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फूलो झानो आशीर्वाद अभियान
चर्चा में क्यों?
चाईबासा में उप विकास आयुक्त (DDC) की अध्यक्षता में आयोजित झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (JSLPS) की समीक्षा बैठक में पश्चिमी सिंहभूम में फूलो झानो आशीर्वाद अभियान की प्रगति और आजीविका गतिविधियों की समीक्षा की गई।
मुख्य बिंदु
- फूलो झानो आशीर्वाद अभियान (PJAA):
- इस अभियान का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में हरिया (देशी शराब) बनाने और बेचने की प्रथा को समाप्त करना है।
- सितंबर 2020 में ग्रामीण विकास विभाग द्वारा प्रारंभ की गई यह योजना महिलाओं को सम्मानजनक एवं स्थायी आजीविका के अवसर प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण पहल है।
- इस अभियान का प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में हरिया (देशी शराब) बनाने और बेचने की प्रथा को समाप्त करना है।
- दृष्टि:
- यह पहल शराब के व्यापार में संलग्न महिलाओं का पुनर्वास कर उन्हें सम्मानजनक एवं स्थायी आय स्रोतों से जोड़ने तथा मुख्यधारा में लाने पर केंद्रित है।
- यह अभियान ज़मीनी स्तर पर आर्थिक स्वतंत्रता, सामाजिक समावेशन एवं महिला सशक्तीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये तैयार किया गया है।
- सहायता तंत्र:
- इस पहल के अंतर्गत स्वयं सहायता समूह (SHG) की सदस्याओं को प्रत्येक प्रभावित परिवार तक पहुँचने और आवश्यक सहायता सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
- सखी मंडल के माध्यम से 10,000 रुपए तक का ब्याज-मुक्त ऋण नए उद्यम शुरू करने के लिये प्रदान किया जाता है।
- यह योजना महिलाओं को शराब उत्पादन से स्थायी आजीविका की ओर स्थानांतरित करने में मदद करने के लिये तकनीकी सहायता, मार्गदर्शन और परामर्श प्रदान करती है।
- उपलब्धियाँ:
- कुल चिह्नित महिलाएँ: 15,284 (घर-घर सर्वेक्षण के माध्यम से)
- पुनर्वासित महिलाएँ: 14,003 महिलाएँ अब वैकल्पिक आय-सृजन गतिविधियों के माध्यम से सम्मानजनक आजीविका अर्जित कर रही हैं।
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फाइलेरिया उन्मूलन पर कार्यशाला
चर्चा में क्यों?
फाइलेरिया उन्मूलन अभियान के तहत आरोग्य आयुष्मान मंदिर, चांदकोपा में स्वास्थ्य जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया।
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रामीणों को लिम्फेटिक फाइलेरियासिस की रोकथाम, लक्षण और उपचार के बारे में शिक्षित करना था। यह एक मच्छर जनित रोग है, जो विभिन्न क्षेत्रों में हज़ोरों लोगों को प्रभावित करता है।
मुख्य बिंदु
- लिम्फेटिक फाइलेरियासिस के बारे में:
- लिम्फेटिक फाइलेरियासिस (एलिफेंटियासिस) एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (NTD) है, जो मच्छरों के माध्यम से फैलने वाले फाइलेरिया परजीवियों के संक्रमण के कारण होता है।
- व्यापकता:
- वर्ष 2021 में, 44 देशों में लगभग 882.5 मिलियन लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते थे जहाँ संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिये निवारक कीमोथेरेपी की आवश्यकता थी।
- मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) के 75% ज़िले पाँच राज्यों बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, ओडिशा और तेलंगाना से हैं।
- कारण:
- यह फाइलेरियोडिडिया परिवार के सूत्रकृमि (गोलकृमि) नामक परजीवियों के संक्रमण से होता है। ये धागे जैसे फाइलेरिया कृमि तीन प्रकार के होते हैं:
- वुचेरेरिया बैन्क्रॉफ्टी (90% मामलों के लिये ज़िम्मेदार)
- ब्रुगिया मलेई (शेष अधिकांश मामलों का कारण)
- ब्रुगिया टिमोरी (जो भी रोग का कारण बनता है)
- यह फाइलेरियोडिडिया परिवार के सूत्रकृमि (गोलकृमि) नामक परजीवियों के संक्रमण से होता है। ये धागे जैसे फाइलेरिया कृमि तीन प्रकार के होते हैं:
