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नागरिक विमानन क्षेत्र की अंतर्राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई में शामिल होगा भारत

  • 04 May 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ICAO, CORSIA, LTAG

मेन्स के लिये:

नागरिक विमानन में जलवायु कार्रवाई: CORSIA, LTAG, भारत के लिये इसके लाभ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नागरिक विमानन मंत्रालय (MoCA) ने घोषणा की है कि भारत वर्ष 2027 से अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (International Civil Aviation Organisation- ICAO) की कार्बन ऑफसेटिंग एंड रिडक्शन स्कीम फॉर इंटरनेशनल एविएशन (CORSIA) और लॉन्ग-टर्म ग्लोबल एस्पिरेशनल गोल्स (LTAG) में भाग लेगा।

  • CORSIA योजना की परिकल्पना 3 चरणों में की गई है: पायलट चरण (2021-2023), पहला चरण (2024-2026) जो कि स्वैच्छिक चरण है, जबकि दूसरा चरण (2027-2035) सभी सदस्य राज्यों के लिये अनिवार्य है।
    • भारत ने CORSIA के स्वैच्छिक चरण में भाग नहीं लेने का निर्णय लिया है।

CORSIA और LTAG:

  • पृष्ठभूमि:
    • ICAO को अपने प्रमुख क्षेत्रों में से एक के रूप में अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन से कार्बन उत्सर्जन को कम करने का कार्य सौंपा गया है।
      • विमानन से होने वाले कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन पर इसके प्रभाव को कम करने के लिये वैश्विक निकाय ने कई प्रमुख आकांक्षात्मक लक्ष्यों को अपनाया है। उनमें शामिल हैं:
        • वर्ष 2050 तक 2 प्रतिशत वार्षिक ईंधन दक्षता में सुधार
        • कार्बन न्यूट्रल ग्रोथ
        • वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन
      • ICAO ने CORSIA और LTAG का गठन किया है।
  • CORSIA:
    • यह अंतर्राष्ट्रीय विमानन के कारण होने वाली CO2 उत्सर्जन में वृद्धि को संबोधित करने के लिये ICAO द्वारा स्थापित एक वैश्विक योजना है।
    • CORSIA का उद्देश्य कार्बन ऑफसेटिंग, कार्बन क्रेडिट और सतत् विमानन ईंधन सहित अनेक उपायों के संयोजन के माध्यम से वर्ष 2020 के स्तर के शुद्ध CO2 उत्सर्जन को स्थिर करना है।
    • यह ICAO सदस्य राज्यों की विशेष परिस्थितियों और संबंधित क्षमताओं का सम्मान करते हुए अंतर्राष्ट्रीय विमानन क्षेत्र में उत्सर्जन, बाज़ार विकृति को कम करने के लिये एक सुसंगत तरीका प्रदान करता है।
    • CO2 उत्सर्जन को संतुलित करने के लिये CORSIA पहले के उपायों के पूरक के रूप में कार्य करता है जिसे प्रौद्योगिकी प्रगति, परिचालन सुधार और कार्बन बाज़ार उत्सर्जन इकाइयों के साथ स्थायी विमानन ईंधन के उपयोग से कम नहीं किया जा सकता है।
    • CORSIA केवल एक देश से दूसरे देश जाने वाली उड़ानों पर लागू होता है।
  • दीर्घकालिक वैश्विक आकांक्षात्मक लक्ष्य (Long-term Global Aspirational Goal- LTAG):
    • UNFCCC पेरिस समझौते के तापमान संबंधी लक्ष्य के समर्थन में 41वीं ICAO सभा ने अंतर्राष्ट्रीय विमानन हेतु LTAG को अपनाया जिसमें वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना प्रस्तावित है।
    • LTAG राज्यों को उत्सर्जन में कटौती करने के लक्ष्यों के रूप में विशेष कर्त्तव्य अथवा ज़िम्मेदारियाँ नहीं सौंपता है। इसके बजाय यह प्रत्येक राज्य की अलग-अलग परिस्थितियों और क्षमताओं की पहचान करता है, जैसे कि विमानन बाज़ारों के वृद्धि और विकास का स्तर।

