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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 18 Apr, 2024
  • 25 min read
रैपिड फायर

माइक्रोप्लास्टिक पृथक्करण हेतु नोवेल हाइड्रोजेल

स्रोत:द हिंदू

भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) के शोधकर्ताओं ने जल से माइक्रोप्लास्टिक के पृथक्करण हेतु एक स्थायी हाइड्रोजेल को डिज़ाइन किया है, जिससे मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर इसके खतरे को कम किया जा सकेगा। 

  • इस हाइड्रोजेल में तीन परत वाली पॉलिमर संरचना शामिल है जिसमें UV प्रकाश विकिरण का उपयोग करके माइक्रोप्लास्टिक्स को नष्ट करने के लिये उत्प्रेरक के रूप में कॉपर सब्स्टीट्यूट पॉलीऑक्सोमेलेट (Cu-POM) नामक सामग्री के नैनोक्लस्टर का उपयोग होता है।
  • यह हाइड्रोजेल अत्यधिक कुशल था, जिसके द्वारा लगभग न्यूट्रल pH (∼6.5) पर जल में दो अलग-अलग प्रकार के माइक्रोप्लास्टिक्स को लगभग 93% तथा 95% तक पृथक किया गया।
  • इस प्रक्रिया में विभिन्न परिस्थितियों में हाइड्रोजेल द्वारा माइक्रोप्लास्टिक्स को पृथक करने और अपघटित करने को ट्रैक करने के लिये माइक्रोप्लास्टिक्स में एक फ्लोरोसेंट डाई मिलाया गया।
    • इस पदार्थ को विभिन्न तापमानों के तहत स्थिर पाया गया, जिससे यह माइक्रोप्लास्टिक पृथक करने के क्रम में आशाजनक समाधान बन गया।
  • माइक्रोप्लास्टिक्स को पाँच मिलीमीटर से कम व्यास वाले प्लास्टिक के रूप में परिभाषित किया गया है, इनका निर्माण UV विकिरण, वायु एवं जल धाराओं जैसे प्राकृतिक कारकों के प्रभाव से होता है, जो प्लास्टिक के बड़े कणों को छोटे कणों में विघटित कर देते हैं।
    • इसकी दो श्रेणियाँ हैं: प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक्स, जिसमें व्यावसायिक उपयोग के लिये डिज़ाइन किये गए छोटे कण तथा वस्त्रों से निकलने वाले माइक्रोफाइबर शामिल हैं और द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक्स, जो पानी की बोतलों जैसे बड़े प्लास्टिक के उपकरणों के टूटने से बनते हैं।

और पढ़ें: माइक्रोप्लास्टिक्स


रैपिड फायर

UNFPA स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड 

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की विश्व जनसंख्या स्थिति, 2024 की रिपोर्ट से पता चला है कि भारत की जनसंख्या का 77 वर्षों में दोगुना होने का अनुमान है।

  • मुख्य विशेषताएँ: 1.44 अरब की अनुमानित आबादी के साथ भारत विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है, इसके बाद चीन 1.425 अरब ककी  जनसंख्या के साथ दूसरे स्थान पर है।
    • वर्ष 2011 में हुई जनगणना के दौरान भारत की जनसंख्या 1.21 अरब दर्ज़ की गई थी।
    • जिसकी रिपोर्ट से पता चला कि 24% लोग 0-14 आयु वर्ग के, 17% लोग 10-19 आयु वर्ग के और 26% लोग 10-24 आयु वर्ग के थे। जबकि 68% लोग 15-64 वर्ष की आयु के हैं तथा 7% लोग 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के हैं।
    • भारत में पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष और महिलाओं के लिये 74 वर्ष है।
    • रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि यौन और प्रजनन स्वास्थ्य में भारत की 30 वर्षों की प्रगति ने वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक हाशिये पर रहने वाले समुदायों को नज़रअंदाज़ कर दिया है। इसमें कहा गया है कि वर्ष 2006-2023 के बीच भारत में बाल विवाह का प्रतिशत 23% था।
    • भारत में मातृ मृत्यु में उल्लेखनीय रूप से कमी आई है, जो वैश्विक मातृ मृत्यु का 8% है।
    • रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि स्वदेशी समूहों में मातृ मृत्यु दर अधिक है। विकलांग महिलाएँ लैंगिक हिंसा के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।

