विकास रणनीति में सौर ऊर्जा इकाइयों को प्राथमिकता दे रहा है, जिसमें सूर्य मित्रों (सौर श्रमिकों) को प्रशिक्षित एवं सशक्त बनाने पर विशेष ज़ोर दिया जा रहा है तथा उद्यमिता एवं उपभोक्ता संतुष्टि को प्रमुख लक्ष्य बनाया गया है।
    • इस प्रयास के अंतर्गत सौर ऊर्जा दिवस’ पर आयोजित आंतरिक कार्यक्रम में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले पाँच सूर्य मित्रों को सम्मानित किया गया।
  • प्रभाव: 
    • राज्य के प्रयासों से सौर ऊर्जा विक्रेता नेटवर्क का विस्तार हुआ है, जो पीएम-सूर्य घर योजना के शुभारंभ के समय 86 विक्रेताओं से बढ़कर वर्तमान में 3,000 से अधिक विक्रेताओं तक पहुँच गया है। 
    • यह वृद्धि सौर क्षेत्र में रोज़गार को बढ़ावा दे रही है और वर्ष 2029 तक एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के उत्तर प्रदेश के लक्ष्य का समर्थन कर रही है।
  • दीर्घकालिक लक्ष्य: 
    • उत्तर प्रदेश की योजना वर्ष 2027 तक 22 गीगावाट की स्थापित सौर क्षमता हासिल करने की है। इसे अनुकूल नीतिगत ढाँचे और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से गति दी जाएगी।

श्रेणी

विवरण

राज्य की सौर क्षमता

23 गीगावाट

स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता

2,632 मेगावाट

PM-KUSUM योजना के अंतर्गत जोड़ी जाने वाली सौर क्षमता

2,000 मेगावाट

कुल विद्युत उत्पादन क्षमता (वित्त वर्ष 2028 तक)

40,191 मेगावाट (30,003 मेगावाट क्रियाशील)

उत्तर प्रदेश सौर ऊर्जा नीति 2022

वित्त वर्ष 2028 तक 14 गीगावाट यूटिलिटी स्केल सौर ऊर्जा परियोजनाएँ प्रस्तावित

हरित विद्युत शुल्क

0.54 रुपए प्रति kWh (अतिरिक्त लागत का 50%)

नेट बिलिंग / नेट फीड-इन

UPERC द्वारा रूफटॉप सौर PV ग्रिड-इंटरएक्टिव प्रणाली (ग्रॉस/नेट मीटरिंग) हेतु लागू

 

पीएम-सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना

  • शुरुआत: नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा फरवरी 2024 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य छत पर सौर पैनल लगाकर एक करोड़ घरों को मुफ्त बिजली उपलब्ध कराना है।
    बजट: कुल 75,021 करोड़ रुपए के बजट के साथ, इस योजना को वित्त वर्ष 2026-27 तक लागू करने की योजना है।
  • लाभ: यह प्रति माह 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली प्रदान करती है तथा स्थापना लागत का 40% तक सब्सिडी देती है, जिससे पूरे देश में सौर ऊर्जा को व्यापक रूप से अपनाने को बढ़ावा मिलता है।
  • पात्रता: भारतीय नागरिक, मकान मालिक, वैध बिजली कनेक्शन रखने वाले तथा जिन्होंने पूर्व में कोई सौर सब्सिडी प्राप्त न की हो।
  • कार्यान्वयन:
  • राष्ट्रीय स्तर पर – राष्ट्रीय कार्यक्रम कार्यान्वयन एजेंसी (NPIA)
  • राज्य स्तर पर – राज्य कार्यान्वयन एजेंसियाँ (SIA)
  • मुख्य भाग:
    • केंद्रीय वित्तीय सहायता (CFA): राष्ट्रीय पोर्टल के माध्यम से छत पर सौर पैनल स्थापित करने वाले आवासीय उपभोक्ताओं को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
    • आदर्श सौर ग्राम: प्रत्येक ज़िले में एक आदर्श सौर ग्राम का निर्माण, ताकि सौर ऊर्जा अपनाने को बढ़ावा मिले।


    राजस्थान Switch to English

    राजस्थान की प्री-प्राइमरी कक्षाओं में संस्कृत

    चर्चा में क्यों?

