लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

भारतीय विरासत और संस्कृति

भास्करब्दा: एक लूनी-सोलर कैलेंडर

  • 20 Oct 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

कैलेंडर के प्रकार, भास्करवर्मन 

मेन्स के लिये:

महत्त्वपूर्ण नहीं

चर्चा में क्यों?

हाल ही में असम सरकार ने घोषणा की है कि लूनी-सोलर कैलेंडर- ‘भास्करब्दा’ को राज्य में आधिकारिक कैलेंडर के रूप में उपयोग किया जाएगा।

  • वर्तमान में असम सरकार द्वारा शक कैलेंडर और ग्रेगोरियन कैलेंडर को आधिकारिक कैलेंडर के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • हालाँकि अब राज्य में भास्करब्दा कैलेंडर का भी उपयोग किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • गौरतलब है कि ‘भास्करब्दा’ कैलेंडर में युग की शुरुआत 7वीं शताब्दी के स्थानीय शासक भास्कर वर्मन के स्वर्गारोहण की तारीख से मानी जाती है।
    • यह लूनर और सोलर वर्ष दोनों पर आधारित है।
    • यह तब शुरू हुआ जब भास्करवर्मन को ‘कामरूप’ साम्राज्य का शासक बनाया गया।
      • वह उत्तर भारतीय शासक हर्षवर्द्धन के समकालीन और राजनीतिक सहयोगी थे।
    • ‘भास्करब्दा’ और ग्रेगोरियन के बीच 593 वर्ष का अंतर है।
  • कैलेंडर के प्रकार:
    • सोलर/सौर
      • इसके तहत कोई भी ऐसी प्रणाली शामिल है, जो कि लगभग 365 1/4 दिनों के मौसमी वर्ष पर आधारित है, क्योंकि पृथ्वी को सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाने में इतना ही समय लगता है।
    • लूनर
      • कोई भी ऐसी प्रणाली जो ‘साइनोडिक चंद्र महीनों’ (यानी, चंद्रमा के चरणों का पूरा चक्र) पर आधारित होती है।
    • लूनी-सोलर
      • इसके तहत महीने तो चंद्र पर आधारित होते हैं, जबकि एक वर्ष सूर्य पर आधारित होता है, इसका उपयोग पूरे मध्य पूर्व की प्रारंभिक सभ्यताओं और ग्रीस में किया जाता था। 
  • भास्करवर्मन (600-650):
    • वह वर्मन वंश से संबद्ध थे और ‘कामरूप साम्राज्य’ के शासक थे। 
      • ‘कामरूप’ भास्करवर्मन के अधीन भारत के सबसे उन्नत राज्यों में से एक था। कामरूप असम का पहला ऐतिहासिक राज्य था।
    • भास्करवर्मन का नाम चीनी बौद्ध तीर्थयात्री- ‘जुआनज़ांग’ के यात्रा वृतांतों में पाया जाता है, जिन्होंने उनके शासन काल के दौरान कामरूप का दौरा किया था।
    • वह बंगाल (कर्णसुवर्ण) के पहले प्रमुख शासक शशांक के खिलाफ राजा हर्षवर्द्धन के साथ गठबंधन के लिये जाने जाते हैं।

भारत में कैलेंडर का वितरण

  • विक्रम संवत् (हिंदू चंद्र कैलेंडर)
    • इसका प्रचलन 57 ई.पू. में हुआ यहाँ 57 ई.पू. का तात्पर्य शून्य वर्ष (Zero Year) से है।
    • इसे राजा विक्रमादित्य द्वारा शक शासकों पर अपनी विजय को चिह्नित करने के लिये प्रस्तुत किया गया।
    • यह चंद्र कैलेंडर है क्योंकि यह चंद्रमा की गति पर आधारित है।  
    • इसके तहत प्रत्येक वर्ष को 12 महीनों में तथा प्रत्येक माह को दो पक्षों में बाँटा गया है।
      • चंद्रमा की उपस्थिति (जिसमें चंद्रमा का आकार प्रतिदिन बढ़ता हुआ प्रतीत होता है) वाले आधे भाग को शुक्ल पक्ष (15 दिन) कहा जाता है। यह अमावस्या से शुरू होता है और पूर्णिमा पर समाप्त होता है।
      • वे 15 दिन जिनमें चंद्रमा का आकार प्रतिदन घटता हुआ प्रतीत होता है उसे कृष्ण पक्ष कहा जाता है। यह पूर्णिमा से शुरू होता है तथा अमावस्या पर समाप्त होता है।
    • माह की शुरुआत कृष्ण पक्ष के साथ होती है तथा एक वर्ष में 354 दिन होते हैं।
    • इसलिये पाँच साल के चक्र में प्रत्येक तीसरे और पाँचवें वर्ष में 13 महीने होते हैं (13वें महीने को अधिक मास कहा जाता है)।
  • शक संवत् (हिंदू सौर कैलेंडर): 
    • शक संवत का शून्य वर्ष 78 ई. है।
    • इसकी शुरुआत शक शासकों द्वारा कुषाणों पर अपनी विजय को चिह्नित करने के लिये की गई थी।
    • यह एक सौर कैलेंडर है, इसकी तिथि निर्धारण प्रणाली पृथ्वी द्वारा सूर्य के चारों और एक चक्कर पूरा करने में लगने वाले समय यानी लगभग 365 1/4 दिनों के मौसमी वर्ष पर आधारित है।
    • इसे भारत सरकार द्वारा वर्ष 1957 में आधिकारिक कैलेंडर के रूप में अपनाया गया था।
    • इसमें प्रत्येक वर्ष में 365 दिन होते हैं।
  • हिजरी कैलेंडर (इस्लामिक चंद्र कैलेंडर)
    • इसका शून्य वर्ष 622 ईस्वी है।
    • इसका आरंभ व अनुसरण सबसे पहले सऊदी अरब में हुआ।
    • इसके तहत एक वर्ष में 12 महीने या 354 दिन होते हैं।
    • इसके प्रथम माह को मुहर्रम कहते हैं।
    • हिजरी कैलेंडर के नौवें महीने को रमज़ान कहते हैं।
      • इस महीने के दौरान मुसलमान आत्मा की शुद्धि के लिये उपवास रखते हैं। सुबह के नाश्ते को शहरी और शाम के खाने को इफ्तार कहते हैं।
  • ग्रेगोरियन कैलेंडर (वैज्ञानिक सौर कैलेंडर): 
    • ग्रेगोरियन कैलेंडर का उपयोग नागरिक कैलेंडर के रूप में किया जाता है।
    • इसका उपयोग वर्ष 1582 से शुरू हुआ था।
    • इसका नाम पोप ग्रेगरी XIII के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने कैलेंडर प्रस्तुत किया था।
    • इसने पूर्ववर्ती जूलियन कैलेंडर को प्रतिस्थापित किया क्योंकि जूलियन कैलेंडर में लीप वर्ष के संबंध में गणना सही नहीं थी।
  • जूलियन कैलेंडर में 365.25 दिन होते थे।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2