और पढ़ें: संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA)


रैपिड फायर

ब्राज़ीलियन लीफ लिटर मेंढकों की अल्ट्रासोनिक आवाज़ें

स्रोत: द हिंदू

शोधकर्त्ताओं ने ब्राज़ीलियाई वर्षावन में एक उल्लेखनीय घटना का पता लगाया है जिसमें लीफ लिटर वाला एक छोटा मेंढक, मनुष्यों की उपस्थिति में पराध्वनिक संकेत उत्पन्न करता है।

  • ब्राज़ील के वर्षावनों में लीफ लिटर के मेंढक (हैडडस बिनोटाटस) पराध्वनिक संकेत उत्सर्जित करते हैं, जो संभावित रूप से शिकारियों को रोकते हैं अथवा सुरक्षा हेतु अन्य पशुओं को आकर्षित करते हैं।
    • इस कॉल की आवृत्ति मनुष्यों की श्रवण सीमा के भीतर 7 किलोहर्ट्ज़ (kHz) से 20 किलोहर्ट्ज़ तक होती है अथवा यह मानवीय श्रवण सीमा से परे 20 किलोहर्ट्ज़ से 44किलोहर्ट्ज़ तक होती है।
      • "सामान्य" मानव श्रवण आवृत्ति सीमा 20 हर्ट्ज और 20 किलोहर्ट्ज़ के बीच होती है।
    • मनुष्यों के लिये अश्रव्य होते हुए भी, इन आवृत्तियों को चमगादड़, कृंतक एवं छोटे प्राइमेट जैसे संभावित शिकारियों द्वारा पहचाना जा सकता है, जो संभावित रूप से अपनी व्यापक आवृत्ति सीमा में शिकारियों की एक शृंखला को नियंत्रित कर सकते हैं।
  • यह खोज इन पराध्वनिक संकेत के उनके उद्देश्य के साथ ही शिकारियों एवं पारिस्थितिकी तंत्र पर उनके प्रभाव के बारे में प्रश्न उठाती है।

और पढ़ें… डांसिंग फ्रॉग


रैपिड फायर

नई मेनिनजाइटिस वैक्सीन के साथ नाइजीरिया सबसे अग्रणी

स्रोत: डाउन टू अर्थ

नाइजीरिया, Men5CV वैक्सीन बनाने वाला विश्व का पहला देश बन गया है, जो मेनिनजाइटिस से निपटने में एक अभूतपूर्व कदम है।

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) द्वारा समर्थित यह नया टीका एक ही खुराक में मेनिंगोकोकस बैक्टीरिया (meningococcus bacteria) के पाँच उपभेदों से सुरक्षा प्रदान करता है, जो पिछले टीकों से बेहतर है जो कम उपभेदों को लक्षित करते थे।
  • पूरे अफ्रीका महाद्वीप में मामलों में वृद्धि के साथ, Men5CV की शुरुआत 2030 तक मेनिनजाइटिस को समाप्त करने के WHO के लक्ष्य के अनुरूप है।
  • मेनिनजाइटिस मेनिन्जेस, मस्तिष्क व रीढ़ की हड्डी को आवरण झिल्लियों का एक गंभीर संक्रमण है, जो मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी को आच्छादित करने वाली झिल्ली होती है।
    • यह रोग बैक्टीरिया, कवक या विषाणु सहित कई अलग-अलग रोगजनकों के कारण हो सकता है, लेकिन वैश्विक स्तर पर इसे सर्वाधिक रूप से बैक्टीरियल मैनिंजाइटिस के प्रभाव द्वारा देखा जाता है।
    • कई अलग-अलग बैक्टीरिया मेनिनजाइटिस का कारण बन सकते हैं। इसमें स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिया, हेमोफिलस इन्फ्लुएंज़ा, निसेरिया मेनिंगिटिडिस  सर्वाधिक मात्र में पाए जाते हैं।