    राजस्थान सरकार राज्य के सरकारी स्कूलों में प्री-प्राइमरी कक्षाओं के लिये संस्कृत को एक विषय के रूप में शुरू करने जा रही है। यह देश में पहली बार होगा, जिसका उद्देश्य 3 से 5 वर्ष की आयु के बच्चों को इस प्राचीन भाषा से परिचित कराना है।

    मुख्य बिंदु

    • पाठ्यक्रम विकास: 
      • प्री-प्राइमरी छात्रों के लिये विशेष रूप से तैयार की गई संस्कृत पुस्तकें राजस्थान राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (RSCERT) द्वारा विकसित की गई हैं और इन्हें NCERT तथा राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है। 
      • ये पुस्तकें संस्कृत और हिंदी/अंग्रेज़ी दोनों माध्यम के सरकारी स्कूलों में उपयोग हेतु तैयार की गई हैं, जो इस पहल के समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाती हैं। 
      • प्रत्येक पुस्तक में संस्कृत, हिंदी और अंग्रेज़ी में पढ़ाए गए शब्दों की सूची शामिल है, साथ ही बच्चों को अपनी मातृभाषा में शब्द लिखने का स्थान भी दिया गया है। 
      • सामग्री में रोज़मर्रा की वस्तुओं (संख्याएँ, पशु, पक्षी) के चित्र और उनके साथ संबंधित संस्कृत शब्द शामिल हैं।
    • राज्य का दीर्घकालिक दृष्टिकोण: राजस्थान में वर्तमान में 2,369 संस्कृत विद्यालय हैं। यह परियोजना तीन चरणों में शुरू होगी: 
      • चरण 1: 757 नए प्री-प्राइमरी संस्कृत विद्यालयों में संस्कृत की शुरुआत की जाएगी, जो एक महीने के भीतर खुलेंगे।
      • चरण 2 और 3: अगले वर्ष तक राजस्थान के 962 महात्मा गांधी अंग्रेज़ी माध्यम स्कूलों (MGEMS) और 660 पीएम-श्री स्कूलों में संस्कृत शुरू की जाएगी।
    • NEP के साथ संरेखण: 
      • पुस्तकें राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के अनुरूप हैं। इनमें अंक, सप्ताह के दिन, शरीर के अंग तथा नैतिक कहानियाँ जैसी अवधारणाएँ सम्मिलित की गई हैं।

    संस्कृत भाषा

    • यह एक इंडो-आर्यन भाषा है और इसे सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक माना जाता है। 
    • इसे भारत की अधिकांश भाषाओं की जननी भी कहा जाता है।
    • इसकी उत्पत्ति लगभग 3,500 वर्ष पहले भारत में मानी जाती है और इसे अक्सर देववाणी (देवताओं की भाषा) कहा जाता है।
    • संस्कृत को दो भागों में विभाजित किया गया है:
      • वैदिक संस्कृत: संस्कृत का पुराना और अधिक प्राचीन रूप, जिसका प्रमाण ऋग्वेद, उपनिषदों तथा पुराणों में मिलता है।
      • लौकिक संस्कृत: संस्कृत का बाद का और अधिक मानकीकृत रूप, जो पाणिनि के व्याकरण पर आधारित है तथा साहित्य, दर्शन, विज्ञान तथा कला में प्रयुक्त होता है।

    नोट

    • संस्कृत भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक है।
    • इसे तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, ओडिया, मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगला के साथ 11 शास्त्रीय भाषाओं में शामिल किया गया है।
    • वर्ष 2010 में संस्कृत को उत्तराखंड की दूसरी आधिकारिक भाषा घोषित किया गया।
    • कर्नाटक के मत्तूर गाँव में सभी लोग संस्कृत भाषा में संवाद करते हैं।


    उत्तर प्रदेश Switch to English

    काशी विश्वनाथ धाम प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र

    चर्चा में क्यों?