- लक्षण:
- अधिकांश संक्रमण लक्षणहीन रहते हैं, लेकिन दीर्घकालिक मामलों में लिम्फोएडेमा, एलिफेंटियासिस और हाइड्रोसील होता है, जिससे विकलांगता और सामाजिक कलंक होता है।
- उपचार और रोकथाम:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अनुशंसित मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (MDA) जोखिमग्रस्त लोगों को संचरण को रोकने के लिये वार्षिक निवारक कीमोथेरेपी प्रदान करता है।
- वैश्विक और राष्ट्रीय प्रयास:
- वर्ष 2000 में शुरू किया गया लिम्फेटिक फाइलेरियासिस उन्मूलन हेतु वैश्विक कार्यक्रम (GPELF) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक निवारक कीमोथेरेपी और रुग्णता प्रबंधन के माध्यम से इसका उन्मूलन करना है।
- भारत का मिशन मोड MDA अभियान, राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (10 फरवरी और 10 अगस्त) के साथ संरेखित है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2027 तक कृमि उन्मूलन करना है, जो वैश्विक लक्ष्य से तीन वर्ष पहले है।
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प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना पर एक दिवसीय प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रम झारखंड के करमाटांड़ में आयोजित किया गया, जिसमें 163 प्रतिभागियों ने व्यावहारिक (हैंड्स-ऑन) प्रशिक्षण प्राप्त किया।
- इस पहल का उद्देश्य कौशल विकास, वित्तीय सहायता और आधुनिक विपणन उपकरणों के साथ एकीकरण के माध्यम से पारंपरिक शिल्पकारों को सशक्त बनाना है।
मुख्य बिंदु
- कौशल विकास पर केंद्रित:
- प्रत्येक प्रतिभागी को प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिये 15,000 रुपए दिये गए, जिसमें प्रोत्साहन के रूप में 500 रुपए प्रतिदिन शामिल थे।
- यह पाँच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम पारंपरिक शिल्पकारों के कौशल उन्नयन पर केंद्रित था, जिसे योजना के अंतर्गत मान्यता प्राप्त 18 पारंपरिक व्यवसायों में संचालित किया गया।
- वित्तीय सहायता:
- प्रशिक्षित शिल्पकारों को न्यूनतम ऋण जोखिम के साथ 5% रियायती ब्याज दर पर 1 लाख की रुपए प्रथम ऋण किस्त उपलब्ध कराई जा रही है, जिससे वे अपना व्यवसाय का विस्तार कर सकें या सूक्ष्म उद्यम प्रारंभ कर सकें।
- प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना
- शुभारंभ वर्ष: 2023
- योजना का प्रकार: केंद्रीय क्षेत्रक योजना
- नोडल मंत्रालय: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME)
- पात्रता: 18 वर्ष से अधिक आयु के पारंपरिक कारीगर और शिल्पकार, जो 18 चिह्नित व्यवसायों में संलग्न हों।
- लाभ:
- पंजीकरण एवं मान्यता: विश्वकर्मा के रूप में मान्यता: PM विश्वकर्मा प्रमाण पत्र और आई.डी. कार्ड
- ऋण सहायता:
- संपार्श्विक मुक्त उद्यम विकास ऋण:
- 1 लाख रुपए तक
- 2 लाख रुपए तक
- 5% रियायती ब्याज दर:
- भारत सरकार द्वारा 8% तक ब्याज अनुदान सीमा के अधीन
- ऋण गारंटी शुल्क भारत सरकार द्वारा वहन किया जाएगा
- संपार्श्विक मुक्त उद्यम विकास ऋण:
- कौशल उन्नयन:
- कौशल पहचान के बाद 5 दिन का बुनियादी प्रशिक्षण
- 15 अथवा उससे अधिक दिन की उन्नत प्रशिक्षण
- प्रशिक्षण वृत्ति: 500 रुपए प्रतिदिन
- टूलकिट प्रोत्साहन:
- शुरुआत में DBT के माध्यम से 15,000 रुपए और तत्पश्चात् ई-RUPI/ईवाउचर के माध्यम से अंतरण तथा 500 रुपए की दैनिक वृत्ति, बाज़ार संपर्क, डिजिटल एकीकरण
- लक्ष्य:
- कारीगरों और शिल्पकारों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में उन्नत करना और एकीकृत करना।
- कुल परिव्यय:
- 5 वर्ष 2023-24 से 2027-28 के लिये 13,000 करोड़ रुपए।
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आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में रोगियों की संख्या में कमी
चर्चा में क्यों?