Meningitis

और पढ़ें:  मेनिन्जाइटिस को समाप्त करने के लिये वैश्विक रोडमैप: WHO


प्रारंभिक परीक्षा

जलवायु परिवर्तन मामले में स्विस महिलाएँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय (European Court of Human Rights - ECHR) द्वारा स्विस महिलाओं के एक समूह के पक्ष में दिये गए हालिया निर्णय का जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के मामले पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

स्विस महिलाओं से संबंधित जलवायु परिवर्तन मामला क्या था?

  • याचिकाकर्ता: यह मामला 64 वर्ष से अधिक आयु की महिला जलवायु कार्यकर्त्ताओं के एक समूह, क्लिमासेनियोरिनेन श्वेइज़ (एसोसिएशन ऑफ सीनियर वुमेन फॉर क्लाइमेट प्रोटेक्शन स्विट्जरलैंड) द्वारा स्विस सरकार के खिलाफ लाया गया था।
  • दावा: महिलाओं ने तर्क दिया कि स्विस सरकार की अपर्याप्त जलवायु नीतियाँ मानव अधिकारों पर यूरोपीय कन्वेंशन के तहत उनके जीवन के अधिकार और अन्य गारंटी का उल्लंघन करती हैं।
  • चिकित्सा भेद्यता: याचिकाकर्त्ताओं ने वरिष्ठ नागरिकों के रूप में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली अत्यधिक ऊष्मा के प्रति अपनी चिकित्सा भेद्यता पर प्रकाश डाला है।
    • इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट से पता चलता है कि स्विस आबादी की वरिष्ठ महिलाएँ, विशेष रूप से 75 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में गर्मी से संबंधित चिकित्सा समस्याओं जैसे 'डिहाइड्रेशन, अतिताप, थकान, हीट क्रेम्प्स और हीट स्ट्रोक का खतरा अधिक होता है।
  • न्यायालय का निर्णय:
    • ECHR ने कहा कि अभिसमय के अनुच्छेद 8 के तहत व्यक्तियों को अपने जीवन, स्वास्थ्य, कल्याण और जीवन की गुणवत्ता पर जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रतिकूल प्रभावों से सुरक्षा का अधिकार है।
      • मानवाधिकार अभिसमय के अनुच्छेद 8 में व्यक्तियों को उनके जीवन पर जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों से राज्य द्वारा संरक्षित करने का अधिकार शामिल है।
    • न्यायालय ने पाया कि स्विस सरकार ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिये उचित कानून नहीं बनाए हैं और वह ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रही है।
  • निर्णय का महत्त्व:
    • ECHR का निर्णय 46 सदस्य देशों पर लागू होता है, जिसमें सभी यूरोपीय संघ के देश, साथ ही यूनाइटेड किंगडम (UK) और कई अन्य गैर-EU देश शामिल हैं।
      • यूरोपीय न्यायालयों में जलवायु और मानवाधिकार मामलों को अब ECHR के फैसले पर ध्यान देना चाहिये, संभावित रूप से सदस्य देशों में इस तरह की फाइलिंग को बढ़ावा मिलेगा।
    • ग्लोबल क्लाइमेट लिटिगेशन रिपोर्ट: स्टेटस रिव्यू, 2023 के अनुसार, ग्लोबल क्लाइमेट लिटिगेशन में वृद्धि के कारण वर्ष 2022 तक 2,180 मामले दर्ज़ किये गए हैं, जिनकी संख्या वर्ष 2017 में 884 और वर्ष 2020 में 1,550 थी।
      • यह प्रवृत्ति आगे जवाबदेही को बढ़ावा दे सकती है, जिसके निर्णय संभावित रूप से विश्व में जलवायु संबंधी मुकदमेबाज़ी को प्रभावित कर सकते हैं।
    • निर्णयों में नीतियों को जलवायु विज्ञान के साथ संरेखित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