    11 अगस्त, 2025 से काशी विश्वनाथ धाम को आधिकारिक तौर पर प्लास्टिक-मुक्त क्षेत्र घोषित किया गया।

    मुख्य बिंदु

    • मुद्दे के बारे में: 
      • मंदिर परिसर में प्लास्टिक के उपयोग को समाप्त करने के लिये कई उपाय लागू किये गये, जिससे यह सतत् विकास और पर्यावरण-मित्रता का आदर्श उदाहरण बन गया।
    • पहल और प्रतिबंध: 
      • श्रावण मास से पूर्व एकल-उपयोग प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध के बाद, काशी विश्वनाथ धाम प्रशासन ने जल ले जाने हेतु प्रयुक्त प्लास्टिक बर्तनों, प्रसाद के लिये दूध, फूल और अन्य पूजा सामग्री ले जाने हेतु प्रयुक्त प्लास्टिक की टोकरियों पर भी प्रतिबंध लगा दिया है।
    • पर्यावरण अनुकूल विकल्प: 
      • इस पहल को समर्थन देने के लिये विक्रेताओं को धातु के बर्तनों के साथ-साथ बाँस की पट्टियों और स्टेनलेस स्टील से बनी पर्यावरण-अनुकूल टोकरियाँ उपलब्ध कराई गईं।

    काशी विश्वनाथ मंदिर


    हरियाणा Switch to English

    हिसार में एकीकृत विनिर्माण क्लस्टर (IMC)

    चर्चा में क्यों?

    अमृतसर–कोलकाता औद्योगिक गलियारा (AKIC) पहल ने राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास एवं कार्यान्वयन ट्रस्ट (NICDIT), हरियाणा सरकार और हरियाणा हवाई अड्डा विकास निगम (HADC) के बीच राज्य समर्थन समझौते (SSA) तथा शेयरधारक समझौते (SHA) पर हस्ताक्षर के साथ एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की। 

    मुख्य बिंदु

    • समझौते के बारे में: 
      • SSA और SHA के तहत राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास निगम (NICDC) हरियाणा सरकार को हिसार में एकीकृत विनिर्माण क्लस्टर (IMC) विकसित करने में सहायता करेगा। 
      • यह परियोजना भारत में राज्य सरकारों के साथ चल रही 20 परियोजनाओं में से एक है।
    • IMC हिसार: 
      • हरियाणा में स्थित यह क्लस्टर राज्य की आर्थिक संवृद्धि का प्रमुख प्रेरक बनने की क्षमता रखता है।
      • यह विकास परियोजना 2,988 एकड़ में फैली हुई है। यह अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक कॉरिडोर (AKIC) का हिस्सा है और हाल ही में उद्घाटित महाराजा अग्रसेन अंतर्राष्टीय हवाई अड्डे, हिसार के निकट स्थित है।
      • इस परियोजना में 32,417 करोड़ रुपए की निवेश होने की संभावना है तथा परियोजना लागत 4,680 करोड़ रुपए है एवं इससे 1.25 लाख रोज़गार सृजित होने की उम्मीद है।
      • यह ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (EDFC) और वेस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (WDFC) के बीच रणनीतिक रूप से स्थित है, जो NH-52, NH-09, रेल संपर्क तथा प्रमुख लॉजिस्टिक्स केंद्रों की निकटता के माध्यम से उत्कृष्ट कनेक्टिविटी प्रदान करता है।
      • उन्नत बुनियादी ढाँचे और हिसार शहर की निकटता के साथ, IMC हिसार हरियाणा तथा उत्तर भारत के औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

