उत्तर प्रदेश Switch to English
बचपन डे केयर सेंटर
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार विशेष आवश्यकता वाले बच्चों और दिव्यांग व्यक्तियों हेतु अपनी पहल का विस्तार करने के लिये 26 और ज़िलों में बचपन डे केयर सेंटर खोलने जा रही है, साथ ही पहुँच, शिक्षा, पुनर्वास और प्रशिक्षण में सुधार के लिये नई योजनाएँ शुरू करेगी।
मुख्य बिंदु
- बचपन डे केयर सेंटर के बारे में:
- ये उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित विशेष सुविधाएँ हैं, जो विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को प्रारंभिक हस्तक्षेप, देखभाल, शिक्षा और सामाजिक प्रशिक्षण प्रदान करती हैं।
- इन केंद्रों का उद्देश्य प्रारंभिक आयु से ही सहायक और समावेशी वातावरण देकर दिव्यांग बच्चों के समग्र विकास को बढ़ावा देना है।
- वर्तमान में ये केंद्र 25 ज़िलों में संचालित हो रहे हैं, जिनमें सभी संभागीय मुख्यालय तथा सात आकांक्षी ज़िले (चित्रकूट, फतेहपुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और चंदौली) शामिल हैं।
- सुलभता एवं अवसंरचना सुधार:
- यह सुनिश्चित करने के लिये एक नई योजना प्रस्तावित की गई है कि सभी स्टेडियम और खेल परिसर दिव्यांग व्यक्तियों के लिये पूरी तरह से सुलभ हों।
- इसके अतिरिक्त, दिव्यांग व्यक्तियों के लिये पहुँच और सुविधा बढ़ाने, सार्वजनिक स्थानों में समावेशिता और समान भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये राज्य में अवसंरचना सुधार को उन्नत किया जाएगा।
- इस कदम का उद्देश्य न केवल खेलों में उनकी भागीदारी को बढ़ावा देना है, बल्कि 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' की भावना को भी मज़बूत करना है।
- यह सुनिश्चित करने के लिये एक नई योजना प्रस्तावित की गई है कि सभी स्टेडियम और खेल परिसर दिव्यांग व्यक्तियों के लिये पूरी तरह से सुलभ हों।
- विशेष शिक्षा में डिजिटल रूपांतरण:
- विशेष विद्यालयों के लिये ई-लर्निंग प्रबंधन प्रणाली पोर्टल की शुरुआत की जा रही है।
यह पोर्टल—- शैक्षणिक गतिविधियों और विद्यार्थियों की प्रतिभाओं की रीयल-टाइम निगरानी को सक्षम बनाएगा,
- शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाएगा और
- विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के समग्र विकास को प्रोत्साहित करेगा।
- विशेष विद्यालयों के लिये ई-लर्निंग प्रबंधन प्रणाली पोर्टल की शुरुआत की जा रही है।
- बौद्धिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के लिये पुनर्वास और सहायता:
- प्रत्येक ज़िले में आश्रयगृह-सह-प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की योजना बनाई गई है।
- ये केंद्र सुरक्षित वातावरण और कौशल-आधारित प्रशिक्षण प्रदान करेंगे।
- ये स्वतंत्र जीवन को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार और निजी संस्थाओं द्वारा समर्थित हैं।
- विशेष शिक्षकों के लिये प्रशिक्षण और सहायता:
- सेवारत विशेष शिक्षकों के लिये रिफ्रेशर कोर्स एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत की जा रही है, जिनका उद्देश्य शिक्षकों को आधुनिक शैक्षणिक विधियों से अद्यतन रखना है।
- जिससे वे दिव्यांग विद्यार्थियों की बदलती आवश्यकताओं का बेहतर ढंग से समाधान कर सकें।
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों से संबंधित योजनाएँ
