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स्टेट पी.सी.एस.

  • 19 Jun 2025
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हरियाणा Switch to English

अंतर-बेसिन सिंधु जल अंतरण योजना

चर्चा में क्यों?

भारत ने सिंधु जल में अपने हिस्से के संपूर्ण उपयोग हेतु एक प्रमुख अंतर-बेसिन जल अंतरण योजना पर कार्य शुरू कर दिया है। जम्मू-कश्मीर से अधिशेष जल को पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान की ओर मोड़ने के लिये चिनाब नदी को रावी-व्यास-सतलज प्रणाली से जोड़ने वाली 113 किमी. लंबी नहर के लिये व्यवहार्यता अध्ययन प्रगति पर है।

मुख्य बिंदु

  • परियोजना का उद्देश्य: 
    • पूर्वी (रावी, ब्यास, सतलज) और पश्चिमी (सिंधु, झेलम, चिनाब) दोनों नदियों का इष्टतम उपयोग करना, जिससे सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान की ओर बहने वाले अतिरिक्त जल को न्यूनतम किया जा सके।
  • नहर एकीकरण योजना: 
    • प्रस्तावित 113 किमी. लंबी नहर चिनाब नदी को रावी-व्यास-सतलज प्रणाली से जोड़ेगी। 
    • यह नहर प्रणाली जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान के 13 मौजूदा नहर तंत्रों से जुड़ते हुए देश की सबसे लंबी इंदिरा गांधी नहर तक पहुँचेगी, जिससे क्षेत्रीय जल पुनर्वितरण सुनिश्चित होगा।
    • यह आंतरिक जल पुनर्विनियोजन, जलवायु परिवर्तन तथा वर्षा के बदलते स्वरूप के संदर्भ में भारत की जल-संवेदनशीलता को भी मज़बूत करेगा।
  • बुनियादी ढाँचे के विकास में सहायता: 
    • नहर एकीकरण योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार रणबीर नहर की लंबाई दोगुनी करने पर विचार कर रही है तथा कठुआ ज़िले में लंबे समय से लंबित उझ बहुउद्देशीय परियोजना को पुनर्जीवित किया जा रहा है।
    • पूर्व में पाकिस्तान की ओर रावी का अतिरिक्त जल जाने से रोकने हेतु प्रस्तावित दूसरी रावी-ब्यास लिंक को अब व्यापक नहर नेटवर्क का हिस्सा बनाया जाएगा।
    • इस परियोजना में एक बैराज तथा एक सुरंग का निर्माण किया जाएगा, जिससे रावी की सहायक नदी उझ से ब्यास बेसिन तक जल स्थानांतरित किया जा सकेगा।
  • अल्पकालिक प्रगतिशील उपाय: 
    • भारत चिनाब नदी पर स्थित बगलिहार तथा सलाल जलविद्युत जलाशयों की गाद निकासी (desilting) कर उनकी जल भंडारण एवं उपयोग क्षमता को बेहतर बना रहा है।
    • भारत सिंधु बेसिन के जल उपयोग को बढ़ाने के लिये मरुसादर नदी की सहायक नदी पर पाकल दुल (1,000 मेगावाट), रातले (850 मेगावाट), किरू (624 मेगावाट) और चेनाब नदी पर क्वार (540 मेगावाट) जैसी प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं के काम में तेज़ी ला रहा है।

Inter-Basin Indus Water Transfer Plan

सिंधु नदी

  • उद्गम:
    • सिंधु (तिब्बती-सेंगगे चू, 'लायन नदी'), दक्षिण एशिया की एक प्रमुख नदी, ट्रांस-हिमालय में मानसरोवर झील के पास तिब्बत से निकलती है।
    • यह नदी तिब्बत, भारत और पाकिस्तान से होकर बहती है तथा इसके जल निकासी बेसिन के क्षेत्र में लगभग 200 मिलियन लोग निवास करते हैं।
  • मार्ग और प्रमुख सहायक नदियाँ:
    • यह नदी लद्दाख के माध्यम से भारत में प्रवेश करती है और पाकिस्तान के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में पहुँचने से पहले जम्मू-कश्मीर से होकर बहती है।
    • सिंधु नदी की प्रमुख बाएँ किनारे की सहायक नदियाँ ज़ास्कर, सुरू, सोन, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास, सतलुज और पंजनाद नदियाँ हैं। 
    • इसके दाहिने किनारे की प्रमुख सहायक नदियाँ श्योक, गिलगित, हुंजा, स्वात, कुन्नार, कुर्रम, गोमल और काबुल नदियाँ हैं।
    • सिंधु नदी दक्षिणी पाकिस्तान में कराची शहर के पास अरब सागर में गिरती है।
  • सिंधु जल संधि (IWT): 
    • यह भारत और पाकिस्तान के बीच वर्ष 1960 में विश्व बैंक के तत्वावधान में हस्ताक्षरित एक जल-बंटवारा समझौता है, जिसके तहत सिंधु नदी और इसकी 5 सहायक नदियों (सतलुज, ब्यास, रावी, झेलम तथा चिनाब) के जल को दोनों देशों के बीच विभाजित किया गया है। 
    • भारत ने सिंधु जल संधि को तब तक के लिये स्थगित कर दिया है जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को अपना समर्थन देना बंद नहीं करता। यह भारत की रणनीतिक सोच में आए बदलाव को दर्शाता है, जहाँ भारत अब जल संसाधनों को कूटनीतिक दबाव के रूप में प्रभावी साधन की तरह प्रयोग कर रहा है।