    अमृतसर कोलकाता औद्योगिक गलियारा

    • इसे भारत सरकार द्वारा ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (EDFC) के साथ एक प्रमुख औद्योगिक गलियारे के रूप में विकसित किया जा रहा है, जो छह राज्यों में 1,839 किमी की लंबाई को कवर करता है।
    • AKIC को चरणबद्ध तरीके से EDFC के दोनों ओर 150-200 किमी की पट्टी में विकसित करने का प्रस्ताव है।
    • AKIC का प्रभाव क्षेत्र सात राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में होगा।
    • प्रथम चरण में विकास के लिये निम्नलिखित एकीकृत विनिर्माण क्लस्टर (IMC) की पहचान की गई है:
      • हिसार एकीकृत विनिर्माण क्लस्टर IMC, हरियाणा
      • प्रागखुरपिया एकीकृत विनिर्माण क्लस्टर, उत्तराखंड
      • राजपुरा-पटियाला IMC, पंजाब
      • आगरा, उत्तर प्रदेश में IMC और सरस्वती हाई-टेक सिटी, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
      • न्यू बहरी नोड, झारखंड
      • गया IMC, बिहार


    उत्तर प्रदेश Switch to English

    जलालाबाद का नया नाम परशुरामपुरी

    चर्चा में क्यों?

    केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर ज़िले स्थित जलालाबाद नगर का नाम बदलकर आधिकारिक रूप से "परशुरामपुरी" करने की स्वीकृति दे दी है।

    मुख्य बिंदु

    • केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार को नया नाम परशुरामपुरी अधिसूचित करने और इसे सभी क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ देवनागरी (हिंदी) तथा रोमन (अंग्रेज़ी) दोनों लिपियों में पंजीकृत करने का निर्देश दिया है।
    • उत्तर प्रदेश सरकार ने गृह मंत्रालय (MHA) को भेजे अपने अनुरोध में इस बात पर ज़ोर दिया था कि जलालाबाद को परशुराम की जन्मस्थली माना जाता है और यहाँ उनको समर्पित एक प्राचीन मंदिर भी है।
    • इतिहास: जलालाबाद की स्थापना वर्ष 1560 के आसपास हुई थी और इसका नाम मुगल सम्राट जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर (हुमायूँ के पुत्र) के नाम पर रखा गया था, जिन्हें अकबर महान के नाम से जाना जाता था। राज्य सरकार ने वर्ष 2016 में जलालाबाद को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करना शुरू किया था।
    • ज़िले का नाम बदलने की प्रक्रिया: ज़िलों के नाम बदलने या गठन में केंद्र की कोई भूमिका नहीं होती है, क्योंकि यह अधिकार राज्यों के पास होता है, लेकिन जब कोई राज्य किसी ज़िले या रेलवे स्टेशन का नाम बदलना चाहता है तो गृह मंत्रालय की सहमति आवश्यक होती है।
      • राज्य सरकार का प्रस्ताव अन्य विभागों एवं एजेंसियों जैसे पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, इंटेलिजेंस ब्यूरो, डाक विभाग, भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग तथा रेलवे मंत्रालय को भेजा जाता है ताकि उनसे अनुमोदन प्राप्त किया जा सके।
      • उनकी प्रतिक्रियाओं की जाँच के बाद अनापत्ति प्रमाण-पत्र (NOC) जारी किया जा सकता है।

    • उत्तर प्रदेश में पूर्व में बदले गए स्थानों के नाम

    पुराना नाम

    नया नाम

    इलाहाबाद

    प्रयागराज

    फैज़ाबाद

    अयोध्या

    मुगलसराय रेलवे स्टेशन

    पं. दीन दयाल उपाध्याय नगर

    झाँसी रेलवे स्टेशन

    वीरांगना लक्ष्मी बाई

    बनारस

    वाराणसी




    उत्तर प्रदेश Switch to English

    उत्तर प्रदेश फुटवियर, चमड़ा एवं गैर-चमड़ा क्षेत्र विकास नीति 2025

    चर्चा में क्यों?