पूर्ववर्ती मामले:

  • वर्ष 2017 में उत्तराखंड की एक 9 वर्षीय लड़की ने भारत में एक मामला दायर किया, जिसमें तर्क दिया गया कि देश के पर्यावरण कानूनों एवं जलवायु नीतियों को जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिये अधिक कार्रवाई करने की आवश्यकता है। हालाँकि, यह याचिका अंततः खारिज़ कर दी गई।
  • अगस्त 2023 में मोंटाना के युवाओं ने राज्य सरकार के खिलाफ मामला जीता, जिसने जीवाश्म ईंधन परियोजनाओं को मंज़ूरी देते समय जलवायु परिवर्तन की उपेक्षा की, जिससे स्वच्छ पर्यावरण के उनके संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन हुआ।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के विरुद्ध भारत में संरक्षण अधिकार:

Climate_Change

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न.‘भूमंडलीय जलवायु परिवर्तन संधि (ग्लोबल क्लाइमेट, चेंज एलाएंस)’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह यूरोपीय संघ की पहल है। 
  2. यह लक्ष्याधीन विकासशील देशों को उनकी विकास नीतियों और बजटों में जलवायु परिवर्तन के एकीकरण हेतु तकनीकी एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना है। 
  3. इसका समन्वय विश्व संसाधन संस्थान (WRI) और धारणीय विकास हेतु विश्व व्यापार परिषद् (WBCSD) द्वारा किया जाता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रारंभिक परीक्षा

सूर्य तिलक प्रोजेक्ट

स्रोत: पी.आई.बी.

सूर्य तिलक प्रोजेक्ट एक उल्लेखनीय प्रयास है, जो हाल ही में अयोध्या में प्रारंभ हुआ, जिसने श्री रामलला के मस्तक पर सूर्य की रोशनी पहुँचाई।

Surya_Tilak_Project

सूर्य तिलक प्रोजेक्ट क्या है?

  • परिचय:
    • सूर्य तिलक प्रोजेक्ट प्रौद्योगिकी और परंपरा के अनूठे मिश्रण का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे राम नवमी के त्योहार के दौरान सूर्य की सटीक किरण के साथ भगवान राम की मूर्ति के मस्तक को प्रकाशित करने के लिये सावधानीपूर्वक निर्मित किया गया है।
    • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के तहत भारतीय ताराभौतिकीय संस्थान (IIA) अयोध्या में सूर्य तिलक प्रोजेक्ट में महत्त्वपूर्ण था।
  • गणना एवं स्थिति निर्धारण:
    • IIA टीम ने सूर्य तिलक प्रोजेक्ट के लिये सूर्य की स्थिति, डिज़ाइन एवं ऑप्टिकल प्रणाली के अनुकूलन की गणना की।
    • ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार सौर प्रकृति के कारण रामनवमी की तारीख प्रत्येक वर्ष परिवर्तित होती रहती है, जबकि हिंदू कैलेंडर चंद्र-आधारित होता है।
      • ग्रेगोरियन कैलेंडर सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की परिक्रमा पर आधारित है, जो इसे एक वर्ष में लगभग 365 दिनों वाला एक सौर कैलेंडर बनाता है, जबकि हिंदू कैलेंडर पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की परिक्रमा पर आधारित है, जो इसे एक वर्ष में लगभग 354 दिनों वाला चंद्र कैलेंडर बनाता है।
  • डिज़ाइन एवं सुधार:
    • सूर्य तिलक प्रोजेक्ट का मूल इसकी ऑप्टो-मैकेनिकल प्रणाली है, जो सटीक सूर्य के प्रकाश के लिये ऑप्टिकल के साथ-साथ मैकेनिकल कंपोनेंट्स को सहजता से एकीकृत करती है।
      • यह ऑप्टो-मैकेनिकल प्रणाली, एक पेरिस्कोप  (एक उपकरण जिसमें दर्पण अथवा प्रिज़्म के एक शृंखला से जुड़ी एक ट्यूब के समान होती है, जिसके द्वारा एक प्रेक्षक उन चीज़ों को देख सकता है जो दृष्टि से बाहर हैं) सूर्य की स्थिति के लिये वार्षिक समायोजन करने हेतु 19-गियर प्रणाली का उपयोग करता है।
      • प्रत्येक वर्ष पिकअप दर्पण (pickup mirror) के कोण को समायोजित करने के लिये एक गियर टूथ को मैन्युअल रूप से घुमाया जाता है।
        • संख्या 19 मेटोनिक चक्र से समानता रखती है, जो 19 वर्षों तक चलती है और साथ ही सौर वर्ष के समान दिनों में चंद्रमा के चरणों की पुनरावृत्ति के लिये प्रणाली को रीसेट भी करती है।
    • सूर्य तिलक का निष्पादन 4 दर्पणों तथा 2 लेंसों के साथ किया गया, जिसमें IIA के तकनीकी विशेषज्ञों ने इसके परीक्षण, संयोजन, एकीकरण एवं सत्यापन में भाग लिया।
    • इस स्थल पर ऑप्टोमैकेनिकल प्रणाली का कार्यान्वयन केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (CBRI): वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) द्वारा किया गया था।