- दिव्यांग पेंशन योजना: राज्य सरकार की पेंशन योजना 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के दिव्यांग व्यक्तियों को मासिक वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जिससे उनकी आजीविका और जीवन स्तर में सुधार होता है। बेहतर सहायता प्रदान करने के लिये पेंशन राशि में समय-समय पर वृद्धि की जाती है।
- दीन दयाल विकलांग पुनर्वास योजना (DDRS): यह योजना वर्ष 1999 में शुरू की गई थी और वर्ष 2003 में इसे संशोधित कर इसका नाम परिवर्तित किया गया। इसे पहले "दिव्यांगजनों के लिये स्वैच्छिक प्रयासों को प्रोत्साहन देने की योजना" के रूप में जाना जाता था।
- DDRS एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है, जो दिव्यांगजनों की शिक्षा और पुनर्वास हेतु कार्यरत स्वैच्छिक संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।


मध्य प्रदेश Switch to English
उड़ान योजना के तहत मध्य प्रदेश में हवाई अड्डों का उद्घाटन
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के नवनिर्मित सतना हवाई अड्डे तथा उन्नत दतिया हवाई अड्डे का वर्चुअल माध्यम से उद्घाटन किया, जो क्षेत्रीय संपर्क को सुदृढ़ करने और उड़ान योजना के अंतर्गत अवसंरचना विकास को आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
मुख्य बिंदु
- सतना हवाई अड्डा:
- भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) द्वारा 36.96 करोड़ रुपए की लागत से विकसित सतना हवाई अड्डा पूर्वोत्तर मध्य प्रदेश में एक प्रमुख क्षेत्रीय केंद्र के रूप में उभरेगा।
- यह हवाई अड्डा चित्रकूट और मैहर जैसे प्रमुख स्थलों से संपर्क को सुदृढ़ करेगा, जिससे सांस्कृतिक तथा औद्योगिक संबंधों को मज़बूती मिलेगी।
- प्रमुख विशेषताओं में पुनः कालीनयुक्त रनवे, डोर्नियर-228 विमानों के लिये पार्किंग स्थल, एक ATC टावर और एक फायर स्टेशन शामिल हैं।
- सतत् विकास की दृष्टि से इसमें 100% LED प्रकाश व्यवस्था, सौर ऊर्जा चालित स्ट्रीट लाइटें और बागवानी के लिये उपचारित जल पुनः उपयोग प्रणाली शामिल हैं।
- दतिया हवाई अड्डा:
- उन्नत दतिया हवाई अड्डे का विकास 60.63 करोड़ रुपए की लागत से किया गया है, जो इस ऐतिहासिक शहर को राष्ट्रीय विमानन ग्रिड से जोड़ेगा।
- पीतांबरा पीठ और दतिया पैलेस जैसे महत्त्वपूर्ण स्थलों के लिये प्रसिद्ध दतिया में इस परियोजना से धार्मिक एवं सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
- वर्तमान में यह हवाई अड्डा ATR-72 विमान के संचालन हेतु उपयुक्त है तथा भविष्य में Airbus A-320 विमानों के संचालन के लिये तैयार किया जा रहा है।
- अवसंरचना में पुनर्परिष्कृत रनवे, एप्रन बे (apron bays), ATC टावर, फायरफाइटिंग सेवाएँ, वर्षा जल संचयन प्रणाली तथा ऊर्जा कुशल प्रकाश व्यवस्था शामिल हैं।
- उन्नत दतिया हवाई अड्डे का विकास 60.63 करोड़ रुपए की लागत से किया गया है, जो इस ऐतिहासिक शहर को राष्ट्रीय विमानन ग्रिड से जोड़ेगा।
- सामाजिक-आर्थिक रूपांतरण को गति देने की दिशा में:
- दोनों हवाई अड्डों के संचालन से बुंदेलखंड और बघेलखंड क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ तीव्र होंगी, रोज़गार के अवसर उत्पन्न होंगे तथा महत्त्वपूर्ण सेवाओं तक पहुँच में सुधार होगा।
- ये परियोजनाएँ उड़ान योजना के अंतर्गत समावेशी विकास पर केंद्र सरकार के विशेष फोकस को दर्शाती हैं, जिससे वंचित क्षेत्रों के लिये किफायती हवाई यात्रा संभव हो रही है।
उड़ान योजना
- परिचय:
- उड़ान का उद्देश्य देश के दूरवर्ती क्षेत्रों तक वायु कनेक्टिविटी सुनिश्चित करते हुए विमानन का अधिक से अधिक विस्तार करना और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ाना है।
- यह योजना राष्ट्रीय नागरिक विमानन नीति (NCAP) 2016 के तहत तैयार की गई थी, जिसका उद्देश्य बाज़ार संचालित तथा वित्तीय रूप से समर्थित मॉडल के माध्यम से टियर-2 और टियर-3 शहरों को जोड़ना था।
- भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) इसके कार्यान्वयन के लिये ज़िम्मेदार नोडल एजेंसी है।
- विशेषताएँ:
- व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) : उचित किराया सुनिश्चित करने के लिये एयरलाइनों को वित्तीय सहायता।
- योजना के अंतर्गत व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये क्षेत्रीय संपर्क निधि (RCF) का प्रावधान किया गया है।
- वहनीयता सुनिश्चित करने के लिये हवाई किराये की सीमा निर्धारित की गई है।
- क्षेत्रीय मार्गों पर परिचालन को व्यवहार्य बनाने के लिये विमानन टर्बाइन ईंधन (ATF) पर करों में कमी के साथ एयरलाइनों को अन्य रियायतें दी गई हैं।
- केंद्र, राज्य, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) और निजी हवाईअड्डा संचालकों के बीच सहयोगात्मक शासन पर ध्यान दिया गया है।
- व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF) : उचित किराया सुनिश्चित करने के लिये एयरलाइनों को वित्तीय सहायता।
- उड़ान के अंतर्गत प्रमुख नवाचार:
- उड़ान यात्री कैफे: कोलकाता और चेन्नई हवाई अड्डों पर किफायती यात्री कैफे शुरू किये गए हैं, जो उचित कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण भोजन उपलब्ध कराते हैं।
- सीप्लेन परिचालन: देश भर में 50 से अधिक चिह्नित जल निकायों से निविदा आमंत्रित करने के लिये उड़ान चक्र 5.5 शुरू किया गया है।
- कृषि उड़ान योजना: किसानों को समर्थन देने और कृषि उपज के लिये मूल्य प्राप्ति में सुधार करने के लिये डिज़ाइन की गई कृषि उड़ान, विशेष रूप से पूर्वोत्तर, पर्वतीय और जनजातीय क्षेत्रों से समय पर और लागत प्रभावी हवाई रसद की सुविधा प्रदान करती है।
- कोविड-19 महामारी के दौरान दूरदराज़ के क्षेत्रों में आवश्यक चिकित्सा सामान पहुँचाने के लिये लाइफलाइन उड़ान शुरू की गई थी।
- भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI)
- भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (Airports Authority of India- AAI) भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के अंतर्गत एक सांविधिक निकाय है। इसका गठन वर्ष 1995 में राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण को मिलाकर किया गया था।
- यह भारतीय हवाई क्षेत्र और आस-पास के समुद्री क्षेत्रों में हवाई यातायात प्रबंधन सेवाएँ भी प्रदान करता है।
- AAI के कार्यों में हवाई अड्डे का विकास, हवाई क्षेत्र नियंत्रण, यात्री और कार्गो टर्मिनल प्रबंधन तथा संचार एवं नेविगेशन सहायता का प्रावधान शामिल हैं।
- AAI 2.8 मिलियन वर्ग समुद्री मील हवाई क्षेत्र में हवाई नेविगेशन सेवाएँ प्रदान करता है।
- पीतांबरा पीठ
- पीतांबरा पीठ मध्य प्रदेश के दतिया शहर में स्थित एक हिंदू मंदिर परिसर है, जिसमें एक आश्रम भी सम्मिलित है।
- यहाँ स्थित श्री वनखंडेश्वर शिवलिंग को महाभारत काल का माना जाता है। यह मंदिर शक्ति साधना के प्रमुख केंद्रों में एक है।
- पीठ की स्थापना वर्ष 1935 में स्वामीजी महाराज द्वारा दतिया के राजा शत्रुजीत सिंह बुंदेला के सहयोग से की गई थी।