    राज्य में वैश्विक फुटवियर एवं चमड़ा क्षेत्र की स्थिति को सुदृढ़ करने हेतु उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘उत्तर प्रदेश फुटवियर, चमड़ा एवं गैर-चमड़ा क्षेत्र विकास नीति 2025 को मंज़ूरी दे दी है।

    मुख्य बिंदु 

    नीति की मुख्य विशेषताएँ

    • निर्यात को बढ़ावा: 
      • इस नीति का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय निवेश को आकर्षित करके चमड़ा और गैर-चमड़ा निर्यात में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी को बढ़ाना है, जिसके लिये चीन तथा जापान जैसे देशों में समर्पित निवेश अभियान चलाए जाएंगे।
    • आधुनिकीकरण: 
      • उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार लाने तथा रोज़गार सृजन के लिये प्रौद्योगिकी को उन्नत करने, उत्पादन सुविधाओं को आधुनिक बनाने तथा प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने पर ज़ोर दिया जाएगा।
        • चमड़ा और फुटवियर क्षेत्र में उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किये जाएंगे।
      • IPR (बौद्धिक संपदा अधिकार) विकास को समर्थन देने के लिये अनुदान प्रदान किये जाएंगे , जिसमें प्रति इकाई 1 करोड़ रुपए तक का प्रावधान है।
    • कौशल विकास: 
      • प्रशिक्षण केंद्र युवाओं के कौशल उन्नयन पर ध्यान केंद्रित करेंगे तथा शैक्षिक संस्थानों के साथ साझेदारी में विशेष पाठ्यक्रम तैयार किये जाएंगे। 
      • अगले पाँच वर्षों में इस क्षेत्र में लगभग 22 लाख नौकरियाँ सृजित करने का लक्ष्य रखा गया है, जिसमें महिलाओं और दिव्यांग लोगों को रोज़गार देने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
    • समर्पित चमड़ा पार्क: 
      • सरकार बड़े भूखंडों का निर्माण करेगी और प्लग-एंड-प्ले सुविधाओं, अपशिष्ट उपचार संयंत्रों तथा अत्याधुनिक बुनियादी ढाँचे के साथ समर्पित चमड़ा पार्क स्थापित करेगी। 
      • बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये कानपुर, आगरा और उन्नाव में मेगा-लेदर पार्क की स्थापना की जाएगी। 
      • बुंदेलखंड और पूर्वांचल जैसे वंचित क्षेत्रों में परिचालन स्थापित करने के लिये विशेष प्रोत्साहन दिया जाएगा।
    • वित्तीय प्रोत्साहन: 
      • इस नीति में नए चमड़ा पार्क और क्लस्टर स्थापित करने के लिये प्रोत्साहन तथा सब्सिडी प्रदान करके नए एवं मौजूदा दोनों व्यवसायों को समर्थन देने के प्रावधान शामिल हैं।
        • 50 एकड़ से अधिक भूमि पर चमड़ा पार्क या क्लस्टर स्थापित करने के लिये 25% पूंजीगत सब्सिडी।
        • परियोजना से संबंधित भूमि खरीद के लिये स्टांप ड्यूटी पर 100% छूट।
        • पहले तीन वर्षों के लिये नेपाल, बांग्लादेश और भूटान के बाहर के बाज़ारों में उत्पादों के निर्यात के लिये 50% परिवहन लागत की प्रतिपूर्ति।
    • सतत् विकास पर ध्यान:
      • कार्बन क्रेडिट प्रमाणन, नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणन और ऊर्जा ऑडिट अपनाने पर 50% प्रतिपूर्ति।
      • अंतर्राष्ट्रीय सतत् प्रमाणन प्राप्त करने पर 75% सब्सिडी।
      • बायोडिग्रेडेबल टैनिंग एजेंट और वाटरलेस डाईंग तकनीक अपनाने का समर्थन।