Design_and _Implementation

  • भविष्य में कार्यान्वयन
    • 4 दर्पणों तथा 4 लेंसों के साथ सूर्य तिलक को अंतिम प्रारूप, मंदिर के पूर्ण निर्माण के बाद दिया जाएगा, जिसमें रामनवमी की कैलेंडर तिथि में बदलाव को समायोजित करने हेतु डिज़ाइन किया गया तंत्र भी शामिल है।
  • रखरखाव एवं चुनौतियाँ:
    • प्रतिवर्ष राम नवमी से पहले मैन्युअल रूप से पहले दर्पण को शिफ्ट किया जाना आवश्यक है, और यह तंत्र बादलों अथवा वर्षा के कारण सूर्य के प्रकाश की अनुपस्थिति में कार्य नहीं करेगा।

भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics- IIA):

  • यह देश का एक प्रमुख संस्थान है, जो खगोलभौतिकी एवं संबंधित क्षेत्रों में शोधकार्य एवं अनुसंधान को समर्पित है।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department Of Science & Technology- DST) के तहत संचालित यह संस्थान आज देश में खगोल एवं भौतिकी में शोध एवं शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र है। 
  • इस संस्थान के प्रमुख प्रेक्षण केंद्र कोडैकनाल (तमिलनाडु), कावलूर (कर्नाटक), गौरीबिदनूर (कर्नाटक) एवं हेनले (लद्दाख) में स्थापित हैं।

और पढ़ें: राम मंदिर


प्रारंभिक परीक्षा

प्रोस्टेट कैंसर

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

लैंसेट कमीशन की एक हालिया रिपोर्ट में भारत में प्रोस्टेट कैंसर के मामलों में चिंताजनक वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, जिससे देर से निदान के कारण मृत्युदर में वृद्धि हुई है।

  • भारत में बड़ी संख्या में रोगियों में उन्नत चरण के कैंसर (जिनके ठीक होने की संभावना नहीं है) का निदान किया जाता है, जिससे मृत्यु दर 65% हो जाती है।
  • विश्व स्तर पर प्रोस्टेट कैंसर के मामले 2040 तक दोगुने होने की संभावना है, जिसमें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सबसे अधिक वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें भारत भी शामिल है जहाँ नए मामलों की संख्या प्रतिवर्ष 71,000  तक पहुँचने का अनुमान है।

प्रोस्टेट कैंसर क्या है?