झारखंड के बरहरवा प्रखंड में राष्ट्रीय आयुष मिशन के तहत संचालित आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में रोगियों की संख्या घट रही है।
- निःशुल्क उपचार सेवाएँ उपलब्ध होने के बावजूद, जागरूकता की कमी, अपर्याप्त अवसंरचना, डॉक्टरों एवं कर्मचारियों की कमी तथा आवश्यक दवाओं की अनुपलब्धता के कारण इन केंद्रों का उपयोग कम हो रहा है।
मुख्य बिंदु
आयुष्मान आरोग्य मंदिर (AAM)
- परिचय:
- आयुष्मान आरोग्य मंदिर स्वास्थ्य सेवाओं की एक विस्तृत शृंखला प्रदान करते हैं, जिनमें निवारक, प्रोत्साहनात्मक, पुनर्वास और उपचारात्मक देखभाल शामिल हैं।
- घटक: इसके दो घटक हैं जो एक दूसरे के पूरक हैं।
- प्रथम घटक:
- इसके अंतर्गत 1,50,000 आयुष्मान आरोग्य मंदिरों की स्थापना की जाएगी, ताकि व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध कराई जा सके।
- ये सेवाएँ सार्वभौमिक एवं निःशुल्क होंगी, जिनका उद्देश्य कल्याण उन्मुख और समुदाय-निकट सेवाओं की विस्तृत शृंखला का वितरण सुनिश्चित करना है।
- द्वितीय घटक:
- प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY), जो द्वितीयक और तृतीयक देखभाल हेतु 10 करोड़ से अधिक गरीब एवं कमज़ोर परिवारों को प्रति वर्ष 5 लाख रुपए का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान करती है।
- प्रथम घटक:
- महत्त्व:
- AAM को विस्तारित स्वास्थ्य सेवाओं की श्रेणी प्रदान करने के लिये परिकल्पित किया गया है, जो केवल मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें गैर-संचारी रोगों की देखभाल, उपशामक और पुनर्वास देखभाल, मौखिक, नेत्र और ENT देखभाल, मानसिक स्वास्थ्य और आपात स्थिति और आघात के लिये प्रथम-स्तरीय देखभाल, मुफ्त आवश्यक दवाओं और नैदानिक सेवाओं की उपलब्धता शामिल हैं।
राष्ट्रीय आयुष मिशन (NAM)
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसे वर्ष 2014 में अनुमोदित और अधिसूचित किया गया था।
- इसका मुख्य उद्देश्य लागत प्रभावी आयुष सेवाओं के माध्यम से आयुष चिकित्सा प्रणालियों को बढ़ावा देना, शैक्षिक प्रणालियों को सशक्त करना, आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी एवं होम्योपैथी (ASU & H दवाओं) की गुणवत्ता नियंत्रण का पालन सुनिश्चित करना, और ASU & H कच्चे माल की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
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कांशीराम जी की 19वीं पुण्यतिथि
चर्चा में क्यों?