चिनाब नदी

  • उद्गम:
    • यह नदी हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति ज़िले में स्थित ऊपरी हिमालय के तांडी नामक स्थान पर चंद्रा तथा भागा नदियों के संगम से बनती है।
    • चंद्रा और भागा नदियाँ हिमाचल प्रदेश के लाहुल तथा स्पीति घाटी के बारालाचा दर्रे के क्रमशः दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम मुखों से निकलती हैं।
  • प्रवाह मार्ग: 
    • यह नदी जम्मू-कश्मीर के जम्मू क्षेत्र से होकर पाकिस्तान के पंजाब के मैदानी इलाकों में बहती है और फिर सिंधु नदी में मिल जाती है।


मध्य प्रदेश Switch to English

पगारा बाँध के पास चीता देखे गए

चर्चा में क्यों?

मध्य प्रदेश के मुरैना ज़िले में पगारा बाँध के पास कुनो राष्ट्रीय उद्यान से चीते दिखाई दिये, जिसके बाद वन विभाग ने लोगों से सतर्क रहने का आग्रह किया।

मुख्य बिंदु

  • कुनो राष्ट्रीय उद्यान के बारे में: 
    • मध्य प्रदेश के श्योपुर और मुरैना ज़िलों में स्थित, कुनो राष्ट्रीय उद्यान को वर्ष 1981 में एक वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था। 
    • इसे अपने पारिस्थितिकी महत्त्व के कारण वर्ष 2018 में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्राप्त हुआ।
    • इस राष्ट्रीय उद्यान का नाम कुनो नदी के नाम पर रखा गया है, जो चंबल नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है। 
    • यह क्षेत्र मुख्यतः शुष्क पर्णपाती वनों से आच्छादित है और विंध्य पर्वतमाला में स्थित है।
    • कुनो राष्ट्रीय उद्यान, प्रोजेक्ट चीता के अंतर्गत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से स्थानांतरित किये गए चीतों का निवास स्थान है।
  • जीव-जंतु: 
    • तेंदुआ, धारीदार लकड़बग्घा, भारतीय भेड़िया, काला हिरण, सांभर हिरण, घड़ियाल (कुनो नदी)। 
  • वनस्पति: 
    • मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ करधई, खैर और सलाई हैं।
  • प्रोजेक्ट चीता: 
    • वर्ष 2022 में शुरू की गई इस परियोजना का उद्देश्य वर्ष 1952 से भारत में विलुप्त हो चुके चीतों को पुनः स्थापित करना है, इसमें दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया से चीतों को कुनो राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित करना शामिल है।
    • यह परियोजना राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) द्वारा मध्य प्रदेश वन विभाग, भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) और नामीबिया तथा दक्षिण अफ्रीका के चीता विशेषज्ञों के सहयोग से कार्यान्वित की जा रही है। 
    • परियोजना के दूसरे चरण में केन्या से चीते लाकर उन्हें कुनो और गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में बसाने की योजना है।

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) 

  • NTCA एक वैधानिक निकाय है, जिसका गठन वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्रावधानों के तहत किया गया है, जिसे वर्ष 2006 में संशोधित किया गया था। यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन कार्य करता है NTCA की स्थापना वर्ष 2005 में टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद की गई थी। 
  • NTCA का गठन भारत में बाघ संरक्षण को प्रभावी रूप से लागू करने, उक्त अधिनियम के तहत सौंपी गई शक्तियों का प्रयोग करने और कार्यों को निष्पादित करने के लिये किया गया था।

भारतीय वन्यजीव संस्थान

  • वर्ष 1982 में स्थापित यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्थान है।
  • यह देहरादून, उत्तराखंड में स्थित है। भारतीय वन्यजीव संस्थान वन्यजीव अनुसंधान और प्रबंधन से संबंधित प्रशिक्षण कार्यक्रम, शैक्षणिक पाठ्यक्रम तथा सलाह प्रदान करता है।

Cheetahs Spotted Near Pagara Dam


छत्तीसगढ़ Switch to English

छठी उमाई राष्ट्रीय मुएथाई चैंपियनशिप में छत्तीसगढ़ का प्रदर्शन

चर्चा में क्यों?