  • परिचय: यह एक प्रकार का कैंसर है जो पुरुष प्रजनन प्रणाली में मूत्राशय के नीचे स्थित एक छोटी ग्रंथि प्रोस्टेट में विकसित होता है। प्रोस्टेट ग्रंथि तरल पदार्थ का उत्पादन करती है जिससे शुक्राणु का पोषण और परिवहन होता है।

Prostate_Cancer

  • व्यापकता: लैंसेट आयोग की रिपोर्ट में प्रोस्टेट कैंसर के मामलों में वैश्विक वृद्धि की भविष्यवाणी की गई है, जिसमें निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों को सबसे अधिक वृद्धि का सामना करना पड़ सकता है।
    • विश्व में प्रोस्टेट कैंसर वर्ष 2020 में लगभग 3,75,000 मौतों के लिये ज़िम्मेदार था, इसे पुरुषों में कैंसर से संबंधित मौतों का पाँचवाँ प्रमुख कारण बताया गया।
    • यह वर्तमान में भारत में सभी प्रकार के कैंसर का 3% है, जिसमें अनुमानित रूप से (33,000-42,000 वार्षिक) नए मामले होते हैं।
      • बढ़ती आबादी के साथ जीवन प्रत्याशा में हो रही वृद्धि के कारण प्रोस्टेट कैंसर का खतरा बढ़ रहा है।
  • जोखिम के कारक: प्रोस्टेट कैंसर के जोखिम कारकों में उम्र (विशेषकर 50 से अधिक), आनुवंशिकी, आहार, मोटापा, धूम्रपान, रासायनिक जोखिम, प्रोस्टेट सूजन के साथ ही हार्मोनल कारक भी शामिल हैं।
  • लक्षण: प्रोस्टेट कैंसर आमतौर पर अपने प्रारंभिक चरण में लक्षणहीन होता है, लेकिन लक्षणों में पेशाब करने में कठिनाई, बार-बार पेशाब आना (विशेषकर रात में), मूत्र में रक्त, स्तंभन दोष और पीठ के निचले हिस्से अथवा जाँघ में दर्द शामिल हो सकते हैं।
  • जाँच: प्रोस्टेट-विशिष्ट एंटीजन (PSA) रक्त परीक्षण रक्त में PSA के स्तर को मापता है। उच्च PSA स्तर प्रोस्टेट कैंसर का संकेत हो सकता है, लेकिन वे अन्य कारकों के कारण भी हो सकते हैं।
  • उपचार:
    • सर्जरी: प्रोस्टेट ग्रंथि के इलाज के लिये सर्जरी (रेडिकल प्रोस्टेटक्टोमी) एक सामान्य उपचार विकल्प है।
    • रेडिएशन थेरेपी: रेडिएशन थेरेपी में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिये उच्च-ऊर्जा किरणों का उपयोग किया जाता है।
    • हार्मोन थेरेपी: इसे एण्ड्रोजन डेप्रिवेशन थेरेपी (ADT) भी कहा जाता है, यह एक ऐसा उपचार है जो शरीर में टेस्टोस्टेरोन की मात्रा को कम करता है
    • ब्रैकीथेरेपी: यह उपचार रेडियोधर्मी बीजों को सीधे प्रोस्टेट ग्रंथि में प्रत्यारोपित करता है।

और पढ़ें: कैंसर के इलाज के लिए CAR-T सेल थेरेपी

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. ल्यूकीमिया, थैलेसीमिया, क्षतिग्रस्त कॉर्निया व गंभीर दाह सहित सुविस्तृत चिकित्सीय दशाओं में उपचार करने के लिये भारत में स्टेम कोशिका चिकित्सा लोकप्रिय होती जा रही है। संक्षेप में वर्णन कीजिये कि स्टेम कोशिका उपचार क्या होता है और अन्य उपचारों की तुलना में इसके क्या लाभ हैं? (2017)


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