उत्तर प्रदेश Switch to English
सतत् विमानन ईंधन विनिर्माण नीति-2025
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार ने कृषि अपशिष्ट को जेट ईंधन में परिवर्तित करने हेतु सतत् विमानन ईंधन (SAF) विनिर्माण नीति-2025 की रूपरेखा प्रस्तुत की है।
- इस नीति की रूपरेखा पर विचार-विमर्श हेतु लखनऊ में Invest UP द्वारा एक उच्च स्तरीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया।
मुख्य बिंदु
- SAF के बारे में:
- यह कृषि अपशिष्ट, नगर ठोस अपशिष्ट और वन अवशेषों जैसे नवीकरणीय स्रोतों से उत्पादित किया जाता है।
- यह पारंपरिक जेट ईंधन की तुलना में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 80% तक कम करने की क्षमता रखता है।
- SAF के उत्पादन के लिये गन्ने के शीरे जैसे स्वदेशी फीडस्टॉक और मेक इन इंडिया तकनीक का उपयोग किया जा रहा है।
- नीति के बारे में:
- नीति का लक्ष्य गन्ने की खोई, चावल की भूसी और गेहूँ के भूसे जैसे कृषि अपशिष्टों से सतत् विमानन ईंधन का उत्पादन करना है।
- साथ ही इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश में जैव-जेट ईंधन विनिर्माण के लिये औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित करना है।
- इस पहल से लगभग 2.5 करोड़ किसानों को सीधे लाभ होगा, क्योंकि इससे उनकी फसल के अपशिष्ट के लिये नए बाज़ार उपलब्ध होंगे।
- नीति का महत्त्व:
- देश में अपनी तरह की पहली नीति: यह भारत के विमानन ईंधन मिश्रण में कृषि अपशिष्ट-आधारित जैव ईंधन को शामिल करने की दिशा में एक अग्रणी पहल है।
- जलवायु परिवर्तन शमन: यह पेरिस समझौते के तहत कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता घटाने तथा नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने की भारत की प्रतिबद्धता का समर्थन करती है।
- कृषि अपशिष्ट प्रबंधन: यह पराली जलाने की प्रवृत्ति में कमी लाकर, जो उत्तरी भारत में वायु प्रदूषण और धुंध का एक प्रमुख कारण है, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पारिस्थितिकीय संतुलन में सुधार कर सकती है।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सशक्तीकरण: यह कृषि अवशेषों के लिये नए बाज़ार और मूल्य शृंखलाएँ निर्मित कर किसानों के लिये अतिरिक्त आय के स्रोत उत्पन्न करेगी।
- औद्योगिक वृद्धि: यह उत्तर प्रदेश की रणनीतिक लॉजिस्टिक और कृषि-औद्योगिक क्षमता का उपयोग कर SAF निर्माण इकाइयों की स्थापना को बढ़ावा देगी।
- संबंधित चुनौतियाँ:
- तकनीकी व्यवहार्यता: विभिन्न कृषि अपशिष्टों को प्रभावी ढंग से विमान ईंधन में परिवर्तित करने के लिये विश्वसनीय और व्यापक प्रक्रियाओं का विकास एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
- मूल्य प्रतिस्पर्द्धा: SAF का उत्पादन ऐसी लागत पर किया जाना आवश्यक है, जो पारंपरिक जेट ईंधन के समान हो, ताकि भारी सब्सिडी के बिना इसके उपयोग को प्रोत्साहित किया जा सके।
- अवसंरचना विकास: बिखरे हुए फसल अवशेषों का प्रभावी संग्रहण, परिवहन और भंडारण सुनिश्चित करने के लिये प्रभावी लॉजिस्टिक्स की आवश्यकता है ताकि निरंतर आपूर्ति बनी रहे।
- नीति समन्वय: बायोफ्यूल और विमानन से जुड़ी राज्य और केंद्र की नीतियों को संगत बनाना जरूरी है ताकि अनुमोदन और प्रोत्साहनों की प्रक्रिया सुचारू हो सके।


उत्तराखंड Switch to English
20वाँ गवर्नर कप गोल्फ टूर्नामेंट-2025
चर्चा में क्यों?