    उद्योग अंतर्दृष्टि

    • बाजार स्थिति: उत्तर प्रदेश भारत के प्रमुख चमड़ा और फुटवियर हब में से एक है, जो भारत के कुल चमड़ा निर्यात का लगभग 46% योगदान देता है।
    • मुख्य स्थान: आगरा 'भारत की फुटवियर राजधानी' के रूप में प्रसिद्ध है, जबकि कानपुर चमड़े के सामान और काठी के सामान में प्रमुख है।
    • अनुमानित बाज़ार आकार: उत्तर प्रदेश के चमड़ा उद्योग का बाज़ार आकार लगभग 3.5 अरब डॉलर है, जिसमें फुटवियर खंड का महत्त्वपूर्ण योगदान है।



    मध्य प्रदेश Switch to English

    संपूर्णता अभियान

    चर्चा में क्यों?

    मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मध्य प्रदेश के आकांक्षी ज़िलों पर इसके परिवर्तनकारी प्रभाव के लिये 'संपूर्णता अभियान' की सराहना की है। 

    • इस अभियान ने पिछड़े ज़िलों में विकास को गति दी है, मातृ स्वास्थ्य, बाल टीकाकरण, मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरण, स्कूलों में बिजली और पाठ्य पुस्तकों की उपलब्धता में सुधार किया है, साथ ही शासन तथा प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि की है एवं ज़िलों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा दिया है।

    मुख्य बिंदु 

    • संपूर्णता अभियान के बारे में:
      • यह नीति आयोग द्वारा एक राष्ट्रव्यापी अभियान के रूप में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत में 500 आकांक्षी ब्लॉकों और 112 आकांक्षी ज़िलों में 12 प्रमुख सामाजिक क्षेत्र संकेतकों की 100% संतृप्ति प्राप्त करना था।

      • 4 जुलाई से 30 सितंबर 2024 तक चलने वाले इस अभियान में स्वास्थ्य, पोषण, कृषि, सामाजिक विकास और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया गया।

    • प्रमुख लक्षित क्षेत्र: 
      • अभियान का मुख्य उद्देश्य महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्षेत्र संकेतकों की पूर्ण संतृप्ति सुनिश्चित करना है, जिनमें शामिल हैं:
      • मातृ स्वास्थ्य: प्रसव पूर्व देखभाल (ANC) के लिये गर्भवती महिलाओं का समय पर पंजीकरण।
      • बाल टीकाकरण: 9-11 महीने की आयु के बच्चों के लिये पूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित करना।
      • मृदा स्वास्थ्य: मृदा स्वास्थ्य कार्डों का वितरण और सतत् कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना।
      • बुनियादी ढाँचा: माध्यमिक विद्यालयों को बिजली उपलब्ध कराना और पाठ्य पुस्तकों का समय पर वितरण सुनिश्चित करना।
    • आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (ADP) और आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम (ABP)

    कार्यक्रम 

    आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम (ADP)

    आकांक्षी ब्लॉक कार्यक्रम (ABP)

    शुरुआत

    2018

    2023

    उद्देश्य

    देश के 112 ज़िलों में त्वरित एवं प्रभावी रूप से परिवर्तन लाना।

    देश के 500 ब्लॉकों (329 ज़िलों) में आवश्यक सरकारी सेवाओं की संतृप्ति के लिये।

    विषय-वस्तु

    • स्वास्थ्य और पोषण
    • शिक्षा
    • कृषि और जल संसाधन
    • वित्तीय समावेशन और कौशल विकास
    • आधारभूत संरचना
    • स्वास्थ्य और पोषण
    • शिक्षा
    • कृषि और संबद्ध सेवाएँ
    • आधारभूत संरचना
    • सामाजिक विकास

    संकेतकों की संख्या

    81

    40


    उत्तर प्रदेश Switch to English

    प्रथम खेलो इंडिया वाटर स्पोर्ट्स फेस्टिवल 2025

    चर्चा में क्यों?