छत्तीसगढ़ ने छठी यूनाइटेड मुएथाई एसोसिएशन इंडिया (UMAI) राष्ट्रीय मुएथाई चैंपियनशिप में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए 35 पदक जीते।

मुख्य बिंदु

मुएथाई के बारे में

  • यह एक पारंपरिक थाई (थाईलैंड) युद्ध खेल है जिसे मुट्ठी, कोहनी, घुटने और पिंडलियों के उपयोग के लिये "आठ अंगों की कला" के रूप में जाना जाता है। 
  • यह खेल स्ट्राइकिंग और क्लिंचिंग तकनीकों के संयोजन पर आधारित है, जिसमें मज़बूत शारीरिक तथा मानसिक अनुशासन की आवश्यकता होती है।
  • मुएथाई सदियों से थाई संस्कृति और इतिहास का अभिन्न हिस्सा रहा है तथा यह अनेक ऐतिहासिक संघर्षों में थाई योद्धाओं एवं सैनिकों की प्राथमिक आत्मरक्षा तकनीक के रूप में प्रयोग होता रहा है।

6वीं UMAI राष्ट्रीय मुएथाई चैंपियनशिप: 

  • यह चैंपियनशिप हरियाणा के रोहतक में आयोजित की गई। हरियाणा स्पोर्ट्स मुएथाई एसोसिएशन (HSMA) ने यूनाइटेड मुएथाई एसोसिएशन इंडिया (UMAI) के तत्त्वावधान में इस कार्यक्रम का आयोजन किया।
    • यूनाइटेड मुएथाई एसोसिएशन इंडिया (UMAI) जिसका मुख्यालय जयपुर, राजस्थान में है, भारत और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेशेवर तथा शौकिया मुएथाई दोनों के लिये आधिकारिक शासी निकाय के रूप में कार्य करता है।

National Muaythai Championship


उत्तर प्रदेश Switch to English

उत्तर प्रदेश में मॉडल रॉकेट का परीक्षण

चर्चा में क्यों?

एस्ट्रोनॉटिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया (ASI) ने IN-SPACe (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र) तथा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सहयोग से अक्तूबर 2025 में निर्धारित छात्र मॉडल रॉकेटरी प्रतियोगिता की तैयारी के तहत रॉकेट लॉन्च परीक्षणों का सफलतापूर्वक संचालन किया।

मुख्य बिंदु

  • भारतीय अंतरिक्ष यात्री सोसाइटी (ASI)
    • भारत में अंतरिक्ष यात्रियों के विकास को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 1990 में ASI की स्थापना की गई थी। 
    • यह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष यात्री महासंघ (IAF), पेरिस में अपनी भूमिका के माध्यम से विकासशील देशों के हितों का सक्रिय रूप से समर्थन करता है, जहाँ यह एक मतदान सदस्य के रूप में कार्य करता है।
  • छात्र मॉडल रॉकेटरी प्रतियोगिता
    • कुशीनगर में प्रस्तावित IN-SPACe कैनसैट (CANSAT) तथा मॉडल रॉकेटरी इंडिया छात्र प्रतियोगिता 2024-25, स्नातक छात्रों को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का व्यावहारिक अनुभव प्रदान करेगी। इसमें छात्र CANSAT तथा मॉडल रॉकेट के डिज़ाइन, निर्माण और प्रक्षेपण में भाग लेंगे।
      • कैनसैट वे छोटे उपग्रह होते हैं, जो सॉफ्ट ड्रिंक के डिब्बे में समा जाते हैं। इन्हें साउंडिंग रॉकेट के माध्यम से कुछ सौ मीटर की ऊँचाई तक प्रक्षेपित किया जाता है और पैराशूट के सहारे नीचे उतारा जाता है।

भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe)

  • परिचय: 
    • IN-SPACe एक एकल-द्वार, स्वतंत्र और नोडल एजेंसी है, जो अंतरिक्ष विभाग (DOS) के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था के रूप में कार्य करती है। इसका गठन वेर्ष 2020 में अंतरिक्ष क्षेत्र में सुधारों के बाद, निजी क्षेत्र की भागीदारी को सक्षम एवं सुविधाजनक बनाने के लिये किया गया था।
  • प्रमुख कार्य
    • IN-SPACe गैर-सरकारी संस्थाओं (NGEs) की अंतरिक्ष गतिविधियों को प्रोत्साहित, अधिकृत और पर्यवेक्षण करता है। इसके अंतर्गत प्रक्षेपण वाहनों का निर्माण, अंतरिक्ष सेवाएँ प्रदान करना, ISRO के बुनियादी ढाँचे को साझा करना तथा नई अंतरिक्ष सुविधाओं की स्थापना शामिल है।
    • IN-SPACe, ISRO और NGEs के बीच इंटरफेस के रूप में कार्य करता है, जिससे अंतरिक्ष अभियानों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को सरल और प्रभावी बनाया जा सके।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)

