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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    “सत्यनिष्ठा कोई क्षणिक आचरण नहीं बल्कि जीवन के सूक्ष्म निर्णयों से विकसित होने वाली परिष्कृत प्रवृत्ति है।”
    अरस्तू की सद्गुण-नैतिकता के दृष्टिकोण से यह विवेचना कीजिये कि सूक्ष्म निर्णय किस प्रकार व्यक्ति के नैतिक चरित्र का निर्माण करते हैं। (150 शब्द)

    20 Nov, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • सत्यनिष्ठा के संदर्भ में संक्षिप्त जानकारी देते हुए उत्तर की शुरुआत कीजिये।
    • अरस्तू के सद्गुण नैतिकता का गहन अध्ययन प्रस्तुत कीजिये।
    • अखंडता को आकार देने में सूक्ष्म-निर्णयों की भूमिका के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय: 

    सत्यनिष्ठा को प्रायः एक बड़े नैतिक गुण के रूप में देखा जाता है, परंतु वस्तुतः यह अनगिनत सूक्ष्म निर्णयों से विकसित होती है, वे छोटे और अदृश्य चुनाव जो व्यक्ति प्रतिदिन करता है। अरस्तू की ‘सद्गुण-नैतिकता’ इस बात को समझने का एक महत्त्वपूर्ण कार्यढाँचा प्रदान करती है कि ये छोटे निर्णय किसी व्यक्ति के चरित्र एवं उसकी नैतिक प्रवृत्ति को किस प्रकार आकार देते हैं।

    मुख्य भाग: 

    अरस्तू का सद्गुण नैतिकता: 

    अरस्तू के अनुसार:

    • सद्गुण बार-बार किये गए कार्यों से विकसित होने वाली आदतें हैं। चरित्र (आचार) का निर्माण कभी-कभार किये गए वीरतापूर्ण कार्यों से नहीं, बल्कि सही आचरण के निरंतर अभ्यास से होता है।
    • नैतिकता चरम सीमाओं के बीच ‘स्वर्णिम मध्य’ (जैसे: कायरता और उतावलेपन के बीच साहस) को चुनने में निहित है।
    • सद्गुणी व्यवहार तब स्वाभाविक हो जाता है जब उसे प्रशिक्षण, अभ्यास और जानबूझकर किये गए चुनाव के माध्यम से आत्मसात कर लिया जाता है।
      • इस प्रकार, सत्यनिष्ठा नैतिक रूप से सही निर्णयों की पुनरावृत्ति के माध्यम से विकसित होती है, न कि अलग-अलग कार्यों के माध्यम से।

    शुचिता को आकार देने में सूक्ष्म निर्णयों की भूमिका

    • छोटे-छोटे विकल्प आंतरिक नैतिक शक्ति का निर्माण करते हैं: जब भी कोई व्यक्ति छोटे-छोटे मामलों में सत्यनिष्ठा का चुनाव करता है (जैसे: अतिरिक्त छुट्टे लौटाना, छोटी-छोटी गलतियों को स्वीकार करना) तो वह अपने आंतरिक नैतिक स्वभाव को सुदृढ़ बनाता है।
    •  इन अनदेखे कार्यों से सच्चाई की आदत बनती है।
    • अदृश्य कृत्य बड़ी दुविधाओं में व्यवहार को निर्धारित करते हैं: जब किसी व्यक्ति को बड़े नैतिक संकटों का सामना करना पड़ता है, तो वह प्रायः आकस्मिक नैतिक अनुभूतियों के बजाय अंतर्निहित आदतों पर भरोसा करता है।
    • सूक्ष्म निर्णय नैतिक प्रशिक्षण की भांति कार्य करते हैं, जो व्यक्ति को बड़ी जिम्मेदारियों के लिये तैयार करते हैं।
    • पुनरावृत्ति सचेत प्रयास को चरित्र में परिवर्तित करती है: अरस्तू के अनुसार, निर्णयों का लगातार पुनरावृत्ति—
      • नैतिक व्यवहार को स्वचालित बना देता है
      • व्यक्ति के भावों को भी गुण के अनुकूल कर देता है जिससे उसे सही कार्य करने में आनंद आने लगता है
      • चरित्र को स्थिरता प्रदान करता है
        • इस प्रकार, सत्यनिष्ठा व्यक्ति का स्वभाव बन जाती है।
    • सामान्य आचरण में अनुशासन नैतिक पतन को रोकता है: छोटी नैतिक चूकें—जैसे: मामूली झूठ या छोटे सार्वजनिक संसाधनों का दुरुपयोग ही चरित्र को धीरे-धीरे नष्ट कर देती हैं। 
    • इसके विपरीत, अनुशासन के छोटे-छोटे कार्य क्रमिक नैतिक पतन को रोकते हैं, ठीक वैसा ही जैसा अरस्तू कहते हैं कि अवगुण भी बार-बार गलत कार्य करने से ही बनते हैं।

    निष्कर्ष

    बताती है कि नैतिक चरित्र जन्मजात नहीं होता, बल्कि यह आदतों के माध्यम से विकसित होता है। जब व्यक्ति बार-बार ‘उचित’ का चयन करता है (विशेषकर उन छोटी और अनदेखी स्थितियों में) तब वही निर्णय उसके चरित्र को ऐसा बनाते हैं जो दवाब की परिस्थितियों में भी नैतिक व्यवहार बनाए रख सके। इस प्रकार सत्यनिष्ठा का वास्तविक आधार दैनिक सूक्ष्म-निर्णयों में निहित होता है।

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