    प्रथम खेलो इंडिया वाटर स्पोर्ट्स फेस्टिवल (KIWSF) 21 से 23 अगस्त 2025 तक डल झील में आयोजित किया जाएगा, जिसमें 400 से अधिक प्रतिभागी रोइंग, कैनोइंग और कयाकिंग में प्रतिस्पर्द्धा करेंगे।

    • गुलमर्ग में खेलो इंडिया शीतकालीन खेलों के बाद यह जम्मू-कश्मीर में दूसरा खेलो इंडिया आयोजन होगा, जिससे यह क्षेत्र भारत के शीतकालीन खेल केंद्र के रूप में स्थापित हो जाएगा।

    मुख्य बिंदु

    • स्पोर्ट्स फेस्टिवल के बारे में:
      • KIWSF 2025 का आयोजन सरकार की खेलो भारत पहल के तहत भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) और जम्मू-कश्मीर खेल परिषद द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा है। 
    • उद्देश्य: 
      • उद्देश्य: इसका उद्देश्य ज़मीनी स्तर पर खेलों का विस्तार करना, स्थानीय रोजगार सृजित करना और अवसंरचना का आधुनिकीकरण करना है।
    • प्रतियोगिताएँ: 
      • यह पहली समेकित ओपन-एज श्रेणी चैंपियनशिप होगी, जिसमें सभी 14 कयाकिंग और कैनोइंग प्रतियोगिताएँ तथा 10 रोइंग प्रतियोगिताएँ ओलंपिक प्रतियोगिताएँ होंगी। 
      • इसके अलावा तीन प्रदर्शन कार्यक्रम भी होंगे - वाटर स्कीइंग, शिखर बोट स्प्रिंग और ड्रैगन बोट रेस।
    • योग्यता: 
    • टिहरी (उत्तराखंड) में नवंबर 2024 में आयोजित कयाकिंग और कैनोइंग राष्ट्रीय प्रतियोगिता क्वालीफायर के रूप में आयोजित की गई थी, जिसमें एकल तथा युगल में शीर्ष 15 तथा चतुर्थ वर्ग में शीर्ष आठ खिलाड़ी KIWSF में पहुँचे थे।
    • नौकायन में, मार्च 2025 में भोपाल में आयोजित राष्ट्रीय प्रतियोगिता के शीर्ष आठ खिलाड़ी इसमें भाग लेंगे।
    • प्रतिभागी: 
    • KIWSF में 36 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के एथलीट शामिल होंगे, जिसमें सेवा टीम शामिल नहीं होगी।
    • खेलों में लगभग समान प्रतिनिधित्व होगा, जिसमें 409 एथलीट पदक के लिये प्रतिस्पर्द्धा करेंगे, जिनमें 202 महिलाएँ शामिल होंगी।
    • मध्य प्रदेश (44), हरियाणा (37), ओडिशा (34) और केरल (33) का KIWSF 2025 में सबसे बड़ा दल होगा। 
    • गुजरात, पुदुचेरी और पश्चिम बंगाल की टीमें सबसे छोटे दल होंगे।

