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प्रश्न :
प्रश्न. मौर्यकालीन कला एवं स्थापत्य ने किस प्रकार मौर्य साम्राज्य के आदर्शों, विशेषतः अशोक के ‘धम्म’ और शाही सत्ता का प्रतिनिधित्व किया, इस पर चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
06 Oct, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- मौर्यकालीन कला और संस्कृति के संदर्भ में संक्षेप में बताते हुए उत्तर लिखना आरंभ कीजिये।
- इसके पश्चात् मौर्य कला में साम्राज्यीय सत्ता और केंद्रीकृत राज्य की अंतर्दृष्टि प्रस्तुत कीजिये।
- उचित निष्कर्ष दीजिये।
परिचय:
मौर्य काल (321-185 ईसा पूर्व), विशेष रूप से सम्राट अशोक के शासनकाल में, एक विशिष्ट साम्राज्यवादी कला शैली का उदय हुआ, जिसने न केवल सौंदर्यपरक उद्देश्यों की पूर्ति की, बल्कि राजनीतिक शक्ति और नैतिक विचारधारा को भी प्रतिबिंबित किया।
मौर्य कला केंद्रीकृत सत्ता का प्रतीक और अशोक के धम्म के प्रसार का माध्यम दोनों बन गई, जिससे स्थापत्यकला शासन एवं नैतिक शासन कला के एक साधन में परिवर्तित हो गई।
मुख्य भाग:
साम्राज्यीय सत्ता और केंद्रीकृत राज्य की अंतर्दृष्टि
स्थापत्यकला/कलात्मक तत्त्व
साम्राज्यीय सत्ता की अंतर्दृष्टि
अखंड अशोक स्तंभ
एकल-पाषाण स्तंभों का उत्खनन और विशाल दूरी तक परिवहन इस बात का प्रतीक था कि सत्ता केंद्रीकृत थी एवं प्रशासनिक नियंत्रण सुदृढ़ था।
पॉलिश किया हुआ बलुआ पत्थर (मौर्यन पॉलिश)
दर्पण-सदृश चमक वाला मौर्यन पॉलिश शाही वैभव, निपुणता और साम्राज्य की भव्यता को प्रदर्शित करता है तथा यह परिष्कृत, राज्य-नियंत्रित शिल्पकला की उत्कृष्टता को उजागर करता है।
स्तंभ शीर्ष (जैसे: सारनाथ का सिंह शीर्ष)
स्तंभ शिल्पों ने सम्राट के 'चक्रवर्त्ती' (सर्वव्यापी शासक) होने की स्थिति को प्रदर्शित किया। इनमें चार सिंहों को चारों दिशाओं की ओर मुख किये दर्शाया गया है, जो सर्वव्यापी सत्ता और व्यापक प्रभाव का प्रतीक हैं।
राजमहल और सभागृह
भव्य राजमहल (जैसे: कुम्हरार का 80-स्तंभों वाला हॉल) इस बात का संकेत देते हैं कि शासन एक सशक्त और एकीकृत राजतंत्र द्वारा संचालित था, जो विशाल संसाधनों को संगठित एवं उपयोग में लाने में सक्षम था।
अशोक के धम्म की अंतर्दृष्टि
स्थापत्यकला/कलात्मक तत्त्व
धम्म की अंतर्दृष्टि
शिलालेख और स्तंभ अभिलेख
ये ‘खुले आकाश के धर्मग्रंथ’ के रूप में कार्य करते थे, जिनके माध्यम से अशोक ने धम्म, अहिंसा, करुणा तथा नैतिक आचरण जैसे मूल्यों का प्रसार स्थानीय प्राकृत भाषाओं में किया।
स्तूपों का निर्माण
बौद्ध अवशेषों को प्रतिष्ठापित किया गया, जिससे स्तूप भक्ति और नैतिक शिक्षा के केंद्र बन गए।
शैलकृत गुफाएँ (बराबर और नागार्जुनी की गुफाएँ)
‘आजीवक’ तथा अन्य संन्यासी संप्रदायों को संरक्षण प्रदान किया गया, जो धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है।
राजधानियों में प्रतीकात्मकता (जैसे: धर्मचक्र)
'धर्मचक्र' और पशुओं के सामंजस्यपूर्ण प्रतिरूप ‘धर्म-विजय’ या ‘धर्म के द्वारा शासन’ की उस आदर्श अवधारणा को अभिव्यक्त करते हैं, जो हिंसात्मक विजय के स्थान पर नैतिक एवं न्यायपूर्ण शासन के प्रतीक का रूप है।
नैतिकता के माध्यम से शक्ति का समन्वय
मौर्यकालीन कला ने रूप और दर्शन का ऐसा संगम प्रस्तुत किया जहाँ राजनीतिक सत्ता एवं नैतिक दृष्टि का सामंजस्य दिखाई देता है। यह इस विचार को मूर्त रूप देती है कि शक्ति का स्थायित्व केवल शासन से नहीं, बल्कि नैतिकता से भी प्राप्त होता है, जो शासन को वैधता और जनता में स्वीकार्यता प्रदान करता है।
- भारत भर में एकरूप शैलकृत स्थापत्यकला प्रशासनिक एकता का प्रतीक थी।
- शिलालेखों और प्रतीकों में निहित संदेश नैतिक शासन तथा जनकल्याण की भावना को अभिव्यक्त करते थे।
- इस प्रकार कला एक स्थायी और दृष्टिगोचर राजनीतिक माध्यम बन गयी, जो साम्राज्यिक व्यवस्था को नैतिक कर्त्तव्य से जोड़ती थी।
निष्कर्ष:
मौर्यकालीन कला और स्थापत्य राज्य के वैचारिक समन्वय का प्रतीक थे, जहाँ राजनीतिक केंद्रीकरण एवं नैतिक सार्वभौमिकता का सामंजस्य दिखाई देता है। अपने भव्य रूप और नैतिक विषय-वस्तु के माध्यम से इन कलाकृतियों ने न केवल मौर्य शासन को वैधता प्रदान की, बल्कि विविध सांस्कृतिक क्षेत्रों को जोड़ते हुए सामाजिक एकता और साम्राज्यिक एकात्मता की भावना को भी सुदृढ़ किया।
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