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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    प्रश्न 2. “दोनों विश्व युद्ध विचारधारा से कम तथा भूगोल एवं संसाधनों से अधिक संबद्ध थे।” समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)

    08 Sep, 2025 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • विश्व युद्धों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
    • भू-राजनीतिक और सामरिक विचार प्रस्तुत कीजिये।
    • संसाधन प्रतिस्पर्द्धा और आर्थिक कारकों की चर्चा कीजिये।
    • जन-संगठन के लिये विचारधारा को एक साधन के रूप में प्रस्तुत कीजिये।
    • उचित निष्कर्ष दीजिये।

    परिचय:

    प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) और द्वितीय विश्व युद्ध (वर्ष 1939-1945) प्रमुख शक्तियों से जुड़े वैश्विक संघर्ष थे, जिन्हें प्रायः वैचारिक संघर्ष के रूप में देखा जाता है। हालाँकि, ये मुख्यतः भू-राजनीतिक हितों, रणनीतिक स्थानों एवं संसाधनों पर नियंत्रण से प्रेरित थे।

    मुख्य भाग:

    • भू-राजनीतिक एवं सामरिक विचार: दोनों विश्व युद्ध भौगोलिक रूप से अत्यधिक प्रभावित थे।
      • प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी की स्थिति फ्राँस और रूस के समीप होने के कारण पश्चिमी मोर्चे पर अत्यधिक सैन्यीकृत क्षेत्र बना, जिसके परिणामस्वरूप खाई युद्ध (Trench Warfare) हुआ।
        • इसके अलावा, मार्ने और ऐस्ने की लड़ाइयों (वर्ष 1914) ने फ्राँस में तेज़ी से जर्मनी के बढ़ते कदमों को रोक दिया, जिससे उसे पीछे हटने के लिये विवश होना पड़ा जिससे खाई युद्ध की स्थिति लंबे समय तक बनी रही।
          • इन संघर्षों और उसके बाद ‘रेस टू द सी’ ने पश्चिमी मोर्चे पर लंबे समय तक चलने वाले खाई युद्ध की स्थिति बना दी।
      • इसी प्रकार, द्वितीय विश्व युद्ध में उत्तरी अफ्रीका, भू-मध्य सागर और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों पर रणनीतिक नियंत्रण आपूर्ति मार्गों एवं व्यापार गलियारों को नियंत्रित करने के लिये महत्त्वपूर्ण था।
        • स्वेज़ नहर और मलक्का जलडमरूमध्य जैसे नौ-सैनिक चोक पॉइंट्स निर्णायक क्षेत्र बन गए, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि भौगोलिक लाभ प्रायः सैन्य अभियानों को विचारधारा से अधिक निर्देशित करते थे।
    • संसाधन प्रतिस्पर्द्धा: युद्ध का प्रमुख कारण प्राकृतिक और औद्योगिक संसाधनों पर अधिकार था। कोयला, लोहा, तेल और रबर युद्धकालीन अर्थव्यवस्थाओं के लिये महत्त्वपूर्ण थे।
      • द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान का दक्षिण-पूर्व एशिया में विस्तार मुख्यरूप से तेल और कच्चे माल की आवश्यकता से प्रेरित था।
      • पूर्वी यूरोप में जर्मनी के आक्रमण का उद्देश्य कृषि और खनिज संसाधनों को प्राप्त करना था।
      • यहाँ तक कि उत्तरी अफ्रीकी अभियान सहित मित्र देशों की रणनीति भी युद्ध प्रयासों को बनाए रखने के लिये ईंधन, धातु और अनाज की सुरक्षा पर आधारित थी।
    • आर्थिक और औद्योगिक कारक: औद्योगिक क्षमता ने वैचारिक प्रतिबद्धता से अधिक सैन्य परिणामों को निर्धारित किया।
      • संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन जैसे मज़बूत औद्योगिक आधार वाले राष्ट्र लंबे समय तक संघर्षों का सामना करने में सक्षम थे।
      • रूहर वैली या कोयला-समृद्ध सिलेसिया जैसे औद्योगिक क्षेत्रों पर नियंत्रण युद्ध के मुख्य उद्देश्य बन गए।
    • जन-संगठन के लिये विचारधारा का प्रयोग: विचारधारा का प्रयोग युद्धों को वैध ठहराने और जनता को प्रेरित करने के लिये किया गया, पर यह गौण थी।
    • नाज़ीवाद के विरुद्ध संघर्ष ने नैतिक आधार तो दिया, किंतु तेल क्षेत्रों की रक्षा या भूमध्यसागर तक अभिगम्यता सुनिश्चित करना वास्तविक सैन्य प्राथमिकताएँ थीं।

    निष्कर्ष:

    यद्यपि दोनों विश्व युद्धों की कथा को वैचारिक रूप में प्रस्तुत किया गया, परंतु वास्तविकता में भूगोल और संसाधन ही संघर्ष एवं रणनीति के मुख्य निर्धारक थे। जैसा कि इतिहासकार ए.जे.पी. टेलर ने तर्क दिया है, “युद्ध अमूर्त सिद्धांतों के लिये नहीं, बल्कि ठोस शक्ति, क्षेत्र और अस्तित्व के लिये लड़े गए।”

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