राजभवन गोल्फ क्लब, नैनीताल द्वारा आयोजित 20वाँ गवर्नर कप गोल्फ टूर्नामेंट, 1 जून 2025 को सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
- उत्तराखंड के राज्यपाल ने विभिन्न श्रेणियों में विजेताओं और उपविजेताओं को पुरस्कार प्रदान किये।
मुख्य बिंदु
- टूर्नामेंट के बारे में:
- यह टूर्नामेंट 30 मई से 1 जून 2025 तक तीन दिनों तक नैनीताल, उत्तराखंड में आयोजित किया गया था।
- इस आयोजन में भारत के विभिन्न राज्यों से कुल 177 गोल्फ खिलाड़ियों ने भाग लिया।
- महत्त्व:
- बच्चों, युवाओं और छात्रों को गोल्फ में रुचि लेने के लिये प्रोत्साहित करने के लिये राजभवन गोल्फ कोर्स 2024 में खोला गया।
- खेल में महिला खिलाड़ियों और युवाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये विशेष प्रयास किये गए हैं।
- 2025 के विजेता:
वर्ग |
विजेता |
सुपर वेटरन ग्रॉस श्रेणी |
कर्नल एस.सी. गुप्ता |
महिला वर्ग |
सृष्टि धन |
ग्रॉस श्रेणी |
ज़फर इकबाल |
नेट श्रेणी (15-17 आयु वर्ग) |
अमायरा बजाज |
अमैच्योर श्रेणी (12-14 आयु वर्ग) |
समृद्ध चंद ठाकुर |
राज भवन गोल्फ क्लब, नैनीताल
- नैनीताल में राजभवन गोल्फ क्लब की स्थापना वर्ष 1926 में गवर्नमेंट हाउस एस्टेट के हिस्से के रूप में की गई थी।
- यह कोर्स नैनीताल के पर्वतीय क्षेत्र में समुद्र तल से 6,700 से 7,000 फीट की ऊँचाई पर हरे-भरे, मिश्रित वनों में स्थित है।
- राज भवन गोल्फ क्लब का एक समृद्ध ऐतिहासिक विरासत है और इसे पूरे भारत में गोल्फ खिलाड़ियों के लिये एक प्रमुख गंतव्य माना जाता है।


राजस्थान Switch to English
राजस्थान में राइफल और मशीन गन निर्माण
चर्चा में क्यों?
'मेक इन इंडिया' और 'राइज़िंग राजस्थान' पहल के अंतर्गत, राजस्थान को 1,500 करोड़ रुपए से अधिक की रक्षा परियोजनाओं के लिये स्वीकृति प्राप्त हुई है।
- यह राज्य के रक्षा विनिर्माण क्षेत्र के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है, जो राजस्थान को भारत के रक्षा उत्पादन व निर्यात में एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्थापित करता है।
मुख्य बिंदु
- रक्षा विनिर्माण में राजस्थान की भूमिका:
- जोधपुर और जयपुर जैसे स्थानों पर गन के पुर्ज़ों का निर्माण किया जाएगा, जबकि बोरानाड़ा (जोधपुर) स्थित एक विशेषीकृत इकाई में बैरल का निर्माण किया जाएगा, जिससे विकेंद्रीकृत व अधोसंरचना-आधारित प्रणाली के माध्यम से आपूर्ति शृंखला की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
- एक प्रमुख चुनौती गोला-बारूद भंडारण के लिये सुरक्षा मानकों का पालन करना है, जिसके अनुसार ऐसी इकाइयाँ आवासीय क्षेत्रों से 8–10 किमी की दूरी पर होनी चाहिये; इसके लिये सरकार से उपयुक्त भूमि आवंटन की माँग की जा रही है।
- उन्नत हथियार प्रणालियाँ निर्माणाधीन
- सैन्य-ग्रेड स्नाइपर राइफल: यह पूरी तरह स्वदेशी हथियार 2.4 किमी तक की दूरी पर सब-मिनट ऑफ एंगल (MOA) सटीकता के साथ लॉन्ग-रेंज प्रिसीजन के लिये डिज़ाइन किया गया है और विविध पर्यावरणीय परिस्थितियों में विश्वसनीय प्रदर्शन सुनिश्चित करता है।
- मल्टी-बैरल मशीन गन: यह प्रति मिनट 6,000 राउंड की फायरिंग दर, 1,000 गज की रेंज और 15,000 राउंड प्रति बेल्ट क्षमता से लैस है। भविष्य में इसे C-RAM (काउंटर रॉकेट, आर्टिलरी और मोर्टार) तथा एंटी-एयरक्राफ्ट के लिये उन्नत किया जाएगा।
- भारत की रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के लिये महत्त्व
- ‘मेक इन इंडिया’ के साथ समन्वय: यह पहल रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता की भारत की परिकल्पना को साकार करती है, जिसमें पूरी तरह स्वदेशी और अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों का निर्माण किया जा रहा है।