  • परिचय: 
    • ISRO का मुख्यालय बंगलूरू, कर्नाटक में स्थित है। यह अंतरिक्ष विभाग के अधीन कार्य करता है और भारत की राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसी है, जो राष्ट्रीय तथा वैश्विक हितों के लिये अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने पर केंद्रित है।
  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
    • ISRO का विकास भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) से हुआ, जिसकी स्थापना वर्ष 1962 में डॉ. विक्रम साराभाई के दृष्टिकोण के तहत की गई थी। 
    • वर्ष 1969 में ISRO को औपचारिक रूप से स्थापित किया गया, जिसने INCOSPAR का स्थान लिया और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की भूमिका को सुदृढ़ किया। 
  • वर्ष 1972 में अंतरिक्ष विभाग की स्थापना हुई और ISRO को इसके प्रशासनिक नियंत्रण में लाया गया।
  • मुख्य उद्देश्य
    • ISRO/अंतरिक्ष विभाग का लक्ष्य राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का विकास एवं अनुप्रयोग करना है, जिनमें शामिल हैं:
      • संचार और प्रसारण
      • मौसम सेवाएँ
      • संसाधन निगरानी और प्रबंधन
      • नेविगेशन तथा पोजिशनिंग सिस्टम
  • प्रमुख उपलब्धियाँ

ISRO Tests Model Rocket in UP


छत्तीसगढ़ Switch to English

PEKB छत्तीसगढ़ की पहली सौर ऊर्जा चालित कोयला खदान बनी

चर्चा में क्यों?

छत्तीसगढ़ स्थित परसा ईस्ट और कांता बासन (PEKB) कोयला खदान राज्य की पहली ऐसी खदान बन गई है, जो पूरी तरह सौर ऊर्जा से संचालित होकर ऊर्जा के क्षेत्र में पूर्ण आत्मनिर्भरता प्राप्त कर रही है।

मुख्य बिंदु

  • PEKB खदान के बारे में
    • परसा ईस्ट और कांता बासन (PEKB) कोयला खदान, बिजली उत्पादन हेतु कोयला आपूर्ति में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे लगभग 80 मिलियन उपभोक्ताओं को लाभ मिलता है।
      • PEKB में स्थापित सौर संयंत्र से आने वाले 25 वर्षों में अनुमानतः 4 लाख टन कार्बन उत्सर्जन में कमी आने की सम्भावना है, जो 25 लाख पेड़ लगाने के बराबर मानी जाती है।
      • पर्यावरणविदों के अनुसार, यह पहल ऊर्जा सुरक्षा तथा पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है, जिसमें कोयला खनन को स्वच्छ ऊर्जा समाधानों से जोड़ा गया है।
  • छत्तीसगढ़ में कोयला भंडार
    • यह राज्य भारत के कुल कोयला भंडार का लगभग 16% हिस्सा रखता है, जिससे यह कोयला संसाधनों की दृष्टि से सबसे समृद्ध राज्यों में गिना जाता है।
    • कोयला उत्पादन में छत्तीसगढ़ देश में दूसरे स्थान पर है और यह भारत के कुल उत्पादन में 18% से अधिक का योगदान देता है। 
    • इनमें से अधिकांश भंडार बिजली उत्पादन के लिये उपयुक्त पावर-ग्रेड कोयले के हैं।
    • अनुमानतः राज्य के 12 कोयला क्षेत्रों में 44,483 मिलियन टन कोयले की पहचान की गई है, जो मुख्यतः रायगढ़, सरगुजा, कोरिया और कोरबा ज़िलों में स्थित हैं।
  • छत्तीसगढ़ स्थित कोल इंडिया की सहायक कंपनी साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (SECL) की गेवरा और कुसमुंडा कोयला खदानें वैश्विक स्तर पर दूसरे और चौथे स्थान पर रहीं।
    • कोरबा ज़िले में स्थित ये दोनों खदानें संयुक्त रूप से प्रति वर्ष 100 मिलियन टन से अधिक कोयला उत्पादन करती हैं, जो भारत के कुल कोयला उत्पादन का लगभग 10% है।
  • इन खदानों में विस्फोट-मुक्त संचालन के लिये सतही खनन मशीनों जैसी उन्नत और पर्यावरण-अनुकूल प्रौद्योगिकियों का प्रयोग किया जाता है।


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