अंतर्राष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठन (ICAO):

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जिसे वर्ष 1944 में विश्व भर में सुरक्षित और कुशल हवाई परिवहन को बढ़ावा देने हेतु बनाया गया था।
  • ICAO विमानन हेतु अंतर्राष्ट्रीय मानकों और अनुशंसित तरीकों को विकसित करता है, जिसमें हवाई नेविगेशन, संचार और हवाई अड्डे के संचालन के नियम शामिल हैं।
  • यह हवाई यातायात प्रबंधन, विमानन सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण जैसे वैश्विक विमानन मुद्दों को उज़ागर करने का भी कार्य करता है।
  • इसका मुख्यालय मॉन्ट्रियल, कनाडा में है।

ऐसी पहलों में शामिल होने के संभावित लाभ:

  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना: CORSIA में शामिल होने और LTAG हेतु प्रयास करने से अंतर्राष्ट्रीय विमानन से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी। यह जलवायु परिवर्तन से निपटने एवं पर्यावरण की रक्षा के लिये आवश्यक है।
    • भारत ने वर्ष 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन हासिल करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य भी रखा है।
    • भारत वर्ष 2030 तक अपनी अर्थव्यवस्था की कार्बन उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने हेतु प्रतिबद्ध है।
  • धारणीयता में वृद्धि: CORSIA और LTAG एयरलाइंस को अधिक टिकाऊ तकनीकियों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करते हैं, जैसे कि अधिक कुशल विमान का उपयोग करना, ईंधन की खपत को कम करना तथा नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करना।

विमानन क्षेत्र का जलवायु पर प्रभाव:

  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: विमानन क्षेत्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। विमान के इंजनों में जीवाश्म ईंधन के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प, नाइट्रोजन ऑक्साइड एवं अन्य ग्रीनहाउस गैसें उत्पन्न होती हैं जो जलवायु परिवर्तन में योगदान करती हैं।
  • कॉन्ट्रिल्स: कॉन्ट्रिल्स सफेद, लकीर वाली रेखाएँ होती हैं जिन्हें हवाई जहाज़ द्वारा आकाश में छोड़ा जाता है। वे बर्फ के क्रिस्टल से बने होते हैं एवं तब बनते हैं जब विमान से निष्कासित जल वाष्प ठंडे, उच्च ऊँचाई वाले वातावरण में संघनित होता है। कॉन्ट्रिल्स पृथ्वी के वायुमंडल में ताप को रोककर ग्रह पर उष्मण प्रभाव डाल सकते हैं।
  • पक्षाभ मेघ: कॉन्ट्रिल्स के समान पक्षाभ मेघ भी विमान के उत्सर्जन से बनते हैं। इन बादलों का ग्रह पर गर्म प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि ये पृथ्वी के वातावरण में गर्मी को रोके रखते हैं।

कार्बन उत्सर्जन को कम करने हेतु MoCA की प्रमुख पहलें:

  • हरित हवाई अड्डे: हरित हवाई अड्डे के तहत पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने और सतत् विकास को बढ़ावा देने के लिये स्थायी प्रथाओं को लागू किया गया है। हरित हवाई अड्डों का लक्ष्य अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करना, ऊर्जा और जल संसाधनों का संरक्षण करना तथा कचरा एवं उत्सर्जन को कम करना है।
  • राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति (NCAP) 2016: इसमें एक टिकाऊ विमानन ढाँचा विकसित करने का लक्ष्य शामिल है जो वैकल्पिक ईंधन, ऊर्जा कुशल विमान और बुनियादी ढाँचे के उपयोग को बढ़ावा देता है।
  • सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF): सतत् विकास और हवाई अड्डों पर कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिये SAF के उपयोग को प्रोत्साहित करने की पहल की गई है।

स्रोत: इकोनाॅमिक टाइम्स

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