- विकेंद्रीकृत उत्पादन: कई विनिर्माण केंद्रों के माध्यम से जोखिम में कमी, सुरक्षा में सुधार तथा क्षेत्रीय औद्योगिक अधोसंरचना का लाभ लेकर आपूर्ति शृंखला की लचीलापन और स्थायित्व सुनिश्चित किया जा रहा है।
- डिफेंस स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा: इस परियोजना में रक्षा स्टार्टअप्स की भागीदारी से नवाचार और निजी क्षेत्र की सक्रिय भूमिका को बल मिल रहा है।
- निर्यात की संभावना: टोगो और थाईलैंड जैसे देशों से मिली प्रारंभिक रुचि, भारत को वैश्विक रक्षा आपूर्तिकर्त्ता बनाने की दिशा में सशक्त निर्यात संभावनाओं का संकेत देती है।
- मौजूदा रक्षा उत्पादन का पूरक: उत्तर प्रदेश में ब्रह्मोस मिसाइल निर्माण की सफलता के बाद राजस्थान द्वारा छोटे हथियारों के निर्माण में प्रवेश, भारत की रक्षा उत्पादन क्षमताओं को विविधता प्रदान करता है।
ब्रह्मोस मिसाइल
- ब्रह्मोस मिसाइल जिसकी रेंज 290 किमी. है, भारत-रूस का एक संयुक्त उद्यम है और यह मैक 2.8 (ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना) की शीर्ष गति के साथ दुनिया की सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइल है।
- ब्रह्मोस का नाम ब्रह्मपुत्र (भारत) और मोस्कवा (रूस) नदियों के नाम पर रखा गया है।
- यह दो चरणों वाली मिसाइल (पहले चरण में ठोस प्रणोदक इंजन और दूसरे चरण में तरल रैमजेट) है।
- यह एक मल्टीप्लेटफॉर्म मिसाइल है यानी इसे ज़मीन, हवा और समुद्र से लॉन्च किया जा सकता है तथा सटीकता के साथ बहु-क्षमता वाली मिसाइल है जो मौसम की स्थिति के बावजूद दिन और रात दोनों समय काम करती है।
- यह "फायर एंड फॉरगेट्स" सिद्धांत पर काम करती है यानी लॉन्च के बाद इसे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं है।
- वियतनाम, संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया ब्रह्मोस मिसाइल के अन्य संभावित ग्राहकों में से हैं।
'मेक इन इंडिया' पहल
- परिचय: इस अभियान को निवेश को सुविधाजनक बनाने, नवाचार एवं कौशल विकास को बढ़ावा देने, बौद्धिक संपदा की रक्षा करने तथा सर्वश्रेष्ठ विनिर्माण बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने के लिये शुरू किया गया था।
- उद्देश्य:
- विनिर्माण क्षेत्र की संवृद्धि दर को बढ़ाकर 12-14% प्रतिवर्ष करना।
- वर्ष 2022 तक (संशोधित तिथि 2025) विनिर्माण से संबंधित 100 मिलियन अतिरिक्त रोज़गार सृजित करना।
- वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान बढ़ाकर 25% करना।
- 'मेक इन इंडिया' के स्तंभ:
- नई प्रक्रियाएँ: इसके तहत 'व्यापार करने में सुलभता' को उद्यमशीलता के लिये महत्त्वपूर्ण माने जाने के साथ स्टार्टअप्स और स्थापित उद्यमों के लिये कारोबारी माहौल में सुधार के उपायों को लागू किया गया।
- नवीन बुनियादी ढाँचा: सरकार ने विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचा बनाने के लिये औद्योगिक गलियारों एवं स्मार्ट शहरों के विकास को प्राथमिकता दी।
- इसके तहत सुव्यवस्थित पंजीकरण प्रणालियों और बेहतर बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) संबंधी बुनियादी ढाँचे के माध्यम से नवाचार और अनुसंधान को भी बढ़ावा दिया गया।
- मेक इन इंडिया 2.0: वर्तमान में चल रहा "मेक इन इंडिया 2.0" चरण (जिसमें 27 क्षेत्र शामिल हैं) इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के साथ वैश्विक विनिर्माण क्षेत्र में एक प्रमुख पहलू के रूप में भारत की भूमिका को मज़बूत कर रहा है।