बहुजन समाज पार्टी (BSP) के संस्थापक कांशीराम जी का 19वाँ परिनिर्वाण दिवस (पुण्यतिथि) 9 अक्तूबर 2025 को धनबाद के लतानी स्थित अंबेडकर क्लब में मनाया गया।
मुख्य बिंदु
कांशीराम जी के बारे में
- जन्म एवं प्रारंभिक जीवन:
- 15 मार्च, 1934 को पंजाब में जन्मे, कांशीराम जी ने अपना जीवन समाज के वंचित वर्गों के उत्थान और बहुजन समाज को सशक्त बनाने के लिये समर्पित कर दिया।
- कम उम्र से ही उन्होंने उत्पीड़ित समुदायों की दुर्दशा के प्रति गहरी सहानुभूति और करुणा का भाव प्रदर्शित किया।
- उन्होंने जाति व्यवस्था में व्याप्त असमानताओं को पहचाना और संगठित राजनीतिक कार्रवाई के माध्यम से यथास्थिति को चुनौती देने का संकल्प लिया।
- बहुजन समाज पार्टी की स्थापना:
- वर्ष 1984 में उन्होंने अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़ा वर्गों और धार्मिक अल्पसंख्यकों से युक्त बहुजन समाज को एकजुट करके एक सशक्त राजनीतिक शक्ति बनाने के उद्देश्य से बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की।
- उनका दृष्टिकोण समाज के वंचित वर्गों को अपने अधिकारों की मांग करने और भारत के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में अपना उचित स्थान पाने के लिये एक मंच प्रदान करना था।
- अन्य प्रमुख संगठन:
- उन्होंने वर्ष 1971 में अखिल भारतीय पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी महासंघ (BAMCEF) और वर्ष 1981 में दलित शोषित समाज संघर्ष समिति (DS-4) की भी स्थापना की।
- मृत्यु:
- 9 अक्तूबर, 2006 को उनका निधन हो गया।
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भारत छोड़ो आंदोलन के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित
चर्चा में क्यों?
भारत छोड़ो आंदोलन (1942) के स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के लिये 8 अक्तूबर 2025 को पटमदा में एक श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन किया गया, जिसे पटमदा और बोड़ाम की राष्ट्र शहीद सम्मान समिति ने संयुक्त रूप से आयोजित किया।
- इस कार्यक्रम में स्थानीय नेता और शहीद भझारी महतो, लक्ष्मण महतो, मदीराम महतो, बिप्रा महतो, रतन माझी, जुड़न मुदी एवं दुर्गा चरण सिंह शामिल थे।
मुख्य बिंदु
भारत छोड़ो आंदोलन
- शुरुआत और उद्देश्य:
- महात्मा गांधी ने 8 अगस्त, 1942 को मुंबई में ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन के दौरान इस आंदोलन की शुरुआत की। क्रिप्स मिशन की विफलता के बाद, इस आंदोलन में ब्रिटिश शासन को तुरंत समाप्त करने की मांग की गई।
- गांधी जी का आह्वान:
- गांधी जी ने गौवालिया टैंक मैदान (अब अगस्त क्रांति मैदान) से “करो या मरो” का आह्वान किया, जिसमें भारतीयों से ब्रिटिश शासन के तत्काल अंत की मांग करने का आग्रह किया गया।
- नारा और प्रतीकात्मकता:
- “भारत छोड़ो” का नारा मुंबई के समाजवादी और ट्रेड यूनियन नेता यूसुफ मेहर अली ने दिया था, जिन्होंने पहले “साइमन गो बैक” का नारा भी गढ़ा था।
- आंदोलन के दौरान, अरुणा आसफ अली एक प्रमुख हस्ती बन गईं, जिन्होंने गोवालिया टैंक मैदान पर अवज्ञा के प्रतीक के रूप में भारतीय ध्वज फहराया।
- नए नेताओं का उदय:
- इस आंदोलन के दौरान डॉ. राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे नए नेता उभरकर सामने आए।
- महिलाओं ने भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, कई महिलाओं ने प्रदर्शन का नेतृत्व किया और प्राणों की आहुति तक दी, जैसे मतंगिनी हाज़रा, जो हाथ में तिरंगा लिये शहीद हुईं तथा सुचेता कृपलानी, जो बाद में भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री (उत्तर प्रदेश) बनीं।
- इस आंदोलन के दौरान डॉ. राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे नए नेता उभरकर सामने आए।
- भारत छोड़ो आंदोलन का स्वरूप:
- यह आंदोलन पहले के शांतिपूर्ण आंदोलनों जैसे असहयोग और सविनय अवज्ञा से अलग था, क्योंकि यह ब्रिटिश शासन की पूरी तरह समाप्ति के लिये जन विद्रोह था।
- हालाँकि गांधी जी ने अहिंसा पर ज़ोर दिया, लेकिन आंदोलन में आत्मरक्षा के लिये हिंसा को भी शामिल किया गया। इसमें ब्रिटिश संपत्तियों पर तोड़फोड़ और गुरिल्ला हमलों जैसी स्वतःस्फूर्त कार्रवाइयों की अनुमति थी।
- कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी के बाद, पूरे भारत में व्यापक विरोध प्रदर्शन, हड़तालें और तोड़फोड़ शुरू हो गई, जिसमें छात्रों और युवाओं ने, विशेषकर शहरी केंद्रों में, अगुवाई की।
- मुस्लिम समुदाय ने अधिकांशतः QIM में भाग नहीं लिया, इसे एक हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलन के रूप में देखा गया, जिसने बढ़ते सांप्रदायिक विभाजन और मुस्लिम लीग के अलग राज्य के लिये दबाव को उजागर किया।
- यह आंदोलन पहले के शांतिपूर्ण आंदोलनों जैसे असहयोग और सविनय अवज्ञा से अलग था, क्योंकि यह ब्रिटिश शासन की पूरी तरह समाप्ति के लिये जन विद्रोह था।
- विरासत:
- यह आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्त्वपूर्ण मार्ग बना, जिसने एकता और दृढ़ संकल्प का प्रदर्शन किया, जिसके परिणामस्वरूप अंततः ब्रिटिश शासन का अंत हुआ।
- भारत छोड़ो आंदोलन एक ऐतिहासिक क्षण था, जिसने भारत की भावी राजनीति को आकार दिया। गोवालिया टैंक मैदान में अपने भाषण में, गांधी जी ने कहा था कि सत्ता भारत के लोगों के हाथ में होगी। इस आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम को वास्तव में "हम भारत के लोगों" का प्रतीक बना दिया।
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कुर्मी समुदाय को ST सूची में शामिल किये जाने जनजाति विरोध प्रदर्शन
चर्चा में क्यों?
चांडिल में जनजाति सामाजिक संगठनों द्वारा व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन और धरना दिया गया, जिसका उद्देश्य कुर्मी (कुड़मी) समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल करने की मांग का विरोध करना था।
- एक प्रतिनिधिमंडल ने भारत के राष्ट्रपति को संबोधित एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें सरकार से कुर्मियों को ST सूची में शामिल न करने की मांग की गई।
मुख्य बिंदु
विरोध के कारण
- जनजातीय अस्मिता पर खतरा:
- जनजातीय प्रतिनिधियों ने यह स्पष्ट किया कि कुर्मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति (ST) सूची में शामिल करने से मौजूदा जनजातीय समुदायों की विशिष्ट पहचान, परंपराएँ और संवैधानिक अधिकार प्रभावित होंगे।
- झारखंड, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के जनजाति संगठनों ने इस कदम का विरोध करते हुए एकजुटता व्यक्त की।
- ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार:
- प्रदर्शनकारियों ने बिरसा मुंडा, सिद्धो-कान्हू, बुधु भगत और गंगा नारायण सिंह जैसे जनजातीय नेताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि जनजातीय पहचान एक अद्वितीय सामाजिक-सांस्कृतिक इतिहास में निहित है, जो कुर्मी समुदाय से अलग है।
- 'रेल रोको' आंदोलन का विरोध:
- अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त करने के लिये कुर्मियों द्वारा चलाए जा रहे “रेल टेका आंदोलन” (रेल रोको आंदोलन) को जनजातीय नेताओं ने अन्यायपूर्ण दबाव की रणनीति बताते हुए जनजातीय स्वायत्तता के लिये चुनौती करार दिया।
कुर्मी समुदाय
- सामाजिक संरचना:
- कुर्मी मुख्यतः एक कृषक समुदाय है, जिनकी जनसंख्या जंगलमहल क्षेत्रों सहित पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा के छोटा नागपुर पठार और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्रों में केंद्रित है।