    खेलो इंडिया

    • भारत सरकार द्वारा वर्ष 2017 में शुरू किये गए खेलो इंडिया का उद्देश्य ज़मीनी स्तर पर बच्चों को शामिल करके और विभिन्न खेलों के लिये बुनियादी ढाँचे तथा अकादमियों को बढ़ाकर देश की खेल संस्कृति को पुनर्जीवित करना है।
      • इस पहल की शुरुआत वर्ष 2018 में नई दिल्ली में खेलो इंडिया स्कूल गेम्स के साथ हुई थी और वर्ष 2018 में भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) के शामिल होने के बाद, खेलों का नाम बदलकर खेलो इंडिया यूथ गेम्स कर दिया गया, जिसका पहला संस्करण वर्ष 2019 में पुणे में आयोजित किया गया था।
    • खेलो इंडिया आंदोलन ने खेलो इंडिया युवा खेल (KIYG), खेलो इंडिया विश्वविद्यालय खेल (KIUG) और खेलो इंडिया शीतकालीन खेल (KIWG) को वार्षिक राष्ट्रीय खेल आयोजनों के रूप में पेश किया, जहाँ विभिन्न राज्यों तथा विश्वविद्यालयों के युवा अपने कौशल का प्रदर्शन करते हैं एवं पदक के लिये प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
    • खेलो इंडिया कैलेंडर में एक नया शामिल, खेलो इंडिया वाटर स्पोर्ट्स फेस्टिवल और खेलो इंडिया बीच गेम्स, जो मई 2025 में दीव में आयोजित किये गए, इस पहल के तहत आयोजनों के विस्तार पर प्रकाश डालते हैं।
    • खेलो इंडिया यूथ गेम्स, जो वर्ष 2018 में 18 खेलों के साथ शुरू हुआ था, वर्ष 2025 में बिहार में आयोजित होने पर 27 खेलों तक विस्तारित हो गया, जिसमें पुरुष और महिलाओं दोनों के लिये अंडर-17 तथा अंडर-21 श्रेणियों में प्रतियोगिताएँ आयोजित की गईं।
    • खेलो इंडिया सेंटर पहल, खेलो इंडिया स्टेट सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (KISCE) योजना का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत में ज़मीनी स्तर पर खेल बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना है।


    मध्य प्रदेश Switch to English

    मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु दर सबसे अधिक

    चर्चा में क्यों?

    राज्य विधानसभा में उपमुख्यमंत्री एवं स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु दर (IMR) भारत में सबसे अधिक है, जहाँ प्रति 1,000 नवजात शिशुओं में से 40 की मृत्यु राज्य में होती है।

    मुख्य बिंदु

    • भारत के महापंजीयक के नवीनतम नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) 2022 के आँकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश का IMR (40) न केवल राष्ट्रीय औसत (26) से ऊपर है, बल्कि सभी राज्यों में सबसे अधिक है।
    • इस समस्या से निपटने के प्रयास में, सरकार ने विभिन्न स्वास्थ्य योजनाओं और पहलों के लिये 110 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं, जिनमें एनीमिया मुक्त भारत, पोषण पुनर्वास केंद्र तथा जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम जैसे कार्यक्रम शामिल हैं।
    • शिशु मृत्यु के कारण: मध्य प्रदेश में शिशु मृत्यु के प्राथमिक कारणों में समय से पहले जन्म, निमोनिया, सेप्सिस, जन्म के समय कम वज़न, जन्म के समय श्वासावरोध और दस्त शामिल हैं।
    • सरकार ने शिशु मृत्यु दर को कम करने के अपने प्रयासों में इन कारकों को प्रमुख लक्षित क्षेत्रों के रूप में सूचीबद्ध किया है।

    मध्य प्रदेश की ग्राम पंचायतों में मातृ एवं शिशु मृत्यु शून्य

    • स्वतंत्रता दिवस पर, मध्य प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (MP-NHM) ने मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल में उल्लेखनीय परिणाम प्राप्त करने वाले ज़मीनी स्तर के स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं और सामुदायिक नेताओं के उत्कृष्ट प्रयासों को मान्यता दी।
    • ढकोनी में शून्य मृत्यु की उपलब्धि: 8,107 की आबादी वाली ढकोनी ग्राम पंचायत ने लगातार दो वर्षों तक मातृ एवं शिशु मृत्यु की शून्य रिपोर्ट सफलतापूर्वक दर्ज की।
    • गरौली ग्राम पंचायत (छतरपुर) में प्रयास: इसी प्रकार, छतरपुर जिले के नौगाँव ब्लॉक में गरौली ग्राम पंचायत, जिसकी जनसंख्या 6,598 है, में भी दो वर्षों में मातृ एवं शिशु मृत्यु शून्य रही।
    • रतलाम में संस्थागत प्रसव: रतलाम ज़िले में, बाजना ब्लॉक के रावटी PHC ने वर्ष 2024-25 के लिये संस्थागत प्रसव में अग्रणी के रूप में उभरकर अपनी पहचान बनाई।


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