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1931 की जनगणना में कुर्मियों को अनुसूचित जनजातियों के रूप में वर्गीकृत समुदायों में शामिल किया गया था और वर्ष 1950 में उन्हें अनुसूचित जनजातियों की सूची से बाहर कर दिया गया था।
- जब स्वतंत्र भारत में ST सूची तैयार की गई तो कुर्मियों को उसमें जगह नहीं मिली।
- वर्ष 1931 की जनगणना में कुर्मियों को अनुसूचित जनजातियों के रूप में वर्गीकृत समुदायों में शामिल किया गया था और वर्ष 1950 में उन्हें अनुसूचित जनजातियों की सूची से बाहर कर दिया गया था।
- कुर्मियों का पक्ष:
- उनका तर्क है कि ब्रिटिश कालीन दस्तावेज़ों में उन्हें जनजाति समुदाय के रूप में सूचीबद्ध किया गया था और वे उस पहचान की बहाली चाहते हैं। वे यह भी दावा करते हैं कि वे अनुसूचित जनजातियों की धार्मिक परंपराओं और रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।
- वर्ष 2004 में, झारखंड सरकार ने सिफारिश की थी कि कुर्मी समुदाय को OBC के बजाए ST सूची में शामिल किया जाए।
राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स Switch to English
विश्व कपास दिवस 2025
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और पबित्रा मार्गेरिटा ने 7 अक्तूबर को नई दिल्ली में विश्व कपास दिवस 2025 समारोह में भाग लिया।
- यह कार्यक्रम वस्त्र मंत्रालय तथा भारतीय वस्त्र उद्योग परिसंघ (CITI) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया था, जिसका विषय था "कपास 2040: प्रौद्योगिकी, जलवायु और प्रतिस्पर्द्धात्मकता।"
मुख्य बिंदु
- परिचय:
- विश्व कपास दिवस की स्थापना वर्ष 2019 में की गयी थी, जब उप-सहारा अफ्रीका के चार कपास उत्पादक देशों (बेनीन, बुर्किना फासो, चाड और माली), जिन्हें सामूहिक रूप से “कॉटन फोर (Cotton Four)” कहा जाता है, ने 7 अक्टूबर को विश्व व्यापार संगठन (WTO) को यह दिवस मनाने का प्रस्ताव दिया था।
- उद्देश्य:
- इस दिवस का उद्देश्य अल्प विकसित देशों के कपास और कपास से संबंधित उत्पादों के लिये वैश्विक बाज़ार तक पहुँच प्रदान करने की आवश्यकता के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना है।
- साथ ही यह सतत व्यापार नीतियों को बढ़ावा देने और विकासशील देशों को कपास मूल्य शृंखला के प्रत्येक चरण से अधिक लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाना है।
- कपास से संबंधित तथ्य:
- शीर्ष पाँच कपास उत्पादक देश चीन, भारत, ब्राज़ील, संयुक्त राज्य अमेरिका और पाकिस्तान हैं, जिनकी कुल मिलाकर वैश्विक उत्पादन में तीन-चौथाई से अधिक हिस्सेदारी है।
- भारत विश्व में कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो कुल वैश्विक कपास उत्पादन का 23% है।
- कपास से विश्व में लगभग 2.4 करोड़ उत्पादकों को आजीविका मिलती है तथा 10 करोड़ से अधिक परिवारों को लाभ मिलता है।
- कपास विश्व में पॉलिएस्टर के बाद दूसरा सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला रेशा है, जो कुल रेशा मांग का लगभग 20% है।
- लगभग 80% कपास का उपयोग परिधानों में किया जाता है, शेष कपास का उपयोग घरेलू वस्त्रों और औद्योगिक उत्पादों में किया जाता है।
- शीर्ष पाँच कपास उत्पादक देश चीन, भारत, ब्राज़ील, संयुक्त राज्य अमेरिका और पाकिस्तान हैं, जिनकी कुल मिलाकर वैश्विक उत्पादन में तीन-चौथाई से अधिक हिस्सेदारी है।
- भारत में नियंत्रण प्रणाली:
- भारतीय कपास निगम की स्थापना जुलाई 1970 में वस्त्र मंत्रालय के अधीन की गई थी।
- इसका उद्देश्य मूल्य समर्थन उपायों के माध्यम से कपास के मूल्य स्थिरीकरण को सुनिश्चित करना है।
- इसके अतिरिक्त, यह निगम घरेलू वस्त्र उद्योग का व्यावसायिक खरीद परिचालन के माध्यम से समर्थन करता है, विशेष रूप से कम उत्पादन वाले मौसम के दौरान।
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